क्रम संख्या |
श्रीग्रंथ |
संख्या |
भाव के दर्शन / प्रेरणापुंज |
601 |
श्रीरामचरित मानस
(सुन्दरकाण्ड) |
5/13/3 |
चौपाई / छंद / दोहा -
रामचंद्र गुन बरनैं लागा । सुनतहिं सीता कर दुख भागा ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब लंका की अशोक वाटिका में प्रभु श्री हनुमानजी पहुँचे तो उन्होंने भगवती सीता माता को देखकर उन्हें
मन-ही-मन प्रणाम किया । प्रभु के वियोग के कारण दुःखी अवस्था में उन्हें देखकर प्रभु श्री हनुमानजी प्रभु श्री रामजी के सद्गुणों का कथारूप में वर्णन करने लगे जिसको सुनने से भगवती सीता माता को अपार हर्ष हुआ और उनका दुःख दूर हुआ । इतने समय बाद प्रभु के विषय में उन्हें सुनने को मिला इसलिए वे मन लगाकर प्रभु की कथा सुनने लगी । प्रभु श्री हनुमानजी ने अवसर देखकर आदि से लेकर सारी कथा माता को कह सुनाई जिससे माता मधुर यादों में खो गई और दुःख रहित हुई । यह सिद्धांत है कि प्रभु का गुणानुवाद सुनने से जीव के दुःख दूर होते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 21 मई 2020 |
602 |
श्रीरामचरित मानस
(सुन्दरकाण्ड) |
5/13/5 |
चौपाई / छंद / दोहा -
राम दूत मैं मातु जानकी । सत्य सपथ करुनानिधान की ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब प्रभु श्री हनुमानजी ने मधुर वाणी में प्रभु की कथा माता को सुनाई तो माता ने कहा कि वे कथा कहने वाले को देखना चाहतीं हैं । तब प्रभु श्री हनुमानजी वानर रूप में उनके सामने प्रकट हुए और माता को उनका विश्वास हो इसलिए उन्होंने कहा कि करुणानिधान प्रभु श्री रामजी की शपथ से वे कहते हैं कि वे प्रभु श्री रामजी के दास और दूत हैं । प्रभु ने ही उन्हें माता की खोज में अपनी अंगूठी निशानी के रूप में देकर भेजा है । भगवती सीता माता प्रभु श्री रामजी को करुणानिधान के संबोधन से पुकारती थी इसलिए जब वह संबोधन उन्होंने प्रभु श्री हनुमानजी के द्वारा सुना तो वे समझ गई कि यह गोपनीय बात प्रभु का कोई निज अंतरंग दास ही जान सकता है । इस तरह प्रभु श्री हनुमानजी ने माता के हृदय में अपना विश्वास जमा लिया ।
प्रकाशन तिथि : 21 मई 2020 |
603 |
श्रीरामचरित मानस
(सुन्दरकाण्ड) |
5/13/दोहा |
चौपाई / छंद / दोहा -
कपि के बचन सप्रेम सुनि उपजा मन बिस्वास ॥ जाना मन क्रम बचन यह कृपासिंधु कर दास ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री हनुमानजी प्रभु के अनन्य भक्त और दास हैं और सकल गुणनिधान है और ज्ञानियों में अग्रगण्य हैं । पराई जगह लंका में पहली बार मिलने पर भी उन्होंने भगवती सीता माता के अंतःकरण में अपने लिए विश्वास निर्माण कर साबित किया कि क्यों प्रभु ने उन्हें ही मुद्रिका देकर भगवती सीता माता की खोज के लिए चुना था । प्रभु श्री हनुमानजी के द्वारा श्रीराम कथा का संक्षिप्त में निरूपण एवं प्रेम युक्त वचन सुनकर भगवती सीता माता के मन में पूर्ण विश्वास हो गया कि प्रभु श्री हनुमानजी मन, वचन और कर्म से प्रभु श्री रामजी के अनन्य दास हैं ।
प्रकाशन तिथि : 21 मई 2020 |
604 |
श्रीरामचरित मानस
(सुन्दरकाण्ड) |
5/14/1 |
चौपाई / छंद / दोहा -
हरिजन जानि प्रीति अति गाढ़ी ।
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जैसे ही भगवती सीता माता के मन में यह विश्वास हो गया कि प्रभु श्री हनुमानजी प्रभु श्री रामजी के निज जन हैं तो प्रभु का सेवक जानकर उनका वात्सल्य जग गया और उनके मन में प्रभु श्री हनुमानजी के लिए अत्यंत स्नेह जग उठा । यह शाश्वत सिद्धांत है कि प्रभु का जो दास होता है वह माता का अति कृपापात्र स्वतः ही हो जाता है । माता कृपा करने से पहले सिर्फ यह देखती है इस जीव का प्रभु के प्रति कितना आकर्षण है और कितनी अनन्यता है ।
प्रकाशन तिथि : 22 मई 2020 |
605 |
श्रीरामचरित मानस
(सुन्दरकाण्ड) |
5/14/2 |
चौपाई / छंद / दोहा -
कोमलचित कृपाल रघुराई ।
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री हनुमानजी के समक्ष प्रभु श्री रामजी को याद करते हुए भगवती सीता माता ने दो विशेषणों का प्रयोग प्रभु के लिए किया है जो हृदयस्पर्शी हैं । माता कहतीं हैं कि प्रभु कोमल हृदय के हैं और प्रभु अत्यंत कृपालु हैं । कोमल हृदय होने के कारण किसी के दुःख और विपत्ति को देखकर प्रभु का कोमल हृदय द्रवित हो जाता है और अत्यंत कृपालु होने के कारण प्रभु तत्काल उस पर कृपा कर देते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 22 मई 2020 |
606 |
श्रीरामचरित मानस
(सुन्दरकाण्ड) |
5/14/3 |
चौपाई / छंद / दोहा -
सहज बानि सेवक सुख दायक ।
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - भगवती सीता माता प्रभु श्री रामजी को याद करते हुए प्रभु श्री हनुमानजी को कहतीं हैं कि प्रभु के स्वभाव में है कि प्रभु अपने सेवकों और भक्तों को सुख प्रदान करते हैं । यह प्रभु की स्वाभाविक क्रिया है कि प्रभु के संपर्क में जो भी आता है प्रभु उसे सुख प्रदान करते हैं । इसलिए ही संतों ने प्रभु को सुख की राशि कहा है ।
प्रकाशन तिथि : 22 मई 2020 |
607 |
श्रीरामचरित मानस
(सुन्दरकाण्ड) |
5/15/5 |
चौपाई / छंद / दोहा -
कह कपि हृदयँ धीर धरु माता । सुमिरु राम सेवक सुखदाता ॥ उर आनहु रघुपति प्रभुताई । सुनि मम बचन तजहु कदराई ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री हनुमानजी ने भगवती सीता माता को प्रभु श्री रामजी का संदेश सुनाया और प्रभु के विरह में हृदय में धीरज धारण करने को कहा । उन्होंने माता से कहा कि सेवकों को सदैव सुख देने वाले प्रभु का वे निरंतर स्मरण करें और प्रभु की प्रभुता का अपने हृदय में चिंतन करें । ऐसा करने पर उनके मन के नकारात्मक विचार अपने आप खत्म हो जाएंगे । सूत्र यह है कि प्रभु की प्रभुता का विचार करते ही हमें शांति और सकारात्मक ऊर्जा मिलती है ।
प्रकाशन तिथि : 23 मई 2020 |
608 |
श्रीरामचरित मानस
(सुन्दरकाण्ड) |
5/15/दोहा |
चौपाई / छंद / दोहा -
