श्री गणेशाय नमः
Devotional Thoughts
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Words of Prayer प्रभु के लिए प्रार्थना, कविता
GOD prayers & poems
प्रभु प्रेरणा से लेखन द्वारा चन्द्रशेखर करवा
क्रम संख्या श्रीग्रंथ संख्या भाव के दर्शन / प्रेरणापुंज
541 श्रीरामचरित मानस
(अरण्यकाण्ड)
3/42/4 चौपाई / छंद / दोहा -
राम सकल नामन्ह ते अधिका ।


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - देवर्षि प्रभु श्री नारदजी ने प्रभु श्री रामजी से एक बार वर मांगा कि वैसे तो प्रभु के अनेकों नाम श्री वेदजी में प्रकट हुए हैं जो एक से बढ़कर एक हैं पर फिर भी पापों के समूह को नष्ट करने के लिए श्रीराम नाम सब नामों से बढ़कर हो । उन्होंने मांगा की पूर्णिमा की रात्रि में श्रीराम नाम श्री चंद्रदेवजी के समान हो और प्रभु के बाकी नाम तारों के समान होकर सभी भक्तों के हृदयरूपी निर्मल आकाश में निवास करे । प्रभु के इतने सरल नाम श्रीराम को इतना दिव्य और पाप नाश में इतना महासमर्थ बनाने का श्रेय देवर्षि प्रभु श्री नारदजी को जाता है ।

प्रकाशन तिथि : 01 मई 2020
542 श्रीरामचरित मानस
(अरण्यकाण्ड)
3/43/3 चौपाई / छंद / दोहा -
करउँ सदा तिन्ह कै रखवारी । जिमि बालक राखइ महतारी ॥ गह सिसु बच्छ अनल अहि धाई । तहँ राखइ जननी अरगाई ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री रामजी देवर्षि प्रभु श्री नारदजी से कहते हैं कि वे हर्ष से यह घोषणा करते हैं कि जो समस्त आशा और समस्त भरोसे को छोड़कर केवल प्रभु को भजते हैं, प्रभु उनकी एक माता की तरह हर पल रक्षा करते हैं । जैसे एक अबोध बच्चा आग या सांप को पकड़ने जाए तो माता उसे भागकर बचाती है वैसे ही प्रभु अपने आश्रितों को हर विपत्ति से बचाते हैं ।

प्रकाशन तिथि : 01 मई 2020
543 श्रीरामचरित मानस
(अरण्यकाण्ड)
3/43/5 चौपाई / छंद / दोहा -
जनहि मोर बल निज बल ताही । दुहु कहँ काम क्रोध रिपु आही ॥ यह बिचारि पंडित मोहि भजहीं । पाएहुँ ग्यान भगति नहिं तजहीं ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री रामजी ज्ञानी और भक्त की इस चौपाई में व्याख्या करते हैं । प्रभु कहते हैं कि ज्ञानी उनके पौढ़ पुत्र के समान हैं पर भक्त उनके शिशु पुत्र के समान होते है । काम, क्रोध, मद और लोभ की प्रबल सेना दोनों के सामने होती है । ज्ञानी के पास उनसे लोहा लेने का अपना बल होता है पर भक्त क्योंकि प्रभु के परायण होता है इसलिए भक्त को काम, क्रोध, मद और लोभ से प्रभु बचाते हैं । इसलिए प्रभु कहते हैं कि जो सच्चे ज्ञानी होते हैं वे ज्ञान प्राप्त करने पर भी प्रभु की भक्ति करना कभी भी नहीं छोड़ते ।

प्रकाशन तिथि : 01 मई 2020
544 श्रीरामचरित मानस
(अरण्यकाण्ड)
3/45/1 चौपाई / छंद / दोहा -
सेवक पर ममता अरु प्रीती ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु की रीति ऐसी है कि प्रभु का अपने सेवक पर एक माता की तरह ममता और प्रेम होता है । जैसे एक अबोध की माता ममता और प्रेम अपने बालक पर रखती है उसी प्रकार उससे कोटि गुना ज्यादा ममता प्रभु अपने सेवक पर रखते हैं और उससे कोटि गुना ज्यादा प्रेम प्रभु अपने सेवक से करते हैं ।

प्रकाशन तिथि : 02 मई 2020
545 श्रीरामचरित मानस
(अरण्यकाण्ड)
3/45/2 चौपाई / छंद / दोहा -
जे न भजहिं अस प्रभु भ्रम त्यागी । ग्यान रंक नर मंद अभागी ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - देवर्षि प्रभु श्री नारदजी कहते हैं कि अपने सेवकों पर इतनी ममता और प्रेम रखने वाले प्रभु को जो जीव नहीं भजते वे ज्ञान से कंगाल, दुर्बुद्धि और अभागे होते हैं ।

प्रकाशन तिथि : 02 मई 2020
546 श्रीरामचरित मानस
(अरण्यकाण्ड)
3/45/3 चौपाई / छंद / दोहा -
सुनु मुनि संतन्ह के गुन कहऊँ । जिन्ह ते मैं उन्ह कें बस रहऊँ ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री रामजी देवर्षि प्रभु श्री नारदजी से संतों के लक्षण कहते हैं और कहते हैं कि इन गुणों के कारण ही वे संतों के होकर उनके वश में रहते हैं । प्रभु कहते हैं कि संत में काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद जैसे विकार नहीं होते । वे पापरहित और कामनारहित होते हैं । वे स्थिर बुद्धि वाले और बाहर भीतर से पवित्र होते हैं । वे ज्ञानवान, इच्छारहित और सत्यनिष्ठ होते हैं । वे दूसरों को मान देने वाले और अपने गुणों को सुनने में सकुचाने वाले होते हैं । वे अभिमान रहित, धैर्यवान और धर्म के आचरण में अति निपुण होते हैं । उनमें विवेक, वैराग्य और विनय होता है और भूलकर भी वे कुमार्ग पर पैर नहीं रखते । वे सदा प्रभु की श्रीलीलाओं को गाते सुनते हैं और प्रभु के श्रीकमलचरणों में उनका निष्कपट प्रेम होता है ।

प्रकाशन तिथि : 02 मई 2020
547 श्रीरामचरित मानस
(अरण्यकाण्ड)
3/46/छंद चौपाई / छंद / दोहा -
ते धन्य तुलसीदास आस बिहाइ जे हरि रँग रँए ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि संसार में वे ही पुरुष धन्य हैं जो संसार की सभी आशा को छोड़कर केवल और केवल प्रभु की भक्ति के रंग में रंग जाते हैं । तात्पर्य यह है कि संसार में आकर करने योग्य केवल प्रभु की भक्ति ही है । जो जीव संसार में आकर संसार से प्रेम न कर प्रभु से प्रेम करता है वही धन्य है ।

प्रकाशन तिथि : 03 मई 2020
548 श्रीरामचरित मानस
(अरण्यकाण्ड)
3/46/दोहा (ख) चौपाई / छंद / दोहा -
भजहि राम तजि काम मद करहि सदा सतसंग ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि काम और मद को छोड़कर प्रभु की भक्ति और प्रभु का भजन करना चाहिए और सदा जीवन में सत्संग का लाभ लेना चाहिए । सत्संग का लाभ लेकर प्रभु की चर्चा और प्रभु की श्रीलीलाओं को सुनना चाहिए जिससे प्रभु से प्रेम हो और हमारी प्रभु भक्ति को बल मिले ।

