श्री गणेशाय नमः
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MEMOIR LANGUAGE SENDER'S NAME EDITOR'S INTRODUCTION
01 MEDICAL MEMOIR HINDI Mr. Sandeep R Karwa (Chandrashekhar) This memoir shows GOD's kindness in illness / medical treatment. A lot of people kneel down to seek GOD's mercy at times of medical crisis but forget to visualize how GOD's kindness had raised them from the crisis. When we get well, we give credit to modern medical facilities and medicines. They are all medium but it is GOD's kindness that has worked for them.
02 (1) PILGRIMAGE MEMOIR
(2) RETIRED-LIFE MEMOIR
ENGLISH Mr. Tribeni Prasad Agrawal This memoir shows GOD's kindness during the pilgrimage. A lot of people who may have pleased GOD get divine experience during the pilgrimage. Here is one such experience. Also, the memoir shows how goodness in life pleases GOD.
03 (1) MATRIMONY MEMOIR
(2) GIRL-CHILD PARENTING MEMOIR
HINDI Mr. Sandeep R Karwa (Chandrashekhar) This memoir shows how GOD's kindness works in married life. Whoever is happy as a couple, it is due to GOD's kindness and they must try to retain it. Whoever is not happy as a couple must seek GOD's kindness. The personal example of the sender reflects both the happy situation and the ordinary situation. It was GOD's kindness that gave them so many happy years as a couple. One must not venture to lose GOD's kindness, as done in this case. The memoir only tries to reflect this viewpoint.
04 MEDICAL MEMOIR ENGLISH Ms. Manisha Belani This memoir shows how GOD's kindness works during a medical crisis. Whoever seeks GOD's kindness during the period of medical crisis is able to tide over the difficult time successfully. The memoir tries to reflect this viewpoint.
05 HELPING-HAND MEMOIR HINDI Mr. Roshan Gupta This memoir shows how GOD's kindness works during our effort to help or do well for others. If you get an inner call that leads us to help someone, we should consider ourselves fortunate to be chosen by GOD for the job. Because we then become the medium for the invisible Holy hands of GOD at work.
06 (1) CONFESSION MEMOIR
(2) MATRIMONY MEMOIR
HINDI Mr. Sandeep R Karwa (Chandrashekhar) This memoir is a confession memoir. The sender has confessions in life, as everyone would have but the courage to speak out is only due to GOD's kindness. We all make blunders in life and hide them under the carpet and even forget it. In the Holy Text, a lot of emphasis is given to confession. Nothing is hidden from GOD, not even our thoughts which had even not come upon our lips. This memoir, which is a confession, qualifies for this section because it also shows a total U-turn (from hiring a cocotte to celibacy) which was only possible because of GOD's kindness.
07 HELPING-HAND MEMOIR HINDI Mrs. Prema VasantRao Rashatwar This memoir shows how GOD's kindness helps us when we undertake to work for the cause of GOD. If we selflessly do so, we get divine help all the way in our endeavor. Because it is GOD's work and therefore the invisible Holy hands of GOD are always on our side to protect us, help us and lead us to our goal.
08 CHILD PARENTING MEMOIR ENGLISH / HINDI Mr. Sandeep R Karwa (Chandrashekhar) This memoir shows how GOD's kindness refines and purifies the heart and mind of young ones if they are brought closer to the GOD during childhood. The power to restrain oneself from indulging in wrongdoings is only possible with devotion towards GOD. This is because the goodness of GOD sows the seed of goodness in us which redefines the ideology of our life for doing 'right' and avoiding 'wrong' in our life. This fact is reflected in this memoir.
09 HELPING-HAND MEMOIR ENGLISH Sharon H. This memoir shows how GOD's kindness helps us in our hour of need. It shows how we are chosen or hand-picked by GOD at the time of our distress. If we have faith in GOD, He definitely answers our call.
10 HELPING-HAND MEMOIR ENGLISH Jonathan S. This memoir shows how GOD's kindness helps us in our efforts of goodness. If we do things that please GOD, He executes our plan to perfection.
Serial No. Post
1 Real-life memoir by Mr. Sandeep R Karwa (Chandrashekhar) titled प्रभु द्वारा जीवन का दान
Indexed as (1) MEDICAL MEMOIR


Editor's Introduction : This memoir shows GOD's kindness in illness / medical treatment. A lot of people kneel down to seek GOD's mercy at times of medical crisis but forget to visualize how GOD's kindness had raised them from the crisis. When we get well, we give credit to modern medical facilities and medicines. They are all medium but it is GOD's kindness that has worked for them.

Editor's Request : You may email this memoir to anyone presently experiencing a medical crisis in life for motivation. You may share this memoir directly via Email, Facebook, Twitter and various other social networks with the help of the Share-Button available on the right vertical of this page.


प्रभु द्वारा जीवन का दान

मेरे प्रभु ने कितनों को बीमारी से, दुर्घटना से और अन्‍य भयंकर विपदाओं से कृपा करके बाहर निकाला है, मानो एक नया जीवन ही दिया हो । पर हम उसे अपना स्‍वअर्जित प्रारब्‍ध मानने की गलती कर बैठते हैं और प्रभु को मात्र धन्‍यवाद देकर या मंदिर जाकर सवामणी करवा कर या कोई धार्मिक अनुष्‍ठान करवा कर इतिश्री कर लेते हैं । जबकि हमें उस नए जीवन के एक भाग को सदैव प्रभु भक्ति में अर्पण करना चाहिए । यही प्रभु को धन्यवाद ज्ञापित करने का श्रेष्‍ठ तरीका है और सबसे श्रेष्‍ठ मानव जीवन की ऊँचाई भी है ।

एक प्रसंग यहाँ बताने योग्‍य मानता हूँ । एक पुत्र है देवयुक्‍त । वह अभी 9 वर्ष का है । जब वह मात्र 2 महीने का था तो एक बार गंभीर रूप से बीमार पड़ा । निमोनिया बहुत बिगड़ गया । इतना बिगड़ा कि जिस डॉक्टर का 7 दिन से घर पर इलाज चल रहा था उन्‍होंने एकाएक कह दिया कि आई.सी.यू (ICU) में भर्ती करना पड़ेगा । वे डॉक्टर जयपुर शहर में बच्‍चों के इलाज के लिए सबसे प्रसिद्ध और अनुभवी डॉक्टरों में से एक थे । राज्‍य की राजधानी होने के कारण जयपुर में बच्‍चों के सबसे बड़े राजकीय अस्‍पताल के प्रोफेसर थे । मैंने तुरंत उनसे पूछा कि कौन से अस्‍पताल में ले जाएं जहाँ पर आप आकर संभाल सकेंगे । वे सिद्धांतवादी थे इसलिए पुराना परिचय होने के बावजूद भी उन्‍होंने स्‍पष्‍ट कह दिया कि आप पैसेवाले हैं, शहर के बढ़िया से बढ़िया अस्‍पताल में आप ले जाएं । पर मैं वहाँ न तो इलाज हेतु निर्देश दे सकूँगा और न ही आकर देख पाऊँगा क्‍योंकि यह मेरे सिद्धांत के खिलाफ होगा । उन्‍होंने आगे कहा कि मेरी देख−रेख में इलाज चालू रखना चाहते हैं तो आपको सरकारी अस्‍पताल में ही बच्चे को भर्ती करवाना पड़ेगा । मैं भी प्रभु कृपा के कारण जीवन में सिद्धांतवादी हूँ । इसलिए जब दूसरों को सिद्धांतवादी पाता हूँ तो प्रभु कृपा का दर्शन करता हूँ एवं मन में उन व्यक्तियों के प्रति सम्‍मान और बढ़ जाता है । अपने स्‍वार्थ के लिए किसी के अच्‍छे सिद्धांत तुड़वाने की मैं कल्‍पना भी नहीं कर सकता ।

यथार्थ में उस समय ऐसा लगा जैसे मेरे पैर के नीचे से जमीन खिसक गई । बड़े एवं नामचीन प्राइवेट अस्‍पताल में जाता हूँ तो इन डॉक्टर की सेवा से वंचित रह जाते हैं । इनकी सेवाएं लेनी हो तो बच्‍चे को सरकारी अस्‍पताल में भर्ती करना होगा जो आज तक हमारे परिवार की पीढ़ियों में भी कभी नहीं हुआ था । साथ ही उन्‍होंने कह दिया कि बच्‍चे की अवस्‍था बेहद नाजुक है इसलिए आपको 5 मिनट में यह निर्णय लेना होगा - समय नहीं है आपके पास ।

मैं तुरंत उनके कक्ष से बाहर आया और सदैव की तरह प्रभु का स्‍मरण किया और इस विपदा को प्रभु को समर्पित किया और प्रभु की शरणागति ली । अपना बुद्धिबल, धनबल सब भूल गया और अनन्‍यता से प्रभु को बस यही कहा कि बच्‍चा आपका है, आपका ही दिया हुआ है, आप उसके और मेरे परमपिता हैं (मैं तो मात्र लौकिक पिता हूँ बच्‍चे का) । संपादक टिप्पणी -प्रभु समर्पण की अनन्‍यता देखकर तुरंत पिघल जाते हैं - श्रीग्रंथों के इन वचनों पर कभी भी जीवन में संदेह नहीं करना चाहिए । यह पूरी प्रक्रिया मानसिक थी और 2 मिनट में एकांत में पूरी हो गई ।

मैंने परिवार में अपने माता-पिता, रिश्‍तेदार, यहाँ तक कि साथ में गई पत्‍नी तक से कुछ नहीं पूछा कि क्‍या करना चाहिए । मन में प्रभु की स्‍पष्‍ट अनुभूति और निर्देश था कि बड़े अस्‍पताल के चक्‍कर में मत पड़ो, इस डॉक्टर के पीछे चलो क्‍योंकि करने वाला मैं (प्रभु) हूँ । संपादक टिप्पणी - जीवन में विपदा के क्षण एवं हर क्षण विश्‍वास मात्र और मात्र प्रभु का ही होना चाहिए ।

तीसरे मिनट डॉक्टर के कक्ष में दोबारा दाखिल हुआ और मैंने कहा कि बच्‍चे का इलाज आपसे ही करवाना है, यही प्रेरणा मुझे हुई है । उनके भीतर उसी समय मैंने नया उत्‍साह देखा । प्रभु कृपा के दर्शन यहीं से मुझे आरम्‍भ हो गए । उन्‍होंने कहा कि अभी 1 महीने पहले ही आई.सी.यू (ICU) का एक नया विंग शुरू हुआ है । बहुत साफ सुथरा है और सभी आधुनिक सुविधाओं से युक्त है । मैं इस बच्‍चे की भर्ती के निर्देश उसी आई.सी.यू (ICU) में दे रहा हूँ, आप तुरंत अस्‍पताल पहुँचे ।

जो आई.सी.यू (ICU) का पलंग देवयुक्‍त के लिए आरक्षित हुआ था, पहुँचते ही हमने देखा कि एक परिवार रो रहा है और उनके बच्‍चे की 10 मिनट पहले ही मृत्यु उसी शय्या पर हुई है । रोंगटे खड़े करने वाला दृश्य देखा और अस्‍पताल के एक कर्मचारी के मुँह से अनायास उसी समय एक वाक्‍य निकल पड़ा - फिर एक बच्‍चा मरने के लिए आ गया - यह सुनकर हम स्‍तब्‍ध रह गए । (राजस्‍थान बड़ा राज्‍य है । यह राज्‍य की राजधानी का सबसे बड़ा बच्‍चों का सरकारी अस्‍पताल था । राज्‍य के विभिन्‍न जिला स्‍तर से रेर्फड - अंतिम आपातकालीन अवस्‍था के केस - नीम-हकीम, झाड़-फूँक सब करने के बाद असहाय स्थिति में वहाँ पर पूरे राज्‍य से आते रहते थे । कर्मचारी के मुँह से अनायास निकले उस वाक्‍य को इसी संदर्भ में देखना चाहिए ।)

एक रात निकली, दूसरा दिन निकला । बच्‍चे की हालत नाजुक बनी हुई थी, कोई सुधार नहीं था । दूसरी रात को मैं और पत्‍नी बच्‍चे के पास बैठे थे । रात करीब 2 बजे एकाएक बच्‍चे की श्‍वास की गति असामान्‍य हो गई, शरीर अकड़ गया, आँखें चढ़ गई, मुँह खुला रह गया, जीभ टेढ़ी हो गई, बच्‍चा तड़पने लगा ।

रात को सरकारी अस्‍पताल में हमने जो देखा वह हमारी कल्‍पना से भी बाहर था । नर्स, वार्ड बॉय सभी सोए हुए थे । नर्स को उठाया तो उसने नींद में ही कह दिया कि ड्यूटी डॉक्टर से बात करो । ड्यूटी डॉक्टर अपना केबिन बंद करके सोया था । उठाया तो बड़े गुस्‍से में भड़क गया, बोला - मरने के लिए बच्चों को ले आते हैं, मैं भगवान थोड़े न हूँ कि सबको बचा लू । बड़ी मिन्‍नते करने पर आया । वह नींद में ही था और आँखें मलता हुआ गुस्‍से से आया और बच्‍चे की हालत को बिना देखे ही एक इंजेक्शन हेतु फ्रीज से दवाई निकाली (मैं यकीन के साथ कह सकता हूँ कि उसने गंभीरता से दवाई भी नहीं चुनी थी) । उसने इंजेक्शन लगाया और हमसे बोला कि अब जो भी हो दोबारा मुझे मत उठाना । मैं कुछ नहीं कर सकता और वह अपने केबिन में चला गया ।

