क्रम संख्या |
श्रीग्रंथ |
संख्या |
भाव के दर्शन / प्रेरणापुंज |
721 |
श्रीरामचरित मानस
(लंकाकाण्ड) |
6/102/2 |
चौपाई / छंद / दोहा -
उमा काल मर जाकीं ईछा । सो प्रभु जन कर प्रीति परीछा ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब रावण के सिर और भुजाओं को बाण से काटने के बाद भी रावण नहीं मरा तो प्रभु श्री रामजी ने श्री विभीषणजी की ओर देखा । प्रभु श्री महादेवजी भगवती पार्वती माता से कहते हैं कि सब कुछ जानने वाले प्रभु अपने सेवक श्री विभीषणजी की प्रीति की परीक्षा ले रहे थे । जिन प्रभु की इच्छामात्र से काल भी मर जाता है उनके लिए रावण को मारना तो बस एक खेल था ।
प्रकाशन तिथि : 30 जून 2020 |
722 |
श्रीरामचरित मानस
(लंकाकाण्ड) |
6/103/छंद |
चौपाई / छंद / दोहा -
जय कृपा कंद मुकंद द्वंद हरन सरन सुखप्रद प्रभो । खल दल बिदारन परम कारन कारुनीक सदा बिभो ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब प्रभु श्री रामजी ने रावण को मार दिया तो सभी देवतागण और मुनिगण हर्षित होकर प्रभु पर फूलों की वर्षा करने लगे । पूरा ब्रह्मांड प्रभु के लिए जय-जय की ध्वनि से भर गया । देवतागणों और मुनिगणों ने प्रभु की स्तुति में जो शब्द कहे वे हृदयस्पर्शी हैं । उन्होंने प्रभु को कृपा करने वाला, मोक्ष दाता, जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त करने वाला कहकर संबोधित किया । उन्होंने प्रभु को शरणागत को सुख देने वाला, दुष्टों का नाश करने वाला, कारणों के परम कारण, सदा करुणा करने वाला और सर्वव्यापक कहकर संबोधित किया । प्रभु ने देवताओं के समूह को अपनी कृपा दृष्टि से देखा और उन्हें निर्भय कर दिया ।
प्रकाशन तिथि : 30 जून 2020 |
723 |
श्रीरामचरित मानस
(लंकाकाण्ड) |
6/104/5 |
चौपाई / छंद / दोहा -
राम बिमुख अस हाल तुम्हारा । रहा न कोउ कुल रोवनिहारा ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - रावण का शव देखकर भगवती मंदोदरी ने विलाप करते हुए एक सटीक बात कही । उन्होंने कहा कि प्रभु श्री रामजी के विमुख होने पर आज रावण की ऐसी दुर्दशा हुई है कि आज उसके कुल में कोई रोने वाला भी नहीं बचा । आज उसके सिर और भुजाओं को युद्धभूमि में गीदड़ खा रहे हैं । भगवती मंदोदरी ने बड़ी सुंदर बात कही कि प्रभु विमुख के लिए ऐसा होना कतई अनुचित नहीं बल्कि उचित ही है ।
प्रकाशन तिथि : 30 जून 2020 |
724 |
श्रीरामचरित मानस
(लंकाकाण्ड) |
6/104/छंद |
चौपाई / छंद / दोहा -
तुम्हहू दियो निज धाम राम नमामि ब्रह्म निरामयं ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - भगवती मंदोदरी कहती है कि जिस रावण ने कभी भी प्रभु श्री रामजी को नहीं भजा और उनका सदैव द्रोह ही किया उसे भी कृपासिंधु प्रभु श्री रामजी ने अपने धाम भेज दिया जो योगियों के लिए भी दुर्लभ है । भगवती मंदोदरी कहती है कि वह ऐसे कृपा के सागर प्रभु श्री रामजी को प्रणाम करती है ।
प्रकाशन तिथि : 01 जुलाई 2020 |
725 |
श्रीरामचरित मानस
(लंकाकाण्ड) |
6/107/दोहा |
चौपाई / छंद / दोहा -
सुनु सुत सदगुन सकल तव हृदयँ बसहुँ हनुमंत । सानुकूल कोसलपति रहहुँ समेत अनंत ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब युद्ध के बाद प्रभु श्री रामजी के विजय का समाचार लेकर प्रभु श्री हनुमानजी भगवती सीता माता के पास आए तो समाचार सुनकर माता को अत्यंत हर्ष हुआ, उनके श्रीनेत्रों से आनंदाश्रु बहने लगे । भगवती सीता माता ने प्रभु श्री हनुमानजी को पुत्र कहकर संबोधित किया और आशीर्वाद दिया कि समस्त सद्गुण उनके हृदय में सदा बसे रहेंगे और प्रभु श्री रामजी सदा उन पर प्रसन्न रहेंगे ।
प्रकाशन तिथि : 01 जुलाई 2020 |
726 |
श्रीरामचरित मानस
(लंकाकाण्ड) |
6/111/छंद 3 |
चौपाई / छंद / दोहा -
जन रंजन भंजन सोक भयं । गतक्रोध सदा प्रभु बोधमयं ॥ अवतार उदार अपार गुनं । महि भार बिभंजन ग्यानघनं ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - यह प्रभु श्री ब्रह्माजी के द्वारा की गई प्रभु श्री रामजी की स्तुति है । प्रभु श्री ब्रह्माजी कहते हैं कि प्रभु अपने सेवकों को आनंद देने वाले, अपने सेवकों के शोक और भय का नाश करने वाले, नित्य ज्ञानस्वरूप, अपार दिव्य गुणों वाले हैं । प्रभु व्यापक, अद्वितीय और करुणा के खान हैं । प्रभु ज्ञान और सद्गुणों के भंडार हैं और दुष्टों के समूह का नाश करने वाले हैं ।
प्रकाशन तिथि : 01 जुलाई 2020 |
727 |
श्रीरामचरित मानस
(लंकाकाण्ड) |
6/111/छंद 7 |
चौपाई / छंद / दोहा -
सुख मंदिर सुंदर श्रीरमनं । मद मार मुधा ममता समनं ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - यह प्रभु श्री ब्रह्माजी के द्वारा की गई प्रभु श्री रामजी की स्तुति है । प्रभु श्री ब्रह्माजी कहते हैं कि प्रभु श्री रामजी बिना कारण ही दीनों पर दया करने वाले और उनका हित करने वाले हैं । प्रभु भवसागर से तारने वाले और जीव के भीतर अहंकार, काम और ममता को नष्ट करने वाले हैं ।
प्रकाशन तिथि : 02 जुलाई 2020 |
728 |
श्रीरामचरित मानस
(लंकाकाण्ड) |
6/111/छंद 9 |
चौपाई / छंद / दोहा -
धिग जीवन देव सरीर हरे । तव भक्ति बिना भव भूलि परे ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री ब्रह्माजी प्रभु श्री रामजी से कहते हैं कि उस शरीर को धिक्कार है जो प्रभु की भक्ति नहीं करता और संसार के विषयों के पीछे घूमता है । प्रभु श्री ब्रह्माजी वरदान मांगते हैं कि उन्हें सदा प्रभु के श्रीकमलचरणों का कल्याणदायक और अनन्य प्रेम मिले । ऐसी प्रभु से विनती कर प्रभु श्री ब्रह्माजी का शरीर प्रेम से अत्यंत पुलकित हो गया और शोभा के सागर प्रभु का दर्शन करते-करते उनके श्रीनेत्र तृप्त ही नहीं हुए ।