निसिचर निकर पतंग सम रघुपति बान कृसानु । जननी हृदयँ धीर धरु जरे निसाचर जानु ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री हनुमानजी ने प्रभु श्री रामजी की प्रभुता बताते हुए भगवती सीता माता से कहा कि राक्षसों के
पूरे-के-पूरे समूह को वे कीट पतंगों के समान समझें जो प्रभु के बाणरूपी अग्नि में जलकर भस्म होने वाले हैं । जैसे कीट पतंग अग्नि में जलकर समाप्त हो जाते हैं वैसा ही हाल इन राक्षसों का होने वाला है । प्रभु श्री हनुमानजी ने माता को कहा कि आप इसलिए हृदय में धीरज धारण करे और राक्षसों के समूह का विनाश हुआ माने ।
प्रकाशन तिथि : 23 मई 2020 |
609 |
श्रीरामचरित मानस
(सुन्दरकाण्ड) |
5/16/दोहा |
चौपाई / छंद / दोहा -
प्रभु प्रताप तें गरुड़हि खाइ परम लघु ब्याल ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब प्रभु श्री हनुमानजी का लघु रूप देखकर भगवती सीता माता ने सोचा कि इतने छोटे वानर बलवान राक्षसों को कैसे जीतेंगे तो प्रभु श्री हनुमानजी ने अपना विशाल रूप प्रकट किया । वह रूप अत्यंत बड़े पर्वत से भी ज्यादा विशाल था और युद्ध में शत्रुओं के हृदय में भय और कंपन उत्पन्न करने वाला था । जब भगवती सीता माता के मन को विश्वास हुआ तो प्रभु श्री हनुमानजी फिर लघु रूप में आ गए और फिर उन्होंने अहंकार रहित होकर जो कहा वह बहुत मार्मिक है । उन्होंने कहा कि इस प्रताप में उनका कोई योगदान नहीं है क्योंकि यह प्रताप उनका है ही नहीं, यह उनके प्रभु का है । प्रभु की कृपा हो तो एक अत्यंत निर्बल भी अपने से बहुत ज्यादा बलशाली और महान बलवान को मार सकता है ।
प्रकाशन तिथि : 23 मई 2020 |
610 |
श्रीरामचरित मानस
(सुन्दरकाण्ड) |
5/17/2 |
चौपाई / छंद / दोहा -
अजर अमर गुननिधि सुत होहू । करहुँ बहुत रघुनायक छोहू ॥ करहुँ कृपा प्रभु अस सुनि काना । निर्भर प्रेम मगन हनुमाना ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब भगवती सीता माता प्रभु श्री हनुमानजी की प्रभु भक्ति देखकर प्रसन्न हुई तो उन्होंने एक के बाद एक आशीर्वाद देना आरंभ किया । उन्होंने प्रभु श्री हनुमानजी को प्रभु श्री रामजी का अत्यंत प्रिय जानकर आशीर्वाद दिया कि वे बल और शील के निधान होंगे । उन्हें कभी बुढ़ापा नहीं आएगा और वे अमर होंगे । वे सद्गुणों की खान होंगे । प्रभु श्री हनुमानजी सुनते गए और फिर भगवती सीता माता ने वह कहा जो प्रभु श्री हनुमानजी हृदय से सुनना चाहते थे । माता ने कहा कि उनका आशीर्वाद है कि प्रभु श्री रामजी उन पर बहुत कृपा करेंगे । माता के श्रीमुख से "प्रभु कृपा करेंगे" ऐसा अमोघ आशीर्वाद सुनकर मानो प्रभु श्री हनुमानजी पूर्ण प्रेम में मग्न हो गए । उन्होंने माता के श्रीकमलचरणों में अपना शीश बार-बार नवाया और हाथ जोड़कर कहा कि अब वे कृतार्थ हो गए क्योंकि यह बात जगत प्रसिद्ध है कि माता का आशीर्वाद अचूक है और फलित होकर ही रहता है ।
प्रकाशन तिथि : 24 मई 2020 |
611 |
श्रीरामचरित मानस
(सुन्दरकाण्ड) |
5/17/दोहा |
चौपाई / छंद / दोहा -
रघुपति चरन हृदयँ धरि तात मधुर फल खाहु ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - हर छोटी-से-छोटी और बड़ी-से-बड़ी क्रिया करने से पहले प्रभु का स्मरण करना चाहिए, यह सीख भगवती सीता माता ने इस दोहे में सबको दी है । जब प्रभु श्री हनुमानजी को अशोक वाटिका में फल खाने की इच्छा हुई तो उन्होंने माता से अनुमति मांगी । माता ने अनुमति देते हुए जो कहा वह बहुत ध्यान देने योग्य और जीवन में धारण करने योग्य है । फल खाने की छोटी-सी क्रिया की अनुमति देते हुए माता ने कहा कि प्रभु के श्रीकमलचरणों को हृदय में धारण करके और उनका ध्यान करके ही ऐसा करना चाहिए । प्रभु को जब हम हर क्रिया में अपने साथ रखते हैं तो प्रभु का अनुग्रह हमें मिलता है और हम सफल होते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 24 मई 2020 |
612 |
श्रीरामचरित मानस
(सुन्दरकाण्ड) |
5/19/दोहा |
चौपाई / छंद / दोहा -
जौं न ब्रह्मसर मानउँ महिमा मिटइ अपार ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री हनुमानजी को बचपन में ही सभी देवताओं से वरदान मिल गया था कि उन पर देवताओं का कोई भी अस्त्र, शस्त्र, मंत्र, तंत्र कभी भी प्रभाव नहीं करेगा । फिर भी प्रभु श्री हनुमानजी की दीनता देखें कि जब मेघनाथ की आसुरी माया और बल उनके सामने नहीं चला और उसने ब्रह्मास्त्र का संधान किया तो प्रभु श्री हनुमानजी ने प्रभु श्री ब्रह्माजी के सम्मान और ब्रह्मास्त्र की महिमा नहीं मिटे इसलिए उस ब्रह्मास्त्र के प्रभाव में आ गए । प्रभु श्री हनुमानजी अकाट्य ब्रह्मास्त्र के प्रभाव को भी सरलता से टाल सकते थे पर उन्होंने ऐसा नहीं किया । यह उनकी कितनी बड़ी महानता है ।
प्रकाशन तिथि : 24 मई 2020 |
613 |
श्रीरामचरित मानस
(सुन्दरकाण्ड) |
5/20/2 |
चौपाई / छंद / दोहा -
जासु नाम जपि सुनहु भवानी । भव बंधन काटहिं नर ग्यानी ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री महादेवजी भगवती पार्वती माता से कहते हैं कि विवेकी पुरुष संसार के जन्म-मरण के बंधन को प्रभु का नाम जप करके काट डालते हैं । प्रभु का नाम जप भव बंधन को काट डालने वाला साधन है । प्रभु के नाम जप की इतनी बड़ी महिमा स्वयं प्रभु श्री महादेवजी ने प्रकट की है ।
प्रकाशन तिथि : 25 मई 2020 |
614 |
श्रीरामचरित मानस
(सुन्दरकाण्ड) |
5/21/दोहा |
चौपाई / छंद / दोहा -
जाके बल लवलेस तें जितेहु चराचर झारि ।
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब रावण ने प्रभु श्री हनुमानजी से पूछा कि उन्होंने किसके बल पर लंका में प्रवेश कर अशोक वाटिका उजाड़ी और राक्षसों को मारा तो प्रभु श्री हनुमानजी ने बड़ा मार्मिक उत्तर दिया । प्रभु श्री हनुमानजी ने अभिमान रहित होकर अपने बल का बखान नहीं किया और बोले कि उन्होंने प्रभु श्री रामजी के बल पर ऐसा किया । उन्होंने कहा कि प्रभु श्री रामजी के बल से ही माया ब्रह्मांडों के समूह की रचना करती है, उनके बल से ही सृष्टि का सृजन, पालन और संहार होता है, यहाँ तक कि उनके लेशमात्र बल से ही रावण ने सबको जीतकर अपना विजय अभियान पूरा किया है ।
