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राम का नाम जब भी आएगा (तर्ज :- मेरे महबूब क़यामत होगी )
राम का नाम जब भी आएगा ।
बिगड़ा हर काम, ओ-साथी, तेरा बन जाएगा ।
अपने अधरों पे ज़रा ले आना,
फिर तो तूँ हीं, इसके हर लाभ, को बतलाएगा ।
राम का नामऽऽऽ ................
दो अक्षर का ही यह नाम
सारे बना दे बिगड़े काम
रट ले, रट ले, जय श्री राम
यदि राम रटे
हर दर्द मिटे
संकट छूने न पाए,
सभी मुश्किल से ये बचाएगा ।
बिगड़ा हर काम, ओ-साथी, तेरा बन जाएगा ।
राम का नामऽऽऽ .................
राम नाम का ना कोई मोल
राम नाम तो है अनमोल
दो अक्षर का प्यारा बोल
कण-कण में है
धड़कन में है
मन में भी है ये सबके,
देख श्रद्धा से, नज़र आएगा ।
बिगड़ा हर काम, ओ-साथी, तेरा बन जाएगा ।
राम का नामऽऽऽ ..........................
पायी परम पद माँ शबरी
गणिका, अहिल्या भी हैं तरी
तुलसी, अजामिल, बाल्मिकी
लेकर प्रभु नाम
सब बैकुण्ठ धाम
पहुँचे, तूँ भी ऐसा बन,
मुक्ति आवागमन से पाएगा ।
बिगड़ा हर काम, ओ-साथी तेरा बन जाएगा ।
राम का नामऽऽऽ ..........................
सारे जग के पालनहार
रामजी विष्णू जी के अवतार
करतें दुष्टों का संहार
बढ़ जाएगा पाप
भू जाएगी काँप
जब धर्म पे होगा संकट,
प्रभू निश्चित है कि तब आएगा ।
बिगड़ा हर काम, ओ-साथी, तेरा बन जाएगा ।
राम का नामऽऽऽ ..............................
नाम / Name : Suresh Kumar “Saurabh”
प्रकाशन तिथि / Published on : 26 Nov 2012
संक्षिप्त प्रेषक परिचय / Brief Introduction of Sender : मैं सुरेश कुमार " सौरभ " 20 वर्षीय एक साधारण नवयुवक एवं छात्र हूँ । मैं सादा जीवन और उच्च विचार की धारणा में विश्वास रखता हूँ । मुझे अपनी राजभाषा हिन्दी से विशेष लगाव है ।
अति संवेदनशील होने के कारण दुसरो के दुःख एवं मजबूरियों को देखकर व्यथित हो जाता हूँ । मैं ज्यादा की लालच नहीं करता हूँ । प्रभु जितना देते हैं, जिस अवस्था में रखते हैं, मैं उसी में संतुष्ट हो जाता हूँ ।
जब कोई व्यक्ति किसी से उसका धर्म पूछता है, तब मुझे बहुत बुरा लगता है । मेरे लिए धर्म वही है जो महाकवि गोस्वामी तुलसीदासजी ने कहा है " परहित सरिस धरम नहिं भाई, पर पीडा सम नहिं अधमाई " ।
किसी को कष्ट न पहुंचाना मेरा प्रयास होता है और नेक इंसान बनना मेरे जीवन का उद्देश्य । |
12 |
जग के स्वामी हे राम
जग के स्वामी हे राम ..................2
ज़रा मुझपे भी कृपा करना ..................2
पापों से भरा हूँ मैं ..................2
मेरे पापों को क्षमा करना .................2
जग के स्वामी हे राम .................2
आ ही गया हूँ, तुमरे द्वारे,
तोड़ के मैं जग से नाता ..............2
चरणों में मुझ को स्थान दो,
विनती सुन लो विधाता ................2
कुछ और नहीं माँगू..............2
दयालु हो तो दया करना ..........2
जग के स्वामी हे राम ..................2
ज़रा मुझपे भी कृपा करना ..................2
पापों से भरा हूँ मैं ............2
मेरे पापों को क्षमा करना ..............2
जग के स्वामी हे राम ............
धन-दौलत का, लोभ करूँ न,
मोह मेरा जग से जाय ..........2
काम, क्रोध न, लूटे मुझको,
कर दो ऐसा उपाय ............2
मद में न कभी डूबूँ ..........2
मुझे सदबुद्धि दिया करना ..............2
जग के स्वामी हे राम ..................2
ज़रा मुझपे भी कृपा करना ..................2
पापों से भरा हूँ मैं ..................2
मेरे पापों को क्षमा करना .................2
जग के स्वामी हे राम ................
