श्री गणेशाय नमः
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प्रभु प्रेरणा से लेखन द्वारा चन्द्रशेखर करवा
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क्रम संख्या श्रीग्रंथ संख्या भाव के दर्शन / प्रेरणापुंज
61 श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड)
1/32/5 चौपाई / छंद / दोहा -
मंत्र महामनि बिषय ब्याल के । मेटत कठिन कुअंक भाल के ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी प्रभु के गुणगान का महत्व इस चौपाई में बताते हैं । वे कहते हैं कि प्रभु का गुणगान संसार के विषयरूपी सांप का जहर उतारने के लिए मंत्र और महामणि के समान है । फिर जो गोस्वामीजी कहते हैं वह बहुत महत्वपूर्ण है । वे कहते हैं कि प्रायः जीवों के बुरे प्रारब्धवश ललाट पर बुरे लेख लिखे होते हैं जो कठिनता से मिटने वाले होते हैं । पर प्रभु का गुणगान उस बुरे प्रारब्ध को भी सरलता से समाप्त कर देता है और जीव को उस बुरे प्रारब्ध का फल भोगने से बचा लेता है ।

प्रकाशन तिथि : 29 अक्टूबर 2019
62 श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड)
1/32/दोहा चौपाई / छंद / दोहा -
कुपथ कुतरक कुचालि कलि कपट दंभ पाषंड । दहन राम गुन ग्राम जिमि इंधन अनल प्रचंड ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि प्रभु का गुणगान कलियुग के भयंकर दोष जैसे कपट, दंभ और पाखंड इत्यादि को जलाने के लिए श्री अग्निदेवजी के समान है । प्रभु का गुणगान करने से कलियुग के दोष हमारे निकट टिक ही नहीं सकते । कलियुग के दोष उस जीव का कुछ नहीं बिगाड़ पाते जो प्रभु का नित्य गुणगान करने को अपने जीवन का साधन बना लेता है । जैसे ईंधन के लिए आग उसे नष्ट करने वाली होती है वैसे ही कलियुग के दोषों के लिए प्रभु का गुणगान उन्हें नष्ट करने वाला होता है ।

प्रकाशन तिथि : 29 अक्टूबर 2019
63 श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड)
1/33/दोहा चौपाई / छंद / दोहा -
राम अनंत अनंत गुन अमित कथा बिस्तार ।


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि प्रभु के अनंत रूप और अनंत सद्गुण हैं इसलिए प्रभु की कथाओं का भी असीम और अनंत विस्तार है । श्री रामचरितमानसजी लिखने से पहले ही गोस्वामीजी स्पष्ट कर देते हैं कि वे अपनी बुद्धि अनुसार इस असीम और अनंत श्रीराम कथा का कुछ ही मात्रा में प्रतिपादन कर पाएंगे । अनंत प्रभु के रूप, अनंत प्रभु के सद्गुण और अनंत प्रभु की श्रीलीलाओं का पूरा-पूरा प्रतिपादन करना किसी के लिए भी पूर्णतया असंभव है ।

प्रकाशन तिथि : 30 अक्टूबर 2019
64 श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड)
1/34/3 चौपाई / छंद / दोहा -
जेहि दिन राम जनम श्रुति गावहिं । तीरथ सकल तहाँ चलि आवहिं ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि जिस दिन प्रभु श्री रामजी श्री अयोध्याजी में अवतार लेते हैं उस दिन समस्त तीर्थ प्रभु की सेवा करने के लिए श्री अयोध्याजी चले आते हैं । इस चौपाई का अर्थ हमें ऐसे समझना चाहिए कि अगर हम अपने घर में प्रभु की नित्य सेवा करते हैं, प्रभु का नित्य उत्सव मनाते हैं तो संसार के सारे तीर्थ अदृश्य रूप से हमारे यहाँ आ जाते हैं । तीर्थ और सद्गुण वहीं विराजते हैं जहाँ प्रभु होते हैं । इसलिए प्रभु की सेवा और प्रभु का उत्सव जीवन में नित्य होना चाहिए ।

प्रकाशन तिथि : 30 अक्टूबर 2019
65 श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड)
1/35/5 चौपाई / छंद / दोहा -
त्रिबिध दोष दुख दारिद दावन । कलि कुचालि कुलि कलुष नसावन ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि प्रभु श्री रामजी की कथा सभी प्रकार के दोषों का, दुःखों का और दरिद्रता का नाश करने वाली है । प्रभु श्री रामजी की कथा कलियुग के कुचालों का नाश करने वाली है । प्रभु श्री रामजी की कथा सभी पापों का मूल से नाश करने वाली है । कलियुग का जीव दोष, दुःख, दरिद्रता और पाप से ग्रस्त रहता है और इन सबसे उसका समाधान हो सके इसलिए परम दयालु और परम कृपालु प्रभु श्री महादेवजी ने सुहावनी और पवित्र श्रीराम कथा की रचना की है ।

प्रकाशन तिथि : 31 अक्टूबर 2019
66 श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड)
1/38/3 चौपाई / छंद / दोहा -
तेहि कारन आवत हियँ हारे । कामी काक बलाक बिचारे ॥ आवत एहिं सर अति कठिनाई । राम कृपा बिनु आइ न जाई ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कलियुग के एक सत्य तथ्य का प्रतिपादन करते हैं । कलियुग में प्रायः देखा जाता है कि जीव विषयी होते हैं और प्रभु भक्ति और प्रभु के लिए निष्काम प्रेम से रहित होते हैं । गोस्वामीजी ऐसे जीवों को कौवे और बगुले की संज्ञा देते हैं जो हृदय से हार मान जाते हैं और प्रभु कथा के द्वार तक नहीं आ पाते । उन्हें कथारूपी सरोवर तक आने में अनेक कठिनाइयां दिखती है । फिर गोस्वामीजी एक मार्मिक बात कहते हैं कि प्रभु की कृपा के बिना प्रभु कथारूपी सरोवर तक कोई पहुँच नहीं सकता । अगर हम प्रभु की भक्ति करते हैं, प्रभु से प्रेम करते हैं और प्रभु कथा के श्रवण में हमारी रुचि है तो इसे साक्षात प्रभु कृपा का ही फल मानना चाहिए ।

प्रकाशन तिथि : 31 अक्टूबर 2019
67 श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड)
1/38/4 चौपाई / छंद / दोहा -
गृह कारज नाना जंजाला । ते अति दुर्गम सैल बिसाला ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी इस चौपाई में कलियुग के एक दृष्टांत का वर्णन करते हैं । वे कहते हैं कि कलियुग का जीव गृहस्थी के कामकाज में, गृहस्थी के भांति-भांति के जंजालों में फंसा हुआ होता है और इस कारण अध्यात्म की तरफ उसका रुझान ही नहीं होता । गोस्वामीजी इन गृहस्थी के जंजालों को दुर्गम और बड़े-बड़े पहाड़ बताते हैं जिस पर चढ़कर उस पार जाना बहुत कठिन है । पर जो जीव दृढ़ संकल्प से प्रभु की तरफ बढ़ने का प्रयास और पुरुषार्थ करता है, प्रभु की कृपा उसे मिलती है और वह अपने प्रयास में सफल हो जाता है ।

प्रकाशन तिथि : 01 नवम्बर 2019
68 श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड)
1/39/3 चौपाई / छंद / दोहा -
सकल बिघ्न ब्यापहिं नहिं तेही । राम सुकृपाँ बिलोकहिं जेही ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कलियुग के सभी दोषों और विघ्नों का वर्णन करते हैं जो जीव को प्रभु की तरफ मुड़ने नहीं देते । फिर गोस्वामीजी एक सिद्धांत का प्रतिपादन करते हैं । वे कहते हैं कि जिसका प्रभु प्राप्ति का उद्देश्य और संकल्प दृढ़ होता है उसे कलियुग के दोष और विघ्न बाधा नहीं दे सकते क्योंकि उस जीव पर प्रभु की सुंदर कृपा दृष्टि पड़ जाती है । जब प्रभु किसी जीव का प्रयास देखते हैं कि वह उनकी तरफ आना चाहता है तो प्रभु की एक कृपा दृष्टि सभी बाधाओं को, विघ्नों को नष्ट कर देती है और उस जीव का प्रभु तक पहुँचने का मार्ग सुलभ कर देती है ।

