क्रम संख्या |
श्रीग्रंथ |
संख्या |
भाव के दर्शन / प्रेरणापुंज |
481 |
श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड) |
2/301/2 |
चौपाई / छंद / दोहा -
सहज सनेहँ स्वामि सेवकाई । स्वारथ छल फल चारि बिहाई ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री भरतलालजी प्रभु श्री रामजी से कहते हैं कि प्रभु के श्रीकमलचरणों की रज पुण्य और सुख की सीमा हैं । वे उस रज की दुहाई देकर कहते हैं कि उनका हृदय जागते, सोते और स्वप्न अवस्था में भी चारों पुरुषार्थों यानी धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को त्यागकर प्रभु से स्वाभाविक प्रेम और प्रभु की सेवा करना चाहता है ।
प्रकाशन तिथि : 11 अप्रैल 2020 |
482 |
श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड) |
2/301/छंद |
चौपाई / छंद / दोहा -
भरतहि प्रसंसत बिबुध बरषत सुमन मानस मलिन से ।
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री भरतलालजी ने प्रभु श्री रामजी से कहा कि स्वामी की आज्ञा का पालन करने से बड़ी कोई सेवा नहीं है । यह कहकर प्रभु प्रेम से श्री भरतलालजी का शरीर पुलकित हो उठा, नेत्रों से प्रेमाश्रु बह निकले और उन्होंने प्रभु श्री रामजी के श्रीकमलचरणों को पकड़ लिया । सारी सभा श्री भरतलालजी की प्रभु भक्ति की अतिशय महिमा देखकर स्नेह से शिथिल हो गई । देवतागण आकाश से श्री भरतलालजी की प्रशंसा करते हुए उन पर फूल बरसाने लगे ।
प्रकाशन तिथि : 11 अप्रैल 2020 |
483 |
श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड) |
2/304/1 |
चौपाई / छंद / दोहा -
कहत सुनत सति भाउ भरत को । सीय राम पद होइ न रत को ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि श्री भरतलालजी की प्रभु भक्ति और प्रभु प्रेम को कहते और सुनते जीव सहज ही प्रभु श्री सीतारामजी के श्रीकमलचरणों में अनुरक्त हो जाएगा । वे कहते हैं कि श्री भरतलालजी का स्मरण करने से प्रभु श्री रामजी का प्रेम उस जीव के लिए सुलभ हो जाएगा ।
प्रकाशन तिथि : 11 अप्रैल 2020 |
484 |
श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड) |
2/304/3 |
चौपाई / छंद / दोहा -
धरम धुरीन धीर नय नागर । सत्य सनेह सील सुख सागर ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - इस दोहे में कुछ विशेषणों का प्रयोग गोस्वामी श्री तुलसीदासजी ने प्रभु श्री रामजी के लिए किया है । वे कहते हैं कि प्रभु श्री रामजी धर्म का पालन करने वाले, धीर बुद्धि के और नीति में चतुर हैं । प्रभु श्री रामजी सत्य परायण हैं, स्नेह से भरे रहते हैं, शीलवान हैं और सुख के सागर हैं । प्रभु श्री रामजी नीति और प्रीति दोनों का पालन करते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 12 अप्रैल 2020 |
485 |
श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड) |
2/308/2 |
चौपाई / छंद / दोहा -
प्रभु पद अंकित अवनि बिसेषी । आयसु होइ त आवौं देखी ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री रामजी की आज्ञा पाकर श्री चित्रकूटजी से प्रस्थान करने से पूर्व श्री भरतलालजी ने प्रभु के सामने एक बहुत सुंदर इच्छा प्रकट की । प्रभु के श्रीकमलचरणों के दर्शन तो उनको हो चुके थे पर उन्होंने इच्छा प्रकट करी कि श्री चित्रकूटजी की भूमि पर जहाँ- जहाँ प्रभु श्री रामजी के श्रीकमलचरणों के श्रीचिह्न अंकित हैं, वे उस भूमि का दर्शन करना चाहते हैं । प्रभु के श्रीकमलचरणों के स्पर्श से पवित्र हुई भूमि भी एक भक्त के लिए कितनी पूजनीय हो जाती है यह यहाँ पर देखने को मिलता है ।
प्रकाशन तिथि : 12 अप्रैल 2020 |
486 |
श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड) |
2/311/2 |
चौपाई / छंद / दोहा -
कोमल चरन चलत बिनु पनहीं । भइ मृदु भूमि सकुचि मन मनहीं ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री भरतलालजी पूरे श्री अयोध्याजी और श्री जनकपुरजी के समाज सहित प्रभु श्री रामजी के निवास से पवित्र हुई श्री चित्रकूटजी की प्रदक्षिणा करने के लिए पैदल चले । यह देखकर भगवती पृथ्वी माता कोमल हो गई कि प्रभु के प्रेमियों को कष्ट न हो । कांटे, कंकड़ी और कठोर वस्तु को भगवती पृथ्वी माता ने छुपा लिया । सुगंधित शीतल वायु बहने लगी, बादल छाया करने लगे और देवतागण आकाश से फूलों की वर्षा करने लगे ।
प्रकाशन तिथि : 12 अप्रैल 2020 |
487 |
श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड) |
2/311/दोहा |
चौपाई / छंद / दोहा -
सुलभ सिद्धि सब प्राकृतहु राम कहत जमुहात ।
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी श्रीराम नाम की महिमा बताते हुए कहते हैं कि एक साधारण मनुष्य द्वारा आलस्य में जंभाई लेते समय भी प्रभु का नाम उच्चारण करने पर उसे सभी सिद्धियां सुलभ हो जाती है । प्रभु नाम की महिमा अपार है और इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि उससे सब कुछ सुलभ हो जाता है ।
प्रकाशन तिथि : 13 अप्रैल 2020 |
488 |
श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड) |
2/316/2 |
चौपाई / छंद / दोहा -
प्रभु करि कृपा पाँवरीं दीन्हीं ।