ध्यान धरूँ मैं, नाम रटूँ मैं,
हर पल तुमको पुकारूँ ........2
मन के दर्पण, में प्रभु तुमको,
आठो पहर अब निहारूँ ..........2
विनती तुमसे हे नाथ ............2
मेरे हिरदय में रहा करना ............2
जग के स्वामी हे राम ..................2
ज़रा मुझपे भी कृपा करना ..................2
पापों से भरा हूँ मैं ..................2
मेरे पापों को क्षमा करना .................2
जग के स्वामी हे राम ....................
नाम / Name : Suresh Kumar “Saurabh”
प्रकाशन तिथि / Published on : 26 Nov 2012
संक्षिप्त प्रेषक परिचय / Brief Introduction of Sender : मैं सुरेश कुमार " सौरभ " 20 वर्षीय एक साधारण नवयुवक एवं छात्र हूँ । मैं सादा जीवन और उच्च विचार की धारणा में विश्वास रखता हूँ । मुझे अपनी राजभाषा हिन्दी से विशेष लगाव है ।
अति संवेदनशील होने के कारण दुसरो के दुःख एवं मजबूरियों को देखकर व्यथित हो जाता हूँ । मैं ज्यादा की लालच नहीं करता हूँ । प्रभु जितना देते हैं, जिस अवस्था में रखते हैं, मैं उसी में संतुष्ट हो जाता हूँ ।
जब कोई व्यक्ति किसी से उसका धर्म पूछता है, तब मुझे बहुत बुरा लगता है । मेरे लिए धर्म वही है जो महाकवि गोस्वामी तुलसीदासजी ने कहा है " परहित सरिस धरम नहिं भाई, पर पीडा सम नहिं अधमाई " ।
किसी को कष्ट न पहुंचाना मेरा प्रयास होता है और नेक इंसान बनना मेरे जीवन का उद्देश्य । |
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दशरथ भवन आज जन्में हैं राम
हर्षित नगरिया अवध के ग्राम ........2
दशरथ भवन आज जन्में हैं राम ........2
दशरथ लुटावन लगे सोना चनिया .......2
लेवत बलईया इ तीनहु रनिया .............2
गोदिया में बारी-बारी लेवें थाम ।
दशरथ भवन आज जन्में हैं राम ..........2
किन्नरवा, गन्धर्वा, नाचति गावति .....2
देवता गगनवा से फूल बरसावति .....2
जयकारी करता अखिल स्वर्गधाम ।
दशरथ भवन आज जन्में हैं राम ..........2
किलकारी मारत कबहुँ मुस्कियावति .......2
सबके हिया में आनन्द जगावति...........2
पलना में झूलत करत विश्राम ।
दशरथ भवन आज जन्में हैं राम..........2
पत्थर बनी वो अहिल्या तरेगी ........2
साक्षात् दर्शन वो शबरी करेगी ........2
करने को भक्तन के पूर्ण सब काम ।
दशरथ भवन आज जन्में हैं राम ..........2
स्वामी की सेवा कर् के हनूमान ........2
बन जाएँगे भक्त सबसे महान ..........2
लिख लेंगे अपने हृदय राम नाम ।
दशरथ भवन आज जन्में हैं राम ..........2
सुग्रीव पा जाएँगे खोया राज ............2
पहनेंगे अब तो विभीषण भी ताज ........2
धर्मी अधर्मी में होगा सँग्राम ।
दशरथ भवन आज जन्में हैं राम ..........2
धरती को पापिन से मुक्ती मिलेगा ..........2
दीपक धरम का जगत में जलेगा ............2
अब तो मिटाने अधर्मऽ की शाम ।
दशरथ भवन आज जन्में हैं राम ..........2
गितिया रचन में बहुत सुख पावे ......2
राघव के चरनन में मस्तक नवावे ......2
'सौरभ' करे कर जोरी प्रणाम ।
दशरथ भवन आज जन्में हैं राम ..........2
हर्षित नगरिया अवध के ग्राम ।
दशरथ भवन आज जन्में हैं राम ..........2
नाम / Name : Suresh Kumar “Saurabh”
प्रकाशन तिथि / Published on : 26 Nov 2012
संक्षिप्त प्रेषक परिचय / Brief Introduction of Sender : मैं सुरेश कुमार " सौरभ " 20 वर्षीय एक साधारण नवयुवक एवं छात्र हूँ । मैं सादा जीवन और उच्च विचार की धारणा में विश्वास रखता हूँ । मुझे अपनी राजभाषा हिन्दी से विशेष लगाव है ।
अति संवेदनशील होने के कारण दुसरो के दुःख एवं मजबूरियों को देखकर व्यथित हो जाता हूँ । मैं ज्यादा की लालच नहीं करता हूँ । प्रभु जितना देते हैं, जिस अवस्था में रखते हैं, मैं उसी में संतुष्ट हो जाता हूँ ।
जब कोई व्यक्ति किसी से उसका धर्म पूछता है, तब मुझे बहुत बुरा लगता है । मेरे लिए धर्म वही है जो महाकवि गोस्वामी तुलसीदासजी ने कहा है " परहित सरिस धरम नहिं भाई, पर पीडा सम नहिं अधमाई " ।
किसी को कष्ट न पहुंचाना मेरा प्रयास होता है और नेक इंसान बनना मेरे जीवन का उद्देश्य । |
14 |
HE IS ALL .....