प्रकाशन तिथि : 01 नवम्बर 2019
69 श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड)
1/43/3 चौपाई / छंद / दोहा -
काम कोह मद मोह नसावन । बिमल बिबेक बिराग बढ़ावन ॥ सादर मज्जन पान किए तें । मिटहिं पाप परिताप हिए तें ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी प्रभु श्री रामजी की कथा को कवितारूपी नदी की संज्ञा देते हैं जिसका जल काम, क्रोध, मद और लोभ का नाश करने वाला है । यह जल ज्ञान और वैराग्य को बढ़ाने वाला है । गोस्वामीजी कहते हैं कि इस कवितारूपी नदी के जल में आदरपूर्वक स्नान करने से और उसका जलपान करने से हमारे हृदय में निवास करने वाले सब पाप और संसार के सब ताप मिट जाते हैं ।

प्रकाशन तिथि : 02 नवम्बर 2019
70 श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड)
1/43/4 चौपाई / छंद / दोहा -
जिन्ह एहिं बारि न मानस धोए । ते कायर कलिकाल बिगोए ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी प्रभु श्री रामजी की कथा से वंचित जीव की दशा इस चौपाई में बताते हैं । वे कहते हैं कि जो जीव अपने हृदय को इस श्री रामकथारूपी नदी के जल से नहीं धो पाता उसे मानो कलियुग ने ठग लिया हो और इस अमृत से वंचित कर दिया हो । कलियुग में जो जीव प्रभु की सुयशरूपी कथा को छोड़कर संसार के विषयों के पीछे भटकते हैं वे अंत में दुःखी ही होते हैं ।

प्रकाशन तिथि : 02 नवम्बर 2019
71 श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड)
1/46/1 चौपाई / छंद / दोहा -
राम नाम कर अमित प्रभावा । संत पुरान उपनिषद गावा ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - एक बार तीर्थराज श्री प्रयागजी में ऋषि श्री भरद्वाजजी ने ऋषि श्री याज्ञवल्क्यजी के समक्ष प्रभु श्री रामजी का पावन और पुनीत श्रीचरित्र सुनने के लिए जिज्ञासा प्रकट की । ऋषि श्री भरद्वाजजी ने कहा कि श्रीपुराणों में, उपनिषदों में और संतों के मुख से प्रभु श्री रामजी के नाम के असीम प्रभाव का गान सर्वत्र किया गया मिलता है । यह बात सत्य है कि प्रभु श्री रामजी के नाम की महिमा अद्वितीय है और सभी शास्त्रों और संतों की वाणी में इसका माहात्म्य गाया हुआ है ।

प्रकाशन तिथि : 03 नवम्बर 2019
72 श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड)
1/46/2 चौपाई / छंद / दोहा -
संतत जपत संभु अबिनासी। सिव भगवान ग्यान गुन रासी ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - ऋषि श्री भरद्वाजजी ऋषि श्री याज्ञवल्क्यजी से कहते हैं कि श्रीराम नाम की महिमा और प्रभाव का तो इससे पता चलता है कि प्रभु श्री महादेवजी सतत और निरंतर श्रीराम नाम का जप किया करते हैं । ऋषि श्री भरद्वाजजी ने प्रभु श्री महादेवजी के लिए कुछ विशेषणों का प्रयोग किया है जो की हृदयस्पर्शी हैं । वे प्रभु श्री महादेवजी को कल्याणस्वरूप, ज्ञान और गुणों की राशि एवं अविनाशी कहकर संबोधित करते हैं ।

प्रकाशन तिथि : 03 नवम्बर 2019
73 श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड)
1/46/3 चौपाई / छंद / दोहा -
सोपि राम महिमा मुनिराया । सिव उपदेसु करत करि दाया ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - ऋषि श्री भरद्वाजजी ऋषि श्री याज्ञवल्क्यजी से कहते हैं कि यह श्रीराम नाम की महिमा ही है कि प्रभु श्री महादेवजी अपने धाम श्री काशीजी में शरीर त्यागने वाले जीव की मुक्ति के लिए उसे श्रीराम नाम का ही उपदेश करते हैं । प्रभु श्री महादेवजी श्रीराम नाम के प्रभाव को जानते हैं और उसका उपयोग वे जीवात्माओं को संसार चक्र से सदा के लिए मुक्त करने के लिए करते हैं ।

प्रकाशन तिथि : 04 नवम्बर 2019
74 श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड)
1/47/2 चौपाई / छंद / दोहा -
रामभगत तुम्ह मन क्रम बानी । चतुराई तुम्हारी मैं जानी ॥ चाहहु सुनै राम गुन गूढ़ा । कीन्हिहु प्रस्न मनहुँ अति मूढ़ा ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब ऋषि श्री भरद्वाजजी ने अज्ञानी बनकर ऋषि श्री याज्ञवल्क्यजी से प्रभु श्री रामजी के विषय में जिज्ञासा की और प्रभु श्री रामजी के पावन श्रीचरित्र को सुनना चाहा तो ऋषि श्री याज्ञवल्क्यजी उनकी चतुराई समझ गए । वे बोले कि आप भी प्रभु श्री रामजी की प्रभुता को भली-भांति जानते हैं क्योंकि आप मन, वचन और कर्म से प्रभु श्री रामजी के भक्त हैं । वे बोले कि आप प्रभु का यशगान मुझसे सुनना चाहते हैं इसलिए मूढ़ बनकर मुझसे प्रभु के विषय में प्रश्न पूछ रहे हैं । प्राचीन समय में यह पद्धति थी कि प्रभु के गुणानुवाद को हम श्रवण कर सकें इसलिए ऋषि, संत और भक्त अज्ञानी बनकर एक दूसरे से प्रभु के विषय में जिज्ञासा करते रहते थे । इस कारण सत्संग होता था और प्रभु के बारे में श्रवण और कथन का लाभ सबको मिलता था ।

प्रकाशन तिथि : 04 नवम्बर 2019
75 श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड)
1/48/2 चौपाई / छंद / दोहा -
रामकथा मुनिबर्ज बखानी । सुनी महेस परम सुखु मानी ॥ रिषि पूछी हरिभगति सुहाई । कही संभु अधिकारी पाई ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्रीराम कथा कहने और सुनने की नित्य इच्छा प्रभु श्री महादेवजी को होती रहती है । एक बार प्रभु श्री महादेवजी भगवती जगजननी सती माता के साथ ऋषि श्री अगस्त्यजी के यहाँ पधारे । ऋषि श्री अगस्त्यजी ने संपूर्ण जगत के ईश्वर जानकर प्रभु का पूजन किया । फिर प्रभु की आज्ञा से उन्होंने प्रभु और माता के समक्ष श्रीराम कथा का विस्तार से निरूपण किया जिसको प्रभु और माता ने हृदय में परमसुख धारण करके श्रवण किया । फिर ऋषि श्री अगस्त्यजी ने प्रभु श्री महादेवजी से हरिभक्ति के विषय में पूछा और प्रभु ने उन्हें अधिकारी जानकर उनके समक्ष भक्ति का निरूपण किया । प्रभु श्री महादेवजी भी श्रीहरि कथा श्रवण करने का निमित्त खोजते हैं क्योंकि उनकी तृप्ति भी कथा सुनकर और कहकर ही होती है । इससे कथा के माहात्म्य का पता चलता है ।

