श्री गणेशाय नमः
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Words of Prayer प्रभु के लिए प्रार्थना, कविता
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प्रभु प्रेरणा से लेखन द्वारा चन्द्रशेखर करवा
क्रम संख्या श्रीग्रंथ संख्या भाव के दर्शन / प्रेरणापुंज
661 श्रीरामचरित मानस
(सुन्दरकाण्ड)
5/49/5 चौपाई / छंद / दोहा -
मोर दरसु अमोघ जग माहीं ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब श्री विभीषणजी ने प्रभु श्री रामजी से उनकी भक्ति मांगी तो प्रभु ने उन्हें भक्ति का दान दिया । फिर प्रभु ने कहा कि यद्यपि श्री विभीषणजी की इच्छा नहीं है पर फिर भी यह रीति है कि जगत में प्रभु का दर्शन कभी भी निष्फल नहीं जाता यानी बिना फल दिए नहीं रहता । इसलिए प्रभु ने श्री समुद्रदेवजी के जल से श्री विभीषणजी का राजतिलक कर दिया ।

प्रकाशन तिथि : 10 जून 2020
662 श्रीरामचरित मानस
(सुन्दरकाण्ड)
5/49/दोहा (ख) चौपाई / छंद / दोहा -
सोइ संपदा बिभीषनहि सकुचि दीन्हि रघुनाथ ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री रामजी ने बहुत सकुचाते हुए लंका का राज्य श्री विभीषणजी को दे दिया । यहाँ सकुचाना शब्द बड़ा मार्मिक और महत्वपूर्ण है । इतनी समृद्धि वाली लंका का अचल राज्य श्री विभीषणजी को देते समय भी प्रभु श्री रामजी सकुचाने लगे कि कहीं वे कम तो नहीं दे रहे । सिद्धांत यह है कि प्रभु अपने स्वभाव अनुसार बहुत देने पर भी उस उपकार को बहुत थोड़ा मानते हैं ।

प्रकाशन तिथि : 10 जून 2020
663 श्रीरामचरित मानस
(सुन्दरकाण्ड)
5/50/1 चौपाई / छंद / दोहा -
अस प्रभु छाड़ि भजहिं जे आना । ते नर पसु बिनु पूँछ बिषाना ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि इतनी करुणा, दया और कृपा से भरे प्रभु को छोड़कर जो जीव अन्यत्र जाते हैं वे बिना सींग और पूंछ के पशु हैं ।

प्रकाशन तिथि : 10 जून 2020
664 श्रीरामचरित मानस
(सुन्दरकाण्ड)
5/50/4 चौपाई / छंद / दोहा -
कोटि सिंधु सोषक तव सायक ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब प्रभु श्री रामजी ने श्री विभीषणजी से श्री समुद्रदेवजी को पार करने का उपाय पूछा तो श्री विभीषणजी ने कहा कि वे प्रभु के सामर्थ्य को जानते हैं । प्रभु चाहे तो एक बाण से ही एक नहीं बल्कि करोड़ों श्री समुद्रदेवजी को सोख सकते हैं । यह प्रभु के ऐश्वर्य का दर्शन कराने वाली चौपाई है ।

प्रकाशन तिथि : 11 जून 2020
665 श्रीरामचरित मानस
(सुन्दरकाण्ड)
5/51/दोहा चौपाई / छंद / दोहा -
प्रभु गुन हृदयँ सराहहिं सरनागत पर नेह ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब श्री विभीषणजी रावण का त्याग करके प्रभु श्री रामजी की शरण में आए तो रावण ने अपने गुप्त दूत भेजे जिन्होंने कपट से वानर शरीर धारणकर श्री विभीषणजी को प्रभु द्वारा अपने शरण में लेने की घटना देखी । विपक्ष के वे दूत भी प्रभु श्री रामजी की शरणागत वत्सलता देखकर अपने हृदय में प्रभु के सद्गुणों और शरणागत पर प्रभु के अपार स्नेह की सराहना करने लगे ।

प्रकाशन तिथि : 11 जून 2020
666 श्रीरामचरित मानस
(सुन्दरकाण्ड)
5/54/2 चौपाई / छंद / दोहा -
राम सपथ दीन्हें हम त्यागे ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री रामजी का कितना अलौकिक प्रताप है कि शत्रु पक्ष के गुप्तचर जो वानरों द्वारा पकड़ लिए गए उन्होंने अपनी जान बचाने के लिए प्रभु श्री रामजी की शपथ दे दी । प्रभु श्री रामजी की शपथ विपक्षी राक्षसों के गुप्तचरों को बचाने में भी सहायक बन गई ।

प्रकाशन तिथि : 11 जून 2020
667 श्रीरामचरित मानस
(सुन्दरकाण्ड)
5/55/1 चौपाई / छंद / दोहा -
राम कृपाँ अतुलित बल तिन्हहीं ।


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब रावण ने अपने गुप्तचरों से वानरों का बल पूछा तो वे बोले कि सभी वानरों पर प्रभु श्री रामजी की कृपा दृष्टि है और प्रभु की कृपा के कारण वे सभी अतुलनीय बल वाले बन गए हैं ।

प्रकाशन तिथि : 12 जून 2020
668 श्रीरामचरित मानस
(सुन्दरकाण्ड)
5/55/दोहा चौपाई / छंद / दोहा -
सहज सूर कपि भालु सब पुनि सिर पर प्रभु राम । रावन काल कोटि कहुँ जीति सकहिं संग्राम ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - रावण के गुप्तचर रावण से बोले कि सभी वानरों के सिर पर सर्वेश्वर प्रभु श्री रामजी हैं इसलिए वे संग्राम में रावण की तो बात ही क्या है, करोड़ों कालों को भी जीत सकते हैं ।

प्रकाशन तिथि : 12 जून 2020
669 श्रीरामचरित मानस
(सुन्दरकाण्ड)
5/56/1 चौपाई / छंद / दोहा -
राम तेज बल बुधि बिपुलाई । सेष सहस सत सकहिं न गाई ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - रावण के गुप्तचर रावण को बोले कि प्रभु श्री रामजी के तेज, सामर्थ्य, बल और बुद्धि की अधिकता इतनी है कि उनका वे तो क्या, लाखों श्री शेषनारायणजी मिलकर भी उनका वर्णन नहीं कर सकते ।