Love one
Love all
HE is one
HE is all
HE is in the heart of one
HE is in the heart of all
HE is All
नाम / Name : Sanjay Mansukhani
प्रकाशन तिथि / Published on : 17 Dec 2012
संक्षिप्त प्रेषक परिचय / Brief Introduction of Sender : A businessman and trainer specializing in WPS , Workplace Spirituality. WPS helps in Super Powering Companies, teams and individuals to higher effectiveness, productivity, efficiency, creativity and happiness.
My life's objective is to empower the individual spirit, team spirit and organisation spirit so that individual, team and organisation can have aligned values and ethics for super performance |
15 |
श्याम बिहारी, ओ मेरे कृष्ण मुरारी
श्याम बिहारी, ओ मेरे कृष्ण मुरारी
श्याम नाम की इस संसार में, महिमा है अति न्यारी
बोलो श्याम बिहारी, बोलो कृष्ण मुरारी -2
श्याम नाम को लेते ही तो, सारे काम सवरते (प्रभु सारे काम सवरते)
श्याम नाम के बल से ही तो, भूत प्रेत सब डरते (प्रभु भूत प्रेत सब डरते)
इस संसार के हर एक कण में, बसे हैं श्याम बिहारी
बोलो श्याम बिहारी, बोलो कृष्ण मुरारी -2
श्याम नाम ही बिगडी सवारे, श्याम नाम ही तारे (प्रभु भवसागर से तारे)
श्याम नाम के बिना ये नैया, इसको कौन संभाले (प्रभु इसको तूही संभाले)
इस संसार की नैया चलाते, मेरे श्याम बिहारी
बोलो श्याम बिहारी, बोलो कृष्ण मुरारी -2
मैं तो बालक मै क्या जानू, सब कुछ तूही जाने (प्रभु सब कुछ तूही जाने)
सारे जगत के पालक प्रभु को, हम तो शीश नवावे (प्रभु हम तो शीश नवावे)
इस संसार का हर एक कण, गावे महिमा थारी
बोलो श्याम बिहारी, बोलो कृष्ण मुरारी -2
नाम / Name : Devyukta Karwa
प्रकाशन तिथि / Published on : 26 May 2013
संक्षिप्त प्रेषक परिचय / Brief Introduction of Sender : मैं, देवयुक्त कर्वा 10 वर्ष का हूँ । मुझे प्रभु के भजन लिखने में, प्रभु की झाकी की तसवीर लेने में, प्रभु की चित्रकथा पढने में एवं प्रभु कथाओ की डीवीडी देखने में विशेष रूची है । मुझे हिन्दी भाषा मां जैसी लगती है । किसी न किसी रूप में प्रभु की सेवा करना एवं प्रभु से जुडे रहना मुझे अच्छा लगता है । |
16 |
जय जय सरस्वती माँ, जय जय सरस्वती माँ
हे विद्या की महा माता, भक्तों की हो प्राण
हे माता हम करते हैं, तुम्हारो यश गुणगान
जय जय सरस्वती माँ, जय जय सरस्वती माँ – 2
जिनपे तुम कृपा करो, भवसागर तर जाये
जिनपे तुम दया करो, पंचम सुर में गाये
जय जय सरस्वती माँ, जय जय सरस्वती माँ – 2
सात सुरो की हे देवी, हमको क्षमा करो
हम बालक हैं मुड मति, हमपे कृपा करो
जय जय सरस्वती माँ, जय जय सरस्वती माँ – 2
जो भी तुम्हारी शरण में आये, कष्ट मुक्त हो जाये
जो भी तुम्हारी पूजा करे, विद्या उसमें आये
जय जय सरस्वती माँ, जय जय सरस्वती माँ – 2
जब जब भक्त पुकारते है, तुमको मेरी माँ
रूप अनेको धरके, वहाँ आती हो मेरी माँ
जय जय सरस्वती माँ, जय जय सरस्वती माँ – 2
