क्रम संख्या |
श्रीग्रंथ |
संख्या |
भाव के दर्शन / प्रेरणापुंज |
421 |
श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड) |
2/210/3 |
चौपाई / छंद / दोहा -
तेहि फल कर फलु दरस तुम्हारा । सहित पयाग सुभाग हमारा ॥ भरत धन्य तुम्ह जसु जगु जयऊ । कहि अस पेम मगन पुनि भयऊ ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - भक्त को प्रभु अपने से भी ज्यादा कितना मान दिलाते हैं यह यहाँ पर देखने को मिलता है । मुनि श्री भरद्वाजजी श्री भरतलालजी से कहते हैं कि उनके साधन और पुण्यों का फल था कि उन्हें प्रभु श्री सीतारामजी ने उनके आश्रम पधारकर दर्शन दिए । फिर मुनि श्री भरद्वाजजी ने कितनी बड़ी बात कह दी कि प्रभु श्री सीतारामजी के दर्शन का परम फल यह है कि उन्हें अब प्रभु के अत्यंत प्रिय श्री भरतलालजी के दर्शन हो रहे हैं । मुनि श्री भरद्वाजजी ने कहा कि श्री भरतलालजी धन्य हैं जिन्होंने अपने प्रभु प्रेम द्वारा अर्जित यश से पूरे जगत को जीत लिया है ।
प्रकाशन तिथि : 22 मार्च 2020 |
422 |
श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड) |
2/212/4 |
चौपाई / छंद / दोहा -
सब दुखु मिटहि राम पग देखी ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी मुनि श्री भरद्वाजजी के मुख से एक अकाट्य सिद्धांत का प्रतिपादन कराते हैं । मुनि श्री भरद्वाजजी श्री भरतलालजी से कहते हैं कि प्रभु श्री रामजी के श्रीकमलचरणों के दर्शन करने पर जीव के सारे दुःख मिट जाते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 22 मार्च 2020 |
423 |
श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड) |
2/214/1 |
चौपाई / छंद / दोहा -
कहहिं परसपर सिधि समुदाई । अतुलित अतिथि राम लघु भाई ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - मुनि श्री भरद्वाजजी ने भगवती रिद्धि और भगवती सिद्धि माताओं का आह्वान किया कि वे आकर श्री भरतलालजी और श्री अयोध्यावासियों का सत्कार करके उनकी यात्रा के श्रम को दूर करें । भगवती रिद्धि और भगवती सिद्धि माताएं अति प्रसन्न होकर आयी और उन्होंने कहा कि श्री भरतलालजी के रूप में उनके समक्ष ऐसे अतिथि हैं जिनकी तुलना में अन्य कोई नहीं आ सकता । सिद्धांत यह है कि प्रभु के भक्त का मान सर्वत्र होता है ।
प्रकाशन तिथि : 22 मार्च 2020 |
424 |
श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड) |
2/216/दोहा |
चौपाई / छंद / दोहा -
किएँ जाहिं छाया जलद सुखद बहइ बर बात । तस मगु भयउ न राम कहँ जस भा भरतहि जात ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री भरतलालजी के श्रीराम प्रेम को देखकर देवतागण आकाश से उन पर फूल बरसाने लगे । भगवती पृथ्वी माता उनके लिए कोमल हो गई । बादल आकाश में आकर श्री भरतलालजी पर छाया करने लगे और उन्हें सुख देने वाली सुंदर शीतल वायु बहने लगी । प्रभु श्री रामजी अपने प्रेमी पर इतने अनुकूल होते हैं कि उसका अपने से भी बहुत ज्यादा ख्याल रखते हैं । यही कारण था कि श्री भरतलालजी के लिए मार्ग जैसा सुखदायक हुआ वैसा प्रभु के लिए भी नहीं हुआ । प्रभु अपने भक्त को अपने से भी कहीं ज्यादा प्रकृति से मान दिलाते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 23 मार्च 2020 |
425 |
श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड) |
2/217/1 |
चौपाई / छंद / दोहा -
ते सब भए परम पद जोगू । भरत दरस मेटा भव रोगू ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी प्रभु प्रेमी की महिमा बताते हुए कहते हैं कि रास्ते में असंख्य जड़ और चेतन जीव प्रभु श्री रामजी के दर्शन से परमपद के अधिकारी बन गए । पर प्रभु अपने भक्त की इतनी महिमा स्थापित करते हैं कि स्वयं के दर्शन से परमपद का अधिकारी बनाया और परमपद प्रदान अपने प्रेमी भक्त श्री भरतलालजी के दर्शन से करवाया । गोस्वामीजी कहते हैं कि प्रभु श्री रामजी के दर्शन से भी बड़ा लाभ प्रभु के प्रेमी भक्त श्री भरतलालजी के दर्शन से प्रभु ने करवाया । इतना मान प्रभु अपने प्रेमी भक्त को देते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 23 मार्च 2020 |
426 |
श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड) |
2/217/2 |
चौपाई / छंद / दोहा -
बारक राम कहत जग जेऊ । होत तरन तारन नर तेऊ ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी एक बहुत बड़े सिद्धांत का प्रतिपादन इस दोहे में करते हैं । वे कहते हैं कि जगत में जो भी प्रभु की भक्ति कर लेता है वह प्रभु के नाम से तरने वाला तो बन ही जाता है, साथ में दूसरे जीवों को तारने वाला भी बन जाता है । प्रभु के नाम ने और प्रभु के भक्तों ने जगत में कितनों को तारा है इसकी गिनती करना तो दूर, इसकी गिनती करने की कल्पना भी हम नहीं कर सकते ।
प्रकाशन तिथि : 23 मार्च 2020 |
427 |
श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड) |
2/218/3 |
चौपाई / छंद / दोहा -