प्रकाशन तिथि : 02 जुलाई 2020 |
729 |
श्रीरामचरित मानस
(लंकाकाण्ड) |
6/112/4 |
चौपाई / छंद / दोहा -
सगुनोपासक मोच्छ न लेहीं । तिन्ह कहुँ राम भगति निज देहीं ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि सगुण स्वरूप की उपासना करने वाले जो भक्त प्रभु से मोक्ष भी नहीं लेते तो प्रभु उनको अंत में अपनी भक्ति दे देते हैं । यह इस बात का प्रमाण है कि भक्ति का स्थान मोक्ष से भी बहुत ऊँचा है ।
प्रकाशन तिथि : 02 जुलाई 2020 |
730 |
श्रीरामचरित मानस
(लंकाकाण्ड) |
6/113/8 |
चौपाई / छंद / दोहा -
मोहि जानिए निज दास । दे भक्ति रमानिवास ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - यह देवराज श्री इंद्रदेवजी द्वारा प्रभु श्री रामजी की स्तुति है । देवराज श्री इंद्रदेवजी के प्रभु के लिए कुछ संबोधन बड़े हृदयस्पर्शी हैं । वे प्रभु श्री रामजी को शोभा के धाम और शरणागत को विश्राम देने वाले कहते हैं । वे प्रभु को देवताओं को सनाथ और सुरक्षित करने वाले और पृथ्वी माता का भार हरने वाले कहते हैं । वे प्रभु को शरणागत के भय हरके उनको सब प्रकार के सुख देने वाले और जन्म-मृत्यु के चक्र का नाश करने वाला कहते हैं । देवराज श्री इंद्रदेवजी कहते हैं कि प्रभु श्री रामजी उन्हें अपना दास समझकर उनको भक्ति का दान दें ।
प्रकाशन तिथि : 03 जुलाई 2020 |
731 |
श्रीरामचरित मानस
(लंकाकाण्ड) |
6/114/2 |
चौपाई / छंद / दोहा -
प्रभु सक त्रिभुअन मारि जिआई । केवल सक्रहि दीन्हि बड़ाई ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - देवराज श्री इंद्रदेवजी प्रभु श्री रामजी से कहते हैं कि वे अपनी कुछ सेवा प्रभु को अर्पण करना चाहते हैं तो प्रभु उन्हें जो वानर भालू युद्धभूमि में मृत पड़े हैं उन्हें अमृत से जिलाने को कहते हैं । अपने लिए प्राण त्यागने वाले का कितना हित प्रभु के हृदय में है यह यहाँ देखने को मिलता है । गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि प्रभु श्री रामजी पूरी त्रिलोकी को मारकर अपने संकल्प मात्र से उन्हें जिला सकते हैं पर वे इसकी बड़ाई देवराज श्री इंद्रदेवजी को देना चाहते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 03 जुलाई 2020 |
732 |
श्रीरामचरित मानस
(लंकाकाण्ड) |
6/114/5 |
चौपाई / छंद / दोहा -
राम सरिस को दीन हितकारी । कीन्हे मुकुत निसाचर झारी ॥ खल मल धाम काम रत रावन । गति पाई जो मुनिबर पाव न ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि प्रभु श्री रामजी जैसा दीनों का हित करने वाला ओर कोई नहीं जिन्होंने सारे मरे राक्षसों को भवबंधन से मुक्त कर दिया और रावण को भी वह गति दी जो श्रेष्ठ मुनि भी नहीं पाते ।
प्रकाशन तिथि : 03 जुलाई 2020 |
733 |
श्रीरामचरित मानस
(लंकाकाण्ड) |
6/116/दोहा (घ) |
चौपाई / छंद / दोहा -
करेहु कल्प भरि राजु तुम्ह मोहि सुमिरेहु मन माहिं । पुनि मम धाम पाइहहु जहाँ संत सब जाहिं ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब लंका में श्री विभीषणजी का राज्याभिषेक हुआ तो उसके तुरंत बाद वे प्रभु श्री रामजी के पास आए और कहा कि लंका का सारा खजाना, महल और संपत्ति प्रभु की है । प्रभु ने उनका भाव देखकर कहा कि उनका यह निवेदन सत्य है पर प्रभु की इच्छा है कि वे कल्प भर प्रभु का निरंतर अपने हृदय में स्मरण करते हुए लंका का राज्य करें । फिर उसके बाद प्रभु उन्हें अपने धाम बुला लेंगे ।
प्रकाशन तिथि : 04 जुलाई 2020 |
734 |
श्रीरामचरित मानस
(लंकाकाण्ड) |
6/117/दोहा (ख) |
चौपाई / छंद / दोहा -
उमा जोग जप दान तप नाना मख ब्रत नेम । राम कृपा नहि करहिं तसि जसि निष्केवल प्रेम ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री महादेवजी भगवती पार्वती माता से बहुत रहस्य और मर्म की बात कहते हैं । वे कहते हैं कि अनेक प्रकार के योग, जप, दान, तप, यज्ञ, व्रत और नियम पालन करने पर भी प्रभु श्री रामजी वैसी कृपा नहीं करते जैसी भक्त के हृदय में अपने लिए अनन्य प्रेम देखने पर करते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 04 जुलाई 2020 |
735 |
श्रीरामचरित मानस
(लंकाकाण्ड) |
6/118/2 |
चौपाई / छंद / दोहा -
तुम्हरें बल मैं रावनु मारयो ।
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री रामजी ने विदाई की बेला पर अपनी कृपा और दया दृष्टि से सभी वानरों को देखा और दीन वचन बोलते हुए कहा कि उनके बल से ही प्रभु ने रावण को मारा है । गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि कही मच्छर भी पक्षीराज श्री गरुड़जी का हित कर सकते हैं पर प्रभु का स्वभाव है कि किसी भी चीज का श्रेय न लेकर अपने सेवकों को श्रेय देकर उनका मान सदैव बढ़ाते रहना ।
प्रकाशन तिथि : 04 जुलाई 2020 |
736 |
श्रीरामचरित मानस
(लंकाकाण्ड) |
6/119/दोहा (क) |
चौपाई / छंद / दोहा -
सीता सहित कृपानिधि संभुहि कीन्ह प्रनाम ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब पुष्पक विमान से प्रभु श्री रामजी ने सागर पार किया तो प्रभु ने भगवती सीता माता को अपने द्वारा स्थापित प्रभु श्री महादेवजी का श्री शिवलिंगजी दिखाया । प्रभु ने माता समेत अपने आराध्य इष्ट प्रभु श्री महादेवजी को प्रणाम किया ।
प्रकाशन तिथि : 05 जुलाई 2020 |
737 |
श्रीरामचरित मानस
(लंकाकाण्ड) |
6/120/4 |
चौपाई / छंद / दोहा -