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री भरतलालजी ने चौदह वर्षों के लिए भी राज्य को प्रभु श्री रामजी का ही माना और प्रभु के अवलंबन के लिए उन्होंने प्रभु से निवेदन किया । संकोच में भरकर कृपानिधान प्रभु ने कृपा करके अपनी खड़ाऊँ श्री भरतलालजी को दे दी जिसे श्री भरतलालजी ने आदरपूर्वक अपने सिर पर धारण किया ।
प्रकाशन तिथि : 13 अप्रैल 2020 |
489 |
श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड) |
2/317/3 |
चौपाई / छंद / दोहा -
धीर धुरंधर धीरजु त्यागा ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री भरतलालजी को श्री चित्रकूटजी से वापस श्री अयोध्याजी के लिए विदा करते वक्त प्रभु श्री रामजी के तन, मन और वचन में बेहद प्रेम उमड़ा । प्रेम में अधीर हो सदैव धीरज को धारण करने वाले प्रभु श्री रामजी ने भी धीरज को त्याग दिया और उनके श्रीनेत्र प्रेमाश्रुओं से भर गए । अपने प्रेमी का वियोग प्रभु के लिए भी असहनीय हो जाता है ।
प्रकाशन तिथि : 13 अप्रैल 2020 |
490 |
श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड) |
2/317/दोहा |
चौपाई / छंद / दोहा -
तेउ बिलोकि रघुबर भरत प्रीति अनूप अपार । भए मगन मन तन बचन सहित बिराग बिचार ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि प्रभु श्री रामजी और श्री भरतलालजी का अपार प्रेम उपमा रहित है जिसे देखकर वैरागी ऋषि और मुनि एवं विवेकी लोग भी प्रेम में मग्न हो गए । गोस्वामी श्री तुलसीदासजी स्पष्ट कहते हैं कि प्रभु श्री रामजी एवं श्री भरतलालजी का परस्पर प्रेम अकथनीय है अर्थात उसे बयान करना कतई संभव नहीं है ।
प्रकाशन तिथि : 14 अप्रैल 2020 |
491 |
श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड) |
2/320/4 |
चौपाई / छंद / दोहा -
हृदयँ रामु सिय लखन समेता । चले जाहिं सब लोग अचेता ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब श्री अयोध्यावासी और श्री जनकपुरवासी वापस चले तो अपने हृदय पटल पर प्रभु श्री सीतारामजी को बसाकर वियोग के कारण बेसुध होकर चले । यहाँ तक कि हाथी, घोड़े, बैल आदि पशु भी हृदय से शिथिल होकर मन मारकर चले ।
प्रकाशन तिथि : 14 अप्रैल 2020 |
492 |
श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड) |
2/321/2 |
चौपाई / छंद / दोहा -
भरत सनेह सुभाउ सुबानी । प्रिया अनुज सन कहत बखानी ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री भरतलालजी के श्री चित्रकूटजी से प्रस्थान के बाद प्रभु श्री रामजी निरंतर उन्हें याद करते । अपने प्रिय श्री भरतलालजी के प्रेम के वश में होकर प्रभु श्री रामजी भगवती सीता माता और श्री लक्ष्मणजी के समक्ष श्री भरतलालजी के वचन, कर्म, मन और प्रीति का वर्णन अपने श्रीमुख से करते-करते थकते नहीं । यह सिद्धांत है कि जितना याद भक्त प्रभु को करता है उससे भी ज्यादा याद प्रभु अपने प्रिय भक्त को करते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 14 अप्रैल 2020 |
493 |
श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड) |
2/322/दोहा |
चौपाई / छंद / दोहा -
राम दरस लगि लोग सब करत नेम उपबास । तजि तजि भूषन भोग सुख जिअत अवधि कीं आस ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि श्री अयोध्याजी लौटकर सभी प्रजाजन वनवास की अवधि के बाद प्रभु श्री रामजी के पुनः दर्शन प्राप्त करने के लिए नियम पालन करने लगे और व्रत, उपवास करने लगे । उन्होंने सब भोगों और सुखों को प्रभु के लिए त्याग दिया । प्रभु चौदह वर्ष बाद वनवास की अवधि पूर्ण कर वापस आएंगे यही एकमात्र उनके जीवन को धारण करने के लिए आशा थी ।
प्रकाशन तिथि : 15 अप्रैल 2020 |
494 |
श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड) |
2/323/दोहा |
चौपाई / छंद / दोहा -
सुनि सिख पाइ असीस बड़ि गनक बोलि दिनु साधि । सिंघासन प्रभु पादुका बैठारे निरुपाधि ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री भरतलालजी ने गुरुदेव ऋषि श्री वशिष्ठजी से कहा कि उनकी इच्छा है कि प्रभु श्री रामजी के
श्रीकमलचरणों की पादुका को आदरपूर्वक राज्य सिंहासन पर विराजित करके प्रभु के सेवक के रूप में प्रभु के राज्य का प्रभु की कृपा से न्यासी की तरह संचालन करे । ऋषि श्री वशिष्ठजी ने गदगद वाणी से कहा कि ऐसा कभी भी, कहीं भी आज तक नहीं हुआ है पर श्री भरतलालजी जो भी सोचेंगे, समझेंगे, कहेंगे और करेंगे वही जगत में धर्म का सार कहलाएगा ।
प्रकाशन तिथि : 15 अप्रैल 2020 |
495 |
श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड) |
2/324/2 |
चौपाई / छंद / दोहा -
जटाजूट सिर मुनिपट धारी । महि खनि कुस साँथरी सँवारी ॥ असन बसन बासन ब्रत नेमा । करत कठिन रिषिधरम सप्रेमा ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जिस श्री अयोध्याजी के राज्य की देवराज श्री इंद्रदेवजी भी सराहना करते, जिस श्री अयोध्याजी के वैभव के आगे श्री कुबेरदेवजी भी अपने आपको कम आंकते, वैसे राज्य पर प्रभु श्री रामजी के श्रीकमलचरणों की पादुकाओं को विराजमान करके श्री भरतलालजी स्वयं नंदीग्राम में प्रभु की तरह पर्णकुटी बनाकर निवास करने लगे । श्री भरतलालजी प्रभु की तरह सिर पर जटा बनाकर, वल्कल वस्त्र धारण करके, कुश का आसन बिछाकर रहने लगे । प्रभु श्री रामजी पृथ्वी पर शयन करते तो श्री भरतलालजी सेवक के रूप में पृथ्वी को खोदकर उस गड्ढे में शयन करते क्योंकि उनका भाव यह रहता कि सेवक का स्थान स्वामी से सदैव नीचा होता है । श्री भरतलालजी का शरीर दिनों दिन दुबला होता गया पर उनका श्रीराम प्रेम और धर्म का बल दिन प्रतिदिन पुष्ट होता चला गया ।
