क्रम संख्या |
श्रीग्रंथ |
संख्या |
भाव के दर्शन / प्रेरणापुंज |
841 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/115/2 |
चौपाई / छंद / दोहा -
सुनु खगेस हरि भगति बिहाई । जे सुख चाहहिं आन उपाई ॥ ते सठ महासिंधु बिनु तरनी । पैरि पार चाहहिं जड़ करनी ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री काकभुशुण्डिजी कहते हैं कि जो जीव प्रभु की भक्ति की इतनी महिमा जानकर भी भक्ति नहीं करके दूसरा साधन करते हैं वे मूर्ख हैं और श्री कामधेनुजी को छोड़कर अन्यत्र भटकते हैं । जो प्रभु की भक्ति के अलावा दूसरे उपायों से सुख चाहते हैं वे अभागे हैं और बिना जहाज के सागर पार जाना चाहते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 09 अगस्त 2020 |
842 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/116/4 |
चौपाई / छंद / दोहा -
तेहि बिलोकि माया सकुचाई । करि न सकइ कछु निज प्रभुताई ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री काकभुशुण्डिजी कहते हैं कि प्रभु सदैव भक्ति के पक्ष में रहते हैं और भक्ति करने वालों के विशेष अनुकूल रहते हैं इसलिए माया भक्ति से अत्यंत डरती रहती है । भक्ति को देखकर माया सकुचा जाती है क्योंकि माया का प्रभाव भक्ति कर रहे भक्त पर नहीं पड़ता । इसलिए बुद्धिमान जीव प्रभु से भक्ति, जो सुखों की खान है, उसकी ही याचना करते हैं । भक्ति का इतना बड़ा मर्म प्रभु कृपा बिना कोई नहीं जान पाता ।
प्रकाशन तिथि : 09 अगस्त 2020 |
843 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/119/दोहा (क) |
चौपाई / छंद / दोहा -
सेवक सेब्य भाव बिनु भव न तरिअ उरगारि ॥ भजहु राम पद पंकज अस सिद्धांत बिचारि ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री काकभुशुण्डिजी कहते हैं कि सबसे सुगम और परम सुख देने वाली भक्ति जिसे नहीं सुहावे वह तो मूढ़ ही है । भक्ति भाव बिना संसाररूपी सागर से तरना संभव ही नहीं हो सकता । इसलिए जो जीव प्रभु की भक्ति करते हैं वे जीव ही संसार में धन्य होते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 09 अगस्त 2020 |
844 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/120/1 |
चौपाई / छंद / दोहा -
राम भगति चिंतामनि सुंदर ।
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री काकभुशुण्डिजी कहते हैं कि प्रभु की भक्ति सुंदर चिंतामणि स्वरूपा है । वह स्वयंप्रकाश है जिससे अविद्या का अंधकार मिट जाता है । इस मणिरूपी दीप को कोई बुझा नहीं सकता । इस भक्तिरूपी मणि के बिना कोई सुख नहीं पा सकता और यह भक्तिरूपी मणि जिसके हृदय में बसती है उसे स्वप्न में भी लेशमात्र दुःख नहीं होता । इसलिए जगत के चतुर मनुष्य इस भक्तिरूपी मणि पाने के लिए भली-भांति के यत्न करते हैं । जो प्राणी प्रेम के साथ इस भक्तिरूपी मणि को खोजता है वह प्रभु की कृपा से उसे पा भी जाता है ।
प्रकाशन तिथि : 10 अगस्त 2020 |
845 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/120/3 |
चौपाई / छंद / दोहा -
खल कामादि निकट नहिं जाहीं । बसइ भगति जाके उर माहीं ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री काकभुशुण्डिजी कहते हैं कि जिस जीव के हृदय में प्रभु की भक्ति बसती है उसके पास काम, क्रोध, लोभ आदि विकार नहीं आते । यह सिद्धांत है कि सच्चा भक्तिमय हृदय विकार रहित होता है क्योंकि भक्ति हमें सात्विकता प्रदान करती है और हमारे विकारों का नाश करती है ।
प्रकाशन तिथि : 10 अगस्त 2020 |