प्रकाशन तिथि : 05 नवम्बर 2019
76 श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड)
1/51/छंद चौपाई / छंद / दोहा -
मुनि धीर जोगी सिद्ध संतत बिमल मन जेहि ध्यावहीं । कहि नेति निगम पुरान आगम जासु कीरति गावहीं ॥ सोइ रामु ब्यापक ब्रह्म भुवन निकाय पति माया धनी । अवतरेउ अपने भगत हित निजतंत्र नित रघुकुलमनि ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब लीलावश भगवती जगजननी सती माता के मन में नरलीला कर रहे प्रभु श्री रामजी के लिए शंका उत्पन्न हुई कि क्या वे वाकई ईश्वर हैं तो उसका समाधान करने के लिए प्रभु श्री महादेवजी ने यहाँ वर्णित बात कही । प्रभु श्री महादेवजी ने कहा कि ज्ञानी, मुनि, योगी और सिद्धजन निरंतर जिनका निर्मल चित्त से ध्यान करने का प्रयास करते हैं तथा श्री वेदजी, श्रीपुराण और शास्त्र जिनका नेति-नेति कहकर कीर्तिगान करते हैं वे ही प्रभु यह नरलीला कर रहे हैं । प्रभु श्री महादेवजी ने कहा कि उन ही सर्वव्यापक, मायापति, परम स्वतंत्र, ब्रह्मरूप, समस्त ब्रह्मांड के स्वामी, ईश्वर ने प्रभु श्री रामजी बनकर भक्तों के हित के लिए रघुकुल के मणि के रूप में अवतार ग्रहण किया है ।

प्रकाशन तिथि : 05 नवम्बर 2019
77 श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड)
1/51/दोहा चौपाई / छंद / दोहा -
बोले बिहसि महेसु हरिमाया बलु जानि जियँ ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - भगवती जगजननी सती माता के मन में प्रभु श्री रामजी की नर लीला देखकर जब शंका उठी तो उसका समाधान करने के लिए प्रभु श्री महादेवजी ने उन्हें समझाया । पर भगवती सती माता के हृदय में प्रभु श्री महादेवजी का उपदेश नहीं टिका । तब प्रभु श्री महादेवजी अपने मन-ही-मन प्रभु की माया का बल देखकर मुस्कुराए क्योंकि उन्होंने देखा कि प्रभु की माया ने साक्षात जगजननी भगवती सती माता को भी भ्रमित कर दिया ।

प्रकाशन तिथि : 06 नवम्बर 2019
78 श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड)
1/52/4 चौपाई / छंद / दोहा -
होइहि सोइ जो राम रचि राखा ।


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - यह श्री रामचरितमानसजी की एक प्रसिद्ध चौपाई है जिसमें एक महत्वपूर्ण सिद्धांत का प्रतिपादन हुआ है । जब नर लीला कर रहे प्रभु श्री रामजी को देखकर भगवती सती माता भ्रमित हो गई और उनकी परीक्षा लेने गई तो प्रभु श्री महादेवजी एक बड़ के पेड़ के नीचे बैठकर श्रीराम नाम जपने लगे । उन्होंने सोचा कि मेरे प्रभु की माया ने साक्षात जगजननी भगवती सती माता को भी भ्रमित कर दिया । उन्होंने आगे सोचा कि होगा वही जो मेरे प्रभु श्री रामजी ने पहले से ही रचा हुआ है । सार यह है कि जो भी होता है वह प्रभु द्वारा पहले से ही रचा हुआ ही होता है, हम तो केवल निमित्त मात्र बनते हैं ।

प्रकाशन तिथि : 06 नवम्बर 2019
79 श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड)
1/56/3 चौपाई / छंद / दोहा -
हरि इच्छा भावी बलवाना ।


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब जगजननी भगवती सती माता ने प्रभु श्री रामजी की परीक्षा ली और वापस आकर प्रभु श्री महादेवजी से उस परीक्षा को छुपाया तो प्रभु श्री महादेवजी ने ध्यान लगाकर देखा । प्रभु श्री महादेवजी को विदित हो गया कि परीक्षा करने में भगवती सती माता ने भगवती सीता माता का रूप धारण किया था । तब प्रभु श्री महादेवजी ने विचार किया और एक सत्य का प्रतिपादन इस चौपाई में किया कि श्रीहरि की इच्छारूपी होनी अत्यंत प्रबल और अत्यंत बलवान है ।

प्रकाशन तिथि : 07 नवम्बर 2019
80 श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड)
1/59/3 चौपाई / छंद / दोहा -
कहि न जाई कछु हृदय गलानी । मन महुँ रामहि सुमिर सयानी ॥ जौं प्रभु दीनदयालु कहावा । आरती हरन बेद जसु गावा ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब प्रभु श्री महादेवजी ने ध्यान लगाकर देख लिया कि भगवती सती माता ने प्रभु श्री रामजी की परीक्षा लेने के लिए भगवती सीता माता का रूप धारण किया था तो वे प्रभु श्री रामजी के प्रति अपनी अविचल भक्ति के कारण उस पल से भगवती सती माता को मातृ बुद्धि से देखने लगे । प्रभु श्री रामजी के प्रति दृढ़ भक्ति के कारण प्रभु श्री महादेवजी ने प्रतिज्ञा कर ली कि वे अब अखंड और अपार समाधि में रहेंगे । जब भगवती सती माता ने ऐसा जान लिया तो उन्होंने प्रभु श्री रामजी का स्मरण किया और दीनदयालु और दुःख हरने वाले प्रभु से हाथ जोड़कर विनती करी कि उनका यह शरीर छूट जाए और नवीन शरीर में उनका प्रभु श्री महादेवजी से फिर संयोग हो ।

प्रकाशन तिथि : 07 नवम्बर 2019
81 श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड)
1/60/4 चौपाई / छंद / दोहा -
नहिं कोउ अस जनमा जग माहीं । प्रभुता पाइ जाहि मद नाहीं ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी इस चौपाई में एक सत्य का प्रतिपादन करते हैं । वे कहते हैं कि जगत में ऐसा कोई पैदा नहीं हुआ जिसको प्रभुता यानी धन, संपत्ति, पद, प्रतिष्ठा पाकर अभिमान न हुआ हो । इस सत्य के मद्देनजर हमें प्रभु से प्रभुता नहीं अपितु प्रभु मिले ऐसी अरदास करनी चाहिए । प्रभुता मिलने पर अभिमान आता है जो प्रभु को बहुत अप्रिय लगता है और यह अभिमान हमें प्रभु से दूर कर देता है । इसलिए जीवन में प्रभुता की जगह हमें प्रभु को चुनना चाहिए ।

प्रकाशन तिथि : 08 नवम्बर 2019
82 श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड)
1/66/2 चौपाई / छंद / दोहा -
सोह सैल गिरिजा गृह आएँ । जिमि जनु रामभगति के पाएँ ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - भगवती सती माता ने प्रभु श्री हरिजी से वर मांगा था कि उनके अगले जन्म में उनका प्रभु श्री महादेवजी के श्रीकमलचरणों में भरपूर अनुराग रहे । उन्होंने जब भगवती पार्वती माता के रूप में पर्वतराज श्री हिमाचलजी के यहाँ जन्म लिया तो पर्वतराज के यहाँ सारी संपत्ति छा गई । ऋषि-मुनियों ने वहाँ आकर अपने आश्रम बना लिए जिससे वे उस पवित्र वातावरण में रह पाए और प्रभु और माता की श्रीलीला के दर्शन कर पाए । नए वृक्ष फल-फूल से लद गए और मणियों की नई खान वहाँ प्रकट हो गई । नदियों में पवित्र जल बहने लगा और पशु-पक्षी वैर भुलाकर संग-संग रहने लगे । सारांश यह कि भगवती पार्वती माता के जन्म लेने के बाद पर्वतराज ऐसे शोभायमान हो उठे जैसे प्रभु श्री रामजी की भक्ति पाकर भक्त शोभायमान होता है । सिद्धांत यह है कि जीव की सच्ची शोभा प्रभु की भक्ति करने में ही है ।