जो अपराधु भगत कर करई । राम रोष पावक सो जरई ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - देवगुरु श्री बृहस्पतिजी ने देवराज श्री इंद्रदेवजी को एक सत्य सिद्धांत बताया कि प्रभु अपने प्रति किए अपराध को सहन कर लेते हैं पर कोई उनके भक्त का अपराध करता है तो प्रभु उसे एकदम सहन नहीं करते । कोई प्रभु के भक्त का अहित करना चाहता है तो वह अहित उलटकर उसके खुद के ऊपर आ जाता है ।
प्रकाशन तिथि : 24 मार्च 2020 |
428 |
श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड) |
2/219/1 |
चौपाई / छंद / दोहा -
सुनु सुरेस उपदेसु हमारा । रामहि सेवकु परम पिआरा ॥ मानत सुखु सेवक सेवकाई । सेवक बैर बैरु अधिकाई ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - देवगुरु श्री बृहस्पतिजी देवराज श्री इंद्रदेवजी को कहते हैं कि प्रभु को अपने सेवक सबसे अधिक प्रिय होते हैं । प्रभु अपने सेवक की सेवा में अपनी सेवा मानते हैं और अपने सेवक के साथ किए वैर को अपने साथ किया वैर मानते हैं । इसलिए यदि कोई प्रभु के सेवक का कुछ बिगाड़ना भी चाहता है उसको इस लोक में अपयश और परलोक में दुःख मिलता है और उसके जीवन में इस अपराध के कारण दिनोंदिन शोक बढ़ता ही चला जाता है ।
प्रकाशन तिथि : 24 मार्च 2020 |
429 |
श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड) |
2/219/4 |
चौपाई / छंद / दोहा -
राम सदा सेवक रुचि राखी । बेद पुरान साधु सुर साखी ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - देवगुरु श्री बृहस्पतिजी देवराज श्री इंद्रदेवजी से कहते हैं कि प्रभु सदा से ही अपने सेवकों और भक्तों की रुचि रखते आए हैं । प्रभु कभी उनकी रुचि के विपरीत कुछ नहीं करते । श्री वेदजी और श्रीपुराण इसके साक्षी है कि प्रभु ने अपनी रुचि को अपने भक्तों की रुचि से मिलाकर और जोड़कर ही कुछ किया है ।
प्रकाशन तिथि : 24 मार्च 2020 |
430 |
श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड) |
2/219/दोहा |
चौपाई / छंद / दोहा -
राम भगत परहित निरत पर दुख दुखी दयाल ।
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - देवगुरु श्री बृहस्पतिजी देवराज श्री इंद्रदेवजी को प्रभु भक्तों की महिमा बताते हैं । प्रभु के भक्त सदा दूसरों को प्रभु की भक्ति से जोड़कर उनका हित करने में लगे रहते हैं । वे जीव मात्र के लिए प्रभु की तरह दयालु हृदय के होते हैं और प्रभु से जोड़कर सबका मंगल और कल्याण करने की चेष्टा करते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 25 मार्च 2020 |
431 |
श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड) |
2/221/4 |
चौपाई / छंद / दोहा -
जहँ जहँ राम बास बिश्रामा । तहँ तहँ करहिं सप्रेम प्रनामा ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री भरतलालजी और श्री अयोध्यावासी जब प्रभु श्री रामजी से मिलने चलते तो प्रभु का स्मरण निरंतर करते जाते । जहाँ-जहाँ प्रभु श्री रामजी ने रात्रि निवास या विश्राम किया जब निषादराज गुहजी वे स्थान दिखाते तो सभी प्रेम सहित उस जगह को प्रणाम करते । तात्पर्य यह है कि प्रभु का सानिध्य जिसने भी पा लिया वह पूज्य हो जाता है ।
प्रकाशन तिथि : 25 मार्च 2020 |
432 |
श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड) |
2/223/2 |
चौपाई / छंद / दोहा -
हम सब सानुज भरतहि देखें । भइन्ह धन्य जुबती जन लेखें ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जिस मार्ग से श्री भरतलालजी चलते वहाँ रहने वाले स्त्री-पुरुष श्री भरतलालजी की प्रभु भक्ति और आचरण देखकर कहते कि श्री भरतलालजी का दर्शन उनके दुःख और दोष को हरने वाला है । वे अपने हृदय में मानते कि आज श्री भरतलालजी के दर्शन से वे भी धन्य हो गए और बड़भागी की गिनती में आ गए । प्रभु के भक्त की इतनी बड़ी महिमा प्रभु जगत में स्थापित करवाते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 25 मार्च 2020 |
433 |
श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड) |
2/227/दोहा |
चौपाई / छंद / दोहा -
नाथ सुह्रद सुठि सरल चित सील सनेह निधान ॥ सब पर प्रीति प्रतीति जियँ जानिअ आपु समान ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री लक्ष्मणजी प्रभु श्री रामजी से कहते हैं कि प्रभु बिना ही कारण जीव पर अहेतु की कृपा करने वाले हैं । प्रभु सरल हृदय के हैं और जीव का परम हित करने वाले हैं । प्रभु स्नेह के भंडार हैं और सभी से प्रेम करते हैं । प्रभु सबका विश्वास करने वाले और अपने हृदय में सबको अच्छा मानने वाले हैं ।
प्रकाशन तिथि : 26 मार्च 2020 |
434 |
श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड) |
2/231/4 |
चौपाई / छंद / दोहा -
सुनहु लखन भल भरत सरीसा । बिधि प्रपंच महँ सुना न दीसा ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री भरतलालजी का प्रभु श्री रामजी के प्रति प्रेम का आकलन करते हुए बिना श्री भरतलालजी से मिले ही प्रभु श्री रामजी ने श्री लक्ष्मणजी के समक्ष उन्हें कितना बड़ा प्रमाण पत्र दे दिया । प्रभु श्री रामजी ने कहा कि श्री भरतलालजी सरीखा उत्तम पुरुष प्रभु श्री ब्रह्माजी द्वारा बनाई पूरी सृष्टि में न तो कहीं सुना गया है और न ही कहीं देखा गया है । इससे बड़ा अभिनंदन श्री भरतलालजी के प्रभु प्रेम का क्या हो सकता है ?