प्रकाशन तिथि : 12 जून 2020
670 श्रीरामचरित मानस
(सुन्दरकाण्ड)
5/57/3 चौपाई / छंद / दोहा -
अति कोमल रघुबीर सुभाऊ । जद्यपि अखिल लोक कर राऊ ॥ मिलत कृपा तुम्ह पर प्रभु करिही । उर अपराध न एकउ धरिही ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - रावण के गुप्तचरों ने रावण से कहा कि वैसे तो प्रभु श्री रामजी तीनों लोकों के स्वामी हैं पर उनका स्वभाव अत्यंत ही कोमल है । प्रभु में इतनी करुणा और कृपा है कि अगर रावण अब भी प्रभु की शरण में चला जाए तो उसके सभी अपराधों को भुलाकर प्रभु उस पर कृपा करेंगे और उसे अपनी शरण में लेकर अभय कर देंगे ।

प्रकाशन तिथि : 13 जून 2020
671 श्रीरामचरित मानस
(सुन्दरकाण्ड)
5/59/4 चौपाई / छंद / दोहा -
प्रभु अग्या अपेल श्रुति गाई ।


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब श्री समुद्रदेवजी ने विनय से राह मांगने पर प्रभु श्री रामजी को राह नहीं दी तो प्रभु ने क्रोध करके भयंकर अग्निबाण का मात्र संधान किया जिससे सागर में अग्नि की ज्वालाएँ उठने लगी । सागर के मगर, सांप और मछलियां ताप से व्याकुल हो उठे । तब श्री समुद्रदेवजी ने भयभीत होकर प्रभु के श्रीकमलचरण पकड़ लिए । उन्होंने कहा कि उन्हें पता है कि प्रभु के अग्निबाण से वे सूख जाएंगे और सेना बिना परिश्रम ही पार चली जाएगी । पर दीनता दिखाते हुए श्री समुद्रदेवजी ने कहा कि इसमें उनकी बड़ाई नहीं होगी और उनकी मर्यादा नहीं रहेगी । उन्होंने कहा कि श्री वेदजी कहते हैं कि प्रभु की इच्छा और आज्ञा का कोई भी, कभी भी उल्लंघन नहीं कर सकता । ऐसे दीन वचन सुनने पर प्रभु का क्रोध तत्काल शांत हो गया और प्रभु की करुणा जागृत हो गई ।

प्रकाशन तिथि : 13 जून 2020
672 श्रीरामचरित मानस
(सुन्दरकाण्ड)
5/60/1 चौपाई / छंद / दोहा -
तरिहहिं जलधि प्रताप तुम्हारे ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - हमें कितनी भी सिद्धियां और वरदान मिल जाए पर वे सब प्रभु के प्रताप से ही फलित होते हैं । श्री समुद्रदेवजी ने इस सिद्धांत को बताते हुए प्रभु श्री रामजी से कहा कि श्री नीलजी और श्री नलजी ने वरदान पाया है कि उनके स्पर्श वाले पत्थर तैरेंगे पर ऐसा केवल और केवल प्रभु के प्रताप के कारण ही संभव हो पाएगा ।

प्रकाशन तिथि : 13 जून 2020
673 श्रीरामचरित मानस
(सुन्दरकाण्ड)
5/60/2 चौपाई / छंद / दोहा -
मैं पुनि उर धरि प्रभु प्रभुताई ।


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री समुद्रदेवजी ने प्रभु श्री रामजी से कहा कि वे भी प्रभु की प्रभुता को अपने हृदय में धारण करने के कारण ही बनने वाले सेतु को धारण करने में सक्षम हो पाएंगे । अपने बल से वे सेतु को धारण नहीं कर पाएंगे बल्कि प्रभु के बल से ही वे ऐसा करने में सफल होंगे ।

प्रकाशन तिथि : 14 जून 2020
674 श्रीरामचरित मानस
(सुन्दरकाण्ड)
5/60/छंद चौपाई / छंद / दोहा -
सुख भवन संसय समन दवन बिषाद रघुपति गुन गना ॥ तजि सकल आस भरोस गावहि सुनहि संतत सठ मना ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि श्री सुंदरकांडजी में वर्णित प्रभु का श्रीचरित्र कलियुग के समस्त पापों को पराजित करने वाला है । प्रभु के गुणसमूहों का गान सुख देने वाला, सभी संदेहों का नाश करने वाला और विषाद का दमन करने वाला है । गोस्वामी श्री तुलसीदासजी जीव का आह्वान करके कहते हैं कि जीव को अपने मूर्ख मन को समझाना चाहिए कि संसार की सभी आशाओं और संसार के सभी भरोसों को छोड़कर निरंतर प्रभु के श्रीचरित्र को गाना और सुनना चाहिए ।

प्रकाशन तिथि : 14 जून 2020
675 श्रीरामचरित मानस
(सुन्दरकाण्ड)
5/60/दोहा चौपाई / छंद / दोहा -
सकल सुमंगल दायक रघुनायक गुन गान । सादर सुनहिं ते तरहिं भव सिंधु बिना जलजान ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी श्री सुंदरकांडजी की फलश्रुति में कहते हैं कि प्रभु श्री रामजी का गुणगान पूरी तरह से सुंदर मंगल करने वाला साधन है । जो भी प्रभु के इस गुणगान को आदर सहित सुनेंगे वे भवसागर को सहजता से बिना किसी साधन के जहाज के पार हो जाएंगे और तर जाएंगे ।

श्री सुन्दरकाण्डजी के विश्राम के बाद अब हम श्री रामचरितमानसजी के नवीन श्री लंकाकाण्डजी में प्रभु कृपा के बल पर मंगल प्रवेश करेंगे ।
श्री रामायणजी और श्री रामचरितमानसजी में मेरी अटूट आस्था है । प्रभु श्री महादेवजी और भगवती पार्वती माता की असीम कृपा से ही इन श्रीग्रंथों को पढ़ने की, लिखने की प्रेरणा मुझे मिली है और मैं शपथपूर्वक कहता हूँ कि मात्र और मात्र प्रभु कृपा के बल पर ही मेरे लिए ऐसा करना संभव हो पाया है । प्रभु श्री हनुमानजी की विशेष कृपा के साथ-साथ देवर्षि प्रभु श्री नारदजी के आशीर्वाद का मैंने साक्षात अनुभव किया है ।
संतों के मुख से सुना है कि जब गोस्वामी श्री तुलसीदासजी इस श्री सुन्दरकाण्डजी को लिखने के बाद इसका नामकरण करने की सोच रहे थे तो प्रभु ने उनके हृदय में अनुभूति देकर इसका नाम श्री सुन्दरकाण्डजी रखने को कहा क्योंकि श्री सुन्दरकाण्डजी प्रभु श्री रामजी के अति सुंदर भक्त प्रभु श्री हनुमानजी की अति सुंदर श्रीलीला वाला काण्ड है ।
जो कुछ भी लेखन हुआ है वह प्रभु कृपा के बल पर ही हो पाया है । मेरा प्रयास मेरे प्रभु को प्रिय लगे इसी अभिलाषा के साथ में उसे प्रभु के श्रीकमलचरणों में सादर समर्पित करता हूँ ।
प्रभु का,
चन्‍द्रशेखर कर्वा