प्रकाशन तिथि : 15 अप्रैल 2020 |
496 |
श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड) |
2/325/4 |
चौपाई / छंद / दोहा -
भरत रहनि समुझनि करतूती । भगति बिरति गुन बिमल बिभूती ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु के भक्त की कितनी बड़ी महिमा प्रभु जगत में स्थापित करवाते हैं यह यहाँ देखने को मिलता है । गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि श्री भरतलालजी की भक्ति, करनी, रहनी, समझ, वैराग्य और निर्मल सद्गुणों का वर्णन करने में सभी सुकवि सकुचाते हैं क्योंकि उनकी प्रभु भक्ति और प्रभु प्रेम इतना श्रेष्ठ है ।
प्रकाशन तिथि : 16 अप्रैल 2020 |
497 |
श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड) |
2/325/दोहा |
चौपाई / छंद / दोहा -
नित पूजत प्रभु पाँवरी प्रीति न हृदयँ समाति ॥ मागि मागि आयसु करत राज काज बहु भाँति ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री भरतलालजी नित्य प्रतिदिन प्रभु श्री रामजी द्वारा प्रदान अपने श्रीकमलचरणों की श्रीपादुकाओं का पूजन करते और ऐसा करते वक्त उनके हृदय में अपार हर्ष उमड़ पड़ता । श्री भरतलालजी श्री अयोध्याजी का राज्य प्रभु श्री रामजी का मानते और स्वयं को न्यासी मानकर प्रभु की श्रीपादुकाओं से आज्ञा मांग-मांगकर सब प्रकार के राजकाज का संचालन करते । श्री भरतलालजी के हृदय में श्री सीतारामजी बसते, उनकी जिह्वा निरंतर श्रीराम-श्रीराम का जप करती रहती । श्री भरतलालजी का व्रत और नियम देखकर साधु संत भी सकुचा जाते ।
प्रकाशन तिथि : 16 अप्रैल 2020 |
498 |
श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड) |
2/326/छंद |
चौपाई / छंद / दोहा -
सिय राम प्रेम पियूष पूरन होत जनमु न भरत को । मुनि मन अगम जम नियम सम दम बिषम ब्रत आचरत को ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री भरतलालजी की श्रीराम भक्ति और प्रेम इतना अलौकिक है कि गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि यदि श्री भरतलालजी का जन्म नहीं हुआ होता तो ऐसा आदर्श कौन प्रस्तुत करता । गोस्वामी श्री तुलसीदासजी श्री अयोध्याकांडजी की फलश्रुति में यहाँ तक कह देते हैं कि जो श्री भरतलालजी का चरित्र सुनेगा उसका अवश्य ही प्रभु श्री सीतारामजी के श्रीकमलचरणों में प्रेम हो जाएगा ।
श्री अयोध्याकाण्डजी के विश्राम के बाद अब हम श्री रामचरितमानसजी के नवीन श्री अरण्यकाण्डजी में प्रभु कृपा के बल पर मंगल प्रवेश करेंगे ।
श्री रामायणजी और श्री रामचरितमानसजी में मेरी अटूट आस्था है । प्रभु श्री महादेवजी और भगवती पार्वती माता की असीम कृपा से ही इन श्रीग्रंथों को पढ़ने की, लिखने की प्रेरणा मुझे मिली है और मैं शपथपूर्वक कहता हूँ कि मात्र और मात्र प्रभु कृपा के बल पर ही मेरे लिए ऐसा करना संभव हो पाया है ।
प्रभु श्री हनुमानजी की विशेष कृपा के साथ-साथ देवर्षि श्री नारदजी प्रभु का आशीर्वाद का मैंने साक्षात अनुभव किया है । श्री अयोध्याकाण्डजी के महान संत श्री भरतलालजी का प्रभु में असीम श्रद्धा और अटूट प्रेम देखकर हृदय द्रवीभूत हो जाता है । श्री भरतलालजी की कृपा से प्रभु के श्रीकमलचरणों में प्रीति होती है, यह श्री अयोध्याकाण्डजी की फलश्रुति है । श्री भरतलालजी को मैं दण्डवत प्रणाम करता हूँ जिनका मैं विशेष आभारी हूँ क्योंकि उनका अनुग्रह मुझे बराबर मिला है ।
जो कुछ भी लेखन हुआ है वह प्रभु कृपा के बल पर ही हुआ है । मेरा प्रयास मेरे प्रभु को प्रिय लगे इसी अभिलाषा के साथ में उसे प्रभु के श्रीकमलचरणों में सादर समर्पित करता हूँ ।
प्रभु का,
चन्द्रशेखर कर्वा
प्रकाशन तिथि : 16 अप्रैल 2020 |
499 |
श्रीरामचरित मानस
(अरण्यकाण्ड) |
3/1/दोहा |
चौपाई / छंद / दोहा -
अति कृपाल रघुनायक सदा दीन पर नेह ।
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री महादेवजी कहते हैं कि प्रभु श्री रामजी अत्यंत ही कृपा करने वाले कृपालु हैं । प्रभु श्री रामजी दीनों से सदा प्रेम करने वाले और दीनों पर सदा अनुकूल रहने वाले हैं ।
प्रकाशन तिथि : 17 अप्रैल 2020 |
500 |
श्रीरामचरित मानस
(अरण्यकाण्ड) |
3/2/3 |
चौपाई / छंद / दोहा -
मातु मृत्यु पितु समन समाना । सुधा होइ बिष सुनु हरिजाना ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब श्री इंद्रदेवजी के पुत्र श्रीजयंत ने भगवती सीता माता के श्रीकमलचरणों में कौवे के रूप में आकर चोंच मारी तो प्रभु श्री रामजी ने वहाँ पड़े सींक का संधान किया और वह ब्रह्मबाण की तरह दौड़ा । श्रीजयंत अति भयभीत होकर भागे तो उनके पिता देवराज श्री इंद्रदेवजी के यहाँ एवं श्री ब्रह्मलोक और श्री शिवलोक में कहीं भी किसी ने भी उन्हें शरण नहीं दी । प्रभु के द्रोही को जगत में कोई भी शरण नहीं देता । यह सिद्धांत है कि जो प्रभु का द्रोह करता है उसके लिए उसके स्वयं के माता-पिता मृत्यु के समान और अमृत विष के समान बन जाता है ।
प्रकाशन तिथि : 17 अप्रैल 2020 |
501 |
श्रीरामचरित मानस
(अरण्यकाण्ड) |
3/2/5 |
चौपाई / छंद / दोहा -
