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Real-life memoir by Mr. Ram Babu Vijay titled विपदा में प्रभु कृपा
Indexed as PILGRIMAGE MEMOIR
Editor's Introduction : This memoir shows how GOD sends guidance in the form of an unknown man who helps in the hour of need. Stranded at a railway station late at midnight without any money, GOD sends help to overcome the crisis.
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विपदा में प्रभु कृपा
घटना 2009 की है । उस समय श्रीहरिद्वार में मेरे गुरुजी का साधना शिविर था ।
मैंने और मेरी पत्नी ने प्रोग्राम बनाया कि उज्जैन से कोलकाता जाकर बेटी से मिलकर वहाँ से श्रीहरिद्वार पहुँच जाएंगे ।
हमने ट्रेन का आरक्षण कराया और रवाना हुए । नीचे की सीट पर पत्नी और बीच वाली सीट पर मैं सो गया । मैंने अपना मोबाइल तकिए के नीचे रख दिया ।
रात को पानी की जरूरत हुई तो देखा कि बोतल में पानी खत्म हो चुका है । पूछा तो पटना आने वाला था जहाँ गाड़ी 20 मिनट रुकती थी ।
पटना पहुँचने पर मैं स्टेशन में पानी भरने उतरा । लम्बी कतार थी और पानी भरने में समय लग गया । पानी भर कर देखा तो ट्रेन छूट चुकी थी । मेरे पास पानी की बोतल, चप्पल, बनियान और पायजामा के अलावा कुछ भी नहीं था । न रुपए थे, न मोबाइल और न एटीएम कार्ड ।
पत्नी सो रही थी और ट्रेन में अकेली थी । मैं घबरा गया कि अब क्या होगा । मैंने तत्काल प्रभु को विपदा में याद किया । मुझे अगले ही क्षण ऐसी प्रेरणा हुई और मैं स्टेशन मास्टर के पास पहुँचा । उन्होंने कहा कि आपकी छूटी हुई ट्रेन सुपरफास्ट थी जिसके कारण उसका बीच में कोई स्टेशन में रुकना नहीं होगा और वह सीधी मुगलसराय में ही रुकेगी । उन्होंने कहा कि उस ट्रेन को पकड़ना आपके लिए असंभव है ।
तभी प्रभु कृपा के साक्षात दर्शन मुझे हुए और एक व्यक्ति आया और मुझसे कहा कि स्टेशन मास्टर से कहें कि मुगलसराय स्टेशन में सूचना देकर आपकी पत्नी और समान को वहाँ उतारने की व्यवस्था करे । फिर आप अगली ट्रेन से मुगलसराय चले जाएं और इस तरह पत्नी से आप वापस मिल जाएंगे । संपादक टिप्पणी - विपत्ति के समय प्रभु को सच्चे मन से याद करने पर प्रभु किसी भी निमित्त से हमारी बुद्धि को प्रेरणा देकर उसे जागृत करते हैं जिससे हम सही निर्णय ले सकें ।
मेरे पास न पैसे थे, न मोबाइल था और यह देखकर उस व्यक्ति ने अपने मोबाइल से मेरा फोन मिलाया जिसको मेरी पत्नी ने ट्रेन में उठाया । मैंने पत्नी से बात की और उसे पूरी बात बताई और समान सहित मुगलसराय में उतरने हेतु कहा । कहे अनुसार पत्नी को अगले स्टेशन मुगलसराय में वहाँ के स्टेशन मास्टर ने उतार लिया । मुझे पटना के स्टेशन मास्टर ने दूसरी ट्रेन से मुगलसराय के लिए रवाना किया । रास्ते में एक अन्य सहयात्री के मोबाइल से पत्नी से बात करके उसे तसल्ली दी और इन्तजार करने को कहा ।
सुबह चार बजे मुगलसराय पहुँचा और पत्नी से मिला । सुबह दस बजे दूसरी ट्रेन में बैठकर हम श्रीहरिद्वार पहुँचे और साधना शिविर में शामिल हुए ।
जब मैं उस दिन को याद करता हूँ जब मैं पानी की बोतल, चप्पल, बनियान और पायजामा में रात दो बजे अनजान जगह बिना रुपए, बिना टिकट और बिना मोबाइल के था और पत्नी अकेली ट्रेन में छूट गई थी और मैंने प्रभु को पुकारा तो प्रभु ने तत्काल मेरी मदद के लिए उस व्यक्ति को भेजा । उसने युक्ति बताई और उसके सहयोग और मार्गदर्शन से मैं सही निर्णय ले पाया । प्रभु ने उस व्यक्ति के मार्फत मुझे प्रेरणा भेजी कि पत्नी को अगले स्टेशन पर उतारने की व्यवस्था कराओ और स्वयं दूसरी गाड़ी पकड़ कर वहाँ पहुँच जाओ ।
प्रभु की कृपा के कारण ही अनजान जगह पत्नी उतरी और प्रभु ने उसे सही सलामत रखा । प्रभु कृपा के बिना अनजान जगह कौन प्रेरणा देता और कौन मदद करता । संपादक टिप्पणी - अनजान जगह रात के दो बजे बिना पैसे, बिना मोबाइल, बिना टिकट और पत्नी ट्रेन में अकेली थी एवं उस समय प्रभु को याद करने से प्रभु कृपा विपत्ति में कैसे काम करती है यह इस प्रसंग में देखने को मिलता है ।
राम बाबु विजय
उज्जैन
नाम / Name : Mr. Ram Babu Vijay
प्रकाशन तिथि / Published on : 13 Nov 2015
संक्षिप्त प्रेषक परिचय / Brief Introduction of Sender : मेरी उम्र 66 वर्ष की है । मैंने M.Com, LLB एवं CA LLB किया है । मैंने ज्योतिष का अध्ययन भी किया है ।
मैंने बैंक की 38 वर्ष सन 1969 से 2008 तक नौकरी की और मुख्य प्रबंधक के पद से सेवानिवृत्त हुआ ।
परिवार में पत्नी, एक लड़का एवं दो लड़कियां हैं । मैंने सारे तीर्थों के दर्शन कर लिए हैं एवं सत्संग मुझे प्रिय है । जहाँ भी सत्संग का मौका मिलता है, मैं उसका लाभ लेने के लिए जाता हूँ ।
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Real-life memoir by Smt. Mandankini Ashok Aasawa titled तीर्थ में प्रभु कृपा
Indexed as PILGRIMAGE MEMOIR
Editor's Introduction : This memoir shows how GOD sends help through an unknown person in the hour of need when the lack of oxygen at a high altitude led to a panic situation.