तीरथपति पुनि देखु प्रयागा । निरखत जन्म कोटि अघ भागा ॥ देखु परम पावनि पुनि बेनी । हरनि सोक हरि लोक निसेनी ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री रामजी अपने मानव अवतार में तीर्थों को कितना मान और आदर देते हैं यह यहाँ पर देखने को मिलता है । जब प्रभु श्री प्रयागतीर्थ पहुँचे तो प्रभु ने माता को भगवती गंगा माता और भगवती यमुना माता के दर्शन कर उन्हें प्रणाम करने को कहा । प्रभु ने श्री प्रयागराजजी की महिमा सबको बताते हुए कहा कि इनके दर्शन से जन्म-जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं । परम पवित्र त्रिवेणी को प्रभु ने शोकों को हरने वाली और प्रभु के धाम पहुँचाने के लिए सीढ़ी के समान बताया ।
प्रकाशन तिथि : 05 जुलाई 2020 |
738 |
श्रीरामचरित मानस
(लंकाकाण्ड) |
6/120/दोहा (क) |
चौपाई / छंद / दोहा -
सीता सहित अवध कहुँ कीन्ह कृपाल प्रनाम । सजल नयन तन पुलकित पुनि पुनि हरषित राम ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु ने पुष्पक विमान से भगवती सीता माता को श्री अयोध्यापुरी के दर्शन करने को कहा और प्रभु बोले कि यह दर्शन तीनों प्रकार के तापों का नाश करने वाला और संसार के आवागमनरूपी चक्र का नाश करने वाला है । यह कहकर प्रभु श्री रामजी ने भगवती सीता माता सहित श्री अयोध्यापुरी को प्रणाम किया और अपनी मातृभूमि के दर्शन करके प्रभु के श्रीनेत्र सजल हो गए, शरीर पुलकित हो गया और प्रभु अति हर्षित हो गए ।
प्रकाशन तिथि : 05 जुलाई 2020 |
739 |
श्रीरामचरित मानस
(लंकाकाण्ड) |
6/121/4 |
चौपाई / छंद / दोहा -
तब सीताँ पूजी सुरसरी । बहु प्रकार पुनि चरनन्हि परी ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - भगवती सीता माता ने भगवती गंगा माता की विधिवत पूजा की और दंडवत प्रणाम किया । भगवती गंगा माता ने उनकी पूजा स्वीकार करते हुए हर्षित होकर उन्हें आशीर्वाद दिया ।
प्रकाशन तिथि : 06 जुलाई 2020 |
740 |
श्रीरामचरित मानस
(लंकाकाण्ड) |
6/121/दोहा (क) |
चौपाई / छंद / दोहा -
समर बिजय रघुबीर के चरित जे सुनहिं सुजान । बिजय बिबेक बिभूति नित तिन्हहि देहिं भगवान ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी श्री लंकाकांड की फलश्रुति बताते हुए कहते हैं कि जो जीव प्रभु के युद्ध में विजय की श्रीलीला सुनते हैं उनके जीवन में प्रभु कृपा से सदैव विजय होती है और प्रभु उन्हें विवेक और ऐश्वर्य देते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 06 जुलाई 2020 |
741 |
श्रीरामचरित मानस
(लंकाकाण्ड) |
6/121/दोहा (ख) |
चौपाई / छंद / दोहा -
यह कलिकाल मलायतन मन करि देखु बिचार । श्रीरघुनाथ नाम तजि नाहिन आन अधार ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी जीव के मन को विचार करने के लिए आह्वान करते हैं । वे कहते हैं कि मन विचार करे कि यह कलियुग पापों का घर है और इन पापों से बचने का प्रभु के नाम को छोड़कर दूसरा कोई आधार है ही नहीं ।
श्री लंकाकाण्डजी के विश्राम के बाद अब हम श्री रामचरितमानसजी के नवीन श्री उत्तरकाण्डजी में प्रभु कृपा के बल पर मंगल प्रवेश करेंगे ।
श्री रामायणजी और श्री रामचरितमानसजी में मेरी अटूट आस्था है । प्रभु श्री महादेवजी और भगवती पार्वती माता की असीम कृपा से ही इन श्रीग्रंथों को पढ़ने की, लिखने की प्रेरणा मुझे मिली है और मैं शपथपूर्वक कहता हूँ कि मात्र और मात्र प्रभु कृपा के बल पर ही मेरे लिए ऐसा करना संभव हो पाया है । प्रभु श्री हनुमानजी की विशेष कृपा के साथ-साथ देवर्षि प्रभु श्री नारदजी का आशीर्वाद का मैंने साक्षात अनुभव किया है ।
इस श्री लंकाकाण्डजी की फलश्रुति यह है कि जो जीव प्रभु के युद्ध में विजय की श्रीलीला सुनते हैं उनके जीवन में प्रभु कृपा से सदैव विजय होती है ।
जो कुछ भी लेखन हुआ है वह प्रभु कृपा के बल पर ही हुआ है । मेरा प्रयास मेरे प्रभु को प्रिय लगे इसी अभिलाषा के साथ मैं उसे प्रभु के श्रीकमलचरणों में सादर समर्पित करता हूँ ।
प्रभु का,
चन्द्रशेखर कर्वा
प्रकाशन तिथि : 06 जुलाई 2020 |
742 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/1/3 |
चौपाई / छंद / दोहा -
जन अवगुन प्रभु मान न काऊ । दीन बंधु अति मृदुल सुभाऊ ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब चौदह वर्ष के वनवास में एक दिन बचा तो श्री भरतलालजी चिंता करने लगे कि प्रभु क्यों नहीं लौटे । वे सोचने लगे कि उनकी करनी तो ऐसी है कि प्रभु उनका त्याग ही कर दें तो भी कम है पर उनके लिए यही आशा है कि उनको पता है कि प्रभु अपने सेवकों के अवगुण को कभी नहीं देखते । प्रभु दीनबंधु हैं और स्वभाव से ही अति कोमल हैं । इसलिए उनके हृदय में पूरा भरोसा था कि प्रभु लौटकर उन पर कृपा करेंगे ।
प्रकाशन तिथि : 07 जुलाई 2020 |
743 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/1/दोहा (क) |
चौपाई / छंद / दोहा -
राम बिरह सागर महँ भरत मगन मन होत । बिप्र रूप धरि पवन सुत आइ गयउ जनु पोत ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री रामजी के विरहरूपी सागर में श्री भरतलालजी का मन डूब रहा था तभी प्रभु द्वारा भेजे प्रभु श्री हनुमानजी उन्हें प्रभु के शुभागमन की सूचना देने आ गए । गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं मानो प्रभु विरहरूपी सागर में डूबते श्री भरतलालजी को बचाने के लिए प्रभु श्री हनुमानजी के रूप में नैया आ गई ।
प्रकाशन तिथि : 07 जुलाई 2020 |
744 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/2/6 |
चौपाई / छंद / दोहा -
