श्री गणेशाय नमः
Devotional Thoughts
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GOD prayers & poems
प्रभु प्रेरणा से लेखन द्वारा चन्द्रशेखर करवा
क्रम संख्या श्रीग्रंथ संख्या भाव के दर्शन / प्रेरणापुंज
361 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/130/2 चौपाई / छंद / दोहा -
जागत सोवत सरन तुम्हारी ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - महामुनि श्री वाल्मीकिजी कहते हैं कि प्रभु उन जीव के हृदय में पक्का निवास करते हैं जिनको जागते और सोते एकमात्र प्रभु का ही आश्रय होता है । तात्पर्य यह है कि जिन्होंने प्रभु की शरणागति जीवन में ले ली हो प्रभु उनके हृदय को छोड़कर कहीं नहीं जाते । शरणागत जीव को सदा प्रभु का सानिध्य प्राप्त होता है ।

प्रकाशन तिथि : 02 मार्च 2020
362 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/130/4 चौपाई / छंद / दोहा -
जिन्हहि राम तुम्ह प्रानपिआरे । तिन्ह के मन सुभ सदन तुम्हारे ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - महामुनि श्री वाल्मीकिजी प्रभु श्री रामजी से कहते हैं कि आप उन जीवों के हृदय में निवास करें जिन्हें आप प्राणों से भी अधिक प्यारे लगते हैं । जो केवल और केवल प्रभु से प्रेम करते हैं और प्रभु को अपना एकमात्र प्राणप्रिय मानते हैं प्रभु अपना निवास स्थान ऐसे हृदय को बना लेते हैं । इसलिए सभी भक्तों के चरित्र में हमें मिलेगा कि भक्तों के प्राणप्रिय केवल प्रभु ही रहे हैं ।

प्रकाशन तिथि : 02 मार्च 2020
363 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/130/दोहा चौपाई / छंद / दोहा -
स्वामि सखा पितु मातु गुर जिन्ह के सब तुम्ह तात । मन मंदिर तिन्ह कें बसहु सीय सहित दोउ भ्रात ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - महामुनि श्री वाल्मीकिजी एक बहुत सुंदर बात कहते हैं कि जिनका सर्वस्व प्रभु ही हैं यानी जिन्होंने गुरु, स्वामी, सखा, माता, पिता और अन्य सभी रिश्ते प्रभु से ही मान रखे हैं प्रभु श्री रामजी उनके मनरूपी मंदिर में भगवती सीता माता के साथ निवास करते हैं । सिद्धांत यह है कि जो प्रभु को अपना सब कुछ मानते हैं प्रभु भी उन्हें ही अपना सब कुछ मानते हैं ।

प्रकाशन तिथि : 02 मार्च 2020
364 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/131/2 चौपाई / छंद / दोहा -
गुन तुम्हार समुझइ निज दोसा । जेहि सब भाँति तुम्हार भरोसा ॥ राम भगत प्रिय लागहिं जेही । तेहि उर बसहु सहित बैदेही ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - महामुनि श्री वाल्मीकिजी कहते हैं कि जिन लोगों को अपने भीतर के सद्गुण प्रभु प्रसाद के रूप में लगते हैं और अपने दोष अपने स्वयं के लगते हैं प्रभु का वास उनके हृदय में होता है । जिनको सब प्रकार से प्रभु का ही एकमात्र भरोसा होता है और जिनको संसार में केवल प्रभु के भक्त ही प्रिय लगते हैं ऐसे जीव के हृदय में प्रभु माता समेत निश्चित निवास करते हैं ।

प्रकाशन तिथि : 03 मार्च 2020
365 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/131/3 चौपाई / छंद / दोहा -
जाति पाँति धनु धरम बड़ाई । प्रिय परिवार सदन सुखदाई ॥ सब तजि तुम्हहि रहइ उर लाई । तेहि के हृदयँ रहहु रघुराई ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - महामुनि श्री वाल्मीकिजी कहते हैं कि जो जीव अपनी जाति, पाँति, धन, धर्म, बड़ाई, परिवार और घर को भूलकर केवल अपने हृदय में प्रभु को ही धारण करता है ऐसे हृदय को छोड़कर प्रभु भी कहीं नहीं जाते । प्रभु को अपने हृदय में वास देना है तो हमें जीवन में सब कुछ भुलाकर केवल प्रभु का ही बनना पड़ेगा ।