प्रकाशन तिथि : 08 नवम्बर 2019
83 श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड)
1/67/3 चौपाई / छंद / दोहा -
होइहि पूज्य सकल जग माहीं । एहि सेवत कछु दुर्लभ नाहीं ॥ एहि कर नामु सुमिरि संसारा । त्रिय चढ़िहहिं पतिब्रत असिधारा ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब देवर्षि प्रभु श्री नारदजी पर्वतराज श्री हिमाचलजी के घर आए तो उन्होंने अपनी पुत्री के गुण-दोष कहने के लिए उन्हें निवेदन किया क्योंकि वे त्रिकालज्ञ और सर्वज्ञ हैं । तब देवर्षि प्रभु श्री नारदजी ने कहा कि ये सब गुणों की खान, स्वभाव से सुंदर, सुशील और समझदार हैं और सभी सुलक्षणों से संपन्न हैं । उन्होंने आगे कहा कि ये अपने पति की सर्वदा प्रियतमा रहेंगी और अपने माता-पिता का यश बढ़ाएंगी । फिर जो भगवती पार्वती माता के लिए देवर्षि प्रभु श्री नारदजी ने कहा वह विशेष ध्यान देने योग्य है । उन्होंने कहा कि ये संपूर्ण जगत में पूज्य होंगी और इनकी सेवा करने पर किसी के लिए कुछ भी पाना दुर्लभ नहीं रहेगा । इनका नाम पतिव्रताओं में सबसे पहले लिया जाएगा और संसार की स्त्रियां इनका नाम स्मरण करके ही पवित्र होंगी ।

प्रकाशन तिथि : 09 नवम्बर 2019
84 श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड)
1/68/दोहा चौपाई / छंद / दोहा -
कह मुनीस हिमवंत सुनु जो बिधि लिखा लिलार । देव दनुज नर नाग मुनि कोउ न मेटनिहार ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - देवर्षि प्रभु श्री नारदजी ने इस दोहे में एक सत्य सिद्धांत का प्रतिपादन किया है । वे कहते हैं कि प्रभु ने जो जीव के ललाट पर लिख दिया, किसी में सामर्थ्य नहीं कि उसको मिटा सके । जो प्रभु ने लिख दिया वह होकर ही रहेगा । उसे देवतागण, दानव, मनुष्य, नाग और मुनि कोई भी नहीं मिटा सकते । प्रभु का लिखा अमिट है, उसे कोई मिटा या बदल सकता है तो वे केवल और केवल प्रभु ही हैं ।

प्रकाशन तिथि : 09 नवम्बर 2019
85 श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड)
1/70/3 चौपाई / छंद / दोहा -
भाविउ मेटि सकहिं त्रिपुरारी ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - देवर्षि प्रभु श्री नारदजी श्री हिमाचलजी को प्रभु श्री महादेवजी की महानता बताते हुए कहते हैं कि प्रभु चाहे तो होनी को भी मिटा सकते हैं । यह एक अकाट्य सिद्धांत है कि होनी को मिटाने का सामर्थ्य एक प्रभु के अलावा किसी में भी नहीं है । केवल और केवल प्रभु ही हमारे ललाट में लिखे बुरे लेख और होनीवश अमंगल को अपनी कृपा से मिटा सकते हैं । इसलिए बुरे प्रतिकूल समय में एकमात्र प्रभु ही हैं जो हमारा मंगल कर सकते हैं ।

प्रकाशन तिथि : 10 नवम्बर 2019
86 श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड)
1/70/4 चौपाई / छंद / दोहा -
बर दायक प्रनतारति भंजन । कृपासिंधु सेवक मन रंजन ॥ इच्छित फल बिनु सिव अवराधें । लहिअ न कोटि जोग जप साधें ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - देवर्षि प्रभु श्री नारदजी श्री हिमाचलजी को उनकी पुत्री भगवती पार्वती माता के विवाह के लिए प्रभु श्री महादेवजी के रूप में उपयुक्त वर के बारे में बताते हैं । वे कहते हैं कि प्रभु श्री महादेवजी प्रसन्न होने पर वर देने में सबसे अग्रणी है, शरणागत के दुःखों का नाश करने वाले हैं । प्रभु श्री महादेवजी कृपा के सागर हैं और अपने सेवकों के मन को प्रसन्न करने वाले हैं । प्रभु श्री महादेवजी की आराधना किए बिना अनेकों साधन करने पर भी मनवांछित फल नहीं मिलता ।

प्रकाशन तिथि : 10 नवम्बर 2019
87 श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड)
1/71/दोहा चौपाई / छंद / दोहा -
प्रिया सोचु परिहरहु सबु सुमिरहु श्रीभगवान । पारबतिहि निरमयउ जेहिं सोइ करिहि कल्यान ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - किसी भी चिंता के समय क्या करना चाहिए यह इस दोहे में बताया गया है । चिंता और प्रतिकूल अवस्था में सब सोच छोड़कर प्रभु का स्मरण करना चाहिए । भगवती पार्वती माता के विवाह की चिंता कर रही उनकी माता भगवती मैनाजी को यह बात श्री हिमाचलजी ने कही । उन्होंने कहा कि जिन्होंने भगवती पार्वती माता को रचा है वे ही प्रभु उनकी चिंता और उनका कल्याण भी करेंगे ।

प्रकाशन तिथि : 11 नवम्बर 2019
88 श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड)
1/75/4 चौपाई / छंद / दोहा -
जपहिं सदा रघुनायक नामा । जहँ तहँ सुनहिं राम गुन ग्रामा ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जबसे प्रभु श्री महादेवजी का भगवती सती माता से वियोग हुआ तबसे उन्होंने अपने मन में वैराग्य धारण कर लिया । प्रभु श्री महादेवजी नित्य निरंतर प्रभु श्री रामजी का पुनीत और पावन नाम जपने लगे और जहाँ-जहाँ भी प्रभु श्री रामजी का गुणानुवाद और उनकी कथाएं होती वहाँ प्रेमपूर्वक उन्हें सुनने जाने लगे । प्रभु श्री महादेवजी का प्रभु कथा में कितना प्रेम है यह यहाँ देखने को मिलता है ।

प्रकाशन तिथि : 11 नवम्बर 2019
89 श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड)
1/75/दोहा चौपाई / छंद / दोहा -
चिदानंद सुखधाम सिव बिगत मोह मद काम । बिचरहिं महि धरि हृदयँ हरि सकल लोक अभिराम ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - भगवती सती माता से विरह की बेला का प्रभु श्री महादेवजी ने किस तरह सदुपयोग किया यह इस दोहे में देखने को मिलता है । प्रभु श्री महादेवजी जो कि चिदानंद हैं, सुख के धाम हैं और मोह, मद, काम से रहित हैं वे प्रभु श्री रामजी को अपने हृदय में धारण करके उनके ध्यान में मग्न होकर संसार में घूमने लगे ।

प्रकाशन तिथि : 12 नवम्बर 2019
90 श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड)
1/76/3 चौपाई / छंद / दोहा -
प्रगटे रामु कृतग्य कृपाला । रूप सील निधि तेज बिसाला ॥ बहु प्रकार संकरहि सराहा । तुम्ह बिनु अस ब्रतु को निरबाहा ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब भगवती सती माता के विरह में प्रभु श्री महादेवजी ने प्रभु श्री रामजी का गुणानुवाद करने और सुनने में काफी समय बिता दिया तो उनको प्रभु से नित्य नई प्रीति होने लगी । प्रभु श्री महादेवजी का कठोर नियम, अनन्य प्रेम और अटल भक्ति देखकर कृपालु प्रभु श्री रामजी प्रकट हुए और उनकी सराहना करते हुए बोले कि आपके जैसे कठिन व्रत को आपके अलावा अन्य कोई नहीं निभा सकता । यह सत्य है कि प्रतिकूल अवस्था में कठोर नियम, अनन्य प्रेम और अटल भक्ति का प्रतिपादन करके प्रभु श्री महादेवजी ने सबके सामने एक उत्तम आदर्श रखा ।

प्रकाशन तिथि : 12 नवम्बर 2019
91 श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड)
1/85/दोहा चौपाई / छंद / दोहा -
धरी न काहूँ धीर सबके मन मनसिज हरे । जे राखे रघुबीर ते उबरे तेहि काल महुँ ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब देवतागणों ने प्रभु श्री ब्रह्माजी के कहने पर श्री कामदेवजी को प्रभु श्री महादेवजी के पास भेजा तो श्री कामदेवजी ने ऐसा कौतुक किया कि सभी उनके अधीन हो गए । किसी से भी हृदय में धैर्य धारण नहीं किया जा सका । केवल प्रभु ने जिनकी रक्षा की वे ही सिर्फ उस समय बच पाए । समझने की बात इतनी है कि प्रभु की कृपा से ही जीव अपनी इंद्रियों के वेग से बच पाता है ।