846 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/121/5 |
चौपाई / छंद / दोहा -
नर तन सम नहिं कवनिउ देही । जीव चराचर जाचत तेही ॥ नरग स्वर्ग अपबर्ग निसेनी । ग्यान बिराग भगति सुभ देनी ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - पक्षीराज श्री गुरुड़जी ने श्री काकभुशुण्डिजी से पूछा कि सबसे दुर्लभ शरीर कौन-सा है तो उसके उत्तर में यह बताया गया कि मानव शरीर से दुर्लभ अन्य कोई शरीर नहीं । श्री काकभुशुण्डिजी कहते हैं कि सभी चर अचर जीव मानव शरीर की ही याचना करते हैं क्योंकि यह मानव शरीर स्वर्ग और मोक्ष की सीढ़ी है और भक्ति, ज्ञान और वैराग्य का पोषण करने वाला है ।
प्रकाशन तिथि : 10 अगस्त 2020 |
847 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/121/6 |
चौपाई / छंद / दोहा -
सो तनु धरि हरि भजहिं न जे नर । होहिं बिषय रत मंद मंद तर ॥ काँच किरिच बदलें ते लेही । कर ते डारि परस मनि देहीं ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री काकभुशुण्डिजी कहते हैं कि जो मानव शरीर प्राप्त करके प्रभु की भक्ति नहीं करते और संसार के नीच विषयों में अनुरक्त रहते हैं वे मानों पारस मणि को अपने हाथ से फेंककर बदले में कांच के टुकड़े ले लेते हैं । मानव शरीर मिला है तो उसे प्रभु की असीम कृपा माननी चाहिए और उस मानव शरीर का सदुपयोग प्रभु की भक्ति करके ही करनी चाहिए ।
प्रकाशन तिथि : 11 अगस्त 2020 |
848 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/122/4 |
चौपाई / छंद / दोहा -
रघुपति भगति सजीवन मूरी ।
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री काकभुशुण्डिजी मानस रोग का वर्णन करते हैं और उसकी परम औषधि के रूप में प्रभु की भक्ति का प्रतिपादन करते हैं । वे भक्ति को सभी मानस रोगों को मिटाने वाली संजीवनी बताते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 11 अगस्त 2020 |
849 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/122/7 |
चौपाई / छंद / दोहा -
सब कर मत खगनायक एहा । करिअ राम पद पंकज नेहा ॥ श्रुति पुरान सब ग्रंथ कहाहीं । रघुपति भगति बिना सुख नाहीं ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री काकभुशुण्डिजी कहते हैं कि देवों के देव प्रभु श्री महादेवजी, प्रभु श्री ब्रह्माजी, देवर्षि प्रभु श्री नारदजी, श्री सनकादि ऋषिगण, प्रभु श्री शुकदेवजी आदि सभी का एकमत है कि प्रभु के श्रीकमलचरणों में हमारा प्रेम होना चाहिए और प्रभु की भक्ति हमें करनी चाहिए । श्री वेदजी, श्रुतियों और सभी श्री पुराणों, श्रीग्रंथों का भी एकमत है कि प्रभु की भक्ति बिना जगत में सुख नहीं है । श्री काकभुशुण्डिजी उपमा देकर कहते हैं कि चाहे कछुए की पीठ पर बाल उग आए, चाहे बांझ का पुत्र किसी की हत्या कर दे, चाहे आकाश में फूल खिल जाए, चाहे मृगतृष्णा के जल से प्यास बुझ जाए, चाहे खरगोश के सिर पर सींग निकल आए, चाहे बर्फ अग्नि प्रकट कर दे, चाहे जल को मथने से घी उत्पन्न हो जाए, यानी यह सब असंभव और अनहोनी बातें चाहे संभव हो जाए पर यह सिद्धांत अटल और अपरिवर्तनीय है कि प्रभु से विमुख हुआ जीव कदापि सुख नहीं पा सकता और प्रभु भक्ति बिना संसार सागर से कोई तर नहीं सकता ।
प्रकाशन तिथि : 11 अगस्त 2020 |
850 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/122/दोहा (ग) |
चौपाई / छंद / दोहा -