प्रकाशन तिथि : 14 जून 2020
676 श्रीरामचरित मानस
(लंकाकाण्ड)
6/मंगलाचरण/3 चौपाई / छंद / दोहा -
यो ददाति सतां शम्भुः कैवल्यमपि दुर्लभम् । खलानां दण्डकृद्योऽसौ शङ्करः शं तनोतु मे ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी श्री लंकाकांडजी के मंगलाचरण में प्रभु श्री महादेवजी की वंदना करते हुए कहते हैं कि प्रभु कलियुग के पाप समूहों का नाश करने वाले हैं । प्रभु कल्याण के कल्पवृक्ष और सत्पुरुषों को अत्यंत दुर्लभ मुक्ति तक देने वाले हैं । गोस्वामीजी कहते हैं कि दुष्टों को दंड देने वाले ऐसे कल्याणकारी प्रभु श्री महादेवजी उनका भी कल्याण करें ।

प्रकाशन तिथि : 15 जून 2020
677 श्रीरामचरित मानस
(लंकाकाण्ड)
6/1/सोरठा चौपाई / छंद / दोहा -
नाथ नाम तव सेतु नर चढ़ि भव सागर तरिहिं ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब प्रभु श्री रामजी ने सागर पर सेतु बनाने का आदेश दिया तो श्री जाम्बवन्तजी ने हाथ जोड़कर प्रभु से कहा कि यह तो लौकिक सेतु बनाने का आदेश आपने दिया है । पर सबसे बड़ा सेतु तो प्रभु नाम का है जिसका आश्रय लेकर जीव संसाररूपी सागर को सहजता से पार कर लेता है ।

प्रकाशन तिथि : 15 जून 2020
678 श्रीरामचरित मानस
(लंकाकाण्ड)
6/1/3 चौपाई / छंद / दोहा -
राम प्रताप सुमिरि मन माहीं । करहु सेतु प्रयास कछु नाहीं ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री जाम्बवन्तजी ने श्री नलजी और श्री नीलजी को बुलाकर कहा कि प्रभु श्री रामजी के प्रताप का स्मरण करते हुए सेतु निर्माण आरंभ करें । उन्होंने कहा कि प्रभु प्रताप का स्मरण करके कोई भी कार्य करने में बहुत कम परिश्रम होता है और कार्य में सफलता मिलती है । इसलिए प्रभु के श्रीकमलचरणों को हृदय में धारण करके ही कार्य करना चाहिए ।

प्रकाशन तिथि : 15 जून 2020
679 श्रीरामचरित मानस
(लंकाकाण्ड)
6/2/3 चौपाई / छंद / दोहा -
सिव समान प्रिय मोहि न दूजा ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब सेतु निर्माण के लिए सब तैयार हुए तो प्रभु श्री रामजी ने अपने इष्ट प्रभु श्री महादेवजी की श्री शिवलिंगजी के रूप में वहाँ स्थापना कर विधिपूर्वक स्वयं पूजन किया । फिर प्रभु ने वह अमर वाक्य अपने श्रीमुख से कह दिया कि प्रभु श्री महादेवजी के समान उन्हें कोई दूसरा प्रिय नहीं है ।

प्रकाशन तिथि : 16 जून 2020
680 श्रीरामचरित मानस
(लंकाकाण्ड)
6/2/दोहा चौपाई / छंद / दोहा -
संकर प्रिय मम द्रोही सिव द्रोही मम दास । ते नर करहि कलप भरि धोर नरक महुँ बास ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री रामजी कहते हैं कि जो प्रभु श्री महादेवजी से विमुख हो उनकी पूजा करते हैं या जो उनसे विमुख हो प्रभु श्री महादेवजी की पूजा करते हैं, वे मूर्ख और अल्प बुद्धि वाले होते हैं । जिनको प्रभु श्री महादेवजी और प्रभु श्री रामजी में से एक प्रिय है और एक प्रिय नहीं है वे नर्कगामी होते हैं । तात्पर्य यह है कि प्रभु दोनों रूपों में एक ही हैं और दोनों रूप में एक दूसरे के इष्ट हैं ।

प्रकाशन तिथि : 16 जून 2020
681 श्रीरामचरित मानस
(लंकाकाण्ड)
6/3/1 चौपाई / छंद / दोहा -
जे रामेस्वर दरसनु करिहहिं । ते तनु तजि मम लोक सिधरिहहिं ॥ जो गंगाजलु आनि चढ़ाइहि । सो साजुज्य मुक्ति नर पाइहि ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री रामजी द्वारा स्वयं स्थापित श्री रामेश्वरमजी का इतना बड़ा माहात्म्य है कि प्रभु ने अपने श्रीवचन में स्वयं कहा कि जो वहाँ जाकर दर्शन करेंगे और श्री गंगाजलजी लाकर प्रभु श्री महादेवजी को अर्पित करेंगे वे भक्ति पाएंगे, मुक्ति पाएंगे और संसाररूपी सागर से तरकर सीधे प्रभु के धाम जाएंगे ।

प्रकाशन तिथि : 16 जून 2020
682 श्रीरामचरित मानस
(लंकाकाण्ड)
6/3/2 चौपाई / छंद / दोहा -
होइ अकाम जो छल तजि सेइहि । भगति मोरि तेहि संकर देइहि ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री रामजी कहते हैं कि जो छल छोड़कर और निष्काम बनकर श्री रामेश्वरमजी में प्रभु श्री महादेवजी की सेवा करेंगे उन्हें प्रभु श्री महादेवजी सबसे दुर्लभ भक्ति का दान देंगे ।