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तीर्थ में प्रभु कृपा
मेरा बड़ा बेटा, बहू और पोती श्री केदारनाथजी की यात्रा पर गए थे । सोमवार का दिन था ।
घटना उस समय की है जब वे श्री केदारनाथजी से आधा किलोमीटर की दूरी पर थे और पैदल चढ़ाई कर रहे थे ।
ठंड के कारण बहू की तबियत अचानक बिगड़ गई । उसका शरीर ठंड में अकड़ गया और ऑक्सीजन की कमी के कारण शरीर नीला पड़ गया । सब लोग घबरा गए और मेरी पोती अपनी माँ की हालत देखकर जोर-जोर से रोने लगी ।
एक टपरी वाले ने यह देखा तो उसने अपने यहाँ चाय पीने बैठे लोगों को तुरंत टपरी से बाहर निकाला और मेरे बेटे, बहू और पोती को तुरंत भीतर ले गया । उसने सिगड़ी जलाई और दो-तीन कम्बल देकर बहु को उसमें लपेटने के लिए कहा । मेरे बेटे को मेरी बहू के हाथ पैर को रगड़ने के लिए कहा ।
एक घंटे के बाद मेरी बहू ठीक हुई और प्रभु की साक्षात कृपा के दर्शन हुए जब प्रभु ने उसे बचाया ।
टपरी वाले को प्रभु ने ही प्रेरणा दी और उसे निमित्त बनाया और ठंड से जकड़ी और ऑक्सीजन की कमी से जूझ रही मेरी बहू के लिए उसने ही प्रभु प्रेरणा से सभी अनुकूल व्यवस्था की । अनजान जगह भी जब हम प्रभु को पुकारते हैं तो प्रभु किसी को निमित्त बनाकर हमारी रक्षा करते हैं । संपादक टिप्पणी - विपत्ति के समय प्रभु में पूर्ण आस्था रखना और पूर्ण श्रद्धा से प्रभु को याद करना विपत्ति निवारण का एक अचूक साधन है ।
उस दिन के बाद मेरे बेटे की उस पूरी घटना को देखकर प्रभु श्री शिवजी में इतनी श्रद्धा-भक्ति बढ़ गई कि वह सोमवार का नियमित व्रत करने लगा ।
श्रीमती मंदाकिनी अशोक आसावा
कोल्हार भगवती (अहमदनगर-महाराष्ट्र)
नाम / Name : Smt. Mandankini Ashok Aasawa
प्रकाशन तिथि / Published on : 21 Nov 2015
संक्षिप्त प्रेषक परिचय / Brief Introduction of Sender : मेरी उम्र 61 वर्ष की है । परिवार में दो लड़के-बहुएं और दो पोतियां हैं जो साथ रहते हैं ।
प्रभु की श्रद्धा से सेवा-पूजा करना मुझे अच्छा लगता है । मैं जो भी सेवा-पूजा करती हूँ वह श्रद्धा से करती हूँ ।
कोल्हार में भगवती मंदिर है जिसकी मेरी मान्यता है ।
प्रायः सभी तीर्थों के दर्शन मैंने कर लिए हैं । सत्संग मुझे अच्छा लगता है और जहाँ भी सत्संग का मौका मिलता है, मैं उसका लाभ लेने निश्चित जाती हूँ ।
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Real-life memoir by Smt. Kalavati Kabra titled प्रभु कृपा से विवाह
Indexed as MARRIAGE MEMOIR
Editor's Introduction : This memoir shows how surrender to GOD paves the way towards a prosperous marriage. Putting GOD first in an auspicious occasion removes all obstacles.
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प्रभु कृपा से विवाह
मेरे दामाद का स्वर्गवास हो चुका था और मेरी एक नाती शादी लायक थी । मेरी बेटी और उसकी दो लड़कियों के अलावा उनके परिवार में कोई नहीं था ।
इसलिए उनके परिवार में सगाई के लिए प्रयास करने वाला कोई नहीं था । ऐसी अवस्था में सगाई का प्रयास करने की जिम्मेदारी ननिहाल पर आ गई ।
हमने प्रयास शुरू किया तो संबंध आने लगे पर कोई-न-कोई कारण से कोई भी संबंध पसंद नहीं आया । मेरे बेटे ने एक दिन गुस्से में कह दिया कि इतने संबंधों को आप लोगों ने नामंजूर किया है तो अब आप माँ-बेटी ही अनुकूल संबंध खोज ले ।
बचपन से मुझे प्रभु से जुड़ने का संस्कार मिला था और प्रभु सेवा मैं निरंतर करती आ रही थी । मैंने अब विवाह की अनुकूल व्यवस्था करने के लिए प्रभु के श्रीकमलचरणों की शरणागति ली ।
फिर एक दिन मैंने अपने भाई को कोल्हापुर फोन किया । उन्होंने एक बहुत अच्छा संबंध बताया । मैंने मेरी बेटी और नाती से बात की और वे भी तैयार हो गए क्योंकि परिवार अच्छा था, बड़ा था और परिवार में समृद्धि थी ।
प्रभु की ऐसी कृपा हुई कि लड़के वाले भी लड़की देखने तुरंत आ गए । दूसरे ही दिन उन्होंने हमें संदेश भिजवाया कि लड़की उनको पसंद है । पर उन्होंने एक शर्त रखी कि शादी महाबलेश्वर जाकर करनी पड़ेगी ।
मैंने प्रभु को धन्यवाद दिया और फिर प्रभु के श्रीकमलचरणों की शरणागति ली और प्रभु से अरदास की कि अंजान जगह शादी की व्यवस्था की जिम्मेदारी अब आपको ही संभालनी है । संपादक टिप्पणी - सही तरीका यही है कि जो कार्य प्रभु कृपा से सम्पन्न हो जाए उसके लिए प्रभु को धन्यवाद ज्ञापित करना और नए कार्य की अनुकूल व्यवस्था के लिए फिर से प्रभु की शरणगति लेना ।
महाबलेश्वर हमारे यहाँ से काफी दूर था और हमारे लिए अंजान था । पर प्रभु ने प्रार्थना स्वीकार करके सभी व्यवस्थाएं इतनी सुचारु करवाई कि ऐसी शादी हुई कि सब तरफ उसकी तारीफ हुई ।
मैंने साक्षात अनुभव किया जैसे प्रभु ने स्वयं पधार कर सभी अनुकूल व्यवस्थाएं करवाई । पूरे विवाह प्रसंग में कोई भी विघ्न नहीं आया और हर व्यक्ति ने ऐसा सहयोग दिया जैसे उनके घर की ही शादी हो । संपादक टिप्पणी - पहली बात, प्रभु के अनुकूल होते ही संसार अनुकूल हो जाता है । दूसरी बात, प्रभु विघ्नहर्ता हैं इसलिए प्रभु कृपा जब होती है तो विघ्न वहाँ फटक नहीं सकता ।
श्रीमति कलावती काबरा
गंगाखेड़ (परभणी-महाराष्ट्र)
नाम / Name : Smt. Kalavati Kabra
प्रकाशन तिथि / Published on : 24 Nov 2015
संक्षिप्त प्रेषक परिचय / Brief Introduction of Sender : मेरी उम्र 69 वर्ष की है । मेरे पति डॉक्टर हैं और परिवार में दो बेटे-बहू, तीन पोतियां एवं एक पोता है जो साथ रहते हैं ।
प्रभु के बालरूप श्री लड्डूगोपालजी की सेवा करती हूँ ।
प्रायः सभी तीर्थों के दर्शन मैंने कर लिए हैं और सत्संग मुझे बहुत प्रिय है । मैं सत्संग के बिना नहीं रह सकती इसलिए जहाँ भी सत्संग का मौका मिलता है मैं उसका लाभ लेने के लिए जाती हूँ ।
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Real-life memoir by Mr. Balkishan Soni titled यात्रा में प्रभु कृपा
Indexed as TRAVEL MEMOIR
Editor's Introduction : This memoir shows how due to GOD's kindness the Assistant Station Master is motivated to arrange the connecting train so as to enable the writer to reach his destination for Satsang (Holy discourse).
