क्रम संख्या |
श्रीग्रंथ |
संख्या |
भाव के दर्शन / प्रेरणापुंज |
781 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/51/5 |
चौपाई / छंद / दोहा -
कलि मल मथन नाम ममताहन ।
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - देवर्षि प्रभु श्री नारदजी प्रभु श्री रामजी से कहते हैं कि प्रभु का नाम कलियुग के पापों का नाश करने वाला है । प्रभु का नाम संसार की ममता को काटने वाला साधन है ।
प्रकाशन तिथि : 20 जुलाई 2020 |
782 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/52/2 |
चौपाई / छंद / दोहा -
राम अनंत अनंत गुनानी । जन्म कर्म अनंत नामानी ॥ जल सीकर महि रज गनि जाहीं । रघुपति चरित न बरनि सिराहीं ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री महादेवजी भगवती पार्वती माता से कहते हैं कि प्रभु के स्वरूप, सद्गुण, कर्म, नाम सब कुछ अनंत हैं । प्रभु श्री महादेवजी कहते हैं कि सागर में जल की बूदें और धरती पर रज के कण को असंभव होने पर भी चाहे कोई गिन सकता है पर प्रभु के श्रीचरित्र जो अनंत हैं उसका पूर्ण रूप से कोई भी वर्णन नहीं कर सकता । प्रभु श्री महादेवजी भगवती पार्वती माता से कहते हैं कि उन्होंने भी प्रभु के बहुत थोड़े से ही सद्गुणों को संक्षिप्त में बखान करके कहें हैं ।
प्रकाशन तिथि : 20 जुलाई 2020 |
783 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/52/3 |
चौपाई / छंद / दोहा -
बिमल कथा हरि पद दायनी । भगति होइ सुनि अनपायनी ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री महादेवजी भगवती पार्वती माता को कहते हैं कि तन्मयता से सुनने वाले को प्रभु की पवित्र कथा प्रभु का परमपद देने वाली है । प्रभु श्री महादेवजी कहते हैं कि प्रभु की कथा जो सुनता है उसे प्रभु की अविचल भक्ति प्राप्त होती है, जो सबसे दुर्लभ है ।
प्रकाशन तिथि : 20 जुलाई 2020 |
784 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/52/5 |
चौपाई / छंद / दोहा -
धन्य धन्य मैं धन्य पुरारी । सुनेउँ राम गुन भव भय हारी ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री महादेवजी के श्रीमुख से प्रभु श्री रामजी की मंगलमयी कथा सुनकर भगवती पार्वती माता हर्षित हो उठी और प्रभु श्री महादेवजी से बोली कि वे धन्य हैं जिनको संसार चक्र के भय को हराने वाले प्रभु का श्रीचरित्र सुनने का अवसर मिला । भगवती पार्वती माता बोली कि जीवनमुक्त महामुनि भी कृतकृत्य होकर प्रभु का गुणगान निरंतर सुनते रहते हैं । माता बोली कि जो संसार सागर से पार जाना चाहते हैं उनके लिए प्रभु की कथा जहाज के समान है । यहाँ तक कि विषयी लोगों को भी प्रभु का गुणगान सुख और आनंद ही देता है । माता कहतीं हैं कि जिनको प्रभु की कथा नहीं सुहाती वे मूर्ख जीव होते हैं जो अपनी आत्मा की हत्या ही कर चुके होते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 21 जुलाई 2020 |
785 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/54/1 |
चौपाई / छंद / दोहा -
नर सहस्त्र महँ सुनहु पुरारी । कोउ एक होइ धर्म ब्रतधारी ॥ धर्मसील कोटिक महँ कोई । बिषय बिमुख बिराग रत होई ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - भगवती पार्वती माता कहतीं हैं कि हजारों मनुष्यों में कोई एक धर्म धारण करने वाला होता है । माता कहतीं हैं कि करोड़ों में से कोई एक संसार के विषय से विमुख होता है और वैराग्य परायण होता है ।
प्रकाशन तिथि : 21 जुलाई 2020 |
786 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/54/4 |
चौपाई / छंद / दोहा -
सब ते सो दुर्लभ सुरराया । राम भगति रत गत मद माया ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - भगवती पार्वती माता कहतीं हैं कि संसार में वह जीव अत्यन्त दुर्लभ है जो मद से रहित और माया के प्रभाव से बचकर प्रभु की भक्ति में अपने मन को लगाता है । माता का कथन कितना सत्य है कि श्रीहरि की भक्ति करने वाला भक्त बहुत दुर्लभ ही मिलता है ।
प्रकाशन तिथि : 21 जुलाई 2020 |
787 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/55/5 |
चौपाई / छंद / दोहा -
उपजइ राम चरन बिस्वासा । भव निधि तर नर बिनहिं प्रयासा ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री महादेवजी भगवती पार्वती माता को कहते हैं कि प्रभु के श्रीकमलचरणों में जिस जीव का विश्वास उत्पन्न हो जाता है वह जीव बिना ही परिश्रम संसाररूपी सागर से तर जाता है ।
प्रकाशन तिथि : 22 जुलाई 2020 |
788 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/60/2 |
चौपाई / छंद / दोहा -
हरि माया कर अमिति प्रभावा ।