श्री अरण्यकाण्डजी के विश्राम के बाद अब हम श्री रामचरितमानसजी के नवीन श्री किष्किन्धाकाण्डजी में प्रभु कृपा के बल पर मंगल प्रवेश करेंगे ।
श्री रामायणजी और श्री रामचरितमानसजी में मेरी अटूट आस्था है । प्रभु श्री महादेवजी और भगवती पार्वती माता की असीम कृपा से ही इन श्रीग्रंथों को पढ़ने की, लिखने की प्रेरणा मुझे मिली है और मैं शपथपूर्वक कहता हूँ कि मात्र और मात्र प्रभु कृपा के बल पर ही मेरे लिए ऐसा करना संभव हो पाया है । प्रभु श्री हनुमानजी की विशेष कृपा के साथ-साथ देवर्षि प्रभु श्री नारदजी का आशीर्वाद का मैंने साक्षात अनुभव किया है ।
इस श्री अरण्यकाण्डजी में प्रभु ने भगवती शबरीजी को नवधा भक्ति का उपदेश दिया है । देवर्षि प्रभु श्री नारदजी के मांगने पर प्रभु ने श्रीराम नाम को प्रभु के अन्य सभी मंगल नामों में पापों के नाश के लिए सबसे समर्थ बनाया है । प्रभु ने संतों के लक्षण बताए हैं जिनके कारण संत उन्हें अतिशय प्रिय होते हैं ।
जो कुछ भी लेखन हुआ है वह प्रभु कृपा के बल पर ही हुआ है । मेरा प्रयास मेरे प्रभु को प्रिय लगे इसी अभिलाषा के साथ मैं उसे प्रभु के श्रीकमलचरणों में सादर समर्पित करता हूँ ।
प्रभु का,
चन्‍द्रशेखर कर्वा


प्रकाशन तिथि : 03 मई 2020
549 श्रीरामचरित मानस
(किष्किन्धाकाण्ड)
4/1/मंगलाचरण चौपाई / छंद / दोहा -
तेहि न भजसि मन मंद को कृपाल संकर सरिस ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि भीषण हलाहल विष जब श्रीसमुद्र मंथन में निकला जिससे सभी देवतागण जल रहे थे तो कृपालु और दयालु प्रभु श्री महादेवजी ने स्वयं आकर उसका पान किया और सभी को विपत्ति से बचाया । प्रभु श्री महादेवजी जैसे कृपालु एवं दयालु और कोई नहीं हो सकते इसलिए गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि जीव को अपने कल्याण के लिए ऐसे देवों के देव प्रभु श्री महादेवजी का भजन करना चाहिए ।

प्रकाशन तिथि : 03 मई 2020
550 श्रीरामचरित मानस
(किष्किन्धाकाण्ड)
4/2/3 चौपाई / छंद / दोहा -
प्रभु पहिचानि परेउ गहि चरना । सो सुख उमा नहिं बरना ॥ पुलकित तन मुख आव न बचना । देखत रुचिर बेष कै रचना ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब ऋष्यमूक पर्वत पर मुलाकात में प्रभु श्री रामजी ने अपना परिचय प्रभु श्री हनुमानजी को दिया तो प्रभु श्री हनुमानजी ने भूमि में गिरकर प्रभु को साष्टांग दंडवत प्रणाम किया । प्रभु श्री महादेवजी भगवती पार्वती माता को कहते हैं कि अपने आराध्य प्रभु श्री रामजी से मिलकर प्रभु श्री हनुमानजी को जो हर्ष हुआ उसका वर्णन करना असंभव है । प्रभु श्री हनुमानजी का शरीर पुलकित हो गया और उनकी वाणी गदगद हो गई । प्रभु श्री रामजी ने प्रभु श्री हनुमानजी को उठाकर अपने हृदय से लगा लिया और अपने प्रेमाश्रुओं से उन्हें सींच दिया ।

प्रकाशन तिथि : 04 मई 2020
551 श्रीरामचरित मानस
(किष्किन्धाकाण्ड)
4/3/2 चौपाई / छंद / दोहा -
सेवक सुत पति मातु भरोसें । रहइ असोच बनइ प्रभु पोसें ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री हनुमानजी प्रभु श्री रामजी से कहते हैं कि जैसे संतान अपनी माता के भरोसे निश्चिंत रहती है वैसे ही प्रभु का सेवक अपने स्वामी प्रभु के भरोसे निश्चिंत रहता है । यह सिद्धांत है कि प्रभु अपने सेवकों का पालन-पोषण बड़े हर्ष से करते हैं ।

प्रकाशन तिथि : 04 मई 2020
552 श्रीरामचरित मानस
(किष्किन्धाकाण्ड)
4/3/4 चौपाई / छंद / दोहा -
सेवक प्रिय अनन्यगति सोऊ ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री रामजी कहते हैं कि उन्हें सभी समदर्शी कहते हैं यानी सबके लिए समान भाव रखने वाला कहते हैं । पर समदर्शी होते हुए भी प्रभु को अपने सेवक विशेष प्रिय होते हैं जिनका प्रभु को छोड़कर दूसरा कोई आसरा या सहारा नहीं होता । भक्ति की अनन्यता समदर्शी प्रभु के हृदय में भी भक्त को विशेष बना देती है ।

प्रकाशन तिथि : 04 मई 2020
553 श्रीरामचरित मानस
(किष्किन्धाकाण्ड)
4/7/9 चौपाई / छंद / दोहा -
ए सब रामभगति के बाधक । कहहिं संत तब पद अवराधक ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री सुग्रीवजी प्रभु श्री रामजी से कहते हैं कि वे सुख, संपत्ति, परिवार और बड़प्पन को त्यागकर प्रभु की सेवा करेंगे । गोस्वामी श्री तुलसीदासजी एक सिद्धांत श्री सुग्रीवजी से कहलवाते हैं जो की संत मत है । संत कहते हैं कि यह सुख, संपत्ति, परिवार, बड़ाई सभी भक्ति करने वाले के विरोधी बन जाते हैं । इसलिए भक्ति करने वाले को इनसे बचकर ही रहना चाहिए ।

प्रकाशन तिथि : 05 मई 2020
554 श्रीरामचरित मानस
(किष्किन्धाकाण्ड)
4/7/11 चौपाई / छंद / दोहा -
अब प्रभु कृपा करहु एहि भाँती । सब तजि भजनु करौं दिन राती ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री सुग्रीवजी के मुख से गोस्वामी श्री तुलसीदासजी श्री रामचरितमानसजी की एक प्रसिद्ध चौपाई कहलवाते हैं । श्री सुग्रीवजी प्रभु श्री रामजी से कहते हैं कि प्रभु उन पर ऐसी कृपा करे कि वे संसार के जंजालों को छोड़कर दिन-रात प्रभु का ही भजन करे । सबसे बड़ी कृपा जीव पर प्रभु की तब होती है जब उस जीव की संसार से विरक्ति होकर प्रभु भक्ति और भजन में मन लगने लग जाए । जीव को प्रभु से ऐसी कृपा की ही अरदास करनी चाहिए ।

प्रकाशन तिथि : 05 मई 2020
555 श्रीरामचरित मानस
(किष्किन्धाकाण्ड)
4/7/12 चौपाई / छंद / दोहा -
नट मरकट इव सबहि नचावत । रामु खगेस बेद अस गावत ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री काकभुशुण्डिजी पक्षीराज श्री गरुड़जी को श्री वेदजी का एक अकाट्य सिद्धांत बताते हैं । श्री वेदजी में कहा गया है कि संसार प्रभु के इशारे पर वैसे नाचता है जैसे एक बंदर एक नट के इशारे पर नाचता है । पूरा संसार प्रभु के अधीन है और जैसा प्रभु चाहते हैं प्रभु इच्छा के अनुसार संसार में वैसा ही होता है ।

