श्री गणेशाय नमः
Devotional Thoughts
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प्रभु प्रेरणा से संकलन द्वारा चन्द्रशेखर करवा
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MEMOIR LANGUAGE SENDER'S NAME EDITOR'S INTRODUCTION
21 PILGRIMAGE MEMOIR HINDI Mr. Gangadhar Krishnarao Deshmukh This memoir shows GOD's kindness during the journey helps us in a state of distress. Stranded for tickets, an unknown person comes to the rescue after a plea to GOD.
22 MIRACLE MEMOIR Hindi Sob. Lalita Omkarnath Malpani During an attack by dacoits, severely injured, GOD comes to the rescue and saves the life. This memoir shows how GOD, the savior is the greatest.
23 PILGRIMAGE MEMOIR Hindi Mr. Arvind Tatyaba Khandekar This memoir shows that if we have a desire to visit the sacred place, GOD fulfills our desire. Unknown to Shri Vrindavan Dham, with GOD's kindness, the sender of the memoir, finds suitable arrangements for the pilgrimage.
24 MEDICAL MEMOIR Hindi Sob. Sandhya Badrinarayan Mundra This memoir shows that how GOD's kindness leads the way for recovery from two major medical problems. In deep distress, it was GOD's kindness that led the way to recovery.
25 PILGRIMAGE MEMOIR Hindi Sob. Pratibha Prabhakar Tabib This memoir shows how GOD fulfills a wish to participate in a religious ritual. Not chosen to perform the ritual, she prays to GOD who fulfills the wish as the chosen person does not turn up.
26 MEDICAL MEMOIR English Smt. Vibha Pradip Deputy This memoir shows how GOD's kindness helps in the fight against cancer. Horrified on being diagnosed with cancer, she prays to GOD who paves the way for a successful treatment. GOD gives her the inner strength to withstand the crisis.
27 MIRACLE MEMOIR Hindi Smt. Sushila Devi Maheshwari This memoir shows how faith in GOD blesses the couple with a boy child. Having tried all medical remedies without any success, it was a complete surrender to GOD which brought happiness to the family.
28 MEDICAL MEMOIR Hindi Mr. ShyamSundar V Deshmukh This memoir shows how the disability of the right hand is miraculously cured by GOD. Handicapped and in deep distress, GOD provides the much-needed relief.
29 PILGRIMAGE MEMOIR Hindi Mr. Roshan Lal Sharma This memoir shows how GOD provides motivation to a devotee during the pilgrimage. A man comes and gives encouragement and then disappears.
30 MIRACLE MEMOIR Hindi Mr. Madhukar Rao Ingole (Nanaji) This memoir shows how GOD saves a person from the current of 11000 KVA Electric HT line. Even the Electrical Engineers and the treating doctors were stunned by the miracle.
Serial No. Post
21 Real-life memoir by Mr. Gangadhar Krishnarao Deshmukh titled सफर में प्रभु कृपा
Indexed as PILGRIMAGE MEMOIR


Editor's Introduction : This memoir shows GOD's kindness during the journey helps us in a state of distress. Stranded for tickets, an unknown person comes to the rescue after a plea to GOD.

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सफर में प्रभु कृपा

मैं अपने परिवार और इष्‍ट मित्रों के साथ श्रीकाशी विश्‍वनाथजी के मंदिर दर्शन हेतु वाराणसी गया था ।

वाराणसी मे उसी समय अखिल भारतीय विश्‍व हिन्दू परिषद का एक सम्‍मेलन चल रहा था जिस कारण वहाँ अपार भीड़ थी ।

प्रभु ने कृपा की और भयंकर भीड़ होने पर भी हमें मंदिर में दर्शन हो गए ।

हम वापस रेलवे स्‍टेशन पहुँचे अपने गांव लौटने के लिए तो वहाँ भी भयंकर भीड़ थी । जिस गाड़ी से हमें जाना था वह प्‍लेटफार्म पर लग चुकी थी । लोग गाड़ी के दरवाजे-खिड़की से भीतर घुस रहे थे और चिल्‍ला रहे थे ।

हम टिकट लेने के लिए टिकट-घर पहुँचे तो लाईन इतनी लम्‍बी थी और भीड़ इतनी अधिक थी कि टिकट मिलना असंभव प्रतीत हो रहा था । गाड़ी के छूटने में थोड़ा ही समय शेष बचा था ।

व्‍याकुलता भरे मन से हमने प्रभु से प्रार्थना की और निवेदन किया कि किसी भी तरह हमें अपने गांव पहुँचा दें । हमें विश्‍वास था कि प्रभु तुरंत प्रसन्‍न होने वाले और इच्‍छापूर्ति करने वाले हैं । संपादक टिप्पणी - प्रभु से प्रार्थना और प्रभु में विश्‍वास का संयोग जब भी बनता है तो यह संयोग निश्‍चित फल देता है । फिर क्‍या था हमें साक्षात प्रभु कृपा के दर्शन हुए ।

एक अन्‍जान व्‍यक्ति मेरे पिताजी के पास स्वतः आया और पूछा कि इतने चिंतामग्न क्‍यों हो । पिताजी ने कहा कि गांव वापस जाना है और टिकट मिलना बेहद मुश्‍किल लग रहा है । टिकट की लाईन बहुत बड़ी है और गाड़ी छूटने का समय भी हो गया है, इसलिए चिंतामग्न हैं । अब तो प्रभु कृपा होगी तभी टिकट मिल सकती है । संपादक टिप्पणी - छोटी-छोटी बातों में प्रभु कृपा का आभास कर पाना जीवन की एक बड़ी ऊँचाई है ।

उस अन्‍जान व्‍यक्ति ने कहा कि मैं टिकट निरीक्षक हूँ । आप जितने भी लोग है उस हिसाब से टिकट के पैसे मुझे दे दें और आप में से एक व्‍यक्ति को मेरे साथ भेज दें । मेरे पिताजी ने टिकट के पैसे दे दिए और एक व्‍यक्ति को साथ भेज दिया । उस टिकट निरीक्षक ने टिकट निकलवा कर हमें दिया और उसके एवज में कुछ भी नहीं लिया । हमें साक्षात अनुभव हुआ जैसे प्रभु ने उसे हमारी विपदा हरने भेजा था । उस अन्‍जान टिकट निरीक्षक के बिना हम वहीं रह जाते । संपादक टिप्पणी - आज के भौतिकवादी युग में कोई चल कर आए और बिना स्‍वार्थ हमारी मदद करे तो इसे प्रभु की साक्षात कृपा माननी चाहिए ।

हमने भक्ति भाव से प्रभु को पुकारा और प्रभु ने हमारे संकट का निवारण किया । प्रभु कैसे एक सर्वसाधारण के बुलाने पर संकट हरते हैं, ऐसा प्रत्‍यक्ष हमने होते देखा । तीव्र व्‍याकुलता और अति प्रेम से हम जब भी प्रभु को पुकारते हैं तो प्रभु प्रसन्‍न होकर इच्‍छापूर्ति करते हैं, ऐसा अनुभव आया । प्रभु कृपा के साक्षात दर्शन हम सब ने किए ।