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यात्रा में प्रभु कृपा
मेरे बेटे की 2010 में देहरादून में नौकरी लगी । कुछ समय बाद हम उससे मिलने देहरादून आए हुए थे ।
वापसी की टिकट बनी हुई थी क्योंकि मुझे श्री शिवरात्रि से 10 दिनों तक चलने वाले सत्संग में भाग लेने ढालेगांव (महाराष्ट्र) के गीता भवन में पहुँचना था ।
मैं हर वर्ष नियमित 10 दिवसीय सत्संग में सहभागी होता हूँ एवं परिवार में कोई शादी या उत्सव भी होते हैं तो भी उसे छोड़कर वहाँ जाता हूँ ।
मैं देहरादून से श्रीहरिद्वार रेलवे स्टेशन रात्रि 9 बजे पहुँचा । मेरी श्रीहरिद्वार से दिल्ली तक की ट्रेन सुबह 6 बजे की थी । प्रतीक्षालय में पहुँचा तो किसी ने बताया कि ट्रेन 15-20 घंटे विलम्ब से चल रही है और पिछले दिन की ट्रेन विलम्ब के कारण अभी-अभी रवाना हुई है ।
सुबह जाने वाली ट्रेन भी विलम्ब से चल रही है । मुझे पता था कि अगर श्रीहरिद्वार से ट्रेन विलम्ब हुई तो मेरी दिल्ली से आगे वाली ट्रेन, जो मुझे पकड़नी है, वह छूट जाएगी और मैं सत्संग में समय पर नहीं पहुँच सकूंगा ।
मैंने प्रभु के बालरूप श्री लालाजी, जिनकी सेवा मेरे साथ चलती है, उन्हें कहा कि अब आपकी कृपा के बिना मैं समय पर सत्संग में नहीं पहुँच सकता । संपादक टिप्पणी - किसी भी विपदा के समय प्रभु को आगे कर देने से प्रभु आगे की बागडोर स्वतः संभाल लेते हैं । पर यह तभी संभव होता है जब प्रभु में हमारी गहरी श्रद्धा और भक्ति हो ।
तभी श्रीहरिद्वार रेलवे स्टेशन के सहायक स्टेशन मास्टर से मैं मिलने गया जिन्हें मैं पहले से जानता था । उन्हें मैंने मेरी परेशानी बताई कि मेरी ट्रेन विलम्ब से आ रही है और मुझे श्रीहरिद्वार से दिल्ली समय पर पहुँचना है इसलिए अन्य किसी गाड़ी में मुझे स्थान दिला दें ।
उन्होंने दिल्ली जाने वाली सभी गाड़ियों का आरक्षण चेक किया । सभी में लम्बी प्रतीक्षा सूची चल रही थी । कहीं भी आरक्षण की संभावना नहीं थी ।
तब उन्होंने मेरी विलम्ब से आ रही ट्रेन के गार्ड से सम्पर्क किया जो मेरठ तक पहुँच चुका था । वहाँ से 5 घंटे में वह ट्रेन श्रीहरिद्वार पहुँचनी थी । फिर उसकी सफाई होकर वापस दिल्ली के लिए रवाना होनी थी ।
प्रभु ने उस सहायक स्टेशन मास्टर को ऐसी प्रेरणा दी कि उन्होंने मुझसे कहा कि आप चिन्ता मत करो । आपकी ट्रेन रात 2 बजे मेरठ से पहुँचेगी और उसका रवाना होने का निर्धारित समय सुबह 6 बजे का है । वैसे तो यह संभव नहीं है पर मैं किसी भी हालत में गाड़ी को रात्रि में ही साफ करवा कर सुबह 5 बजे तक तैयार करवा दूंगा जिससे निर्धारित समय सुबह 6 बजे गाड़ी रवाना हो सके । संपादक टिप्पणी - व्यवहारिक दृष्टि से संभव नहीं होने पर भी प्रभु प्रेरणा ने काम किया और सहायक स्टेशन मास्टर ने एक असंभव प्रतीत होने वाली चीज को संभव किया ।
सुबह 5 बजे प्रतीक्षालय में सहायक स्टेशन मास्टर का आदमी आया जिसने विशेष रूप से मुझे सूचना दी कि गाड़ी साफ होकर प्लेटफार्म में लग चुकी है । गाड़ी निर्धारित समय सुबह 6 बजे रवाना हुई और हम समय से दिल्ली पहुँचे जहाँ से आगे की ट्रेन हमें समय पर मिल गई और हम सही समय ढालेगांव सत्संग हेतु पहुँच गए । मेरी श्रद्धा थी पहुँचने की और प्रभु ने मेरी श्रद्धा को कायम रखते हुए मुझे पहुँचाया ।
बालकिशन सोनी
इच्छलकरणजी
नाम / Name : Mr. Balkishan Soni
प्रकाशन तिथि / Published on : 08 December 2015
संक्षिप्त प्रेषक परिचय / Brief Introduction of Sender : मैं 78 वर्ष का हूँ । मेरा कपड़े का व्यवसाय है । परिवार में तीन लड़के, दो लड़कियां एवं पत्नी है ।
मेरा काफी समय सत्संग में बीतता है एवं मैंने प्रायः सभी तीर्थों की यात्रा कर ली है ।
सत्संग में मेरी विशेष रुचि है एवं वर्ष में छः महीने मैं धार्मिक आयोजनों का लाभ लेने हेतु घर से बाहर तीर्थों में रहता हूँ ।
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Real-life memoir by Mr. Roshan Gupta titled अन्जान शहर में मदद
Indexed as TRAVEL MEMOIR
Editor's Introduction : This memoir shows how GOD sends help in the form of an unknown person in an unknown place at night when the writer was in need of medicine. GOD always send help if we upkeep faith in Him.