प्रकाशन तिथि : 05 मई 2020
556 श्रीरामचरित मानस
(किष्किन्धाकाण्ड)
4/7/दोहा चौपाई / छंद / दोहा -
जौं कदाचि मोहि मारहिं तौ पुनि होउँ सनाथ ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब श्री बालिजी को उनकी पत्नी भगवती तारा ने समझाया कि श्री सुग्रीवजी से बैर त्याग दें क्योंकि उन्हें अब प्रभु श्री रामजी का संरक्षण प्राप्त है तो श्री बालिजी ने बहुत सुंदर बात कही । उन्होंने कहा कि कदाचित अगर प्रभु उन्हें दंड स्वरूप मार भी देंगे तो भी उनका कल्याण है क्योंकि प्रभु के श्रीहाथों प्राणदंड पर भी उन्हें कृपालु प्रभु द्वारा प्रदान परमपद मिल जाएगा ।

प्रकाशन तिथि : 06 मई 2020
557 श्रीरामचरित मानस
(किष्किन्धाकाण्ड)
4/9/2 चौपाई / छंद / दोहा -
पुनि पुनि चितइ चरन चित दीन्हा । सुफल जन्म माना प्रभु चीन्हा ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब प्रभु श्री रामजी का बाण लगा तो श्री बालिजी ने मृत्यु से पूर्व एक श्रेष्ठ कार्य किया । जब प्रभु उनके समीप आए तो वे प्रभु का दर्शन करने लगे और अपने चित्त को प्रभु के श्रीकमलचरणों में लगा लिया । अंत अवस्था में प्रभु का दर्शन हो जाए और चित्त प्रभु के श्रीकमलचरणों में लग जाए, इससे श्रेष्ठ कुछ भी नहीं हो सकता ।

प्रकाशन तिथि : 06 मई 2020
558 श्रीरामचरित मानस
(किष्किन्धाकाण्ड)
4/10/3 चौपाई / छंद / दोहा -
मम लोचन गोचर सोइ आवा । बहुरि कि प्रभु अस बनिहि बनावा ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - करुणामय प्रभु श्री रामजी ने श्री बालिजी के सिर पर अपने श्रीकरकमलों का स्पर्श किया और कहा कि अगर वे चाहें तो प्रभु उन्हें जीवनदान दे सकते हैं । श्री बालिजी ने कहा कि मुनिगण जन्म-जन्म के साधन करने पर भी अंतकाल में श्रीराम नाम नहीं ले पाते । प्रभु श्री महादेवजी जिन श्रीराम नाम के उच्चारण से श्री काशीजी में जीव को मुक्ति देते हैं वे प्रभु श्री रामजी आज स्वयं उनके नेत्रों के सामने हैं इसलिए शरीर छोड़ने का इससे बढ़िया संयोग फिर कभी नहीं बनेगा । वे बोले कि कौन मूर्ख होगा जो प्रभु के परमपद की जगह अपने नश्वर शरीर को रखना चाहेगा ।

प्रकाशन तिथि : 06 मई 2020
559 श्रीरामचरित मानस
(किष्किन्धाकाण्ड)
4/10/छंद 2 चौपाई / छंद / दोहा -
जेहिं जोनि जन्मौं कर्म बस तहँ राम पद अनुरागऊँ ॥ यह तनय मम सम बिनय बल कल्यानप्रद प्रभु लीजिऐ । गहि बाहँ सुर नर नाह आपन दास अंगद कीजिऐ ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री बालिजी ने प्रभु श्री रामजी से कहा कि दया करके उन्हें ऐसा वर दें कि कर्मवश जिस भी योनि में वे जन्म पाए उस जन्म में उनका प्रभु के श्रीकमलचरणों में निश्छल प्रेम रहे । दूसरा श्रेष्ठ कार्य जो श्री बालिजी ने किया वह यह कि अपने पुत्र श्री अंगदजी को बांह पकड़कर प्रभु के संरक्षण में दे दिया और प्रभु का दास बना दिया ।

प्रकाशन तिथि : 07 मई 2020
560 श्रीरामचरित मानस
(किष्किन्धाकाण्ड)
4/10/दोहा चौपाई / छंद / दोहा -
राम चरन दृढ़ प्रीति करि बालि कीन्ह तनु त्याग । सुमन माल जिमि कंठ ते गिरत न जानइ नाग ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - मृत्यु बेला पर अभक्त को बड़ी भयंकर पीड़ा झेलनी पड़ती है । पर प्रभु के श्रीकमलचरणों में अपना मन अर्पण करने के कारण श्री बालिजी ने अपना शरीर उतनी आसानी से त्यागा जितनी आसानी से एक हाथी अपने गले में पड़ी फूल की माला को अपनी सूंड से उतारकर गिरा देता है । प्रभु ने सीधे श्री बालिजी को अपने परमधाम भेज दिया ।

प्रकाशन तिथि : 07 मई 2020
561 श्रीरामचरित मानस
(किष्किन्धाकाण्ड)
4/11/3 चौपाई / छंद / दोहा -
लीन्हेसि परम भगति बर मागी ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - भगवती ताराजी ने पहले अपने पति की मृत्यु पर विलाप किया पर जब प्रभु ने उन्हें ज्ञान दिया तो उनका मन शांत हुआ और उन्होंने प्रभु के श्रीकमलचरणों में गिरकर प्रभु से भक्ति का वर मांग लिया ।

प्रकाशन तिथि : 07 मई 2020
562 श्रीरामचरित मानस
(किष्किन्धाकाण्ड)
4/12/1 चौपाई / छंद / दोहा -
उमा राम सम हित जग माहीं । गुरु पितु मातु बंधु प्रभु नाहीं ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री महादेवजी भगवती पार्वती माता से कहते हैं कि जगत में प्रभु श्री रामजी के समान अपने भक्तों का हित करने वाले गुरु, पिता, माता, स्वामी और बंधु अन्य कोई भी नहीं है । दुनिया स्वार्थ के लिए प्रीति करती है पर केवल एक प्रभु ही हैं जो अपने भक्तों से निस्वार्थ प्रीति करते हैं ।

प्रकाशन तिथि : 08 मई 2020
563 श्रीरामचरित मानस
(किष्किन्धाकाण्ड)
4/12/3 चौपाई / छंद / दोहा -
जानतहुँ अस प्रभु परिहरहीं । काहे न बिपति जाल नर परहीं ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री महादेवजी भगवती पार्वती माता से एक सत्य सिद्धांत का प्रतिपादन करते हैं । सिद्धांत यह है कि जो प्रभु की करुणा को जानते हुए भी अपने जीवन से प्रभु की भक्ति का त्याग करते हैं और प्रभु से विमुख हो जाते हैं वे घोर विपत्ति के जाल में फंस जाते हैं ।

प्रकाशन तिथि : 08 मई 2020
564 श्रीरामचरित मानस
(किष्किन्धाकाण्ड)
4/13/2 चौपाई / छंद / दोहा -
मधुकर खग मृग तनु धरि देवा । करहिं सिद्ध मुनि प्रभु कै सेवा ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री रामजी ने जब वर्षा ऋतु में किष्किन्धा के पास पर्वत की गुफा में रहने का निश्चय किया तो देवतागणों ने आकर उस पर्वत की गुफा को अनुकूल रूप से सजा दिया । सिद्धगण और मुनिगण वहाँ आकर भौंरों, पक्षियों और पशुओं का शरीर धारण करके प्रभु की सेवा करने लगे ।

प्रकाशन तिथि : 08 मई 2020
565 श्रीरामचरित मानस
(किष्किन्धाकाण्ड)
4/14/4 चौपाई / छंद / दोहा -
सरिता जल जलनिधि महुँ जाई । होई अचल जिमि जिव हरि पाई ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री रामजी दृष्टांत देकर श्री लक्ष्मणजी को कहते हैं कि प्रभु की प्राप्ति कर संसार के आवागमन से मुक्त हो जीव वैसे स्थिर हो जाता है जैसे नदी का जल श्री समुद्रदेवजी में जाकर स्थिर होता है ।