मुझे प्रभु पर ही विश्‍वास था इसलिए ड्यूटी डॉक्टर से उलझना मुझे गवारा नहीं हुआ । बच्‍चा तड़प रहा था । मैं और पत्‍नी पास खड़े थे ।

इतने में बच्‍चे ने तड़पते हुए ऐसी अनुभूति दी मानो पानी मांग रहा हो । हम किससे पूछे कि पानी देना भी है कि नहीं । सब सोए हुए थे । जगाने पर क्‍या उत्‍तर मिलना है, हमें पता था । हमारे मन में आया कि बच्‍चा तो जा ही रहा है, अंत में पानी से तो उसे वंचित न किया जाए ।

स्‍वयं ही हमने निर्णय लिया कि पानी दिया जाए । प्रभु के नाम का जप करते-करते एक-एक चम्‍मच करके पानी हम देते रहे और वह पीता रहा । मिनरल वाटर की पूरी एक बोतल वह एक घंटे में पी गया । हालत में कोई सुधार नहीं था ।

हृदय गति असामान्‍य थी, आँखें चढ़ी हुई थी, मुँह खुला था, जीभ टेढ़ी थी । हमारे मन में प्रभु के नाम का जाप निरंतर चल रहा था । तभी आधे घंटे बाद देवयुक्‍त की आँखें सामान्‍य होने लगी और वह हमें देखने लगा । धीरे-धीरे हृदय गति सुचारु हो गई, मुँह बंद हो गया, जीभ ठीक हो गई । वह रोने लगा । इतने समय बाद उसका रोना सुन कर और उसको आँखें खोले देखते हुए मानो हमें लगा कि प्रभु ने साक्षात इतनी बड़ी कृपा कर दी और एक नया जीवनदान उसे दे दिया । संपादक टिप्पणी - प्रभु की कृपा जीवन में कितनी तत्‍काल काम करती है, यह यहाँ साक्षात देखने को मिलती है ।

सुबह 6 बजे तक तो वह बिलकुल सामान्‍य हो गया था । बुखार पूरी तरह उतर चुका था और उसे पीड़ा की कोई अनुभूति नहीं थी । वह चहक रहा था ।

घर के बड़े सुबह अस्‍पताल पहुँच चुके थे । रात को उन्‍हें हमने फोन ही नहीं किया था, कुछ भी नहीं बताया था । मुझे पता था कि करने वाले मात्र मेरे करुणानिधान प्रभु ही हैं । संपादक टिप्पणी - विपदा की घड़ी में किसी भी अन्‍य सांसारिक / शिष्‍टाचार / लौकिक बातों का ध्‍यान न करते हुए, पूरी तन्मयता से सिर्फ और सिर्फ प्रभु के श्रीकमलचरणों को पकड़े रहना चाहिए । ध्‍यान, निष्‍ठा और श्रद्धा सिर्फ और सिर्फ प्रभु के श्रीकमलचरणों में ही केंद्रित होकर रहनी चाहिए ।

सुबह 7 बजे घरवालों ने बच्‍चे को संभाला, रात की पूरी प्रभु कृपा की घटना की जानकारी उन्हें देकर हम मुख्‍य डॉक्टर के घर पर मिलने पहुँचे ।

उन्‍होंने हमें देखते ही कहा कि मुझे कुछ बताने की जरूरत नहीं । सुबह मुझे अस्‍पताल से रात की घटना की ब्रीफिंग मिल चुकी है । एक बात मैं कहना चाहता हूँ कि जो इंजेक्शन उस जूनियर रेसीडेन्‍ट डॉक्टर ने दिया उसका निर्णय लेना उसकी योग्‍यता से परे था । विश्‍वास मानिए, आपके इष्‍टप्रभु ने ही साक्षात उससे ऐसा करवाया है । वह इंजेक्शन उस समय नहीं दिया जाता तो बच्‍चे का खेल खत्‍म हो जाता । प्रभु ने ही आपके बच्‍चे को बचाया है ।

मेरी मान्‍यता पहले से ही थी कि इलाज करना डॉक्टर का काम है पर इलाज का लगना यानी प्रभाव करना प्रभु के ही हाथ होता है । नामचीन डॉक्टर, बड़ा अस्‍पताल, बढ़िया से बढ़िया इलाज भी निष्फल होते हम देखते हैं और यहाँ सरकारी अस्‍पताल, जूनियर रेसीडेन्‍ट डॉक्टर का नींद में किया इलाज भी सफल हो गया ।

सुबह के सभी टेस्ट में देवयुक्‍त की सभी रिपोर्ट सामान्‍य आई । बहुत जल्‍दी हमें अस्‍पताल से छुट्टी मिल गई ।

विपदा में श्रीगजेन्‍द्र मोक्ष का पाठ करना चाहिए । श्रीगजेन्‍द्र मोक्ष का अनन्‍यता से किया हुआ पाठ उस अंतिम अवस्‍था को बदलने की क्षमता रखता है । संपादक टिप्पणी - श्री गजेन्‍द्रजी का उद्धार प्रभु द्वारा अंतिम अवस्‍था में ही हुआ था । अपनी अंतिम अवस्‍था में श्री गजेन्‍द्रजी ने प्रभु के छोटे से नाम (अक्षरों में छोटा पर प्रभाव में दिव्यतम) को पुकारा था । संतों ने व्‍याख्‍या की है कि प्रभु के श्रीनाम के पहले अक्षर का उच्‍चारण होते ही प्रभु नंगे पांव दौड़े, अगले अक्षर के उच्‍चारण से पहले प्रभु ने श्रीसुदर्शन चक्रराज से ग्राह (मगरमच्‍छ) को मोक्ष दे दिया और प्रभु नाम के अगले अक्षर का उच्‍चारण पूरा हुआ उससे पहले श्री गजेन्‍द्रजी को प्रभु ने ग्राह से बचा लिया और प्रभु उनके समक्ष उनको दर्शन देने के लिए साक्षात उपस्थित खड़े थे । प्रभु की करुणा देखें कि मुझे श्रीगजेन्‍द्र मोक्ष का पाठ नहीं करने पर भी उसका फल प्रभु ने दे दिया ।

जब पुत्र बड़ा हुआ तो पुत्र को यह दृष्टान्त कई बार सुनाया । नया जन्‍म प्रभु की कृपा से मिला है और इस जीवन को अपना स्वधर्म (अभी पढ़ाई, बाद में व्‍यापार) करते हुए प्रभु सेवा में अर्पण करना ही इस जीवन का श्रेष्‍ठतम उपयोग होगा, ऐसा उसे समझाया । संपादक टिप्पणी - प्रभु कृपा से हमें जीवनदान मिला हो तो निश्‍चित रूप से जीवन का एक भाग प्रभु सेवा में समर्पित करना ही चाहिए । सच्‍चे मन से अगर हम ऐसा कर पाए तो प्रभु कृपा जीवन में बढ़ती ही चली जाती है ।

मेरे अपने जीवन में -
प्रभु की कृपा कहाँ तक गिनाऊँ !
प्रभु की कृपा कहाँ तक बताऊँ !
प्रभु की कृपा कहाँ तक दिखाऊ !

प्रभु का
संदीप रामनिवास कर्वा (चन्द्रशेखर)
जयपुर (राजस्‍थान)


नाम / Name : संदीप रामनिवास कर्वा (चन्द्रशेखर)
प्रकाशन तिथि / Published on : 10 अगस्‍त 2012

संक्षिप्त प्रेषक परिचय / Brief Introduction of Sender : मैं, संदीप रामनिवास कर्वा (चन्द्रशेखर), उम्र 42 वर्ष, जयपुर (राजस्‍थान) निवासी रियल एस्टेट के व्‍यवसाय में हूँ । भारत की दिव्‍यतम आध्‍यात्‍म धरोहर ने मुझे गदगद कर दिया है । प्राचीन भारतीय श्रीग्रंथों, ऋषियों, भक्‍तों और संतों के मार्गदर्शन से अभिभूत हूँ । भारतीय संस्कृति और विरासत मुझे बेहद प्रिय हैं और मुझे सर्वाधिक गर्व भारतीय होने पर है । मानव का तन और भारत में जन्‍म - यह बड़ा दुर्लभ संयोग होता है (पर हम प्रभु की इस कृपा को कोई तवज्जोह नहीं देते) । तीन वाक्‍य मुझे बेहद प्रिय हैं और मेरे जीवन का फलसफा इनमें छुपा है -
(1) If you go with GOD, destiny will always take you where the grace of GOD will be ready to protect you.
(2) Everything in the world, every science in the world, every process in the world has its definite limitations but GOD has absolutely no limitations. He delivers freely by His divine grace.
(3) If we are able to uphold the firmest of firm faith in GOD, He never fails in our distress or even otherwise.
2 Real-life memoir by Mr. Tribeni Prasad Agrawal titled DIVINE FLOWERS OFFERED TO GOD
Indexed as (1) PILGRIMAGE MEMOIR (2) RETIRED-LIFE MEMOIR


Editor's Introduction : This memoir shows GOD's kindness during the pilgrimage. A lot of people who may have pleased GOD get divine experience during the pilgrimage. Here is one such experience. Also, the memoir shows how goodness in life pleases GOD.

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DIVINE FLOWERS OFFERED TO LORD

I am giving below details of an astonishing incident which took place about 5 years back at Shri Sai Mandir, Shirdi. I had gone for darshan along with my wife. I remember firmly that it was 5 AM and it was the time for Mangla Aarti.

As a humble tribute, I purchased one flower bouquet to offer at the Holy feet of Deity. I thought that I and my wife will together offer the floral tribute to our beloved Deity.

On entering the temple premises, I was told that there were two separate lanes for gents and ladies and each of us should go in the respective lane for darshan. Since I had purchased only one flower bouquet, I was perplexed and cursed myself for not having the foresight to purchase two floral tributes. Anyway, nothing could be done at that moment, so reluctantly I gave that flower bouquet to my wife and went empty-handed in the separate lane for gents. I was repenting that I should have purchased two flower bouquets. If I have done so, I could also have offered one at the Holy feet of Deity. Editor's Comment - If by a matter of chance, we are not able to do something for GOD but have a sincere inclination at heart for doing it, GOD Himself fulfills it. Because for GOD, the essence is not our gesture but our sentiments attached to it.

As if GOD had instantly heard my sincere repent, and came forward to fulfill my wish. A person came from nowhere in the lane and gave one bouquet to me to offer and while I turned back to thank Him, He was gone. I could see nobody. Neither the people who were behind me in the queue remembered any person coming and giving me the flower bouquet. But the flower bouquet was in my hand.

I offered the flower bouquet to the Deity with full reverence.

I was overwhelmed and thrilled with the incident and told my wife of the miracle. Since then I always think of this incident as a blessing of the Deity. Editor's Comment - The sender of the memoir is actively involved in healing the needy peoples with free alternative medicines in his retired life. A noble work is pleasing to GOD. The above experience at pilgrimage is 5 years old but the sender is giving selfless service to the needy for the last 14-15 years. Therefore it can be seen that his 10 years of selfless service was rewarded by GOD by his experience at the pilgrimage. After retirement, we must all remain active in ways that please GOD.

Jai Shri Sai Ram.

Tribeni Prasad Agrawal
Gurgaon (Haryana)


नाम / Name : Mr. Tribeni Prasad Agrawal
प्रकाशन तिथि / Published on : 17 August 2012

संक्षिप्त प्रेषक परिचय / Brief Introduction of Sender : I, Tribeni Prasad Agrawal, aged 75 years, am a B.Sc Eng (Mech). Retired from PSU and presently giving free medical service (Alternative medicines) to needy people. Basically, I am an Engineer, worked in Steel Plants at Rourkela and Bokaro. Retired in 1998, came to Gurgaon to lead a retired active life at the age of sixty.
My interest was spiritual books, sadhana and medical sciences. So I studied Homeopathy, Acupressure, Magnetic Therapy and Reiki Healing (Grand Master now). I give free consultation on these alternative medicines to especially help needy people. I also teach meditation and yoga asanas to selected few. I keep myself busy by doing these where I also enjoy the hidden blessings of GOD.
3 Real-life memoir by Mr. Sandeep R Karwa (Chandrashekhar) titled दाम्‍पत्‍य जीवन में प्रभु कृपा
Indexed as (1) MATRIMONY MEMOIR (2) GIRL-CHILD PARENTING MEMOIR


Editor's Introduction : This memoir shows how GOD's kindness works in married life. Whoever is happy as a couple, it is due to GOD's kindness and they must try to retain it. Whoever is not happy as a couple must seek GOD's kindness. The personal example of the sender reflects both the happy situation and the ordinary situation. It was GOD's kindness that gave them so many happy years as a couple. One must not venture to lose GOD's kindness, as done in this case. The memoir only tries to reflect this viewpoint.