प्रकाशन तिथि : 26 मार्च 2020 |
435 |
श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड) |
2/231/दोहा |
चौपाई / छंद / दोहा -
भरतहि होइ न राजमदु बिधि हरि हर पद पाइ ॥ कबहुँ कि काँजी सीकरनि छीरसिंधु बिनसाइ ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब श्री लक्ष्मणजी ने यह कहा कि राज्य का मद सबसे कठिन मद है तो प्रभु श्री रामजी ने श्री भरतलालजी के बचाव में जो कहा वह ध्यान देने योग्य है । प्रभु ने कहा कि श्री अयोध्याजी के राज्य की बात ही क्या है अगर श्री त्रिदेवजी श्री भरतलालजी को त्रिलोकी का राज्य भी दे दें तो भी उन्हें राज्य मद नहीं हो सकता । प्रभु ने उपमा देते हुए कहा कि क्या खटाई की कुछ बूंदों से क्षीरसागर फट सकता है । जैसे यह कतई संभव नहीं वैसे ही श्री भरतलालजी को राज्य मद हो यह कतई संभव नहीं है ।
प्रकाशन तिथि : 26 मार्च 2020 |
436 |
श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड) |
2/232/4 |
चौपाई / छंद / दोहा -
कहत भरत गुन सीलु सुभाऊ । पेम पयोधि मगन रघुराऊ ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री भरतलालजी से श्री चित्रकूटजी में मिलन से पहले ही प्रभु श्री रामजी श्री भरतलालजी के गुण, शील और स्वभाव को कहते-कहते प्रेम के सागर में मग्न हो गए । प्रभु इतनी कृपा और दया की दृष्टि अपने भक्त पर रखते हैं जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते । श्री भरतलालजी के लिए प्रभु की वाणी सुनकर और उन पर प्रभु का प्रेम देखकर देवतागण भी श्री भरतलालजी के भाग्य की सराहना करने लगे ।
प्रकाशन तिथि : 27 मार्च 2020 |
437 |
श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड) |
2/234/1 |
चौपाई / छंद / दोहा -
मोरें सरन रामहि की पनही । राम सुस्वामि दोसु सब जनही ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री भरतलालजी श्री चित्रकूटजी में प्रभु श्री रामजी से मिलने के पूर्व विचार करने लगे कि क्या प्रभु उनके मिलने पर उन्हें त्याग देंगे या सेवक मानकर उन्हें अपना लेंगे । श्री भरतलालजी सोचने लगे कि प्रभु श्री रामजी तो अच्छे से भी अच्छे स्वामी है पर दोष तो उनके दास श्री भरतलालजी का ही है । फिर जो श्री भरतलालजी ने सोचा वह अदभुत है । श्री भरतलालजी अपने मन में विचार करते हैं कि वे प्रभु श्री रामजी के श्रीकमलचरणों की शरण के लायक तो शायद नहीं हैं पर प्रभु श्री रामजी के श्रीकमलचरणों की पादुका की ही शरण उन्हें मिल जाए तो भी उनका कल्याण हो जाएगा ।
प्रकाशन तिथि : 27 मार्च 2020 |
438 |
श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड) |
2/234/3 |
चौपाई / छंद / दोहा -
चलत भगति बल धीरज धोरी ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री चित्रकूटजी में प्रभु श्री रामजी की पर्णकुटी के तरफ बढ़ते श्री भरतलालजी के कदम को मानो वे अपने स्वयं की बुराई याद कर पीछे कर लेते पर उन कदमों को आगे बढ़ने का बल श्री भरतलालजी की प्रभु भक्ति देती । भक्ति के बल पर ही उनके कदम जल्दी-जल्दी प्रभु की तरफ बढ़ने लगते । तात्पर्य यह है कि विपरीत-से-विपरीत परिस्थिति में भी भक्ति का इतना बड़ा सामर्थ्य होता है कि भक्ति के बल से जीव प्रभु तक पहुँच जाता है ।
प्रकाशन तिथि : 27 मार्च 2020 |
439 |
श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड) |
2/238/2 |
चौपाई / छंद / दोहा -
हरषहिं निरखि राम पद अंका । मानहुँ पारसु पायउ रंका ॥ रज सिर धरि हियँ नयनन्हि लावहिं । रघुबर मिलन सरिस सुख पावहिं ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री रामजी के श्री चित्रकूटजी में पर्णकुटी के समीप जैसे ही श्री भरतलालजी और श्री शत्रुघ्नजी पहुँचे प्रभु श्री रामजी के श्रीकमलचरणों के श्रीचिह्न देखकर दोनों भाई ऐसे हर्षित हुए मानो दरिद्र ने पारस पा लिया हो । वे वहाँ की श्रीरज को अपने मस्तक, अपने हृदय और अपनी आँखों में लगाकर आनंदित होते और अति सुख पाते । दोनों भाइयों की प्रेम में ऐसी दशा को देखकर वन के पशु, पक्षी और वृक्ष भी प्रेम में मग्न हो जाते ।
प्रकाशन तिथि : 28 मार्च 2020 |
440 |
श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड) |
2/238/4 |
चौपाई / छंद / दोहा -
होत न भूतल भाउ भरत को । अचर सचर चर अचर करत को ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - भक्ति की कितनी बड़ी बढ़ाई यहाँ पर गोस्वामी श्री तुलसीदासजी ने की है । वे कहते हैं कि श्री भरतलालजी की प्रेमाभक्ति को देखकर सिद्धजन और साधक उनकी भूरि-भूरि प्रशंसा करने लगे । वे कहने लगे कि अगर श्री भरतलालजी का जन्म न होता तो प्रभु प्रेम से जड़ को चेतन और चेतन को प्रभु प्रेम से जड़ कौन करता ।
प्रकाशन तिथि : 28 मार्च 2020 |
441 |
श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड) |
2/239/4 |
चौपाई / छंद / दोहा -
जिय की जरनि हरत हँसि हेरत ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि प्रभु श्री रामजी प्रसन्न होकर हंसकर जिसको भी एक बार देख लेते हैं उसके जीवन की जलन ही मिट जाती है । तात्पर्य यह है कि प्रभु जिसको भी प्रसन्न होकर हंसकर एक बार देख लेते हैं उसे परम आनंद और परम शांति मिल जाती है ।
प्रकाशन तिथि : 28 मार्च 2020 |
442 |
श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड) |
2/240/4 |
चौपाई / छंद / दोहा -