प्रकाशन तिथि : 17 जून 2020
683 श्रीरामचरित मानस
(लंकाकाण्ड)
6/3/3 चौपाई / छंद / दोहा -
गिरिजा रघुपति कै यह रीती । संतत करहिं प्रनत पर प्रीती ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री महादेवजी भगवती पार्वती माता को कहते हैं कि प्रभु श्री रामजी की यह रीति है कि वे अपने शरणागत को तत्काल शरण देते हैं और उनसे सदा प्रेम करते हैं ।

प्रकाशन तिथि : 17 जून 2020
684 श्रीरामचरित मानस
(लंकाकाण्ड)
6/3/4 चौपाई / छंद / दोहा -
बूड़हिं आनहि बोरहिं जेई । भए उपल बोहित सम तेई ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि सेतु निर्माण में जो पत्थर लगे वे स्वयं डूबने वाले और दूसरों को डुबाने वाले होने पर भी प्रभु कृपा से स्वयं तैरने वाले और दूसरों को भी पार कराने वाले बन गए । गोस्वामीजी कहते हैं कि इसमें समुद्रदेवजी, पत्थर और वानरों की कोई महिमा नहीं है, इसमें पूरा-का-पूरा प्रताप प्रभु श्री रामजी का है जिनके कारण नहीं तैरने वाले पत्थर भी सागर में तैरने लगे । गोस्वामीजी जीव का आह्वान करते हुए कहते हैं कि जो जीव ऐसे प्रभु को संसार सागर से पार होने के लिए नहीं भजता वह वास्तव में मंदबुद्धि है ।

प्रकाशन तिथि : 17 जून 2020
685 श्रीरामचरित मानस
(लंकाकाण्ड)
6/4/2 चौपाई / छंद / दोहा -
देखन कहुँ प्रभु करुना कंदा । प्रगट भए सब जलचर बृंदा ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब सागर पर सेतु बनकर तैयार हुआ और सेना चली तो करुणाकन्द प्रभु के दर्शन के लिए सेतु के दोनों तरफ जलचरों का समूह जल के ऊपर निकल आया । इस तरह सेतु दोनों तरफ जलचरों के समूह से चौड़ा हो गया । संत उसे प्रभु की कृपा का सेतु का नाम देते हैं । जीव अपना भक्ति का पुरुषार्थ करके प्रभु मिलन के लिए सेतु बनाता है तो दोनों तरफ प्रभु की कृपा का सेतु प्रभु निर्माण कर देते हैं ।

प्रकाशन तिथि : 18 जून 2020
686 श्रीरामचरित मानस
(लंकाकाण्ड)
6/4/4 चौपाई / छंद / दोहा -
मगन भए हरि रूप निहारी ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जो जलचरों का समूह सेतु के दोनों तरफ प्रभु दर्शन के लिए आया उसमें बहुत बड़े-बड़े मगर, घड़ियाल, मच्छ और सर्प थे जो आपस में वैर विरोध भुलाकर प्रभु के दर्शन करने में मग्न थे । उनको हटाने पर भी वे नहीं हटते क्योंकि वे हर्षित और सुखी होकर प्रभु के दर्शन का आनंद ले रहे थे और प्रभु प्रेम में मग्न हो रहे थे । प्रभु की सेना जलचरों के ऊपर होकर चलने लगी तो भी वे हर्ष से डटे रहे और प्रभु की सेना को पार उतारने में अपना सहयोग देकर प्रभु काज करने का गौरव लिया ।

प्रकाशन तिथि : 18 जून 2020
687 श्रीरामचरित मानस
(लंकाकाण्ड)
6/5/3 चौपाई / छंद / दोहा -
सब तरु फरे राम हित लागी । रितु अरु कुरितु काल गति त्यागी ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु की सेना जब सागर के पार उतर गई तो प्रभु ने डेरा डलवाकर सभी वानरों और रीछ को आज्ञा दी कि वे अपना पेट भरने के लिए फल मूल खा ले । उस समय प्रभु की आज्ञा सुनते ही प्रकृति ने ऋतु और समय की गति को भुलाकर सभी वृक्षों को असमय मीठे-मीठे फलों से लाद दिया ताकि प्रभु की सेना को भोजन में कोई दिक्कत न हो । प्रकृति भी प्रभु के लिए अपना नियम बदलने में अपना परम गौरव मानती है ।

प्रकाशन तिथि : 18 जून 2020
688 श्रीरामचरित मानस
(लंकाकाण्ड)
6/6/5 चौपाई / छंद / दोहा -
काल करम जिव जाकें हाथा ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - भगवती मंदोदरी ने रावण से कहा कि वैर उनसे करना चाहिए जिन्हें बुद्धि या बल से जीता जा सके । प्रभु से वैर नहीं करना चाहिए क्योंकि प्रभु काल, कर्म और जीव की डोर अपने हाथ में रखते हैं । इसलिए प्रभु और रावण में वह अंतर है जैसा प्रभु श्री सूर्यनारायणजी और जुगनू में है ।

प्रकाशन तिथि : 19 जून 2020
689 श्रीरामचरित मानस
(लंकाकाण्ड)
6/7/1 चौपाई / छंद / दोहा -
नाथ दीनदयाल रघुराई ।


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - भगवती मंदोदरी ने रावण से कहा कि शरण में जाने पर गलती के बावजूद प्रभु उसे माफ कर देंगे क्योंकि दीनों पर दया करने का प्रभु का स्वभाव है । इसलिए रावण का हित इसी में है कि वह प्रभु की शरण में जाकर प्रभु का भजन करने में ही अपना बचा हुआ जीवन व्यतीत करे ।

प्रकाशन तिथि : 19 जून 2020
690 श्रीरामचरित मानस
(लंकाकाण्ड)
6/7/3 चौपाई / छंद / दोहा -
सोइ रघुवीर प्रनत अनुरागी । भजहु नाथ ममता सब त्यागी ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - भगवती मंदोदरी रावण से कहती है कि विषयों की सारी ममता को छोड़कर उन प्रभु का भजन करना चाहिए जो शरणागत से प्रेम करने वाले हैं और सृष्टि की रचना, पालन और संहार करने वाले हैं ।