प्रकाशन तिथि : 09 मई 2020
566 श्रीरामचरित मानस
(किष्किन्धाकाण्ड)
4/15/5 चौपाई / छंद / दोहा -
ऊषर बरषइ तृन नहिं जामा । जिमि हरिजन हियँ उपज न कामा ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री रामजी एक सुंदर दृष्टांत देकर कहते हैं कि जैसे ऊसर भूमि में वर्षा होने पर भी घास तक नहीं उगती वैसे ही प्रभु के भक्त में संसार में रहकर भी कामना और वासना उत्पन्न नहीं होती । प्रभु के भक्त की इंद्रियां संसार के विषयों की ओर जाना ही छोड़ देती है ।

प्रकाशन तिथि : 09 मई 2020
567 श्रीरामचरित मानस
(किष्किन्धाकाण्ड)
4/16/5 चौपाई / छंद / दोहा -
कहुँ कहुँ बृष्टि सारदी थोरी । कोउ एक पाव भगति जिमि मोरी ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री रामजी दृष्टांत देकर कहते हैं कि वर्षा ऋतु जाने के बाद शरद ऋतु में कहीं-कहीं थोड़ी-थोड़ी वर्षा होती है, ठीक वैसे जैसे कुछ कुछ बिरले ही प्रभु की भक्ति पाने के अधिकारी बनते हैं और भक्ति मार्ग पर चलते हैं ।

प्रकाशन तिथि : 09 मई 2020
568 श्रीरामचरित मानस
(किष्किन्धाकाण्ड)
4/16/दोहा चौपाई / छंद / दोहा -
जिमि हरिभगत पाइ श्रम तजहि आश्रमी चारि ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री रामजी भक्ति की महिमा बताते हुए कहते हैं कि प्रभु की भक्ति प्राप्त करने के बाद चारों आश्रम वाले लोग जो नाना प्रकार का प्रभु प्राप्ति के लिए श्रम करते थे उसका उनके जीवन से त्याग हो जाता है । भक्ति की प्राप्ति के बाद सभी साधनरूपी श्रम का जीवन में विराम लग जाता है क्योंकि अंत में प्राप्त करने योग्य केवल भक्ति ही है ।

प्रकाशन तिथि : 10 मई 2020
569 श्रीरामचरित मानस
(किष्किन्धाकाण्ड)
4/17/1 चौपाई / छंद / दोहा -
सुखी मीन जे नीर अगाधा । जिमि हरि सरन न एकउ बाधा ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री रामजी दृष्टांत देकर श्री लक्ष्मणजी को कहते हैं कि प्रभु की शरण में चले जाने पर जीव के जीवन में एक भी बाधा नहीं बचती और वे सुखी हो जाते हैं ठीक वैसे ही जैसे मछली जल मिलने पर सुखी हो जाती है ।

प्रकाशन तिथि : 10 मई 2020
570 श्रीरामचरित मानस
(किष्किन्धाकाण्ड)
4/21/1 चौपाई / छंद / दोहा -
अतिसय प्रबल देव तब माया । छूटइ राम करहु जौं दाया ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब श्री सुग्रीवजी ने राज्य पाकर प्रभु श्री रामजी का कार्य भूला दिया और फिर प्रभु श्री हनुमानजी के समझाने पर और श्री लक्ष्मणजी के रोष करने पर वे प्रभु की शरण में आए तो उन्होंने प्रभु से कहा कि प्रभु की माया बड़ी प्रबल है । प्रभु जब जीव पर दया करते हैं तभी वह जीव माया के बंधन से छूटता है, नहीं तो संसार के विषय जीव को बांधे रखते हैं । प्रभु की कृपा से ही कोई-कोई बिरला इन विषयों से निवृत्त हो पाता है ।

प्रकाशन तिथि : 10 मई 2020
571 श्रीरामचरित मानस
(किष्किन्धाकाण्ड)
4/22/1 चौपाई / छंद / दोहा -
आइ राम पद नावहिं माथा । निरखि बदनु सब होहिं सनाथा ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब श्री सुग्रीवजी के बुलावे पर वानरों के झुंड आए तो प्रभु श्री महादेवजी कहते हैं कि उस सेना की गिनती कोई नहीं कर सकता था । सभी वानरों ने आकर प्रभु श्री रामजी के श्रीकमलचरणों में अपना मस्तक नवाया और प्रभु का दर्शन पाकर कृतार्थ और सनाथ हुए । प्रभु सर्वव्यापक हैं इसलिए प्रभु अनेकों रूप लेकर सबसे मिले और सबकी कुशल पूछी ।

प्रकाशन तिथि : 11 मई 2020
572 श्रीरामचरित मानस
(किष्किन्धाकाण्ड)
4/23/2 चौपाई / छंद / दोहा -
स्वामिहि सर्ब भाव छल त्यागी ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - यह सिद्धांत है कि प्रभु की सेवा स्वामी रूप में सभी विकारों को त्यागकर मन, वचन और कर्म से करनी चाहिए । जो संसार में रहते हुए जीवन में ऐसा कर पाता है वही जीव धन्य होता है ।

प्रकाशन तिथि : 11 मई 2020
573 श्रीरामचरित मानस
(किष्किन्धाकाण्ड)
4/23/3 चौपाई / छंद / दोहा -
देह धरे कर यह फलु भाई । भजिअ राम सब काम बिहाई ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - यह श्री रामचरितमानसजी की एक प्रसिद्ध चौपाई है । गोस्वामी श्री तुलसीदासजी ने श्री सुग्रीवजी के माध्यम से एक बड़े सिद्धांत का प्रतिपादन यहाँ पर किया है । सिद्धांत यह है कि संसार में जन्म लेकर देह धारण करने का सबसे उत्तम फल और लाभ यही है कि संसार की समस्त कामनाओं से अपने मन को निवृत्त करके प्रभु की भक्ति में अपने मन को लगाया जाए । इससे बड़ी उपलब्धि संसार में आकर अन्य कुछ नहीं हो सकती ।

प्रकाशन तिथि : 11 मई 2020
574 श्रीरामचरित मानस
(किष्किन्धाकाण्ड)
4/23/4 चौपाई / छंद / दोहा -
सोइ गुनग्य सोई बड़भागी । जो रघुबीर चरन अनुरागी ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - यह सिद्धांत है कि संसार में वही सबसे गुणवान और सबसे बड़भागी है जिसका प्रभु के श्रीकमलचरणों में निश्छल प्रेम है । प्रभु के श्रीकमलचरणों के प्रेमी से बड़ा भाग्यवान और कोई नहीं हो सकता । शास्त्र के अनुसार धन संपत्ति होना भाग्यवान का लक्षण नहीं है, प्रभु के श्रीकमलचरणों का प्रेमी होना ही सच्चे भाग्यवान का लक्षण है ।

प्रकाशन तिथि : 12 मई 2020
575 श्रीरामचरित मानस
(किष्किन्धाकाण्ड)
4/23/6 चौपाई / छंद / दोहा -
चलेउ हृदयँ धरि कृपानिधाना ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब भगवती सीता माता की खोज में प्रभु श्री हनुमानजी अपने दल के साथ चलने लगे तो उन्होंने आकर प्रभु श्री रामजी के श्रीकमलचरणों में अपना सिर नवाया । प्रभु श्री रामजी ने अपने श्रीकरकमलों से उनका श्रीमस्तक स्पर्श किया और प्रभु का अनुग्रह पाकर प्रभु श्री हनुमानजी ने अपना जन्म सफल माना और कृपानिधान प्रभु को अपने हृदय में धारण करके वे माता की खोज में चले ।