प्रकाशन तिथि : 13 नवम्बर 2019
92 श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड)
1/94/दोहा चौपाई / छंद / दोहा -
जगदंबा जहँ अवतरी सो पुरु बरनि कि जाइ । रिद्धि सिद्धि संपत्ति सुख नित नूतन अधिकाइ ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - इस दोहे में भगवती पार्वती माता के पिता श्री हिमाचलजी के यहाँ की व्यवस्था का वर्णन किया गया है । गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि जहाँ साक्षात जगजननी जगदंबा माता ने अवतार लिया है वहाँ के आनंद और वैभव का वर्णन हो ही नहीं सकता । वहाँ पर स्वतः ही सुख संपत्ति नित्य बढ़ती ही चली जाती हैं । इस दोहे को ऐसे समझना चाहिए कि जिस घर में भगवती जगजननी जगदंबा माता का वास होता है वहाँ का आनंद और वैभव बढ़ता ही चला जाता है ।

प्रकाशन तिथि : 13 नवम्बर 2019
93 श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड)
1/98/2 चौपाई / छंद / दोहा -
अजा अनादि सक्ति अबिनासिनि । सदा संभु अरधंग निवासिनि ॥ जग संभव पालन लय कारिनि । निज इच्छा लीला बपु धारिनि ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - देवर्षि प्रभु श्री नारदजी ने भगवती पार्वती माता के पूर्व जन्म का परिचय देते हुए बताया कि वे साक्षात जगजननी भवानी हैं । वे अजन्मा, अनादि और अविनाशिनी शक्ति हैं और सदा से उनका संग प्रभु श्री महादेवजी के साथ रहा है । भगवती जगजननी माता जगत की उत्पत्ति, पालन और संहार करने वाली हैं और इस समय उन्होंने अपनी इच्छा से भगवती पार्वती माता के रूप में लीला शरीर धारण किया है ।

प्रकाशन तिथि : 14 नवम्बर 2019
94 श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड)
1/100/4 चौपाई / छंद / दोहा -
जगदंबिका जानि भव भामा । सुरन्ह मनहिं मन कीन्ह प्रनामा ॥ सुंदरता मरजाद भवानी । जाइ न कोटिहुँ बदन बखानी ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब भगवती पार्वती माता का श्रृंगार करके सखियां उन्हें लेकर आई तो उनकी सुंदरता उपमा रहित थी । गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि ऐसा कौन कवि हो सकता है जो उस सुंदरता का किंचित भी वर्णन करने का साहस करे । गोस्वामीजी कहते हैं कि भगवती पार्वती माता सुंदरता की परिसीमा हैं और करोड़ों मुख से भी उनकी दिव्य शोभा का वर्णन नहीं किया जा सकता । श्री वेदजी, श्री शेषजी और भगवती सरस्वती माता भी उनकी शोभा वर्णन करते-करते सकुचा जाते हैं और वर्णन नहीं कर पाते । भगवती पार्वती माता को जब देवतागणों ने देखा तो उन्हें साक्षात जगजननी जगदंबा और प्रभु श्री महादेवजी की पत्नी जानकर मन-ही-मन उन्हें दंडवत प्रणाम किया ।

प्रकाशन तिथि : 14 नवम्बर 2019
95 श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड)
1/101/2 चौपाई / छंद / दोहा -
बेदमंत्र मुनिबर उच्चरहीं । जय जय जय संकर सुर करहीं ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब प्रभु श्री महादेवजी का भगवती पार्वती माता से विवाह संपन्न हुआ तो सभी देवतागण बड़े ही हर्षित हुए । श्रेष्ठ मुनिगण मंगल श्रीवेद मंत्रों का उच्चारण करने लगे और देवतागण प्रभु श्री महादेवजी और भगवती पार्वती माता की बारंबार जय-जयकार करने लगे । अनेक प्रकार के बाजे बजने लगे, आकाश से नाना प्रकार के फूलों की वर्षा होने लगी और पूरे ब्रह्मांड में प्रभु श्री महादेवजी और भगवती पार्वती माता के विवाह का आनंद छा गया ।

प्रकाशन तिथि : 15 नवम्बर 2019
96 श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड)
1/103/दोहा चौपाई / छंद / दोहा -
चरित सिंधु गिरिजा रमन बेद न पावहिं पारु । बरनै तुलसीदासु किमि अति मतिमंद गवाँरु ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी प्रभु श्री महादेवजी और भगवती पार्वती माता के विवाह और प्रभु श्री कार्तिकेयजी के जन्म की कथा का वर्णन कर कहते हैं कि प्रभु का श्रीचरित्र श्री समुद्रदेवजी की तरह अथाह और अपार है । प्रभु का श्रीचरित्र इतना अथाह और अपार है कि श्री वेदजी भी उसका पार नहीं पा सकते और नेति-नेति कहकर शांत हो जाते हैं । गोस्वामीजी फिर अपनी दीनता दिखाते हुए कहते हैं कि ऐसी अवस्था में उनके लिए प्रभु के श्रीचरित्र का पूर्ण वर्णन करना कैसे संभव हो सकता है ।

प्रकाशन तिथि : 15 नवम्बर 2019
97 श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड)
1/104/2 चौपाई / छंद / दोहा -
अहो धन्य तव जन्मु मुनीसा । तुम्हहि प्रान सम प्रिय गौरीसा ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - ऋषि श्री याज्ञवल्क्यजी के मुँह से प्रभु श्री महादेवजी और भगवती पार्वती माता का सुहावना श्रीचरित्र सुनकर ऋषि श्री भरद्वाजजी को परम आनंद हुआ । उनकी आगे की कथा सुनने की लालसा बहुत बढ़ गई । उनके नेत्रों में प्रेम जल भर आया और उनका रोम-रोम पुलकित हो उठा । वे प्रेम में इतने मग्न हो गए कि उनके मुँह से वाणी नहीं निकली । कथा प्रसंग में इतनी भावना से तल्लीन होने के कारण उनकी ऐसी दशा देखकर ऋषि श्री याज्ञवल्क्यजी ने उनसे कहा कि आपका जीवन धन्य है जो प्रभु और माता इस तरह आपको अपने प्राणों से भी अधिक प्रिय हैं । सच्चे मन और सच्ची तल्लीनता से प्रभु कथा सुनने का प्रभाव इस चौपाई में देखने को मिलता है ।

प्रकाशन तिथि : 16 नवम्बर 2019
98 श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड)
1/104/4 चौपाई / छंद / दोहा -
को सिव सम रामहि प्रिय भाई ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री रामजी को प्रभु श्री महादेवजी के समान या उनसे ज्यादा कोई प्रिय नहीं है । जिस जीव की प्रभु श्री महादेवजी के श्रीकमलचरणों में प्रीति नहीं होती वह जीव प्रभु श्री रामजी को स्वप्न में भी अच्छा नहीं लगता । प्रभु श्री महादेवजी के श्रीकमलचरणों में विशुद्ध प्रेम होना एक सच्चे श्रीराम भक्त के लक्षण हैं । ऐसा इसलिए कि प्रभु श्री महादेवजी के समान प्रभु श्री रामजी की भक्ति का व्रत धारण करने वाला अन्य कोई नहीं है । प्रभु श्री महादेवजी ने एक पूरा अवतार प्रभु श्री हनुमानजी के रूप में प्रभु श्री रामजी की सेवा के लिए ग्रहण कर अपनी श्रीराम भक्ति को गौरवान्वित किया ।