Editor's Request : You may email this memoir to anyone presently experiencing a matrimony crisis in life and also to those who are upbringing/ parenting a girl-child for motivation. You may share this memoir directly via Email, Facebook, Twitter and various other social networks with the help of the Share-Button available on the right vertical of this page.


दाम्‍पत्‍य जीवन में प्रभु कृपा

प्रभु की कृपा ही हमारे दाम्‍पत्‍य जीवन की अनुकूलता का कारण होती है । मेरे विवाह के लगभग 20 वर्ष होने को है । शादी के समय भावी पति एवं पत्‍नी के गुण मिलाए जाते हैं । हमारे भी मिलाए थे । मेरे ससुरजी को स्वयं ज्योतिष शास्त्र का ज्ञान और अनुभव था । पर एक बात मैं बेहिचक कह सकता हूँ कि हमारे गुण ज्योतिष शास्त्र में मिलने पर भी जीवन में एक भी गुण कभी नहीं मिले थे । शादी हुई तब भी नहीं और आज भी नहीं । हम अलग होने हेतु पहले दिन से ही सबसे उपयुक्‍त दाम्‍पत्‍य थे ।

पर प्रभु की अनुकम्‍पा देखें कि हम दोनों ने मेरे इष्‍टप्रभु के दरबार में जाकर विवाह के पूर्व सच्‍चे मन से आर्शीवाद लिया था । इसलिए इतना प्‍यार, इतनी अनुकूलता हमारे बीच विगत 15-16 वर्षों तक रही जिसकी तुलना मैं किसी भी समकालीन अन्‍य सुखी दाम्‍पत्‍य से, यहाँ तक कि प्रेम के अमर पात्रों से भी नहीं कर सकता । हमारा प्‍यार, तालमेल, अनुकूलता सबसे श्रेष्‍ठ थी । जितना प्‍यार एक पुरुष एक स्त्री को और एक स्त्री एक पुरुष को धरती पर कर सकते हैं, उतना प्‍यार प्रत्‍यक्ष हम दोनों ने एक दूसरे से किया और आज भी यह तथ्‍य बेहिचक हम दोनों स्‍वीकारते हैं । यह सिर्फ और सिर्फ प्रभु के उस आर्शीवाद का फल था और जो अनुकूलता थी वह सिर्फ और सिर्फ प्रभु कृपा के अलावा कुछ भी नहीं थी । इतना प्‍यार कि विवाह की विदाई की बेला पर पत्‍नी की आँखों से एक आंसू भी नहीं टपका । इतना प्‍यार कि 8-9 वर्षों तक पत्‍नी पीहर ही नहीं गई । गुण एक भी नहीं मिलते थे - दोनों इस बात को जानते थे, अनुभव करते थे पर प्‍यार इतना था जिसकी कोई सीमा ही नहीं थी । संपादक टिप्पणी - जीवन में जिसके भी दाम्‍पत्‍य सुख है, उन्‍हें साक्षात प्रभु की कृपा ही माननी चाहिए और कृतज्ञता ज्ञापित करते हुए पति-पत्‍नी को नित्‍य साथ में और अलग से भी प्रभु सेवा, प्रभु भजन, प्रभु पूजन, तीर्थ, प्रभु कथा श्रवण, प्रभु नाम जप आदि में से जो भी अच्‍छा लगे, उन साधन / साधनों को करते रहना चाहिए । इन साधनों की उपेक्षा दाम्‍पत्‍य जीवन में कभी नहीं करनी चाहिए क्‍योंकि दाम्‍पत्‍य की सफलता और धन्‍यता बनाए रखने का यही एकमात्र उपाय और साधन है ।

प्रभु की असीम कृपा मेरे ऊपर हुई कि प्रभु ने अपनी तरफ आकर्षित करने हेतु जीवन में विपदाएँ भेजी । विपत्ति के कारण प्रभु में जो श्रद्धा और आस्‍था थी, वह बढ़ने लगी । यह प्रभु की जीव पर सबसे बड़ी कृपा होती है जब जीव प्रभु अनुकम्‍पा के कारण प्रभु की तरफ खींचता ही चला जाता है । जीवन में प्रभु की सेवा, पूजन और भजन बढ़ने लगा । ऐसी कृपा की प्रभु ने कि संसार से आसक्ति कम होने लगी । मन प्रभु की तरफ आकर्षित हुआ और प्रभु की सेवा जीवन में बढ़ गई । प्रभु ने सेवा स्वीकारी और प्रभु के लिए अलग छोटी रसोई, फ्रिज, माइक्रोवेव, बर्तन सब आ गए । घर में नियम बनाया गया कि प्रभु की सभी सेवाएं घर के सदस्य ही करेंगे, नौकरों से नहीं कराया जाएगा क्योंकि प्रभु के नौकर हम स्‍वयं हैं । मंदिर में एयर कंडीशनर, ऑयल हीटर सब आ गए । (ऑयल हीटर लाने के पीछे भावना यह आई कि साधारण हीटर ऑक्सीजन को जलाता है तो प्रभु को मंदिर में श्वास लेने में दिक्कत होगी) । रात को अपने आप मेरी नींद खुल जाती और मंदिर जाकर देखता की ठंड में हीटर कहीं मंदिर को ज्यादा गर्म तो नहीं कर रहा या गर्मी में कहीं एयर कंडीशनर मंदिर में ज्यादा ठंडक तो नहीं कर रहा ।

पति-पत्‍नी के संबंध सदैव की तरह श्रेष्‍ठ बने हुए थे कि तभी एक एक करके 4 घटनाएं घटी ।

पत्‍नी को पता था कि मैं हर चीज में समझौता कर सकता हूँ पर प्रभु मेरे हैं इसलिए प्रभु के लिए एक कण और एक क्षण का भी समझौता नहीं कर सकता । मुझे गर्व है मेरे प्रभु की ऐसी अनुकम्‍पा पर जिससे ऐसी भावना मेरे अंदर पनप पाई । मैं केवल प्रभु का ही हूँ, यह गर्व रखना शास्त्रोचित है (अन्‍य सभी अहंकार त्याज्य होते हैं पर मैं सिर्फ प्रभु का ही हूँ और प्रभु सिर्फ मेरे हैं, इस अहंकार को शास्त्रोचित माना गया है) ।

पहली घटना - एक तीर्थ पर हमारा परिवार एवं ससुराल का परिवार साथ था । ससुराल के एक सदस्‍य ने बात-बात में कहा कि प्रभु की सेवा स्वयं हाथ से करें या किसी सेवक से करवाएँ, क्‍या फर्क पड़ता है- सेवा अच्‍छी हो तो सेवक से करवाने में भी क्‍या परहेज । पत्‍नी ने तुरंत उस बात का समर्थन कर दिया । उसके मन में भी ऐसी भावना दबी हुई है यह जानकर मुझे बहुत गहरा आघात लगा । हम बेटी को भी पराया करते हैं (ब्‍याह करते हैं) तो सब तरह से सौ बार सोचते हैं । प्रभु सेवा दूसरे को सौंप कर प्रभु को पराया करने की हम भावना अपने मन में ले आए और एक बार भी नहीं सोचा । जो सेवक होगा, उसके भी दो हाथ और दो पैर होंगे, जो हमारे भी हैं । फिर हममें क्‍या कमी है कि हमारी जगह हमारे प्रभु की सेवा कोई और करे । अगर प्रभु सेवा से भी ज्‍यादा, हमारे समय की हमें किसी अन्‍य प्रयोजन हेतु जरूरत है तो इससे बड़ा दुर्भाग्य मानव जन्‍म लेकर और क्‍या हो सकता है ।

दूसरी घटना - प्रभु का नया मंदिर घर पर बन रहा था । जिस कमरे में मंदिर बन रहा था उस कमरे में खिड़कियों का जोड़ा था, उनको मैं मंदिर में शामिल करना चाहता था जिससे मंदिर में हवा-रोशनी रहे । पत्‍नी अड़ गई । मंदिर के दरवाजे को मैं जिस दिशा में खोलना चाहता था, उससे हमारे बेडरूम के दरवाजे की कुछ व्‍यवस्‍था बिगड़ती थी । पत्‍नी फिर अड़ गई । मुझे बड़ा आघात लगा । मेरा पूरा प्रयास मेरे ठाकुरजी की सुविधा का ध्‍यान रखना है, न की खुद की सुविधा को तवज्जोह देना । मेरा काम मेरे ठाकुरजी की श्रेष्ठतम व्‍यवस्‍था घर पर करना है- अगर ऐसी श्रद्धा, आस्‍था और भावना नहीं होगी, तो कैसे श्री बैकुंठजी के ऐश्‍वर्य को छोड़कर प्रभु हमारे घर के मंदिर में और फिर हमारे मन-मंदिर में आएंगे ।

तीसरी घटना - ठाकुरजी के भोग में एक बार कांच का टुकड़ा आ गया । भोग की तैयारी पत्‍नी करती थी इसलिए आगे से भोग की सफाई, स्‍वच्‍छता हेतु दोगुने प्रयास की व्‍यवस्‍था लागु की । स्‍वच्‍छता हेतु दोगुने प्रयास की व्‍यवस्‍था से पत्‍नी चिढ़ गई और बोली कि एक बार कांच आ भी गया तो क्‍या हो गया । कांच आना निश्चित ही मानवीय चूक थी । गलती करना मानव का स्‍वभाव है पर मुझे आघात उस भावना के कारण लगा कि एक बार कांच आ भी गया तो क्‍या हो गया । मुझे लगा कि मेरे प्रभु की श्रीजिह्वा कितनी कमलरूपी कोमल है । कांच का टुकड़ा हमारी गलती से प्रभु के श्रीजिह्वा को वेदना दे और हमारे रोंगटे भी खड़े नहीं हो तो हम भोग सिर्फ मूर्ति को लगा रहे हैं, प्रभु को नहीं । प्रभु भोग के भीतर जाकर सिर्फ उसके भाव को ग्रहण करते हैं । संपादक टिप्पणी - हमें यह भी सोचना चाहिए कि एक बार प्रभु ने भी हमारी गाड़ी को पहाड़ से गिरते या अन्‍य विपदाओं, दुर्घटनाओं में हमें नहीं बचाया तो हमारा क्‍या हश्र होगा । प्रभु भी तो कह सकते हैं कि एक बार नहीं बचाया तो क्‍या हो गया ? परम दयालु, परम कृपालु परमपिता ऐसा कभी नहीं करते । दिन-रात हमें विपदाओं से, कठिन परिस्थितियों से, प्रतिकूलताओं से बचाते रहते हैं ।

चौथी घटना - प्रभु की सेवा में परिश्रम और गुणवत्‍ता की कमी के कारण पत्‍नी ने बौखला कर कह दिया कि मैं मंदिर की सेवा नहीं करूँगी । पत्‍नी ने मुझसे कहा कि आप खुद अकेले ही 15 दिन सेवा करेंगे तो पता चल जाएगा । मुझे गहरा आघात लगा कि प्रभु सेवा की गुणवत्‍ता बढ़ाने की जगह वह सेवा छोड़ना चाहती है । मैं पत्‍नी को सदैव कहता था कि घर कैसा भी अव्‍यवस्थित रखो, मुझे परवाह नहीं पर 8 x 7= 56 sq ft के मेरे प्रभु मंदिर को श्रेष्ठतम व्‍यवस्थित रखो । वह अपनी सेवा उठा नहीं पाई । मैं अपनी सेवा गिरा नहीं पाया । मेरी सिर्फ एक ही इच्‍छा थी कि तन-मन-धन से प्रभु की सेवा हो । सच्‍चे तन-मन-धन से, न कि आरती वाले "तन-मन-धन सब कुछ है तेरा" जो हम मात्र गान के लिए गाते हैं । मुझे खुद के लिए उस समय प्रभु कृपा के स्‍पष्‍ट दर्शन हुए । सम्‍पूर्ण प्रभु सेवा का इतना दुर्लभ मौका मेरे जीवन में उपस्थित हुआ । दोनों हाथों से मैंने प्रभु सेवा के मौके को पकड़ लिया । मैंने प्रभु अनुकम्‍पा का दर्शन किया जब मेरे शरीर के अंग प्रभु सेवा में और मेरा मन प्रभु साधन में अर्पण हो गया । प्रभु परीक्षा लेते हैं पर भक्त के लिए चुनाव इतना आसान कर देते हैं या यूं कहिए परीक्षा इतनी सरल कर देते हैं । मेरे जीवन का उदाहरण है कि मुझे प्रभु और पत्नी में से एक को चुनना था । पत्नी ने प्रभु को नहीं चुना तो मेरे लिए भी चुनाव एकदम आसान हो गया और मैंने भी पत्नी को नहीं चुना और प्रभु को चुन लिया । प्रभु की रसोई की, श्रृंगार की, पूजा की सेवा अकेले मैं करने लगा पर इससे मेरा श्रीग्रंथों का स्वाध्याय करना, संतों की श्रीग्रंथों पर टीकाएँ पढ़ना, प्रभु की कथा सुनना, भक्त चरित्र पढ़ना, प्रभु की वेबसाइट का कार्य करना सब कम होता गया । इसका मुझे बहुत दुःख होने लगा । प्रभु मन की सब भावना जानने वाले अन्तर्यामी हैं । एक दिन सुबह मंदिर में प्रभु की मानस सेवा की प्रेरणा हुई । मानस सेवा के बारे में मैंने भक्तों के चरित्र में पढ़ रखा था । मानस सेवा में हम उस भावना तक पहुँच सकते हैं जो हम वास्तव की सेवा में कर ही नहीं सकते । (उदाहरण स्वरूप मानस सेवा में मैं प्रभु को स्वर्ण के सिंहासन पर जो हीरे, मोतियों और रत्नों से जड़ित है उस पर आह्वान करके विराजमान करता हूँ । श्री गंगोत्रीजी जाकर वहाँ से स्वयं लाकर पवित्र और पावन भगवती गंगा माता के अमृततुल्य श्रीजल से प्रभु के श्री कमलचरणों को पखारता हूँ ।) मैंने प्रभु को धन्यवाद दिया कि आपने रास्ता दिखा दिया । अब मैं हाथों से भी बहुत ज्यादा सुबह जल्दी उठकर आपकी मानस सेवा करूँगा । हाथों की सेवा छोडूंगा नहीं पर अधिक मानस सेवा करूँगा और इससे मुझे श्रीग्रंथों के स्वाध्याय, संतों की श्रीग्रंथों पर टीकाएँ पढ़ने का, प्रभु की कथा सुनने का, भक्त चरित्र पढ़ने का, प्रभु की वेबसाइट का सुचारु कार्य करने के लिए पूरे दिन भर का समय मिल जाएगा ।