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अन्जान शहर में मदद
घटना अक्टूबर 2015 की है । विद्यालय के बच्चों को लेकर मैसूर (शैक्षणिक भ्रमण पर) जाना हुआ । घर से निकलने से पहले ही जबरदस्त सर्दी-खांसी शुरू हो गई थी, इसलिए डॉक्टर से दो दिन की दवाई लेकर आया था । दो दिन होते ही दवा तो खत्म हो गई लेकिन सर्दी-खांसी ठीक नहीं हुई ।
टूर पांच दिनों का और बचा था और बिना दवा लिए ठीक होना संभव नहीं था । दिनभर बच्चों की देखभाल करने में बिलकुल समय नहीं मिल पाता था, इसलिए रात 8 बजे होटल से नीचे आकर एक दुकान वाले से पूछा कि भैया यहाँ दवाई की दुकान कहाँ होगी तो उन्होंने बताया कि आसपास दो किलोमीटर तक दवाई की कोई दुकान नहीं है और जहाँ दूर दुकान है वहाँ रात में जाने का कोई साधन नहीं मिलेगा । मैं निराश होकर वापस जाने लगा । तभी पास में एक व्यक्ति खड़े थे, उन्होंने कहा कि आप चिंता मत करें, मैं आपको वहाँ छोड़ देता हूँ, मुझे वहीं जाना है । मैं मन-ही-मन सोचने लगा कि वापस कैसे आऊँगा तो उन्होंने कहा आप इस शहर में अन्जान हो और हम दोनों भी एक दूसरे से अन्जान है लेकिन आप मुझ पर भरोसा कर सकते हैं ।
मुझे भी न जाने क्या लगा और मैं फिर बिना सोचे समझे उनकी बाइक पर बैठ गया । रास्ता बिलकुल सूनसान था और मैं इसी फिक्र में था कि वापस कैसे आऊँगा ओर वे अपनी ही धुन में मस्त मुझे दवाई की दुकान तक ले गए । रास्ता वाकई में काफी लंबा था । मैंने दवाई ली, उन्होंने फिर गाड़ी पर बैठने को कहा और थोड़ी देर बाद कहा कि आपका होटल आ गया । मैं रास्ता नहीं पहचान पाया तो उन्होंने कहा कि वो सामने आपका होटल है ।
मुझे कुछ होश नहीं कि मैं किसके साथ गया, किस रास्ते से गया, कहाँ गया, कब दवा लेकर वापस आ गया, मेरे साथ वालों को पता तक नहीं चला कि मैं कहीं गया भी था । अब तक मैं लगभग पूरा टूर भूल चुका हूँ सिवाय उस अन्जान सज्जन के और मुझे आज भी यही अहसास है कि वे प्रभु के भेजे हुए दूत थे । संपादक टिप्पणी - प्रभु विपत्ति का कैसे निवारण करते हैं और सहायता कैसे हम तक पहुँचाते हैं, यह इस प्रसंग में देखने को मिलता है । अनजान राहों पर सिर्फ और सिर्फ प्रभु ही हमारे साथ होते हैं ।
रोशन गुप्ता
इन्दौर
नाम / Name : Mr. Roshan Gupta
प्रकाशन तिथि / Published on : 17 December 2015
संक्षिप्त प्रेषक परिचय / Brief Introduction of Sender : मेरा नाम रोशन गुप्ता है, मेरी उम्र 32 वर्ष है । प्रभु कृपा से इन्दौर के एक निजी विद्यालय में शिक्षक हूँ ।
मुझे सत्संग प्रिय है और एक वेबसाइट के माध्यम से मैं प्रभु के कार्य से जुड़ा हुआ हूँ ।
जीवन में प्रभु के लिए समय बढ़ाने की मेरी इच्छा है ।
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Real-life memoir by Mr. Shishir Basotia titled यात्रा के दौरान प्रभु कृपा
Indexed as TRAVEL MEMOIR
Editor's Introduction : This memoir shows how a waitlisted ticket holder gets a confirmed berth in a train for a journey en route to pilgrimage.
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यात्रा के दौरान प्रभु कृपा
बात उस समय की है जब मैं कोलकाता में रहता था । मैं हर 2-3 महीने में दिल्ली होते हुए श्री सालासरजी धाम एवं श्री जीणमाताजी धाम में दर्शन हेतु राजस्थान जाता था ।
मैं प्रायः कोलकाता से राजधानी ट्रेन से शाम को 5 बजे रवाना होकर अगले दिन सुबह 10 बजे दिल्ली पहुँचता था जहाँ से आगे की यात्रा करता था ।
एक बार की बात है मेरी राजधानी ट्रेन की टिकट प्रतीक्षा सूची में थी और उसी समय भारतीय रेलवे ने राजधानी ट्रेन के लिए नए नियम लागू किए थे कि कोई भी यात्री प्रतीक्षा सूची की टिकट लेकर यात्रा करना तो दूर, ट्रेन में चढ़ भी नहीं सकता है । नए नियम बड़ी सख्ती से लागू किए गए थे ।
मैंने भी दर्शन करने का पक्का मानस बना रखा था पर दुर्भाग्यवश अन्त तक मेरी टिकट प्रतीक्षा सूची में ही रह गई, कन्फर्म नहीं हो पाई ।
मैं बिना नियमों की परवाह किए राजधानी ट्रेन में चढ़ गया और एक खाली बर्थ देखकर वहाँ बैठ गया । टीटी आया और उसने टिकट मांगी । मैंने अपनी वेटिंग की टिकट दिखाई जिस पर टीटी बिगड़ गया । मेरी भी टीटी से बहस हो गई । मैंने यहाँ तक कह दिया कि मुझे जाना जरूरी है और मैं कहीं भी बैठ कर यात्रा कर लूंगा । पर टीटी नहीं माना और बहस होते-होते बात बहुत बिगड़ गई ।
टीटी ने अपने उच्च अधिकारी को बुला लिया और उन लोगों ने अपने प्रतिष्ठा का मुद्दा बना लिया कि आपको अगले स्टेशन धनबाद में उतारेगें और आपको तीन गुना जुर्माना भी अदा करना पड़ेगा ।
मैं विपत्ति में फंस गया था । मैंने तत्काल प्रभु को याद किया और प्रभु से अरदास की और निवेदन किया कि इतने सहयात्रियों के समक्ष मेरी लाज रख लें और किसी भी तरह मैं आपके दर्शन हेतु पहुँच पांऊ, ऐसी व्यवस्था कर दें । मैंने 5-7 मिनट आँखें बंद कर प्रभु का ध्यान किया ।
इसके 15-20 मिनट बाद ट्रेन एकाएक रुक गई और लगभग एक घंटा रुकी रही । फिर एक घंटे बाद घोषणा हुई कि रेल पटरी में किसी तकनीकी खराबी के कारण ट्रेन धनबाद नहीं जाकर दूसरे मार्ग से पटना होकर दिल्ली जाएगी ।
प्रभु की कृपा के तत्काल दर्शन मुझे हुए क्योंकि जिस खाली बर्थ पर मैं बैठा था वह धनबाद से दिल्ली तक के लिए आरक्षित थी और किसी यात्री को धनबाद से चढ़कर दिल्ली तक की यात्रा करनी थी । अब ट्रेन धनबाद जा ही नहीं रही थी इसलिए दिल्ली तक वह बर्थ खाली थी ।
प्रभु की कृपा के फिर दर्शन हुए जब टीटी स्वयं मेरे पास आया और वह बर्थ मुझे आवंटित कर गया ।
प्रभु की ऐसी कृपा हुई कि मुझे न तो कहीं उतारा गया और न ही जुर्माना लगा और मैं सकुशल दर्शन हेतु पहुँच गया । संपादक टिप्पणी - विपत्ति में प्रभु को सच्चे मन से पुकारने से प्रभु तत्काल उस विपत्ति का निवारण करते हैं । प्रभु की कृपा देखें कि यहाँ ट्रेन का मार्ग बदल गया, आरक्षित यात्री आया नहीं और टीटी जो पहले बहस कर रहा था उसने स्वयं आकर खाली बर्थ का आवंटन कर दिया ।
शिशिर बासोतिया
जयपुर
नाम / Name : Mr. Shishir Basotia
प्रकाशन तिथि / Published on : 21 December 2015
संक्षिप्त प्रेषक परिचय / Brief Introduction of Sender : मेरी उम्र 54 वर्ष है । मैंने बीकॉम (ऑनर्स) करने के बाद कई तरह के तकनीकी कोर्स किए हैं ।
सत्संग मुझे प्रिय है । मैंने काफी तीर्थों की यात्रा कर ली है ।
परिवार में माता-पिता, पत्नी और दो लड़कियां हैं ।
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Real-life memoir by Mr. Roshan Gupta titled प्रभु ने जीवन को सही दिशा दी
Indexed as MIRACLE MEMOIR
Editor's Introduction : This memoir shows how GOD leads the way to a total u-turn in the life of a depressed man who now is deeply involved in the devotion of GOD. He becomes greatly positive as he gets a new life mission which is to seek GOD in human life. Also, he gets a much-needed job placement.