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु की माया बड़ी ही बलवती है और प्रभु के लिए मन में संदेह और संसार के लिए मोह उत्पन्न कर देती है । सभी प्राणी प्रभु की माया के वश में है और सभी माया के असीम प्रभाव के आगे कुछ नहीं कर पाते । माया के प्रभाव से केवल मायापति प्रभु ही हमें बचा सकते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 22 जुलाई 2020 |
789 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/61/2 |
चौपाई / छंद / दोहा -
तबहि होइ सब संसय भंगा । जब बहु काल करिअ सतसंगा ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री महादेवजी पक्षीराज श्री गरुड़जी को एक बहुत मर्म की बात बताते हैं । प्रभु कहते हैं कि सभी संदेहों का तभी नाश होता है जब दीर्घकाल तक जीव सत्संग करता है । सत्संग दीर्घकाल तक होने पर ही जीव के मन में उत्पन्न शंका, संदेह और भ्रम मिटते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 22 जुलाई 2020 |
790 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/61/दोहा |
चौपाई / छंद / दोहा -
बिनु सतसंग न हरि कथा तेहि बिनु मोह न भाग । मोह गएँ बिनु राम पद होइ न दृढ़ अनुराग ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री महादेवजी पक्षीराज श्री गरुड़जी को कहते हैं कि सत्संग में श्रीहरि कथा सुनने को मिलती है जिससे मोह खत्म हो जाता है । मोह का त्याग होने पर प्रभु के श्रीकमलचरणों में दृढ़ प्रेम हो जाता है । यह सिद्धांत है कि बिना सत्संग के संसार के मोह की निवृत्ति नहीं होगी और मोह जाए बिना प्रभु से प्रीति नहीं होगी ।
प्रकाशन तिथि : 23 जुलाई 2020 |
791 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/62/1 |
चौपाई / छंद / दोहा -
मिलहिं न रघुपति बिनु अनुरागा । किएँ जोग तप ग्यान बिरागा ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री महादेवजी एक सत्य सिद्धांत का प्रतिपादन करते हैं । वे कहते हैं कि बिना प्रभु के लिए हृदय में प्रेम जगे केवल योग, तप, ज्ञान और यहाँ तक कि संसार से वैराग्य होने पर भी प्रभु नहीं मिलते । प्रभु के लिए हृदय में प्रीति निर्माण होने पर ही जीव को प्रभु मिलते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 23 जुलाई 2020 |
792 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/62/दोहा (ख) |
चौपाई / छंद / दोहा -
अस जियँ जानि भजहिं मुनि माया पति भगवान ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब प्रभु की माया ज्ञानियों और मुनियों को भी मोह लेती है तो माया के आगे साधारण जीव की गिनती ही क्या है । इसलिए माया से बचने का एक ही उपाय है कि मायापति प्रभु की शरण ग्रहण की जाए और प्रभु का भजन किया जाए ।
प्रकाशन तिथि : 23 जुलाई 2020 |
793 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/71/दोहा (ख) |
चौपाई / छंद / दोहा -
सो दासी रघुबीर कै समुझें मिथ्या सोपि । छूट न राम कृपा बिनु नाथ कहउँ पद रोपि ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री काकभुशुण्डिजी कहते हैं कि जगत में ऐसा कौन है जिसे माया न व्यापी हो । माया की प्रचंड सेना संसार भर में छाई हुई है । काम, क्रोध, लोभ उसके सेनापति हैं और दंभ, कपट और पाखंड उसके योद्धा हैं । श्री काकभुशुण्डिजी कहते हैं कि यह प्रबल माया प्रभु की दासी है और प्रभु जिस जीव पर कृपा करते हैं तभी यह उस जीव को छोड़ती है । यद्यपि माया सत्य नहीं है, मिथ्या है पर प्रभु के अनुग्रह प्राप्त करने पर ही जीव इसके शिकंजे से छूटता है ।
प्रकाशन तिथि : 24 जुलाई 2020 |
794 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/72/1 |
चौपाई / छंद / दोहा -
सोइ प्रभु भ्रू बिलास खगराजा । नाच नटी इव सहित समाजा ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री काकभुशुण्डिजी कहते हैं कि जो माया सारे जग को अपने वश में करके नचाती है वही माया प्रभु के भृकुटी के इशारे मात्र से अपने परिवार सहित नट की तरह प्रभु के आगे नाचती है ।
प्रकाशन तिथि : 24 जुलाई 2020 |
795 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/72/2-3 |
चौपाई / छंद / दोहा -
सोइ सच्चिदानंद घन रामा । अज बिग्यान रूपो बल धामा ॥ ब्यापक ब्याप्य अखंड अनंता । अखिल अमोघसक्ति भगवंता ॥ अगुन अदभ्र गिरा गोतीता । सबदरसी अनवद्य अजीता ॥ निर्मम निराकार निरमोहा । नित्य निरंजन सुख संदोहा ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री काकभुशुण्डिजी प्रभु श्री रामजी के लिए कुछ संबोधनों का प्रयोग करते हैं जो बड़े हृदयस्पर्शी हैं । वे कहते हैं कि प्रभु रूप और बल के धाम हैं, सर्वव्यापक और अनंत हैं । प्रभु की शक्ति कभी व्यर्थ नहीं होती, प्रभु माया से रहित और इंद्रियों से परे हैं । प्रभु सब कुछ देखने वाले, नित्य, सुख की राशि और अजेय हैं । प्रभु सर्वसामर्थ्यवान, सदा सबके हृदय में बसने वाले, इच्छारहित, विकाररहित, अविनाशी ब्रह्म हैं ।