प्रकाशन तिथि : 25 मई 2020 |
615 |
श्रीरामचरित मानस
(सुन्दरकाण्ड) |
5/22/4 |
चौपाई / छंद / दोहा -
भ्रम तजि भजहु भगत भय हारी ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री हनुमानजी रावण को राजसभा में सीख के रूप में कहते हैं कि उसे सभी भ्रम को छोड़कर भक्तभयहारी प्रभु श्री रामजी का भजन करना चाहिए । भक्तभयहारी शब्द का जो प्रभु श्री हनुमानजी ने प्रयोग किया वह बहुत ध्यान देने योग्य है । केवल प्रभु ही भक्तों के भय को हरने में सक्षम हैं इसलिए जीवन में जब भी कोई भय सताए तो प्रभु की शरण में तत्काल चले जाना चाहिए ।
प्रकाशन तिथि : 25 मई 2020 |
616 |
श्रीरामचरित मानस
(सुन्दरकाण्ड) |
5/22/5 |
चौपाई / छंद / दोहा -
जाकें डर अति काल डेराई ।
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री हनुमानजी रावण से कहते हैं कि काल राक्षसों और समस्त चराचर के जीव को खाने वाला होता है । काल का ग्रास होने से कोई भी नहीं बच सकता । वह काल भी प्रभु के डर से सदैव अत्यंत डरा हुआ रहता है ।
प्रकाशन तिथि : 26 मई 2020 |
617 |
श्रीरामचरित मानस
(सुन्दरकाण्ड) |
5/22/दोहा |
चौपाई / छंद / दोहा -
प्रनतपाल रघुनायक करुना सिंधु खरारि । गएँ सरन प्रभु राखिहैं तव अपराध बिसारि ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री हनुमानजी रावण को कहते हैं कि प्रभु श्री रामजी अपने शरणागत के परम रक्षक हैं । प्रभु में जीवमात्र के लिए स्वभाव से इतनी दया है क्योंकि वे दया के सागर हैं । इसलिए रावण को गलती के बाद भी प्रभु की शरण में जाने पर प्रभु उसका अपराध भुलाकर उसे अपनी शरण में रख लेंगे । प्रभु का द्वार अपने शरणागत होने वालों के लिए सदा खुला रहता है ।
प्रकाशन तिथि : 26 मई 2020 |
618 |
श्रीरामचरित मानस
(सुन्दरकाण्ड) |
5/23/1 |
चौपाई / छंद / दोहा -
राम चरन पंकज उर धरहू ।
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री हनुमानजी का रावण को कितना सुंदर उपदेश है कि प्रभु श्री रामजी के श्रीकमलचरणों को अपने हृदय में धारण करके रखने पर वह अभय होकर लंका का अचल राज्य कर सकता है । यह उपदेश जीव मात्र के लिए है कि प्रभु के श्रीकमलचरणों को हृदय में धारण करके निर्भय होकर अपना कर्म करने पर प्रभु के आशीर्वाद से हम सफल होते हैं और सभी विघ्नों से हम बच जाते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 26 मई 2020 |
619 |
श्रीरामचरित मानस
(सुन्दरकाण्ड) |
5/23/2 |
चौपाई / छंद / दोहा -
राम नाम बिनु गिरा न सोहा । देखु बिचारि त्यागि मद मोहा ॥ बसन हीन नहिं सोह सुरारी । सब भूषण भूषित बर नारी ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री हनुमानजी रावण से कहते हैं कि जो वाणी प्रभु का नाम नहीं लेती उसकी कतई शोभा नहीं है । जैसे गहनों से सजी सुंदर स्त्री भी बिना वस्त्रों के शोभा नहीं पाती वैसे ही विधाता की दी हुई वाणी भी बिना प्रभु नाम उच्चारण के शोभा नहीं पाती । हमारी वाणी की असल शोभा प्रभु के गुणगान करने में ही है, इस बात को हमें हृदय में दृढ़ता से बैठा लेना चाहिए ।
प्रकाशन तिथि : 27 मई 2020 |
620 |
श्रीरामचरित मानस
(सुन्दरकाण्ड) |
5/23/3 |
चौपाई / छंद / दोहा -
राम बिमुख संपति प्रभुताई । जाइ रही पाई बिनु पाई ॥ सजल मूल जिन्ह सरितन्ह नाहीं । बरषि गएँ पुनि तबहिं सुखाहीं ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री हनुमानजी रावण से कहते हैं कि प्रभु से विमुख रहने पर हमारी संपत्ति और प्रभाव रहता हुआ भी चला जाता है । प्रभु विमुख होने पर उनका होना और न होना एक समान है । जैसे जिन नदियों के जल का अगर कोई स्थाई जलस्त्रोत नहीं होता और वे वर्षा के पानी पर ही निर्भर रहती हैं तो वर्षा बीत जाने पर वे सूख जाती हैं, वैसे ही जिन जीव को प्रभु का आश्रय नहीं है उनकी संपत्ति और प्रभाव टिक नहीं सकते ।
प्रकाशन तिथि : 27 मई 2020 |
621 |
श्रीरामचरित मानस
(सुन्दरकाण्ड) |
5/23/4 |
चौपाई / छंद / दोहा -
बिमुख राम त्राता नहिं कोपी ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री हनुमानजी रावण के समक्ष एक बहुत महत्वपूर्ण सिद्धांत का प्रतिपादन करते हैं । वे कहते हैं कि जो जीव प्रभु से विमुख है उसकी रक्षा करने वाला जगत में कोई भी नहीं है । इसलिए जीव को कभी भी, किसी भी परिस्थिति में प्रभु से विमुख नहीं होना चाहिए । प्रभु से विमुख होने पर वह जीव जगत में अकेला रह जाता है और विपत्ति में फंसे बिना नहीं रहता । जीवन में सफलता और अनुकूलता के लिए प्रभु के सन्मुख होकर प्रभु का दामन सदैव पकड़कर रखना चाहिए ।
प्रकाशन तिथि : 27 मई 2020 |
622 |
श्रीरामचरित मानस
(सुन्दरकाण्ड) |
5/25/दोहा |
चौपाई / छंद / दोहा -
हरि प्रेरित तेहि अवसर चले मरुत उनचास ।
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - भक्त का प्रभु कैसे मार्गदर्शन करते हैं और कैसे उसकी सहायता करते हैं यह यहाँ देखने को मिलता है । लंका जलनी थी तो इसकी प्रेरणा भगवती सरस्वती माता के जरिए प्रभु ने रावण की बुद्धि में भेज दी और रावण ने खुद ही आज्ञा दे दी कि प्रभु श्री हनुमानजी की श्रीपूंछ में आग लगा दी जाए । उसे पता नहीं था कि प्रभु श्री हनुमानजी को श्री अग्निदेवजी का वरदान प्राप्त है कि आग उनका बाल भी बाँका नहीं करेगी । फिर जब श्रीपूंछ में आग लगी तो प्रभु प्रेरणा से सभी दिशाओं से पवन चलने लगी और वे आग को पूरी लंका में फैलाने में अति सहायक बन गई । प्रभु के मार्गदर्शन और प्रभु की सहायता का अगर हमें भरोसा होता है तो वह हमें मिलकर ही रहता है ।
प्रकाशन तिथि : 28 मई 2020 |
623 |
श्रीरामचरित मानस
(सुन्दरकाण्ड) |
5/26/4 |
चौपाई / छंद / दोहा -