प्रकाशन तिथि : 03 मार्च 2020
366 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/131/4 चौपाई / छंद / दोहा -
जहँ तहँ देख धरें धनु बाना ॥ करम बचन मन राउर चेरा । राम करहु तेहि कें उर डेरा ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जो हर जगह केवल प्रभु को ही देखता है यानी जिसको पूरा जगत ही प्रभुमय दिखता है ऐसे हृदय में प्रभु वास करते हैं । जो अपने मन, कर्म और वचन से स्वयं को केवल प्रभु का ही दास मानता है महामुनि श्री वाल्मीकिजी प्रभु श्री रामजी से आग्रह करते हैं कि ऐसे हृदय को प्रभु अपना निवास स्थान बनाएं ।

प्रकाशन तिथि : 03 मार्च 2020
367 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/131/दोहा चौपाई / छंद / दोहा -
जाहि न चाहिअ कबहुँ कछु तुम्ह सन सहज सनेहु । बसहु निरंतर तासु मन सो राउर निज गेहु ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - महामुनि श्री वाल्मीकिजी प्रभु श्री रामजी से कहते हैं कि जिनको कभी जीवन में कुछ भी नहीं चाहिए यानी जो परम संतोषी होते हैं और जिनका प्रभु से स्वाभाविक प्रेम होता है यानी बिना किसी कारण या लालच के निश्छल और निष्काम प्रेम होता है प्रभु उनके हृदय को अपना स्थाई घर मानकर वहाँ निवास करें ।

प्रकाशन तिथि : 04 मार्च 2020
368 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/132/4 चौपाई / छंद / दोहा -
राम देहु गौरव गिरिबरहू ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - महामुनि श्री वाल्मीकिजी ने अंत में प्रभु श्री रामजी को रहने के लिए पर्वतश्रेष्ठ श्री चित्रकूटजी का स्थान बताया । मुनिवर ने बहुत सुंदर भाव में प्रभु श्री रामजी से कहा कि वे श्री चित्रकूटजी पधारकर वहाँ वास करके पर्वतश्रेष्ठ श्री चित्रकूटजी को गौरव प्रदान करें । यह सत्य सिद्धांत है कि प्रभु जिनको अपना सानिध्य प्रदान करते हैं उन्हीं का जगत में गौरव होता है ।

प्रकाशन तिथि : 04 मार्च 2020
369 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/135/दोहा चौपाई / छंद / दोहा -
अब हम नाथ सनाथ सब भए देखि प्रभु पाय । भाग हमारे आगमनु राउर कोसलराय ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब श्री चित्रकूटजी के पास निवास करने वाले मुनियों ने प्रभु श्री रामजी का आगमन सुना तो वे अपने आश्रमों में बिना भय के योग, जप, यज्ञ और तप करने में लग गए । प्रभु के शुभ आगमन से उन्होंने प्रभु के संरक्षण में स्वयं को निर्भय पाया । वहाँ निवास करने वाले कोल भील ने प्रभु के दर्शन पाकर स्वयं को सनाथ अनुभव किया । वे अपने भाग्य की सराहना करने लगे जिस कारण प्रभु का उनके मध्य शुभागमन हुआ ।

प्रकाशन तिथि : 04 मार्च 2020
370 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/136/1 चौपाई / छंद / दोहा -
धन्य भूमि बन पंथ पहारा । जहँ जहँ नाथ पाउ तुम्ह धारा ॥ धन्य बिहग मृग काननचारी । सफल जनम भए तुम्हहि निहारी ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री चित्रकूटजी के आसपास निवास करने वाले लोगों को प्रभु श्री रामजी के आगमन से अति आनंद हुआ । वे प्रभु से कहने लगे कि जहाँ-जहाँ प्रभु ने अपने श्रीकमलचरणों को रखा है वह भूमि, वन, मार्ग, पहाड़ और वहाँ निवास करने वाले लोग और यहाँ तक कि वहाँ के पशु पक्षी भी धन्य हो गए । वे कहने लगे कि प्रभु को देखकर आज उनका जन्म भी सफल हो गया और वे परिवार सहित धन्य हो गए क्योंकि उन्होंने प्रभु का अति दुर्लभ दर्शन पा लिया ।