प्रभु की ऐसी ही कृपा सदैव बनी रहे, ऐसी विनम्र याचना के साथ ।



गंगाधर कृष्णराव देशमुख
वसमत (महाराष्‍ट्र)


नाम / Name : गंगाधर कृष्णराव देशमुख
प्रकाशन तिथि / Published on : 04 नवम्‍बर 2013

संक्षिप्त प्रेषक परिचय / Brief Introduction of Sender : मेरी उम्र 74 वर्ष है । मैं किसान हूँ और गांव में खेती करता हूँ ।
मैं गुरु सेवा में रहता हूँ और सत्‍संग मुझे प्रिय है । जहाँ भी सत्‍संग का मौका मिलता है, मैं जाता हूँ । प्रभु में मेरी पूरी आस्‍था है और नियमित पूजा-पाठ करता हूँ । सत्‍संग हेतु मेरी पत्‍नी का सहयोग और प्रेरणा मुझे हमेशा मिलता रहता है ।
22 Real-life memoir by Sob. Lalita Omkarnath Malpani titled प्रभु का रक्षा कवच
Indexed as MIRACLE MEMOIR


Editor's Introduction : During an attack by dacoits, severely injured, GOD comes to the rescue and saves the life. This memoir shows how GOD, the savior is the greatest.

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प्रभु का रक्षा कवच

मैं संगमनेर जिला अहमदनगर महाराष्‍ट्र में रहती हूँ ।

हमारे यहाँ दो बंगले बने हुए हैं जिसमें एक छोटा एवं एक बड़ा है । छोटे बंगले में श्रीठाकुरजी की सेवा है और मैं रहती हूँ । उसके सामने बड़ा बंगला है जिसमें मेरे बेटे अपने परिवार के साथ रहते हैं ।

घटना 8 वर्ष पूर्व की है । एक रात करीब 1 बजे हमारे घर में डकैती हुई । 15 डकैत आए थे ।

घर में सायरन लगा हुआ था पर उसके तार उन्‍होंने काट दिए । चौकीदार को पीटा और झाड़ियों में फेंक दिया । हमारे घर के पालतू कुत्‍तों को उन्‍होंने कुछ खिला कर अचेत कर दिया ।

हल्‍ला सुनकर मेरा बड़ा बेटा दरवाजे पर आया तो डाकुओं ने उसे खींचकर बाहर निकाला और लाठियां बरसाने लगे । छोटा बेटा दौड़कर आया तो उन्होंने उस पर भी लाठियों का प्रहार शुरू कर दिया । लाठियों से मार कर उसे बुरी तरह घायल कर दिया ।

सुबह हम उसे नासिक के अस्‍पताल ले गए जहाँ से हालत नाजुक होने के कारण हम बम्‍बई हिन्‍दुजा अस्‍पताल पहुँचे ।

बेटा कोमा में चला गया था । हालत बहुत नाजुक थी । सिर पर आठ जगह चोट लगी थी । डॉक्टरों ने कहा कि वह बच पाएगा या नहीं यह कहा नहीं जा सकता ।

हमने प्रभु की शरणागति ली । पूजा-पाठ अनुष्‍ठान बैठाए और फिर जो हुआ वह साक्षात प्रभु का चमत्‍कार था ।

डॉक्टरों ने जब सिर का स्कैन किया तो उन्‍होंने पाया कि सिर पर इतनी जगह और इतनी गहरी चोटें लगने के बाद भी ब्रेन तक चोट नहीं पहुँची । उन्‍होंने कहा कि मारने वाले ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी पर बचाने वाला बहुत बड़ा था और उन्‍होंने बचा लिया । संपादक टिप्पणी - बचाने वाले प्रभु सबसे बड़े हैं इसलिए जब प्रभु सहायक बन जाते हैं तो संसार में किसी की शक्ति नहीं कि वह हमारा कुछ बिगाड़ कर सके ।

मेरा वह बेटा श्री वृन्‍दावनजी के प्रभु श्री गिरिराजजी की मनौती से हुआ था ।

जब वह इलाज के बाद होश में आया तो उसने जो बताया वह सुन कर हम सब रोमांचित हो गए । प्रभु कैसे प्रत्‍यक्ष रूप से रक्षा करते हैं इसका जीवन्‍त उदाहरण हमारे सामने था ।

बेटे ने बताया कि जब डकैत लाठियाँ बरसा रहे थे तो उसने देखा कि छोटे बंगले (जहाँ श्री ठाकुरजी की सेवा है) से कोई आया और अपना हाथ उसके सिर पर रख दिया । लाठियों की मार उन्‍होंने अपने हाथों पर झेली और उसकी रक्षा की । फिर वह बेहोश हो गया । आगे क्‍या हुआ उसे पता नहीं था ।

मेरी बेटी जिसके ससुराल में प्रभु श्री गिरिराजजी का इष्‍ट है वह घटना सुनकर तुरंत प्रभु श्री गिरिराजजी के दर्शन करने और मनौती मांगने चली गई थी । वह जब वहाँ से लौट कर आयी और साथ में प्रभु श्री गिरिराजजी की एक फोटो मेरे बेटे के कमरे में लगाने के लिए लेकर आई तो मेरे बेटे ने झट से पहचान लिया और बोला ये तो वही हैं जिन्‍होंने उस रात बरसते हुए लाठियों के बीच अपना हाथ मेरे सिर पर रखकर मेरी रक्षा की । संपादक टिप्पणी - प्रभु अप्रत्‍यक्ष रूप से किसी को निमित्त बना कर सदैव हमारी रक्षा करते हैं पर प्रत्‍यक्ष रूप से प्रभु ने रक्षा की इसका जीवन्‍त उदाहरण यहाँ देखने का मिलता है ।

हम सब रोमांचित और अभिभूत थे । प्रभु के मनौती से मिले उस पुत्र की रक्षा प्रभु ने स्‍वयं आकर की, यह साक्षात अनुभव हम सबने किया ।

प्रभु इतने कृपालु और शरणागत की रक्षा करने वाले हैं - ऐसा सुना था पर आज साक्षात ऐसा होते देखा । प्रभु कृपा के प्रत्‍यक्ष दर्शन मुझे एवं मेरे परिवार को हुए । ‍

सौ. ललिता ओंकारनाथ मालपानी
संगमनेर (महाराष्‍ट्र)


नाम / Name : सौ. ललिता ओंकारनाथ मालपानी
प्रकाशन तिथि / Published on : 11 नवम्‍बर 2013

संक्षिप्त प्रेषक परिचय / Brief Introduction of Sender : मेरी उम्र 70 वर्ष की है । पहले व्‍यवसाय का काम मे देखती थी पर अब गृहिणी हूँ ।
गीता परिवार की 35 वर्ष पूर्व संगमनेर में स्‍थापना हुई थी, तब से मैं इससे जुड़ी हुई हूँ । मैं 6 वर्षों तक अखिल भारतीय माहेश्वरी महासभा की महिला संगठन के बाल संस्‍कार की अध्‍यक्षा रही हूँ । 4 वर्षों तक माहेश्वरी समाज महाराष्‍ट्र प्रदेश की महिला संगठन की अध्‍यक्षा रही हूँ ।
मुझे सोलापुर की महिला संगठन ने आदर्श माता का पुरस्‍कार दिया है । मुझे संत सेवा पुरस्‍कार संत श्री गोविन्‍ददेव गिरीजी से प्राप्‍त हुआ है ।
23 Real-life memoir by Mr. Arvind Tatyaba Khandekar titled श्रीवृंदावन धाम की यात्रा
Indexed as PILGRIMAGE MEMOIR


Editor's Introduction : This memoir shows that if we have a desire to visit the sacred place, GOD fulfills our desire. Unknown to Shri Vrindavan Dham, with GOD's kindness, the sender of the memoir, finds suitable arrangements for the pilgrimage.