प्रकाशन तिथि : 16 नवम्बर 2019
99 श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड)
1/107/दोहा चौपाई / छंद / दोहा -
प्रभु समरथ सर्बग्य सिव सकल कला गुन धाम ॥ जोग ग्यान बैराग्य निधि प्रनत कलपतरु नाम ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - एक बार श्री कैलाशजी में भगवती पार्वती माता ने प्रभु श्री महादेवजी से सब लोगों का परम मंगल करने वाली प्रभु श्री रामजी की कथा सुनने की इच्छा प्रकट की । कथा का निवेदन करने से पूर्व माता ने प्रभु श्री महादेवजी को संबोधित करके जो कहा वह हृदयस्पर्शी है । माता ने प्रभु से कहा कि आप संसार के स्वामी हैं और तीनों लोकों में आपकी महिमा विख्यात है । माता ने प्रभु से कहा कि चर, अचर, नाग, मनुष्य और देवता सभी प्रभु के श्रीकमलचरणों की नित्य सेवा करते हैं । माता ने कहा कि प्रभु सर्वसामर्थ्य, सर्वज्ञ और कल्याणस्वरूप हैं । माता ने कहा कि प्रभु सभी कलाओं और गुणों के निधान हैं और योग, ज्ञान तथा वैराग्य के भंडार हैं । माता ने प्रभु से कहा कि आपका नाम अपने शरणागतों और आश्रितों के लिए कल्पवृक्ष के समान है यानी उन्हें मनवांछित फल देने वाला है ।

प्रकाशन तिथि : 17 नवम्बर 2019
100 श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड)
1/108/4 चौपाई / छंद / दोहा -
तुम्ह पुनि राम राम दिन राती ।


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - भगवती पार्वती माता ने प्रभु श्री महादेवजी से कहा कि वे उन प्रभु श्री रामजी की कथा सुनना चाहती हैं जिनका गुणगान श्री शेषजी, भगवती सरस्वती माता, श्री वेदजी और श्रीपुराण करते हैं । फिर माता ने प्रभु से कहा कि वे उन प्रभु रामजी की कथा सुनना चाहती है जिनका नाम सदैव आप आदरपूर्वक दिन-रात जपा करते हैं । प्रभु श्री महादेवजी निरंतर दिन-रात प्रभु श्री रामजी के श्रीराम-श्रीराम नाम का जप किया करते हैं । श्रीराम नाम के जप का महत्व और आदर्श प्रभु श्री महादेवजी पूरे जगत के सामने इस तरह रखते हैं ।

प्रकाशन तिथि : 17 नवम्बर 2019
101 श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड)
1/111/3 चौपाई / छंद / दोहा -
तुम्ह त्रिभुवन गुर बेद बखाना । आन जीव पाँवर का जाना ॥ प्रस्न उमा कै सहज सुहाई । छल बिहीन सुनि सिव मन भाई ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - भगवती पार्वती माता ने प्रभु श्री महादेवजी से कहा कि वे पृथ्वी पर सिर टेककर प्रभु के श्रीकमलचरणों की वंदना करती हैं और हाथ जोड़कर निवेदन करती हैं कि प्रभु श्री रामजी के निर्मल यश का प्रभु वर्णन करें । भगवती पार्वती माता ने कहा कि वे मन, वचन और कर्म से प्रभु श्री महादेवजी की दासी हैं इसलिए वे दया करके प्रभु की कथा का उन्हें श्रवण करवाएं । प्रभु श्री महादेवजी का ज्ञान अत्यंत निर्मल है और श्री वेदजी ने उन्हें तीनों लोकों का सद्गुरु बताया है इसलिए प्रभु श्री रामजी का पूर्ण श्रीचरित्र अब वे प्रभु से सुनना चाहती हैं । भगवती पार्वती माता के सहज और सुंदर मनोभाव को सुनकर प्रभु श्री महादेवजी अति आनंदित हुए ।

प्रकाशन तिथि : 18 नवम्बर 2019
102 श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड)
1/111/4 चौपाई / छंद / दोहा -
हर हियँ रामचरित सब आए । प्रेम पुलक लोचन जल छाए ॥ श्रीरघुनाथ रूप उर आवा । परमानंद अमित सुख पावा ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब भगवती पार्वती माता ने प्रभु श्री महादेवजी से प्रभु श्री रामजी की निर्मल कथा सुनने की इच्छा प्रकट की तो प्रभु श्री महादेवजी ने हृदय में परम सुख माना । वे भाव विभोर हो गए कि अब उन्हें माता के समक्ष श्रीराम कथा कहने का सुअवसर मिलेगा । उनके हृदय में सारे-के-सारे श्रीराम चरित्र प्रकट हो गए । ऐसा होने पर प्रेम से उनका शरीर पुलकित हो गया और उनके श्रीनेत्रों में प्रेम जल भर आया । अपने इष्ट की कथा कहने की इच्छा होने पर अपने इष्ट का रूप उनके हृदय में आ गया जिस कारण परमानंदस्वरूप प्रभु श्री महादेवजी को भी अपार परमानंद हुआ । दो घड़ी वे ध्यान और आनंद में डूबे रहे फिर उन्होंने अपने मन को बाहर खींचा और प्रेम मग्न होकर प्रभु के श्रीचरित्र का वर्णन करने लगे ।

प्रकाशन तिथि : 18 नवम्बर 2019
103 श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड)
1/112/2 चौपाई / छंद / दोहा -
मंगल भवन अमंगल हारी । द्रवउ सो दसरथ अजिर बिहारी ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - यह श्री रामचरितमानसजी की वह चौपाई है जो सभी को सबसे ज्यादा याद है और सबसे ज्यादा गाई जाती है । प्रभु श्री महादेवजी श्रीराम कथा कहने से पूर्व प्रभु श्री रामजी के बालरूप की वंदना करते हैं । प्रभु श्री रामजी को वे मंगल के धाम और अमंगल को हरने वाले बताते हैं । राजा श्री दशरथजी के राजमहल के आंगन में श्रीलीला करने वाले बालरूप में प्रभु श्री रामजी की वे कृपा की याचना करते हैं । प्रभु श्री रामजी को मंगल के धाम और अमंगल को हरने वाला विशेषण साक्षात जगत के पिता प्रभु श्री महादेवजी ने दिया है । जहाँ प्रभु श्री रामजी की आराधना होगी वहाँ सदैव मंगल होता रहेगा और अमंगल कभी वहाँ टिक नहीं पाएगा, यह साक्षात सिद्धांत है, जिसका प्रतिपादन स्वयं सर्वेश्वर प्रभु श्री महादेवजी ने किया है ।

प्रकाशन तिथि : 19 नवम्बर 2019
104 श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड)
1/112/4 चौपाई / छंद / दोहा -
सकल लोक जग पावनि गंगा ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - इस चौपाई में प्रभु श्री महादेवजी ने प्रभु की कथा को समस्त लोकों को पावन करने वाली कथागंगा की संज्ञा दी है । जैसे भगवती गंगा माता अपने में स्नान और अपना जलपान करने वाले जीव को पावन करती हैं वैसे ही प्रभु की कथा अपना श्रवण करने वाले को पावन करती है । एक भगवती गंगा माता अमृत जल के रूप में बहती है और एक कथागंगा शब्द के रूप में बहती है जो अपने श्रवण करने वालों का उद्धार करती है । जैसे भगवती गंगा माता से पवित्र कोई जल नहीं वैसे ही कथागंगा से पवित्र कोई श्रवण करने लायक शब्द नहीं ।

प्रकाशन तिथि : 19 नवम्बर 2019
105 श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड)
1/113/1 चौपाई / छंद / दोहा -
जिन्ह हरिकथा सुनी नहिं काना । श्रवन रंध्र अहिभवन समाना ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री महादेवजी भगवती पार्वती माता को प्रभु कथा की महिमा बताते हुए कहते हैं कि जिसने अपने कानों से अब तक प्रभु कथा का श्रवण नहीं किया उनके कानों के छिद्र सांप के बिल के समान हैं । जिन कानों ने प्रभु कथा का श्रवण नहीं किया और उन्हें हमने व्यर्थ की संसार की बातों का श्रवण करने का अभ्यास करा दिया, ऐसे जीव ने अपनी बहुत बड़ी हानि कर ली, ऐसा प्रभु श्री महादेवजी का कहना है । कान वही पवित्र हैं और कान कहलाने योग्य हैं जिन्होंने प्रभु की चर्चा, वार्ता और कथा को हमारे हृदय तक पहुँचाने का काम किया है, ऐसा प्रभु श्री महादेवजी का मत है ।