कहेसि पुकारि प्रनत हित पाही ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - देवर्षि प्रभु श्री नारदजी ने जब श्रीजयंत को व्याकुल देखा तो उन्होंने दया करके प्रभु शरणागति का मार्ग बताया । जिन प्रभु ने सींक के तिनके को ब्रह्मबाण की तरह उसके पीछे छोड़ा था और जब श्रीजयंत उनके श्रीकमलचरणों में गिरकर शरणागत हुआ तो कृपालु और दयालु प्रभु ने उसकी रक्षा की । प्रभु श्री महादेवजी कहते हैं कि यद्यपि श्रीजयंत के अपराध के कारण उसका वध ही उचित था पर कृपालु प्रभु श्री रामजी की कृपा जागृत हो गई और प्रभु ने जीवनदान दे दिया ।
प्रकाशन तिथि : 17 अप्रैल 2020 |
502 |
श्रीरामचरित मानस
(अरण्यकाण्ड) |
3/4/छंद 1 |
चौपाई / छंद / दोहा -
भजामि ते पदांबुजं । अकामिनां स्वधामदं ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - यह मुनि श्री अत्रिजी द्वारा की गई प्रभु श्री रामजी की स्तुति है । मुनि श्री अत्रिजी प्रभु श्री रामजी से कहते हैं कि आप भक्तवत्सल हैं, कृपालु हैं और अति कोमल स्वभाव के हैं । प्रभु निष्काम जीवों को अपना परमधाम देने वाले अत्यंत दयालु हैं ।
प्रकाशन तिथि : 18 अप्रैल 2020 |
503 |
श्रीरामचरित मानस
(अरण्यकाण्ड) |
3/4/छंद 10 |
चौपाई / छंद / दोहा -
भजामि भाव वल्लभं । कुयोगिनां सुदुर्लभं ॥ स्वभक्त कल्प पादपं ।
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - यह मुनि श्री अत्रिजी द्वारा की गई प्रभु श्री रामजी की स्तुति है । मुनि श्री अत्रिजी कहते हैं कि प्रभु को भक्तों के भाव बहुत प्रिय होते हैं । प्रभु संसार के विषय में डूबे विषयी जीवों के लिए अति दुर्लभ पर अपने भक्तों के लिए कल्पवृक्ष के समान उनकी सभी कामनाओं को पूर्ण करने वाले हैं ।
प्रकाशन तिथि : 18 अप्रैल 2020 |
504 |
श्रीरामचरित मानस
(अरण्यकाण्ड) |
3/4/छंद 11 |
चौपाई / छंद / दोहा -
पदाब्ज भक्ति देहि मे ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - यह मुनि श्री अत्रिजी द्वारा प्रभु श्री रामजी की स्तुति है । मुनि श्री अत्रिजी अपना मस्तक प्रभु के समक्ष नवाकर और हाथ जोड़कर प्रभु से विनती करते हैं कि उनकी बुद्धि कभी भी प्रभु के श्रीकमलचरणों को नहीं छोड़े । उन्होंने कहा कि प्रभु उन्हें अपने
श्रीकमलचरणों की भक्ति प्रदान करें । हमारी बुद्धि कभी प्रभु के श्रीकमलचरणों को नहीं छोड़े और हमें प्रभु के श्रीकमलचरणों की भक्ति मिले, इन दो मांगों से श्रेष्ठ और कोई मांग हो ही नहीं सकती ।
प्रकाशन तिथि : 18 अप्रैल 2020 |
505 |
श्रीरामचरित मानस
(अरण्यकाण्ड) |
3/5/दोहा (ख) |
चौपाई / छंद / दोहा -
सनु सीता तव नाम सुमिर नारि पतिब्रत करहि ।
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - भगवती अनुसुइयाजी ने भगवती सीता माता के समक्ष पतिव्रत धर्म का निरूपण किया और कहा कि पतिव्रत धर्म के कारण ही भगवती तुलसी माता प्रभु को अत्यंत प्रिय हैं और उनका यश श्री वेदजी में गाया जाता है । भगवती अनुसुइयाजी ने भगवती सीता माता से कहा कि जो पतिव्रत धर्म भगवती सीता माता ने पालन कर जगत को दिखाया है उसके कारण उनका नाम लेकर ही समाज की स्त्रियों को पीढ़ियों और युगों तक अपना-अपना पतिव्रत धर्म पालन करने का बल मिलेगा ।
प्रकाशन तिथि : 19 अप्रैल 2020 |
506 |
श्रीरामचरित मानस
(अरण्यकाण्ड) |
3/6/दोहा (क) |
चौपाई / छंद / दोहा -
कलिमल समन दमन मन राम सुजस सुखमूल । सादर सुनहि जे तिन्ह पर राम रहहिं अनुकूल ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु के सुंदर यश का गान कलियुग के पापों को समूल से नाश करने वाला साधन है । प्रभु का यशगान मन की विकृति को दमन करने वाला और परम सुख का मूल है । इसलिए प्रभु के यशगान को आदरपूर्वक सुनना और गाना चाहिए ।
प्रकाशन तिथि : 19 अप्रैल 2020 |
507 |
श्रीरामचरित मानस
(अरण्यकाण्ड) |
3/6/दोहा (ख) |
चौपाई / छंद / दोहा -
कठिन काल मल कोस धर्म न ग्यान न जोग जप । परिहरि सकल भरोस रामहि भजहिं ते चतुर नर ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - कलियुग को कठिन युग और पापों का खजाना माना गया है । कलियुग में धर्म की हानि होती है, ज्ञान टिकता नहीं और योग सफल नहीं होता । इस कलियुग में जो जीव प्रभु पर अनन्य भरोसा रखकर प्रभु का नाम भजते हैं वे ही चतुर हैं ।
प्रकाशन तिथि : 19 अप्रैल 2020 |
508 |
श्रीरामचरित मानस
(अरण्यकाण्ड) |
3/7/2 |
चौपाई / छंद / दोहा -
सरिता बन गिरि अवघट घाटा । पति पहिचानी देहिं बर बाटा ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि जब प्रभु श्री रामजी वन यात्रा में आगे बढ़ते तो रास्ते में पड़ने वाली नदी, वन और पर्वत सभी अपने स्वामी प्रभु को पहचान कर हर्षित होकर उनकी सेवा के रूप में उन्हें सुंदर रास्ता देने लगते ।
प्रकाशन तिथि : 20 अप्रैल 2020 |
509 |
श्रीरामचरित मानस
(अरण्यकाण्ड) |
3/8/4 |
चौपाई / छंद / दोहा -
जोग जग्य जप तप ब्रत कीन्हा । प्रभु कहँ देइ भगति बर लीन्हा ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब प्रभु श्री रामजी मुनि श्री शरभंगजी के आश्रम पहुँचे तो उन्होंने प्रभु को भक्तों के मन को चुराने वाला कहकर संबोधित किया । फिर जो मुनि ने किया वह बहुत श्रेष्ठ था । उन्होंने अपने योग, यज्ञ, जप, तप और व्रत आदि जो भी जीवन में किए थे उसे प्रभु को समर्पित कर उसके बदले प्रभु से भक्ति का वरदान ले लिया । उन्होंने प्रभु से निवेदन किया कि माता के साथ प्रभु उनके हृदय में सदैव निवास करें ।