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श्रीवृंदावन धाम की यात्रा

स्‍वर्गाश्रम (ऋषिकेश) में श्रीमद् भागवतजी महापुराण का सात दिवस का ज्ञानयज्ञ (सप्‍ताह) हुआ जिसमें कथा श्रवण के लिए मैं गया था ।

मैंने बड़े भाव से कथा सुनी और मेरे मन में मानो ऐसी प्रेरणा हुई कि प्रभु की लीलाधाम श्रीवृंदावनजी के सभी श्रीलीला स्‍थलों का दर्शन किया जाए ।

मन में संकल्‍प तो उठा पर मेरी पहचान में श्रीवृंदावनजी में ऐसा कोई नहीं था जो मुझे ऐसा करवा दें । मेरे लिए वह जगह नई थी और मेरा परिचय किसी से नहीं था । मैं मन में सोचने लगा कि प्रभु कुछ ऐसी कृपा करें कि दर्शन की व्‍यवस्‍था बैठ जाए ।

एक दिन अपने घर पर सुबह-सुबह अनायास ही "राधे-राधे" का स्‍वर मुँह से निकला । मुझे ऐसा प्रतीत हुआ मानो भगवती माता ने कृपा कर दी और मुझे अब जल्‍द ही दर्शन हो जाएंगे । उस दिन से मैंने "राधे-राधे" बोलने का संकल्‍प ले लिया । जिससे भी मैं मिलता "राधे-राधे" कहकर ही अभिनंदन करने लगा । संपादक टिप्पणी - हमारी संस्कृति एवं परंपरा थी कि प्रभु के नाम जैसे "राम-राम" कह कर किसी मिलने वाले का अभिनंदन किया जाए । ऐसा करने से हमारे भीतर के "राम" और सामने वाले के भीतर के "राम" को हम प्रणाम करते थे । इसका एक बड़ा फायदा यह होता था कि प्रभु के दो नाम निरंतर हमारे मुँह से निकलने की आदत बन जाती थी जो हमारा कल्‍याण करती थी । आज पश्चिमी संस्कृति के कारण 'हाय' 'हेलो' का बोलबाला है जो अर्थहीन और भाव शून्य है ।

धुलिया में मार्च 2006 में श्रीवृंदावनजी से कोई गुरु भाई आए हुए थे जिनसे परिचय हुआ । उन्‍होंने अपना पता दिया और श्री वृंदावनजी आने का न्‍यौता दिया । प्रभु का जैसे साक्षात अनुग्रह हो गया । मैं बहुत खुश था ।

मैंने श्रीवृंदावनजी जाने का प्रोग्राम बनाया और वहाँ अपने गुरु भाई के पास छः दिन रुका । ऐसा लगा जैसे प्रभु ने उन्‍हें साक्षात प्रेरणा दी हो, उन्होंने बड़े भाव से धीरे-धीरे करके प्रभु के सभी श्रीलीला स्‍थलों के दर्शन मुझे करवाएँ ।

मैं अभिभूत था कि जो संकल्‍प मन में किया और जिस हेतु कोई व्‍यवस्‍था आरम्‍भ में नहीं थी, उसकी सुचारु व्‍यवस्‍था प्रभु ने कैसे एक अपरिचित गुरु भाई के माध्‍यम से करवा दी । संपादक टिप्पणी - प्रभु हमारा भाव देखते हैं और अगर भाव सात्विक होता है तो हमारा संकल्‍प अवश्‍य पूरा करवाते हैं ।

इतने भाव से, इतना समय देकर प्रभु के एक-एक श्रीलीला स्‍थलों के दर्शन मुझे श्रीवृंदावनजी में हुए - यह साक्षात प्रभु की महती कृपा थी । ऐसा अदभुत दर्शन प्रभु की कृपा के बिना संभव नहीं था । ‍ ‍

अरविंद तात्‍याबा खाण्‍डेकर
कामती बुद्रक (महाराष्‍ट्र)


नाम / Name : अरविंद तात्‍याबा खाण्‍डेकर
प्रकाशन तिथि / Published on : 18 नवम्‍बर 2013

संक्षिप्त प्रेषक परिचय / Brief Introduction of Sender : मेरी उम्र 63 वर्ष की है । मैं पहले शिक्षक था । कुछ समय पूर्व शिक्षक पद से सेवानिवृत्त हो गया ।
मुझे सत्‍संग में बहुत रुचि है और जहाँ भी मौका मिलता है मैं सत्‍संग का लाभ लेता हूँ ।
24 Real-life memoir by Sob. Sandhya Badrinarayan Mundra titled प्रभु की कृपा
Indexed as MEDICAL MEMOIR


Editor's Introduction : This memoir shows that how GOD's kindness leads the way for recovery from two major medical problems. In deep distress, it was GOD's kindness that led the way to recovery.

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प्रभु की कृपा

मेरी उम्र 71 वर्ष की है और मैं नांदेड़ (महाराष्‍ट्र) में रहती हूँ ।

मेरे मस्तिष्क में रक्‍त के क्लॉट होने के कारण लकवे का अटैक होता है जिसे TIA (Transient Ischemic Attack) कहते हैं । अटैक के दौरान हाथ पैरों में बहुत कमजोरी, बोलने में लड़खड़ाना और विस्मृति हो जाती थी । मुँह में चबाने पर भोजन पेट में नहीं जाता और मुँह में ही घूमता रहता था और पानी के घूंट के साथ निगलना पड़ता था । दो वर्ष में तीन बार अटैक आते थे । 3-4 दिनों के लिए ICU में रखते, फिर इलाज होने पर कुछ ठीक होने पर घर जाने की छुट्टी मिल जाती ।

पर जब बार-बार ऐसा होने लगा तो मेरी तकलीफ देखकर परिवार के लोग परेशान होने लगे । मेरी कुल 10 बार MRI हुई ।

मेरा एक बेटा सिंगापुर रहता है । मैं 2012 में मेरे बेटे के पास जाने वाली थी तो जाने से पूर्व नांदेड़ में डॉक्टर के पास चैकअप के लिए गई की प्‍लेन में मेरे रोग के कारण कोई दिक्‍कत तो नहीं होगी ।