प्रकाशन तिथि : 05 मार्च 2020
371 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/136/4 चौपाई / छंद / दोहा -
हम सेवक परिवार समेता । नाथ न सकुचब आयसु देता ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री चित्रकूटजी के आसपास निवास करने वाले लोगों ने प्रभु श्री रामजी से विनती करी कि प्रभु उन्हें सेवा का मौका दें क्योंकि वे कुटुंब सहित सदा से प्रभु के सेवक हैं । इसलिए किसी भी कार्य के लिए प्रभु उन्हें आज्ञा देने में तनिक भी संकोच न करें । जैसे एक पिता अपने बालकों के वचन सुनकर सुख पाता है वैसे ही प्रभु को उनके वचन बहुत प्रिय लगे ।

प्रकाशन तिथि : 05 मार्च 2020
372 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/137/1 चौपाई / छंद / दोहा -
रामहि केवल प्रेमु पिआरा । जानि लेउ जो जाननिहारा ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - यह श्री रामचरितमानसजी की एक प्रसिद्ध चौपाई है । गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि प्रभु श्री रामजी को केवल प्रेम ही प्यारा है । प्रेम के कारण प्रभु तत्काल प्रेम करने वाले के वश में हो जाते हैं । गोस्वामीजी घोषणा करते हैं जो इस तथ्य को जानना चाहता है वह जान ले कि प्रभु केवल प्रेम के कारण ही जीव को प्राप्त होते हैं । प्रेम के अलावा प्रभु को पाने का अन्य कोई विकल्प नहीं है । इसलिए जीव को चाहिए कि वह प्रभु से भरपूर प्रेम करे जैसा की सभी भक्तों ने किया है ।

प्रकाशन तिथि : 05 मार्च 2020
373 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/139/1 चौपाई / छंद / दोहा -
नयनवंत रघुबरहि बिलोकी । पाइ जनम फल होहिं बिसोकी ॥ परसि चरन रज अचर सुखारी । भए परम पद के अधिकारी ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री रामजी और भगवती सीता माता के श्री चित्रकूटजी पधारने पर श्री चित्रकूटजी का यश बहुत बढ़ गया । सभी देवनदियां भगवती मंदाकिनीजी की बढ़ाई करती । सभी देवपर्वत श्री चित्रकूटजी की बढ़ाई करते । वहाँ रहने वाले सभी पशु पक्षी आपसी वैर छोड़कर साथ-साथ विचरते और प्रभु एवं माता को देखकर अति आनंदित होते । इस प्रकार सभी जीव प्रभु को देखकर अपना जन्म सफल मानते और सभी अचर प्रभु के श्रीकमलचरणों की रज पाकर सुखी होते । गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं इस प्रकार सभी परमपद के अधिकारी बन जाते । गोस्वामीजी कहते हैं कि जहाँ सुख के सागर प्रभु निवास करें उस जगह की महिमा किसी प्रकार से भी कहीं नहीं जा सकती ।

प्रकाशन तिथि : 06 मार्च 2020
374 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/139/दोहा चौपाई / छंद / दोहा -
छिनु छिनु लखि सिय राम पद जानि आपु पर नेहु । करत न सपनेहुँ लखनु चितु बंधु मातु पितु गेहु ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री लक्ष्मणजी क्षण-क्षण प्रभु श्री रामजी और भगवती सीता माता के श्री युगलचरणों को देखकर आनंदित होते और अपने ऊपर प्रभु और माता का स्नेह जानकर हर्षित होते । उन्हें प्रभु और माता का सानिध्य पाकर स्वप्न में भी अपने माता, पिता, भाई, पत्नी और घर की याद ही नहीं आती ।