प्रकाशन तिथि : 20 अप्रैल 2020 |
510 |
श्रीरामचरित मानस
(अरण्यकाण्ड) |
3/9/2 |
चौपाई / छंद / दोहा -
जयति प्रनत हित करुना कंदा ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु को यहाँ दो बहुत सुंदर विशेषणों से संबोधित किया गया है । प्रभु को शरणागत हितकारी कहा गया है यानी प्रभु सदैव अपनी शरण में आए हुए जीवों का परम हित करते हैं । प्रभु को करुणाकंद कहा गया है यानी प्रभु करुणा के मूल हैं । प्रभु में जितनी करुणा है ब्रह्मांड में किसी में भी उसका अंशभर भी नहीं है ।
प्रकाशन तिथि : 20 अप्रैल 2020 |
511 |
श्रीरामचरित मानस
(अरण्यकाण्ड) |
3/10/4 |
चौपाई / छंद / दोहा -
एक बानि करुनानिधान की । सो प्रिय जाकें गति न आन की ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु दया के भंडार हैं और करुणानिधि प्रभु का एक प्रण है कि जगत में जिस जीव का दूसरा कोई सहारा नहीं होता वह प्रभु को बहुत प्रिय होता है । जिसका कोई सहारा नहीं होता उसे भी प्रभु आश्रय देते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 21 अप्रैल 2020 |
512 |
श्रीरामचरित मानस
(अरण्यकाण्ड) |
3/11/1 |
चौपाई / छंद / दोहा -
महिमा अमित मोरि मति थोरी । रबि सन्मुख खद्योत अँजोरी ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - मुनि श्री अगस्त्यजी के शिष्य मुनि श्री सुतीक्ष्णजी को जब प्रभु के आगमन का पता चला तो वे प्रेमाभक्ति से भर गए । प्रभु श्री महादेवजी भगवती पार्वती माता से कहते हैं कि प्रेम में मग्न हुए बड़भागी मुनि लाठी की तरह प्रभु श्री रामजी के श्रीकमलचरणों में गिर पड़े । वे प्रभु की स्तुति करना चाहते थे पर उन्होंने प्रभु से कहा कि आपकी महिमा अपार है और उनकी बुद्धि बहुत अल्प है । उन्होंने कहा कि अगर वे प्रभु की स्तुति करेंगे तो वह ऐसा ही होगा जैसे प्रभु श्री सूर्यनारायणजी के समक्ष जुगनू का उजाला ।
प्रकाशन तिथि : 21 अप्रैल 2020 |
513 |
श्रीरामचरित मानस
(अरण्यकाण्ड) |
3/11/7 |
चौपाई / छंद / दोहा -
भक्त कल्पपादप आरामः । तर्जन क्रोध लोभ मद कामः ॥ अति नागर भव सागर सेतुः । त्रातु सदा दिनकर कुल केतुः ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - मुनि श्री सुतीक्ष्णजी ने प्रभु श्री रामजी की स्तुति करते हुए प्रभु को भक्तों के लिए कल्पवृक्ष बताया । उन्होंने कहा कि प्रभु जिसके हृदय में विराजते हैं उसके हृदय से काम, क्रोध, मद और लोभ डरकर भाग जाते हैं । उन्होंने कहा कि प्रभु जीव का संसार में आवागमन को मिटाने वाले और संसाररूपी समुद्र से तारने के लिए सेतु रूप हैं ।
प्रकाशन तिथि : 21 अप्रैल 2020 |
514 |
श्रीरामचरित मानस
(अरण्यकाण्ड) |
3/11/8 |
चौपाई / छंद / दोहा -
अतुलित भुज प्रताप बल धामः । कलि मल विपुल विभंजन नामः ॥ धर्म वर्म नर्मद गुण ग्रामः । संतत शं तनोतु मम रामः ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - मुनि श्री सुतीक्ष्णजी प्रभु श्री रामजी की स्तुति में कहते हैं कि प्रभु का प्रताप अतुलनीय है । प्रभु बल के धाम हैं । प्रभु का मंगलमय नाम कलियुग के बड़े भारी-से-भारी पापों का नाश करने वाला हैं । प्रभु धर्म के कवच हैं । प्रभु के सद्गुणों का समूह भक्तों के मन को आनंद देने वाला है ।
प्रकाशन तिथि : 22 अप्रैल 2020 |
515 |
श्रीरामचरित मानस
(अरण्यकाण्ड) |
3/13/4 |
चौपाई / छंद / दोहा -
तव भयँ डरत सदा सोउ काला ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - मुनि श्री अगस्त्यजी ने प्रभु श्री रामजी को पापों का नाश करने वाला कहकर संबोधित किया और कहा कि प्रभु के भजन के प्रभाव के कारण वे किंचित प्रभु की महिमा जानते हैं । उन्हें पता है कि प्रभु काल के भी काल हैं और काल भी सदा प्रभु से भयभीत रहता है ।
प्रकाशन तिथि : 22 अप्रैल 2020 |
516 |
श्रीरामचरित मानस
(अरण्यकाण्ड) |
3/13/6 |
चौपाई / छंद / दोहा -
अबिरल भगति बिरति सतसंगा । चरन सरोरुह प्रीति अभंगा ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - मुनि श्री अगस्त्यजी ने प्रभु श्री रामजी से जो मांगा वह बहुत सुंदर मांग है । उन्होंने प्रभु से प्रभु की प्रगाढ़ भक्ति, वैराग्य, सत्संग और प्रभु के श्रीकमलचरणों का अटूट प्रेम मांगा । जरा सोचिए जगत में आकर इससे ऊँची और कल्याणकारी मांग प्रभु से क्या हो सकती है ।
प्रकाशन तिथि : 22 अप्रैल 2020 |
517 |
श्रीरामचरित मानस
(अरण्यकाण्ड) |
3/16/1 |
चौपाई / छंद / दोहा -
जातें बेगि द्रवउँ मैं भाई । सो मम भगति भगत सुखदाई ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब श्री लक्ष्मणजी ने एक बार प्रभु से भक्ति के बारे में पूछा तो प्रभु ने अपने श्रीमुख से जो भक्ति का वर्णन किया वह अद्वितीय है । श्री लक्ष्मणजी को निमित्त बनाकर प्रभु ने यहाँ सबके लिए घोषणा करी कि जिससे वे शीघ्र प्रसन्न होते हैं वह साधन केवल भक्ति है । प्रभु कहते हैं कि भक्ति के कारण भक्तों को भी आनंद मिलता है और प्रभु को भी आनंद मिलता है । प्रभु कहते हैं कि भक्ति परम स्वतंत्र साधन है एवं भक्ति को किसी दूसरे साधन की कभी भी अपेक्षा नहीं होती ।
प्रकाशन तिथि : 23 अप्रैल 2020 |