जाँच के बाद डॉक्टर ने जाने के लिए मना कर दिया और कहा कि इन्‍हें हृदय की एक बीमारी जिसका नाम Atrial Fibrillation है जिसके कारण इनकी हृदय गति बढ़ जाती है । हृदय के एक चैम्‍बर में क्लॉट बनते हैं जो रक्‍त प्रवाह के साथ मस्तिष्क में चले जाते हैं ।

बम्‍बई में Atrial Fibrillation के विशेषज्ञ को दिखाया गया तो उन्‍होंने कहा कि सर्जरी करनी होगी पर इसमें जोखिम बहुत बड़ा है । सर्जरी असफल भी हो सकती है जिसके कारण जटिलताएं और भी बढ़ सकती हैं । अभी से भी ज्‍यादा हालत खराब हो सकती है । हमारी हिम्‍मत नहीं हुई सर्जरी के लिए और हमने प्रभु पर सब कुछ छोड़ दिया ।

स्‍वर्गाश्रम (ऋषिकेश) में श्रावण मास 2013 में श्रीमद् भागवतजी महापुराण की एक महीने की मास कथा थी जिसमें जाने की मेरी बड़ी इच्‍छा थी । मैं प्रभु से प्रार्थना करती थी कि कैसे भी मैं प्रभु कथा श्रवण कर पाऊँ । संपादक टिप्पणी - सत्कर्म के लिए अगर हम प्रभु से अरदास करते हैं और हमारा भाव सात्विक होता है तो प्रभु निश्‍चित तौर पर हमारा संकल्‍प पूरा करते हैं ।

दो बीमारियों के चलते मुझे काफी परेशानी थी । फिर नांदेड़ में ऑटो रिक्शा में लगे झटके के कारण मेरी पीठ और पैरों में भयंकर दर्द उठा और मेरा चलना-फिरना लगभग बंद हो गया । मुझे पकड़ कर चलाना पड़ता था ।

मेरे पति ने कहा कि तुम ऋषिकेश मत चलो और मैं अकेले ही जा आता हूँ । पर मुझे प्रभु पर विश्‍वास था और कथा श्रवण की प्रबल इच्‍छा थी ।

मैं लम्‍बर बैल्‍ट बांधकर, तकिए के सहारे पैर को रख कर ट्रेन में बैठी । ट्रेन में पैरों का बैलेंस गड़बड़ाने के कारण मैं गिर पड़ी । जैसे-तैसे बड़ी मुश्‍किल से कथा श्रवण के लिए ऋषिकेश पहुँची ।

फिर ऋषिकेश एक माह रही तो सभी आश्चर्यचकित थे कि 15 दिन पहले जो तबियत इतनी खराब थी वह यहाँ आकर शत प्रतिशत सामान्‍य कैसे हो गई । मेरा भोजन, चलना-फिरना सब सुचारु होने लगा । मैं बिलकुल सामान्‍य हो गई ।

भगवती गंगा माता के दर्शन और सत्‍संग के फल के रूप में प्रभु की ऐसी कृपा हुई कि दोनों बीमारियाँ अब पूरी तरह से कंट्रोल में है और कोई तकलीफ नहीं दे रही है । संपादक टिप्पणी - विपदा हरना प्रभु का स्‍वभाव है और सच्‍चे हृदय की पुकार कभी व्‍यर्थ नहीं जाती ।

प्रभु की कृपा के साक्षात दर्शन मैंने किए । तिरुमाला में प्रभु श्री तिरुपति बालाजी के दर्शन करके हमने प्रभु को धन्‍यवाद दिया और प्रभु का आशीर्वाद लिया । ‍ ‍

सौ. संध्‍या बद्रीनारायण मुंदड़ा
नांदेड़ (महाराष्‍ट्र)


नाम / Name : सौ. संध्‍या बद्रीनारायण मुंदड़ा
प्रकाशन तिथि / Published on : 02 दिसम्‍बर 2013

संक्षिप्त प्रेषक परिचय / Brief Introduction of Sender : मेरी उम्र 71 वर्ष की है । मैं एक गृहिणी हूँ । मेरे पति डॉक्टर हैं और तीन बेटे और दो बहुएं भी डॉक्टर हैं । मेरे एक दामाद भी डॉक्टर हैं ।
मैं सामाजिक कार्यकर्ता हूँ जो विगत 20 वर्षों से विभिन्‍न महिला संगठनों से जुड़ी हूँ ।
मैं धार्मिक परिवार से हूँ और जहाँ भी सत्‍संग का मौका मिलता है, मैं पहुँचती हूँ । सभी प्रमुख तीर्थ मैंने कर लिए हैं ।
25 Real-life memoir by Sob. Pratibha Prabhakar Tabib titled प्रभु ने यजमान बनाया
Indexed as PILGRIMAGE MEMOIR


Editor's Introduction : This memoir shows how GOD fulfills a wish to participate in a religious ritual. Not chosen to perform the ritual, she prays to GOD who fulfills the wish as the chosen person does not turn up.

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प्रभु ने यजमान बनाया

स्‍वर्गाश्रम (ऋषिकेश) में एक धार्मिक अनुष्‍ठान हो रहा था जिसमें शामिल होने के लिए मैं अपने पति के साथ गई थी ।

अनुष्‍ठान से पहले यह भाव आया कि हम पति-पत्‍नी यजमान बन कर अनुष्‍ठान में बैठते तो कितना अच्‍छा होता । पर अंतिम लम्‍हें में ऐसा कर पाना संभव नहीं था क्‍योंकि यजमान का चयन हो चुका था । दूसरी बात परिवार वालों की मंजूरी जरूरी थी और वित्‍त की व्‍यवस्‍था भी चाहिए थी । और सबसे अहम बात कि मेरे पति के घुटनों में दर्द हो रहा था और वे नीचे बैठने में असमर्थ थे । पर मेरे मन में भाव तो यही था कि ऐसा कर पाती तो कितना अच्‍छा होता ।

प्रभु भाव देखते हैं और फिर एक ऐसा वाक्‍या हुआ जिसमें साक्षात प्रभु कृपा के दर्शन मुझे हुए ।

हुआ यूं कि जिन यजमान का चयन हुआ था उस अनुष्‍ठान हेतु वे किसी कारणवश समय पर नहीं पहुँच पाए । तीन-चार बार उनका नाम पुकारा गया । अनुष्‍ठान के आरम्‍भ होने का समय हो चुका था इसलिए आनन-फानन में जो आगे बैठा था उसे यजमान हेतु बुला लिया गया । मैं सबसे आगे बैठी थी इसलिए मेरा नाम लेकर पुकारा गया ।

मैं और मेरे पति यजमान बने । मैं दंग रह गई कि जो इच्‍छा हृदय में थी प्रभु ने उसे पढ़ कर कैसे तत्‍काल पूरा कर दिया । संपादक टिप्पणी - प्रभु सिर्फ हमारे भाव के भुखे होते हैं और हमारे भाव को ग्रहण कर लेते हैं । इस प्रसंग में भी प्रभु ने भाव देखकर भाव को ग्रहण किया और यजमान बनने के संकल्‍प को उसी समय पूरा करवाया ।