चारों घटनाओं में मानवीय चूक का कोई मुद्दा नहीं है । प्रभु हेतु भावना में चूक, प्रभु हेतु भावना का पतन ही मुख्‍य बात है । संपादक टिप्पणी - प्रभु हेतु भावना का पतन होते ही अनुकूलता हमारा साथ छोड़ देती है । यह स्‍पष्‍ट सिद्धांत समझना चाहिए ।

पत्‍नी से रिश्ता अब बेहद सामान्‍य और साधारण है क्‍योंकि दाम्‍पत्‍य जीवन में जो अनुकूलता थी, वह प्रभु कृपा के कारण ही थी । संपादक टिप्पणी - वैवाहिक गुण नहीं मिलने पर भी प्रभु कृपा दाम्‍पत्‍य जीवन में वैसे ही काम करती है, जैसे प्रभु कृपा बिन पानी के नाव चला देती है । इसका साक्षात उदाहरण यहाँ देखने को मिलता है ।

पत्‍नी के प्रति मेरे मन में धन्‍यवाद के अलावा कोई अन्‍य भावना नहीं है क्‍योंकि उसके व्‍यवहार ने ही मेरे जीवन में प्रभु सेवा और प्रभु सानिध्य में बढ़ोतरी का मौका प्रस्‍तुत किया ।

मेरे अपने जीवन में -
प्रभु की कृपा कहाँ तक गिनाऊँ !
प्रभु की कृपा कहाँ तक बताऊँ !
प्रभु की कृपा कहाँ तक दिखाऊ !

प्रभु का
संदीप रामनिवास कर्वा (चन्द्रशेखर)
जयपुर (राजस्‍थान)


संपादक टिप्पणी -
(1) स्त्री को भारतीय संस्कृति में देवी स्‍वरूप माना गया है । एक व्याख्या है कि जो स्त्री स्वयं को, अपने पति को, अपने परिवार को देव (प्रभु) से जोड़े, वही देवी कहलवाने योग्य है । भारत की परंपरा रही है कि स्त्री प्रभु कार्य (धर्माचरण) का दायित्‍व लेकर, इस हेतु परिवार में प्रेरणा बन कर ऐसे कार्य को बढ़ाती रहती है । तीर्थ सेवन, प्रभु कथा, कर्मकाण्ड, दान-पुण्‍य एवं अन्‍य धर्माचरण हेतु पति और परिवार को प्रेरित करती है । भारत की इस गौरवशाली परंपरा को कायम रखने की जरूरत है । इसलिए पुत्रियों में ऐसे संस्‍कार के बीज प्रधानता से बोने चाहिए । इसका एक कारण यह भी है कि यह उनके भावी दाम्‍पत्‍य जीवन की अनुकूलता बढ़ाने और प्रतिकूलता को समाप्‍त करने का साधन भी है ।

(2) हम पुत्रियों को उच्‍च शिक्षा देकर कितना भी सक्षम क्‍यों न बना दें, पर अगर प्रभु सेवा, प्रभु भक्ति के संस्‍कार देना भूल गए तो हमारी भी अवस्‍था पूर्वी देशों जैसी हो जाएगी जहाँ तलाक और दूसरी-तीसरी शादियाँ आम बात है । भारत में भी इस पूर्वी प्रचलन ने दस्‍तक दे दी है पर भारत में पुत्रियों के गौरवशाली बाल संस्‍कारों ने अभी हमें बचा रखा है । पुत्रियों के इस बाल संस्‍कार का महत्‍व समझते हुए इसे कायम रखने की आवश्‍यकता है । माता-पिता का दायित्‍व निभाते हुए अगर हम पुत्रियों में प्रभु सेवा, प्रभु भक्ति रूपी संस्‍कार का संचार कर देते हैं तो धर्मशास्त्रों में वर्णित सभी स्त्री गुण स्वतः ही धीरे-धीरे उनमें विकसित होते चले जाएंगे । क्‍योंकि एक सिद्धांत है - सभी सद्गुणों के मूल में प्रभु हैं । एक सिद्धांत यह भी है - सभी सद्गुण प्रभु की छाया मात्र है, प्रभु जहाँ होंगे यह सभी सद्गुण अपने आप वहाँ पहुँच ही जाएंगे ।

(3) प्रभु धन, ऐश्‍वर्य जल्‍दी दे देते हैं - यह प्रभु के दर की मिट्टी है । मिट्टी देने में देरी नहीं होती । मोक्ष भी प्रयास करने पर प्रभु दे देते हैं । मोक्ष मुक्ति है । साधक भी मुक्‍त हो जाता है और प्रभु भी साधक से मुक्‍त हो जाते हैं । पर प्रभु से भक्ति का दान पाना बहुत दुर्लभ होता है क्‍योंकि भक्ति से प्रभु स्‍वयं भक्त के बंधन में आ जाते हैं (मैं भक्‍त के पराधीन हूँ - यह प्रभु का श्रीवचन है) । प्रभु को प्रेम बंधन में बाँधने के लिए बहुत भक्तिभाव की जरूरत होती है । इसलिए जिस घर में भी प्रभु सेवा, प्रभु भक्ति है, उसे किसी भी सूरत में कायम रखना और बढ़ाना चाहिए । जिस घर में ऐसा नहीं है, वहाँ इसकी शुरुआत करनी चाहिए । स्त्री इसके लिए सबसे बड़ा योगदान दे सकती है और उन्‍हें अपने स्‍वयं के मंगल, अपने दाम्‍पत्‍य के मंगल और अपने बच्‍चों के मंगल के लिए ऐसा करना चाहिए ।



नाम / Name : संदीप रामनिवास कर्वा (चन्द्रशेखर)
प्रकाशन तिथि / Published on : 19 अगस्‍त 2012

संक्षिप्त प्रेषक परिचय / Brief Introduction of Sender : मैं, संदीप रामनिवास कर्वा (चन्द्रशेखर), उम्र 42 वर्ष, जयपुर (राजस्‍थान) निवासी रियल एस्टेट के व्‍यवसाय में हूँ । भारत की दिव्‍यतम आध्‍यात्‍म धरोहर ने मुझे गदगद कर दिया है । प्राचीन भारतीय श्रीग्रंथों, ऋषियों, भक्‍तों और संतों के मार्गदर्शन से अभिभूत हूँ । भारतीय संस्कृति और विरासत मुझे बेहद प्रिय हैं और मुझे सर्वाधिक गर्व भारतीय होने पर है । मानव का तन और भारत में जन्‍म - यह बड़ा दुर्लभ संयोग होता है (पर हम प्रभु की इस कृपा को कोई तवज्जोह नहीं देते) । तीन वाक्‍य मुझे बेहद प्रिय हैं और मेरे जीवन का फलसफा इनमें छुपा है -
(1) If you go with GOD, destiny will always take you where the grace of GOD will be ready to protect you.
(2) Everything in the world, every science in the world, every process in the world has its definite limitations but GOD has absolutely no limitations. He delivers freely by His divine grace.
(3) If we are able to uphold the firmest of firm faith in GOD, He never fails in our distress or even otherwise.
4 Real-life memoir by Ms. Manisha Belani titled A MIRACLE IN MY LIFE
Indexed as (1) MEDICAL MEMOIR


Editor's Introduction : This memoir shows how GOD's kindness works during a medical crisis. Whoever seeks GOD's kindness during the period of medical crisis is able to tide over the difficult time successfully. The memoir tries to reflect this viewpoint.

Editor's Request : You may email this memoir to anyone presently experiencing a medical crisis in life for motivation. You may share this memoir directly via Email, Facebook, Twitter and various other social networks with the help of Share-Button available on the right vertical of this page.


A MIRACLE IN MY LIFE

It was the end of Jan 2012, when I came back from work and rushed to my room. I was in a haste to reach out to my study table. I did not realize that room cleaning was going on. I slipped on the ground. Till to date, I remember I felt a terrible current and shiver in my body. My legs were apart and therefore, it took around five minutes for me to get up from the ground.

The fall had created an internal tremor but I did not bother and I continued working, living a routine life. As time passed, on 20th Feb 2012 my left leg started paining very badly. I could not even walk. I kept wondering what had happened suddenly. I applied balms and home remedies but to no avail. I had to drag my foot. Finally, the pain was unbearable and I visited Doctor Srinivasan of Bangalore, as I stay in Bangalore.

Doctor Srinivasan is a reputed and experienced doctor and he immediately said that it is a lower back Slip Disc. Doctor asked me to go to a Diagnostic Scan Centre and to get an MRI scan of my lower back.

Knowing that I am in a serious problem, I prayed and prayed to GOD to please cure me. I kept saying "I want to serve you ! LORD BALAJI". Editor's comment - A true prayer to GOD from the bottom of your heart at the very beginning of your problem is half the battle won. The other half battle is our test whether we are able to keep our trust intact in GOD during a crisis. If we are able to do both, we surely come out as winners. There are umpteen examples of this in present times, one such example is this. The report was brought out by the Radiologist of the Diagnostic Center on 24th February 2012.

The lower back Slip disc was confirmed by Doctor Srinivasan. What was an apprehension earlier was now confirmed. The doctor said very clearly that 6 months' rest was foremost and mandatory. Also, Doctor Srinivasan was very candid that if things do not improve by then, he would have to operate on me and put a steel part in my body. After that when I move around I have to wear the belt continuously for many months. I could not afford such a long leave from my office, as I knew I will lose my job.

I was under terrible mental stress but the best thing I did was - I did not lose my faith in GOD. At heart, I did not agree with the doctor that I would not be able to move about for 6 months and would require surgery.

I just prayed and prayed, as I was on the bed, I kept saying "I know you LORD BALAJI, you have so many plans for me. I know that you are so kind and you change my fate, even if I was destined to lie on a bed. I know my LORD BALAJI very well, you have always stood by me."

I applied Kerala oil for back pain and I did hot water treatments, my left leg was fine in twenty days and started moving without pain. To my surprise, I felt perfectly fine after 1½ months of rest at home. It was my faith in GOD that had cured me in so little time when medical science had predicted a possible surgery and a long period of rest. Editor's comment - At the bottom of our heart, we must always make a habit to give credit for everything good that unfolds in our life to GOD. For doing this we need to have devotional eyes to see His invisible Holy hands behind everything good that occurs.

I told my father to take me to Doctor Srinivasan. When I went and met the doctor, after his tests, he too was surprised and he said - "You can go to work".

I thanked my GOD at that very moment as I knew He had bestowed me with His kindness in my distress. I said "I am happy that you connect with my prayers ! LORD BALAJI, you are great and I will come soon to Tirumala to thank you for being so very loving and caring and for always being so kind to me."

Manisha Belani
Bengaluru


Editor's Comments -
(1) Spiritually, there are three-stages to a crisis, be it a medical crisis, family crisis, financial crisis or any crisis under the sky. At the beginning of all crises, we must seek GOD's kindness by real devotion and must surrender to GOD. During the crisis, we must keep our firmest of firm faith in GOD. At the end of it, after we come out as winners by the grace of GOD, we must thank Him for His mercy. This memoir shows all three stages.



नाम / Name : Ms. Manisha Belani
प्रकाशन तिथि / Published on : 23 August 2012

संक्षिप्त प्रेषक परिचय / Brief Introduction of Sender : I, Manisha Belani, 35 years, am working as Asst. Manager PR and Client Servicing in Flags Communications Pvt. Ltd. I am fun-loving, bubbly and full of life. I love to write poems, also I love to sing and to dance. I believe humanity is the greatest gift we can give GOD. Real gratitude to GOD is in giving, that's the actual living.
I live for GOD Shree Krishnaji and I will work for GOD Shree Krishnaji. As GOD Shree Krishnaji is my love and meaning of my life !
I write poems based on ShriMad Bhagwad Geetaji and Vedanta, as it would inspire many. An excerpt from one of my poem on LORD BALAJI

BALAJI GOD has a very soft heart,
He gives and gives and fills each one’s desire cart !