प्रकाशन तिथि : 19 जून 2020
691 श्रीरामचरित मानस
(लंकाकाण्ड)
6/17/2 चौपाई / छंद / दोहा -
सुनु सर्बग्य सकल उर बासी । बुधि बल तेज धर्म गुन रासी ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री जाम्बवन्तजी ने प्रभु श्री रामजी के लिए कुछ विशेषणों का प्रयोग किया है जो हृदयस्पर्शी हैं । उन्होंने प्रभु को सब कुछ जानने वाला सर्वज्ञ कहा । उन्होंने प्रभु को सबके हृदय में बसने वाला अंतर्यामी कहा । उन्होंने प्रभु को बुद्धि, बल, तेज, धर्म और सद्गुणों की राशि कहा ।

प्रकाशन तिथि : 20 जून 2020
692 श्रीरामचरित मानस
(लंकाकाण्ड)
6/17/दोहा (ख) चौपाई / छंद / दोहा -
स्वयं सिद्ध सब काज नाथ मोहि आदरु दियउ ।


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी एक सिद्धांत का प्रतिपादन श्री अंगदजी के माध्यम से करवाते हैं । श्री अंगदजी प्रभु श्री रामजी से कहते हैं कि प्रभु के सभी कार्य अपने आप स्वयं सिद्ध होते हैं यानी वे प्रभु इच्छा से अपने आप ही पूर्ण होने वाले होते हैं । पर प्रभु उसका श्रेय अपने भक्तों को दिलाते हैं और अपने भक्त और सेवक को माध्यम बनाकर उसे पूर्ण करवाते हैं । इससे प्रभु के भक्त और सेवक का गौरव बढ़ता है जिससे देखकर प्रभु को हर्ष होता है ।

प्रकाशन तिथि : 20 जून 2020
693 श्रीरामचरित मानस
(लंकाकाण्ड)
6/18/1 चौपाई / छंद / दोहा -
प्रभु प्रताप उर सहज असंका । रन बाँकुरा बालिसुत बंका ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब प्रभु श्री रामजी ने श्री अंगदजी को अपना दूत बनाकर रावण के पास भेजा तो श्री अंगदजी प्रभु के श्रीकमलचरणों की वंदना करके और प्रभु की प्रभुता को हृदय में धारण करके प्रभु को प्रणाम करके चले । गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि प्रभु के प्रताप को हृदय में धारण करके चलने के कारण श्री अंगदजी रावण के पास जाते हुए भी स्वाभाविक रूप से पूर्ण निर्भय थे ।

प्रकाशन तिथि : 20 जून 2020
694 श्रीरामचरित मानस
(लंकाकाण्ड)
6/20/दोहा चौपाई / छंद / दोहा -
प्रनतपाल रघुबंसमनि त्राहि त्राहि अब मोहि । आरत गिरा सुनत प्रभु अभय करैगो तोहि ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री अंगदजी ने रावण से कहा कि अगर वह रक्षा करे, रक्षा करे कि आर्त प्रार्थना करके शरणागत हितकारी प्रभु श्री रामजी की शरण में चला जाएगा तो प्रभु उसके सभी अपराध भुलाकर उसे शरण में लेकर निर्भय कर देंगे । शरणागत को शरण देने का और अभय करने का प्रभु का व्रत है ।

प्रकाशन तिथि : 21 जून 2020
695 श्रीरामचरित मानस
(लंकाकाण्ड)
6/26/4 चौपाई / छंद / दोहा -
लाभ कि रघुपति भगति अकुंठा ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी श्री अंगदजी के मुख से एक सिद्धांत कहलाते हैं । श्री अंगदजी कहते हैं कि प्रभु की भक्ति संसार के साधारण लाभ जैसा कोई लाभ नहीं अपितु इससे बड़ा पारमार्थिक लाभ ब्रह्मांड में कोई नहीं हो सकता । हम धन-संपत्ति कमाने को सबसे बड़ा लाभ मानते हैं पर भक्ति की कमाई से बड़ा जगत में कोई लाभ नहीं है ।

प्रकाशन तिथि : 21 जून 2020
696 श्रीरामचरित मानस
(लंकाकाण्ड)
6/32/1 चौपाई / छंद / दोहा -
हरि हर निंदा सुनइ जो काना । होइ पाप गोघात समाना ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कलियुग को ध्यान में रखकर एक सिद्धांत कहते हैं । कलियुग में पापी और नास्तिक लोगों की कमी नहीं होगी । ऐसे भी नास्तिक होंगे जो प्रभु की भी निंदा करेंगे । सूत्र यह है कि ऐसे नास्तिकों का संग जीवन में कभी नहीं करना चाहिए क्योंकि भूल से भी, किंचित भी प्रभु की निंदा सुनने से वह पाप लगता है जो गोवध के समान होता है ।

प्रकाशन तिथि : 21 जून 2020
697 श्रीरामचरित मानस
(लंकाकाण्ड)
6/34/दोहा (ख) चौपाई / छंद / दोहा -
भूमि न छाँडत कपि चरन देखत रिपु मद भाग ॥ कोटि बिघ्न ते संत कर मन जिमि नीति न त्याग ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब श्री अंगदजी को रावण पर क्रोध आया तो उन्होंने प्रभु श्री रामजी के प्रताप का स्मरण किया और अपने पैर को रावण की सभा में रोप दिया । उन्होंने कहा कि अगर उनके पैर को भूमि से कोई हटा दे तो प्रभु बिना युद्ध किए लौट जाएंगे । रावण के अनेक बलवान योद्धाओं ने, यहाँ तक कि मेघनाथ ने भी प्रयास किया पर सभी अपना बल हार गए । गोस्वामी श्री तुलसीदासजी एक उपमा देकर कहते हैं कि जैसे विघ्न आने पर भी संत का मन नीति को नहीं छोड़ता वैसे ही श्री अंगदजी के पैर ने धरती को नहीं छोड़ा । श्री अंगदजी को अपने बल का भरोसा नहीं था पर उन्हें प्रभु प्रताप का भरोसा था इसलिए वे सफल हुए ।