प्रभु भाव को देखते हैं यह बात मैंने सुनी थी और मानती थी पर आज ऐसा होते देखा । साक्षात प्रभु कृपा के दर्शन मैंने किए । ‍ ‍

सौ. प्रतिभा प्रभाकर तबीब
पुणे (महाराष्‍ट्र)


नाम / Name : सौ. प्रतिभा प्रभाकर तबीब
प्रकाशन तिथि / Published on : 03 दिसम्‍बर 2013

संक्षिप्त प्रेषक परिचय / Brief Introduction of Sender : मैं 59 वर्ष की हूँ । बीकॉम तक पढ़ी हूँ और गृहिणी हूँ । मैं गीता परिवार का काम करती हूँ और स्कूल जाकर निःशुल्क बच्‍चों को भारतीय संस्‍कार और परंपरा का पाठ पढ़ाती हूँ ।
मुझे सत्‍संग प्रिय है और मैं सत्‍संग के लिए वर्ष में एक माह का समय जरूर निकालती हूँ ।
26 Real-life memoir by Smt. Vibha Pradip Deputy titled The fight against Cancer
Indexed as MEDICAL MEMOIR


Editor's Introduction : This memoir shows how GOD's kindness helps in the fight against cancer. Horrified on being diagnosed with cancer, she prays to GOD who paves the way for a successful treatment. GOD gives her the inner strength to withstand the crisis.

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The fight against Cancer

Though for the last 60 years, I have never seriously prayed to GOD but in my hour of crisis and need, He stood by me and I am very thankful to GOD.

During my life of 60 years, I have always experienced that whatever I wished to achieve was always delivered to me by GOD. I have always felt an inner voice that inspired me all throughout my life.

But there was an incident in my life where I could easily see the invisible Holy hand of GOD coming to my rescue.

Last year, suddenly, there were many physical changes happening in my body. I consulted the doctor who advised a number of medical tests. Reports came in and to my horror cancer was deducted.

I did not know the seriousness of the disease till then. But it was a nightmare when I came to know about the seriousness of the disease.

I blindly started following the instruction of the doctor and kept full faith in GOD. My family took great care of me.

So smoothly I passed through the long treatment process of cancer. It took a full year but by the grace of GOD, it was like a cakewalk. First, there was Chemotherapy then Biopsy followed by an operation. Then the radiation process started and Herceptin's injections were administered. It was only by the grace of GOD that during the whole treatment I was very energetic and was always in a positive frame of mind.

After successful treatment, I sat and thought, who gave me the energy to fight against cancer ? Who gave me the positivity and peace of mind ? Who made the best medical treatment and the best doctors available to me ? Who made my family stand by me in distress ? And finally who cured me and who saved me ? There was only one answer to all. It was the merciful GOD who did it all for me. Editor's comments - These are the questions that everyone should ask himself or herself after coming out of troubled water but we fail to do so. We seldom sit and analyze that it is our Supreme Father who gave us the strength to fight against distress. It is always GOD's mercy which comes to our rescue in difficult times of our life. We must learn to attribute our success in testing times to GOD.

I remember the worst days of my life and how with the grace of GOD, I passed through it with ease. In my blackest hour of life, GOD was there for me and it was only He who made me come out of the distress. Editor's comments - We should not attribute our success in testing time to anything else apart from GOD. But we generally make this blunder in our real life, when we forget to see the hidden Holy hands of GOD and forget to visualize His kindness behind all forms of help, at all times.

I had clearly experienced GOD's miracle since my survival in the fight against cancer was only due to Him. ‍ ‍

Smt. Vibha Pradip Deputy
Surat (Gujarat)


नाम / Name : Smt. Vibha Pradip Deputy
प्रकाशन तिथि / Published on : 10 December 2013

संक्षिप्त प्रेषक परिचय / Brief Introduction of Sender : I am 60 years old. I have studied B.A. from Mumbai and am presently a housewife.
For 20-25 years, I have done my own business. Now I am inclined towards Satsang and whenever I find the opportunity I attend Satsang.
27 Real-life memoir by Smt. Sushila Devi Maheshwari titled प्रभु का चमत्‍कार
Indexed as MIRACLE MEMOIR


Editor's Introduction : This memoir shows how faith in GOD blesses the couple with a boy child. Having tried all medical remedies without any success, it was a complete surrender to GOD which brought happiness to the family.

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प्रभु का चमत्‍कार

मेरे तीन पुत्र हैं जो मेरे साथ रहते हैं । मेरे दूसरे पुत्र का विवाह 1991 में हुआ था ।

विवाह के बाद 1993 में उसे एक पुत्री हुई । फिर 13 वर्षों तक दूसरी संतान नहीं हुई । खूब इलाज करवाया पर कोई सफलता नहीं मिली । तीन-चार बार टेस्ट ट्यूब बेबी हेतु प्रयास किया पर असफल रहे । जहाँ जो भी इलाज संभव था सभी करवाया पर निराशा ही हाथ लगी । बेटा-बहू दुःखी थे कि कोई भी प्रयास सफल नहीं हो पा रहे हैं ।

मुझे प्रभु पर असीम विश्‍वास था । मैंने उनसे कहा कि यह सब चक्‍कर छोड़ो और प्रभु की शरण में जाओ ।

हमारे घर के पास हवेली (मंदिर) है जहाँ प्रभु के बाल रूप श्री लालाजी के रूप का दर्शन मैं रोजाना करने को जाती थी । बेटे-बहू को मैंने कहा कि मेरे साथ मंदिर चलो और प्रभु श्री लालाजी से कहो कि हमारे यहाँ भी लाला (पुत्र) भेज दें । उन्‍होंने ऐसा ही किया ।

हमारे घर पर स्थित मंदिर में भी प्रभु श्री लालाजी की सेवा है । वहाँ भी मैं ऐसी ही प्रार्थना करने लगी । हमने प्रभु की शरणागति ली और प्रभु से निवेदन किया कि अगर संतान की प्राप्ति होती है तो एक बड़ा नंदोत्‍सव मनाएंगे । इसके बाद मेरे बेटे-बहू ने अस्‍पतालों के सभी प्रयास छोड़ दिए और सिर्फ प्रभु का आश्रय लिया । संपादक टिप्पणी - सच्‍चे मन से प्रभु की शरणागति लेने से बड़े-से-बड़े कठिन कार्य भी सरलता से संपन्‍न होते हैं ।

प्रभु पर आश्रय और विश्‍वास रखने का परिणाम था कि 13 वर्ष बाद 2006 में मेरे बेटे-बहू को फिर से संतान के रूप में पुत्र की प्राप्ति हुई ।