उठे रामु सुनि पेम अधीरा । कहुँ पट कहुँ निषंग धनु तीरा ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब श्री भरतलालजी प्रभु श्री रामजी को देखते ही रक्षा करें, रक्षा करें यह कहकर भूमि पर दण्ड की तरह गिर पड़े तो प्रभु उनके वचन सुनते ही प्रेम से अधीर हो उठे । प्रभु प्रेम में इतने अधीर होकर श्री भरतलालजी से मिलने के लिए दौड़े कि उनके उपवस्त्र, तरकश, धनुष, बाण सब गिर गए । संत भाव देते हैं कि जिन तरकश, धनुष, बाण ने श्री रामावतार में प्रभु का साथ कभी नहीं छोड़ा श्री भरतलालजी का प्रभु प्रेम देखकर वे भी उन्हें स्थान देने के लिए अलग हो गए जिससे प्रभु अपने प्रेमी भक्त का आलिंगन कर सके ।
प्रकाशन तिथि : 29 मार्च 2020 |
443 |
श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड) |
2/240/दोहा |
चौपाई / छंद / दोहा -
बरबस लिए उठाइ उर लाए कृपानिधान ।
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु का प्रेमी और प्रभु का भक्त अपना स्थान प्रभु के श्रीकमलचरणों में मानता है जबकि प्रभु ऐसे प्रेमी और भक्त को अपने हृदय में स्थान देते हैं । यहाँ पर कृपानिधान प्रभु श्री रामजी ने अपने श्रीकमलचरणों में गिरे श्री भरतलालजी को जबरदस्ती उठाकर अपने हृदय से लगाया जबकि श्री भरतलालजी प्रभु श्री रामजी के श्रीकमलचरणों से उठना ही नहीं चाहते थे । भक्त और भगवान का ऐसा प्रेम और ऐसा मिलन देखकर सब अपनी सुध-बुध भूल गए ।
प्रकाशन तिथि : 29 मार्च 2020 |
444 |
श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड) |
2/242/2 |
चौपाई / छंद / दोहा -
सानुज भरत उमगि अनुरागा । धरि सिर सिय पद पदुम परागा ॥ पुनि पुनि करत प्रनाम उठाए । सिर कर कमल परसि बैठाए ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री रामजी से मिलने के बाद श्री भरतलालजी और श्री शत्रुघ्नजी अपनी माता तुल्य भाभीमाँ भगवती सीता माता के श्रीकमलचरणों में गिर गए और वहाँ की रज को अपने मस्तक पर लगाकर माता को बार-बार प्रणाम करने लगे । भगवती सीता माता ने भी उन दोनों के मस्तक पर अपने श्रीकरकमल का स्पर्श कर उन्हें हृदय से आशीर्वाद दिया ।
प्रकाशन तिथि : 29 मार्च 2020 |
445 |
श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड) |
2/243/दोहा |
चौपाई / छंद / दोहा -
सो सीतापति भजन को प्रगट प्रताप प्रभाउ ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - निषादराज गुहजी की जाति का तनिक भी विचार न करते हुए और उन्हें प्रभु श्री रामजी का सखा मानते हुए सभी उनसे अति आनंदित होकर मिले । देवतागण निषादराज गुहजी के भाग्य की सराहना करते हुए आकाश से फूल बरसाने लगे और कहने लगे कि प्रभु श्री सीतारामजी के भजन के प्रत्यक्ष प्रताप और प्रभाव के कारण ही उन्हें इतना दुर्लभ सम्मान मिल रहा है । प्रभु का भक्त सबके लिए वंदनीय और आदरणीय बन जाता है ।
प्रकाशन तिथि : 30 मार्च 2020 |
446 |
श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड) |
2/244/4 |
चौपाई / छंद / दोहा -
प्रथम राम भेंटी कैकेई ।
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री रामजी का आदर्श और दीनता देखें कि अपने को वनवास में भेजने वाली भगवती कैकेयी माता से वे सबसे पहले मिले और उनको दंडवत प्रणाम किया । प्रभु अपनी माता भगवती कौशल्या माता और भगवती सुमित्रा माता से भगवती कैकेयी माता से मिलने के बाद मिले । इतना प्रतिकूल व्यवहार करने पर भी प्रभु के हृदय में भगवती कैकेयी माता के लिए कितना आदर और सम्मान है यह इस प्रसंग से देखने को मिलता है ।
प्रकाशन तिथि : 30 मार्च 2020 |
447 |
श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड) |
2/248/दोहा |
चौपाई / छंद / दोहा -
धर्म सेतु करुनायतन कस न कहहु अस राम ।
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गुरुदेव ऋषि श्री वशिष्ठजी ने अपनी बात शुरू करने से पहले प्रभु श्री रामजी को जो संबोधन से संबोधित किया वह बहुत हृदयस्पर्शी है । उन्होंने प्रभु को धर्म का सेतु अर्थात पूरी तरह से धर्म को पालन करने वाला बताया । उन्होंने प्रभु को दूसरा संबोधन दया के धाम का दिया अर्थात प्रभु जितनी दया और करुणा करते हैं उतनी कहीं भी देखने में भी नहीं मिलता और कहीं सुनने में भी नहीं आता ।
प्रकाशन तिथि : 30 मार्च 2020 |
448 |
श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड) |
2/250/2 |
चौपाई / छंद / दोहा -
देहिं लोग बहु मोल न लेहीं । फेरत राम दोहाई देहीं ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री चित्रकूटजी के आसपास निवास करने वाले कोल, किरात और भील वहाँ पर श्री अयोध्यावासियों को नाना प्रकार के कंद, मूल और फल आदि लाकर उन्हें देकर उनकी सेवा करते । प्रभु के प्रिय श्री अयोध्यावासियों की सेवा को वे प्रभु की अप्रत्यक्ष सेवा मानते । जब श्री अयोध्यावासी उनको उन चीजों का मोल देना चाहते तो वे प्रभु श्री रामजी की दुहाई देकर मना कर देते ।
प्रकाशन तिथि : 31 मार्च 2020 |
449 |
श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड) |
2/251/4 |
चौपाई / छंद / दोहा -
जब तें प्रभु पद पदुम निहारे । मिटे दुसह दुख दोष हमारे ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री चित्रकूटजी के आसपास निवास करने वाले कोल, किरात और भील श्री अयोध्यावासियों से कहते कि प्रभु श्री रामजी के आगमन के पूर्व उनके दिन और रात पाप कर्मों में ही बीतते थे । स्वप्न में भी उनमें धर्मबुद्धि नहीं थी । पर प्रभु श्री रामजी के सानिध्य का प्रभाव है कि जबसे उन्होंने प्रभु के श्रीकमलचरणों का दर्शन किया है उनके सभी पाप, दुःख और दोष मिट गए हैं । उनके वचन सुनकर श्री अयोध्यावासी प्रेम से भरकर प्रभु की कृपा पाने के कारण उनके भाग्य की सराहना करते ।