कपि तव दरस सकल दुख बीते । मिले आजु मोहि राम पिरीते ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब प्रभु श्री हनुमानजी ने श्री भरतलालजी को प्रभु श्री रामजी का दूत कहकर ब्राह्मण रूप त्यागकर अपना परिचय दिया तो श्री भरतलालजी ने उन्हें अपने गले से लगा लिया । श्री भरतलालजी का शरीर पुलकित हो गया और आनंद एवं प्रेम के अश्रु बह निकले । उन्होंने प्रभु श्री हनुमानजी से कहा कि उनके द्वारा दी प्रभु श्री रामजी के आगमन की सूचना से उनके सब दुःखों का अंत हो गया । श्री भरतलालजी ने कहा कि प्रभु श्री हनुमानजी के इस उपकार से वे कभी भी उऋण नहीं हो सकते ।
प्रकाशन तिथि : 07 जुलाई 2020 |
745 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/4/4 |
चौपाई / छंद / दोहा -
धन्य अवध जो राम बखानी ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री रामजी ने पुष्पक विमान में बैठे सभी को श्री अवधपुरीजी का दर्शन कराया और कहा कि श्री बैकुंठजी से भी ज्यादा उन्हें अपनी मातृभूमि श्री अवधपुरीजी प्रिय है । प्रभु ने कहा कि यह श्री अवधपुरीजी और श्री सरयूजी का दर्शन मुक्ति देने वाला और प्रभु के परमधाम में पहुँचाने वाला है । प्रभु की वाणी सुनकर सभी हर्षित हुए और कहने लगे कि जिस श्री अवधपुरीजी की प्रभु श्री रामजी ने स्वयं अपने श्रीमुख से इतनी बड़ाई की है वह अवश्य ही परम धन्य है ।
प्रकाशन तिथि : 08 जुलाई 2020 |
746 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/5/छंद 2 |
चौपाई / छंद / दोहा -
बूड़त बिरह बारीस कृपानिधान मोहि कर गहि लियो ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री भरतलालजी प्रभु श्री रामजी के श्रीकमलचरणों में गिर गए और प्रभु के उठाए भी नहीं उठे । तब प्रभु ने बड़ी कठिनाई से उन्हें उठाकर अपने हृदय से लगाया । श्री भरतलालजी के शरीर के रोएं खड़े हो गए और उनके नेत्रों से प्रेमाश्रु की धारा बहने लगी । प्रभु श्री महादेवजी भगवती पार्वती माता से कहते हैं कि श्री भरतलालजी का सुख उपमा रहित है और उसे वही जानता है जो उसे पाता है । जब प्रभु श्री रामजी ने श्री भरतलालजी की कुशल पूछी तो उन्होंने कहा कि प्रभु विरहरूपी सागर में डूबने से पहले कृपानिधान प्रभु ने उन्हें दर्शन देकर बचा लिया ।
प्रकाशन तिथि : 08 जुलाई 2020 |
747 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/8/4 |
चौपाई / छंद / दोहा -
मम हित लागि जन्म इन्ह हारे ।
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब प्रभु श्री रामजी ने अपने साथ आए प्रभु श्री हनुमानजी, श्री सुग्रीवजी, श्री जाम्बवन्तजी, श्री अंगदजी, श्री नल-नीलजी, श्री विभीषणजी को अपने गुरुदेव ऋषि श्री वशिष्ठजी से मिलवाया तो प्रभु ने कहा कि यह सब उनके सखा हैं । यह सब युद्धरूपी सागर में उनके लिए जहाज के समान थे जिनके कारण वे युद्ध जीत पाए । प्रभु ने कहा कि प्रभु के हित के लिए इन सबने अपने प्राणों तक को दांव पर लगा दिया । प्रभु कितनी बड़ाई अपने सेवकों को देते हैं और कितना उपकार उनका मानते हैं यह इस प्रसंग में देखने को मिलता है ।
प्रकाशन तिथि : 08 जुलाई 2020 |
748 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/12/छंद 1 |
चौपाई / छंद / दोहा -
नभ दुंदुभीं बाजहिं बिपुल गंधर्ब किंनर गावहीं । नाचहिं अपछरा बृंद परमानंद सुर मुनि पावहीं ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री रामजी के श्री अयोध्याजी लौटने पर नगर की शोभा, संपत्ति और मंगल अद्वितीय हो गए जिसका वर्णन कोई नहीं कर सकता । अनेक प्रकार के शुभ शकुन होने लगे । गुरुदेव ऋषि श्री वशिष्ठजी ने कहा कि आज ही वह शुभ घड़ी, सुंदर दिन और शुभ योग है जब प्रभु का राज्याभिषेक होना चाहिए । यह सुनते ही आकाश में नगाड़े बजने लगे, देवतागण फूलों की वर्षा करने लगे । वेदमंत्रों का उच्चारण शुरू हो गया, देवतागण और मुनिगण प्रभु का जयघोष करने लगे । प्रभु श्री महादेवजी, प्रभु श्री ब्रह्माजी, सभी देवतागण और मुनिगण प्रभु के राज्याभिषेक का दर्शन करने आ गए । गंधर्व प्रभु का यश गाने लगे, अप्सराएं नृत्य करने लगी और सभी तरफ पूर्ण परमानंद छा गया ।
प्रकाशन तिथि : 09 जुलाई 2020 |
749 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/13/छंद 1 |
चौपाई / छंद / दोहा -
जय प्रनतपाल दयाल प्रभु संजुक्त सक्ति नमामहे ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री रामजी के राज्याभिषेक के समय श्री वेदजी भी भाट का रूप धारण करके प्रभु का यशगान करने आ गए । उन्होंने प्रभु का जय-जयकार किया और कहा कि शक्तिस्वरूपा भगवती सीता माता सहित शक्तिमान प्रभु श्री रामजी का वे जयघोष करते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 09 जुलाई 2020 |
750 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/13/छंद 2 |
चौपाई / छंद / दोहा -
जे नाथ करि करुना बिलोके त्रिबिधि दुख ते निर्बहे । भव खेद छेदन दच्छ हम कहुँ रच्छ राम नमामहे ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री वेदजी प्रभु श्री रामजी से कहते हैं कि प्रभु की माया के वशीभूत होने के कारण जीव आवागमन में भटक रहे हैं । प्रभु जिनको कृपा दृष्टि से एक बार देख लेते हैं वे ही माया और माया जनित दुःखों से छूट पाते हैं । प्रभु जीव के जन्म-मरण के बंधन को काटने में अति कुशल हैं ।
प्रकाशन तिथि : 09 जुलाई 2020 |
751 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/13/छंद 3 |
चौपाई / छंद / दोहा -