जो डॉक्टर टेस्ट ट्यूब बेबी का प्रयास कर असफल थे, वे भी आश्चर्यचकित रह गए । बिना डॉक्टर के इलाज, बिना किसी औषधि के सेवन के और डॉक्टरों द्वारा आशा छोड़ देने के बाद प्रभु का ऐसा चमत्‍कार हमारे जीवन में हुआ । संपादक टिप्पणी - मेडिकल साइंस की सीमा है पर प्रभु की कृपा की कोई सीमा नहीं होती । प्रभु का चमत्‍कार जब-जब होता है तो ऐसा देखा गया है कि मेडिकल साइंस कभी इसकी कल्‍पना भी नहीं कर सकता एवं ऐसे चमत्‍कारों का विश्लेषण मेडिकल साइंस के पास नहीं होता है ।

पोते का नामकरण संस्‍कार हुआ एवं एक बड़ा नंदोत्‍सव मंदिर प्रांगण में मनाया गया एवं ऐसा करके प्रभु को धन्‍यवाद ज्ञापित किया गया ।

मुझे पहले से ही प्रभु पर विश्‍वास था पर बच्‍चों ने मेरी बात को गंभीरता से नहीं लिया और मेडिकल साइंस पर विश्‍वास किया और सब तरह के इलाज करवाए । जहाँ-जहाँ संभावनाएं थी गए, जो-जो करना था किया । फिर जब हार गए तो मैंने उनसे कहा कि अब सब प्रयास छोड़ कर प्रभु की शरण में जाओ । सब तरफ से निराशा पाकर उन्‍होंने आशा की अंतिम किरण "प्रभु" की शरणागति ली और फिर ऐसा चमत्‍कार हुआ और प्रभु ने ऐसी कृपा की और हमारा घर खुशियों से भर गया । ‍ ‍

सुशीला देवी माहेश्‍वरी
नवी मुम्‍बई


नाम / Name : श्रीमती सुशीला देवी माहेश्‍वरी
प्रकाशन तिथि / Published on : 16 दिसम्‍बर 2013

संक्षिप्त प्रेषक परिचय / Brief Introduction of Sender : मैं 65 वर्ष की गृहिणी हूँ जो अपने तीन पुत्रों के साथ एक ही जगह रहती हूँ । मेरे पति का बासमती चावल का व्‍यापार है पर अब वे भी सेवानिवृत्त हो चुके हैं । व्‍यापार बच्चे संभालते हैं ।
मेरे पति और मेरा ध्‍यान अब परमार्थ की तरफ ज्‍यादा है । घर में प्रभु की नित्‍य सेवा-पूजा करती हूँ और जहाँ भी सत्‍संग का मौका मिलता है उसका लाभ लेने का प्रयास करती हूँ ।
28 Real-life memoir by Mr. ShyamSundar V Deshmukh titled प्रभु की कृपा
Indexed as MEDICAL MEMOIR


Editor's Introduction : This memoir shows how the disability of the right hand is miraculously cured by GOD. Handicapped and in deep distress, GOD provides the much-needed relief.

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प्रभु की कृपा

मैंने 1957 में जिला न्‍यायालय नांदेड (महाराष्‍ट्र) में वकालत शुरू की ।

1964 में दाहिने हाथ में एकाएक तकलीफ शुरू हुई । हाथ में दर्द होना शुरू हुआ और धीरे-धीरे हाथ ऊपर उठना बंद हो गया ।

एक वैद्यजी से आयुर्वेदिक इलाज करवाया । वैद्यजी ने कहा कि वात विकार है और औषधि दी एवं गर्म सेंक करने हेतु कहा । तेल मालिश हेतु तेल दिया । इलाज के बाद कोई फायदा नहीं हुआ ।

फिर ऑर्थोपेडिक डॉक्टर को दिखाया । उन्‍होंने जांच के बाद कहा कि Cervical Rib है यानी एक अतिरिक्‍त हड्डी हाथ में बन गई है जिससे हाथ में रक्‍त संचार का अवरोध हो गया है । हाथ का ऑपरेशन करके उस अतिरिक्‍त हड्डी को निकालना पड़ेगा ।

मैं काफी महीनों से तकलीफ पा रहा था एवं अपने हाथों से खाना भी नहीं खा पाता था क्‍योंकि हाथ खाना खाने के लिए भी उठ ही नहीं पाता था । मेरी माताजी मुझे अपने हाथों से खाना खिलाती थी । न्‍यायालय जाने के लिए कमीज और कोट नहीं पहन सकता था । हाथों में रक्‍त संचार की कमी के कारण अंगुली सूख सी गई थी और नाखून काले पड़ गए थे ।

बड़े शहर हैदराबाद जाकर वहाँ के सबसे विख्‍यात ऑर्थोपेडिक डॉक्टर को दिखाया । उन्‍होंने भी बीमारी का वही आकलन किया और ऑपरेशन की तारीख 5 दिन बाद की दे दी ।

हमारे पारिवारिक डॉक्टर गांव से मेरे साथ आए हुए थे । 5 दिन का समय था तो मैंने सोचा कि ऑपरेशन से पूर्व प्रभु श्री तिरुपति बालाजी के दर्शन कर आएं । हम तिरुमाला दर्शन हेतु पहुँचे । वहाँ एक पवित्र कुंड है जहाँ ठंडा जल था । मैं ठंडे जल से कभी नहीं नहाता हूँ पर मैंने प्रभु का नाम लेकर पूरी भावना से डुबकी लगाई । फिर प्रभु के दर्शन के लिए महाद्वार से गए और दर्शन करके बाहर आ गए ।

फिर भोजन हेतु एक भोजनालय में गए और जैसे ही खाना आया मेरा दाहिना हाथ स्वतः भोजन के लिए अपने आप उठ गया ।

मैं, मेरे परिवार के सदस्‍य और हमारे पारिवारिक डॉक्टर सभी आश्‍चर्यचकित थे कि जो हाथ विगत 6 महीने से हिलता भी नहीं था वह एकाएक कैसे काम करने लग गया ।

मैं ऑपरेशन के पूर्व सिर्फ प्रभु के दर्शन हेतु आया था । कुछ मांगा भी नहीं कि बिना ऑपरेशन मेरा हाथ ठीक हो जाए पर प्रभु ने कृपा करते हुए स्वतः ही चमत्‍कार कर दिया । संपादक टिप्पणी - प्रभु बड़े कृपालु और दयालु हैं । मांगने पर तो देते ही हैं, बिन मांगे भी स्वतः ही दे देते हैं । यह प्रत्यक्ष रूप से यहाँ देखने को मिलता है ।

हम वापस हैदराबाद पहुँचे तो वहाँ वाले ऑर्थोपेडिक डॉक्टर भी देखकर चकित रह गए । उन्‍होंने जांच के बाद कहा कि अब ऑपरेशन की कोई जरूरत नहीं है ।