प्रकाशन तिथि : 06 मार्च 2020
375 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/140/दोहा चौपाई / छंद / दोहा -
सुमिरत रामहि तजहिं जन तृन सम बिषय बिलासु । रामप्रिया जग जननि सिय कछु न आचरजु तासु ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - भगवती सीता माता अपने कुटुंब के लोग और श्री अयोध्याजी की याद को भुलाकर प्रभु के सानिध्य में वन में परम प्रसन्न रहती । उनको प्रभु के श्रीकमलचरणों में इतना अनुराग था कि उन्हें वन हजारों राज्य से भी प्रिय लगता । गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि जिन प्रभु श्री रामजी का स्मरण करके भक्त तमाम भोग विलास को तिनके की तरह त्याग देते हैं उन प्रभु की प्रिय पत्नी और जगत की माता भगवती सीता माता के लिए यह त्याग करना तनिक भी आश्चर्य की बात नहीं थी । माता ऐसा त्याग करके जगत को बताती है कि प्रभु के लिए त्याग करने में भी बड़ा परमानंद है ।

प्रकाशन तिथि : 06 मार्च 2020
376 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/142/1 चौपाई / छंद / दोहा -
जोगवहिं प्रभु सिय लखनहिं कैसें । पलक बिलोचन गोलक जैसें ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि वन में भगवती सीता माता और श्री लक्ष्मणजी की प्रभु श्री रामजी वैसे संभाल रखते हैं जैसे पलकें नेत्रों की रखती है । जिस प्रकार भगवती सीता माता और श्री लक्ष्मणजी को सुख मिले प्रभु वही करते हैं । सिद्धांत यह है कि प्रभु अपने प्रियजनों की अत्याधिक संभाल रखते हैं ।

प्रकाशन तिथि : 07 मार्च 2020
377 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/142/दोहा चौपाई / छंद / दोहा -
नहिं तृन चरहिं पिअहिं जलु मोचहिं लोचन बारि । ब्याकुल भए निषाद सब रघुबर बाजि निहारि ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब निषादराज गुहजी लौटकर वापस आए तब तक प्रभु लौटकर आएंगे इस आशा में श्री सुमंत्रजी श्रृंगवेरपुर में ही रुके थे । पर जब उन्होंने पाया कि प्रभु नहीं लौटे तो वे प्रभु का नाम पुकारते-पुकारते व्याकुल होकर धरती पर गिर पड़े । उनके रथ के घोड़े जिस दिशा में प्रभु गए थे उस दिशा को देख-देखकर हिनहिनाने लगे । वे प्रभु के बिना ऐसे व्याकुल हो उठे जैसे बिना पंख पक्षी व्याकुल होता है और बिना मणि के सांप व्याकुल होता है । जबसे प्रभु उन्हें छोड़कर गए थे तब से घोड़ों ने घास चरना और पानी पीना भी छोड़ दिया था । वे केवल प्रभु के विरह में अपनी आँखों से जल बहा रहे थे । प्रभु के घोड़ों की प्रभु की विरह में यह दशा देखकर सभी अत्यंत व्याकुल हो उठे ।

प्रकाशन तिथि : 07 मार्च 2020
378 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/144/2 चौपाई / छंद / दोहा -
जसु न लहेउ बिछुरत रघुबीरू ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री रामजी के वियोग से व्याकुल और उस दुःख से दीन हुए श्री सुमंत्रजी सोचने लगे कि प्रभु बिना जीवन जीना व्यर्थ है । पर वे अपने को धिक्कारने लगे कि उनके प्राण छूट नहीं रहे । वे इस बात में अपना यश और गौरव मानते हैं कि प्रभु के वियोग में उनके प्राण छूट जाए । यह सिद्धांत है कि प्रभु के प्रेमी के लिए प्रभु के वियोग की पीड़ा असहनीय हो जाती है ।