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प्रभु ने जीवन को सही दिशा दी
मेरी उम्र 32 वर्ष है और मैं एक निजी विद्यालय में शिक्षक हूँ । करीब 11 वर्ष पहले की बात है । स्नातक तक शिक्षा पूरी होते ही पारिवारिक आवश्यकताओं के चलते उच्च शिक्षा का विचार छोड़कर मुझे नौकरी शुरू करनी पड़ी । आधुनिकता से पूरी तरह प्रभावित एक युवा जो भगवान के आगे हाथ भी केवल इसलिए जोड़ लेता था कि हे भगवान, परीक्षा में पास करवा देना या इसी तरह के अन्य किसी लालच के कारण । कॉलेज में शिक्षा के दौरान दो लड़कियों को बहन बनाया, लेकिन शिक्षा पूरी होते ही वे लोग मुझे छोड़कर चली गई और बातचीत बंद कर दी । मैं उनके दुःख में दुःखी रहने लगा । नौकरी करते-करते ही एक लड़की के एकतरफा प्रेम में पूरी तरह डूब गया, मेरी अत्यधिक महत्वाकांक्षा को जानकर उस लड़की ने मुझसे यह सोचकर बातचीत बंद कर दी कि समय के साथ मैं ठीक हो जाऊँगा ।
परंतु लगातार हुई दो घटनाओं के बाद मैं विरह में इस तरह पागल हुआ कि बुरी तरह अवसाद में डूब गया । पूरा जीवन बर्बाद करने का निश्चय किया, अपना करियर बर्बाद किया, शरीर और स्वास्थ्य का यथासंभव नुकसान किया, सारे रिश्तेदारों, दोस्तों, सभी से मिलना-जुलना, बात करना सब कुछ छोड़ दिया । मन में केवल एक ही प्रश्न आता था कि हम इस जीवन में क्या केवल इसलिए आए हैं कि खूब पैसे कमाएं, शादी करें, भोग विलास करें, वंश वृद्धि करें, सांसारिक सामाजिक सम्मान के लिए नौटंकी करें और फिर अंत में मर जाएं । क्योंकि हर व्यक्ति इसी संसार चक्र में उलझा हुआ दिखाई देता था । जीवन का कोई उद्देश्य नहीं था, केवल सांस चल रही थी, इसलिए जिए जा रहा था । जीवन के कीमती 9 वर्ष अवसाद में निकाले । दो वर्ष पहले फिर एक लड़की से प्रभावित होकर उसकी मित्रता में पड़ा । परन्तु लगभग दो साल की मित्रता से बाद माया के प्रभाव में अचानक उसने भी संबंध तोड़ लिए, यहाँ तक कि उसके भाई ने भी अपने दोस्तों के साथ मिलकर मेरे घर आकर बुरी तरह डराया धमकाया । भावुक स्वभाव का होने के कारण मैं ये सब सहन नहीं कर पाया और बुरी तरह टूट गया । जीवन में अब न तो कोई सहायता करने वाला बचा था, न ही जीवन का कोई उद्देश्य बचा था । कुल मिलाकर बुरी तरह माया के प्रभाव में जकड़ा हुआ था । निराशा में नौकरी तक छोड़ दी । कोई होश ही नहीं था कि क्या कर रहा हूँ या क्या हो रहा है ।
जीवन से बुरी तरह हारकर बहुत ही संकोच के साथ जयपुर के एक पूर्व के परिचित से संपर्क किया एवं उन्हें अपनी वस्तु-स्थिति, अवसाद एवं वर्तमान परिदृश्य से अवगत कराया । उन्होंने ढाढस बंधाया एवं सारी बातों को भुलाकर प्रभु से जुड़ने के लिए प्रेरित किया । उनके बताए अनुसार सब कुछ भुलाकर नित्य मंदिर जाना, श्रीहनुमान चालीसाजी का पाठ करना एवं श्रीमद् भगवद् गीताजी का पाठ करना प्रारंभ किया । सबसे बड़ी प्रभु कृपा यहीं से शुरू हुई क्योंकि जिस व्यक्ति ने कभी प्रेम से भगवान का नाम न लिया हो, वो अचानक दिन में 3-4 घंटे प्रभु के लिए निकालने लगे ये संभव ही नहीं था । नियम का पालन प्रारंभ करने के पहले ही दिन प्रभु ने मुझे संभाल लिया और मन से स्वयं को नुकसान पहुँचाने के भाव खत्म हो गया । संपादक टिप्पणी - प्रभु तत्काल कैसे एक शरणागत को संभालते हैं यह यहाँ देखने को मिलता है । हम एक कदम प्रभु की तरफ बढ़ाते हैं तो प्रभु की तत्काल अनुकम्पा होती है । धीरे-धीरे श्रीमद् भगवद् गीताजी के पाठ का विश्राम किया, जिसमें लगभग एक माह का समय लगा । तत्पश्चात उन परिचित द्वारा उपलब्ध करवाए गए श्रीमद् भागवतजी महापुराण के सात दिवसीय कथा के ऑडियो का श्रवण आरंभ किया । शुरुआत में तो यह स्थिति थी कि मैं कथा श्रवण के लिए आधे घंटे ठीक से बैठ भी नहीं पाता था और जैसे-तैसे कथा सुनता था पर प्रभु कृपा से धीरे-धीरे मन लगने लगा और लगभग दो माह के समय में श्रीमद् भागवतजी महापुराण के सात दिवसीय कथा के ऑडियो के श्रवण का विश्राम किया ।
प्रभु कृपा के विभिन्न रूप में दर्शन मुझे हुए । जब कोई नहीं बचा तब प्रभु ने मुझे तुरंत संभाला । संपादक टिप्पणी - जब कोई संभालने वाला नहीं होता है तो हारे के सहारे प्रभु ही होते हैं । खुद से जुड़ने के लिए प्रेरित किया । मंदिर जाने, श्रीहनुमान चालीसाजी का पाठ करने, श्रीमद् भगवद् गीताजी का पाठ करने एवं श्रीमद् भागवतजी महापुराण के कथा का ऑडियो का श्रवण करने की शक्ति दी । तीन माह की इस अवधि में मेरे पास भले ही नौकरी नहीं थी लेकिन पुरानी जगह जहाँ काम करता था वहाँ के मालिक ने घर बैठे पूरा वेतन भिजवा दिया, जिसे मैं छोड़ आया था, जिससे पारिवारिक आवश्यकताओं की पूर्ति होती रही । जहाँ काम करता था वहाँ के मालिक ने ऐसा आज तक किसी के साथ नहीं किया था । प्रभु सान्निध्य के परिणाम स्वरूप प्रभु कृपा से मैं केवल तीन माह में पूरी तरह (100%) डिप्रेशन से बाहर आ गया, जिसे मेरी जिद के चलते पिछले 11 वर्षों में कोई ठीक नहीं कर पाया था । संपादक टिप्पणी - अवसाद के चलते मनुष्य की सोच नकारात्मक हो जाती है और वह निराशावादी हो जाता है । प्रभु कृपा जीवन में जब आती है तो वह जीव को सकारात्मक और आशावादी बना देती है । साथ ही साथ मुझे उस प्रश्न का उत्तर भी मिला जिसे में वर्षों से ढुंढ़ रहा था कि हम आखिर क्यों जी रहे हैं । जीवन का अब तक कोई लक्ष्य नहीं था परन्तु अब जाकर जीवन का नया लक्ष्य मिला "सच्चिदानंद स्वरूप भगवान की भक्ति" । संपादक टिप्पणी - प्रभु कृपा हमें मानव जीवन के सच्चे उद्देश्य से परिचित कराती है और हमें प्रभु भक्ति के रंग में रंग देती है ।