प्रकाशन तिथि : 31 मार्च 2020 |
450 |
श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड) |
2/252/4 |
चौपाई / छंद / दोहा -
राम बिमुख थलु नरक न लहहीं ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी एक अकाट्य सिद्धांत का प्रतिपादन करते हुए कहते हैं कि जो प्रभु से विमुख है उस जीव को नर्क में भी ठौर नहीं मिलती । कहने का तात्पर्य यह है कि प्रभु से विमुख होना इतना बड़ा अपराध है जिसके लिए नर्क भी छोटा पड़ जाता है ।
प्रकाशन तिथि : 31 मार्च 2020 |
451 |
श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड) |
2/254/4 |
चौपाई / छंद / दोहा -
राम रजाइ सीस सबही कें ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गुरुदेव ऋषि श्री वशिष्ठजी दो सिद्धांत यहाँ पर कहते हैं । वे कहते हैं कि माया, जीव, कर्म, काल सभी के मस्तक पर प्रभु श्री रामजी की आज्ञा होती है । कहने का तात्पर्य यह है कि कोई भी स्वतंत्र नहीं है और सभी प्रभु की आज्ञा के अधीन हैं । सबको प्रभु की आज्ञा का अनुपालन करना होता है । दूसरा सिद्धांत यह है कि प्रभु की आज्ञा पालन करने में और प्रभु का रुख रखने में ही सबका हित होता है ।
प्रकाशन तिथि : 01 अप्रैल 2020 |
452 |
श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड) |
2/256/1 |
चौपाई / छंद / दोहा -
राम बिमुख सिधि सपनेहुँ नाहीं ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गुरुदेव ऋषि श्री वशिष्ठजी कहते हैं कि प्रभु के विमुख जो होता है उसे असल जीवन में तो क्या, स्वप्न में भी कभी सुख और अनुकूलता नहीं मिलती । यह सिद्धांत है कि जगत में प्रभु के सन्मुख जीव ही सुख और अनुकूलता पाता है । इसलिए जीवन में कभी भी, किसी भी परिस्थिति में प्रभु से विमुख नहीं होना चाहिए ।
प्रकाशन तिथि : 01 अप्रैल 2020 |
453 |
श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड) |
2/256/4 |
चौपाई / छंद / दोहा -
कानन करउँ जनम भरि बासू । एहिं तें अधिक न मोर सुपासू ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री भरतलालजी और श्री शत्रुघ्नजी का प्रभु श्री रामजी के प्रति प्रेम और समर्पण यहाँ पर देखने को मिलता है । जब ऋषि श्री वशिष्ठजी ने एक विकल्प के रूप में यह कहा कि श्री भरतलालजी और श्री शत्रुघ्नजी वन में रहे अगर प्रभु श्री रामजी श्री अयोध्याजी लौट आए तो श्री भरतलालजी और श्री शत्रुघ्नजी आनंद से भर गए । वे कहने लगे कि चौदह वर्ष की अवधि तो क्या, वे जन्म भर के लिए वन में वास करने को तैयार हैं अगर प्रभु श्री रामजी श्री अयोध्याजी लौट आए । उन्होंने कहा कि इससे बढ़कर उनके लिए और कोई सुख हो ही नहीं सकता कि वे वनवास में रहे और प्रभु श्री रामजी श्री अयोध्याजी के राजा बनकर राज्य करें ।
प्रकाशन तिथि : 01 अप्रैल 2020 |
454 |
श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड) |
2/257/दोहा |
चौपाई / छंद / दोहा -
सब के उर अंतर बसहु जानहु भाउ कुभाउ ।
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गुरुदेव ऋषि श्री वशिष्ठजी प्रभु श्री रामजी को संबोधन करते हुए कहते हैं हैं कि प्रभु धर्म, नीति, गुण और ज्ञान के भंडार हैं । प्रभु सबके हृदय के भीतर निवास करते हैं । प्रभु सबके मन के भले और बुरे भावों को जानने वाले अंतर्यामी हैं ।
प्रकाशन तिथि : 02 अप्रैल 2020 |
455 |
श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड) |
2/260/दोहा |
चौपाई / छंद / दोहा -
दरसन तृपित न आजु लगि पेम पिआसे नैन ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री भरतलालजी प्रभु श्री रामजी से कहते हैं कि प्रभु के प्रेम के प्यासे उनके नेत्र आज तक कितना भी प्रभु के दर्शन करने पर भी कभी तृप्त नहीं हुए । यह प्रेमी भक्त की निशानी होती है कि उसके नेत्र कभी भी प्रभु दर्शन से तृप्त नहीं होते और प्रभु दर्शन की निरंतर अभिलाषा उसके हृदय में बनी रहती है ।
प्रकाशन तिथि : 02 अप्रैल 2020 |
456 |
श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड) |
2/265/2 |
चौपाई / छंद / दोहा -
रघुपति भगत भगति बस अहहीं ।
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - एक अकाट्य सिद्धांत का प्रतिपादन यहाँ पर इस दोहे में हुआ है । प्रभु श्री रामजी अपने भक्त की भक्ति के वश में सदा रहते हैं । प्रभु श्री रामजी अपने भक्त की भक्ति के अधीन रहने में अत्यंत आनंद और हर्ष का अनुभव करते हैं । श्री वेदजी और शास्त्र जिन प्रभु को परम स्वतंत्र कहते हैं वे प्रभु भी अपने प्रिय भक्त की भक्ति के कारण स्वयं को स्वतंत्र न मानकर अपने को भक्त की भक्ति के अधीन मानते हैं । यह भक्ति का कितना बड़ा गौरव और कितनी बड़ी उपलब्धि है ।
प्रकाशन तिथि : 02 अप्रैल 2020 |
457 |
श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड) |
2/265/4 |
चौपाई / छंद / दोहा -
मानत रामु सुसेवक सेवा ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री रामजी अपने श्रेष्ठ सेवकों की सेवा को अपनी सेवा मानते हैं । तात्पर्य है कि प्रभु के भक्त की अगर कोई सेवा करता है तो प्रभु उस पर बेहद प्रसन्न होते हैं क्योंकि प्रभु मानते हैं कि वह प्रभु के भक्त की सेवा करके मानो प्रभु की ही सेवा कर रहा है । प्रभु अपने सेवकों और भक्तों को इतना मान देते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 03 अप्रैल 2020 |
458 |
श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड) |
2/267/3 |
चौपाई / छंद / दोहा -