518 |
श्रीरामचरित मानस
(अरण्यकाण्ड) |
3/16/3 |
चौपाई / छंद / दोहा -
सुगम पंथ मोहि पावहिं प्रानी ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री रामजी श्री लक्ष्मणजी को कहते हैं कि भक्ति इतना सुगम मार्ग है जिससे सुगम अन्य कोई साधन नहीं । प्रभु कहते हैं कि भक्ति के कारण भक्त बड़ी सहजता से प्रभु की प्राप्ति कर लेता है ।
प्रकाशन तिथि : 23 अप्रैल 2020 |
519 |
श्रीरामचरित मानस
(अरण्यकाण्ड) |
3/16/4 |
चौपाई / छंद / दोहा -
एहि कर फल पुनि बिषय बिरागा । तब मम धर्म उपज अनुरागा ॥ श्रवनादिक नव भक्ति दृढ़ाहीं । मम लीला रति अति मन माहीं ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री रामजी श्री लक्ष्मणजी को कहते हैं कि भक्ति का फल है कि भक्त को संसार के विषयों से वैराग्य हो जाता है । वैराग्य होने से भक्त के हृदय में भागवत् धर्म के लिए रुचि और प्रेम निर्माण होता है । प्रभु कहते हैं कि जब नवधा भक्ति में श्रवण भक्ति दृढ़ होती है तो भक्त के मन में प्रभु की श्रीलीलाओं के लिए अत्यंत श्रद्धा भाव और प्रेम निर्माण होता है ।
प्रकाशन तिथि : 23 अप्रैल 2020 |
520 |
श्रीरामचरित मानस
(अरण्यकाण्ड) |
3/16/5 |
चौपाई / छंद / दोहा -
गुरु पितु मातु बंधु पति देवा । सब मोहि कहँ जाने दृढ़ सेवा ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री रामजी कहते हैं कि जो भक्त भक्ति के कारण मन, वचन और कर्म से दृढ़ हो प्रभु की सेवा में तत्पर हो जाता है और प्रभु को ही अपना एकमात्र गुरु, पिता, माता और देवता मानने लगता है प्रभु सदा उसके वश में रहते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 24 अप्रैल 2020 |
521 |
श्रीरामचरित मानस
(अरण्यकाण्ड) |
3/16/6 |
चौपाई / छंद / दोहा -
मम गुन गावत पुलक सरीरा । गदगद गिरा नयन बह नीरा ॥ काम आदि मद दंभ न जाकें । तात निरंतर बस मैं ताकें ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - यह श्री रामचरितमानसजी की एक प्रसिद्ध चौपाई है । प्रभु श्री रामजी श्री लक्ष्मणजी को भक्त के लक्षण बताते हुए कहते हैं कि प्रभु का गुणगान करते हुए उसका शरीर पुलकित हो जाता है, उसकी वाणी गदगद हो जाती है और उसके नेत्रों से प्रेमाश्रु बहने लगते हैं । प्रभु कहते हैं कि भक्ति के कारण प्रभु के भक्त में काम, मद और दम्भ का नाश हो जाता है । प्रभु प्रेम में भरकर कहते हैं कि ऐसे भक्त के वे सदा वश में रहते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 24 अप्रैल 2020 |
522 |
श्रीरामचरित मानस
(अरण्यकाण्ड) |
3/16/दोहा |
चौपाई / छंद / दोहा -
बचन कर्म मन मोरि गति भजनु करहिं निःकाम ॥ तिन्ह के हृदय कमल महुँ करउँ सदा बिश्राम ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री रामजी श्री लक्ष्मणजी को कहते हैं कि जो भक्त अपना मन, वचन और कर्म प्रभु को अर्पित कर देता है और निष्काम बनकर बिना किसी चाह के प्रभु की भक्ति करता है उसके हृदय कमल पर प्रभु सदा विश्राम करते हैं । यह प्रभु का कितना बड़ा आश्वासन है कि अगर हम अपना मन, वचन और कर्म प्रभु को अर्पित करते हैं और निष्काम बन जाते हैं तो प्रभु हमारे हृदय पटल पर विराजेंगे और उसे छोड़कर कहीं भी नहीं जाएंगे ।
प्रकाशन तिथि : 24 अप्रैल 2020 |
523 |
श्रीरामचरित मानस
(अरण्यकाण्ड) |
3/20/दोहा (क) |
चौपाई / छंद / दोहा -
राम राम कहि तनु तजहिं पावहिं पद निर्बान ।
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब शूर्पणखा के श्री लक्ष्मणजी ने नाक कान काट दिए तो वह खर दूषण के पास विलाप करते हुए गई । वे राक्षस सेना लेकर आए तो भी प्रभु ने उनसे कहा कि अगर वे वापस लौट जाते हैं तो संग्राम में पीठ दिखाने वाले को प्रभु नहीं मारेंगे । पर जब युद्ध प्रारंभ हुआ तो प्रभु ने केवल अपने धनुष का कठोर और भयंकर टंकार किया जिससे राक्षस बहरे और व्याकुल हो उठे । प्रभु ने राक्षसों का उद्धार करने के लिए कौतुक किया और राक्षसों की सेना एक दूसरे को श्रीराम रूप में दिखने लगी । इससे सब श्रीराम-श्रीराम कहकर आपस में युद्ध कर मरने लगे और प्रभु का नाम उच्चारण कर शरीर छोड़ने के कारण सभी मोक्ष पद पा गए । प्रभु इतने करुणामय हैं कि राक्षसों के लिए भी मोक्ष पद का प्रयोजन स्वयं कर देते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 25 अप्रैल 2020 |
524 |
श्रीरामचरित मानस
(अरण्यकाण्ड) |
3/25/2 |
चौपाई / छंद / दोहा -
मारें मरिअ जिआएँ जीजै ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब मारीच को रावण ने कपट मृग बनकर प्रभु के सामने जाने को कहा तो मारीच ने रावण से कहा कि प्रभु मनुष्य रूप में चराचर के ईश्वर हैं । प्रभु के मरने से ही मरण होता है और प्रभु के जिलाने से ही जीना होता है यानी जीव का जीवन और मरण प्रभु के अधीन है ।
प्रकाशन तिथि : 25 अप्रैल 2020 |
525 |
श्रीरामचरित मानस
(अरण्यकाण्ड) |
3/26/3 |
चौपाई / छंद / दोहा -
कस न मरौं रघुपति सर लागें ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - मारीच को पूर्व में प्रभु श्री रामजी ने सौ योजन दूर फेंक दिया था इसलिए वह प्रभु को पहचानता था कि प्रभु साक्षात ब्रह्म हैं । पर जब समझाने पर भी रावण नहीं माना तो मारीच ने सोचा कि दोनों तरफ ही मरण है । इसलिए रावण के हाथों मरने से कहीं ज्यादा लाभकारी प्रभु के दर्शन करके प्रभु के श्रीहाथों से मरना है क्योंकि उसका प्रभु के श्रीकमलचरणों में अनुराग था । उसने सोचा कि मृग बनकर दौड़ते समय वह बार-बार पीछे मुड़कर प्रभु के दर्शन करके धन्य-धन्य हो जाएगा ।