BALAJI GOD has one hand towards himself,
He is waiting for devotees to surrender themselves !

BALAJI GOD wants to hold our life throughout,
Filling it with blessings, joy & love,
Removing all the struggles mysteriously out !
5 Real-life memoir by Mr. Roshan Gupta titled सच्चे हृदय से किसी की मदद के संकल्प को पूर्ण करते हैं प्रभु
Indexed as (1) HELPING-HAND MEMOIR


Editor's Introduction : This memoir shows how GOD's kindness works during our effort to help or do well for others. If you get an inner call that leads us to help someone, we should consider ourselves fortunate to be chosen by GOD for the job. Because we then become the medium for the invisible Holy hands of GOD at work.

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सच्चे हृदय से किसी की मदद के संकल्प को पूर्ण करते हैं प्रभु

बात करीब 7 वर्ष पहले की है । मेरी सबसे अच्छी दोस्त को एक पुस्तक की बहुत आवश्यकता थी, क्योंकि 7 दिनों के बाद उसकी परीक्षा थी । किसी कारणवश उसके लिए बाजार जाना संभव नहीं था इसलिए उसने मुझे वह पुस्‍तक बाजार से लाकर देने का आग्रह दिया । उसने पहली बार मुझे कोई काम बताया था । कहीं न कहीं मेरे मन में उसके लिए एकतरफा प्रेम छिपा था इसलिए मैं भी खुशी-खुशी स्थानीय खजुरी बाजार किताब को लेने तत्काल चला गया । वहाँ जाकर ये पता चला कि वो किताब तो किसी भी दुकान पर उपलब्ध नहीं थी, 2 घंटों में लगभग पूरा बाजार छान मारा । अब मन दुःखी होने लगा था, थकान भी होने लगी थी । 7 दिनों के बाद उसकी परीक्षा और पहली बार मुझे कोई काम बताया था इसलिए मना करने की इच्छा भी नहीं हो रही थी । जब मैं किताब की खोज में आया था तो मन में निश्चय करके आया था कि कहीं से भी हो, उसे किताब लाकर देना ही है । लगातार दुकानों में मनाही के बाद भी मन में प्रण किया था कि जाऊंगा तो किताब लेकर ही जाऊंगा । पर जितना भी मेरे से संभव था, सारे प्रयास कर लिए थे । लेकिन अंत में मुझे निराशा ही हाथ लगी ।

बहुत सोचने पर एक पुराने दोस्त का ध्यान आया क्योंकि उसने कभी बताया था कि वो उसी बाजार में काम करता है । लेकिन उससे तो मिले ही सालों हो गए थे और उसका कुछ अता-पता भी मुझे नहीं था । उसे खोजने का कोई उपाय नहीं था, इसलिए उसे खोजना मेरे लिए संभव ही नहीं था । कोई विकल्‍प नहीं बचा है, यह जानकर मेरे मन में अब निराशा हावी होने लगी थी । तभी अचानक क्या देखता हूँ कि वही पुराना दोस्त सामने से चला आ रहा है, उसे देखकर मैं आश्चर्यचकित रह गया और उसे एकटक देखने लगा । अभी उसके बारे में सोच ही रहा था कि वह एकदम मेरे सामने आ गया इसलिए मेरे आश्चर्य की कोई सीमा नहीं थी और इस कारण मेरे मुँह से शब्द भी नहीं निकले । तब वो खुद ही मेरे पास आया और बोला "क्या हाल−चाल है, कोई काम हो तो बताना" । संपादक टिप्पणी - एक सिद्धांत है कि जब प्रभु इच्‍छा करते हैं, तो प्रभु की मदद या तो किसी रूप में हमारे समक्ष पहुँच जाती है या फिर हम कैसे भी मदद तक पहुँच जाते हैं । दोनों में से एक काम होकर रहता है । इस सिद्धांत पर पूर्ण विश्‍वास होना चाहिए । मैंने उसे उस किताब के बारे में बताया । वो मुझे एकदम सामने वाली दुकान पर ले गया ओर दुकानवाले से बोला "ये मेरा दोस्त है, इसे इस किताब की जरूरत है" । दुकानवाले ने दो मिनट में वो किताब निकालकर दे दी । मैंने 2 घंटों में लगभग पूरा बाजार छान मारा था, कोई भी दुकान बाकी नहीं छोड़ी थी, इसलिए मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि किताब इतनी तत्काल कैसे मिल गई । संपादक टिप्पणी - प्रेषक के अनुभव से स्‍पष्‍ट है कि उस दुकान में वह किताब उपलब्‍ध नहीं थी । पर प्रेषक के मन में मदद करने का सच्‍चा संकल्‍प था जिसकी पूर्ति हेतु प्रभु ने ऐसी व्‍यवस्‍था करवा दी ।

मैंने उस दोस्त को धन्यवाद देना चाहा और पीछे घूमा तो देखता हूँ कि वो तो वहाँ है ही नहीं । मैंने उसे आस-पास सब जगह ढूंढा पर वह नहीं मिला । बाद में मुझे समझ आ गया कि वो मेरा दोस्त नहीं था, उसके रूप में भगवान ने प्रत्यक्ष मदद भेजी थी । जब भी हम सच्चे हृदय से किसी की मदद का बीड़ा उठाते हैं, भगवान हमारी सहायता करके उस नेक कार्य की पूर्ति करते हैं । इस घटना के पहले भगवान में बहुत कम विश्वास था लेकिन उस दिन जो चमत्कार देखा, साक्षात प्रभु कृपा को महसूस किया ।

रोशन गुप्‍ता
इन्‍दौर


Editor's Comments -
(1) हमारे जीवन में नेकी करने के मौके प्रभु कृपा से उपलब्‍ध होते हैं । इसलिए ऐसे मौके हमें जीवन में कभी चूकने नहीं चाहिए । नेक बंदे और नेकी का कार्य प्रभु को प्रिय होते हैं । इसलिए जीवन में की हुई नेकी हमेशा फलती है क्‍योंकि उसके प्रसाद रूप में पुण्य का फल प्रभु हमें देते हैं ।



नाम / Name : Mr. Roshan Gupta
प्रकाशन तिथि / Published on : 24 अगस्‍त 2012

संक्षिप्त प्रेषक परिचय / Brief Introduction of Sender : I, Roshan Gupta, 29 years, am working as an academic counselor in a private institute in Indore.
Talking to young persons, listening to their difficulties and giving them practical solutions is my work as well as a hobby.
My life's objective is very different. It is helping others in fulfilling or achieving their life's objective without any expectations from them. This is also my passion.
I take this as indirect worship of GOD as He is within me and within everyone.
6 Real-life memoir by Mr. Sandeep R Karwa (Chandrashekhar) titled प्रभु कृपा से एक परिर्वतन
Indexed as (1) CONFESSION MEMOIR (2) MATRIMONY MEMOIR


Editor's Introduction : This memoir is a confession memoir. The sender has confessions in life, as everyone would have but the courage to speak out is only due to GOD's kindness. We all make blunders in life and hide them under the carpet and even forget it. In the Holy Text, a lot of emphasis is given to confession. Nothing is hidden from GOD, not even our thoughts which had even not come upon our lips. This memoir, which is a confession, qualifies for this section because it also shows a total U-turn (from hiring a cocotte to celibacy) which was only possible because of GOD's kindness.

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प्रभु कृपा से एक परिर्वतन

अपनी गलती का सच्‍चा पश्चाताप उसे छुपाने में नहीं बल्कि उसे सबको बताने में होता है । छिपाने का कोई कारण नहीं रह जाता क्‍योंकि परमपिता परमेश्‍वर से तो कुछ भी छुपाया नहीं जा सकता । जब प्रभु को सब कुछ ज्ञातव्‍य है तो बाकी किसी से छुपाने का कोई हेतु या कारण नहीं बचता । गलत कार्य छुपाना ही है तो प्रभु से छुपाना चाहिए और प्रभु से छुपाने का एक ही उपाय है कि वह गलत कार्य किया ही न जाए ।

नारी में आकर्षण और कामुकता मुझे प्रिय थी । यही कारण था कि एक गलत संगति के कारण विवाह पूर्व 3 बार मैंने वैश्‍यागमन भी किया । यह नैतिकता का पतन था जो उस समय जवानी के मौज एवं अति संपन्न लोगों के शौक पूर्ति के रूप में सामान्‍य बात मुझे लगी थी ।

विवाह के बाद पत्‍नी से प्रेम इतना हुआ एवं पूर्ण एकनिष्‍ठा थी इसलिए विवाह के बाद कभी भी कोई गलत कार्य नहीं हुआ । यह प्रभु कृपा ही होती है कि पति का मन पत्‍नी में रम जाए और कहीं अन्यत्र नहीं भटके । संपादक टिप्पणी - जहाँ ऐसा है वहाँ पत्‍नी को इसे प्रभु कृपा प्रसादी माननी चाहिए और जहाँ ऐसा नहीं है वहाँ पत्‍नी को प्रभु के श्रीकमलचरणों में अनन्यता से ऐसी अरदास नित्‍य करते रहना चाहिए ।

जब प्रभु में भक्ति बढ़ने लगी तो यह पूर्व किया हुआ गलत कृत्य मुझे वेदना देने लगा । विवाह के 10 वर्षों तक जो बात कभी मन में भी नहीं आई थी एवं जिसकी तरफ लेशमात्र ध्‍यान भी कभी नहीं गया था और जो गलत प्रतीत ही नहीं हो रहा था, वही बात अब वेदना देने लगी । मन कहने लगा कि पत्‍नी को यह गलती बतानी चाहिए, तभी मन का बोझ हल्‍का होगा एवं प्रभु के समक्ष सच्‍चा प्रायश्चित होगा । संपादक टिप्पणी - एक तथ्य यहाँ स्‍पष्‍ट होता है कि प्रभु की भक्ति कैसे आत्‍म शुद्धि करती है । दूसरा विचार आया कि यह विवाह पूर्व का कृत्य है, विवाह के बाद पूर्ण एकनिष्‍ठा है, कभी भी कहीं भी कोई चूक नहीं हुई है तो फिर उसे बता कर अपने पैरों पर कुल्हाड़ी क्‍यों मारी जाए ? कहीं पत्‍नी से मधुर रिश्ते बिगड़ न जाएं । बात पुरानी है, अभी तक किसी को भी पता नहीं है, आगे पता लगने की कोई संभावना भी नहीं है ।

पर प्रभु भक्ति की शक्ति देखें कि इन दो भावों ने पूरी बात ही समाप्‍त कर दी । पहला भाव आया कि जब प्रभु को पता है तो अन्‍य किसी से भी छुपाने का कोई औचित्य नहीं बचता । गलत कृत्य का डर, शर्मिंदगी, जवाबदेही प्रभु के समक्ष होनी चाहिए और प्रभु से माफी तभी मिलती है जब सच्‍चा पश्चाताप हो । सच्‍चा पश्चाताप क्‍या है - गलत कृत्य को गलती के रूप में हृदय की गहराई से स्‍वीकार किया जाए एवं गलती जीवन में नहीं दोहराने का पूर्ण संकल्‍प बने । दूसरा भाव आया कि पति-पत्‍नी के रिश्ते की मधुरता प्रभु कृपा के कारण ही होती है । प्रभु की कृपा बनी रहेगी तो कुछ भी बताने के बाद भी दाम्‍पत्‍य की मधुरता जस-की-तस बनी रहेगी ।

काफी कशमकश के बाद प्रभु प्रेरणा हुई और प्रभु कृपा के कारण इतना आत्‍मबल उदित हुआ कि पत्‍नी को एकांत में यह रहस्‍य बताया । प्रभु की कृपा स्‍पष्‍ट दिखी एवं हम दोनों पति-पत्‍नी हाथ में हाथ पकड़े रोते रहे । पत्‍नी गदगद थी प्रेम में क्योंकि मेरे प्रभु ने उसके मन में मेरे लिए सम्‍मान और प्रेम बहुत बढ़ा दिया था । मैं गदगद था कि मेरे पश्चाताप को मेरे करुणानिधान प्रभु ने स्‍वीकार कर लिया था ।

उसके बाद के 6-7 वर्ष बहुत ही मधुर दाम्‍पत्‍य संबंध के थे । विवाह के बाद के सर्वोत्तम वर्ष यही थे । इसमें प्रेम और अधिक परिपक्‍व हो गया था । परिपक्‍व प्रेम के बड़े शिखर को जैसे हम दोनों ने छू लिया था । यह मात्र और मात्र प्रभु की अदभुत कृपा थी, प्रभु के श्रीकमलचरणों में सच्‍चे पश्चाताप का मीठा फल था ।

मेरी प्रभु भक्ति बढ़ने लगी थी । हम पति-पत्‍नी नित्‍य प्रभु सेवा करते थे, प्रभु पूजन, प्रभु भजन आदि नित्‍य होते थे । सब ठीक चल रहा था, तभी एक-एक करके चार घटनाएं जीवन में घटी (जिसका विवरण इसी वेबसाइट के "प्रभु कृपा के दर्शन" स्तम्भ के क्रमांक 3 पर "दाम्‍पत्‍य जीवन में प्रभु कृपा" नामक आलेख में मिलेगा) ।