यह नइ रीति न राउरि होई । लोकहुँ बेद बिदित नहिं गोई ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री भरतलालजी एक बहुत बड़ा सत्य सिद्धांत यहाँ पर निवेदन करते हैं । वे प्रभु श्री रामजी से कहते हैं कि प्रभु शरणागत के रक्षक हैं और प्रभु का प्रण लिया हुआ है कि वे सदा शरणागत की रक्षा के लिए उपलब्ध मिलेंगे । श्री भरतलालजी कहते हैं कि वे कोई नई रीति नहीं बता रहे क्योंकि प्रभु का यह प्रण लोक प्रसिद्ध है, श्री वेदजी में प्रकट हुआ है और किसी से भी छिपा हुआ नहीं है ।
प्रकाशन तिथि : 03 अप्रैल 2020 |
459 |
श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड) |
2/268/2 |
चौपाई / छंद / दोहा -
सेवक हित साहिब सेवकाई । करै सकल सुख लोभ बिहाई ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री भरतलालजी एक बहुत बड़ा सिद्धांत यहाँ पर बताते हैं । वे कहते हैं कि प्रभु के सेवक का सबसे बड़ा हित इस बात में है कि वह समस्त सुखों और लोभों को छोड़कर अपने स्वामी प्रभु की सेवा करे । प्रभु की सेवा में स्वयं को समर्पित करने से बड़ा लाभ और आनंद अन्य कहीं भी नहीं है ।
प्रकाशन तिथि : 03 अप्रैल 2020 |
460 |
श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड) |
2/273/3 |
चौपाई / छंद / दोहा -
राजा रामु जानकी रानी ।
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री चित्रकूटजी में आवास के दौरान सभी अयोध्यावासी प्रथम पूज्य प्रभु श्री गणेशजी, प्रभु श्री महादेवजी, भगवती पार्वती माता, प्रभु श्री विष्णुजी, प्रभु श्री सूर्यनारायणजी से हाथ जोड़कर और आँचल फैलाकर मांगते कि प्रभु श्री रामजी राजा बने और भगवती सीता माता महारानी बने और श्री अयोध्याजी सनाथ हो । वे यहाँ तक मांगते कि जब भी उनकी मृत्यु हो प्रभु श्री रामजी के राजा रहते ही हो और श्री अयोध्याजी में ही हो ।
प्रकाशन तिथि : 04 अप्रैल 2020 |
461 |
श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड) |
2/274/4 |
चौपाई / छंद / दोहा -
कहत राम गुन गन अनुरागे । सब निज भाग सराहन लागे ॥ हम सम पुन्य पुंज जग थोरे । जिन्हहि रामु जानत करि मोरे ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री रामजी शील और सद्गुणों के सागर हैं । वे सब पर अनुकूल रहने वाले, सबको प्रेम और कृपा की दृष्टि से देखने वाले और अत्यंत सरल स्वभाव के हैं । श्री अयोध्यावासी प्रभु श्री रामजी के सद्गुणों के समूह का वर्णन करते-करते प्रेम से भर जाते । वे अपने भाग्य की सराहना करते कि उनके जैसा पुण्य किसका होगा जिन्हें प्रभु श्री रामजी प्रजा के रूप में अपना मानते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 04 अप्रैल 2020 |
462 |
श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड) |
2/279/1 |
चौपाई / छंद / दोहा -
कामद मे गिरि राम प्रसादा ।
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब महाराज श्री जनकजी श्री चित्रकूटजी पहुँचे तो उन्होंने महाराज श्री दशरथजी को याद कर बेहद शोक प्रकट किया । उस दिन सभी अयोध्यावासी और जनकपुरवासी बिना आहार के ही रहे । यहाँ तक कि पशु, पक्षी और हिरनों ने भी शोक में आहार ग्रहण नहीं किया । दूसरे दिन प्रभु श्री रामजी को यह देखकर दुःख हुआ कि सभी आहार रहित हैं तो उन्होंने कृपा दृष्टि से देखा और श्री कामदगिरि पर्वत के वृक्ष मनचाही फल, कंद, मूल देने वाले बन गए ।
प्रकाशन तिथि : 04 अप्रैल 2020 |
463 |
श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड) |
2/280/2 |
चौपाई / छंद / दोहा -
सीता राम संग बनबासू । कोटि अमरपुर सरिस सुपासू ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - सभी अयोध्यावासियों और जनकपुरवासियों को वन में प्रभु श्री सीतारामजी के साथ रहना करोड़ों देवलोक से भी सुखदायक लगता । वे आपस में चर्चा करते कि जिसको प्रभु श्री सीतारामजी का सानिध्य छोड़कर अपने घर की याद आए उसे यही मानना चाहिए कि विधाता उसके विपरीत है । वे कहते हैं कि जब विधाता अनुकूल होते हैं तभी प्रभु श्री सीतारामजी का सानिध्य मिलता है । वे कहते हैं कि अगर प्रभु उन्हें रहने की अनुमति दें तो वे सब आनंद के साथ प्रभु के संग चौदह वर्ष वन में ही बिता देंगे ।
प्रकाशन तिथि : 05 अप्रैल 2020 |
464 |
श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड) |
2/282/3 |
चौपाई / छंद / दोहा -
ईस रजाइ सीस सबही कें ।
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - भगवती कौशल्या माता ने शोक प्रकट करने आई भगवती सुनयना माता से कहा कि ईश्वर की आज्ञा सभी के सिर पर होती है और सभी को उस आज्ञा का अनुपालन करना होता है । सभी जीव प्रभु की आज्ञा के अधीन हैं । प्रभु की आज्ञा सभी के लिए सर्वोपरि है ।
प्रकाशन तिथि : 05 अप्रैल 2020 |
465 |
श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड) |
2/283/3 |
चौपाई / छंद / दोहा -
कसें कनकु मनि पारिखि पाएँ । पुरुष परिखिअहिं समयँ सुभाएँ ।
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु अपने भक्त को सब तरफ से बड़ाई दिलाते हैं । भगवती कौशल्या माता कहती है कि उन्हें अपने पुत्र प्रभु श्री रामजी से भी ज्यादा श्री भरतलालजी की चिंता है । वे कहती हैं कि श्री भरतलालजी में भक्ति, शील, गुण, नम्रता, भाईपन और इतनी अच्छाई है जिसका वर्णन वे नहीं कर सकती । वे कहती हैं कि श्री भरतलालजी उनके कुल के दीपक हैं । वे कहती हैं कि परीक्षा के समय ही सच्चा चरित्र जाना जाता है और इस विपत्ति में श्री भरतलालजी का प्रभु समर्पण का सच्चा चरित्र पूरा जगत देख चुका है ।