विनिच्श्रितं वदामि ते न अन्यथा वचांसि मे । हरिं नरा भजन्ति येऽतिदुस्तरं तरन्ति ते ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री काकभुशुण्डिजी एक सत्य सिद्धांत कहते हैं कि जो जीव मानव शरीर पाकर प्रभु की भक्ति करते हैं वे इस अत्यंत दुस्तर संसाररूपी सागर को बड़ी सहजता से पार कर जाते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 12 अगस्त 2020 |
851 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/123/1 |
चौपाई / छंद / दोहा -
श्रुति सिद्धांत इहइ उरगारी । राम भजिअ सब काज बिसारी ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री काकभुशुण्डिजी कहते हैं कि श्रुतियों का यह एकमत सिद्धांत है कि जीव को सब काम भुलाकर प्रभु की भक्ति करनी चाहिए । प्रभु भक्ति करके हमें अपना मानव जीवन कृतार्थ करना चाहिए और किसी भी सूरत में बिना भक्ति किए हमें अपना मानव जीवन व्यर्थ नहीं गंवाना चाहिए ।
प्रकाशन तिथि : 12 अगस्त 2020 |
852 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/123/दोहा (ख) |
चौपाई / छंद / दोहा -
चरित सिंधु रघुनायक थाह कि पावइ कोइ ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री काकभुशुण्डिजी कहते हैं कि प्रभु श्री रामजी का श्रीचरित्र श्री समुद्रदेवजी की समान अथाह है जिसका कोई भी, कभी भी पार नहीं पा सकता । प्रभु का बल, प्रताप, सामर्थ्य, प्रभुता सब कुछ अतुलनीय है जिसकी महिमा कोई भी नहीं गा सकता और श्री वेदजी भी नेति-नेति कहकर शांत हो जाते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 12 अगस्त 2020 |
853 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/124/4 |
चौपाई / छंद / दोहा -
तरहिं न बिनु सेएँ मम स्वामी । राम नमामि नमामि नमामी ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री काकभुशुण्डिजी कहते हैं कि साधक, सिद्ध, जीवनमुक्त, विरक्त, कवि, विद्वान, ज्ञाता, संन्यासी, योगी, शूरवीर, तपस्वी, ज्ञानी, धर्मपरायण, पंडित कोई भी प्रभु के भजन बिना तर नहीं सकता । श्री काकभुशुण्डिजी कहते हैं कि वे ऐसे प्रभु श्री रामजी को बारंबार प्रणाम करते हैं जिनकी शरण में जाने पर पापयुक्त जीव भी पापरहित हो जाते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 13 अगस्त 2020 |
854 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/126/2 |
चौपाई / छंद / दोहा -
मन क्रम बचन जनित अघ जाई । सुनहिं जे कथा श्रवन मन लाई ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री महादेवजी भगवती पार्वती माता को कहते हैं कि जो जीव कान और मन लगाकर प्रभु की कथा सुनते हैं उनके मन, वचन और कर्म से उत्पन्न सभी पाप नष्ट हो जाते हैं । जो जीव विश्वास रखकर निरंतर प्रभु की कथा सुनते हैं वे बिना परिश्रम ही अति दुर्लभ प्रभु की भक्ति पा जाते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 13 अगस्त 2020 |
855 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/126/4 |
चौपाई / छंद / दोहा -
जहँ लगि साधन बेद बखानी । सब कर फल हरि भगति भवानी ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री महादेवजी भगवती पार्वती माता को कहते हैं कि तीर्थयात्रा, योग, ज्ञान, वैराग्य, धर्म, व्रत, दान, संयम, जप, तप, यज्ञ आदि जहाँ तक श्री वेदजी में साधन बताए गए हैं उन सबका एक ही फल है कि ऐसा करने वाले जीव को प्रभु की भक्ति प्राप्त हो जाए । प्रभु श्री महादेवजी कहते हैं कि सभी साधनों का एकमात्र फल प्रभु की भक्ति ही है ।
प्रकाशन तिथि : 13 अगस्त 2020 |
856 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/127/2 |
चौपाई / छंद / दोहा -