पत्‍नी ने प्रभु सेवा छोड़ी और उसके स्‍वभाव में परिवर्तन आना शुरू हुआ । उसने सामने बोलना शुरू किया, अपमान करना शुरू किया और पूर्णतः अमर्यादित शब्‍दों का प्रयोग करने लगी । संपादक टिप्पणी - अपनों की वाणी कितना आघात, कितनी वेदना दे सकती है यह प्रत्‍यक्ष अनुभव करने पर पता चलता है । संसार के बड़े से बड़े घाव तलवार से नहीं अपितु वाणी से हुए हैं, यह तथ्य तभी समझ में आता है । इतना समझने पर आगे की बात समझ में आती है जो श्रीमद् भगवद् गीताजी में प्रभु के श्रीवचनों में देवीगुणों के तहत "अहिंसा" और उसमें "वाणी की अहिंसा" के रूप में प्रभु द्वारा उद्घोषित किया गया है । प्रभु द्वारा मानव कल्‍याण हेतु जो सूत्र बताए गए हैं उसका आज यथार्थ में कितना बड़ा महत्‍व है, यह स्‍पष्‍ट प्रतीत होता है ।

मुझे पता था कि हमारी अनुकूलता मात्र और मात्र प्रभु कृपा के बल पर ही थी क्‍योंकि शुरू से ही व्यावहारिक रूप से में हमारे एक भी गुण कभी नहीं मिलते थे । पत्‍नी ने प्रभु सेवा छोड़ी, अनुकूलता हटी और हमारे रिश्‍ते में इतना पतन हुआ कि पत्‍नी ने मेरे ऊपर हाथ उठा लिया । मुझे प्रेम करना तो बहुत अच्छी तरह से आता था पर पत्‍नी के इस तमाचे ने मेरे प्रेम करने की दिशा बदल दी । मेरे मन में संकल्प हुआ कि अब मैं दोबारा किसी संसारी से प्रेम नहीं करूँगा, अब मैं केवल और केवल जीवन भर प्रभु से प्रेम करूँगा । संपादक टिप्पणी - प्रेम करना सभी को आता है, सभी किसी ने किसी से प्रेम करते हैं, यहाँ तक कि जानवर भी प्रेम करना जानते हैं । जरूरत है तो बस इस प्रेम की दिशा को संसार से मोड़कर प्रभु की तरफ करने की ।

यह संकेत था कि पलकों पर मैंने पत्‍नी को जो बैठा रखा था, वह गलत था । अब वह स्वतः ही वहाँ से उतर चुकी थी । भक्ति जल से पलकों का शुद्धिकरण करके अब सदैव के लिए सिर्फ और सिर्फ प्रभु को मैंने वहाँ विराजमान कर लिया ।

पत्‍नी द्वारा वेदना पहुँचाने का दुःख भी इस तरह जाता रहा । कामुकता के कारण पति अपनी पत्‍नी की वेदना को भी सहता है । प्रभु ने इतनी कृपा कर दी कि जीवन से कामुकता का ही क्षय हो गया । प्रभु की चौखट पर सच्चे पश्चाताप का फल था कि नैतिकता का पतन फिर मेरे प्रभु ने कभी नहीं होने दिया । काम वासना के कारण मन कभी भी पत्‍नी से प्रतिकूलता के बाद भी अन्यत्र नहीं भटका । इंटरनेट पर कामुकता के इतने साधन उपलब्‍ध हैं पर इंटरनेट का व्‍यापार में इस्‍तेमाल करते हुए भी कभी हाथों ने गलत शब्‍द को टाइप नहीं किया या कंप्यूटर माउस से गलत साइट को क्लिक नहीं किया । संपादक टिप्पणी - इसे भक्ति के कारण प्रभु की असीम से भी असीम कृपा माननी चाहिए, नहीं तो पारिवारिक प्रतिकूलता के कारण व्‍यक्ति अवसाद में चला जाता है या गलत दिशा में मुड़ जाता है ।

भक्‍तराज श्री नरसी मेहताजी का एक भजन "वैष्णव जन तो तेने कहिए" (जो महात्मा गांधीजी का प्रिय भजन है) की एक पंक्ति "परस्त्री जेने मात रे" ने मुझे बहुत प्रभावित किया । भक्ति ने मेरे भीतर भावना पैदा कर दी कि सच्‍चा वैष्णव भक्‍त वही होता है जो किसी भी परस्त्री को माता के रूप में देखे ।

मर्यादा पुरुषोत्तम मेरे प्रभु श्री रामजी का जीवन मेरे लिए परम और पुनीत आदर्श रहा है । प्रभु का एकपत्‍नीव्रत और अन्‍य सभी स्त्रियों को मातृशक्ति के रूप में देखने का परम आदर्श जो मेरे प्रभु ने स्‍थापित किया वह मेरे लिए प्रेरणापुंज बन गया ।

पत्‍नी के जिस शरीर ने प्रभु की सेवा छोड़ी, उस शरीर के साथ संबंध रखने का कोई मतलब नहीं रहता । इसलिए ब्रह्मचर्य व्रत का एक पुष्‍प मैं अपने प्रभु के श्रीकमलचरणों में अर्पण करूँ - ऐसा मौका प्रभु प्रेरणा से जीवन में उपस्थित हो गया । प्रभु ने यह ब्रह्मचर्यरूपी पुष्‍प स्‍वीकार कर लिया । संपादक टिप्पणी - प्रभु की असीम कृपा देखें कि एक कामातुर व्‍यक्ति जिसने अपने जीवन में वैश्‍यागमन भी किया, प्रभु ने उस व्‍यक्ति को स्‍वेच्‍छा से ब्रह्मचर्य व्रत लेने जितना सार्मथ्यवान बना दिया । यह कोई मजबूरी में लिया ब्रह्मचर्य नहीं था । पत्‍नी सब तरह से आज भी वैवाहिक जीवन की अनुकूलता वापस पाने के लिए प्रयासरत है ।

मेरे मन में भी पत्‍नी के प्रति कोई क्षोभ नहीं है । बच्‍चों और कर्मचारियों के बीच पत्‍नी से भयंकर अपमानित होने पर भी कोई द्वेष या बदले की भावना नहीं है । यह भी प्रभु की असीम कृपा है क्‍योंकि पूर्व में मेरा भयंकर क्रोधपूर्ण स्‍वभाव था । पता नहीं क्रोध में मैं क्‍या कदम उठा लेता क्‍योंकि क्रोध व्‍यक्ति को अंधा कर देता है और उसकी विवेक की आँखें बंद हो जाती हैं । पर प्रभु की भक्ति ने मेरे क्रोध का भी क्षय कर दिया था । पत्‍नी के प्रति हार्दिक धन्‍यवाद की भावना के अलावा कोई प्रतिकूल भावना नहीं है, धन्‍यवाद इसलिए क्‍योंकि उसके इस व्‍यवहार के कारण ही मेरे जीवन का ब्रह्मचर्यरूपी एक दुर्लभ पुष्‍प मैं मेरे प्रभु के श्री कमलचरणों में अर्पण कर पाया ।

अंत में मझे इतना ही कहना है कि अगर आपको अपने इस जीवन को अपना अंतिम जन्म बनाना है, संसार में आवागमन से सदैव के लिए मुक्त होना है, किसी के भी गर्भ में दोबारा नहीं पड़ना है और प्रभु के श्रीकमलचरणों में सदैव के लिए पहुँचना है तो ऐसा जीवन साथी चुने जिसमें आपसे अधिक प्रभु भक्ति हो, जो आपको संसार की तरफ नहीं बल्कि प्रभु की तरफ खींचे । अगर आपको अपना उद्धार और कल्याण नहीं करना तो आप जीवन साथी के चुनाव में रूप, डिग्री, धन के पीछे जाने के लिए स्वतंत्र है, जो आज हो ही रहा है । हम लड़के-लड़की का रिश्ता करते हैं तो बंगला, गाड़ी, फैक्ट्री, व्यापार, प्रतिष्ठा देखते हैं पर उस घर में प्रभु की कितनी भक्ति या प्रभु की कितनी सेवा होती है यह कभी नहीं देखते । यह कितना बड़ा दुर्भाग्य है । संतों से सुना हुआ है कि अभी अंतरिक्ष में कितनी दिव्य आत्माएँ धरती पर ऐसे सात्विक पिंड की तलाश में हैं जिनके गर्भ से वे जन्म लेकर प्रभु का कार्य कर सकें । हम अपने पूरे जीवन भर की कमाई धन-संपत्ति को सत्कर्म हेतु दान या उपयोग करके भी ज्यादा से ज्यादा स्वर्ग की प्राप्ति कर सकते हैं पर कोई भक्त यदि हमारे कुल में जन्म लेने के लिए उसे चुनता है तो वह उस कुल की इक्कीस पिछली पीढ़ियों और इक्कीस आने वाली पीढ़ियों का बैठे−बिठाए उद्धार कर देता है और उन्हें स्वर्ग नहीं बल्कि उससे भी कोटि गुना ज्यादा दुर्लभ प्रभु के धाम सदैव के लिए पहुँचा देता है ।

पत्नी के व्यवहार से आघात होने के बाद मैं खून के, परिवार, समाज के रिश्ते को ज्यादा तवज्जोह नहीं देता । भक्ति ने मुझे सिखाया है कि क्योंकि मैं केवल प्रभु का हूँ इसलिए जो प्रभु से जुड़ा हुआ है वही मेरा अपना है फिर चाहे वह किसी भी पंथ, धर्म, रंग, जाति, लिंग या देश का हो । मैं एक त्रिकोण को मनाता हूँ जिसके ऊपर के कोण में मेरे प्रभु हैं और नीचे के एक कोण में मैं हूँ और दूसरे कोण में जो भी प्रभु से जुड़ा हुआ है वह है । इस तरह हर कोई जो प्रभु से जुड़ा हुआ है वह मुझसे अपने आप ही जुड़ा हुआ है । इसलिए मेरी रिश्तेदारी केवल प्रभु के अपनों से ही है, प्रभु के चहेतों से ही है ।


मेरे अपने जीवन में -
प्रभु की कृपा कहाँ तक गिनाऊँ !
प्रभु की कृपा कहाँ तक बताऊँ !
प्रभु की कृपा कहाँ तक दिखाऊ !

प्रभु का
संदीप रामनिवास कर्वा (चन्द्रशेखर)
जयपुर (राजस्‍थान)


नाम / Name : संदीप रामनिवास कर्वा (चन्द्रशेखर)
प्रकाशन तिथि / Published on : 27 अगस्‍त 2012

संक्षिप्त प्रेषक परिचय / Brief Introduction of Sender : मैं, संदीप रामनिवास कर्वा (चन्द्रशेखर), उम्र 42 वर्ष, जयपुर (राजस्‍थान) निवासी रियल एस्टेट के व्‍यवसाय में हूँ । भारत की दिव्‍यतम आध्‍यात्‍म धरोहर ने मुझे गदगद कर दिया है । प्राचीन भारतीय श्रीग्रंथों, ऋषियों, भक्‍तों और संतों के मार्गदर्शन से अभिभूत हूँ । भारतीय संस्कृति और विरासत मुझे बेहद प्रिय हैं और मुझे सर्वाधिक गर्व भारतीय होने पर है । मानव का तन और भारत में जन्‍म - यह बड़ा दुर्लभ संयोग होता है (पर हम प्रभु की इस कृपा को कोई तवज्जोह नहीं देते) । तीन वाक्‍य मुझे बेहद प्रिय हैं और मेरे जीवन का फलसफा इनमें छुपा है -
(1) If you go with GOD, destiny will always take you where the grace of GOD will be ready to protect you.
(2) Everything in the world, every science in the world, every process in the world has its definite limitations but GOD has absolutely no limitations. He delivers freely by His divine grace.
(3) If we are able to uphold the firmest of firm faith in GOD, He never fails in our distress or even otherwise.
7 Real-life memoir by Mrs. Prema VasantRao Rashatwar titled एक सुखद अनुभव
Indexed as (1) HELPING-HAND MEMOIR


Editor's Introduction : This memoir shows how GOD's kindness helps us when we undertake to work for the cause of GOD. If we selflessly do so, we get divine help all the way in our endeavor. Because it is GOD's work and therefore the invisible Holy hands of GOD are always on our side to protect us, help us and lead us to our goal.