प्रकाशन तिथि : 24 जुलाई 2020 |
796 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/73/दोहा (क) |
चौपाई / छंद / दोहा -
काम क्रोध मद लोभ रत गृहासक्त दुखरूप । ते किमि जानहिं रघुपतिहि मूढ़ परे तम कूप ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री काकभुशुण्डिजी कहते हैं कि जो जीव काम, क्रोध, मद और लोभ में रत हैं वे मूर्ख हैं और अंधकाररूपी कुएं में पड़े हैं । ऐसे जीव प्रभु की प्राप्ति नहीं कर सकते ।
प्रकाशन तिथि : 25 जुलाई 2020 |
797 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/74/दोहा (ख) |
चौपाई / छंद / दोहा -
तिमि रघुपति निज दासकर हरहिं मान हित लागि ।
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री काकभुशुण्डिजी कहते हैं कि प्रभु अपने भक्तों में अभिमान को कभी नहीं रहने देते । अभिमान जन्म मरण रूपी संसार का मूल है और अनेक प्रकार के क्लेशों और शोकों को देने वाला है । इसलिए कृपानिधान प्रभु अपने भक्तों को अभिमान से बचाते हैं । जैसे एक बच्चे के शरीर में फोड़ा हो जाए तो उसकी माता कठोर हृदय करके उस फोड़े को चीरा लगाती है और बच्चा अगर रोता है भी है तो माता उस बच्चे के हित के लिए उसके रोने की परवाह नहीं करती वैसे ही प्रभु अपने भक्तों के अभिमान को उनके हित के लिए हर लेते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 25 जुलाई 2020 |
798 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/75/दोहा (क) |
चौपाई / छंद / दोहा -
जूठनि परइ अजिर महँ सो उठाइ करि खाउँ ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री काकभुशुण्डिजी कहते हैं कि बालरूप में प्रभु श्री रामजी के साथ श्री अयोध्याजी में रहने का सौभाग्य उन्हें मिला । वे वहाँ प्रभु के श्रीमुख को देख देखकर अपने नेत्रों को सफल करते । प्रभु की जूठन उन्हें जहाँ मिलती वे प्रसाद रूप में उसे उठाकर खा लेते और प्रभु के श्रीकमलचरणों को स्पर्श करने के लिए प्रभु के समीप चले जाते ।
प्रकाशन तिथि : 25 जुलाई 2020 |
799 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/76/1 |
चौपाई / छंद / दोहा -
रामचरित सेवक सुखदायक ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री काकभुशुण्डिजी पक्षीराज श्री गरुड़जी से कहते हैं कि प्रभु भांति-भांति के श्रीचरित्र और श्रीलीलाएं करते हैं जो उनके सेवकों के हृदय को सुख देने वाले होते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 26 जुलाई 2020 |
800 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/78/3 |
चौपाई / छंद / दोहा -
माया बस्य जीव अभिमानी । ईस बस्य माया गुनखानी ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री काकभुशुण्डिजी एक सत्य सिद्धांत का प्रतिपादन करते हुए कहते हैं कि प्रभु और जीव में भेद यही है कि जीव माया के वश में है और माया प्रभु के आधीन और प्रभु के वश में है ।
प्रकाशन तिथि : 26 जुलाई 2020 |
801 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/78/4 |
चौपाई / छंद / दोहा -
परबस जीव स्वबस भगवंता । जीव अनेक एक श्रीकंता ॥ मुधा भेद जद्यपि कृत माया । बिनु हरि जाइ न कोटि उपाया ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - यह श्री रामचरितमानसजी का एक प्रसिद्ध दोहा है । श्री काकभुशुण्डिजी पक्षीराज श्री गरुड़जी को कहते हैं कि जीव सब तरह से परतंत्र है और प्रभु सब तरह से परम स्वतंत्र हैं । प्रभु सभी रूपों में एक ही है और जीव अनेक है । माया द्वारा जीव और प्रभु में किया भेद यद्यपि असत्य पर प्रभु के भजन के बिना करोड़ों उपाय करने पर भी यह भेद नहीं जाता ।
प्रकाशन तिथि : 26 जुलाई 2020 |
802 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/78/दोहा (क) |
चौपाई / छंद / दोहा -
रामचंद्र के भजन बिनु जो चह पद निर्बान । ग्यानवंत अपि सो नर पसु बिनु पूँछ बिषान ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री काकभुशुण्डिजी कहते हैं कि प्रभु श्री रामजी के भजन और भक्ति बिना मोक्षपद मिलना असंभव है । जो प्रभु की भक्ति के बिना मोक्षपद चाहता है वह मनुष्य अगर ज्ञानवान है तो भी अज्ञानी ही है और वैसा ही है जैसा बिना पूंछ और सींग के पशु होते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 27 जुलाई 2020 |
803 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/79/1 |
चौपाई / छंद / दोहा -