प्रकाशन तिथि : 12 मई 2020
576 श्रीरामचरित मानस
(किष्किन्धाकाण्ड)
4/26/6 चौपाई / छंद / दोहा -
तात राम कहुँ नर जनि मानहु । निर्गुन ब्रम्ह अजित अज जानहु ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - सभी वानरों को दुःखी देखकर श्री जाम्बवन्तजी ने सबका हौसला बढ़ाने के लिए कहा कि प्रभु श्री रामजी के अनुग्रह से श्रीराम कार्य में अवश्य सफलता मिलेगी । उन्होंने कहा कि प्रभु श्री रामजी मानव मर्यादा रखकर श्रीलीला कर रहे हैं पर वे निर्गुण ब्रह्म है और अजेय हैं । वे बोले कि सभी वानर बड़े बड़भागी हैं जो उनकी सगुण ब्रह्म के रूप में प्रभु श्री रामजी से प्रीति है ।

प्रकाशन तिथि : 12 मई 2020
577 श्रीरामचरित मानस
(किष्किन्धाकाण्ड)
4/26/दोहा चौपाई / छंद / दोहा -
निज इच्छा प्रभु अवतरइ सुर महि गो द्विज लागि । सगुन उपासक संग तहँ रहहिं मोच्छ सब त्यागि ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री जाम्बवन्तजी कहते हैं कि प्रभु किसी कर्म बंधन के कारण नहीं बल्कि अपनी स्वतंत्र इच्छा से देवतागण, पृथ्वी माता, गौ-माता और ब्राह्मणों के हित के लिए अवतार ग्रहण करते हैं । भक्तगण सभी प्रकार के मोक्षों को त्यागकर प्रभु के अवतार काल में उनकी सेवा के लिए उनके साथ रहते हैं ।

प्रकाशन तिथि : 13 मई 2020
578 श्रीरामचरित मानस
(किष्किन्धाकाण्ड)
4/29/2 चौपाई / छंद / दोहा -
पापिउ जा कर नाम सुमिरहीं । अति अपार भवसागर तरहीं ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री सम्पातिजी ने जब अपनी दृष्टि से देखकर बताया कि सौ योजन के सागर के उस पार वे भगवती सीता माता को देख पा रहे हैं तो सागर लांघने का दुर्गम कार्य से सभी वानर निराश हो गए । तो श्री सम्पातिजी ने उनका मनोबल बढ़ाते हुए कहा कि प्रभु श्री रामजी की कृपा का विश्वास रखें । पापी भी जिन प्रभु की कृपा से अत्यंत अपार भवसागर से तर जाते हैं उन प्रभु को हृदय में धारण करने से यह सौ योजन का सागर भी आसानी से पार हो जाएगा ।

प्रकाशन तिथि : 13 मई 2020
579 श्रीरामचरित मानस
(किष्किन्धाकाण्ड)
4/30/2 चौपाई / छंद / दोहा -
कवन सो काज कठिन जग माहीं । जो नहिं होइ तात तुम्ह पाहीं ॥ राम काज लगि तब अवतारा । सुनतहिं भयउ पर्वताकारा ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब सब वानरों ने अपने बल को आंका और सागर लांघने में असमर्थता जताई तो श्री जाम्बवन्तजी ने प्रभु श्री हनुमानजी को पुकारा और उनका अतुलनीय बल उन्हें याद दिलाया । उन्होंने प्रभु श्री हनुमानजी से कहा कि वे बल, बुद्धि और विवेक की पराकाष्ठा हैं । फिर श्री जाम्बवन्तजी के मुख से वह अमर अभिव्यक्ति निकल गई कि जगत में कौन-सा ऐसा कठिन और दुर्गम कार्य है जो प्रभु श्री हनुमानजी से नहीं हो सकता । उन्होंने कहा कि प्रभु श्री रामजी के काज संवारने के लिए ही प्रभु श्री हनुमानजी का अवतार हुआ है । श्रीराम काज सुनना था कि प्रभु श्री हनुमानजी जागृत हो उठे और विशालकाय पर्वत के आकार जितने बड़े हो गए ।

प्रकाशन तिथि : 13 मई 2020
580 श्रीरामचरित मानस
(किष्किन्धाकाण्ड)
4/30/4 चौपाई / छंद / दोहा -
कनक बरन तन तेज बिराजा । मानहु अपर गिरिन्ह कर राजा ॥ सिंहनाद करि बारहिं बारा । लीलहीं नाषउँ जलनिधि खारा ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री हनुमानजी प्रभु श्री रामजी के कार्य के आह्वान पर विशालकाय हो गए । उनका विशालकाय शरीर पर्वत से भी बड़ा हो गया और शरीर का तेज सोने की तरह चमकने लगा । उन्होंने बार-बार श्रीराम श्रीराम कहकर अपने प्रभु को याद कर सिंहनाद किया और कहा कि प्रभु कृपा से सौ योजन के विशाल सागर को लांघना उनके लिए खेल के समान है ।

प्रकाशन तिथि : 14 मई 2020
581 श्रीरामचरित मानस
(किष्किन्धाकाण्ड)
4/30/5 चौपाई / छंद / दोहा -
सहित सहाय रावनहि मारी । आनउँ इहाँ त्रिकूट उपारी ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - अपने बल का स्मरण होते ही प्रभु श्री हनुमानजी ने कहा कि क्या वे रावण को उसके सहायक और सेना सहित मारकर पूरी लंकारूपी त्रिकूट पर्वत को उखाड़कर ले आए । तब श्री जाम्बवन्तजी ने कहा कि उन्हें प्रभु श्री रामजी की आज्ञा को ध्यान में रखकर केवल माता की खबर ही प्रभु तक पहुँचानी है ।

प्रकाशन तिथि : 14 मई 2020
582 श्रीरामचरित मानस
(किष्किन्धाकाण्ड)
4/30/दोहा (क) चौपाई / छंद / दोहा -
भव भेषज रघुनाथ जसु सुनहि जे नर अरु नारि । तिन्ह कर सकल मनोरथ सिद्ध करिहि त्रिसिरारि ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री जाम्बवन्तजी प्रभु श्री हनुमानजी को कहते हैं कि प्रभु श्री रामजी खेल के लिए वानरों की सेना लेकर जाएंगे और अपने बाहुबल से रावण सहित राक्षसों का संहार करेंगे जिससे उनका सुंदर यश, जो तीनों लोकों को पवित्र करने वाला होगा, वह सर्वत्र फैल जाएगा । प्रभु की इस श्रीलीला को सुनने, गाने, कहने और समझने से जीव अनायास ही परमपद पा जाएगा । प्रभु का यशगान जन्म-मरण रूपी भवरोग की अचूक और परम औषधि है । जो जीव प्रभु की श्रीलीला को सुनेंगे, प्रभु द्वारा उनके सभी मनोरथ सिद्ध होंगे ।

श्री किष्किन्धाकाण्डजी के विश्राम के बाद अब हम श्री रामचरितमानसजी के नवीन श्री सुन्दरकाण्डजी में प्रभु कृपा के बल पर मंगल प्रवेश करेंगे ।
श्री रामायणजी और श्री रामचरितमानसजी में मेरी अटूट आस्था है । प्रभु श्री महादेवजी और भगवती पार्वती माता की असीम कृपा से ही इन श्रीग्रंथों को पढ़ने की, लिखने की प्रेरणा मुझे मिली है और मैं शपथपूर्वक कहता हूँ कि मात्र और मात्र प्रभु कृपा के बल पर ही मेरे लिए ऐसा करना संभव हो पाया है । प्रभु श्री हनुमानजी की विशेष कृपा के साथ-साथ देवर्षि प्रभु श्री नारदजी का आशीर्वाद का मैंने साक्षात अनुभव किया है ।
इस श्री किष्किन्धाकाण्डजी में प्रभु श्री रामजी का अपने सबसे परम प्रिय भक्त प्रभु श्री हनुमानजी से मिलन है जो अभिभूत करने वाला है । साथ ही प्रभु श्री हनुमानजी को उनके बल का स्मरण दिलाने का प्रसंग है जिससे वे किसी भी कार्य के लिए तुरंत जागृत हो उठते हैं ।
जो कुछ भी लेखन हुआ है वह प्रभु कृपा के बल पर ही हुआ है । मेरा प्रयास मेरे प्रभु को प्रिय लगे इसी अभिलाषा के साथ में उसे प्रभु के श्रीकमलचरणों में सादर समर्पित करता हूँ ।
प्रभु का,
चन्‍द्रशेखर कर्वा