प्रकाशन तिथि : 25 अप्रैल 2020 |
526 |
श्रीरामचरित मानस
(अरण्यकाण्ड) |
3/27/9 |
चौपाई / छंद / दोहा -
अंतर प्रेम तासु पहिचाना । मुनि दुर्लभ गति दीन्हि सुजाना ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब मारीच को प्रभु का बाण लगा तो उसने प्रेम सहित प्रभु श्री रामजी का स्मरण किया और प्रभु ने तत्काल उसके हृदय के प्रेम को देखकर उसे परमपद प्रदान किया जो मुनियों के लिए भी दुर्लभ है । देवतागण आकाश से फूल बरसाकर प्रभु का अभिनंदन करने लगे कि प्रभु ऐसे दीनबंधु हैं जो असुर को भी तत्काल अपना परमपद दे देते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 26 अप्रैल 2020 |
527 |
श्रीरामचरित मानस
(अरण्यकाण्ड) |
3/28/2 |
चौपाई / छंद / दोहा -
भृकुटि बिलास सृष्टि लय होई ।
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री लक्ष्मणजी भगवती सीता माता को कहते हैं कि प्रभु श्री रामजी के मात्र भृकुटी के इशारे से सारी सृष्टि का लय और प्रलय क्षणभर में हो जाता है । यह प्रभु के ऐश्वर्य का दर्शन है कि प्रभु कितने सर्वसामर्थ्यवान हैं ।
प्रकाशन तिथि : 26 अप्रैल 2020 |
528 |
श्रीरामचरित मानस
(अरण्यकाण्ड) |
3/28/8 |
चौपाई / छंद / दोहा -
मन महुँ चरन बंदि सुख माना ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब रावण ने पहले खर दूषण का वध शूर्पणखा से सुना तो वह समझ गया कि देवताओं को आनंद देने और पृथ्वी माता का भार उतारने शायद प्रभु ने अवतार लिया है क्योंकि कोई मनुष्य खर दूषण को नहीं मार सकते क्योंकि वे रावण की तरह ही बलवान थे । इसलिए रावण ने सोचा कि उसके तामस शरीर से भजन तो होता नहीं इसलिए प्रभु के बाण के आघात से प्राण छोड़कर वह भवसागर से तर जाएगा । प्रभु ने जब देखा कि अब रावण के साथ युद्ध का समय आने वाला है तो भगवती सीता माता को प्रभु ने श्री अग्निदेवजी के संरक्षण में भेजा और माता की छायामूर्ति श्रीलीला के लिए प्रकट कर दी । रावण जब पहली बार छायामूर्ति भगवती सीता माता के सामने आया तो मन-ही-मन उसने माता के श्रीकमलचरणों की वंदना करके सुख का अनुभव किया ।
प्रकाशन तिथि : 26 अप्रैल 2020 |
529 |
श्रीरामचरित मानस
(अरण्यकाण्ड) |
3/30/दोहा |
चौपाई / छंद / दोहा -
कर सरोज सिर परसेउ कृपासिंधु रधुबीर ॥ निरखि राम छबि धाम मुख बिगत भई सब पीर ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब रावण द्वारा पंख काटे गए श्री जटायुजी को प्रभु श्री रामजी ने देखा तो प्रभु ने अपने करकमलों से उनके सिर का स्पर्श किया । प्रभु के स्पर्श से और शोभायुक्त प्रभु के सुंदर दर्शन पाते ही श्री जटायुजी की शरीर की सभी पीड़ा समाप्त हो गई ।
प्रकाशन तिथि : 27 अप्रैल 2020 |
530 |
श्रीरामचरित मानस
(अरण्यकाण्ड) |
3/31/4 |
चौपाई / छंद / दोहा -
सो मम लोचन गोचर आगें । राखौं देह नाथ केहि खाँगेँ ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री जटायुजी का प्रभु श्री रामजी को संबोधन बहुत मार्मिक है । वे प्रभु से बोले कि प्रभु जन्म-मृत्यु के भय का नाश करने वाले हैं । प्रभु श्री रामजी ने उनसे कहा कि अगर वे चाहे तो प्रभु की कृपा से वे अपने शरीर को रख सकते हैं । पर श्री जटायुजी ने प्रभु से कहा कि उनके नेत्रों के सामने साक्षात प्रभु खड़े हैं इसलिए प्राण छोड़ने का इससे बढ़िया मौका जीवन में कभी भी उपस्थित नहीं होगा । मरते समय जिन प्रभु का नाम भी मुख पर आ जाए तो महापापी भी मुक्त हो जाता है वे प्रभु साक्षात मृत्यु बेला पर सामने दर्शन दे रहे हो तो ऐसा दुर्लभ अवसर कभी नहीं चूकना चाहिए ।
प्रकाशन तिथि : 27 अप्रैल 2020 |
531 |
श्रीरामचरित मानस
(अरण्यकाण्ड) |
3/32/छंद 4 |
चौपाई / छंद / दोहा -
सो राम रमा निवास संतत दास बस त्रिभुवन धनी । मम उर बसउ सो समन संसृति जासु कीरति पावनी ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री जटायुजी को जब प्रभु ने अपना धाम दे दिया तो गिद्ध शरीर छोड़कर वे दिव्य स्वरूप में उपस्थित होकर प्रभु की स्तुति करने लगे । वे प्रभु से बोले कि प्रभु तीनों लोकों के स्वामी होने पर भी अपने दासों के वश में रहते हैं । प्रभु की पवित्र कीर्ति का गुणगान आवागमन को मिटाने वाला होता है । उन्होंने कहा कि प्रभु सदैव उनके हृदय में निवास करें ।
प्रकाशन तिथि : 27 अप्रैल 2020 |
532 |
श्रीरामचरित मानस
(अरण्यकाण्ड) |
3/33/2 |
चौपाई / छंद / दोहा -
सुनहु उमा ते लोग अभागी । हरि तजि होहिं बिषय अनुरागी ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री महादेवजी भगवती पार्वती माता को कहते हैं कि जब श्री जटायुजी ने प्रभु श्री रामजी से भक्ति का वर मांगा तो प्रभु ने एक मांसाहारी अधम पक्षी को भी वह दुर्लभ गति और भक्ति दे दी । अत्यंत कोमल चित्तवाले, दीनदयाल और अकारण कृपा करने वाले प्रभु श्री रामजी ने अपने श्रीहाथों से श्री जटायुजी का दाहकर्म किया । प्रभु श्री महादेवजी कहते हैं कि वे लोग कितने अभागे होंगे जो ऐसे प्रभु को छोड़कर संसार के विषयों में आसक्त हो जाते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 28 अप्रैल 2020 |