संसार से प्रेम किया तो दुःख ही दुःख मिला पर प्रभु से प्रेम शुरू किया तो उन्होंने तीन माह में मुझे हर संकट से उबार लिया । संपादक टिप्पणी - संसार को संतों ने दुखालय कहा है और प्रभु सानिध्य को ही आनंद का स्त्रोत माना है । कथा श्रवण के विश्राम के मात्र चार दिनों के अंदर मुझे एक बड़े विद्यालय में शिक्षक की नौकरी लग गई । आप लोगों को जानकर और आश्चर्य होगा कि वह पद महिला शिक्षक के लिए था लेकिन प्रभु कृपा से मेरा डेमो हुआ और विद्यालय के प्राचार्य ने तुरंत प्रभाव से मुझे नियुक्ति दे दी । अब तो जीवन के एक-एक क्षण में प्रभु कृपा दिखाई देती है । संपादक टिप्पणी - जीवन के हर क्षण में प्रभु कृपा दिखना सच्ची भक्ति का लक्षण है । नौकरी लगने की कोई खुशी नहीं है, वह मेरे लिए केवल जीवन यापन का एक साधन है, जिसे मुझे निष्काम भाव से निभाना है क्योंकि प्रभु कृपा से अब मुझे मेरे जीवन का उद्देश्य मिल चुका है । सुख-दुःख, लाभ-हानि, जीवन की हर अच्छी-बुरी परिस्थिति में भगवान हमारे साथ होते हैं, बस हम उन्हें देख नहीं पाते । नौकरी भी प्रभु ने ही दी है, शरीर भी प्रभु ने ही दिया है, अब भगवान से कोई सांसारिक वस्तु की चाह नहीं है, केवल एक ही चीज उससे मांगता हूँ कि अपनी सेवा, अपनी भक्ति से मुझे अब कभी दूर नहीं करें । संपादक टिप्पणी - सच्ची प्रार्थना प्रभु से यही होनी चाहिए कि प्रभु हमें अपने कृपा दृष्टि से कभी दूर नहीं करें और प्रभु के लिए हमारा भक्ति भाव निरंतर बढ़ता जाए ।
रोशन गुप्ता
इन्दौर
नाम / Name : Mr. Roshan Gupta
प्रकाशन तिथि / Published on : 28 December 2015
संक्षिप्त प्रेषक परिचय / Brief Introduction of Sender : मेरा नाम रोशन गुप्ता है । मेरी उम्र 32 वर्ष है, प्रभु कृपा से इन्दौर के एक निजी विद्यालय में शिक्षक हूँ ।
मुझे सत्संग प्रिय है और एक वेबसाइट के माध्यम से मैं प्रभु के कार्य से जुड़ा हुआ हूँ ।
जीवन में प्रभु के लिए समय बढ़ाने की मेरी इच्छा है ।
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Real-life memoir by Mr. Divy Balduwa titled GOD helped in night
Indexed as TRAVEL MEMOIR
Editor's Introduction : This memoir shows how driving on a highway at night the car was short of fuel and encountered a barren patch where anything could have happened but GOD heard the prayer and the nightmare was overcome.
Editor's Request : You may share this memoir directly via Email, Facebook, Twitter and various other social networks with the help of Share-Button available on the right vertical of this page.
GOD helped in night
One fine day myself, my wife and my son started from Jaipur to Delhi by car at 8 am to meet a doctor for my son. The appointment was scheduled for 3:30 pm. Somehow that journey didn't start well and we were stuck up with road traffic and we were not able to reach on time so our appointment was cancelled.
Now we were asked to go to a hospital where the Doctor was sitting and it was far from his house in Greater Kailash. We somehow reached and were free by 6:30 pm. We started back for Jaipur and had dinner on the way and after dinner, my son and wife slept in the car and I alone was driving the car.
Suddenly, I saw that petrol needed to be refilled. After 30 km a petrol pump came and I stopped but the petrol was out of stock and only diesel was available there. Till now the sign for low fuel had also come and as per my calculation now car could run only for next 25 km. I started praying that I get some petrol now in the next few kilometres. After 20 km a petrol pump came but on the opposite side and there was no divider cut but I crossed the road to get petrol in a bottle.
Now the time was around 10:45 pm and the pump was closed. I was shivering with bad thoughts about robbery and mischief coming to my mind. My wife was also awake by now and we started praying that the petrol in the car should not get exhausted.
Now there was a petrol pump after 5 km and we reached there but there was nobody to fill. A truck driver told that the staff of the petrol pump was ill and so the pump was closed. It was a nightmare now as it was 11 pm at night and the petrol was about to come to an end in the next 5 km. There was no petrol pump for the next 20 km, therefore, we could do nothing. We started praying to GOD Shree Ganeshji and GOD Shree Hanumanji. I didn’t know how but the car drove for 30 more km and we got petrol but it was not the end of our nightmare.