बिस्वास करि सब आस परिहरि दास तव जे होइ रहे । जपि नाम तव बिनु श्रम तरहिं भव नाथ सो समरामहे ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री वेदजी प्रभु से कहते हैं कि जिन्होंने आवागमन को हराने वाली प्रभु की भक्ति नहीं की वे नीचे गिरते हैं । इसलिए सब आशाओं को छोड़कर प्रभु का दास बनकर प्रभु पर पूर्ण विश्वास करके जो प्रभु के नाम का आश्रय लेते हैं वे बिना परिश्रम भवसागर से तर जाते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 10 जुलाई 2020 |
752 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/13/छंद 6 |
चौपाई / छंद / दोहा -
करुनायतन प्रभु सदगुनाकर देव यह बर मागहीं । मन बचन कर्म बिकार तजि तव चरन हम अनुरागहीं ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री वेदजी प्रभु से मांगते हैं कि वे प्रभु के यश को नित्य भजते रहें और नित्य प्रभु के सुयश का गान करते रहे । श्री वेदजी प्रभु को करुणा के धाम और सद्गुणों की खान कहकर संबोधित करते हैं और प्रभु से मांगते हैं कि मन, वचन और कर्म से उनका प्रभु के
श्रीकमलचरणों में प्रेम हो ।
प्रकाशन तिथि : 10 जुलाई 2020 |
753 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/14/5 |
चौपाई / छंद / दोहा -
भव सिंधु अगाध परे नर ते । पद पंकज प्रेम न जे करते ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री महादेवजी ने गदगद वाणी से प्रभु श्री रामजी की स्तुति की और प्रभु से कहा कि केवल प्रभु ही
जन्म-मृत्यु के संताप का नाश करने वाले हैं । प्रभु श्री महादेवजी एक मर्म की बात कहते हैं कि जो जीव प्रभु के श्रीकमलचरणों में प्रेम नहीं करते वे अथाह भवसागर में पड़े रहते हैं । जिनको प्रभु के श्रीकमलचरणों में प्रीति नहीं है वे जीवन में अत्यंत उदास और दुःखी रहते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 10 जुलाई 2020 |
754 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/14/दोहा (क) |
चौपाई / छंद / दोहा -
बार बार बर मागउँ हरषि देहु श्रीरंग । पद सरोज अनपायनी भगति सदा सतसंग ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - यह श्री रामचरितमानसजी की एक बहुत प्रसिद्ध चौपाई है । इसमें दो विनती प्रभु से की गई है । इसमें मांगने वाले जगतपिता हैं और देने वाले जगतपति हैं । प्रभु श्री महादेवजी प्रभु श्री रामजी के राज्याभिषेक पर उपस्थित होकर उनकी स्तुति करके श्री कैलाशजी लौटने से पूर्व दो वर मांगते हैं जो की सर्वश्रेष्ठ दो वर हैं । इनसे अधिक कुछ भी मांगा नहीं जा सकता । प्रभु श्री महादेवजी सबसे पहले प्रभु के
श्रीकमलचरणों की अचल भक्ति मांगते हैं । दूसरा, वे प्रभु के भक्तों के साथ नित्य सत्संग मांगते हैं । जरा सोचें कि इनसे कल्याणकारी क्या अन्य कोई मांग हो सकती है ?
प्रकाशन तिथि : 11 जुलाई 2020 |
755 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/16/4 |
चौपाई / छंद / दोहा -
सब के प्रिय सेवक यह नीती । मोरें अधिक दास पर प्रीती ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु ने जब श्री सुग्रीवजी, श्री जाम्बवन्तजी, श्री अंगदजी, श्री विभीषणजी आदि सभी को विदा करने के लिए बुलाया तो प्रभु ने उनसे जो कहा वह बेहद हृदयस्पर्शी है और प्रभु का अपने सेवकों के प्रति प्रेम भाव दर्शाता है । प्रभु श्री रामजी बोले कि उनके छोटे भाई, राज्य, संपत्ति, यहाँ तक कि भगवती सीता माता, उनका शरीर, कुटुंबी भी उन्हें उतने प्रिय नहीं है जितने प्रभु के सेवक प्रभु को प्रिय हैं । प्रभु कहते हैं कि यह उनका स्वभाव है कि उनको अपने सेवक सबसे प्यारे लगते हैं और उनका विशेष और स्वाभाविक प्रेम सदा अपने सेवकों से होता है । प्रभु ने जो सबको जाते वक्त सीख दी वह भी ध्यान देने योग्य है । प्रभु ने सबसे कहा कि घर पहुँचकर नियमपूर्वक प्रभु को भजते रहें और प्रभु को सर्वव्यापक और सबका हित करने वाला जानकर प्रभु से अनन्य प्रेम करते रहे ।
प्रकाशन तिथि : 11 जुलाई 2020 |
756 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/18/2 |
चौपाई / छंद / दोहा -
असरन सरन बिरदु संभारी । मोहि जनि तजहु भगत हितकारी ॥ मोरें तुम्ह प्रभु गुर पितु माता । जाउँ कहाँ तजि पद जलजाता ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब श्री अंगदजी की विदाई का समय आया तो उन्होंने प्रभु को सर्वज्ञ, कृपा एवं सुख के सागर और दीनों पर दया करने वाला कहा और कहा कि उन्हें न त्यागे क्योंकि उनके स्वामी, गुरु, पिता, माता सब कुछ प्रभु ही हैं । वे बोले कि वे प्रभु के श्रीकमलचरणों को छोड़कर जाना नहीं चाहते और प्रभु की सेवा करना चाहते हैं । श्री अंगदजी की विनम्र वाणी को सुनकर करुणा के धाम प्रभु ने उठकर उन्हें अपने हृदय से लगा लिया और उनका भाव देखकर प्रभु के श्रीकमलनेत्रों में प्रेम के अश्रु भर आए ।
प्रकाशन तिथि : 11 जुलाई 2020 |
757 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/19/5 |
चौपाई / छंद / दोहा -
पुन्य पुंज तुम्ह पवनकुमारा । सेवहु जाइ कृपा आगारा ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - सभी वानरों को जब प्रभु ने विदा किया तो प्रभु श्री हनुमानजी श्री अयोध्याजी में ही रुक गए । यह देखकर श्री सुग्रीवजी ने प्रभु श्री हनुमानजी से कहा कि वे पुण्यों की राशि हैं जिस कारण प्रभु श्री रामजी ने उन्हें अपनी सेवा में रख लिया ।
प्रकाशन तिथि : 12 जुलाई 2020 |
758 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/19/दोहा (क) |
चौपाई / छंद / दोहा -