प्रकाशन तिथि : 22 जून 2020
698 श्रीरामचरित मानस
(लंकाकाण्ड)
6/35/3 चौपाई / छंद / दोहा -
तासु दूत पन कहु किमि टरई ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब रावण श्री अंगदजी के पैर को हटाने के लिए आया तो श्री अंगदजी ने कहा कि उनके पैर पकड़ने से उसका भला होने वाला नहीं है, रावण को प्रभु श्री रामजी के श्रीकमलचरण को पकड़ना चाहिए । रावन सहम कर चला गया और तेजहीन होकर अपने सिंहासन पर वैसे बैठा जैसे कोई सारी संपत्ति गंवाकर बैठता है । प्रभु श्री महादेवजी भगवती पार्वती माता से कहते हैं कि प्रभु के दूत के प्रण को प्रभु से बल मिल रहा था इसलिए वह प्रण कभी टल नहीं सकता था ।

प्रकाशन तिथि : 22 जून 2020
699 श्रीरामचरित मानस
(लंकाकाण्ड)
6/37/दोहा चौपाई / छंद / दोहा -
कृपासिंधु रघुनाथ भजि नाथ बिमल जसु लेहु ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - भगवती मंदोदरी रावण को समझाते हुए कहती है कि करुणामय प्रभु श्री रामजी चराचर के स्वामी हैं । इसलिए उनसे वैर त्यागकर उनका भजन करके उनकी कृपा अर्जित करने से जगत में रावण का निर्मल यश फैल जाएगा ।

प्रकाशन तिथि : 22 जून 2020
700 श्रीरामचरित मानस
(लंकाकाण्ड)
6/45/3 चौपाई / छंद / दोहा -
देहिं परम गति सो जियँ जानी । अस कृपाल को कहहु भवानी ॥ अस प्रभु सुनि न भजहिं भ्रम त्यागी । नर मतिमंद ते परम अभागी ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जिन योद्धाओं को, सेनापतियों को मारकर वानर उनके पैर पकड़कर प्रभु के पास फेंक देते श्री विभीषणजी उनका नाम प्रभु को बताते और करुणानिधान प्रभु उन्हें अपना परमपद दे देते और अपने परमधाम भेज देते । प्रभु श्री महादेवजी भगवती पार्वती माता से कहते हैं कि प्रभु श्री रामजी इतने कोमल हृदय और करुणामय स्वभाव के हैं कि वे यहाँ तक सोच लेते हैं कि राक्षसों ने वैर से ही क्यों न हो उनका स्मरण तो किया इसलिए प्रभु स्मरण का मोक्षरूपी फल प्रभु उन्हें प्रदान कर देते हैं । प्रभु श्री महादेवजी कहते हैं कि ऐसे कृपालु प्रभु का स्वभाव जानकर भी जो जीव उनका भजन नहीं करता वह अत्यंत मंदबुद्धि और परम भाग्यहीन होता है ।

प्रकाशन तिथि : 23 जून 2020
701 श्रीरामचरित मानस
(लंकाकाण्ड)
6/46/1 चौपाई / छंद / दोहा -
राम कृपा करि जुगल निहारे । भए बिगतश्रम परम सुखारे ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब प्रभु श्री हनुमानजी, श्री अंगदजी और सभी वानर सांयकाल में युद्ध विश्राम पर वापस प्रभु के पास लौटते तो प्रभु अपनी कृपा दृष्टि से सबको देखते और सभी तुरंत युद्ध के श्रम से श्रमरहित होकर परम सुखी हो जाते ।

प्रकाशन तिथि : 23 जून 2020
702 श्रीरामचरित मानस
(लंकाकाण्ड)
6/48/4 चौपाई / छंद / दोहा -
राम बिमुख काहुँ न सुख पायो ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - रावण के नाना माल्यवंत ने रावण को सीख देते हुए कहा कि प्रभु से विमुख होकर कभी भी, किसी ने भी आज तक सुख नहीं पाया है । यह सत्य सिद्धांत है कि प्रभु के सन्मुख होने पर ही सुख और शांति मिलती है ।

प्रकाशन तिथि : 23 जून 2020
703 श्रीरामचरित मानस
(लंकाकाण्ड)
6/48/दोहा (ख) चौपाई / छंद / दोहा -
कालरूप खल बन दहन गुनागार घनबोध । सिव बिरंचि जेहि सेवहिं तासों कवन बिरोध ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - रावण के नाना माल्यवंत रावण से कहते हैं कि जो काल स्वरूप हैं, दुष्टों के समूह को भस्म करने के लिए अग्निरूप हैं, जो सद्गुण और ज्ञान के धाम हैं और जो देवताओं से पूजित हैं उन प्रभु श्री रामजी से वैर करके वह अपना ही सर्वनाश करने जा रहा है ।

प्रकाशन तिथि : 24 जून 2020
704 श्रीरामचरित मानस
(लंकाकाण्ड)
6/58/3 चौपाई / छंद / दोहा -
राम राम कहि छाड़ेसि प्राना । सुनि मन हरषि चलेउ हनुमाना ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब प्रभु श्री हनुमानजी श्री लक्ष्मणजी के उपचार के लिए संजीवनी लेने गए तो रावण ने कालनेमि को मार्ग रोकने को कहा । कालनेमि ने रावण को समझाया पर वह माना नहीं और क्रोधित हो उठा । कालनेमि ने सोचा कि रावण मारेगा इससे कहीं अच्छा है कि प्रभु श्री रामजी के दूत के श्रीहाथों मरना । जब प्रभु श्री हनुमानजी ने उसे मारा तो उसने श्रीराम-श्रीराम कहकर अपने प्राण छोड़ें । कालनेमि की मृत्यु के समय उसके मुख से श्रीराम नाम का उच्चारण सुनकर प्रभु श्री हनुमानजी भी हर्षित हुए ।

प्रकाशन तिथि : 24 जून 2020
705 श्रीरामचरित मानस
(लंकाकाण्ड)
6/58/4 चौपाई / छंद / दोहा -
देखा सैल न औषध चीन्हा । सहसा कपि उपारि गिरि लीन्हा ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि जब प्रभु श्री हनुमानजी के समक्ष औषधियों ने अपने को लुप्त कर लिया तो उन्होंने पूरा पर्वत ही उखाड़ लिया । संत एक भाव और देते हैं कि प्रभु श्री हनुमानजी ने जब औषधि पहचान ली तो बाकी पर्वत में मौजूद औषधियों ने उनसे विनती करी कि वे भी प्रभु श्री रामजी का दर्शन करना चाहतीं हैं । इसलिए उन सबको प्रभु के दर्शन करवाने के लिए प्रभु श्री हनुमानजी पूरे पर्वत को ही उखाड़कर प्रभु श्री रामजी के पास ले आए ।