ता कर दूत अनल जेहिं सिरिजा । जरा न सो तेहि कारन गिरिजा ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री महादेवजी भगवती पार्वती माता से कहते हैं कि प्रभु श्री हनुमानजी ने पूरी लंका जला दी पर उनकी श्रीपूंछ का एक बाल भी आग से नहीं जला । इसका कारण बताते हुए प्रभु श्री महादेवजी कहते हैं कि जिन प्रभु ने श्री अग्निदेवजी को बनाया है, वे श्री अग्निदेवजी उन्हीं प्रभु के दूत प्रभु श्री हनुमानजी की श्रीपूंछ को कैसे जला सकते थे । संत एक और कारण बताते हैं कि प्रभु को पता था कि प्रभु श्री हनुमानजी को लंका जलानी है इसलिए प्रभु ने उन्हें बालपन में ही श्री अग्निदेवजी से यह वरदान दिला दिया था कि आग का कोई प्रभाव उन पर कभी नहीं होगा । प्रभु अपने भक्त के लिए प्रकृति के नियम को भी बदल देते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 28 मई 2020 |
624 |
श्रीरामचरित मानस
(सुन्दरकाण्ड) |
5/29/2 |
चौपाई / छंद / दोहा -
राम कृपाँ भा काजु बिसेषी ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब प्रभु श्री हनुमानजी लंका से लौटकर और वानर दल के साथ श्री सुग्रीवजी से मिले तो वानर दल ने एक बहुत सुंदर बात श्री सुग्रीवजी को कही । उन्होंने भगवती सीता माता की खोज का श्रेय नहीं लिया बल्कि कहा कि प्रभु श्री रामजी की कृपा से ही उन्हें भगवती सीता माता की खोज के कार्य में विशेष सफलता मिली है । हर कार्य की सफलता में प्रभु की कृपा को देखना यह भक्त का दृष्टिकोण होता है । जीवन में सदैव सफलता को प्रभु की कृपा प्रसादी के रूप में ही देखना और मानना चाहिए ।
प्रकाशन तिथि : 28 मई 2020 |
625 |
श्रीरामचरित मानस
(सुन्दरकाण्ड) |
5/29/दोहा |
चौपाई / छंद / दोहा -
पूँछी कुसल नाथ अब कुसल देखि पद कंज ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब वानर दल भगवती सीता माता का पता लगाकर प्रभु श्री रामजी के सामने उपस्थित हुआ तो दयानिधान प्रभु ने प्रेम से सबको गले लगाकर सबकी कुशल पूछी । तब वानरों ने बहुत सुंदर उत्तर दिया और वे प्रभु से बोले कि अब आपके श्रीकमलचरणों के दर्शन पाने से सब कुशल और मंगल है । यह सत्य सिद्धांत है कि प्रभु के श्रीकमलचरणों का दर्शन मंगल और कुशलता का मूल है ।
प्रकाशन तिथि : 29 मई 2020 |
626 |
श्रीरामचरित मानस
(सुन्दरकाण्ड) |
5/30/1-2 |
चौपाई / छंद / दोहा -
जामवंत कह सुनु रघुराया । जा पर नाथ करहु तुम्ह दाया ॥ ताहि सदा सुभ कुसल निरंतर । सुर नर मुनि प्रसन्न ता ऊपर ॥ सोइ बिजई बिनई गुन सागर । तासु सुजसु त्रैलोक उजागर ॥ प्रभु कीं कृपा भयउ सबु काजू । जन्म हमार सुफल भा आजू ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री जाम्बवंतजी ने कुछ अकाट्य सिद्धांतों का प्रतिपादन इन चौपाईयों में किया है । वे प्रभु श्री रामजी से कहते हैं कि जिस पर प्रभु दया करते हैं उसका सदा कल्याण होता है और उसकी निरंतर कुशलता बनी रहती है । प्रभु जिस पर दया करते हैं उस पर सभी देवतागण और ऋषि मुनि प्रसन्न रहते हैं । जिस पर प्रभु दया करते हैं वही जीवन में विजयी होता है और विनय समेत सभी सद्गुण उसमें आ बसते हैं । प्रभु जिस पर दया करते हैं उसी का सुंदर सुयश जगत में प्रकाशित होता है । श्री जाम्बवंतजी ने भगवती सीता माता की खोज का श्रेय वानर दल को नहीं दिया बल्कि कहा कि प्रभु की कृपा से ही उसमें सफलता मिली है जिस कारण उन सबका जन्म ही सफल हो गया ।
प्रकाशन तिथि : 29 मई 2020 |
627 |
श्रीरामचरित मानस
(सुन्दरकाण्ड) |
5/31/2 |
चौपाई / छंद / दोहा -
दीन बंधु प्रनतारति हरना ॥ मन क्रम बचन चरन अनुरागी ।
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - लंका से लौटकर भगवती सीता माता का पहला संदेश जो प्रभु श्री हनुमानजी ने प्रभु श्री रामजी को सुनाया वह बहुत हृदयस्पर्शी है । माता ने सबसे पहले प्रभु के श्रीकमलचरणों में प्रणाम करके और प्रभु को दीनों के बंधु और शरणागत के दुःख को हरने वाला कहकर संबोधित कराया । माता ने प्रभु श्री हनुमानजी के माध्यम से प्रभु श्री रामजी को कहलवाया कि वे मन, कर्म और वचन से प्रभु के श्रीकमलचरणों की सदा से अनुरागिनी हैं ।
प्रकाशन तिथि : 29 मई 2020 |
628 |
श्रीरामचरित मानस
(सुन्दरकाण्ड) |
5/32/1 |
चौपाई / छंद / दोहा -
बचन काँय मन मम गति जाही । सपनेहुँ बूझिअ बिपति कि ताही ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - यहाँ पर गोस्वामी श्री तुलसीदासजी ने साक्षात प्रभु श्री रामजी के श्रीमुख से एक अमर वाक्य कहलवा दिया । प्रभु का यह आश्वासन कितना बल देने वाला है । प्रभु श्री रामजी कहते हैं कि जिसने मन, वचन और शरीर से उनका आश्रय ले लिया हो उसे स्वप्न में भी कभी विपत्ति का सामना नहीं करना पड़ता । कितना बड़ा बल प्रभु के इन श्रीवचनों से विपत्ति में पड़े जीव को मिलता है ।
प्रकाशन तिथि : 30 मई 2020 |
629 |
श्रीरामचरित मानस
(सुन्दरकाण्ड) |
5/32/2 |
चौपाई / छंद / दोहा -
कह हनुमंत बिपति प्रभु सोई । जब तव सुमिरन भजन न होई ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु ने अपने श्रीवचनों में कहा कि जिसने मन, वचन और शरीर से प्रभु का आश्रय ले लिया हो उसे स्वप्न में भी कभी विपत्ति का सामना नहीं करना पड़ता । प्रभु श्री रामजी के आश्वासन को गोस्वामी श्री तुलसीदासजी ने तुरंत प्रभु श्री हनुमानजी से अनुमोदित करवा दिया । प्रभु के श्रीवचन सुनते ही प्रभु श्री हनुमानजी बोले कि विपत्ति तभी तक जीव को सताती है जब तक जीव प्रभु का भजन और स्मरण नहीं करता । प्रभु का भजन और प्रभु का स्मरण करते ही विपत्ति का निवारण तुरंत हो जाता है । विपत्ति से बचने का कितना सरल मार्ग प्रभु श्री हनुमानजी ने सबको दिखाया है ।
प्रकाशन तिथि : 30 मई 2020 |
630 |
श्रीरामचरित मानस
(सुन्दरकाण्ड) |
5/32/4 |
चौपाई / छंद / दोहा -