प्रकाशन तिथि : 14 मई 2020
583 श्रीरामचरित मानस
(सुन्दरकाण्ड)
5/मंगलाचरण/1 चौपाई / छंद / दोहा -
शान्तं शाश्वतमप्रमेयमनघं निर्वाणशान्तिप्रदं ब्रह्माशम्भुफणीन्द्रसेव्यमनिशं वेदान्तवेद्यं विभुम् । रामाख्यं जगदीश्वरं सुरगुरुं मायामनुष्यं हरिं वन्देऽहं करुणाकरं रघुवरं भूपालचूड़ामणिम् ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी श्री सुंदरकांडजी के मंगलाचरण में सबसे पहले प्रभु श्री रामजी की अद्वितीय वंदना करते हैं । वे कहते हैं कि प्रभु शांताकारम हैं, अप्रमेय हैं यानी प्रमाणों से परे हैं । प्रभु मोक्ष प्रदान करने वाले और परम शांति देने वाले हैं । "प्रभु श्री रामजी" प्रभु श्री ब्रह्माजी, प्रभु श्री महादेवजी और प्रभु श्री शेषजी द्वारा निरंतर पूजित हैं । श्री वेदजी द्वारा जानने योग्य केवल प्रभु ही हैं । प्रभु सर्वव्यापक हैं, सभी देवों में सबसे बड़े हैं । प्रभु जीव के समस्त पापों को हरने वाले और करुणा की खान हैं । प्रभु रघुकुल में सबसे श्रेष्ठ और राजाओं के भी शिरोमणि राजा हैं । गोस्वामीजी कहते हैं कि श्रीराम कहलाने वाले ऐसे श्री जगदीशजी प्रभु की वे सर्वप्रथम वंदना करते हैं ।

प्रकाशन तिथि : 15 मई 2020
584 श्रीरामचरित मानस
(सुन्दरकाण्ड)
5/मंगलाचरण/2 चौपाई / छंद / दोहा -
भक्तिं प्रयच्छ रघुपुङ्गव निर्भरां मे कामादिदोषरहितं कुरु मानसं च ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी प्रभु श्री रामजी की वंदना के बाद उनसे कुछ मांगते हैं जो की हमें भी मांगना चाहिए । हम प्रभु से धन, संपत्ति, पुत्र, पौत्र, आरोग्य मांगते हैं पर देखें कि गोस्वामीजी ने क्या मांगा । गोस्वामीजी कहते हैं कि प्रभु सबकी अंतरात्मा में छिपे भाव को जानते हैं और प्रभु को पता है कि जो भक्त मांगने जा रहा है उसके अलावा उसके हृदय में दूसरी कोई इच्छा है की नहीं । पहली बात जो गोस्वामीजी मांगते हैं वह प्रभु की पूर्ण भक्ति मांगते हैं, जो सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है । दूसरी बात जो गोस्वामीजी मांगते हैं वह यह कि प्रभु उनके मन को सभी विकारों और दोषों से रहित कर दे । हमें सोचना चाहिए कि क्या हम भी प्रभु से यही मांगते हैं ।

प्रकाशन तिथि : 15 मई 2020
585 श्रीरामचरित मानस
(सुन्दरकाण्ड)
5/मंगलाचरण/3 चौपाई / छंद / दोहा -
अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम् । सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री सुंदरकांडजी के प्राण प्रभु श्री हनुमानजी की यह अदभुत वंदना है । यह श्री रामचरितमानसजी का एक अमर मंगलाचरण है । गोस्वामी श्री तुलसीदासजी वह कार्य करते हैं जो प्रभु श्री रामजी को सबसे प्रिय लगता है । अपने परम भक्त को विशेषणों से सजता हुआ देख प्रभु हर्षित हो उठते हैं । गोस्वामीजी ने प्रभु श्री रामजी के प्राणप्रिय भक्त प्रभु श्री हनुमानजी के लिए विशेषणों की झड़ी लगा दी । गोस्वामीजी कहते हैं प्रभु श्री हनुमानजी अतुल्य बल के धाम हैं । वे सोने के पर्वत में जितनी कांति होती है उससे भी अधिक कांतियुक्त शरीर वाले हैं । वे दैत्यों का विध्वंस करने में अग्निरूप हैं । वे ज्ञानियों के शिरोमणि, परम ज्ञानी और संपूर्ण सद्गुणों से संपन्न हैं । कोई भी ऐसा ज्ञान या सद्गुण नहीं जो प्रभु श्री हनुमानजी में न हो । फिर जो गोस्वामीजी कहते हैं वह बड़ा हृदयस्पर्शी, मार्मिक और सत्य वचन है । गोस्वामीजी सीधे-सीधे कह देते हैं कि वे प्रभु श्री रामजी के "सबसे प्रिय भक्त" प्रभु श्री हनुमानजी को प्रणाम करते हैं । इसमें कोई दो राय नहीं कि प्रभु श्री रामजी को अपने प्राणों से भी ज्यादा प्रभु श्री हनुमानजी प्रिय हैं । प्रभु श्री हनुमानजी से ज्यादा प्रिय प्रभु श्री रामजी को अन्य कोई भी नहीं है ।

प्रकाशन तिथि : 15 मई 2020
586 श्रीरामचरित मानस
(सुन्दरकाण्ड)
5/1/2 चौपाई / छंद / दोहा -
चलेउ हरषि हियँ धरि रघुनाथा ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - इस चौपाई में प्रभु श्री हनुमानजी हमें बताते और सिखाते हैं कि कोई भी कार्य करने से पहले हमें क्या करना चाहिए । जब प्रभु श्री हनुमानजी भगवती सीता माता की खोज में सागरदेवजी को पार कर लंका जाने को तैयार हुए तो सबसे पहले उन्होंने प्रभु श्री रामजी को अपने हृदय में याद किया और उन्हें हृदय में धारण करके हर्षित होकर चले । प्रभु को किसी भी कार्य से पहले याद करना और प्रभु को हृदय में धारण करके अपने साथ रखने से हमें उस कार्य में निश्चित सफलता मिलती है ।

प्रकाशन तिथि : 16 मई 2020
587 श्रीरामचरित मानस
(सुन्दरकाण्ड)
5/1/4 चौपाई / छंद / दोहा -
जिमि अमोघ रघुपति कर बाना । एही भाँति चलेउ हनुमाना ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी इस चौपाई में प्रभु के भक्त की शक्ति का प्रतिपादन करते हैं । प्रभु के भक्त में प्रभु की शक्ति गतिशील हो जाती है । गोस्वामीजी कहते हैं कि प्रभु का अमोघ बाण चलता है तो अपने लक्ष्य भेदे बिना कभी वापस नहीं आता, चाहे बीच में कितने भी विघ्न क्यों न आ जाए । वैसे ही प्रभु श्री हनुमानजी प्रभु के अमोघ बाण की तरह सागरदेवजी को लांघते हुए लंका की ओर चले ।