श्रुति सिद्धांत नीक तेहिं जाना ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री महादेवजी भगवती पार्वती माता से कहते हैं कि जो प्रभु की भक्ति करता है वही नीति में निपुण और परम बुद्धिमान है । जो प्रभु की भक्ति करता है वही गुणी और सच्चा ज्ञानी है, वही धर्म परायण और धरती का भूषण है और वही श्री वेदजी के सिद्धांतों को भली भांति जानने वाला है ।
प्रकाशन तिथि : 14 अगस्त 2020 |
857 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/127/3 |
चौपाई / छंद / दोहा -
धन्य देस सो जहँ सुरसरी ।
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री महादेवजी भगवती पार्वती माता से अपने श्रीवचन में कहते हैं कि वही देश धरती पर धन्य है जहाँ भगवती गंगा माता बहती है । भगवती गंगा माता साक्षात प्रभु के श्रीकमलचरणों से निकली हैं और भारतवर्ष को पावन और धन्य करती हैं ।
प्रकाशन तिथि : 14 अगस्त 2020 |
858 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/127/4 |
चौपाई / छंद / दोहा -
धन्य घरी सोइ जब सतसंगा ।
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री महादेवजी भगवती पार्वती माता से कहते हैं कि वही क्षण धन्य होता है जिस समय जीव सत्संग करता है । सत्संग की इतनी बड़ी महिमा है कि सत्संग जीव को प्रभु की तरफ मोड़ देती है और जीव का कल्याण कराती है ।
प्रकाशन तिथि : 14 अगस्त 2020 |
859 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/127/दोहा |
चौपाई / छंद / दोहा -
सो कुल धन्य उमा सुनु जगत पूज्य सुपुनीत । श्रीरघुबीर परायन जेहिं नर उपज बिनीत ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री महादेवजी भगवती पार्वती माता से भक्ति की महिमा बताते हुए कहते हैं कि भक्ति करने वाले भक्तों का स्थान बहुत ऊँचा होता है । वे कहते हैं कि जिस कुल में प्रभु का भक्त जन्म लेता है वह कुल धन्य हो जाता है और परम पवित्र हो जाता है और संसार भर के लिए पूज्य हो जाता है ।
प्रकाशन तिथि : 15 अगस्त 2020 |
860 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/128/4 |
चौपाई / छंद / दोहा -
ता कहँ यह बिसेष सुखदाई । जाहि प्रानप्रिय श्रीरघुराई ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री महादेवजी कहते हैं कि प्रभु की कथा जीव को बहुत आनंद और सुख देने वाली होती है । पर यह प्रभु कथा उसी जीव को प्रिय लगती है और वही जीव इसका तन्मय होकर श्रवण करता है जिसको प्रभु अपने प्राणों से भी अधिक प्रिय होते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 15 अगस्त 2020 |
861 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/128/दोहा |
चौपाई / छंद / दोहा -
राम चरन रति जो चह अथवा पद निर्बान । भाव सहित सो यह कथा करउ श्रवन पुट पान ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री महादेवजी कहते हैं कि जो जीव प्रभु के श्रीकमलचरणों में प्रेम और स्थान चाहता है या जो मोक्षपद चाहता है उसे प्रभु की कथारूपी अमृत का सदैव पान करना चाहिए ।
प्रकाशन तिथि : 15 अगस्त 2020 |
862 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/129/1 |
चौपाई / छंद / दोहा -
राम कथा गिरिजा मैं बरनी । कलि मल समनि मनोमल हरनी ॥ संसृति रोग सजीवन मूरी । राम कथा गावहिं श्रुति सूरी ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री महादेवजी भगवती पार्वती माता से कहते हैं कि उन्होंने कलियुग के पापों का नाश करने वाली और मन के विकारों को दूर करने वाली श्रीराम कथा का निरूपण किया । वे कहते हैं कि श्रीराम कथा जन्म मरण रूपी भव रोग को नाश करने वाली संजीवनी है ।