प्रकाशन तिथि : 05 अप्रैल 2020 |
466 |
श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड) |
2/287/1 |
चौपाई / छंद / दोहा -
पुत्रि पवित्र किए कुल दोऊ ।
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब महाराज श्री जनकजी श्री चित्रकूटजी में भगवती सीता माता से मिले उन्होंने जो कहा वह बहुत ध्यान देने योग्य है । वे भगवती सीता माता से बोले कि प्रभु श्री रामजी का वनवास में अनुसरण करके और प्रभु के लिए श्री अयोध्याजी के वैभव को त्यागकर माता ने जो आदर्श प्रस्तुत किया है उससे उनके ससुराल और पीहर दोनों कुल पवित्र हो गए । माता का निर्मल यश सारे जगत में फैल गया । उनका यश कीर्तिरूपी नदी के रूप में युगों-युगों तक संत समाज में बहता रहेगा ।
प्रकाशन तिथि : 06 अप्रैल 2020 |
467 |
श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड) |
2/288/2 |
चौपाई / छंद / दोहा -
भरत कथा भव बंध बिमोचनि ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - महाराज श्री जनकजी जैसे ज्ञान के शिरोमणि का भी श्री भरतलालजी के प्रभु प्रेम की महिमा देखकर ज्ञान विकल हो गया । श्री भरतलालजी के प्रभु प्रेम में व्यवहार को सोचकर उनके प्रेमाश्रु बह निकले, उनका शरीर पुलकित हो गया और मन आनंदित हो गया । वे श्री भरतलालजी के प्रभु प्रेम के कारण अर्जित सुंदर यश की सराहना करके कहने लगे कि श्री भरतलालजी के प्रभु प्रेम की कथा संसार के बंधन को छुड़ाने वाली है । वे बोले कि उनकी बुद्धि श्री भरतलालजी के प्रभु प्रेम की महिमा का वर्णन करने में कतई सक्षम नहीं है । वे बोले कि वे श्री भरतलालजी को कोई उपमा नहीं दे सकते क्योंकि श्री भरतलालजी के समान तो केवल श्री भरतलालजी ही हैं । प्रभु के लिए प्रेम और प्रभु की भक्ति जीव को इतना आदर और मान दिलाती है ।
प्रकाशन तिथि : 06 अप्रैल 2020 |
468 |
श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड) |
2/289/4 |
चौपाई / छंद / दोहा -
साधन सिद्ध राम पग नेहू ॥मोहि लखि परत भरत मत एहू ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री भरतलालजी का प्रभु श्री रामजी के श्रीकमलचरणों में निश्छल प्रेम ही उनका एकमात्र साधन है और वही उनकी एकमात्र सिद्धि भी है । श्री भरतलालजी के जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि उनका प्रभु के श्रीकमलचरणों में अनन्य प्रेम होना है ।
प्रकाशन तिथि : 06 अप्रैल 2020 |
469 |
श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड) |
2/290/4 |
चौपाई / छंद / दोहा -
तुम्ह बिनु राम सकल सुख साजा । नरक सरिस दुहु राज समाजा ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब प्रभु श्री रामजी ने देखा कि घरबार छोड़कर श्री अयोध्यावासी और श्री जनकपुरवासी वन के कष्ट को सह रहे हैं तो करुणामय प्रभु ने गुरुदेव ऋषि श्री वशिष्ठजी से निवेदन किया कि अब सबको वापस प्रस्थान करना चाहिए । तब गुरुदेव ऋषि श्री वशिष्ठजी ने कहा कि बिना प्रभु श्री रामजी के संपूर्ण सुखों को दोनों राज समाज नर्क की यातना के समान मानते हैं । वे बोले कि प्रभु श्री रामजी सबके प्राणों के भी प्राण हैं, सभी की आत्मा के भी आत्मा हैं और सबके सुखों के भी सुख हैं ।
प्रकाशन तिथि : 07 अप्रैल 2020 |
470 |
श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड) |
2/291/1 |
चौपाई / छंद / दोहा -
सो सुखु करमु धरमु जरि जाऊ । जहँ न राम पद पंकज भाऊ ॥ जोगु कुजोगु ग्यानु अग्यानू । जहँ नहिं राम पेम परधानू ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गुरुदेव ऋषि श्री वशिष्ठजी प्रभु श्री रामजी से कहते हैं कि जिनको प्रभु श्री रामजी के श्रीकमलचरणों में प्रेम नहीं है उनका सुख, कर्म और धर्म जला हुआ है, ऐसा मानना चाहिए । ऐसे जीवों का योग कुयोग है और ऐसे जीवों का ज्ञान अज्ञान है । इसलिए श्रीराम प्रेम की प्रधानता जीवन में होनी ही चाहिए ।
प्रकाशन तिथि : 07 अप्रैल 2020 |
471 |
श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड) |
2/291/2 |
चौपाई / छंद / दोहा -
तुम्ह बिनु दुखी सुखी तुम्ह तेहीं ।
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गुरुदेव ऋषि श्री वशिष्ठजी प्रभु श्री रामजी से कहते हैं कि प्रभु श्री रामजी के बिना जो रहे वही दुःखी है । सिद्धांत यह है कि जो भी जीवन में सुख है वह प्रभु के कारण ही है । जो भी संसार में सुखी हैं वे प्रभु के कारण ही सुखी हैं ।
प्रकाशन तिथि : 07 अप्रैल 2020 |
472 |
श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड) |
2/292/दोहा |
चौपाई / छंद / दोहा -
राम सत्यब्रत धरम रत सब कर सीलु सनेहु ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - महाराज श्री जनकजी कहते हैं कि प्रभु श्री रामजी सत्य का पालन करने वाले और धर्म की रक्षा करने वाले हैं । प्रभु श्री रामजी सबसे स्नेह रखने वाले हैं । प्रभु श्री रामजी सदैव सत्य का ही पालन करेंगे और धर्म परायण ही रहेंगे । इसके विपरीत संकट सहकर भी प्रभु कुछ नहीं करेंगे ।
प्रकाशन तिथि : 08 अप्रैल 2020 |
473 |
श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड) |
2/295/3 |
चौपाई / छंद / दोहा -