प्रभु की ऐसी कृपा हुई कि 1964 से अब तक लगभग 40 वर्षों में वह अतिरिक्‍त हड्डी वहीं पर है पर कोई तकलीफ नहीं दे रही है । हाथ सुचारु रूप से पूर्णतः काम करता है । संपादक टिप्पणी - अवरोध वहाँ होने पर भी 40 वर्षों से कोई तकलीफ नहीं दे और सब कुछ सुचारु रूप से चलता रहे, यह प्रभु कृपा द्वारा ही संभव हो सकता है ।

उसके बाद से मैंने एक नियम बनाया कि हर वर्ष में एक बार मैं प्रभु श्री तिरुपति बालाजी के दर्शन हेतु सपरिवार जाता हूँ ।

प्रभु कृपा के साक्षात दर्शन इस प्रसंग में मुझे हुए कि बिना किसी इलाज के अतिरिक्‍त हड्डी के वहाँ रहते हुए भी मैं पूर्णतः ठीक हो गया । ‍ ‍

श्‍यामसुन्‍दर वेंकटराव देशमुख (आरधापुरकर)
नांदेड (महाराष्‍ट्र)


नाम / Name : श्‍यामसुन्‍दर वेंकटराव देशमुख (आरधापुरकर)
प्रकाशन तिथि / Published on : 06 फरवरी 2014

संक्षिप्त प्रेषक परिचय / Brief Introduction of Sender : मैं 80 वर्ष का हूँ । वकालत की पढ़ाई 1955 में पूर्ण की । मैंने 1957 से 1962 तक वकालत की और 1962 से 1980 तक सरकारी वकील था । मैंने 1980 से 2011 तक वापस वकालत की । मैं 2012 में सेवानिवृत्त हो गया । अब सत्‍संग में मेरी रुचि है और बहुत सारे धार्मिक और सामाजिक संस्‍थानों से जुड़ा हुआ हूँ ।
29 Real-life memoir by Mr. Roshan Lal Sharma titled प्रभु की प्रेरणा
Indexed as PILGRIMAGE MEMOIR


Editor's Introduction : This memoir shows how GOD provides motivation to a devotee during the pilgrimage. A man comes and gives encouragement and then disappears.

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प्रभु की प्रेरणा

श्री अयोध्‍याजी में बिड़ला धर्मशाला में प्रभु की कथा थी जिसके श्रवण के लिए मैं गया था ।

हम आठ लोग रोजाना सुबह 4 बजे श्रीसरयू माता में स्‍नान हेतु जाते थे ।

मेरे कूल्हे में और घुटने में दर्द रहता था जिस कारण मैं लगातार चलने में असमर्थ था । दो किलोमीटर की इस छोटी-सी पैदल यात्रा में मुझे 2-3 बार बीच में आराम करने के लिए बैठना पड़ता था ।

एक दुकान के पास मैं आराम करने बैठा हुआ था । मेरे घुटने दर्द कर रहे थे तभी एक बुजुर्ग महात्‍मा लगभग 90 वर्ष की आयु के मेरे पास आए और मुझे देखकर "श्री नारायण हरि" कह कर अभिनंदन किया ।

फिर उन्‍होंने संस्कृत में एक श्‍लोक कहा और मुझसे पूछा कि क्‍या मुझे समझ में आया । मैंने कहा कि नहीं आया तो उन्‍होंने समझा कर कहा कि श्री अयोध्‍याजी आकर 24 कोस की श्री अयोध्‍याजी की परिक्रमा कोई भी भाव से कर लेता है तो धर्मशास्त्रों में लिखा है कि वह 84 लाख योनियों में जन्‍म-मरण के चक्र से मुक्‍त हो जाता है ।

मैंने कहा कि दो किलोमीटर के श्रीसरयू माता के रास्‍ते में 2-3 बार मुझे बैठना पड़ता है तब जाकर धीरे-धीरे मैं कहीं पहुँच पाता हूँ और आते वक्‍त मुझे रिक्‍शे से आना पड़ता है तो इतनी लम्‍बी परिक्रमा मैं कैसे कर पाऊँगा ।

उन महात्‍मा ने कहा कि चलो 5 कोस की भी एक छोटी परिक्रमा है उसे कर लो । मैंने कहा कि मेरे लिए तो यह भी संभव नहीं है ।

तो उन महात्‍मा ने कहा कि श्रीकनक भवन मंदिर की 7 परिक्रमा लगाओ और प्रभु के सामने अपनी असमर्थता जताओ तो करुणानिधान प्रभु 24 कोस की परिक्रमा का फल तुम्‍हें दे देंगे और तुम्‍हें विभिन्‍न योनियों में जन्‍म-मरण के चक्‍कर से मुक्ति दे देंगे । संपादक टिप्पणी - प्रभु श्रम नहीं देखते, भाव देखते हैं । भाव से किया गया छोटा-सा भी कार्य भी प्रभु सहर्ष स्‍वीकार कर लेते हैं ।

मैं स्‍तब्‍ध था कि वे महात्‍मा मुझे निस्‍वार्थ कितनी प्रेरणा दे रहें हैं । कुछ ही क्षण में वे महात्‍मा चले गए, फिर उन्‍हें बहुत खोजा पर वे नहीं मिले ।

मुझे स्‍पष्‍ट रूप से प्रतीत हुआ कि प्रभु ने उन्‍हें प्रेरणा देने हेतु भेजा था और मैंने पूरे भाव के साथ श्रीकनक भवन मंदिर की 7 परिक्रमा पूरी की एवं साथ गए सभी लोगों को करवाई । प्रभु की साक्षात कृपा के दर्शन मुझे इस प्रसंग में हुए । ‍ ‍

रोशन लाल शर्मा
दिल्‍ली


नाम / Name : रोशन लाल शर्मा
प्रकाशन तिथि / Published on : 11 फरवरी 2014

संक्षिप्त प्रेषक परिचय / Brief Introduction of Sender : मैं 72 वर्ष का हूँ । पहले मैं अखबार के ऑफिस में कार्यरत था । 2002 में सेवानिवृत्त हो गया । मुझे जीवन में सत्‍संग बहुत प्रिय है और जहाँ भी सत्‍संग का मौका मिलता है, मैं पहुँचता हूँ । प्रभु कृपा से सभी तीर्थों के दर्शन मैंने कर लिए हैं ।
30 Real-life memoir by Mr. Madhukar Rao Ingole (Nanaji) titled प्रभु का चमत्‍कार
Indexed as MIRACLE MEMOIR


Editor's Introduction : This memoir shows how GOD saves a person from the current of 11000 KVA Electric HT line. Even the Electrical Engineers and the treating doctors were stunned by the miracle.