533 |
श्रीरामचरित मानस
(अरण्यकाण्ड) |
3/34/4 |
चौपाई / छंद / दोहा -
सबरी परी चरन लपटाई ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - भगवती शबरीजी ने पूरे जीवन प्रभु श्री रामजी का इंतजार किया । गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि जब प्रभु आए तो भगवती शबरीजी प्रभु के श्रीकमलचरणों में लिपट पड़ी । वे प्रेम में मग्न होकर बार-बार प्रभु के श्रीकमलचरणों में अपना सिर नवाती रही ।
प्रकाशन तिथि : 28 अप्रैल 2020 |
534 |
श्रीरामचरित मानस
(अरण्यकाण्ड) |
3/35/2 |
चौपाई / छंद / दोहा -
मानउँ एक भगति कर नाता ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - यह श्री रामचरितमानसजी की एक अमर पंक्ति है जो स्वयं प्रभु ने अपने श्रीवचन के रूप में कही है । जब भगवती शबरीजी ने कहा कि वे अधम हैं, नीच कुल की हैं, मंदबुद्धि हैं तो प्रभु श्री रामजी ने सब ऊँच-नीच, जाति-पाति, धर्म-संप्रदाय की बात काटते हुए वह अमर वाक्य कह दिया जिससे भक्ति की प्रतिष्ठा जग जाहिर हो गई । प्रभु कहते हैं कि वे कोई दूसरा नाता नहीं मानते, वे केवल, केवल और केवल भक्ति का ही एक नाता मानते हैं । भक्ति करने वाला कोई भी हो, अगर वह प्रभु की भक्ति करता है तो प्रभु उसके हो जाते हैं । प्रभु जाति-पाति, कुल, धर्म, धन, बल, कुटुंब, गुण कुछ भी नहीं देखते, केवल भक्ति ही देखते हैं । भक्ति रहित मनुष्य को प्रभु वैसा शोभाहीन मानते हैं जैसे जलहीन बादल वर्षा ऋतु में बिना शोभा के होते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 28 अप्रैल 2020 |
535 |
श्रीरामचरित मानस
(अरण्यकाण्ड) |
3/35/4 |
चौपाई / छंद / दोहा -
दूसरि रति मम कथा प्रसंगा ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री रामजी नवधा भक्ति का प्रतिपादन करते हुए कहते हैं कि प्रभु की कथा और श्रीलीलाओं के प्रसंग में प्रेम होना भक्ति का लक्षण है । भक्त प्रभु की कथा और श्रीलीलाओं को सुनकर कभी भी तृप्त नहीं होता और ऐसा करने का नित्य अभ्यास जीवन में बनाकर रखता है ।
प्रकाशन तिथि : 29 अप्रैल 2020 |
536 |
श्रीरामचरित मानस
(अरण्यकाण्ड) |
3/35/दोहा |
चौपाई / छंद / दोहा -
चौथि भगति मम गुन गन करइ कपट तजि गान ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री रामजी नवधा भक्ति के अंतर्गत प्रभु के गुण समूहों का गान करने को एक प्रकार की भक्ति बताते हैं । प्रभु के सद्गुणों का गुणगान करना सभी भक्तों की प्रिय भक्ति रही है । प्रभु के सद्गुणों का गुणगान करने से हमारे पाप कटते हैं और हमारा कल्याण और मंगल होता है ।
प्रकाशन तिथि : 29 अप्रैल 2020 |
537 |
श्रीरामचरित मानस
(अरण्यकाण्ड) |
3/36/1 |
चौपाई / छंद / दोहा -
मंत्र जाप मम दृढ़ बिस्वासा । पंचम भजन सो बेद प्रकासा ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु कहते हैं कि प्रभु के नाम का मंत्र रूप में जप करना और प्रभु में सदैव दृढ़ विश्वास रखना नवधा भक्ति में एक प्रकार की श्रेष्ठ भक्ति है । कलियुग में तो नाम जप का विशेष महत्व है क्योंकि कलियुग का यह एक प्रधान साधन है । प्रभु कहते हैं कि जीव को अपने हृदय में प्रभु का परम भरोसा और परम विश्वास होना चाहिए ।
प्रकाशन तिथि : 29 अप्रैल 2020 |
538 |
श्रीरामचरित मानस
(अरण्यकाण्ड) |
3/36/दोहा |
चौपाई / छंद / दोहा -
महामंद मन सुख चहसि ऐसे प्रभुहि बिसारि ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - भगवती शबरीजी को प्रभु श्री रामजी ने अपने दुर्लभ लोक में भेजा जहाँ से फिर कभी लौटना नहीं पड़ता । गोस्वामी श्री तुलसीदासजी जीवों का आह्वान करते हुए कहते हैं कि ऐसे दयालु और कृपालु प्रभु के श्रीकमलचरणों से प्रेम करना चाहिए और अपने महा दुर्बुद्धि मन को समझाना चाहिए कि ऐसे प्रभु को छोड़कर कहीं भी ब्रह्मांड में सुख नहीं है ।
प्रकाशन तिथि : 30 अप्रैल 2020 |
539 |
श्रीरामचरित मानस
(अरण्यकाण्ड) |
3/39/2 |
चौपाई / छंद / दोहा -
क्रोध मनोज लोभ मद माया । छूटहिं सकल राम कीं दाया ॥ सो नर इंद्रजाल नहिं भूला । जा पर होइ सो नट अनुकूला ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री महादेवजी भगवती पार्वती माता से कहते हैं कि प्रभु श्री रामजी चराचर जगत के स्वामी और सबके अंतःकरण की बात को जानने वाले हैं । प्रभु श्री रामजी की दया से काम, क्रोध, मद, लोभ और माया छूट जाती है । प्रभु जिस पर प्रसन्न होते हैं उस पर प्रभु की माया कभी नहीं व्याप्ती ।
प्रकाशन तिथि : 30 अप्रैल 2020 |
540 |
श्रीरामचरित मानस
(अरण्यकाण्ड) |
3/39/3 |
चौपाई / छंद / दोहा -
उमा कहउँ मैं अनुभव अपना । सत हरि भजनु जगत सब सपना ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - यह श्री रामचरितमानसजी की एक अमर चौपाई है । इसमें देवों के देव प्रभु श्री महादेवजी ने अपना स्वयं का अनुभव जगजननी भगवती पार्वती माता को बताया है । प्रभु श्री महादेवजी से बड़ा वैष्णव और भजनानंदी जगत में कोई नहीं है । वे प्रभु श्री महादेवजी अपना व्यक्तिगत अनुभव कहते हैं कि जगत में श्रीहरि का भजन ही एकमात्र सत्य है बाकी सारा माया से बना जगत स्वप्न की भांति मिथ्या है ।
प्रकाशन तिथि : 30 अप्रैल 2020 |