ऐसेहिं हरि बिनु भजन खगेसा । मिटइ न जीवन्ह केर कलेसा ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री काकभुशुण्डिजी एक सत्य सिद्धांत कहते हैं कि प्रभु के भजन किए बिना कभी भी जीव के क्लेश नहीं मिट सकते । संसार के क्लेश से निजात पाना है तो उसके लिए प्रभु की भक्ति ही करनी पड़ेगी ।
प्रकाशन तिथि : 27 जुलाई 2020 |
804 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/80/दोहा (क) |
चौपाई / छंद / दोहा -
जो नहिं देखा नहिं सुना जो मनहूँ न समाइ । सो सब अद्भुत देखेउँ बरनि कवनि बिधि जाइ ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री काकभुशुण्डिजी कहते हैं कि प्रभु के पेट में उन्होंने बहुत सारे ब्रह्मांडों के समूह देखें । उन्होंने बहुत सारे विचित्र लोक, अगणित तारामंडल, पर्वत, भूमि देखी । उन्होंने असंख्य सागर, नदी, वन और नाना प्रकार की जड़ और चेतन सृष्टियां देखी जिसकी रचना एक से बढ़कर एक थी । तात्पर्य यह है कि उन्होंने वह सब कुछ देखा जो न कभी देखा था, न सुना था और न ही जिसकी कल्पना कभी की जा सकती थी । सभी सृष्टियां इतनी अदभुत थी जिसका वर्णन किसी भी प्रकार से कर पाना कतई संभव नहीं है ।
प्रकाशन तिथि : 27 जुलाई 2020 |
805 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/84/2 |
चौपाई / छंद / दोहा -
भगति आपनी देन न कही ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु की माया से रचित असंख्य ब्रह्मांडों और सृष्टियों को देखकर श्री काकभुशुण्डिजी प्रभु के श्रीकमलचरणों में रक्षा करें, रक्षा करें पुकारते हुए गिर पड़े । तब प्रभु ने अपने माया के प्रभाव को रोक लिया और कृपामय एवं भक्तवत्सल प्रभु उनसे प्रसन्न हो उन्हें वर मांगने को कहा । प्रभु ने कहा कि वे अपनी सभी सिद्धियां, मोक्ष, ज्ञान, वैराग्य, विवेक जो सबके लिए दुर्लभ है वह सब देने को तैयार हैं । श्री काकभुशुण्डिजी कहते हैं कि प्रभु ने भक्ति देने की बात नहीं कही । सूत्र यह है कि प्रभु सब कुछ देने को तैयार हो जाते हैं पर अपनी दुर्लभ भक्ति बहुत सोचकर और बड़े ही योग्य को ही देते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 28 जुलाई 2020 |
806 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/84/3 |
चौपाई / छंद / दोहा -
भगति हीन गुन सब सुख ऐसे । लवन बिना बहु बिंजन जैसे ॥ भजन हीन सुख कवने काजा ।
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री काकभुशुण्डिजी कहते हैं कि भक्ति के बिना सब व्यर्थ है । भक्ति से रहित सब गुण और सब सुख फीके हैं । इसलिए श्री काकभुशुण्डिजी कहते हैं कि भक्ति के बिना और भक्ति से रहित सुख किसी काम के नहीं ।
प्रकाशन तिथि : 28 जुलाई 2020 |
807 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/84/दोहा (क) |
चौपाई / छंद / दोहा -
अबिरल भगति बिसुध्द तव श्रुति पुरान जो गाव ।
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री काकभुशुण्डिजी ने जब अपने ऊपर प्रभु को प्रसन्न देखा तो उदार प्रभु से उन्होंने प्रगाढ़ और निष्काम भक्ति मांगी जो कुछ बिरले ही पाते हैं । उन्होंने प्रभु से कहा कि प्रभु मन इच्छित फल देने वाले कृपालु हैं और प्रभु दया करके उन्हें भक्ति का ही दान दें ।
प्रकाशन तिथि : 28 जुलाई 2020 |
808 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/85/2 |
चौपाई / छंद / दोहा -
सब सुख खानि भगति तैं मागी । नहिं जग कोउ तोहि सम बड़भागी ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब श्री काकभुशुण्डिजी ने प्रभु से भक्ति मांगी तो प्रभु प्रसन्न होकर बोले कि जगत में श्री काकभुशुण्डिजी के समान कोई बड़भागी नहीं है जिन्होंने सभी सुखों की खान स्वरूपा प्रभु की भक्ति मांगी है । करोड़ों यत्न करने पर भी जिस भक्ति को कोई बिरला ही पाता है वह भक्ति की मांग सुनकर प्रभु रीझ गए । प्रभु ने उन्हें भक्ति का दान दिया और कहा कि सब सद्गुण उनके हृदय में बसेंगे, प्रभु की श्रीलीला और रहस्य प्रभु की कृपा से उनके सामने प्रकट होंगे और प्रभु की माया अब उन्हें कभी नहीं व्यापेगी ।
प्रकाशन तिथि : 29 जुलाई 2020 |
809 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/85/दोहा (ख) |
चौपाई / छंद / दोहा -
कायँ बचन मन मम पद करेसु अचल अनुराग ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु कहते हैं कि प्रभु के भक्त प्रभु को निरंतर प्रिय होते हैं । इसलिए भक्ति का दान देने के बाद प्रभु कहते हैं कि श्री काकभुशुण्डिजी को शरीर, वचन और मन से प्रभु के श्रीकमलचरणों में अटल प्रेम करना चाहिए जिससे उनका कल्याण होगा ।
प्रकाशन तिथि : 29 जुलाई 2020 |
810 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/86/2 |
चौपाई / छंद / दोहा -