प्रकाशन तिथि : 16 अगस्त 2020 |
863 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/129/2 |
चौपाई / छंद / दोहा -
अति हरि कृपा जाहि पर होई । पाउँ देइ एहिं मारग सोई ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री महादेवजी एक बहुत मर्म की बात कहते हैं । वे कहते हैं कि जिस पर प्रभु की अत्यंत कृपा होती है वही प्रभु की भक्ति के मार्ग पर पैर रखता है । हम प्रभु की कृपा को कलियुग में धन, संपत्ति, वैभव के होने को मानते हैं पर सच्ची प्रभु की कृपा होती है तो जीव का संसार से मोहभंग होता है और प्रभु प्रेम उसके हृदय में जागृत होता है और प्रभु भक्ति के मार्ग पर वह बढ़ता चला जाता है ।
प्रकाशन तिथि : 16 अगस्त 2020 |
864 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/129/3 |
चौपाई / छंद / दोहा -
कहहिं सुनहिं अनुमोदन करहीं । ते गोपद इव भवनिधि तरहीं ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री महादेवजी कहते हैं कि जो प्रभु की कथा कहते हैं या श्रवण करते हैं या जो प्रभु कथा का मात्र अनुमोदन भी कर देते हैं वे संसाररूपी सागर को इतनी सरलता से पार करते हैं जैसे गौ-माता के खुर से बने गड्ढे को कोई पार करता है ।
प्रकाशन तिथि : 16 अगस्त 2020 |
865 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/130/1 |
चौपाई / छंद / दोहा -
यह सुभ संभु उमा संबादा । सुख संपादन समन बिषादा ॥ भव भंजन गंजन संदेहा । जन रंजन सज्जन प्रिय एहा ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - ऋषि श्री याज्ञवल्क्यजी कहते हैं कि श्रीराम कथा रूपी प्रभु श्री महादेवजी और भगवती पार्वती माता का संवाद परम कल्याणकारी, सुख उत्पन्न करने वाला, शोक का नाश करने वाला है । यह संवाद जीव के जन्म-मरण के चक्र का अंत करने वाला, संदेहों का नाश करने वाला, संतों को अति प्रिय और भक्तों को आनंद देने वाला है । जगत में जो भी प्रभु श्री रामजी के प्रेमी हैं उनको इस श्रीराम कथा के समान अन्य कुछ भी प्रिय नहीं है ।
प्रकाशन तिथि : 17 अगस्त 2020 |
866 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/130/3 |
चौपाई / छंद / दोहा -
एहिं कलिकाल न साधन दूजा । जोग जग्य जप तप ब्रत पूजा ॥ रामहि सुमिरिअ गाइअ रामहि । संतत सुनिअ राम गुन ग्रामहि ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि इस कलियुग में योग, यज्ञ, तप, व्रत, पूजन आदि साधन सफल नहीं होते । कलियुग का साधन प्रभु को स्मरण करना, प्रभु का गुणानुवाद करना और प्रभु के गुण समूहों का श्रवण करना ही है ।
प्रकाशन तिथि : 17 अगस्त 2020 |
867 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/130/4 |
चौपाई / छंद / दोहा -
राम भजें गति केहिं नहिं पाई ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि कलियुग में प्रभु भक्ति करने से ही परम गति प्राप्त होती है । वे पूछते हैं कि क्या ऐसा कोई है जिसने प्रभु की भक्ति की हो और परम गति नहीं पाई हो । ऐसा संसार में आज तक न कोई हुआ है और न आगे होगा कि प्रभु का भजन किसी ने किया हो और उसकी गति न सुधरी हो ।
प्रकाशन तिथि : 17 अगस्त 2020 |
868 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/130/छंद 1 |
चौपाई / छंद / दोहा -