कहेहु दंडवत प्रभु सैं तुम्हहि कहउँ कर जोरि । बार बार रघुनायकहि सुरति कराएहु मोरि ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री अंगदजी ने हाथ जोड़कर एक बहुत सुंदर निवेदन प्रभु श्री हनुमानजी से किया । उन्होंने कहा कि प्रभु श्री हनुमानजी से उनकी विनती है कि प्रभु श्री रामजी की सेवा में रहने पर वे बार-बार प्रभु श्री रामजी को उनकी याद कराते रहे । जीव को थोड़ी-थोड़ी देर में प्रभु को याद करते रहना चाहिए और प्रभु को कभी भी भूलना नहीं चाहिए । साथ ही जीव को भक्तिरूपी ऐसा साधन करना चाहिए कि प्रभु को भी उस जीव की याद आती रहे ।
प्रकाशन तिथि : 12 जुलाई 2020 |
759 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/20/4 |
चौपाई / छंद / दोहा -
राम राज बैंठें त्रेलोका । हरषित भए गए सब सोका ॥ बयरु न कर काहू सन कोई । राम प्रताप बिषमता खोई ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री रामजी के श्री रामराज्य में तीनों लोक हर्षित हो गए । सबके सभी शोक मिट गए । प्रभु के प्रताप से सभी के आंतरिक भेदभाव मिट गए और कोई किसी से वैर नहीं करता । यहाँ तक कि पशु-पक्षी भी आपसी वैर भूलकर साथ रहने लगे । सभी श्री वेदजी और धर्म के मार्ग पर चलने लगे और जीवन में सुखी हो गए । किसी को किसी भी बात का न भय रहा, न शोक रहा और न ही किसी को कोई रोग या व्याधि रही ।
प्रकाशन तिथि : 12 जुलाई 2020 |
760 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/21/2 |
चौपाई / छंद / दोहा -
चारिउ चरन धर्म जग माहीं । पूरि रहा सपनेहुँ अघ नाहीं ॥ राम भगति रत नर अरु नारी । सकल परम गति के अधिकारी ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी श्री रामराज्य का वर्णन करते हुए कहते हैं कि पूरा जगत धर्म के चारों चरणों से परिपूर्ण हो गया । स्वप्न में भी कोई पाप नहीं करता । सभी जीव श्रीराम भक्ति करने लगे और इस तरह सभी मोक्ष के अधिकारी बन गए । किसी को कोई पीड़ा नहीं रही, सभी निरोगी हो गए । श्री रामराज्य में न कोई दरिद्र, न कोई दुःखी और न कोई दीन बचा । सभी शुभ लक्षणों से युक्त हो गए । किसी में भी कपट नहीं रहा और सभी धर्म परायण और पुण्यात्मा बन गए । गोस्वामीजी कहते हैं कि श्री रामराज्य की सुख और संपत्ति का वर्णन कोई भी नहीं कर सकता ।
प्रकाशन तिथि : 13 जुलाई 2020 |
761 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/23/दोहा |
चौपाई / छंद / दोहा -
बिधु महि पूर मयूखन्हि रबि तप जेतनेहि काज । मागें बारिद देहिं जल रामचंद्र के राज ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि श्री रामराज्य में प्रकृति भी एकदम अनुकूल हो गई । वृक्ष पुष्प और फलों से लदे रहते, गौ-माता मनचाहा दूध देती, पृथ्वी माता सदा खेती से भरी रहती । पर्वत अनेक प्रकार की मणियों की खान प्रगट कर देते । सभी नदियों में शीतल, निर्मल और स्वादिष्ट जल बहता रहता, श्री समुद्रदेवजी अपनी लहरों से किनारों पर लाकर रत्न डाल देते । प्रभु श्री सूर्यनारायणजी उतना ही तड़पाते जितनी आवश्यकता होती और मेघ मांगने पर जल बरसा देते ।
प्रकाशन तिथि : 13 जुलाई 2020 |
762 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/24/3 |
चौपाई / छंद / दोहा -
जद्यपि गृहँ सेवक सेवकिनी । बिपुल सदा सेवा बिधि गुनी ॥ निज कर गृह परिचरजा करई । रामचंद्र आयसु अनुसरई ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि शोभा की खान, अति सुशील और अति विनम्र भगवती सीता माता सदैव प्रभु श्री रामजी के अनुकूल रहकर मन लगाकर प्रभु के श्रीकमलचरणों की सेवा करती । महल में अपार दास दासियां थीं जो सभी सेवा में कुशल थीं पर फिर भी भगवती सीता माता प्रभु की सेवा स्वयं करती । कृपा के सागर प्रभु को जिसमें सुख मिले भगवती सीता माता सदा वही करती ।
प्रकाशन तिथि : 13 जुलाई 2020 |
763 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/26/3 |
चौपाई / छंद / दोहा -
बूझहिं बैठि राम गुन गाहा । कह हनुमान सुमति अवगाहा ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गुरुदेव ऋषि श्री वशिष्ठजी श्री वेदजी और श्री पुराणों की कथा का वर्णन करते जो प्रभु श्री रामजी भी सुनते यद्यपि वे सब जानते थे । प्रभु श्री हनुमानजी अपनी सुंदर वाणी से प्रभु श्री रामजी के सद्गुणों का वर्णन करते जो भाइयों सहित सभी सुनते और अत्यंत सुख पाते और विनती करके बार-बार सुनते रहते । घर-घर में श्रीराम कथा होती और सभी स्त्री, पुरुष प्रभु का गुणगान करते और ऐसा करके आनंद का अनुभव करते ।
प्रकाशन तिथि : 14 जुलाई 2020 |
764 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/28/4 |
चौपाई / छंद / दोहा -
सुक सारिका पढ़ावहिं बालक । कहहु राम रघुपति जनपालक ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री अयोध्याजी के बालक जो तोता, मैना को पालते और पढ़ाते तो वे भी उन्हें श्रीराम, श्रीरघुपति बोलना ही सिखाते । जनमानस तो सदैव प्रभु का गुणगान करता ही, यहाँ तक कि पक्षी भी प्रभु के श्रीराम नाम का ही उच्चारण करते ।
प्रकाशन तिथि : 14 जुलाई 2020 |
765 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/30/1 |
चौपाई / छंद / दोहा -
जहँ तहँ नर रघुपति गुन गावहिं । बैठि परसपर इहइ सिखावहिं ॥ भजहु प्रनत प्रतिपालक रामहि । सोभा सील रूप गुन धामहि ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री रामराज्य में लोग जहाँ-जहाँ भी मिलते प्रभु श्री रामजी का ही गुणगान करते और एक दूसरे को यही सीख देते कि शरणागत वत्सल प्रभु को ही सदैव भजना चाहिए । सभी एक दूसरे को कहते कि शोभा, शील, रूप और सद्गुणों के धाम प्रभु श्री रामजी को भजकर ही अपना जीवन सफल बनाना चाहिए ।