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एक सुखद अनुभव

दिसम्बर 2008 की बात है । हर शनिवार को मैं नियमित रूप से बाल संस्कार की 1 घंटे की कक्षा नगर परिषद विद्यालय, यवतमाल में लेती हूँ । बाल संस्कार के कार्य से जुड़ने के कारण मुझे ऐसी अनुभूति होती है मानो मेरे प्राण, मन और इंद्रियाँ नित्य प्रभु श्री बालकृष्णजी से जुड़े रहते हैं । संपादक टिप्पणी - प्रभु के कार्य में तन-मन से जुड़ने पर ही ऐसी अनुभूति जगती है, फिर प्रभु कृपा अदृश्य रूप से हमारे साथ रहती है । यह तथ्‍य इस प्रसंग में आगे देखने को मिलेगा ।

किसी कारणवश दो शनिवार से मैं बाल संस्कार की कक्षा नहीं ले पाई, इस कारण मन व्याकुल था । पर ज्यादा चिंता इस बात की थी कि आज भी किसी कारणवश मैं कोई तैयारी नहीं कर पाई हूँ । कक्षा में पढ़ाने के लिए नया कुछ पढ़ कर तैयार नहीं किया था । दो बार की चूक हो चुकी थी इसलिए आज कक्षा लेने की इच्छा तो जरूर थी, पर आज कुछ नया नहीं बोल पाऊँगी - इस बात का दुःख और पछतावा था । मैंने प्रभु का स्‍मरण किया और मेरे मन में ऐसा संकल्प उठा कि आज तो प्रभु आपको ही प्रत्यक्ष नैया पार लगानी है ।

हमेशा की तरह मैंने कक्षा में मंगलाचरण, प्रातःस्‍मरण से शुरू किया और कक्षा के अंत में धन्याष्टकम तक कैसे पहुँच गई, पता ही नहीं चला । सबसे बड़ा आश्चर्य तो अभी बाकी था । जो आज तक कभी नहीं हुआ वह दृश्य मैंने देखा कि विश्रामगृह से निकल कर अन्य सभी गुरुजन, स्कूल के कर्मचारी मेरी कक्षा के बाहर खड़े थे और मेरा व्याख्यान बड़े गौर से सुन रहे थे और आश्चर्य से मुझे देख रहे थे । मैंने क्या बोला वह मुझे भी पता नहीं था पर वे आश्चर्य व्‍यक्त‍ कर रहे थे कि मैंने इतना सुन्दर व्याख्यान कैसे दे दिया । बालक, बालिकाएं भी अवाक थे और एकाग्रचित्त होकर सुन रहे थे ।

विद्यालय से निकल कर मैं धीरे-धीरे घर की ओर चलने लगी । चलते समय सोचने लगी कि आज मैंने ऐसा क्या पढ़ा दिया जिसको सुनने के लिए स्कूल के सभी गुरुजन, कर्मचारी मेरी कक्षा की ओर खींचे चले आए ।

फिर याद आया कि मैंने प्रभु का आश्रय लिया था, आज प्रभु की वाणी ही मेरे मुँह से स्वतः निकल रही थी । संपादक टिप्पणी - किसी प्रतिकूल परिस्थिति में सच्‍चे मन से लिया प्रभु का आश्रय, उस परिस्थिति को तत्‍काल अनुकूल कर देती है । "प्रभु का आश्रय" को अनुकूलता का पर्यायवाची मानना चाहिए । जब घर पहुँची तो सब चकित थे, मेरे नेत्रों से अश्रुधारा बह चली थी, जो रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी ।

अपने आपको बहुत भाग्यशाली मान रही थी कि प्रभु कृपा मेरे साथ है क्योंकि मैं प्रभु श्री बालकृष्णजी के कार्य से जुड़ी हुई हूँ । प्राणों के अंतिम श्वास तक प्रभु सेवा में जुड़ी रहना चाहती हूँ । सदगुरुजी ने ऐसी प्रेरणा जो दी है ।

प्रेमा वसंतराव रसहतवर
यवतमाल (महाराष्ट्र)


Editor's Comments -
(1) जब भी जीवन में प्रभु कार्य से जुड़ने का मौका आए, तो इसे प्रभु द्वारा भेजा अवसर मानकर कभी चूकना नहीं चाहिए । समय और संसाधन की परवाह किए बिना प्रभु कार्य से तत्‍काल जुड़ना चाहिए । सच्‍चे उद्देश्य और सच्‍चे मन से जुड़ने पर समय और संसाधन की किसी भी प्रतिकूलता को अनुकूलता में बदलते देर नहीं लगती । प्रतिकूलता को अनुकूलता में बदलने की प्रभु कृपा जब होने लगती है तो वह प्रभु कार्य तक ही सीमित नहीं रहती अपितु हमारे जीवन के हर फूल में प्रभु कृपा के कारण अनुकूलता का रंग भरने लगता है ।



नाम / Name : Mrs. Prema VasantRao Rashatwar
प्रकाशन तिथि / Published on : 15 सितम्‍बर 2012

संक्षिप्त प्रेषक परिचय / Brief Introduction of Sender : I, Prema VasantRao Rashatwar, 59 years, have done my M.A in Eco with Music. I have a liking for spiritual activities since childhood. I like singing "Bhajan". I play role in the devotional drama.
My life's objective is to work with "Geeta Pariwar" and to do the work of "Bal-sanskar" for the young ones.
Two books containing my collection of poems have been published.
8 Real-life memoir by Mr. Sandeep R Karwa (Chandrashekhar) titled बचपन में अर्जित प्रभु कृपा का परिणाम
Indexed as CHILD PARENTING MEMOIR


Editor's Introduction : This memoir shows how GOD's kindness refines and purifies the heart and mind of young ones if they are brought closer to the GOD during childhood. The power to restrain oneself from indulging in wrongdoings is only possible with devotion towards GOD. This is because the goodness of GOD sows the seed of goodness in us which redefines the ideology of our life for doing 'right' and avoiding 'wrong' in our life. This fact is reflected in this memoir.

Editor's Request : You may email this memoir to anyone who is upbringing or parenting a child for motivation. You may share this memoir directly via Email, Facebook, Twitter and various other social networks with the help of the Share-Button available on the right vertical of this page.


बचपन में अर्जित प्रभु कृपा का परिणाम

एक पुत्र है देवयुक्‍त, जो अभी 9 वर्ष का है एवं कक्षा 3 में पढ़ रहा है । महीने भर पहले की घटना है । स्कूल की परीक्षा चल रही थी । एक दिन परीक्षा के बाद वह घर पर बड़ी प्रसन्‍न मुद्रा में आया और बिना किसी से कुछ कहे सीधे मंदिर में गया । प्रभु के दर्शन करने के पश्चात उसने जो बताया उससे मैं गदगद हो गया । मैंने तुरंत उसके प्रधानाचार्य को अंग्रेजी में एक पत्र लिखा (क्‍योंकि अंग्रेजी माध्‍यम का स्कूल है) । पत्र का मूल यहाँ दे रहा हूँ क्‍योंकि पूरी घटना का ब्‍योरा पत्र में मिलेगा ।

Respected Madam,
Namaskaar !

I have something good to share with you. The Principal of a school would be delighted to see the moral values in their student.

Devyukt, a student of Class III B had told me the following. I am writing this letter (a) to check its authenticity with you (b) if found true, to apprise you of the same.

Devyukt came very happy from school on 16th Aug after giving the English Literature exam. He went to our Mandir at home and then told me that "today I had a good paper. I only left 3 small things (costing me 3 marks) and completed the rest satisfactorily. One out of the three which I left, a word meaning (Flit- To move quickly) of Chapter 3 was known to me but I was not able to recall. While I was trying to recall, my eyes unintentionally fell on my neighbor’s answer sheet and on seeing the answer I could immediately recall and therefore I wrote the same."

Devyukt is taught to complete his answer sheet with a prayer to GOD (before handing the sheet to the teacher). While he did so he felt that he had done something wrong. He knew what he had done wrong. He immediately took out his eraser and wiped the answer he had written for the word "Flit".

I petted him on his back and asked him- Why ? He said that "my inner voice told me that you can gain one number here in the exam but you will lose a big number in the eyes of ALMIGHTY GOD." I was truly thrilled with what he said.

You will kindly recall that even at cost of studies (what time we give to GOD is more than aptly compensated by the long Holy hands of the ALMIGHTY GOD), I take Devyukt with me every Shravan month of Hindu calendar to SwargAshram for Maas Katha. There he had heard HOLY SHRI RAMAYANJI Katha in full detail.

We would recall that in older times, spiritualism was a subject of study and in modern times, moral science used to be a compulsory classroom subject till sometimes back.

Victory over bad things is only possible when our inner self restrains us from indulging in them. Today due to a lack of real devotion towards GOD, we have suppressed or may have even killed our inner voice.

But this small kid had thrilled me with what he did. As it is, character building is a foremost part of an academic career. Therefore I believe it is of utmost necessity to go towards spiritualism which I do for my ward.

But I need to check the credentials of Devyukt’s narration as said to me and as narrated by me hereinabove. May I, therefore, request you to kindly see his answer paper of English Literature (and the Word meaning- Flit ) holding it in proper light so as you are able to judge his pencil writing for the answer he had written and thereafter his process of erasing it.

I will be obliged to hear from you so that I am confirmed that what he said to me was right. I believe his words but I want to recheck since he is only a child of 9 years.

GOD's sincerely
Sandeep R Karwa

तीन दिन बाद, सभी परीक्षाएँ पूरी होने पर, प्रधानाचार्य का मेरे पास फोन आया कि मैंने खुद देवयुक्‍त के पेपर को मंगवा कर देखा है । उसने उक्‍त उत्‍तर को लिखकर फिर मिटाया है । उन्‍होंने आगे कहा कि मुझे हार्दिक प्रसन्‍नता है यह बताते हुए कि एक 9 वर्ष के नन्हे बच्‍चे ने अपनी अन्‍तरात्‍मा से प्रेरित होकर ऐसा किया है । फोन रखते ही मेरे कदम सीधे मंदिर की तरफ दौड़े - मेरे प्रभु को धन्‍यवाद ज्ञापित करने, जिनकी अनुकम्‍पा से ऐसा हो पाया है ।

आज के युग में बच्‍चे अगर किसी सहपाठी का देखकर कुछ लिख आते हैं और घर पर आकर बेहिचक माता-पिता को गर्व से बता भी देते हैं कि मैंने ऐसा किया है और आज के माता-पिता भी इसे अन्‍यथा नहीं लेते - ऐसा देवयुक्‍त की एक अध्‍यापिका ने मुझे पेरेन्‍ट मीटिंग के दौरान बताया ।

इस पूरी घटना को मैं एक महीने की प्रभु श्री रामजी की कथा से जोड़कर देखता हूँ जो देवयुक्‍त ने मेरे साथ 2 वर्ष पूर्व स्‍वर्गाश्रम में सुनी थी । तब स्कूल से एक महीने की छुट्टी करवाकर मैं उसे अपने साथ ले गया था जिसका परिवार में, स्कूल में सभी जगह विरोध हुआ था । पर मैंने किसी की नहीं सुनी क्‍योंकि मुझे पता था कि मैं क्‍या तुच्छ चीज खो रहा हूँ और उसके एवज में क्‍या अनमोल चीज पा रहा हूँ । कथा के दौरान वह अपना स्‍वधर्म (पढ़ाई) भी कर रहा था जिसके कारण लौटने पर हुई परीक्षा में उसे 92 प्रतिशत अंक मिले थे । संपादक टिप्पणी - एक सिद्धांत है कि सच्‍चाई से प्रभु के लिए जो भी हम तन से, मन से, धन से खर्च करते हैं, व्‍यय करते हैं उसकी चौतरफा भरपाई स्वतः ही हो जाती है ।

बचपन में अगर प्रभु श्री रामजी हमारे जीवन के आदर्श बन जाएं तो धर्म आचरण का एक ऐसा पट्टा हमारी आँखों पर लग जाता है, ठीक उस घोड़े की तरह जिसके दाएँ-बाएँ न देखने के लिए पट्टा लगाकर उसे सड़क पर लाया जाता है जिससे वह सीधा देखे और सही चले । मर्यादा पुरुषोत्‍तम प्रभु श्री रामजी से बड़ा आदर्श पूरे विश्‍व पटल पर न कभी था, न आज है और न ही आगे कभी होगा । संपादक टिप्पणी - प्रभु ने अपने मर्यादा अवतार में जो कर दिखाया है उससे आगे की परिकल्‍पना करना भी संभव नहीं है । एक पुत्र के रूप में श्री दशरथजी एवं कैकेयीजी की आज्ञापालना, एक भाई के रूप में श्री भरतजी एवं श्री लक्ष्‍मणजी के साथ आत्‍मीयता, एक मित्र के रूप में श्री सुग्रीवजी एवं श्री विभीषणजी के साथ मित्रता की मर्यादा, एक शत्रु के रूप में रावण से द्वेष न कर उसके अवगुणों हेतु उसे दंडित करना, एक राजा के रूप में श्रीरामराज्‍य का आदर्श अनुशासन - इससे आगे की परिकल्‍पना हो ही नहीं सकती । क्‍योंकि प्रभु श्री रामजी नीति, शील, विवेक, संयम, नैतिकता, शालीनता, सदाचार, शौर्य एवं अनगिनत अन्‍य सद्गुणों की अदभुत पराकाष्‍ठा हैं । ऐसा कोई सद्गुण नहीं जो प्रभु श्री रामजी में प्रतिबिंबित न हो और ऐसा एक भी अवगुण नहीं जिसकी झलक मात्र भी प्रभु श्री रामजी में दिखे । इतने दिव्‍य, श्रेष्‍ठ, तेजस्‍वी, मर्यादा अवतार का किंचित प्रभाव भी एक शिशु पर हो जाए और प्रभु श्री रामजी उसके आदर्श बन जाएं तो वह शिशु जीवन पर्यन्त धन्‍य हो जाता है ।