प्रकाशन तिथि : 24 जून 2020
706 श्रीरामचरित मानस
(लंकाकाण्ड)
6/63/दोहा चौपाई / छंद / दोहा -
राम रूप गुन सुमिरत मगन भयउ छन एक ।


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब रावण ने कुम्भकर्ण को जगाया तो उसने रावण से कहा कि अभी भी अभिमान छोड़कर प्रभु श्री रामजी की शरण में चले जाने में ही रावण का कल्याण है । जब रावण ने कुम्भकर्ण को युद्ध में जाने के लिए कहा तो उसने कहा कि वह अपने नेत्रों को प्रभु के दर्शन से सफल करने के लिए युद्ध में जरूर जाएगा । प्रभु का स्मरण करके एक क्षण के लिए कुम्भकर्ण प्रेम में मग्न हो गया ।

प्रकाशन तिथि : 25 जून 2020
707 श्रीरामचरित मानस
(लंकाकाण्ड)
6/64/4 चौपाई / छंद / दोहा -
धन्य धन्य तैं धन्य बिभीषन । भयहु तात निसिचर कुल भूषन ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब कुम्भकर्ण अपने छोटे भाई श्री विभीषणजी से युद्ध भूमि में मिला तो उसने उन्हें अपने गले से लगा लिया और कहा कि प्रभु की शरण में जाने के कारण वे धन्य-धन्य हैं । कुम्भकर्ण ने श्री विभीषणजी को राक्षस कुल का भूषण बताया और कहा कि श्री विभीषणजी को मन, कर्म और वचन से प्रभु की सेवा और प्रभु का भजन करना चाहिए ।

प्रकाशन तिथि : 25 जून 2020
708 श्रीरामचरित मानस
(लंकाकाण्ड)
6/66/2 चौपाई / छंद / दोहा -
जग पावनि कीरति बिस्तरिहहिं । गाइ गाइ भवनिधि नर तरिहहिं ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री महादेवजी भगवती पार्वती माता को कहते हैं कि प्रभु श्री रामजी मात्र अपनी भौहों के इशारे मात्र से बिना परिश्रम काल को भी नष्ट कर सकते हैं पर फिर भी मानव श्रीलीला करते हुए वे युद्ध कर रहे हैं । इसका एक कारण बताते हुए प्रभु श्री महादेवजी कहते हैं कि प्रभु की श्रीलीला जगत को पवित्र करने वाली है और प्रभु की पवित्र कीर्ति फैलाने वाली है जिसको गा-गाकर जीव भवसागर से तर जाएंगे ।

प्रकाशन तिथि : 25 जून 2020
709 श्रीरामचरित मानस
(लंकाकाण्ड)
6/71/दोहा चौपाई / छंद / दोहा -
निसिचर अधम मलाकर ताहि दीन्ह निज धाम । गिरिजा ते नर मंदमति जे न भजहिं श्रीराम ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री महादेवजी भगवती पार्वती माता से कहते हैं कि कुम्भकर्ण जैसे राक्षस और पाप करने वाले को प्रभु श्री रामजी ने मारने के बाद अपने परमधाम में भेज दिया । प्रभु श्री महादेवजी कहते हैं कि ऐसे करुणामय प्रभु को जो मनुष्य नहीं भजता वह निश्चय ही मंदबुद्धि वाला है ।

प्रकाशन तिथि : 26 जून 2020
710 श्रीरामचरित मानस
(लंकाकाण्ड)
6/72/1 चौपाई / छंद / दोहा -
राम कृपाँ कपि दल बल बाढ़ा । जिमि तृन पाइ लाग अति डाढ़ा ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - दिन में युद्ध के बाद जब सेना लौटती और युद्ध में प्रभु श्री रामजी अपने योद्धाओं की थकावट देखते तो उनकी कृपा दृष्टि उन वानर योद्धाओं पर पड़ती । प्रभु की कृपा दृष्टि पड़ते ही वानर दल श्रम और थकावट से निवृत्त हो जाते और उनका बल उसी प्रकार बढ़ जाता है जैसे सूखी घास को पाकर आग बहुत बढ़ जाती है ।

प्रकाशन तिथि : 26 जून 2020
711 श्रीरामचरित मानस
(लंकाकाण्ड)
6/73/दोहा चौपाई / छंद / दोहा -
गिरिजा जासु नाम जपि मुनि काटहिं भव पास । सो कि बंध तर आवइ ब्यापक बिस्व निवास ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - रण की शोभा के लिए मानव लीला करते हुए प्रभु श्री रामजी ने अपने को मेघनाथ के नागपाश में बंधवा लिया । यह कौतुक देखकर प्रभु श्री महादेवजी भगवती पार्वती माता से कहते हैं कि जिन प्रभु का नाम जपकर ऋषि और मुनि जन्म-मृत्यु के पाश को सरलता से काट डालते हैं वे सर्वव्यापक और विश्व के आधार प्रभु क्या कहीं किसी पाश के बंधन में कभी आ सकते हैं ? यह रण की शोभा के लिए की गई प्रभु की श्रीलीला मात्र है ।

प्रकाशन तिथि : 26 जून 2020
712 श्रीरामचरित मानस
(लंकाकाण्ड)
6/74/1 चौपाई / छंद / दोहा -
रामहि भजहिं तर्क सब त्यागी ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री महादेवजी भगवती पार्वती माता से एक बहुत सिद्धांत की बात कहते हैं जो हमें सदैव याद रखनी चाहिए । प्रभु की किसी भी श्रीलीला को अपनी बुद्धि लगाकर तर्क या शंका की दृष्टि से कभी नहीं देखनी चाहिए । प्रभु की सभी श्रीलीला को श्रद्धा की आँख से ही देखनी चाहिए और उसमें रमना चाहिए जिससे हमारी भक्ति को बल मिल सके ।

प्रकाशन तिथि : 27 जून 2020
713 श्रीरामचरित मानस
(लंकाकाण्ड)
6/76/दोहा चौपाई / छंद / दोहा -
रामानुज कहँ रामु कहँ अस कहि छाँड़ेसि प्रान । धन्य धन्य तव जननी कह अंगद हनुमान ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब मेघनाथ को श्री लक्ष्मणजी ने मारा तो मरते समय उसने कपट त्यागकर प्रभु श्री रामजी और श्री लक्ष्मणजी को पुकारा । प्रभु श्री हनुमानजी यह सुनकर प्रसन्न हुए और उन्होंने कहा कि मेघनाथ की माता धन्य है क्योंकि मरते समय उसने प्रभु श्री रामजी और श्री लक्ष्मणजी का स्मरण करके और उनके नामों का उच्चारण करके उसने अपनी गति को सुधर लिया ।