सुनु सुत तोहि उरिन मैं नाहीं । देखेउँ करि बिचार मन माहीं ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री रामजी का प्रभु श्री हनुमानजी के प्रति अद्वितीय स्नेह और प्रेम को दर्शाती यह चौपाई है । प्रभु श्री रामजी कहते हैं कि उन पर जो उपकार प्रभु श्री हनुमानजी ने किया है वैसा कोई देवता, मनुष्य, मुनि या कोई भी शरीरधारी कभी नहीं कर सकता । प्रभु श्री रामजी कहते हैं कि बदले में वे क्या उपकार करें यह वे समझ नहीं पा रहे हैं । प्रभु श्री रामजी कहते हैं कि उन्होंने खूब विचार करके देख लिया पर प्रभु श्री हनुमानजी के उपकार से वे कुछ भी करके उऋण नहीं हो सकते । ऐसा कहते-कहते प्रभु श्री रामजी के श्रीनेत्रों से प्रेमाश्रुओं की धारा बह निकली और उनका शरीर अत्यंत पुलकित हो गया । बस इतनी-सी कल्पना करें कि साक्षात जगत नियंता प्रभु अगर कहते हैं कि वे उपकार से उऋण नहीं हो सकते तो प्रभु श्री रामजी ने प्रभु श्री हनुमानजी की सेवा को अपने हृदय में कितना बड़ा स्थान दिया है ।
प्रकाशन तिथि : 30 मई 2020 |
631 |
श्रीरामचरित मानस
(सुन्दरकाण्ड) |
5/32/दोहा |
चौपाई / छंद / दोहा -
चरन परेउ प्रेमाकुल त्राहि त्राहि भगवंत ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री हनुमानजी ने अपनी भक्ति की अंतिम परीक्षा में क्या किया और कैसे उत्तीर्ण हुए यह यहाँ पर देखने को मिलता है । प्रभु श्री रामजी द्वारा प्रभु श्री हनुमानजी के कार्य और सेवा को उपकार रूप में मानना और उसके लिए सदैव के लिए ऋणी रहना, यह कहने पर कोई भी गर्व और अहंकार से भर सकता था । ऐसा न हो इसलिए यह सुनते ही प्रभु श्री हनुमानजी तत्काल प्रभु श्री रामजी के श्रीकमलचरणों में यह कहते हुए गिर गए कि मेरी रक्षा करें, मेरी रक्षा करें । किस चीज से रक्षा की बात प्रभु श्री हनुमानजी कह रहे हैं । वे अहंकार और गर्व से रक्षा की बात कह रहे हैं । हम काम, क्रोध, मद और लोभ को अपने पुरुषार्थ से जीत सकते हैं पर इन सबके सेनापति अहंकार को प्रभु के श्रीकमलचरणों में गिरकर प्रभु की कृपा और अनुग्रह प्राप्त किए बिना नहीं जीत सकते ।
प्रकाशन तिथि : 31 मई 2020 |
632 |
श्रीरामचरित मानस
(सुन्दरकाण्ड) |
5/33/1 |
चौपाई / छंद / दोहा -
बार बार प्रभु चहइ उठावा । प्रेम मगन तेहि उठब न भावा ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री रामजी के श्रीकमलचरणों में गिरे प्रभु श्री हनुमानजी को प्रभु श्री रामजी बार-बार उठाना चाहते हैं पर प्रभु श्री हनुमानजी वहाँ से उठना ही नहीं चाहते । प्रभु श्री हनुमानजी को मानो उनका परम प्रिय स्थान मिल गया हो । प्रभु ने अपने श्रीकरकमल प्रभु श्री हनुमानजी के मस्तक पर फेरना शुरू किया । इससे ऊँची कोई अवस्था हो ही नहीं सकती कि भक्त का मस्तक प्रभु के श्रीकमलचरणों में झुका हो और प्रभु के श्रीकरकमल भक्त के मस्तक पर हो । इस अदभुत स्थिति को देखकर भगवती पार्वती माता को कथा सुना रहे प्रभु श्री महादेवजी की भाव समाधि लग गई और इसके कारण कथा रुक गई और वे प्रेम मग्न हो गए ।
प्रकाशन तिथि : 31 मई 2020 |
633 |
श्रीरामचरित मानस
(सुन्दरकाण्ड) |
5/33/3 |
चौपाई / छंद / दोहा -
बोला बचन बिगत अभिमाना ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री रामजी ने प्रभु श्री हनुमानजी को अपने श्रीकमलचरणों से उठाकर अपने हृदय से लगा लिया और उनको उनके द्वारा किए लंका के पराक्रम की बात पूछने लगे । अपनी इतनी बड़ाई और प्रभु श्री रामजी के ऋणी होने तक की बात सुनकर भी प्रभु श्री हनुमानजी ने अपने कथन में तनिक भी अभिमान नहीं आने दिया ।
प्रकाशन तिथि : 31 मई 2020 |
634 |
श्रीरामचरित मानस
(सुन्दरकाण्ड) |
5/33/5 |
चौपाई / छंद / दोहा -
सो सब तव प्रताप रघुराई । नाथ न कछू मोरि प्रभुताई ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री हनुमानजी ने एक बहुत सुंदर निवेदन प्रभु श्री रामजी से कर दिया । जब भी कोई बड़ाई या प्रशंसा का अवसर आए तो हमें भी यही निवेदन प्रभु से करना चाहिए । प्रभु श्री हनुमानजी ने अपने पराक्रम का तनिक भी श्रेय लेने से इंकार कर दिया और कहा कि यह सब प्रभु श्री रामजी के प्रताप के फल से ही संभव हुआ है । उनके कहने का तात्पर्य यह है कि उनके पराक्रम में उनकी कोई प्रभुता नहीं है, प्रभुता तो केवल और केवल प्रभु की ही है ।
प्रकाशन तिथि : 01 जून 2020 |
635 |
श्रीरामचरित मानस
(सुन्दरकाण्ड) |
5/33/दोहा |
चौपाई / छंद / दोहा -
ता कहुँ प्रभु कछु अगम नहिं जा पर तुम्ह अनुकूल । तब प्रभावँ बड़वानलहि जारि सकइ खलु तूल ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री हनुमानजी के श्रीमुख से दो अकाट्य सिद्धांतों का प्रतिपादन यहाँ पर होता है । पहला सिद्धांत जो प्रभु श्री हनुमानजी प्रभु श्री रामजी के समक्ष कहते हैं वह यह कि जिस जीव पर प्रभु श्री रामजी प्रसन्न होते हैं उस जीव के लिए संसार में कुछ भी करना कठिन नहीं होता है । दूसरा सिद्धांत कि प्रभु श्री रामजी के अनुग्रह और प्रभाव से जीव के लिए असंभव भी तत्काल संभव हो जाता है ।
प्रकाशन तिथि : 01 जून 2020 |
636 |
श्रीरामचरित मानस
(सुन्दरकाण्ड) |
5/34/1 |
चौपाई / छंद / दोहा -
नाथ भगति अति सुखदायनी ।
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री हनुमानजी परम ज्ञानी, परम बुद्धिमान, सभी विद्याओं के ज्ञाता, सब मर्म को जानने वाले हैं । यह निश्चित है कि वे जो प्रभु श्री रामजी से मांगेंगे उससे हितकारी मांग अन्य कुछ हो ही नहीं सकती । प्रभु श्री हनुमानजी ने प्रभु श्री रामजी से मांगा कि अत्यंत सुखदाई और निश्छल भक्ति उन्हें देने की प्रभु कृपा करें । जब हमारे जीवन में प्रभु से मांगने का अवसर आता है तो हम भक्ति को छोड़कर प्रभु से तुच्छ संसार मांग लेते हैं, यह कितनी बड़ी विडंबना है । प्रभु श्री हनुमानजी ने जो मांगा हमें भी वही प्रभु की निश्छल और निष्काम भक्ति प्रभु से मांगनी चाहिए ।
प्रकाशन तिथि : 01 जून 2020 |
637 |
श्रीरामचरित मानस
(सुन्दरकाण्ड) |
5/34/2 |
चौपाई / छंद / दोहा -