Now the road on which we were driving was totally empty with no car, no truck, nobody was there on the road. My son and wife slept again in the car. The car was running at 110 km/hr without shivering which was next to impossible. It was as if some divine force was there pushing the car at full speed in that empty barren patch of 30 km of road.
Finally, we reached near Jaipur and then my wife and son woke up again. We thanked GOD for being with us in distress when we were short of fuel and then again when we were driving alone in the empty barren patch at midnight where anything could have happened. Editor's Comment - When we wholeheartedly pray to GOD in distress, He always comes to our rescue. Here in a nightmare situation GOD’s help could be easily seen as the writer has upfront experienced it.
Divy Balduwa
Jaipur
नाम / Name : Mr. Divy Balduwa
प्रकाशन तिथि / Published on : 03 January 2016
संक्षिप्त प्रेषक परिचय / Brief Introduction of Sender : I am 34 years old and I belong to Jaipur (Rajasthan). I did my MBA and now I am into my own business of land management (Interiors and Vastu). I have a legal advisory firm and am also into liasoning business.
My hobbies are reading, exercising, making friends, exploring new places and their history.
May GOD bless everybody.
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Real-life memoir by Mr. Roshan Lal Maheshwari titled प्रभु मंत्र की शक्ति
Indexed as PILGRIMAGE MEMOIR
Editor's Introduction : This memoir shows how Holy chanting at a moment of panic helps a person overcome distress. The memoir shows the power behind Holy chanting.
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प्रभु मंत्र की शक्ति
मैं, मेरा साला एवं तीन दोस्त भगवती श्री वैष्णोदेवी माता के दर्शन के लिए जयपुर से गए थे । हमने माता रानी के दर्शन किए और फिर वहाँ से 50-60 किलोमीटर दूर स्थित शिवखोड़ी में प्रभु श्री शिवजी के दर्शन के लिए बस से रवाना हुए ।
हम पांच लोगों के अलावा अन्य यात्रियों के साथ बस में वाराणसी से आठ लोगों का एक ग्रुप भी था । उसमें से एक व्यक्ति जो लगभग 35 वर्ष का था वह अचानक जोर-जोर से ताली बजाने लगा । हमने उसे शान्त करने के लिए प्रभु नाम के जयकारे लगाए जिससे वह शान्त हो गया । हमने भी उस घटना को अनदेखा कर दिया ।
इतने में उस व्यक्ति ने बस की खिड़की खोली और अपना सिर खिड़की के बाहर लटका दिया । फिर वह खिड़की से निकलने का प्रयास चलती बस में करने लगा । उसका आधा शरीर खिड़की से बाहर निकल भी चुका था ।
हमने बस रुकवाई और उसे भीतर खींचा । उस समय ठंड का मौसम था फिर भी उस ठंड में वह पसीने से तर हो गया । उसके मुँह से झाग और लार निकल रहे थे । वह बेहोश हो गया ।
बस में बैठे सभी लोग घबरा गए । मुझे प्रभु पर विश्वास था और ऐसी अवस्था में श्रीहनुमान चालीसाजी के प्रभाव को मैं जानता और मानता था ।
मैंने तुरंत पूरी श्रद्धा से श्रीहनुमान चालीसाजी का पाठ किया और उस व्यक्ति को मंत्र की फूँक मारी । प्रभु की साक्षात कृपा के दर्शन हम सभी को हुए जब वह मात्र 2 मिनट के अन्तराल में ठीक होकर बैठ गया । प्रभु ने संकट में उस व्यक्ति की रक्षा की, ऐसा हम सभी ने अनुभव किया ।
श्रीहनुमान चालीसाजी में मेरी जो श्रद्धा थी वह इस घटना के बाद और भी बढ़ गई । संपादक टिप्पणी - श्रीहनुमान चालीसाजी का प्रभाव जगत विख्यात है और विपदा में इनका उपयोग असंख्य लोगों ने किया है और अपनी श्रद्धानुसार उसका फल भी पाया है ।
रोशन लाल महेश्वरी
जयपुर
नाम / Name : Mr. Roshan Lal Maheshwari
प्रकाशन तिथि / Published on : 19 February 2017
संक्षिप्त प्रेषक परिचय / Brief Introduction of Sender : मेरी उम्र 38 वर्ष की है और मैं जयपुर का निवासी हूँ । मैं नीलम, माणक, पन्ना, पुखराज आदि नगिनों की छंटाई का कार्य करता हूँ ।
प्रभु में मेरी पूरी आस्था है और मैं सभी देवों को मानता हूँ क्योंकि ईश्वर एक हैं और उनके रूप अनेक हैं ।
परिवार में माता-पिता, चार भाई, पत्नी और दो बच्चे हैं ।
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Real-life memoir by Mr. Roshan Gupta titled विपत्ति में प्रभु संभालते हैं
Indexed as TRAVEL MEMOIR
Editor's Introduction : This memoir shows how faith in GOD saves a teacher to overcome difficult and testing times in the holiday trip of school children. Thrice he faced difficulty in the trip and sought the intervention of GOD and due to his faith in GOD, help was always ready.