प्रकाशन तिथि : 27 जून 2020
714 श्रीरामचरित मानस
(लंकाकाण्ड)
6/78/दोहा चौपाई / छंद / दोहा -
ताहि कि संपति सगुन सुभ सपनेहुँ मन बिश्राम । भूत द्रोह रत मोहबस राम बिमुख रति काम ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि जो जीव प्रभु से विमुख है उसे स्वप्न में भी कभी चित्त की शांति नहीं मिल सकती । जो प्रभु से विमुख है उसका स्वप्न में भी कभी शुभ नहीं हो सकता ।

प्रकाशन तिथि : 27 जून 2020
715 श्रीरामचरित मानस
(लंकाकाण्ड)
6/80/4 चौपाई / छंद / दोहा -
ईस भजनु सारथी सुजाना ।


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब रावण रथ में बैठकर युद्ध में आया और प्रभु श्री रामजी को बिना रथ के देख श्री विभीषणजी अधीर होकर प्रभु से बोले कि प्रभु बिना रथ के युद्ध कैसे करेंगे । तो प्रभु ने कहा कि विजय का धर्म रथ दूसरा ही होता है जो प्रभु के पास है । उस धर्म रथ पर बैठने वाले के लिए जीतने के लिए जगत में कोई शत्रु ही नहीं बचता । प्रभु श्री रामजी ने धर्म रथ की बहुत सुंदर व्याख्या की और कहा कि प्रभु का भजन ही उस धर्म रथ को चलाने वाला चतुर सारथी होता है ।

प्रकाशन तिथि : 28 जून 2020
716 श्रीरामचरित मानस
(लंकाकाण्ड)
6/81/छंद चौपाई / छंद / दोहा -
जय राम जो तृन ते कुलिस कर कुलिस ते कर तृन सही ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि प्रभु श्री रामजी की कृपा से वानर राक्षसों से ऐसे युद्ध कर रहे थे मानो प्रभु श्री नृसिंहजी अनेक शरीर धारण करके युद्ध मैदान में क्रीड़ा कर रहे हो । गोस्वामीजी कहते हैं कि प्रभु वज्र को तृण और तृण को वज्र के समान कर देते हैं यानी प्रभु ने निर्बल वानरों को सबल और सबल राक्षसों को निर्बल कर दिया ।

प्रकाशन तिथि : 28 जून 2020
717 श्रीरामचरित मानस
(लंकाकाण्ड)
6/84/दोहा चौपाई / छंद / दोहा -
राम बिरोध बिजय चह सठ हठ बस अति अग्य ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब युद्ध भूमि से मूर्छा अवस्था में रावण को सारथी लेकर वापस आया तो वह लज्जित हुआ और जीत के लिए यज्ञ करने लगा । गोस्वामी श्री तुलसीदासजी रावण को महामूर्ख और अत्यंत अज्ञानी इसलिए कहते हैं कि पहला वह प्रभु से विरोध कर रहा है और दूसरा अजेय प्रभु पर विजय की कामना से यज्ञ करता है ।

प्रकाशन तिथि : 28 जून 2020
718 श्रीरामचरित मानस
(लंकाकाण्ड)
6/86/छंद चौपाई / छंद / दोहा -
कह दास तुलसी जबहिं प्रभु सर चाप कर फेरन लगे । ब्रह्मांड दिग्गज कमठ अहि महि सिंधु भूधर डगमगे ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि जैसे ही प्रभु श्री रामजी ने रावण से युद्ध के लिए अपने धनुष बाण को अपने श्रीहाथों में लिया त्यों ही ब्रह्मांड, पृथ्वी, सागर, पर्वत सब डगमगा उठे । देवतागण प्रभु की युद्ध में शोभा देखकर हर्षित होकर फूलों की अपार वर्षा करने लगे । सभी तरफ से प्रभु के लिए जय-जयकार की ध्वनि आने लगी ।

प्रकाशन तिथि : 29 जून 2020
719 श्रीरामचरित मानस
(लंकाकाण्ड)
6/94/1 चौपाई / छंद / दोहा -
आवत देखि सक्ति अति घोरा । प्रनतारति भंजन पन मोरा ॥ तुरत बिभीषन पाछें मेला । सन्मुख राम सहेउ सोइ सेला ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब रावण ने युद्ध में एक भयंकर शक्ति श्री विभीषणजी पर चलाई तो प्रभु श्री रामजी तुरंत अपने शरणागत की रक्षा के लिए आ गए और श्री विभीषणजी को अपने पीछे करके स्वयं सामने आकर शक्ति को सहन कर लिया । प्रभु अपने शरणागत की पीड़ा को स्वयं पर लेकर अपने शरणागत को पीड़ा मुक्त रखते हैं । प्रभु के अलावा ऐसा करने वाला जगत में अन्य कोई भी नहीं है ।

प्रकाशन तिथि : 29 जून 2020
720 श्रीरामचरित मानस
(लंकाकाण्ड)
6/94/दोहा चौपाई / छंद / दोहा -
उमा बिभीषनु रावनहि सन्मुख चितव कि काउ । सो अब भिरत काल ज्यों श्रीरघुबीर प्रभाउ ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब श्री विभीषणजी ने गदा लेकर युद्ध में रावण की छाती में मारी तो वह धरती पर गिर पड़ा और उसके दसों मुख से खून बहने लगा । प्रभु श्री महादेवजी भगवती पार्वती माता से कहते हैं कि श्री विभीषणजी कभी रावण के सामने आँख उठाकर भी देखने की हिम्मत नहीं रखते थे पर आज वे कालरूप लेकर उससे युद्ध में भिड़ गए । प्रभु श्री महादेवजी कहते हैं कि यह मात्र और मात्र प्रभु श्री रामजी के प्रभाव का फल है कि उनके सानिध्य में आने पर निर्बल जीव भी परम सबल बन जाता है ।

प्रकाशन तिथि : 29 जून 2020