उमा राम सुभाउ जेहिं जाना । ताहि भजनु तजि भाव न आना ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जगतपिता प्रभु श्री महादेवजी द्वारा जगजननी भगवती पार्वती माता को कहने पर एक बहुत बड़ा सिद्धांत यहाँ पर स्थापित हुआ है । प्रभु श्री महादेवजी कहते हैं कि जो करुणामय और कृपानिधान प्रभु का स्वभाव जान लेते हैं उनके जीवन में उन्हें प्रभु भक्ति और भजन को छोड़कर दूसरी कोई बात सुहाती ही नहीं । प्रभु की भक्ति करने वाले के पास दूसरी कोई बात के लिए स्थान ही नहीं रहता । प्रभु के भक्त के हृदय में प्रभु के लिए ही स्थान होता है अन्य किसी विषय के लिए स्थान नहीं होता ।
प्रकाशन तिथि : 02 जून 2020 |
638 |
श्रीरामचरित मानस
(सुन्दरकाण्ड) |
5/35/2 |
चौपाई / छंद / दोहा -
राम कृपा बल पाइ कपिंदा ।
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब प्रभु श्री रामजी ने लंका के लिए प्रस्थान करने की आज्ञा दी तो वानर, रीछ और भालुओं के झुंड-के-झुंड आ पहुँचे । सबने प्रभु के श्रीकमलचरणों में अपना मस्तक रखकर प्रभु को प्रणाम किया । जैसे ही प्रभु ने अपनी कृपा दृष्टि उन पर डाली सभी के सभी वानर, रीछ और भालू प्रभु की कृपा का बल पाते ही इतने बलवान हो गए मानो पंखवाले बड़े-बड़े पर्वत हो । प्रभु का कृपा बल अद्वितीय होता है जिसकी तुलना किसी भी बल से नहीं की जा सकती क्योंकि उसके जैसा कोई बल है ही नहीं ।
प्रकाशन तिथि : 02 जून 2020 |
639 |
श्रीरामचरित मानस
(सुन्दरकाण्ड) |
5/35/3 |
चौपाई / छंद / दोहा -
जासु सकल मंगलमय कीती । तासु पयान सगुन यह नीती ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री रामजी ने जब युद्ध के लिए लंका प्रस्थान का आदेश दिया तो मंगल के सूचक शगुन होने लगे । गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि प्रभु की कीर्ति सब मंगलों से पूर्ण है और प्रभु सब मंगलों के मूल हैं । इसलिए प्रभु की आज्ञा पर शगुन होने लगे तो यह श्रीलीला की मर्यादा मात्र है और इसमें कोई भी आश्चर्य नहीं है ।
प्रकाशन तिथि : 02 जून 2020 |
640 |
श्रीरामचरित मानस
(सुन्दरकाण्ड) |
5/35/छंद (1) |
चौपाई / छंद / दोहा -
मन हरष सभ गंधर्ब सुर मुनि नाग किंनर दुख टरे ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब करोड़ों की संख्या में वानर सेना प्रभु के नेतृत्व में प्रभु का जयकारा करते हुए चली तो रावण का अंत और प्रभु के श्रीहाथों उसका उद्धार होगा यह जान देवतागण, गंधर्व, मुनिगण, नाग सब मन में अति हर्षित हो उठे । वे जान गए कि रावण के अत्याचार से अब वे हरदम के लिए बच जाएंगे और इस तरह उनके दुःख का अब अंत हो जाएगा । उनकी अंतिम आशा प्रभु से ही थी और अब प्रभु वह आशा पूरी करने जा रहे हैं ।
प्रकाशन तिथि : 03 जून 2020 |
641 |
श्रीरामचरित मानस
(सुन्दरकाण्ड) |
5/38/दोहा |
चौपाई / छंद / दोहा -
काम क्रोध मद लोभ सब नाथ नरक के पंथ । सब परिहरि रघुबीरहि भजहु भजहिं जेहि संत ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री विभीषणजी बड़ी सुंदर बात रावण से कहते हैं । वे कहते हैं कि काम, क्रोध, मद और लोभ नर्क जाने के रास्ते हैं । जो जीव अपने भीतर काम, क्रोध, मद और लोभ रखता है उसका नर्क जाना निश्चित है । नर्क से बचने का एक ही उपाय है कि प्रभु का भजन जीवन में करना जैसे सत्पुरुष निरंतर करते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 03 जून 2020 |
642 |
श्रीरामचरित मानस
(सुन्दरकाण्ड) |
5/39/1 |
चौपाई / छंद / दोहा -
तात राम नहिं नर भूपाला । भुवनेस्वर कालहु कर काला ॥ ब्रह्म अनामय अज भगवंता । ब्यापक अजित अनादि अनंता ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री विभीषणजी कहते हैं कि प्रभु श्री रामजी मनुष्यों के ही राजा नहीं बल्कि समस्त लोकों के भी स्वामी हैं और काल के भी काल हैं । प्रभु श्री रामजी ऐश्वर्य, यश, श्री, धर्म और ज्ञान के भंडार हैं । प्रभु श्री रामजी विकार रहित, व्यापक, अजेय और अनंत ब्रह्म हैं ।
प्रकाशन तिथि : 03 जून 2020 |
643 |
श्रीरामचरित मानस
(सुन्दरकाण्ड) |
5/39/2 |
चौपाई / छंद / दोहा -
जन रंजन भंजन खल ब्राता । बेद धर्म रच्छक सुनु भ्राता ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री विभीषणजी कहते हैं कि प्रभु अपने सेवकों को सदा आनंद देने वाले हैं । प्रभु दुष्टों का समूह सहित नाश करने वाले हैं । प्रभु धर्म और श्री वेदजी की रक्षा करने वाले हैं ।
प्रकाशन तिथि : 04 जून 2020 |
644 |
श्रीरामचरित मानस
(सुन्दरकाण्ड) |
5/39/3 |
चौपाई / छंद / दोहा -
प्रनतारति भंजन रघुनाथा ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री विभीषणजी कहते हैं कि प्रभु अपने शरणागत हुए जीव के दुःख का समूल नाश करने वाले हैं । जब कोई जीव अपने जीवन का दुःख लेकर संसार से हारकर प्रभु की शरण में आता है तो करुणानिधान प्रभु उसे तुरंत स्वीकार करते हैं और उसके दुःख का नाश करते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 04 जून 2020 |
645 |
श्रीरामचरित मानस
(सुन्दरकाण्ड) |
5/39/4 |
चौपाई / छंद / दोहा -
सरन गएँ प्रभु ताहु न त्यागा । बिस्व द्रोह कृत अघ जेहि लागा ॥ जासु नाम त्रय ताप नसावन । सोइ प्रभु प्रगट समुझु जियँ रावन ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री विभीषणजी रावण से कहते हैं कि जिन प्रभु का नाम लेने मात्र से तीनों तापों का नाश होता है वे प्रभु ही मनुष्य अवतार लेकर प्रकट हुए हैं । श्री विभीषणजी कहते हैं कि प्रभु इतने दयालु और कृपालु हैं कि जिस जीव को संपूर्ण जगत से द्रोह करने का पाप भी लगा हुआ है वह जीव भी अगर प्रभु की शरण में चला जाता है तो प्रभु उसे सहर्ष स्वीकार करते हैं और किसी भी अवस्था में उसका त्याग नहीं करते । इसलिए श्री विभीषणजी विनती करके रावण को कहते हैं कि वह मान, मोह और मद को त्यागकर प्रभु के शरणागत हो प्रभु का भजन करे क्योंकि इसमें ही उसकी भलाई है ।
प्रकाशन तिथि : 04 जून 2020 |
646 |
श्रीरामचरित मानस
(सुन्दरकाण्ड) |
5/42/दोहा |
चौपाई / छंद / दोहा -