हम बालक हम कैसे करें, तुम्हारो यश गुणगान
जिनका यश गाते गाते, थकते वेद पुराण
जय जय सरस्वती माँ, जय जय सरस्वती माँ – 2
भूल चूक माँ क्षमा करो, हम बालक नादान
हमको अपनी भक्ती का, दे दो आज वरदान
जय जय सरस्वती माँ, जय जय सरस्वती माँ – 2
नाम / Name : Devyukta Karwa
प्रकाशन तिथि / Published on : 16 June 2013
संक्षिप्त प्रेषक परिचय / Brief Introduction of Sender : मैं, देवयुक्त कर्वा 10 वर्ष का हूँ । मुझे प्रभु के भजन लिखने में, प्रभु की झाकी की तसवीर लेने में, प्रभु की चित्रकथा पढने में एवं प्रभु कथाओ की डीवीडी देखने में विशेष रूची है । मुझे हिन्दी भाषा मां जैसी लगती है । किसी न किसी रूप में प्रभु की सेवा करना एवं प्रभु से जुडे रहना मुझे अच्छा लगता है । |
17 |
अब रट लो राम-राम (तर्ज :- कितना हसीन चेहरा, कितनी प्यारी आँखे )
दो अक्षर का प्यारा
भक्तन का है सहारा
भक्तन का है सहारा सीधा सरल मधुर यह नाम ।
रट लो, रट लो, रट लो जी, अब रट लो राम-राम ।।
भज लो, भज लो, भज लो जी, अब भज लो राम राम ।।
इसको रटते हैं
अंजनी के नन्दन.....
इसको लंकापति
रटते थे विभीषन.....
जब मरा-मरा निकला स्वर से
बने बाल्मीकि रत्नाकर से ......
पलछिन इस नाम को गाई
रघुवर का दर्शन पाई
रघुवर का दर्शन पाके शबरी चली गई प्रभुधाम ।
रट लो, रट लो, रट लो जी, अब रट लो राम-राम ।।
भज लो, भज लो, भज लो जी, अब भज लो राम-राम ।।
तुलसी ने रटा था
गणिका ने रटा था.....
लंका की होके
त्रिजटा ने रटा था......
रट गए जटायु अन्त समय
आनी-जानी का रहा न भय......
छँटे दुख की छाया काली
लौटे घर में खुशहाली
लौटे घर में खुशहाली बन जाएँ सब बिगड़े काम ।
रट लो, रट लो, रट लो जी, अब रट लो राम-राम ।।
भज लो, भज लो, भज लो जी, अब भज लो राम-राम ।।
नाम / Name : Suresh Kumar “Saurabh”
प्रकाशन तिथि / Published on : 22 June 2012
संक्षिप्त प्रेषक परिचय / Brief Introduction of Sender : मैं सुरेश कुमार " सौरभ " 21 वर्षीय एक साधारण नवयुवक एवं छात्र हूँ । मैं सादा जीवन और उच्च विचार की धारणा में विश्वास रखता हूँ । मुझे अपनी राजभाषा हिन्दी से विशेष लगाव है ।
अति संवेदनशील होने के कारण दुसरो के दुःख एवं मजबूरियों को देखकर व्यथित हो जाता हूँ । मैं ज्यादा की लालच नहीं करता हूँ । प्रभु जितना देते हैं, जिस अवस्था में रखते हैं, मैं उसी में संतुष्ट हो जाता हूँ ।
जब कोई व्यक्ति किसी से उसका धर्म पूछता है, तब मुझे बहुत बुरा लगता है । मेरे लिए धर्म वही है जो महाकवि गोस्वामी तुलसीदासजी ने कहा है " परहित सरिस धरम नहिं भाई, पर पीडा सम नहिं अधमाई " ।
किसी को कष्ट न पहुंचाना मेरा प्रयास होता है और नेक इंसान बनना मेरे जीवन का उद्देश्य । |
18 |
प्रभु नाम का तू जाप कर
जाप कर तू जाप कर,
प्रभु नाम का तू जाप कर ।।
जीवन मिला वरदान में,
इसको न तू अभिशाप कर ।।
जाप कर तू जाप कर,
प्रभु नाम का तू जाप कर ।।
सब भूल जा जो है किया,
अब सोच कि करना है क्या.....