प्रकाशन तिथि : 14 जुलाई 2020 |
766 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/30/2 |
चौपाई / छंद / दोहा -
पलक नयन इव सेवक त्रातहि ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री अयोध्याजी के लोग एक दूसरे को सीख देते हैं और कहते कि उन प्रभु श्री रामजी को तन्मयता से भजना चाहिए जो अपने सेवकों की उस प्रकार रक्षा करते हैं जैसे आँखों की पलकें आँखों की रक्षा करती है ।
प्रकाशन तिथि : 15 जुलाई 2020 |
767 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/31/दोहा |
चौपाई / छंद / दोहा -
यह प्रताप रबि जाकें उर जब करइ प्रकास । पछिले बाढ़हिं प्रथम जे कहे ते पावहिं नास ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री काकभुशुण्डिजी पक्षीराज श्री गरुड़जी से कहते हैं कि प्रभु श्री रामजी के श्री रामराज्य में मान, मोह, मद, अविद्या, पाप, काम, क्रोध आदि सब विकार मानो नष्ट हो गए क्योंकि उनकी कला किसी पर प्रभाव नहीं करती । दूसरी तरफ सुख, संतोष, वैराग्य, विवेक, धर्म, ज्ञानरूपी सद्गुण श्री रामराज्य में सबके हृदय में जागृत हो गए । कहने का तात्पर्य है कि विकारों का प्रभाव जाता रहा और सद्गुणों का प्रभाव बहुत बढ़ गया ।
प्रकाशन तिथि : 15 जुलाई 2020 |
768 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/33/4 |
चौपाई / छंद / दोहा -
बड़े भाग पाइब सतसंगा । बिनहिं प्रयास होहिं भव भंगा ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - एक बार चार मुनि कुमार श्री अयोध्याजी पधारे । गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि इन चारों श्री सनकादिक मुनि का एक ही व्रत था कि जहाँ प्रभु की कथा और श्रीचरित्र गाया जाता है वहाँ वे पहुँचकर उन्हें जरूर सुनते । प्रभु श्री रामजी सबके समक्ष उनका स्वागत और आदर करके कहते हैं कि जो मुनि कुमार नित्य सत्संग करते हैं उनकी प्राप्ति बड़े भाग्य से होती है । सत्संग का प्रभाव बताते हुए प्रभु कहते हैं कि सत्संग से बिना परिश्रम जन्म-मृत्यु के चक्र नष्ट हो जाते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 15 जुलाई 2020 |
769 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/34/दोहा |
चौपाई / छंद / दोहा -
परमानंद कृपायतन मन परिपूरन काम । प्रेम भगति अनपायनी देहु हमहि श्रीराम ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - चारों श्री सनकादि मुनि कुमारों ने हर्षित होकर प्रभु श्री रामजी की स्तुति की । उन्होंने प्रभु को सभी रूपों में प्रकट होने वाले, करुणामय और सद्गुणों के सागर कहकर संबोधित किया । उन्होंने प्रभु को सुख के धाम, उपमारहित, शोभा की खान और ज्ञान के भंडार कहकर संबोधित किया । उन्होंने कहा कि प्रभु अपने सेवकों के द्वारा की हुई सेवा को बहुत मानने वाले और अनंत नाम वाले हैं । उन्होंने प्रभु को परमानंदस्वरूप, कृपा करने वाले और मन की मनोकामना पूर्ण करने वाले कहकर संबोधित किया और प्रभु से अविचल प्रेमाभक्ति मांगी ।
प्रकाशन तिथि : 16 जुलाई 2020 |
770 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/42/3 |
चौपाई / छंद / दोहा -
पुनि पुनि तात करहु गुन गानहिं ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - देवर्षि प्रभु श्री नारदजी बार-बार प्रभु श्री रामजी के श्री रामराज्य में श्री अयोध्याजी पधारते और आकर प्रभु श्री रामजी का पवित्र श्रीचरित्र गाते । जो प्रभु के श्रीचरित्र वे श्री अयोध्याजी में देखते उसे जाकर वे श्रीब्रह्मलोक में सुनाते । प्रभु श्री ब्रह्माजी प्रभु श्री रामजी का श्रीचरित्र सुनकर अति सुख पाते और देवर्षि प्रभु श्री नारदजी से यही कहते कि निरंतर प्रभु श्री रामजी के सद्गुणों का गान करके सबको आनंद देते रहें ।
प्रकाशन तिथि : 16 जुलाई 2020 |
771 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/42/दोहा |
चौपाई / छंद / दोहा -
जे हरि कथाँ न करहिं रति तिन्ह के हिय पाषान ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि जिनको प्रभु की कथा से प्रेम नहीं है और प्रभु की कथा सुनने में जिनकी रुचि नहीं है उनके हृदय सचमुच ही पत्थर के समान हैं । यह सत्य है कि वह पत्थर हृदय ही होता है जिसको प्रभु का गुणगान करना या सुनना प्रिय नहीं लगता हो ।
प्रकाशन तिथि : 16 जुलाई 2020 |
772 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/43/4 |
चौपाई / छंद / दोहा -
बड़ें भाग मानुष तनु पावा । सुर दुर्लभ सब ग्रंथिन्ह गावा ॥ साधन धाम मोच्छ कर द्वारा । पाइ न जेहिं परलोक सँवारा ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - यह प्रभु श्री रामजी के श्रीमुख से निकला श्री रामचरितमानसजी का एक अमर दोहा है । प्रभु श्री अयोध्याजी की राज्यसभा में नगरवासियों को कहते हैं कि बड़े भाग्य से मानव शरीर मिलता है । प्रभु कहते हैं कि सभी श्रीग्रंथ इस तथ्य का प्रतिपादन करते हैं कि मनुष्य शरीर देवतागणों के लिए भी अति दुर्लभ है । मानव शरीर प्रभु प्राप्ति के लिए साधन करने में सबसे सक्षम है और मानव शरीर मोक्ष प्राप्ति के लिए भी अत्यंत सहायक है । प्रभु कहते हैं कि जिसने मानव शरीर पाकर भी अपने परलोक को नहीं सुधारा वह सिर पीट-पीटकर बाद में पछताता है ।
प्रकाशन तिथि : 17 जुलाई 2020 |
773 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/44/1 |
चौपाई / छंद / दोहा -