जिन्ह पायन्ह के पादुकन्हि भरतु रहे मन लाइ । ते पद आजु बिलोकिहउँ इन्ह नयनन्हि अब जाइ ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब रावण ने ठोकर मारकर श्री विभीषणजी को त्याग दिया तो श्री विभीषणजी ने प्रभु श्री रामजी की शरण में जाने का मन बना लिया और मन में हर्षित हो उठे । उनके हर्ष का कारण था कि वे अब सौभाग्य से प्रभु के उन श्रीकमलचरणों का दर्शन करेंगे जो सेवकों को सुख देने वाले हैं, जिनके स्पर्श से भगवती अहिल्याजी तर गई और जिन्होंने दंडक वन को विचरण करके पवित्र कर दिया । जिन श्रीकमलचरणों को भगवती सीता माता और देवों के देव प्रभु श्री महादेवजी अपने हृदय में धारण करके रखते हैं और जिन श्रीकमलचरणों में श्री भरतलालजी ने अपना मन लगा रखा है आज अहोभाग्य से उनका दर्शन श्री विभीषणजी को होगा ।
प्रकाशन तिथि : 05 जून 2020 |
647 |
श्रीरामचरित मानस
(सुन्दरकाण्ड) |
5/43/4 |
चौपाई / छंद / दोहा -
मम पन सरनागत भयहारी ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब श्री विभीषणजी प्रभु श्री रामजी की शरण में आए और श्री सुग्रीवजी ने अपना मत दिया कि उन्हें शरण नहीं देना चाहिए तो प्रभु ने जो कहा वह बहुत महत्वपूर्ण है । प्रभु बोले कि उनका प्रण है कि जो उनकी शरण में आता है उसके सारे अपराधों को भुलाकर उसे शरण देना और उसे सभी भयों से अभय कर देना । यह प्रभु का कितना बड़ा प्रण है और शरणागत प्राणी के लिए कितनी बड़ी आशा की किरण है । अगर प्रभु शरण न दें तो जीव की कितनी बड़ी दुर्गति होगी इसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते ।
प्रकाशन तिथि : 05 जून 2020 |
648 |
श्रीरामचरित मानस
(सुन्दरकाण्ड) |
5/43/5 |
चौपाई / छंद / दोहा -
सरनागत बच्छल भगवाना ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - शरणागत को शरण देने का प्रभु श्री रामजी का प्रण जैसे ही प्रभु श्री हनुमानजी ने सुना वे अत्यंत हर्षित हो गए । प्रभु श्री हनुमानजी विचार करने लगे कि प्रभु कितने शरणागतवत्सल हैं यानी अपनी शरण में आए हुए जीव को एक परमपिता की तरह प्रेम करने वाले और उसकी हर प्रकार से रक्षा करने वाले हैं ।
प्रकाशन तिथि : 05 जून 2020 |
649 |
श्रीरामचरित मानस
(सुन्दरकाण्ड) |
5/44/1 |
चौपाई / छंद / दोहा -
कोटि बिप्र बध लागहिं जाहू । आएँ सरन तजउँ नहिं ताहू ॥ सनमुख होइ जीव मोहि जबहीं । जन्म कोटि अघ नासहिं तबहीं ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - मानव हत्या कितना बड़ा पाप है, उसमें भी विप्र जो सबसे पूजनीय हैं और भूलोक के देव हैं, उनकी हत्या कितना जघन्य पाप है । प्रभु कहते हैं कि करोड़ों विप्रों की हत्या का पाप भी जिसे लगा हो वह घोर पापी भी अगर प्रभु की शरण में आ जाता है तो प्रभु उसे भी कभी नहीं त्यागते । प्रभु शरणागत के इतने भीषण पाप पर भी उसे नहीं त्यागते, यह प्रभु की कितनी विलक्षण करुणा है । प्रभु इससे भी आगे की बात कहते हैं कि जो जीव प्रभु के सन्मुख होता है उसके करोड़ों जन्मों के संचित पाप भी प्रभु क्षण में नष्ट कर देते हैं । इतने जघन्य पाप और फिर करोड़ों जन्मों के संचित पाप सभी का क्षय प्रभु की शरण में आने पर हो जाता है । शरणागति का कितना बड़ा महत्व यहाँ पर प्रभु बताते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 06 जून 2020 |
650 |
श्रीरामचरित मानस
(सुन्दरकाण्ड) |
5/44/2 |
चौपाई / छंद / दोहा -
पापवंत कर सहज सुभाऊ । भजनु मोर तेहि भाव न काऊ ॥ जौं पै दुष्ट हृदय सोइ होई । मोरें सनमुख आव कि सोई ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु कहते हैं कि पापी का स्वभाव होता है कि प्रभु का भजन उसे नहीं सुहाता । प्रभु कहते हैं कि दुष्ट हृदय के जीव को कभी उसके पाप प्रभु के सन्मुख आने ही नहीं देते क्योंकि उसके पापों को पता होता है कि अगर वह जीव प्रभु के सम्मुख चला गया तो तत्काल उसके पापों का क्षय हो जाएगा ।
प्रकाशन तिथि : 06 जून 2020 |
651 |
श्रीरामचरित मानस
(सुन्दरकाण्ड) |
5/44/3 |
चौपाई / छंद / दोहा -
निर्मल मन जन सो मोहि पावा । मोहि कपट छल छिद्र न भावा ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री रामजी कहते हैं कि जो जीव निर्मल हृदय का होता है वही प्रभु तक पहुँच पाता है । जो जीव अपने हृदय में कपट और छल रखता है, ऐसा जीव प्रभु की प्राप्ति नहीं कर पाता ।
प्रकाशन तिथि : 06 जून 2020 |
652 |
श्रीरामचरित मानस
(सुन्दरकाण्ड) |
5/44/4 |
चौपाई / छंद / दोहा -
जौं सभीत आवा सरनाई । रखिहउँ ताहि प्रान की नाईं ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री रामजी कहते हैं कि अगर रावण का भाई भयभीत होकर प्रभु की शरण में आया है तो प्रभु उसे वैसे रखेंगे जैसे कोई अपने प्राणों को रखता है । सिद्धांत यह है कि शरणागत का प्रभु कभी भी, किसी भी परिस्थिति में त्याग नहीं करते, चाहे वह कोई भी हो और उसका अपराध कैसा भी हो । यह प्रभु की कितनी विलक्षण करुणा है ।
प्रकाशन तिथि : 07 जून 2020 |
653 |
श्रीरामचरित मानस
(सुन्दरकाण्ड) |
5/45/दोहा |
चौपाई / छंद / दोहा -
श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर । त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री विभीषणजी प्रभु श्री रामजी से कहते हैं कि वे अपने कानों से प्रभु का सुयश सुनकर आए हैं । उन्हें पता है कि प्रभु जन्म-मृत्यु के भय का नाश करने वाले, दुखियों के सभी दुःखों को दूर करने वाले और शरणागत को शरण में लेकर सुख देने वाले हैं । श्री विभीषणजी की दीनता और दीन वचन प्रभु को बहुत प्रिय लगे ।
प्रकाशन तिथि : 07 जून 2020 |
654 |
श्रीरामचरित मानस
(सुन्दरकाण्ड) |
5/46/2 |
चौपाई / छंद / दोहा -
कहु लंकेस सहित परिवारा ।
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब श्री विभीषणजी ने अपनी बात प्रभु श्री रामजी को कही तो प्रभु की जो प्रतिक्रिया थी वह बहुत मार्मिक है । प्रभु श्री रामजी ने श्री विभीषणजी को जो पहला संबोधन किया वह लंकेश कहकर किया । इसका अभिप्राय यह है कि रावण की मृत्यु उसी समय सुनिश्चित हो गई और लंका के भावी राज्य पर प्रभु ने श्री विभीषणजी को मानो उसी समय नियुक्त कर दिया ।