सब ते अधिक मनुज मोहि भाए ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु कहते हैं कि सारी सृष्टि और संसार प्रभु की माया से उत्पन्न है जिसमें अनेकों प्रकार के चराचर जीव हैं । सभी प्रभु को प्रिय है क्योंकि सभी प्रभु के द्वारा उत्पन्न किए हुए हैं पर फिर भी प्रभु कहते हैं कि सबमें मानव प्रभु को सबसे अच्छे लगते हैं । इसलिए मानव जन्म जिसने भी पाया है वह प्रभु का प्रिय है और भक्ति करके वह प्रभु का सर्वाधिक प्रिय बन सकता है ।
प्रकाशन तिथि : 29 जुलाई 2020 |
811 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/86/4 |
चौपाई / छंद / दोहा -
मोहि सेवक सम प्रिय कोउ नाहीं ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु कहते हैं कि प्रभु को अपने निज सेवक के समान जगत में दूसरा कोई भी प्रिय नहीं है । अपने सेवक को प्रभु कितना ऊँचा स्थान और कितना मान देते हैं यह यहाँ पर देखने को मिलता है ।
प्रकाशन तिथि : 30 जुलाई 2020 |
812 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/86/5 |
चौपाई / छंद / दोहा -
भगतिवंत अति नीचउ प्रानी । मोहि प्रानप्रिय असि मम बानी ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु कहते हैं कि भक्ति से युक्त कोई अत्यंत नीच भी प्राणी है तो वह भी प्रभु को उससे भी ज्यादा प्रिय है जितना एक जीव को उसके प्राण प्रिय होते हैं । प्रभु घोषणा करके कहते हैं कि प्रभु का भक्त जो पवित्र, सुशील और सुंदर बुद्धिवाला होता है वह उन्हें सबसे ज्यादा प्यारा लगता है ।
प्रकाशन तिथि : 30 जुलाई 2020 |
813 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/87/दोहा (क) |
चौपाई / छंद / दोहा -
सर्ब भाव भज कपट तजि मोहि परम प्रिय सोइ ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु कहते हैं कि संपूर्ण विश्व की रचना प्रभु द्वारा की गई है इसलिए सभी पर प्रभु बराबर दया दृष्टि रखते हैं । पर फिर भी उनमें से जो भी मन, वचन और शरीर से प्रभु को भजते हैं, प्रभु कहते हैं कि वह जीव प्रभु को परम प्रिय होते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 30 जुलाई 2020 |
814 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/87/दोहा (ख) |
चौपाई / छंद / दोहा -
सत्य कहउँ खग तोहि सुचि सेवक मम प्रानप्रिय । अस बिचारि भजु मोहि परिहरि आस भरोस सब ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु कहते हैं कि वे एक सत्य सिद्धांत बताते हैं कि जो अनन्य और निष्काम होकर प्रभु को भजते हैं ऐसे सेवक प्रभु को प्राणप्रिय होते हैं । श्री काकभुशुण्डिजी को उपदेश देकर प्रभु सबका आह्वान करते हैं कि सभी आशा और भरोसो को छोड़कर प्रभु की भक्ति करनी चाहिए ।
प्रकाशन तिथि : 31 जुलाई 2020 |
815 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/89/4 |
चौपाई / छंद / दोहा -
जानें बिनु न होइ परतीती । बिनु परतीति होइ नहिं प्रीती ॥ प्रीति बिना नहिं भगति दिढ़ाई । जिमि खगपति जल कै चिकनाई ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री काकभुशुण्डिजी कहते हैं कि प्रभु की कृपा के बिना प्रभु की प्रभुता कोई नहीं जान पाता । प्रभु की प्रभुता जाने बिना प्रभु पर विश्वास नहीं होता । प्रभु पर विश्वास हुए बिना प्रभु से प्रेम नहीं होता और प्रभु से प्रेम हुए बिना जीवन में प्रभु की भक्ति दृढ़ नहीं होती ।
प्रकाशन तिथि : 31 जुलाई 2020 |
816 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/90/1 |
चौपाई / छंद / दोहा -
राम भजन बिनु मिटहिं कि कामा ।
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री काकभुशुण्डिजी एक सत्य सिद्धांत कहते हैं कि संसार की कामनाएं बिना प्रभु के भजन के कभी भी मिट नहीं सकती । अगर सांसारिक कामनाओं को विराम देना है तो भक्ति ही उसके लिए एकमात्र उपाय है ।
प्रकाशन तिथि : 31 जुलाई 2020 |
817 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/90/4 |
चौपाई / छंद / दोहा -
बिनु हरि भजन न भव भय नासा ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री काकभुशुण्डिजी कहते हैं कि बिना प्रभु की भक्ति के जन्म-मृत्यु का चक्कर और जन्म-मृत्यु के भय का कभी भी नाश नहीं हो सकता । अगर संसार के आवागमन से सदैव के लिए छूटना है तो भक्ति ही उसका एकमात्र उपाय है ।
प्रकाशन तिथि : 01 अगस्त 2020 |
818 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/90/दोहा (क) |
चौपाई / छंद / दोहा -
बिनु बिस्वास भगति नहिं तेहि बिनु द्रवहिं न रामु । राम कृपा बिनु सपनेहुँ जीव न लह बिश्रामु ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री काकभुशुण्डिजी कहते हैं कि प्रभु पर विश्वास होने पर ही प्रभु की भक्ति होती है । प्रभु की भक्ति करने से प्रभु का हृदय द्रवित होकर पिघलता है और प्रभु की कृपा उस जीव पर होती है जिससे वह जीव शांति पाता है । इसलिए करुणामय और सुख देने वाले प्रभु की भक्ति करनी चाहिए ।