प्रकाशन तिथि : 20 नवम्बर 2019
106 श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड)
1/113/3 चौपाई / छंद / दोहा -
जिन्ह हरिभगति हृदयँ नहिं आनी । जीवत सव समान तेइ प्रानी ॥ जो नहिं करइ राम गुन गाना । जीह सो दादुर जीह समाना ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री महादेवजी दो बहुत सुंदर बातें इस चौपाई में भगवती पार्वती माता से कहते हैं । वे कहते हैं कि जिन्होंने प्रभु की भक्ति को अपने हृदय में स्थान नहीं दिया, वे प्राणी जीते हुए भी मुर्दे के समान हैं । इससे बड़ा समर्थन भक्ति का और कोई नहीं हो सकता । साक्षात जगतपिता प्रभु श्री महादेवजी भक्ति का इतना बड़ा प्रतिपादन करते हैं और व्यंग्य में भक्ति नहीं करने वाले जीवात्मा को मुर्दा बताते हैं । भक्ति करने वाला मनुष्य ही मनुष्य कहलाने योग्य है । दूसरी बात जो प्रभु श्री महादेवजी कहते हैं वह यह कि जो जीभ प्रभु का गुणगान नहीं करती और व्यर्थ संसार की बातें ही करती है वह मेंढक की जीभ के समान है जो व्यर्थ ही टर्र-टर्र करती रहती है । अपनी वाणी से प्रभु की चर्चा, वार्ता और गुणानुवाद हो तभी वह वाणी सार्थक कहलाती है ।

प्रकाशन तिथि : 20 नवम्बर 2019
107 श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड)
1/113/4 चौपाई / छंद / दोहा -
कुलिस कठोर निठुर सोइ छाती । सुनि हरिचरित न जो हरषाती ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री महादेवजी कहते हैं कि उस जीव का हृदय वज्र के समान कठोर और उसका मन निष्ठुर है जिसकी रुचि प्रभु के श्रीचरित्र सुनने में नहीं होती । जो जीव प्रभु के श्रीचरित्र को सुनकर हर्षित नहीं होते, आनंदित नहीं होते वे बहुत अभागे होते हैं । तात्पर्य यह है कि जो जीव निरंतर प्रभु का गुणानुवाद सुनना चाहता है और जो कभी प्रभु के श्रीचरित्र को सुनकर तृप्त नहीं होता वही जीव प्रभु श्री महादेवजी की दृष्टि में भाग्यवान है और मनुष्य कहलाने योग्य है ।

प्रकाशन तिथि : 21 नवम्बर 2019
108 श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड)
1/113/दोहा चौपाई / छंद / दोहा -
रामकथा सुरधेनु सम सेवत सब सुख दानि ।


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री महादेवजी भगवती पार्वती माता को कहते हैं कि प्रभु की कथा श्री कामधेनु गौ-माता के समान है जो हमें इच्छित फल देती है । ऐसा कुछ भी नहीं जो प्रभु कथा को भाव और तल्लीनता से श्रवण करने पर न मिल सके । जीव प्रभु की कथा से चारों पुरुषार्थों को प्राप्त कर सकता है । जैसे श्री कामधेनु गौ-माता के सामने कुछ भी कामना करने से सभी कामनाएं फलित होती है वैसे ही प्रभु की कथा अगर तल्लीनता से किसी भी कामना को रखकर सुनी जाती है तो वह कामना पूर्ण होती है ।

प्रकाशन तिथि : 21 नवम्बर 2019
109 श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड)
1/114/2 चौपाई / छंद / दोहा -
राम नाम गुन चरित सुहाए । जनम करम अगनित श्रुति गाए ॥ जथा अनंत राम भगवाना । तथा कथा कीरति गुन नाना ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री महादेवजी भगवती पार्वती माता से कहते हैं कि श्री वेदजी ने प्रभु श्री रामजी के सुंदर नाम, सद्गुण, श्रीचरित्र और कर्म सभी को अगणित कहा है । श्री वेदजी भी उनका पूर्ण रूप से निरूपण करने में सक्षम नहीं हैं और वे नेति-नेति कहकर शांत हो जाते हैं । प्रभु श्री महादेवजी कहते हैं कि जिस प्रकार प्रभु श्री रामजी के अनंत रूप हैं उसी प्रकार उनकी कथा, कीर्ति और सद्गुण सभी अनंत है जिसका कोई पार नहीं पा सकता ।

प्रकाशन तिथि : 22 नवम्बर 2019
110 श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड)
1/114/3 चौपाई / छंद / दोहा -
उमा प्रस्न तव सहज सुहाई । सुखद संतसंमत मोहि भाई ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब भगवती पार्वती माता ने प्रभु श्री महादेवजी के समक्ष प्रभु श्री रामजी की कथा सुनने का निवेदन किया तो यह प्रभु श्री महादेवजी को बहुत प्रिय और अच्छा लगा । उन्होंने माता से कहा कि उनकी जिज्ञासा स्वाभाविक रूप से सुंदर है और सभी का कल्याण उसमें निहित है । प्रभु श्री रामजी की कथा में माता की अत्यंत प्रीति देखकर प्रभु श्री महादेवजी अति हर्षित हुए क्योंकि उन्हें प्रभु की कथा कहने और श्रवण करने में ही सबसे ज्यादा आनंद आता है ।

प्रकाशन तिथि : 22 नवम्बर 2019
111 श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड)
1/116/1 चौपाई / छंद / दोहा -
अगुन अरूप अलख अज जोई । भगत प्रेम बस सगुन सो होई ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री महादेवजी एक बहुत सार्थक बात इस चौपाई में कहते हैं । मानवता और विभिन्न धर्म आज भी प्रभु के सगुण और निर्गुण रूप में उलझे रहते हैं । इसका एक बहुत सुंदर समाधान यहाँ प्रभु श्री महादेवजी बताते हैं । वे कहते हैं कि प्रभु के सगुण और निर्गुण रूप में कोई भेद नहीं है । जो निर्गुण, अरूप, अव्यक्त और अजन्मा हैं वे ही प्रभु अपने भक्तों के प्रेमवश और उनकी इच्छानुसार रूप धारण करते हैं और सगुण बन जाते हैं । भक्तों की भक्ति और प्रेम निर्गुण प्रभु को सगुण रूप धारण करवा देती है । प्रभु अपने भक्तों की खुशी और उन्हें आनंद देने के लिए ऐसा करते हैं ।

प्रकाशन तिथि : 23 नवम्बर 2019
112 श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड)
1/116/दोहा चौपाई / छंद / दोहा -
पुरुष प्रसिद्ध प्रकास निधि प्रगट परावर नाथ ॥ रघुकुलमनि मम स्वामि सोइ कहि सिवँ नायउ माथ ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री महादेवजी अपने परम इष्ट प्रभु श्री रामजी की कथा प्रारंभ करने से पहले गौरव से उन्हें अपना स्वामी बताते हैं और मन-ही-मन उन्हें नमन करते हैं । प्रभु श्री महादेवजी ने कुछ विशेषणों का प्रयोग प्रभु श्री रामजी के लिए किया है जो अत्यंत मार्मिक और हृदयस्पर्शी हैं । वे प्रभु श्री रामजी को व्यापक ब्रह्म, परमानंद स्वरूप और पुराण पुरुष कहते हैं । वे प्रभु श्री रामजी को प्रकाश का भंडार, सभी रूपों में अभिव्यक्त होने वाला ब्रह्म कहते हैं । सबसे सुंदर संबोधन जो प्रभु श्री महादेवजी प्रभु श्री रामजी के लिए करते हैं वह यह कि वे उन्हें जीव, माया और जगत सबके स्वामी बताते हैं । प्रभु ही जीव, माया और जगत के एकमात्र स्वामी है यह बात हमें सदैव याद रखनी चाहिए ।