प्रकाशन तिथि : 16 मई 2020
588 श्रीरामचरित मानस
(सुन्दरकाण्ड)
5/1/दोहा चौपाई / छंद / दोहा -
राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी इस दोहे में प्रभु भक्त की स्थिति बताते हैं । प्रभु के भक्त को प्रभु कार्य के पूर्ण होने पर ही विश्राम मिलता है । प्रभु कार्य पूर्ण हुए बिना वह जरा भी असावधानी या आलस्य नहीं करता । प्रभु श्री हनुमानजी जब लंका जा रहे थे तो श्री मैनाक पर्वत को समुद्रदेवजी ने भेजा कि उन पर बैठकर वे थोड़ा विश्राम लें । प्रभु श्री हनुमानजी ने श्री मैनाक पर्वत को आदर दिया और स्पर्श कर प्रणाम किया और फिर जो कहा वह वाक्य अमर हो गया । वे बोले कि प्रभु का कार्य पूरा हुए बिना उन्हें न कहीं विश्राम लेना है और न विश्राम की उन्हें कोई आवश्यकता है ।

प्रकाशन तिथि : 16 मई 2020
589 श्रीरामचरित मानस
(सुन्दरकाण्ड)
5/2/5 चौपाई / छंद / दोहा -
जस जस सुरसा बदनु बढ़ावा । तासु दून कपि रूप देखावा ॥ सत जोजन तेहिं आनन कीन्हा । अति लघु रूप पवनसुत लीन्हा ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - इस चौपाई में प्रभु श्री हनुमानजी के दो बहुत सुंदर भाव हमें देखने को मिलते हैं । जब देवतागणों ने सर्पों की माता सुरसा को प्रभु श्री हनुमानजी की परीक्षा लेने भेजा तो जैसे-जैसे सुरसा माता ने अपना मुख प्रभु श्री हनुमानजी के लिए बड़ा करना शुरू किया प्रभु श्री हनुमानजी ने भी प्रभु श्री रामजी की कृपा से उनके भीतर स्थित पराक्रम को दिखाया और अपना कद दुगुना करते गए । जब सुरसा माता को अपना मुख सौ योजन का करना पड़ा तो प्रभु श्री हनुमानजी तुरंत लघु रूप होकर उनके मुख में प्रवेश करके और सुरसा माता मुँह बंद करे उससे पहले ही वापस बाहर निकल आए । प्रभु श्री हनुमानजी ने सर्वप्रथम अपना कद बढ़ाकर दिखाया कि प्रभु कृपा से उनमें कितना पराक्रम है फिर लघु बनकर दिखाया कि वे इतने लघु ही हैं क्योंकि जो इतना बड़ा उनका पराक्रम है वह केवल और केवल प्रभु का है और प्रभु की कृपा से ही है ।

प्रकाशन तिथि : 17 मई 2020
590 श्रीरामचरित मानस
(सुन्दरकाण्ड)
5/2/दोहा चौपाई / छंद / दोहा -
राम काजु सबु करिहहु तुम्ह बल बुद्धि निधान ।


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - सर्पों की माता सुरसा ने प्रभु श्री हनुमानजी की परीक्षा लेकर उन्हें उत्तीर्ण किया और कहा कि आप प्रभु कृपा से बल और बुद्धि के भंडार हैं । यह बात सत्य है कि प्रभु श्री रामजी की परम भक्ति के कारण प्रभु श्री हनुमानजी में अतुलनीय बल और बुद्धि है । उनके जैसा बलवान और बुद्धिमान त्रिलोकी में कोई नहीं है । यह बात स्वयं प्रभु श्री रामजी ने ऋषि श्री वशिष्ठजी को श्रीराम राज्य की स्थापना के बाद भी कही थी ।

प्रकाशन तिथि : 17 मई 2020
591 श्रीरामचरित मानस
(सुन्दरकाण्ड)
5/3/5 चौपाई / छंद / दोहा -
प्रभु प्रताप जो कालहि खाई ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री हनुमानजी ने जो पुरुषार्थ करके श्री समुद्रदेवजी को लांघा उसका वर्णन करते हुए प्रभु श्री महादेवजी भगवती पार्वती माता को कहते हैं कि यह सब प्रभु श्री रामजी के प्रताप का ही फल है । प्रभु श्री रामजी जिस पर प्रसन्न होते हैं या जो प्रभु श्री रामजी का कार्य करता है, प्रभु कृपा से उसमें इतना प्रताप जागृत हो जाता है कि वह काल को भी खा जाए तो कम है ।

प्रकाशन तिथि : 17 मई 2020
592 श्रीरामचरित मानस
(सुन्दरकाण्ड)
5/3/छंद चौपाई / छंद / दोहा -
रघुबीर सर तीरथ सरीरन्हि त्यागि गति पैहहिं सही ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री हनुमानजी ने पर्वत पर चढ़कर जब प्रथम बार लंका देखी और उसमें जो दुष्ट राक्षसों को देखा उसका वर्णन गोस्वामी श्री तुलसीदासजी इस छंद में करते हैं । कुछ वर्णन करने के बाद गोस्वामीजी कहते हैं कि वे पूरा वर्णन नहीं कर रहे और संक्षिप्त में ही कह रहे हैं क्योंकि वे जानते हैं कि कुछ समय के बाद ही वे सब मरने वाले हैं । पर जिस तरह से वे राक्षस मरेंगे उसका वर्णन गोस्वामीजी ने बहुत सटीक किया है । गोस्वामीजी कहते हैं कि वे प्रभु के चलाए बाणरूपी तीर्थ में अपना शरीर त्यागकर परम गति को प्राप्त होंगे । प्रभु के बाण को गोस्वामीजी ने तीर्थ की उपमा दी है जिसके कारण प्राण त्यागकर उन राक्षसों का उद्धार होगा और उन्हें मोक्ष मिलेगा ।

प्रकाशन तिथि : 18 मई 2020
593 श्रीरामचरित मानस
(सुन्दरकाण्ड)
5/4/दोहा चौपाई / छंद / दोहा -
तात स्वर्ग अपबर्ग सुख धरिअ तुला एक अंग । तूल न ताहि सकल मिलि जो सुख लव सतसंग ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - लंका की पहरेदारी कर रही लंकिनी को जब प्रभु श्री हनुमानजी ने घूंसा मारा तो वह खून की उल्टी करते हुए गिरी और फिर संभलकर उठी और व्याकुल वाणी से बोली कि यह उसका बहुत बड़ा पुण्य है जो कि उसे प्रभु श्री रामजी के दूत के दर्शन का सौभाग्य मिल रहा है । फिर जो लंकिनी ने कहा वह श्री रामचरितमानसजी का एक अमर दोहा है । वह बोली कि स्वर्ग के सभी सुख और यहाँ तक कि मोक्ष को भी तराजू के एक पलड़े में रख दिया जाए तो भी वे सभी मिलकर भी दूसरे पलड़े में रखे क्षणमात्र के सत्संग के सुख की बिलकुल बराबरी नहीं कर सकते । सत्संग का लाभ स्वर्ग के सुख और मोक्ष पर भी भारी पड़ता है । सच्चा सत्संग हमारा जीवन बदलकर रख देता है और हमारे जीवन को प्रभुमय बना देता है । पूरा जीवन ही प्रभुमय हो जाए इससे बड़ा लाभ और कुछ हो ही नहीं सकता ।