बिधि हरि हर माया बड़ि भारी । सोउ न भरत मति सकइ निहारी ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब श्री चित्रकूटजी में श्री भरतलालजी को श्रीराम भक्ति से ओतप्रोत देवतागण ने देखा तो उन्होंने सोचा कि श्री भरतलालजी के प्रेम में बहकर कहीं प्रभु श्री रामजी राक्षसों का संहार किए बिना वापस श्री अयोध्याजी न चले जाए । तो सभी देवतागणों ने भगवती सरस्वती माता से विनती करी कि श्री भरतलालजी की मति पलट दे । भगवती सरस्वती माता ने जो देवतागणों को कहा वह बहुत ध्यान देने योग्य है । माता बोली कि प्रभु की माया वैसे तो बहुत प्रबल है किंतु वह भी श्री भरतलालजी की बुद्धि की तरफ ताक नहीं सकती । तात्पर्य यह कि प्रभु अपने भक्त की सद्बुद्धि को बनाकर रखते हैं इसलिए उसे प्रभावित कोई भी नहीं कर सकता ।
प्रकाशन तिथि : 08 अप्रैल 2020 |
474 |
श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड) |
2/295/4 |
चौपाई / छंद / दोहा -
भरत हृदयँ सिय राम निवासू ।
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - भगवती सरस्वती माता देवतागण से कहतीं हैं कि श्री भरतलालजी प्रभु श्री रामजी के सच्चे प्रेमी और भक्त हैं । उनके हृदय में सदैव प्रभु श्री सीतारामजी का निवास है । जिनके हृदय में प्रभु का निवास होता है उनके जीवन में प्रकाश-ही-प्रकाश होता है और उस हृदय में अंधेरा कभी टिक ही नहीं सकता ।
प्रकाशन तिथि : 08 अप्रैल 2020 |
475 |
श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड) |
2/298/1 |
चौपाई / छंद / दोहा -
प्रभु पितु मातु सुह्रद गुर स्वामी । पूज्य परम हित अतंरजामी ॥ सरल सुसाहिबु सील निधानू । प्रनतपाल सर्बग्य सुजानू ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री भरतलालजी ने श्री चित्रकूटजी में सभी के समक्ष प्रभु श्री रामजी से अपनी बात निवेदन करने से पहले हृदय में भगवती सरस्वती माता का स्मरण किया और माता उनके मुखारविंद पर आ विराजी । श्री भरतलालजी ने सारे उपस्थित समाज के सामने प्रभु श्री रामजी को जो संबोधन किया वह बेहद हृदयस्पर्शी है । वे प्रभु श्री रामजी से बोले कि प्रभु ही उनके गुरु, पिता, माता, मित्र, स्वामी, हितैषी, मालिक और परम पूज्य हैं । प्रभु अंतर्यामी, सरल हृदय के, सर्वज्ञ, शील के भंडार और शरणागत की रक्षा करने वाले हैं । प्रभु सर्वसमर्थ हैं और अपने भक्तों के अवगुणों और पापों को हरने वाले हैं ।
प्रकाशन तिथि : 09 अप्रैल 2020 |
476 |
श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड) |
2/298/4 |
चौपाई / छंद / दोहा -
राम रजाइ मेट मन माहीं । देखा सुना कतहुँ कोउ नाहीं ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री भरतलालजी एक अकाट्य सिद्धांत प्रभु श्री रामजी के समक्ष निवेदन करते हैं । वे कहते हैं कि किसी को भी, कहीं भी, कभी भी देखा या सुना नहीं गया जो प्रभु श्री रामजी की आज्ञा को मना कर सके । तात्पर्य है कि प्रभु की आज्ञा सर्वमान्य होती है और सभी को उसे शिरोधार्य करना होता है ।
प्रकाशन तिथि : 09 अप्रैल 2020 |
477 |
श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड) |
2/298/दोहा |
चौपाई / छंद / दोहा -
कृपाँ भलाई आपनी नाथ कीन्ह भल मोर । दूषन भे भूषन सरिस सुजसु चारु चहु ओर ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री भरतलालजी प्रभु श्री रामजी का स्वभाव बताते हैं कि प्रभु अपने भक्तों के लिए कितने अनुकूल रहते हैं । श्री भरतलालजी कहते हैं कि उनकी गलतियों को भी प्रभु ने अपनी सेवा मान ली । प्रभु की इतनी बड़ी कृपा उन पर है कि उनके सभी दोष भी उनके गुण के समान बन गए और प्रभु ने उनका यश चारों तरफ फैला दिया ।
प्रकाशन तिथि : 09 अप्रैल 2020 |
478 |
श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड) |
2/299/2 |
चौपाई / छंद / दोहा -
तेउ सुनि सरन सामुहें आए । सकृत प्रनामु किहें अपनाए ॥ देखि दोष कबहुँ न उर आने । सुनि गुन साधु समाज बखाने ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री भरतलालजी प्रभु श्री रामजी को कहते हैं कि प्रभु का स्वभाव जगत प्रसिद्ध है और श्री वेदजी और शास्त्रों में वर्णित है कि क्रूर, कुटिल, दुष्ट, कुबुद्धि, कलंक युक्त, नास्तिक भी अगर प्रभु की शरण में आता है तो प्रभु उसे एक बार में ही अपना लेते हैं । प्रभु अपने शरणागत के दोषों को कभी अपने हृदय में नहीं आने देते ।
प्रकाशन तिथि : 10 अप्रैल 2020 |
479 |
श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड) |
2/299/दोहा |
चौपाई / छंद / दोहा -
यों सुधारि सनमानि जन किए साधु सिरमोर ।
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री भरतलालजी कहते हैं कि वे भुजा उठाकर यह घोषणा करते हैं कि प्रभु श्री रामजी जैसे स्वामी दूसरे कोई भी नहीं हैं । प्रभु श्री रामजी अपने सेवकों की बिगड़ी बात सुधारकर उन्हें जगत में सम्मान दिलाकर उन्हें संत समाज में शिरोमणि बना देते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 10 अप्रैल 2020 |
480 |
श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड) |
2/300/2 |
चौपाई / छंद / दोहा -
बड़ें समाज बिलोकेउँ भागू । बड़ीं चूक साहिब अनुरागू ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री भरतलालजी कहते हैं कि श्री चित्रकूटजी आकर उन्होंने देख लिया कि उनके दोष और गलती के बावजूद प्रभु श्री रामजी अपने स्वभाव के कारण उनके अनुकूल हैं । इतनी बड़ी उनसे चूक होने के बावजूद उनके स्वामी प्रभु श्री रामजी का उन पर कितना अनुराग है । श्री भरतलालजी कहते हैं कि उन्होंने और श्री अयोध्याजी के समाज ने सभी मंगलों के मूल प्रभु श्री रामजी के श्रीकमलचरणों का दर्शन पाया । श्री भरतलालजी कहते हैं कि प्रभु श्री रामजी के जिस कृपा के वे लायक ही नहीं थे वह कृपा सबसे अधिक उन्हें मिली ।
प्रकाशन तिथि : 10 अप्रैल 2020 |