पाई न केहिं गति पतित पावन राम भजि सुनु सठ मना । गनिका अजामिल ब्याध गीध गजादि खल तारे घना ॥ आभीर जमन किरात खस स्वपचादि अति अघरूप जे । कहि नाम बारक तेपि पावन होहिं राम नमामि ते ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी जीव के मूर्ख मन को संबोधित करते हुए कहते हैं कि पतितों को भी पावन करने वाले प्रभु को भजकर उसे परम गति प्राप्त करनी चाहिए । गोस्वामीजी कहते हैं कि गणिका, अजामिल, व्याध, गीध और गज जैसे पतितों को प्रभु ने तारा और चांडाल और श्वपच के जाति में जन्में जीव का भी प्रभु ने उद्धार किया है । गोस्वामीजी कहते हैं कि वे ऐसे प्रभु श्री रामजी को प्रणाम करते हैं जिनका नाम लेने मात्र से सभी पवित्र हो जाते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 18 अगस्त 2020 |
869 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/130/छंद 2 |
चौपाई / छंद / दोहा -
रघुबंस भूषन चरित यह नर कहहिं सुनहिं जे गावहीं । कलि मल मनोमल धोइ बिनु श्रम राम धाम सिधावहीं ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि जो जीव प्रभु श्री रामजी के इस पावन श्रीचरित्र को कहते, सुनते अथवा गाते हैं वे कलियुग के पापों और विकारों को और मन के मल को धोकर बिना परिश्रम प्रभु के धाम चले जाते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 18 अगस्त 2020 |
870 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/130/छंद 3 |
चौपाई / छंद / दोहा -
सुंदर सुजान कृपा निधान अनाथ पर कर प्रीति जो । सो एक राम अकाम हित निर्बानप्रद सम आन को ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि परम सुंदर, सुजान, कृपानिधान और अनाथों से भी प्रेम करने वाले केवल प्रभु ही हैं । वे कहते हैं कि प्रभु के समान निष्काम और निस्वार्थ हित करने वाला और मोक्ष तक का दान देने वाला दूसरा कोई नहीं है ।
प्रकाशन तिथि : 18 अगस्त 2020 |
871 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/130/दोहा (क) |
चौपाई / छंद / दोहा -
मो सम दीन न दीन हित तुम्ह समान रघुबीर । अस बिचारि रघुबंस मनि हरहु बिषम भव भीर ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी प्रभु श्री रामजी से कहते हैं कि उनके समान कोई दीन नहीं और प्रभु के समान कोई दीनों का हित करने वाला नहीं है । ऐसे दीनबंधु प्रभु की लेशमात्र कृपा के फलस्वरूप उन्हें परम शांति मिल गई है । वे प्रभु से विनती करते हैं कि प्रभु उन्हें जन्म-मरण के चक्र के भयंकर दुःख से निवृत्त कर दें ।
प्रकाशन तिथि : 19 अगस्त 2020 |
872 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/130/दोहा (ख) |
चौपाई / छंद / दोहा -
कामिहि नारि पिआरि जिमि लोभहि प्रिय जिमि दाम । तिमि रघुनाथ निरंतर प्रिय लागहु मोहि राम ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - यह श्री रामचरितमानसजी का अंतिम और एक प्रसिद्ध दोहा है । इसमें जो गोस्वामी श्री तुलसीदासजी ने प्रभु से मांगा है वह हमें भी उनके साथ प्रभु से मांगना चाहिए । प्रभु श्री रामजी से गोस्वामीजी मांगते हैं कि जैसे एक कामी पुरुष को स्त्री प्रिय लगती है और जैसे एक लोभी को धन प्रिय लगता है, उससे भी ज्यादा उन्हें सदा प्रभु प्रिय लगते रहे । यह सिद्धांत है कि प्रभु के लिए असीम प्रियता का भाव अगर हमारे हृदय में जागृत हो जाए तो इससे बड़ी उपलब्धि मानव जन्म पाकर कुछ भी अन्य नहीं हो सकती ।
प्रकाशन तिथि : 19 अगस्त 2020 |
873 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/130/श्लोक 2 |
चौपाई / छंद / दोहा -