प्रकाशन तिथि : 23 नवम्बर 2019
113 श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड)
1/117/4 चौपाई / छंद / दोहा -
जगत प्रकास्य प्रकासक रामू । मायाधीस ग्यान गुन धामू ॥ जासु सत्यता तें जड़ माया । भास सत्य इव मोह सहाया ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री महादेवजी कहते हैं कि प्रभु श्री रामजी जगत के प्रकाशक हैं । वे ज्ञान और सद्गुणों के धाम हैं । प्रभु माया के स्वामी हैं । प्रभु की सत्ता से ही, वह माया जो नहीं है, जीव को सत्य जैसी प्रतीत होती है । समझने योग्य बात यह है कि माया का आवरण सबके ऊपर डला हुआ है । जिस पर मायापति प्रभु की कृपा होती है वही माया के प्रभाव से बच पाता है ।

प्रकाशन तिथि : 24 नवम्बर 2019
114 श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड)
1/118/2 चौपाई / छंद / दोहा -
आदि अंत कोउ जासु न पावा ।


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री महादेवजी भगवती पार्वती माता से कहते हैं कि प्रभु का आदि और अंत आज तक कोई नहीं जान पाया है । कहने का तात्पर्य यह है कि प्रभु का आदि और अंत है ही नहीं क्योंकि प्रभु इससे अतीत हैं । इसलिए श्री वेदजी, श्रीपुराण, शास्त्रों, ऋषियों, संतों और भक्तों का एकमत है कि प्रभु का न कोई आदि है और न ही कोई अंत है क्योंकि प्रभु सनातन और शाश्वत हैं ।

प्रकाशन तिथि : 24 नवम्बर 2019
115 श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड)
1/118/3-4 चौपाई / छंद / दोहा -
बिनु पद चलइ सुनइ बिनु काना । कर बिनु करम करइ बिधि नाना ॥ आनन रहित सकल रस भोगी । बिनु बानी बकता बड़ जोगी ॥ तन बिनु परस नयन बिनु देखा । ग्रहइ घ्रान बिनु बास असेषा ॥ असि सब भाँति अलौकिक करनी । महिमा जासु जाइ नहिं बरनी ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री महादेवजी यहाँ प्रभु के निर्गुण रूप का वर्णन करते हैं जो श्री वेदजी में प्रसिद्ध है । निर्गुण प्रभु बिना पैर के चलते हैं, बिना कान के सब कुछ सुनते हैं, बिना हाथ के नाना प्रकार के काम करते हैं, बिना जिह्वा के सारे रसों का आनंद लेते हैं और बिना वाणी के सबसे योग्य वक्ता हैं । निर्गुण प्रभु बिना त्वचा के स्पर्श करते हैं, बिना आँखों के सब कुछ देखते हैं और बिना नाक के सब गंधों को ग्रहण करते हैं । निर्गुण प्रभु सभी प्रकार से इतने अलौकिक हैं जिनकी महिमा कोई नहीं गा सकता । ऐसे निर्गुण प्रभु भक्तों को आनंद देने के लिए और उन पर अनुग्रह करने के लिए सगुण साकार रूप धारण करते हैं ।

प्रकाशन तिथि : 25 नवम्बर 2019
116 श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड)
1/119/1 चौपाई / छंद / दोहा -
कासीं मरत जंतु अवलोकी । जासु नाम बल करउँ बिसोकी ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री महादेवजी भगवती पार्वती माता को प्रभु श्री रामजी का गुणगान करते हुए कहते हैं कि वे श्रीराम नाम के बल से ही अपने धाम श्री काशीजी में मरते हुए प्राणी को देखकर उनके कान में श्रीराम नाम रूपी मंत्र का उच्चारण करते हैं । इससे वह मरने वाला प्राणी शोकरहित हो जाता है और इस प्रकार उस जीवात्मा को श्रीराम नाम के उच्चारण से प्रभु श्री महादेवजी मुक्ति प्रदान कर देते हैं । संत यह मानते हैं कि किसी भी जीव यानी मनुष्य, पशु, पक्षी को मरण अवस्था में देखकर उनके कानों में श्रीराम नाम का उच्चारण जरूर करना चाहिए ।

प्रकाशन तिथि : 25 नवम्बर 2019
117 श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड)
1/119/1 चौपाई / छंद / दोहा -
सोइ प्रभु मोर चराचर स्वामी । रघुबर सब उर अंतरजामी ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री महादेवजी प्रभु श्री रामजी के लिए तीन संबोधनों का प्रयोग करते हैं जो बड़े हृदयस्पर्शी हैं । वे कहते हैं कि प्रभु श्री रामजी भक्तों के हितकारी हैं यानी भक्तों का सदैव हित करने वाले हैं । दूसरा, प्रभु श्री रामजी जड़ और चेतन के एकमात्र स्वामी है यानी जितने भी चेतन जीवात्मा और जड़ पदार्थ हमें दृष्टिगोचर होते हैं उन सबके स्वामी प्रभु हैं । तीसरा, प्रभु श्री रामजी सबके हृदय की बात जानने वाले हैं यानी प्रभु से कुछ भी छिपा नहीं है । हम जो भी सोचते हैं या जो भी सोचने वाले होते हैं प्रभु को उस भाव का पहले से ही पता होता है ।

प्रकाशन तिथि : 26 नवम्बर 2019
118 श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड)
1/119/2 चौपाई / छंद / दोहा -
बिबसहुँ जासु नाम नर कहहीं । जनम अनेक रचित अघ दहहीं ॥ सादर सुमिरन जे नर करहीं । भव बारिधि गोपद इव तरहीं ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री महादेवजी श्रीराम नाम के विषय में एक बहुत मार्मिक बात कहते हैं । प्रभु कहते हैं कि विवश होकर भी यानी मजबूरी में बिना इच्छा के भी जो प्रभु का नाम ले लेता है उसके भी अनेक जन्मों में किए पाप जलकर नष्ट हो जाते हैं । फिर जो जीव आदरपूर्वक प्रभु का स्मरण करके प्रभु का नाम लेता है वह संसाररूपी भवसागर को बिना परिश्रम पार करता है जैसे हम गौ-माता के खुर से बने छोटे से गड्ढे को बिना श्रम के पार कर लेते हैं ।

प्रकाशन तिथि : 26 नवम्बर 2019
119 श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड)
1/120/दोहा (घ) चौपाई / छंद / दोहा -
हरि गुन नाम अपार कथा रूप अगनित अमित ।


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री महादेवजी भगवती पार्वती माता को प्रभु श्री रामजी की कथा सुनाने से पहले कहते हैं कि प्रभु के सद्गुण, प्रभु के नाम, प्रभु की कथा और प्रभु का रूप सभी अपार, अगणित और असीम हैं । उनका कोई पार नहीं पा सकता और पूर्ण रूप से उनका निरूपण कोई नहीं कर सकता ।

प्रकाशन तिथि : 27 नवम्बर 2019
120 श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड)
1/121/3-4 चौपाई / छंद / दोहा -
जब जब होइ धरम कै हानी । बाढ़हिं असुर अधम अभिमानी ॥ करहिं अनीति जाइ नहिं बरनी । सीदहिं बिप्र धेनु सुर धरनी ॥ तब तब प्रभु धरि बिबिध सरीरा । हरहिं कृपानिधि सज्जन पीरा ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री महादेवजी कहते हैं कि प्रभु के अवतार के अनेक कारण होते हैं । कोई यह नहीं कह सकता कि इस एक कारण से प्रभु ने अवतार लिया है । पर जब धर्म का ह्रास होता है और अन्याय करने वाली शक्तियां बढ़ जाती है और देवतागण, पृथ्वी माता, गौ-माता और ब्राह्मण कष्ट पाते हैं तो करुणानिधान प्रभु भांति-भांति के दिव्य शरीर धारण करके अवतार लेते हैं । अवतार लेकर प्रभु सज्जनों और साधुजनों की पीड़ा हरते हैं । यह जीव मात्र को प्रभु का कितना बड़ा आश्वासन है कि अधर्म का नाश करने के लिए और धर्म की रक्षा के लिए प्रभु सदैव उपलब्ध हैं ।

प्रकाशन तिथि : 27 नवम्बर 2019