मैंने मर्यादा अवतार में पुरुषोत्‍तम मेरे प्रभु श्री रामजी की कथा सुनाने के दौरान 7 वर्ष के नन्हे देवयुक्‍त पर प्रभु की एक-एक श्रीलीलाओं का प्रभाव उस समय उस पर होते देखा था । प्रभु के बारे में सुनते हुए उसे आत्‍मविभोर होते देखा, उसके आंसू छलकते हुए देखा और उन आंसुओं की भेंट को प्रभु को स्‍वीकारते हुए देखा । कैसे देखा ? मर्यादा पुरुषोत्‍तम प्रभु श्री रामजी को उसके हृदय में सबसे बड़े आदर्श के रूप में विराजते हुए देखा और भक्‍त शिरोमणि प्रभु श्री हनुमानजी को भक्ति और प्रभु सेवा के आदर्श के रूप में हृदय में विराजते हुए देखा ।

मेरे प्रभु की एक-एक श्रीलीलाओं ने नन्‍हें देवयुक्‍त को अपनी ओर खींचा - भगवती अहिल्‍याजी का उद्धार, श्री केवटजी का प्रसंग, भगवती शबरीजी की नवधा भक्ति, श्री भरतजी की भ्रातृ भक्ति, श्री लक्ष्‍मणजी की प्रभु सेवा, श्री जटायुजी का श्रीरामकाज हेतु प्राणों की आहुति देना एवं प्रभु द्वारा उनका पितृतुल्य उद्धार, श्री विभीषणजी का सर्म्‍पण और सबसे ज्‍यादा श्रीरामभक्‍त प्रभु श्री हनुमानजी का प्रभु प्रेम, प्रभु भक्ति, प्रभु सेवा से ओत-प्रोत दिव्‍यतम, अदभुत, अलौकिक, अनुपम, श्रेष्‍ठ और परम मनोहर श्रीलीलाएं ।

हम नन्हे बच्‍चों को टॉम एंड जेरी दिखाते हैं - न जीवन में "टॉम" कुछ काम आने वाला, न जीवन में "जेरी" कुछ भला करने वाली है । इन चीजों को दिखाने की मनाही नहीं है पर बच्‍चों को दिखाने की हमारी प्रधानता प्रभु की श्रीलीलाओं की ही होनी चाहिए । यही आग्रह, यही उपदेश शास्त्रों का भी है जिससे नन्हे हृदयों में प्रभु प्रेम के बीज बोएं जा सके जो अंकुरित होकर भक्ति वृक्ष बनकर जीवन पर्यन्त उसके जीवन को सुगंधित करता हुआ जीवन काल में सामाजिक, आर्थिक, वैचारिक एवं नैतिक कर्मों की ऊँचाईयां प्रदान करे और अंत में भक्ति के बल पर मुक्ति का रास्‍ता दिखा दें । बाल जीवन में पड़ा प्रभु प्रेम का एक बीज कितना कार्य कर सकता है, यह हम स्‍वयं ही सोच कर अनुभव कर सकते हैं ।

मेरे अपने जीवन में -
प्रभु की कृपा कहाँ तक गिनाऊँ !
प्रभु की कृपा कहाँ तक बताऊँ !
प्रभु की कृपा कहाँ तक दिखाऊ !

प्रभु का
संदीप रामनिवास कर्वा (चन्द्रशेखर)
जयपुर (राजस्‍थान)


संपादक टिप्पणी -
मातृऋण और पितृऋण तब बनता है जब हम अपने बच्‍चों को प्रभु मार्ग पर आगे बढ़ाएं, प्रभु को आदर्श के रूप में नन्हे हृदयपटलों पर अंकित कर पाएं । अभी हमारे बच्‍चों के आदर्श सुपरमैन, स्पाइडरमैन, शक्तिमान इत्‍यादि या फिल्‍म स्‍टार या क्रिकेट स्‍टार बने हुए हैं जो हमारे बच्‍चे को जीवन में वह ऊँचाई कभी प्रदान नहीं कर सकते जिसकी आकांक्षा हर माता-पिता रखते हैं । बच्‍चों में नैतिक, सामाजिक, राष्ट्रीय मूल्‍यों का ह्रास इसी कारण हो रहा है । प्रभु श्री रामजी अगर किसी बच्‍चे के आदर्श होंगे तो वह बच्‍चा कभी नैतिक, सामाजिक, राष्ट्रीय मूल्‍यों के उच्‍च मापदण्‍डों से फिसल नहीं सकता - यह स्‍पष्‍ट सिद्धांत है । हमारे देश के महापुरुषों ने ऐसा करके दिखाया है । अब जरूरत है भारत की इसी ओजस्‍वी परंपरा को आगे बढ़ाने की ।



नाम / Name : संदीप रामनिवास कर्वा (चन्द्रशेखर)
प्रकाशन तिथि / Published on : 16 सितम्‍बर 2012

संक्षिप्त प्रेषक परिचय / Brief Introduction of Sender : मैं, संदीप रामनिवास कर्वा (चन्द्रशेखर), उम्र 42 वर्ष, जयपुर (राजस्‍थान) निवासी रियल एस्टेट के व्‍यवसाय में हूँ । भारत की दिव्‍यतम आध्‍यात्‍म धरोहर ने मुझे गदगद कर दिया है । प्राचीन भारतीय श्रीग्रंथों, ऋषियों, भक्‍तों और संतों के मार्गदर्शन से अभिभूत हूँ । भारतीय संस्कृति और विरासत मुझे बेहद प्रिय हैं और मुझे सर्वाधिक गर्व भारतीय होने पर है । मानव का तन और भारत में जन्‍म - यह बड़ा दुर्लभ संयोग होता है (पर हम प्रभु की इस कृपा को कोई तवज्जोह नहीं देते) । तीन वाक्‍य मुझे बेहद प्रिय हैं और मेरे जीवन का फलसफा इनमें छुपा है -
(1) If you go with GOD, destiny will always take you where the grace of GOD will be ready to protect you.
(2) Everything in the world, every science in the world, every process in the world has its definite limitations but GOD has absolutely no limitations. He delivers freely by His divine grace.
(3) If we are able to uphold the firmest of firm faith in GOD, He never fails in our distress or even otherwise.
9 Real-life memoir by Sharon H. titled THE CHOSEN
Indexed as (1) HELPING-HAND MEMOIR


Editor's Introduction : This memoir shows how GOD's kindness helps us in our hour of need. It shows how we are chosen or hand-picked by GOD at the time of our distress. If we have faith in GOD, He definitely answers our call.

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THE CHOSEN

Have you ever been in a situation where you feel alone, lost, darkness all around and thought GOD had forgotten you existed ?

We all experience times like these. I will never forget my own a few years ago while in South Africa visiting my parents.

The ten-day vacation was coming to an end and I expected to be home in the States within the three days. Unfortunately, the staff of the airline I was to travel on went on strike, resulting in no flights coming to or leaving South Africa.

Initially, I was not concerned. Surely, I thought, this will resolve itself within the next three days. But no, it did not resolve. It went on for weeks.

Panic set in because I needed to get back to the States as work and family were waiting for me. I prayed and prayed, begging GOD to intervene so that I could fly home. Daily I called the airlines. There was never any change.

Finally, after two long weeks of striking, a few flights left South Africa. But by this time there was such a backlog of passengers camped out at the airport that it would be weeks longer before I was able to leave.

Still, I could not wait any longer. I had to get home. I presented my problem to GOD once more. And, in faith, took action on my request to Him.

My parents took me to the airport, which was a good two-hour drive. Not knowing what to expect when I got there, I planned to join those sleeping on the floor hoping to get a flight out.

We arrived at the airport and it brought my stomach to my throat. The sight of the throngs was too awful to bear !

"We're just going to turn around now and return home," my mom said.

My dad, on the other hand, is one of those old-time believers in GOD's amazing work in the worst of situations. Editor's comment - Keeping faith in GOD in tiring circumstances is always rewarded.

"I think she should just step out in faith and see what happens," he said.

We parked miles away and fought the crowd to the terminal. People were sleeping, standing, camping out in the terminal. No line was moving. I had no idea where to go to even begin to put my name on a waiting list.

And then GOD intervened, as He always does in such circumstances. There I was standing with my huge suitcase, in the middle of the crowd, totally dazed, not knowing where to turn, when one of the airport attendees suddenly reached for me and asked, "Where are you going ?" I said, "New York."

He replied, "Come with me." He picked up my suitcase and escorted me right to the front of the line, leaving everyone else yelling and cursing at me. He waited with me at the counter and helped me get on a flight. The flight had one seat open to New York.

After checking in, I went to find my parents, who were still in shock at what they had just witnessed. My dad, tears running down his face, smiled and hugged me, saying, "Well ? Once again, all you had to do was step out in faith, making your requests known to GOD and He answered. But you had to act on your faith. Why do we doubt GOD ?" Editor's comment - GOD had answered the call like He always does when we do not doubt Him.

Looking back over the whole situation, my faith in GOD increased tremendously. What happened ? Why was I chosen out of the crowd ? I will never know why, but I can only say that GOD took this situation to prove to me that He knows who I am, that He alone can work out the toughest challenges in our lives. He knew I had to get home to fulfill commitments in the church. I asked and He answered.

There are times when we have to take GOD at His word when He says He will make a way in the wilderness when there is no way. Editor's comment - If we keep our faith intact, GOD will always make a way where there is no way at all.

Was the gentleman in the airport who took me out of the crowd an angel ? I don't think so. He was looking in the crowd for someone to put on the flight. GOD helped him to pick me. Editor's comment - Who is to be chosen is the prerogative of GOD and true prayers lead Him to choose us.

We miss out on so many blessings when we say, "the situation is impossible." We must come to the realization that our GOD is a GOD who transcends the impossible. We need to step out in faith, knowing He hears our cry. Editor's comment - Impossible is always possible with GOD.

Sharon H.
East Rockaway, NY (USA)


नाम / Name : Sharon H.
प्रकाशन तिथि / Published on: 25 December 2012

संक्षिप्त प्रेषक परिचय / Brief Introduction of Sender : This article is reproduced with kind permission from the website Touched by the Hand of GOD. The referred website contains many such amazing GOD miracle real-life stories. Visitors to the website – Touched by the Hand of GOD – will find motivational stories to inspire and guide one along their spiritual path.
10 Real-life memoir by Jonathan S. titled TWO OF A KIND
Indexed as (1) HELPING-HAND MEMOIR


Editor's Introduction : This memoir shows how GOD's kindness helps us in our efforts of goodness. If we do things that please GOD, He executes our plan to perfection.

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TWO OF A KIND

I'm originally from El Salvador. At the age of five months, on May 8, 1980, I was adopted by two loving parents from the United States.

During the five months that I was in El Salvador, the country was going through a Civil War. Since the orphanage where I lived didn't have the necessities to take proper care of its infants, my parents were sending money to them so I could get that care.

Unfortunately, the money was being spent on weapons for underground criminals. When my parents arrived to take me to my new home, I was very malnourished. I was very sick with various illnesses throughout my childhood because of this. My Mom often took me to doctors' appointments for things ranging from ear infections to strep throat. I even needed to be hospitalized for asthma. Not much was known about asthma back then, so many doctors couldn't figure out what was wrong with me. My Mom would spend the day at the hospital with me and my Dad would come to the hospital at night. They would sit in my hospital room while I slept. Editor's comment - By the grace of GOD, whatever good things that we do in life is ably rewarded by GOD. The goodness of the adoptive mother is rewarded when the adoptive son rises to the occasion when her mother gets into distress.

In 1985, my mom found out that she was suffering from diabetes and needed to be on insulin. Twenty-four years later, she found out that her kidneys were failing due to the ravages of this disease. She needed a kidney transplant.

Immediately, I told my Dad that I would be willing to donate my kidney to her. My parents, being the loving parents that they are, didn't want me to go through a procedure like that. And considering that we are not blood relatives nor even from the same country, the odds seemed tremendous against a tissue and organ match. Editor's comment - Where the odds are against us and we still keep unshaken faith in GOD, the situation turns favorable. Blood relatives offered, but due to their own medical complications, they were unable to go through with a donation.

Meanwhile, mom’s health continued to decline. I kept pursuing my goal to be tested as an organ and tissue donor for her. From July through September of 2009, my Mom and I went through many tests to see if this would be the case. I prayed to GOD that I should be a match. Editor's comment - Prayer from the heart is always fulfilled. Prayer done for a noble cause is also fulfilled.

In October of 2009, we as a family learned that my mom and I were a perfect tissue and organ match ! On Monday, October 12, 2009, we had the surgery. It was a complete success and there were no complications ! It is now over a year later, and my mom’s new kidney is working very well.

I like to tell everyone this story not because I want to sound like a hero, but because I want people out in the world to know that miracles do happen. I believe GOD did all the work, I just volunteered ! Editor's comment - If we volunteer for a noble cause, GOD will definitely do the work for us. GOD loves goodness as He is an ocean of goodness and therefore all our efforts of goodness will be endorsed and executed by GOD.

Jonathan S.
Peabody, MA


नाम / Name : Jonathan S.
प्रकाशन तिथि / Published on: 28 December 2012

संक्षिप्त प्रेषक परिचय / Brief Introduction of Sender : This article is reproduced with kind permission from the website Touched by the Hand of GOD. The referred website contains many such amazing GOD miracle real-life stories. Visitors to the website – Touched by the Hand of GOD – will find motivational stories to inspire and guide one along their spiritual path.