प्रकाशन तिथि : 01 अगस्त 2020 |
819 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/91/3 |
चौपाई / छंद / दोहा -
तिमि रघुपति महिमा अवगाहा । तात कबहुँ कोउ पाव कि थाहा ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री काकभुशुण्डिजी कहते हैं कि प्रभु श्री रामजी की महिमा, नाम, रूप, सद्गुण, कथा सभी अपार और अनंत हैं । जैसे नभचर आकाश में उड़ते हैं परंतु आकाश का अंत कभी नहीं पा पाते वैसे ही प्रभु की महिमा अथाह है जिसका पार कोई नहीं पा सकता ।
प्रकाशन तिथि : 01 अगस्त 2020 |
820 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/92/छंद |
चौपाई / छंद / दोहा -
निरुपम न उपमा आन राम समान रामु निगम कहै । जिमि कोटि सत खद्योत सम रबि कहत अति लघुता लहै ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री रामजी उपमा रहित हैं । उनके लिए कोई दूसरी उपमा है ही नहीं । प्रभु के समान केवल प्रभु ही हैं ऐसा श्री वेदजी कहते हैं । जैसे अरबों जुगनूओं को भी मिलाकर कभी प्रभु श्री सूर्यनारायणजी की उपमा नहीं दी जा सकती वैसे ही अरबों श्री कामदेवजी को मिलाकर प्रभु की सुंदरता की, अरबों श्री इंद्रदेवजी को मिलाकर प्रभु की ऐश्वर्य की, अरबों श्री पवनदेवजी को मिलाकर प्रभु के महान बल की, अरबों श्री चंद्रदेवजी को मिलाकर प्रभु की शीतलता की, अरबों तीर्थों को मिलाकर प्रभु की पवित्रता की, अरबों श्री हिमालयजी को मिलाकर प्रभु की स्थिरता की, अरबों श्री समुद्रदेवजी को मिलाकर प्रभु की गहराई की, अरबों श्री कामधेनु माता को मिलाकर प्रभु की कामना पूर्ति की शक्ति की, अरबों श्री कुबेरदेवजी को मिलाकर प्रभु के वैभव की उपमा नहीं दी जा सकती ।
प्रकाशन तिथि : 02 अगस्त 2020 |
821 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/92/दोहा (क) |
चौपाई / छंद / दोहा -
रामु अमित गुन सागर थाह कि पावइ कोइ ।
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री काकभुशुण्डिजी कहते हैं कि प्रभु श्री रामजी अपार सद्गुणों के सागर हैं और उनका थाह कोई भी, कभी भी नहीं पा सकता । प्रभु के सद्गुणों का वर्णन करना किसी के लिए भी, कभी भी कतई संभव नहीं है ।
प्रकाशन तिथि : 02 अगस्त 2020 |
822 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/92/दोहा (ख) |
चौपाई / छंद / दोहा -
भाव बस्य भगवान सुख निधान करुना भवन । तजि ममता मद मान भजिअ सदा सीता रवन ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री काकभुशुण्डिजी कहते हैं कि सुख के भंडार और करुणा के धाम प्रभु सिर्फ भक्तों के प्रेम के वश में रहते हैं । इसलिए जीव को अपने मान, मद और ममता को छोड़कर सदा प्रभु की भक्ति करनी चाहिए ।
प्रकाशन तिथि : 02 अगस्त 2020 |
823 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/95/3 |
चौपाई / छंद / दोहा -
जप तप मख सम दम ब्रत दाना । बिरति बिबेक जोग बिग्याना ॥ सब कर फल रघुपति पद प्रेमा । तेहि बिनु कोउ न पावइ छेमा ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री काकभुशुण्डिजी कहते हैं कि अनेक जप, तप, यज्ञ, व्रत, दान, वैराग्य, योग, मन और इंद्रियों के निग्रह आदि सबका एकमात्र फल यही है कि प्रभु के श्रीकमलचरणों में हमारा प्रेम हो । जब तक प्रभु के श्रीकमलचरणों में हमारा प्रेम नहीं होगा तब तक हमारा कल्याण संभव नहीं है ।
प्रकाशन तिथि : 03 अगस्त 2020 |
824 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/96/1 |
चौपाई / छंद / दोहा -
स्वारथ साँच जीव कहुँ एहा । मन क्रम बचन राम पद नेहा ॥ सोइ पावन सोइ सुभग सरीरा । जो तनु पाइ भजिअ रघुबीरा ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री काकभुशुण्डिजी कहते हैं कि जीव का मन, वचन और कर्म से प्रभु के श्रीकमलचरणों में प्रेम होना चाहिए । वे कहते हैं कि वही शरीर पवित्र और सुंदर है जिस शरीर से प्रभु का भजन किया जाए । कहने का तात्पर्य यह है कि शरीर के बिना भक्ति संभव नहीं है पर जो शरीर हमें प्रभु भक्ति में सहयोग दे उसी शरीर की प्रशंसा है ।
प्रकाशन तिथि : 03 अगस्त 2020 |
825 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/96/5 |
चौपाई / छंद / दोहा -
देखेउँ करि सब करम गोसाई । सुखी न भयउँ अबहिं की नाई ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री काकभुशुण्डिजी पक्षीराज श्री गुरुड़जी से कहते हैं कि उन्होंने अनेक जन्म लिए और अनेकों योनियों में सब कर्म करके देख लिए । पर वर्तमान काक योनि में जहाँ उन्हें प्रभु का अनुग्रह और साक्षात्कार मिला इस कारण वे इस योनि में आकर सबसे सुखी हुए ।