पुण्यं पापहरं सदा शिवकरं विज्ञानभक्तिप्रदं मायामोहमलापहं सुविमलं प्रेमाम्बुपूरं शुभम् । श्रीमद्रामचरित्रमानसमिदं भक्त्यावगाहन्ति ये ते संसारपतङ्गघोरकिरणैर्दह्यन्ति नो मानवाः॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी श्री रामचरितमानसजी के अंतिम श्लोक में कहते हैं कि यह श्री रामचरितमानसजी पुण्य स्वरूपा है, पापों को हरने वाला है, परम कल्याणकारी और भक्ति जागृत करने वाला श्रीग्रंथ है । श्री रामचरितमानसजी माया और मोह के मल का नाश करने वाला, प्रभु के लिए परम निर्मल प्रेम जागृत करने वाला और महामंगलमय श्रीग्रंथ है । गोस्वामीजी कहते हैं कि जो जीव भक्तिपूर्वक श्री रामचरितमानसजी के मानसरोवर में गोता लगाता है वह संसार के प्रचंड तापों से बच जाता है ।
आज 19 अगस्त 2020 के दिन मैं बड़ा भावुक हो रहा हूँ क्योंकि आज श्री रामचरितमानसजी का वेबसाईट पर विश्राम हो रहा है । 29 सितम्बर 2019 से शुरू इस यात्रा में मैंने साक्षात प्रभु कृपा का सदैव अनुभव किया है । प्रभु कृपा से ही इस श्रीग्रंथ को पढ़ने की, लिखने की प्रेरणा मुझे मिली है और मैं शपथपूर्वक कहता हूँ कि मात्र और मात्र प्रभु कृपा के बल पर ही ऐसा करना संभव हो पाया है । प्रभु के बारे में लिखने का सौभाग्य प्रभु किसी को भी दे सकते थे पर प्रभु ने अति कृपा करके यह मुझे दिया इसलिए मैं कृतार्थ हूँ ।
श्रीवाल्मीकि रामायणजी एवं श्री रामचरितमानसजी में मर्यादा की पराकाष्ठा पर प्रभु श्री रामजी और भगवती सीता माता को देखकर हृदय अभिभूत हुए बिना नहीं रह पाता । मेरे प्रभु श्री रामजी एवं मेरी भगवती सीता माता ने जो आदर्श और मर्यादा स्थापित किए हैं हमारी कल्पना शक्ति भी उसके आगे की बात सोच भी नहीं सकती । जीवन में जब भी कोई दुविधा हो प्रभु श्री रामजी एवं भगवती सीता माता के द्वारा स्थापित आदर्श अपने सामने रखना चाहिए क्योंकि धर्म की परिभाषा वही है जो प्रभु और माता ने करके दिखाया । मैं रोजाना श्री रामचरितमानसजी के श्रीग्रंथ को अपने मस्तक पर धारण करके और साष्टांग दंडवत प्रणाम करके इनकी चौपाई का परायण करता हूँ ।
देवों के देव प्रभु श्री महादेवजी को श्रीराम कथा से अधिक प्रिय कुछ भी नहीं है और उनकी कृपा के बिना इस श्रीग्रंथ में प्रवेश संभव ही नहीं है इसलिए उनकी कृपा का मैंने सदैव अनुभव किया है । प्रथम पूज्य प्रभु श्री गणेशजी एवं प्रभु श्री हनुमानजी का मैं सदैव ऋणी हूँ जिनकी कृपा का मैंने साक्षात अनुभव किया है । देवर्षि प्रभु श्री नारदजी की प्रेरणा से श्रीवाल्मीकि रामायणजी का लेखन हुआ इसलिए उनका आशीर्वाद मेरे ऊपर सदा रहा है, ऐसा मैंने अनुभव किया है । श्री भरतलालजी और श्री लक्ष्मणजी का प्रभु प्रेम देखकर मैं उनके श्रीचरणों में नत होता हूँ और उनके आर्शीवाद का अनुभव करता हूँ । महर्षि श्री वाल्मीकिजी एवं गोस्वामी श्री तुलसीदासजी के आशीर्वाद का भी मैंने सदैव अनुभव किया है ।
प्रभु श्री रामजी ने श्री रामचरितमानसजी में जगह-जगह भक्ति का प्रतिपादन किया है और प्रभु श्री हनुमानजी ने भक्ति का सर्वोत्तम आदर्श यहाँ पर प्रस्तुत किया है । प्रभु भक्ति, प्रभु प्रेम और प्रभु सेवा का जो आदर्श प्रभु श्री हनुमानजी ने प्रस्तुत किया है वह अतुलनीय और परम अनुकरणीय है । उसका किंचित अनुकरण भी अगर हम अपने जीवन कर लेते हैं तो हमारा जीवन कृतार्थ हो जाएगा ।
जो कुछ भी लेखन हुआ है वह प्रभु कृपा के बल पर ही हुआ है और उसे मैं प्रभु के श्रीकमलचरणों में सादर समर्पित करता हूँ ।
मेरा प्रयास मेरे प्रभु को प्रिय लगे इसी अभिलाषा के साथ मैं उसे प्रभु के श्रीकमलचरणों में पुनः सादर समर्पित करता हूँ ।
प्रभु का,
चन्द्रशेखर कर्वा
प्रकाशन तिथि : 19 अगस्त 2020 |
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