दुष्कर्म तज सत्कर्म कर,
जीवन शुरू कर फिर नया.....
मन की कुटिलता त्याग कर.....
प्रभु से क्षमा अब माँग कर....
पापों का पश्चाताप कर ।।
जाप कर तू जाप कर,
प्रभु नाम का तू जाप कर ।।
ये गौरवर्णी चर्म की,
मिट्टी से निर्मित देह है .....
नश्वर है ये मिट जाएगी,
इससे तुझे क्यों नेह है.....
तन धो रहा है जिस तरह....
हे मूर्ख सुन ले उस तरह....
मन को भी अपने साफ कर ।।
जाप कर तू जाप कर,
प्रभु नाम का तू जाप कर ।।
चल धर्म के अब मार्ग पर,
हिय में प्रभू का प्यार भर....
मत बेबसों को अब सता,
दुखियों पे अब उपकार कर....
प्राणी है कर प्राणी से प्यार.....
दे फेंक हिंसा की कटार.....
बनके न दानव पाप कर ।।
जाप कर तू जाप कर,
प्रभु नाम का तू जाप कर ।।
हो सुबह की बेला मधुर,
दोपहर चाहे शाम हो....
मुख में तेरे सुवचन हों,
भगवान का बस नाम हो.....
कोई करे या ना करे.....
कोई कहे या ना कहे.....
तू भजन अपने आप कर ।।
जाप कर तू जाप कर,
प्रभु नाम का तू जाप कर ।।
नाम / Name : Suresh Kumar “Saurabh”
प्रकाशन तिथि / Published on : 23 June 2012
संक्षिप्त प्रेषक परिचय / Brief Introduction of Sender : मैं सुरेश कुमार " सौरभ " 21 वर्षीय एक साधारण नवयुवक एवं छात्र हूँ । मैं सादा जीवन और उच्च विचार की धारणा में विश्वास रखता हूँ । मुझे अपनी राजभाषा हिन्दी से विशेष लगाव है ।
अति संवेदनशील होने के कारण दुसरो के दुःख एवं मजबूरियों को देखकर व्यथित हो जाता हूँ । मैं ज्यादा की लालच नहीं करता हूँ । प्रभु जितना देते हैं, जिस अवस्था में रखते हैं, मैं उसी में संतुष्ट हो जाता हूँ ।
जब कोई व्यक्ति किसी से उसका धर्म पूछता है, तब मुझे बहुत बुरा लगता है । मेरे लिए धर्म वही है जो महाकवि गोस्वामी तुलसीदासजी ने कहा है " परहित सरिस धरम नहिं भाई, पर पीडा सम नहिं अधमाई " ।
किसी को कष्ट न पहुंचाना मेरा प्रयास होता है और नेक इंसान बनना मेरे जीवन का उद्देश्य । |
19 |
हे बजरंगबली
मारुति नन्दन
हे दु:ख भंजन
हे बजरंगबली
आओ मेरे मन की गली ---2
हे बजरंगबली
मन तो हमारा था भूतों का डेरा
चारो तरफ था अँधेरा-अँधेरा
जब ज्ञान के मेरे चक्षु ये जागें
तब पाप के सब अँधेरे भी भागें
मन में फिर भक्ति की ज्योति जली ।
हे बजरंगबली
आओ मेरे मन की गली ---2
हे बजरंगबली
सद्बुद्धि मन में हमारे भरो तुम
हृदय में आके निवास करो तुम
जब भी मैं ध्याऊँ, तुमको ही ध्याऊँ
अब एक पल भी ना समय गवाऊँ
बीती उमरिया तो व्यर्थऽऽ ढली ।
हे बजरंगबली
आओ मेरे मन की गली ---2
हे बजरंगबली
मस्तक कहे झुकके करलूँ नमन
नैना कहें पा लूँ तेरो दर्शन
कहते हैं 'कर' जोड़ करलूँ वन्दन
जिह्वा कहे तेरो रटलूँ भजन
'सौरभ' हृदय में ये इच्छा पली ।
हे बजरंगबली
आओ मेरे मन की गली ---2
हे बजरंगबली
नाम / Name : Suresh Kumar “Saurabh”