प्रकाशन तिथि : 03 अगस्त 2020 |
826 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/100/2 |
चौपाई / छंद / दोहा -
कल्प कल्प भरि एक एक नरका । परहिं जे दूषहिं श्रुति करि तरका ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि श्री वेदजी, पुराणों और शास्त्रों को कभी भी तर्क बुद्धि से नहीं देखना चाहिए अपितु श्रद्धा भाव से ही देखना चाहिए । ऐसा इसलिए कि जो तर्क बुद्धि रखकर इनकी निंदा करते हैं उन्हें कल्प-कल्प भर के लिए एक-एक नर्क का वास मिलता है ।
प्रकाशन तिथि : 04 अगस्त 2020 |
827 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/100/दोहा (ख) |
चौपाई / छंद / दोहा -
श्रुति संमत हरि भक्ति पथ संजुत बिरति बिबेक । तेहि न चलहिं नर मोह बस कल्पहिं पंथ अनेक ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि कलियुग का प्रभाव है कि श्री वेदजी से सम्मत तथा वैराग्य और ज्ञान से युक्त भक्ति के मार्ग को जीव अपने कल्याण के लिए नहीं चुनता । जो प्रभु प्राप्ति के लिए सर्वमान्य और सर्वसम्मत भक्ति का मार्ग है उसकी जीव कलियुग में प्रायः अवहेलना करता है ।
प्रकाशन तिथि : 04 अगस्त 2020 |
828 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/102/दोहा (ख) |
चौपाई / छंद / दोहा -
कृतजुग त्रेता द्वापर पूजा मख अरु जोग । जो गति होइ सो कलि हरि नाम ते पावहिं लोग ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री काकभुशुण्डिजी कहते हैं कि कलियुग पाप और अवगुणों का घर है परंतु कलियुग में एक बहुत बड़ा गुण भी है कि इस युग में बहुत कम परिश्रम से आवागमन से सदैव के लिए छुटकारा मिल सकता है । सतयुग, त्रेता और द्वापर में जो गति बड़े दुर्लभ प्रयास के बाद मिलती थी वही गति कलियुग में केवल प्रभु नाम जप से बड़ी सुलभता से मिल जाती है ।
प्रकाशन तिथि : 04 अगस्त 2020 |
829 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/103/2 |
चौपाई / छंद / दोहा -
कलिजुग केवल हरि गुन गाहा । गावत नर पावहिं भव थाहा ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - कलियुग की विशेष महिमा है कि इस युग में केवल प्रभु के गुणानुवाद से ही जीव भवसागर से तर जाता है । इसलिए कलियुग में प्रभु की कथा और सत्संग का बड़ा विशेष महत्व है क्योंकि ये हमारे उद्धार कराने वाले साधन हैं । इस कलियुग में जितना प्रभु का गुणानुवाद हो सके उतना करना चाहिए और जितना कथा और सत्संग का श्रवण हो सके उतना करना चाहिए ।
प्रकाशन तिथि : 05 अगस्त 2020 |
830 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/103/3 |
चौपाई / छंद / दोहा -
कलिजुग जोग न जग्य न ग्याना । एक अधार राम गुन गाना ॥ सब भरोस तजि जो भज रामहि । प्रेम समेत गाव गुन ग्रामहि ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - कलियुग में केवल प्रभु का गुणगान ही भवसागर से तरने का एकमात्र आधार है । इसलिए कलियुग में योग, यज्ञ और ज्ञान का भरोसा त्यागकर केवल प्रभु की भक्ति करनी चाहिए और प्रेम सहित प्रभु का गुणानुवाद करना चाहिए । प्रभु के गुणानुवाद और नाम जप का प्रताप कलियुग में प्रत्यक्ष है ।
प्रकाशन तिथि : 05 अगस्त 2020 |
831 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/103/दोहा (क) |
चौपाई / छंद / दोहा -
कलिजुग सम जुग आन नहिं जौं नर कर बिस्वास । गाइ राम गुन गन बिमलँ भव तर बिनहिं प्रयास ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री काकभुशुण्डिजी कहते हैं कि जीव को इस बात पर दृढ़ विश्वास करना चाहिए कि अपने कल्याण और उद्धार के लिए कलियुग के समान अन्य कोई भी युग नहीं है । ऐसा इसलिए कि कलियुग में बिना परिश्रम के केवल प्रभु के निर्मल गुणों का गुणानुवाद करके जीव संसाररूपी सागर से बड़ी सुलभता से तर जाता है ।
प्रकाशन तिथि : 05 अगस्त 2020 |
832 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/104/दोहा (क) |
चौपाई / छंद / दोहा -
हरि माया कृत दोष गुन बिनु हरि भजन न जाहिं ।
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री काकभुशुण्डिजी कहते हैं कि जिनका प्रभु के श्रीकमलचरणों में अनन्य प्रेम है उनको युगधर्म नहीं व्याप्ते । वे कहते हैं कि प्रभु की माया द्वारा रचे हुए दोष प्रभु के भजन बिना नहीं जाते । इसलिए जीव को मन में इन सबका विचार करके प्रभु की भक्ति और प्रभु का भजन करना चाहिए ।
प्रकाशन तिथि : 06 अगस्त 2020 |
833 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/108/7 |
चौपाई / छंद / दोहा -