प्रकाशन तिथि : 18 मई 2020
594 श्रीरामचरित मानस
(सुन्दरकाण्ड)
5/5/1 चौपाई / छंद / दोहा -
प्रबिसि नगर कीजे सब काजा । हृदयँ राखि कौसलपुर राजा ॥ गरल सुधा रिपु करहिं मिताई । गोपद सिंधु अनल सितलाई ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब प्रभु श्री हनुमानजी लंका में प्रवेश करते हैं तो लंकिनी उनसे निवेदन करती है कि प्रभु श्री रामजी को हृदय में धारण करके लंका नगर में प्रवेश करे और प्रभु का सब कार्य सिद्ध करे । यहाँ एक मर्म की बात यह है कि कोई भी छोटे-से-छोटा या बड़े-से-बड़ा कार्य प्रारंभ करते वक्त हृदय में प्रभु को धारण करके, प्रभु को आगे करके उस कार्य का संपादन करने से प्रभु की कृपा हमें मिलती है जिससे उस कार्य में हम सफल होते हैं । प्रभु को हृदय में धारण करके कार्य करने से प्रभु की कृपा मिलती है जिससे हमारे सामने आया विष अमृत का फल देता है, हमारे शत्रु मित्र समान व्यवहार करते हैं, विशाल समुद्रदेवजी गौ-माता के खुर के बराबर छोटे हो जाते हैं और श्री अग्निदेवजी हमें शीतलता का अनुभव कराते हैं । सारांश यह है कि सभी असंभव संभव हो जाते हैं ।

प्रकाशन तिथि : 18 मई 2020
595 श्रीरामचरित मानस
(सुन्दरकाण्ड)
5/5/2 चौपाई / छंद / दोहा -
गरुड़ सुमेरु रेनू सम ताही । राम कृपा करि चितवा जाही ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु जिसको अपनी कृपा दृष्टि से एक बार देख लेते हैं उसके लिए सुमेरु जैसा विशाल पर्वत रज के कण के समान हो जाता है । प्रभु की कृपा दृष्टि में आने के बाद उस जीव के लिए सब संभव हो जाता है और कुछ भी असंभव नहीं रहता । जीव अपने पुरुषार्थ से वह नहीं कर सकता जो प्रभु की एक कृपा दृष्टि के फल से वह करने में सक्षम हो जाता है । इसलिए जीवन में प्रभु प्रिय बनकर प्रभु की कृपा दृष्टि अर्जित करने का प्रयास करना चाहिए ।

प्रकाशन तिथि : 19 मई 2020
596 श्रीरामचरित मानस
(सुन्दरकाण्ड)
5/5/दोहा चौपाई / छंद / दोहा -
रामायुध अंकित गृह सोभा बरनि न जाइ । नव तुलसिका बृंद तहँ देखि हरष कपिराइ ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब प्रभु श्री हनुमानजी भगवती सीता माता की खोज में लंका में घूम रहे थे तो उन्हें एक जगह एक भवन में प्रभु का एक अलग मंदिर बना हुआ दिखाई दिया । उस मंदिर में प्रभु श्री रामजी के धनुष बाण के श्रीचिह्न अंकित थे और भगवती तुलसी माता के नवीन पौधों के समूह थे । असुरों के नगर में यह देखकर प्रभु श्री हनुमानजी बहुत हर्षित हो गए और उन्होंने अनुमान लगाया कि यह निश्चित ही किसी सज्जन पुरुष का भवन है । हमारी सज्जनता की पहचान धन, संपत्ति, वैभव से नहीं होती अपितु प्रभु के लिए हमारे घर में सर्वोपरि स्थान आरक्षित किया हुआ है कि नहीं इस बात से होती है । जिस घर में प्रभु को सर्वोपरि स्थान दिया जाता है प्रभु श्री हनुमानजी की कृपा दृष्टि उस घर पर सदैव रहती है ।

प्रकाशन तिथि : 19 मई 2020
597 श्रीरामचरित मानस
(सुन्दरकाण्ड)
5/6/2 चौपाई / छंद / दोहा -
राम राम तेहिं सुमिरन कीन्हा । हृदयँ हरष कपि सज्जन चीन्हा ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब लंका में भगवती सीता माता की खोज कर रहे प्रभु श्री हनुमानजी श्री विभीषणजी के भवन पहुँचे तो प्रातः का समय था । श्री विभीषणजी तब निद्रा से उठे थे और उठते ही उन्होंने श्रीराम नाम का स्मरण और उच्चारण किया । प्रभु के नाम का उच्चारण जब प्रभु श्री हनुमानजी ने सुना तो वे हृदय से बहुत हर्षित हुए और श्री विभीषणजी को उन्होंने सज्जन जाना । प्रभु का स्मरण और प्रभु नाम का उच्चारण अपने आप ही बिना प्रयास के सुबह-सुबह उठते ही हो जाए तो उस जीव को पुण्यात्मा मानना चाहिए क्योंकि यह प्रभु के नित्य अनुसंधान और प्रभु कृपा बिना संभव नहीं होता ।

प्रकाशन तिथि : 19 मई 2020
598 श्रीरामचरित मानस
(सुन्दरकाण्ड)
5/6/दोहा चौपाई / छंद / दोहा -
तब हनुमंत कही सब राम कथा निज नाम । सुनत जुगल तन पुलक मन मगन सुमिरि गुन ग्राम ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब प्रभु श्री हनुमानजी श्री विभीषणजी से ब्राह्मण रूप में मिले तो श्री विभीषणजी ने उन्हें प्रणाम किया और पूछा कि क्या वे प्रभु श्रीहरि के कोई भक्त हैं या स्वयं प्रभु ही हैं जो उन्हें दर्शन देकर कृतार्थ करने आए हैं । तब प्रभु श्री हनुमानजी ने पूरी श्रीराम कथा कहकर अपना नाम बताया, जिसे सुनते ही दोनों के शरीर पुलकित हो गए और दोनों के मन प्रेम और आनंद से भर गए । प्रभु श्री हनुमानजी को जब भी कोई जीव प्रभु में तन्मय हुआ दिखता है तो वे बहुत हर्षित होते हैं और उस जीव पर कृपा करके उसकी भक्ति को प्रगाढ़ करते हैं और उसका प्रभु मिलन करवा देते हैं ।

प्रकाशन तिथि : 20 मई 2020
599 श्रीरामचरित मानस
(सुन्दरकाण्ड)
5/7/3 चौपाई / छंद / दोहा -
सुनहु बिभीषन प्रभु कै रीती । करहिं सदा सेवक पर प्रीती ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री विभीषणजी ने अपनी बात और दशा बताकर प्रभु श्री हनुमानजी से पूछा कि क्या उन्हें अनाथ जान प्रभु श्री रामजी उन पर कृपा करेंगे । फिर उन्होंने कहा कि उन्हें भरोसा है कि प्रभु कृपा करेंगे क्योंकि पहली कृपा तो वे यह अनुभव कर रहे हैं कि निशाचरों की भूमि लंका में भी उन्हें प्रभु श्री हनुमानजी के दर्शन हो गए । तब प्रभु श्री हनुमानजी ने कहा कि यह उनके प्रभु की रीति है कि वे अपने सेवक से सदा और निरंतर प्रेम किया करते हैं । प्रभु अपने सेवकों से प्रेम और उन पर कृपा करने में कभी नहीं चूकते ।

प्रकाशन तिथि : 20 मई 2020
600 श्रीरामचरित मानस
(सुन्दरकाण्ड)
5/8/1 चौपाई / छंद / दोहा -
जानतहूँ अस स्वामि बिसारी । फिरहिं ते काहे न होहिं दुखारी ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री हनुमानजी एक बहुत मर्म की बात श्री विभीषणजी से कहते हैं । वे प्रभु श्री रामजी की कृपा की बात बताकर और प्रभु का कोमल स्वभाव बताकर कहते हैं कि ऐसे स्वामी को भूलकर जो संसार के विषयों के पीछे भटकते हैं वे निश्चित विपत्ति में पड़ते हैं और दुःखी होते हैं । प्रभु को जीवन में बिसारना ही दुःख का एकमात्र कारण है । जो करुणानिधान प्रभु को भूल जाते हैं उन जीवों को दुःख आकर घेर लेते हैं ।

प्रकाशन तिथि : 20 मई 2020