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विपत्ति में प्रभु संभालते हैं
मेरा विद्यालय के बच्चों के साथ लोनावला, महाबलेश्वर (महाराष्ट्र) के सात दिवसीय शैक्षणिक भ्रमण पर जाना हुआ । हमारे दल में करीब 200 विद्यार्थी एवं 17 शिक्षक शामिल थे । सभी के मध्य बच्चों को बराबर बाँट दिया गया था ताकि सभी का बराबर ध्यान रखा जा सके । प्रभु इच्छा से मैं नित्य श्रीहनुमान चालीसा जी का पाठ करता हूँ, प्रभु की कथा का श्रवण करता हूँ एवं मंदिर जाता हूँ । विपरीत परिस्थितियों में प्रभु किस प्रकार सहायता करते है इसके तीन जीवंत उदाहरण इस भ्रमण के दौरान देखने को मिले ।
भ्रमण के दौरान ट्रेन से जाना तय हुआ था । सभी ने अपने-अपने ग्रुप के बच्चों को संभाला एवं ट्रेन में उनके निर्धारित स्थान पर बैठा दिया । मेरे साथ यह परेशानी आई कि मेरे आधे बच्चे कोच के एक कोने में थे एवं आधे दूसरे कोने में । जिन्हें संभालना काफी कठिन था । प्रभु कृपा से एक अन्य विद्यालय का ग्रुप भी लोनावला ही जा रहा था अतः उनके साथ सामंजस्य बैठाकर मैंने अपने सभी बच्चों को एक साथ कर लिया । दिन पूरी तरह ठीक निकला, रात होते ही मैंने अपने बच्चों को सुला दिया । रात करीब 12 बजे जिस ग्रुप से हमने सीट बदली उसके शिक्षक ने आकर उठाया और कहा कि आपने जो सीट हमें दी है उस पर कोई और सज्जन आ गए हैं । मेरे कोच में मैं अकेला ही शिक्षक था । टीटी ने भी सीट दूसरे के ही नाम होना बताया । मैंने उन शिक्षक महोदय से तकलीफ हेतु क्षमा मांगी एवं तुरंत एक सीट खाली करके उन्हें उपलब्ध करवाई एवं अपने इंचार्ज को सूचित किया । थोड़ी देर बाद पुनः उन्हें उपलब्ध करवाई सीट पर कोई ओर सज्जन आ गए । फिर क्षमा मांग कर उन्हें एक सीट दी । ऐसा चार बार हुआ । अब उनके शिक्षक का भी धैर्य जवाब देने लगा, जो कि जायज भी था । उन्होंने कहा कि सर आपने ऐसा कैसा आरक्षण करवाया है । मुझे भी कुछ समझ नहीं आ रहा था कि हो क्या रहा था । तभी इंचार्ज ने बताया कि हम लोगों ने अन्य कोच की कुछ सीट कैंसिल करवाने डाली थी जिसे ऑपरेटर ने गलती से मेरी सीटों को कैंसिल करवा दिया हैं अतः कुछ और सीटों पर अन्य लोग आ सकते हैं । अत्यधिक तनाव के क्षण होने से मेरी हालत पहले ही काफी खराब थी । मैं पहले ही अपनी सीट तक दे चुका था । इंचार्ज को बोलकर तुरंत चार बच्चों को अन्य कोच में शिफ्ट करवाया । परन्तु बार-बार के हंगामों से अब मेरी हिम्मत ने जवाब दे दिया था । एक तरफ भयंकर नींद आ रही थी, सिर फटा जा रहा था और दूसरी तरफ फिर आने वाले तनाव की चिंता थी । मैंने तुरंत प्रभु को याद किया और प्रार्थना की कि हे प्रभु, अब आप ही मुझे बचा सकते है, आप ही रक्षा करें । प्रभु से प्रार्थना करते-करते कब नींद आ गई पता ही नहीं चला । सुबह तक किसी ने नहीं उठाया । सुबह उठा तो पता चला कि बाद में कुछ भी नहीं हुआ, जबकि फिर हंगामा होना था ये बात सौ प्रतिशत तय थी । पर मेरे प्रभु ने सब कुछ संभाल लिया और आने वाले मुसीबत से मुझे पुरी तरह उबार लिया । संपादक टिप्पणी - हम जब प्रभु में आस्था रखकर विपत्ति में अपनी बागडोर प्रभु को संभला देते हैं तो हम फिर निश्चिंत होकर चैन की नींद सो सकते हैं जैसा कि यहाँ देखने को मिलता है ।
रात्रि विश्राम के दौरान बच्चे अपने-अपने कमरों में मस्ती करते रहते थे । एक रात मेरे ग्रुप के दो बच्चों में अचानक झगड़ा हो गया और एक बच्चे ने दूसरे का हाथ पूरी तरह मोड़ कर उलटा कर दिया । उसके मुड़े हाथ को देखकर मेरे होश उड़ गए । इतनी रात, घने जंगल के बीच अनजान जगह मैं क्या करूं, कुछ समझ में नहीं आ रहा था । समस्या अति गंभीर थी एवं उस बच्चे की संपूर्ण जिम्मेदारी मेरी ही थी । मैंने मन-ही-मन तुरंत प्रभु को याद किया एवं बचाव के लिए चिल्लाना प्रारंभ किया । चंद सेकेंड में ही एक साथी शिक्षक आ गए और उन्होंने न जाने कैसे उस बच्चे को तुरंत ठीक कर दिया । मेरा मन जानता था कि साथी शिक्षक को प्रभु ने निमित्त बनाकर भेजा जिन्होंने लगभग टूटा हाथ तक जोड़ दिया । संपादक टिप्पणी - विपत्ति में हम श्रद्धा रखकर जब प्रभु को पुकारते हैं तो प्रभु किसी को निमित्त बनाकर सहायता तत्काल हम तक पहुँचा देते हैं ।
भ्रमण का आखिरी दिन था, हमें ट्रेन से वापिस आना था । मैंने अपने सारे बच्चों की गिनती की एवं स्टेशन के बाहर से अंदर की ओर ट्रेन के पास ले गया । ट्रेन आते ही सबको बैठाया और फिर से गिनती की तो होश उड़ गए, दो बच्चे गायब थे । मैंने तुरंत सब जगह ढूंढा पर वे कहीं नहीं मिले । फिर बदहवास होकर बाहर की और दौड़ लगाई करीब एक किलोमीटर तक दौड़ लगाकर उन्हें सब जगह ढूँढ़ता रहा, पर नहीं मिलें । कोई सहायता करने को तैयार नहीं था । मैंने फिर प्रभु को याद किया कि हे प्रभु, अब आप ही मेरी सहायता करें । थक कर पसीने में चूर वापस ट्रेन में कोच के पास आया तो दोनों बच्चे अपनी सीट पर खेलते मिले । संपादक टिप्पणी - हमारे नियंत्रण में कुछ नहीं होता जबकि प्रभु के नियंत्रण में सदैव सब कुछ होता है । इसलिए जब हम किसी परिस्थिति से नियंत्रण खो दें तो तत्काल श्रद्धा रखकर प्रभु को पुकारना चाहिए ।
मेरे प्रभु ने सारी की सारी विपदाओं में मेरी रक्षा की, जबकि मैं सब परिस्थितियों में हिम्मत हार चुका था । मैंने अपने आपको पूरी तरह प्रभु को समर्पित कर दिया था । सुख और दुःख दोनों ही जीवन का हिस्सा हैं पर अगर प्रभु साथ होते हैं तो वे आपको बुरी से बुरी परिस्थितियों से भी आसानी से निकाल लाते हैं । संपादक टिप्पणी - जीवन में भक्ति करके अगर सदैव प्रभु को याद रखा जाए तो विकट चुनौती को भी हम सफलता से पार कर सकते हैं ।
रोशन गुप्ता
इन्दौर
नाम / Name : Mr. Roshan Gupta
प्रकाशन तिथि / Published on : 29 January 2018
संक्षिप्त प्रेषक परिचय / Brief Introduction of Sender : मेरा नाम रोशन गुप्ता है । मैं एक निजी विद्यालय में शिक्षक हूँ । मेरे जीवन का एकमात्र उद्देश्य केवल और केवल प्रभु की भक्ति करना है ।
मुझे सत्संग प्रिय है और एक वेबसाइट के माध्यम से मैं प्रभु के कार्य से जुड़ा हुआ हूँ ।
मैं प्रभु के किसी भी कार्य से जुड़ने में अपना सौभाग्य मानता हूँ और प्रभु से अरदास करता हूँ कि प्रभु की सेवा का अवसर सदैव जीवन में उपस्थित होता रहे ।
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