न यावद् उमानाथ पादारविन्दं । भजंतीह लोके परे वा नराणां ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - यह स्तुति श्री काकभुशुण्डिजी के गुरुजी ने प्रभु श्री महादेवजी की करी हुई है । उन्होंने कुछ संबोधनों का प्रयोग प्रभु श्री महादेवजी के लिए किया है, जो हृदयस्पर्शी हैं । उन्होंने प्रभु को मोक्षस्वरूप, व्यापक, कृपालु, सद्गुणों के धाम कहकर संबोधित किया । उन्होंने प्रभु को प्रसन्नमुख, दयालु, प्रेम भाव से प्राप्त होने वाले, कल्याणस्वरूप, सेवकों को सदा आनंद देने वाले कहकर संबोधित किया । उन्होंने कहा कि जो ऐसे प्रभु श्री महादेवजी के श्रीकमलचरणों को नहीं भजते उनके तापों का नाश कभी नहीं होता और उन्हें इहलोक और परलोक दोनों में सुख और शांति नहीं मिलती ।
प्रकाशन तिथि : 06 अगस्त 2020 |
834 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/108/दोहा (ख) |
चौपाई / छंद / दोहा -
निज पद भगति देइ प्रभु पुनि दूसर बर देहु ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री काकभुशुण्डिजी के गुरुजी पर जब प्रभु श्री महादेवजी प्रसन्न हुए और वर मांगने को कहा तो उन्होंने बहुत सुंदर निवेदन प्रभु से किया । उन्होंने कहा कि पहले प्रभु उन्हें अपने श्रीकमलचरणों की भक्ति देकर फिर ही कोई दूसरा वरदान दें ।
प्रकाशन तिथि : 06 अगस्त 2020 |
835 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/108/दोहा (ग) |
चौपाई / छंद / दोहा -
तव माया बस जीव जड़ संतत फिरइ भुलान ।
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री काकभुशुण्डिजी के गुरुजी ने एक सत्य बात प्रभु श्री महादेवजी को कहा । उन्होंने कहा कि अज्ञानी जीव प्रभु की माया के वश में होकर जगत में प्रभु को ही निरंतर भुलाए रखता है । प्रभु कृपा के सागर हैं और जब तक प्रभु की कृपा नहीं होती तब तक वह जीव माया से मोहित रहता है ।
प्रकाशन तिथि : 07 अगस्त 2020 |
836 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/110/7 |
चौपाई / छंद / दोहा -
छूटी त्रिबिध ईषना गाढ़ी । एक लालसा उर अति बाढ़ी ॥ राम चरन बारिज जब देखौं । तब निज जन्म सफल करि लेखौं ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री काकभुशुण्डिजी कहते हैं कि प्रभु श्री महादेवजी की कृपा के कारण उनकी तीन प्रकार की प्रबल वासनाएं छूट गई । उन्हें न पुत्र की, न धन की और न मान की इच्छा रही । उनके हृदय में एक ही लालसा बढ़ती गई कि कब उन्हें प्रभु श्री रामजी के श्रीकमलचरणों के दर्शन होंगे जिससे उनका जन्म सफल होगा । उनके हृदय में क्षण-क्षण नवीन प्रभु प्रेम उत्पन्न होने लगा और वे प्रभु के यशगान गाने में मग्न रहने लगे ।
प्रकाशन तिथि : 07 अगस्त 2020 |
837 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/111/2 |
चौपाई / छंद / दोहा -
अकल अनीह अनाम अरुपा । अनुभव गम्य अखंड अनूपा ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - मुनि श्री लोमशजी ने श्री काकभुशुण्डिजी से कहा कि प्रभु को कोई अपनी बुद्धि द्वारा जान नहीं सकता । प्रभु इच्छारहित, नामरहित, रूपरहित, उपमारहित, अखंड और केवल अनुभव से जानने योग्य हैं । प्रभु मन और इंद्रियों से परे, निर्विकार और सुख की राशि हैं ।
प्रकाशन तिथि : 07 अगस्त 2020 |
838 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/112/3 |
चौपाई / छंद / दोहा -
अघ कि रहहिं हरिचरित बखानें ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - एक सत्य सिद्धांत का प्रतिपादन इस दोहे में होता है । सिद्धांत यह है कि प्रभु के निर्मल श्रीचरित्र का वर्णन करने और सुनने वाले के पाप कभी बच नहीं सकते । इसलिए जीवन में सदैव प्रभु का गुणगान सुनना और करना चाहिए ।
प्रकाशन तिथि : 08 अगस्त 2020 |
839 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/112/4 |
चौपाई / छंद / दोहा -
लाभु कि किछु हरि भगति समाना ।
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु की भक्ति की महिमा यहाँ देखने को मिलती है । प्रभु की भक्ति की महिमा श्री वेदजी, पुराणजी और संत सभी गाते हैं और सभी सर्वसम्मति से एक बात कहते हैं कि प्रभु की भक्ति में जो लाभ है वैसा लाभ अन्य कही भी कतई नहीं है । यह सत्य है कि प्रभु भक्ति जैसा लाभ दूसरा है ही नहीं ।
प्रकाशन तिथि : 08 अगस्त 2020 |
840 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/112/5 |
चौपाई / छंद / दोहा -
हानि कि जग एहि सम किछु भाई । भजिअ न रामहि नर तनु पाई ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जगत में सबसे बड़ी हानि यह है कि मानव शरीर पाकर भी प्रभु की भक्ति न की जाए । यह सत्य है कि इससे बड़ी कोई दूसरी हानि नहीं हो सकती कि मानव शरीर पाकर भी भक्ति को भुलाकर संसार में उलझकर रहा जाए ।
प्रकाशन तिथि : 08 अगस्त 2020 |