एहि तन कर फल बिषय न भाई । स्वर्गउ स्वल्प अंत दुखदाई ॥ नर तनु पाइ बिषयँ मन देहीं । पलटि सुधा ते सठ बिष लेहीं ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री रामजी कहते हैं कि मानव शरीर पाकर फिर उसे विषय भोग में कदापि नहीं लगाना चाहिए । प्रभु कहते हैं कि जगत के भोगों की बात ही क्या, स्वर्ग के भोग भी अंत में दुःख देने वाले होते हैं । प्रभु सचेत करते हुए कहते हैं कि जो मानव शरीर पाकर अपना जन्म विषय भोगों में लगा देता है वे मूर्ख मानो संसार में आकर अमृत के बदले विष ले लेते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 17 जुलाई 2020 |
774 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/44/दोहा |
चौपाई / छंद / दोहा -
जो न तरै भव सागर नर समाज अस पाइ । सो कृत निंदक मंदमति आत्माहन गति जाइ ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री रामजी कहते हैं कि ईश्वर दया करके जीव को मानव शरीर देते हैं । मानव शरीर भवसागर से तरने के लिए जहाज के समान है । प्रभु कहते हैं कि प्रभु कृपा से पाया मानव शरीर को जो भवसागर तरने के काम में नहीं लेते वे मंदबुद्धि जीव होते हैं और प्रभु कृपा के प्रति कृतघ्न होते हैं । प्रभु कहते हैं कि जो दुर्गति आत्महत्या करने वाले को प्राप्त होती है वही दुर्गति ऐसे मनुष्य भी प्राप्त करते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 17 जुलाई 2020 |
775 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/45/2 |
चौपाई / छंद / दोहा -
भक्ति हीन मोहि प्रिय नहिं सोऊ ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री रामजी सबके समक्ष भक्ति की महिमा बताते हुए कहते हैं कि श्री वेदजी और श्री पुराणों में प्रतिपादित सिद्धांत है कि प्रभु की भक्ति सबसे सुलभ और सबसे सुखदायक है । प्रभु कहते हैं कि भक्ति रहित जीव प्रभु को कदापि प्रिय नहीं होते । प्रभु कहते हैं कि भक्ति परम स्वतंत्र साधन है और सब सुखों की खान है । प्रभु कहते हैं कि भक्ति मार्ग सबसे कम परिश्रम वाला मार्ग है । स्वर्ग के सुख और यहाँ तक कि मुक्ति भी भक्ति के सामने तृण के समान है ।
प्रकाशन तिथि : 18 जुलाई 2020 |
776 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/45/दोहा |
चौपाई / छंद / दोहा -
संकर भजन बिना नर भगति न पावइ मोरि ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री रामजी अपने इष्ट प्रभु श्री महादेवजी के भजन की महिमा बताते हुए कहते हैं कि यह उनका मत है कि प्रभु श्री महादेवजी के भजन के बिना कोई भी जीव भक्ति नहीं पा सकता । प्रभु श्री रामजी की भक्ति का भी दान प्रभु श्री महादेवजी ही करते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 18 जुलाई 2020 |
777 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/46/दोहा |
चौपाई / छंद / दोहा -
मम गुन ग्राम नाम रत गत ममता मद मोह । ता कर सुख सोइ जानइ परानंद संदोह ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री रामजी कहते हैं कि जो प्रभु के गुण समूहों का गान करता है और प्रभु के नाम के परायण है और जो ममता, मद और मोह से रहित है, ऐसे जीव का हृदय जो परमानंद पाता है उसका सुख वही जान सकता है । प्रभु के कहने का तात्पर्य यह कि ऐसे परमानंद की अभिव्यक्ति शब्दों में असंभव है ।
प्रकाशन तिथि : 18 जुलाई 2020 |
778 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/49/दोहा |
चौपाई / छंद / दोहा -
नाथ एक बर मागउँ राम कृपा करि देहु । जन्म जन्म प्रभु पद कमल कबहुँ घटै जनि नेहु ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - एक बार मुनि श्री वशिष्ठजी प्रभु श्री रामजी के पास आए और उन्होंने प्रभु से कहा कि सभी साधनों का बस एक ही उत्तम फल है कि प्रभु के श्रीकमलचरणों में जीव का सदा सर्वदा प्रेम हो जाए । वे भक्ति की महिमा जानने वाले थे इसलिए उन्होंने कहा कि बिना भक्ति के अंतःकरण का मल कभी नहीं मिट सकता । वे बोले कि वही जीव चतुर और सुलक्षणों से युक्त है जिसका प्रभु के श्रीकमलचरणों में प्रेम है । मुनि श्री वशिष्ठजी ने प्रभु श्री रामजी से वर मांगते हुए मांगा कि जन्म-जन्मांतर तक कभी भी उनका प्रेम प्रभु के श्रीकमलचरणों में घटे नहीं और निरंतर बढ़ता ही चला जाए ।
प्रकाशन तिथि : 19 जुलाई 2020 |
779 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/50/5 |
चौपाई / छंद / दोहा -
हनूमान सम नहिं बड़भागी । नहिं कोउ राम चरन अनुरागी ॥ गिरिजा जासु प्रीति सेवकाई । बार बार प्रभु निज मुख गाई ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री महादेवजी भगवती पार्वती माता से कहते हैं कि प्रभु श्री हनुमानजी के समान कोई भी बड़भागी नहीं है और न ही प्रभु श्री रामजी के श्रीकमलचरणों का उनसे बड़ा कोई प्रेमी है । प्रभु श्री महादेवजी कहते हैं कि प्रभु श्री हनुमानजी की श्रीराम सेवा और श्रीराम प्रेम इतनी विलक्षण है जिसकी बढ़ाई अपने श्रीमुख से करते-करते प्रभु श्री रामजी कभी थकते ही नहीं ।
प्रकाशन तिथि : 19 जुलाई 2020 |
780 |
श्रीरामचरित मानस
(उत्तरकाण्ड) |
7/51/2 |
चौपाई / छंद / दोहा -
असरन सरन दीन जन गाहक ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - देवर्षि प्रभु श्री नारदजी ने प्रभु श्री रामजी के लिए दो विशेषणों का प्रयोग किया है जो हृदयस्पर्शी हैं । उन्होंने प्रभु को शरणागत को शरण देने वाले और दीन जनों को अपना आश्रय देने वाले कहा । प्रभु की शरणागति और प्रभु का आश्रय विपत्ति और विपदा में पड़े जीव के लिए कितना बड़ा बल है इसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते ।
प्रकाशन तिथि : 19 जुलाई 2020 |