प्रकाशन तिथि / Published on : 02 July 2012
संक्षिप्त प्रेषक परिचय / Brief Introduction of Sender : मैं सुरेश कुमार " सौरभ " 20 वर्षीय एक साधारण नवयुवक एवं छात्र हूँ । मैं सादा जीवन और उच्च विचार की धारणा में विश्वास रखता हूँ । मुझे अपनी राजभाषा हिन्दी से विशेष लगाव है ।
अति संवेदनशील होने के कारण दुसरो के दुःख एवं मजबूरियों को देखकर व्यथित हो जाता हूँ । मैं ज्यादा की लालच नहीं करता हूँ । प्रभु जितना देते हैं, जिस अवस्था में रखते हैं, मैं उसी में संतुष्ट हो जाता हूँ ।
जब कोई व्यक्ति किसी से उसका धर्म पूछता है, तब मुझे बहुत बुरा लगता है । मेरे लिए धर्म वही है जो महाकवि गोस्वामी तुलसीदासजी ने कहा है " परहित सरिस धरम नहिं भाई, पर पीडा सम नहिं अधमाई " ।
किसी को कष्ट न पहुंचाना मेरा प्रयास होता है और नेक इंसान बनना मेरे जीवन का उद्देश्य । |
20 |
हनुमान दोहावली
हारा हर दरबार से, जिसे मिला बस शूल ।
हनुमत उसके पंथ में, सदा बिछाते फूल ।।
अन्य देवता उपेक्षित, करें नहीं दे ध्यान ।
किन्तु भक्त को पवनसुत, सम्बल करें प्रदान ।।
जिसके अन्तर में रमें, महावीर बजरंग ।
निडर रहे वो सर्वदा, भय ना आवे संग ।।
जो मनवा बजरंग के, रँग में जाता रंग ।
दु:ख दूर होते सभी, कष्ट करत ना तंग ।।
वक्ष चीर दिखला दिया, राघव-सिय का ठौर ।
साक्ष्य भक्ति का यूँ नहीं, कहीं जगत में और ।।
चन्द्रचूड़ शिव शम्भु के, तुम हो हनुमत अंश ।
पाप तथा संताप का, करते हो विध्वंस ।।
पवन सरेखा वेग है, पवन-अंजनी सूत ।
जलधि लाँघ क्षण में गए, हे रघुवर के दूत ।।
अक्षर है हनुमान में, गिन लो केवल चार ।
भजले जो कर जाय वो, भव सागर को पार ।।
यश, गौरव, वैभव, अमित, हर्ष मिलें उपहार ।
'सौरभ' जो हनुमान को, ध्यावे मंगलवार ।।
गदाधरी कंचन वदन, महाबली रघुदास ।
प्रभु जी मेरे हृदय में, आकर करो निवास ।।
नाम / Name : Suresh Kumar “Saurabh”
प्रकाशन तिथि / Published on : 10 July 2012
संक्षिप्त प्रेषक परिचय / Brief Introduction of Sender : मैं सुरेश कुमार " सौरभ " 20 वर्षीय एक साधारण नवयुवक एवं छात्र हूँ । मैं सादा जीवन और उच्च विचार की धारणा में विश्वास रखता हूँ । मुझे अपनी राजभाषा हिन्दी से विशेष लगाव है ।
अति संवेदनशील होने के कारण दुसरो के दुःख एवं मजबूरियों को देखकर व्यथित हो जाता हूँ । मैं ज्यादा की लालच नहीं करता हूँ । प्रभु जितना देते हैं, जिस अवस्था में रखते हैं, मैं उसी में संतुष्ट हो जाता हूँ ।
जब कोई व्यक्ति किसी से उसका धर्म पूछता है, तब मुझे बहुत बुरा लगता है । मेरे लिए धर्म वही है जो महाकवि गोस्वामी तुलसीदासजी ने कहा है " परहित सरिस धरम नहिं भाई, पर पीडा सम नहिं अधमाई " ।
किसी को कष्ट न पहुंचाना मेरा प्रयास होता है और नेक इंसान बनना मेरे जीवन का उद्देश्य । |