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प्रभु का चमत्‍कार

यह घटना 4 वर्ष पूर्व की है । संत श्री गुलाबराव महाराज भक्तिधाम, श्रीक्षेत्र चांदूर बाजार (जिला अमरावती, महाराष्‍ट्र) से पैदल पालकी यात्रा श्रीपंढरपुर धाम के लिए रवाना हुई । यात्रा 650 किलोमीटर की होती है जिसमें लगभग 1 महीने का समय लगता है । हम कुल 450-500 यात्री यात्रा में थे ।

रोज सुबह पैदल यात्रा 5 बजे शुरू होती और दिन के 11 बजे किसी ग्राम में रुकती । वहाँ भोजन और विश्राम के बाद पुनः 3 बजे से लेकर सायं 6 बजे तक पैदल यात्रा होती । रोजाना औसतन 20-25 किलोमीटर की यात्रा तय की जाती ।

यात्रा के दौरान एक दिन पालकी यात्रा वासीम पहुँची । वहाँ जिस जगह हमारे रुकने की व्‍यवस्‍था थी वहाँ जाने हेतु हम एक संकरे रास्‍ते की तरफ मुड़े । पालकी के आगे ध्‍वजा लेकर तीन लोग चल रहे थे । एक बड़ी 9 फीट की ध्‍वजा थी जिसका डंडा लोहे का था । दो अन्‍य ध्‍वजाएं छोटी थी ।

सामने से आ रहे एक व्‍यक्ति ने हमें कहा कि आप गलत मार्ग में आ गए हैं । हमें मुड़ कर दूसरे रास्‍ते से जाने हेतु उन्‍होंने कहा ।

गलती का अनुभव कर हमने यात्रा को मोड़ा । वापस मुड़ते समय आनन-फानन में एक बड़ा हादसा हो गया । जो व्‍यक्ति 9 फीट की लोहे का डंडा युक्‍त ध्‍वजा ले कर चल रहा था उसकी ध्‍वजा ऊपर से गुजर रही विद्युत की 11000 केवी की हाईटेंशन लाइन में चिपक गई । जोरदार धमाका हुआ और आग के गोले निकले और उस व्‍यक्ति के ऊपर गिरे । उसके धक्‍के से उसके साथ चल रहे दो अन्‍य ध्‍वजा वाहक भी गिर गए ।

धमाके से बिजली गुल हो गई । हम लोग सब घबरा गए । वहाँ से अस्‍पताल जाने का कोई साधन नहीं था । वह रास्‍ता इतना संकरा था कि कोई वाहन नहीं आ सकता था ।

इतने में प्रभु कृपा के दर्शन हुए और एक रिक्‍शा आया । रिक्‍शे वाले ने तुरंत सहयोग दिया और करन्‍ट लगे उस ध्‍वजा वाहक को रिक्‍शे में डालकर अस्‍पताल की तरफ भागा । संपादक टिप्पणी - जब प्रभु कृपा होती है तो या तो हम सहायता तक पहुँच जाते हैं या तो सहायता चल कर हमारे पास आ जाती है । वहाँ क्रिश्चियन मिशनरी द्वारा संचालित अस्‍पताल था ।

अस्‍पताल पहुँचे तो उस घायल व्‍यक्ति की हृदय धड़कन बंद थी । छाती पर हृदय गति शुरू करने के लिए पम्‍प किया गया । डॉक्टर निराश थे और उन्‍होंने कहा कि बचने की आशा बहुत कम है ।

इतने में एक महिला आई जो देवी की तरह वेशभूषा में थी । वे उस घायल के पास गई और पूछा कि इसके साथ कौन आया है । हम लोग तुरंत वहाँ गए तो उस महिला ने कहा कि जब वह घायल व्‍यक्ति घर से चला था तब से एक बड़ी विपदा उसके पीछे थी । पर वह प्रभु की ध्‍वजा लेकर चल रहा था इसलिए उसकी रक्षा हुई । अब यह बच जाएगा और उसका कुछ भी नहीं बिगड़ेगा ।

धीरे-धीरे इलाज के बाद उसकी चेतना का पुनः संचार हुआ और 8 दिन में वह पूरी तरह ठीक हो गया ।

इस दौरान विद्युत विभाग के अभियन्‍ता की एक टीम आई जिन्‍होंने कहा कि हमारी जानकारी में 11000 केवी की हाईटेंशन लाइन से चिपक कर कोई नहीं बचा है क्‍योंकि विद्युत शक्ति इतनी ज्‍यादा होती है कि जो व्‍यक्ति चिपक जाता है वह छूटता नहीं । उसका शरीर काला पड़ जाता है और चिपका हुआ ही वह प्राण त्‍याग देता है । पर हमें आश्चर्य है कि कैसे धमाके के बाद लाइन बंद हुई और यह व्‍यक्ति चिपक कर कैसे छुट गया । यह साक्षात प्रभु की कृपा है कि ऐसा चमत्‍कार हुआ । संपादक टिप्पणी - जब बचाने वाले प्रभु होते हैं तो बड़ी-से-बड़ी विपदा भी हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकती ।

अमेरिका से एक डॉक्टरों की टीम भी उस अस्‍पताल के दौरे पर आई हुई थी । उनको भी पूरे घटना की जानकारी थी और उन्‍होंने भी बहुत आश्चर्य किया कि हृदय गति बंद होने के बाद भी पुनः हृदय गति का संचार होकर यह व्‍यक्ति कैसे बच गया । उन्‍होंने भी माना कि यह चमत्‍कार ही है । संपादक टिप्पणी - जब विज्ञान के पास कोई जवाब नहीं होता तो उन्‍हें भी प्रभु के चमत्‍कार को मानना पड़ता है ।

प्रभु कृपा के साक्षात दर्शन हम सभी ने अपनी आँखों से किए और अपनी आँखों से प्रभु के चमत्‍कार को होते देखा । ‍ ‍

मधुकर राव इगोले (नानाजी)
श्रीक्षेत्र चांदूर बाजार (जिला अमरावती) महाराष्‍ट्र


नाम / Name : मधुकर राव इगोले (नानाजी)
प्रकाशन तिथि / Published on : 25 मार्च 2014

संक्षिप्त प्रेषक परिचय / Brief Introduction of Sender : मेरी उम्र 74 वर्ष की है । मेरे सद्गुरु संत श्री गुलाबरावजी महाराज हैं और मैं श्रीक्षेत्र चांदूर बाजार (जिला अमरावती) महाराष्‍ट्र में स्‍थापित संत श्री गुलाबराव महाराज भक्तिधाम का संस्‍थापक हूँ ।
संत श्री गुलाबराव महाराज ने 34 वर्ष की अल्पायु में 133 ग्रंथों की रचना की जो की उन्होंने प्रज्ञा-चक्षु से की क्‍योंकि वे बचपन से ही नेत्रहीन थे । उन्‍हें संत श्री ज्ञानेश्‍वरजी महाराज (माऊली) का प्रत्‍यक्ष साक्षात्‍कार 1901 में हुआ जब उनकी आयु 21 वर्ष की थी । वे गोपी भाव में रहते थे और खुद को श्रीज्ञानेश्‍वर कन्‍या और प्रभु श्री गोपालकृष्णजी की पत्‍नी मानते थे । उनके जीवन में प्रभु श्री गोपालकृष्ण जी का भी साक्षात्‍कार उन्‍हें प्राप्‍त हुआ । वे धर्मसमन्‍वय महर्षि, प्रज्ञा-चक्षु, ज्ञानेश्‍वर कन्‍या और मधुरा व्‍दैवाचार्य थे ।