प्रकाशन तिथि : 07 जून 2020 |
655 |
श्रीरामचरित मानस
(सुन्दरकाण्ड) |
5/46/दोहा |
चौपाई / छंद / दोहा -
तब लगि कुसल न जीव कहुँ सपनेहुँ मन बिश्राम । जब लगि भजत न राम कहुँ सोक धाम तजि काम ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब प्रभु श्री रामजी ने श्री विभीषणजी की कुशल पूछी तो उन्होंने कहा कि प्रभु के श्रीकमलचरणों के दर्शन से और प्रभु ने अपना सेवक मान उन्हें स्वीकार किया प्रभु की इस दया के कारण अब वे कुशल हैं । एक सिद्धांत गोस्वामी श्री तुलसीदासजी श्री विभीषणजी के माध्यम से कहलवाते हैं कि जीव तब तक स्वप्न में भी कुशल नहीं है और उस जीव को तब तक स्वप्न में भी शांति नहीं मिलती जब तक वह संसार के विषयों को छोड़कर प्रभु की भक्ति नहीं करता ।
प्रकाशन तिथि : 08 जून 2020 |
656 |
श्रीरामचरित मानस
(सुन्दरकाण्ड) |
5/47/1 |
चौपाई / छंद / दोहा -
तब लगि हृदयँ बसत खल नाना । लोभ मोह मच्छर मद माना ॥ जब लगि उर न बसत रघुनाथा । धरें चाप सायक कटि भाथा ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - एक अकाट्य सिद्धांत का प्रतिपादन इस चौपाई में हुआ है । समस्त विकार जैसे लोभ, मोह, मद, मान इत्यादि जीव के हृदय में तब तक निवास करते हैं जब तक वह जीव प्रभु को अपने हृदय में भक्ति के द्वारा लाकर विराजमान नहीं करता । सिद्धांत यह है कि जब तक प्रभु हमसे दूर हैं तब तक ये सभी विकार हमारे हृदय में उपद्रव मचाते हैं । पर जब जीव भक्ति करता है और प्रभु उसके हृदय में आ बसते हैं तो सभी विकारों को स्वतः ही भागना पड़ता है ।
प्रकाशन तिथि : 08 जून 2020 |
657 |
श्रीरामचरित मानस
(सुन्दरकाण्ड) |
5/47/3 |
चौपाई / छंद / दोहा -
अब मैं कुसल मिटे भय भारे । देखि राम पद कमल तुम्हारे ॥ तुम्ह कृपाल जा पर अनुकूला । ताहि न ब्याप त्रिबिध भव सूला ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री विभीषणजी प्रभु श्री रामजी से कहते हैं कि प्रभु के श्रीकमलचरणों के दर्शन करके अब वे पूरी तरह से कुशल अनुभव कर रहे हैं क्योंकि प्रभु की शरण आकर उनके सारे भय मिट गए हैं । श्री विभीषणजी एक सिद्धांत कहते हैं कि प्रभु जिस पर कृपा करते हैं और जिस पर अनुकूल होते हैं उस पर संसार के तीनों प्रकार के ताप नहीं व्याप्ते ।
प्रकाशन तिथि : 08 जून 2020 |
658 |
श्रीरामचरित मानस
(सुन्दरकाण्ड) |
5/47/दोहा |
चौपाई / छंद / दोहा -
अहोभाग्य मम अमित अति राम कृपा सुख पुंज । देखेउँ नयन बिरंचि सिव सेब्य जुगल पद कंज ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री विभीषणजी अभिभूत होकर प्रभु श्री रामजी से कहते हैं कि जिन प्रभु का रूप ऋषियों और मुनियों के ध्यान में भी कठिनता से आता है उन प्रभु ने स्वयं हर्षित होकर उन्हें अपने हृदय से लगा लिया । श्री विभीषणजी प्रभु से कहते हैं कि प्रभु कृपा और सुख के पुंज हैं और उनका अत्यंत और असीम सौभाग्य है कि उनको प्रभु श्री ब्रह्माजी एवं प्रभु श्री महादेवजी द्वारा सेवित प्रभु के श्रीकमलचरणों के साक्षात दर्शन का लाभ मिला ।
प्रकाशन तिथि : 09 जून 2020 |
659 |
श्रीरामचरित मानस
(सुन्दरकाण्ड) |
5/48/2-3-4 |
चौपाई / छंद / दोहा -
तजि मद मोह कपट छल नाना । करउँ सद्य तेहि साधु समाना ॥ जननी जनक बंधु सुत दारा । तनु धनु भवन सुह्रद परिवारा ॥ सब कै ममता ताग बटोरी । मम पद मनहि बाँध बरि डोरी ॥ समदरसी इच्छा कछु नाहीं । हरष सोक भय नहिं मन माहीं ॥ अस सज्जन मम उर बस कैसें । लोभी हृदयँ बसइ धनु जैसें ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - यह पूरी श्री रामचरितमानसजी की मेरी सबसे प्रिय कुछ चौपाईयां हैं । इनमें प्रभु ने बहुत बड़ी मर्म की बात बताई है । प्रभु कहते हैं कि जो जगत का द्रोही हो वह भी भय के कारण भी क्यों न हो अगर प्रभु की शरण में आ जाता है और नाना प्रकार के विकारों को त्याग देता है तो प्रभु शीघ्र ही उसे साधु के समान बना देते हैं । पूरी श्री रामचरितमानसजी की मेरी दृष्टि से सबसे महत्वपूर्ण बात प्रभु यहाँ कहते हैं कि जीव को अपने माता, पिता, भाई, पुत्र, स्त्री, शरीर, धन, घर, मित्र और परिवार की ममतारूपी डोर को बटोरकर प्रभु के श्रीकमलचरणों में बांध देना चाहिए यानी सारे सांसारिक संबंधों को भुलाकर अपने जीवन के केंद्रबिंदु में प्रभु को ले आना चाहिए । ऐसा करने का लाभ यह है कि ऐसा करने वाले के हृदय में फिर कोई इच्छा, हर्ष, शोक और भय नहीं बचता । प्रभु घोषणा करते हैं कि ऐसे सज्जन प्रभु के हृदय में वैसे बसते हैं जैसे एक लोभी के हृदय में धन बसता है ।
प्रकाशन तिथि : 09 जून 2020 |
660 |
श्रीरामचरित मानस
(सुन्दरकाण्ड) |
5/49/3-4 |
चौपाई / छंद / दोहा -
सुनहु देव सचराचर स्वामी । प्रनतपाल उर अंतरजामी ॥ उर कछु प्रथम बासना रही । प्रभु पद प्रीति सरित सो बही ॥ अब कृपाल निज भगति पावनी । देहु सदा सिव मन भावनी ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब प्रभु श्री रामजी ने श्री विभीषणजी को अपना प्रिय कहा तो श्री विभीषणजी के कानों को प्रभु के श्रीवचन अमृत के समान लगे । उन्होंने बार-बार प्रभु के श्रीकमलचरणों में अपना मस्तक नवाया और अपार हर्ष से प्रभु से कहा कि पहले जब वे आए थे तब उनके हृदय में कुछ वासना और कामना थी पर प्रभु के श्रीकमलचरणों के दर्शन से और प्रभु की उन पर प्रीति देखकर अब वह सब खत्म हो गई । श्री विभीषणजी ने प्रभु को तीन संबोधनों से संबोधित किया और कहा कि प्रभु चराचर जगत के स्वामी हैं, प्रभु शरणागत के रक्षक हैं और प्रभु सबके हृदय के भीतर के भाव को जानने वाले हैं । श्री विभीषणजी ने कृपालु प्रभु श्री रामजी से कहा कि अब प्रभु उन्हें वह भक्ति दान दें जो भक्ति प्रभु श्री महादेवजी को सबसे प्रिय लगती है ।
प्रकाशन तिथि : 09 जून 2020 |