प्रकाशन तिथि : 07 मार्च 2020
379 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/145/3 चौपाई / छंद / दोहा -
हानि गलानि बिपुल मन ब्यापी । जमपुर पंथ सोच जिमि पापी ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी श्री सुमंत्रजी की दशा का वर्णन करते हुए कहते हैं कि प्रभु श्री रामजी के वियोगरूपी हानि की महान पीड़ा उनके लिए वापस लौटते समय ऐसी हो गई जैसे किसी पापी मनुष्य की पीड़ा नर्क जाते हुए होती है । उन्हें पता है कि प्रभु श्री रामजी के बिना रथ को जब अयोध्यावासी देखेंगे तो वे अति व्याकुल हो उठेंगे और उनकी स्थिति अत्यंत दयनीय हो जाएगी ।

प्रकाशन तिथि : 08 मार्च 2020
380 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/146/दोहा चौपाई / छंद / दोहा -
जानत हौं मोहि दीन्ह बिधि यहु जातना सरीरु ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि प्रभु श्री रामजी के बिना लौटते हुए श्री सुमंत्रजी हृदय में इतना कष्ट पा रहे थे मानो उन्हें नर्क भोगने के लिए यातना शरीर मिला हो । जैसे पापी जीव नर्क में यातना शरीर में कष्ट पाता है वही दशा श्री सुमंत्रजी की हो गई थी । प्रभु के बिना वे सबका सामना कैसे करेंगे, सबको क्या कहेंगे इस चिंता से वे व्यथित हो रहे थे ।

प्रकाशन तिथि : 08 मार्च 2020
381 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/152/1 चौपाई / छंद / दोहा -
पुरजन परिजन सकल निहोरी । तात सुनाएहु बिनती मोरी ॥ सोइ सब भाँति मोर हितकारी । जातें रह नरनाहु सुखारी ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री सुमंत्रजी ने राजमहल पहुँचकर प्रभु श्री रामजी का जो संदेश सुनाया वह बहुत ध्यान देने योग्य है । प्रभु ने सभी अयोध्यावासियों और अपने कुटुम्बियों को कहलवाया कि उनकी सबसे विनती है कि वे वैसा व्यवहार करें जिससे महाराज श्री दशरथजी और उनकी माताएं सुख का अनुभव करे । प्रभु ने कहलवाया कि वही जीव प्रभु का सब प्रकार से हितकारी होगा जिसकी चेष्टा से उनके माता-पिता सुखी होंगे । भगवती कैकेयी माता और महाराज श्री दशरथजी को अयोध्यावासी प्रभु के वनवास का दोष दे रहे थे और ऐसे समय में प्रभु के मन में उनके लिए कितनी आदर की भावना थी यह यहाँ पर हमें देखने को मिलता है ।

प्रकाशन तिथि : 08 मार्च 2020
382 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/153/4 चौपाई / छंद / दोहा -
सुनि बिलाप दुखहू दुखु लागा । धीरजहू कर धीरजु भागा ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब श्री सुमंत्रजी ने राजमहल में प्रभु का लौटकर नहीं आना और वनवास में चले जाना बताया तो प्रभु के विरह में महाराज श्री दशरथजी अचेत हो गए और पूरा राजमहल विलाप करके रोने लगा और बड़ा भारी कोहराम मच गया । गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि उस महान विपत्ति का वर्णन संभव नहीं है क्योंकि उस समय के विलाप को सुनकर दुःख भी दुःखी हो उठा और धीरज का भी धीरज भाग गया ।

प्रकाशन तिथि : 09 मार्च 2020
383 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/155/3 चौपाई / छंद / दोहा -
राम रहित धिग जीवन आसा ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - महाराज श्री दशरथजी भगवती कौशल्या माता को कहने लगे कि उनके परम प्रिय प्रभु श्री रामजी के बिना वे जीना नहीं चाहते । उन्होंने कहा कि प्रभु के बिना अगर उनका मन जीने की आशा रखता है तो उस मन को धिक्कार है । वे अपने उस शरीर को नहीं रखना चाहते जिसका प्रभु से वियोग हो गया है ।

प्रकाशन तिथि : 09 मार्च 2020
384 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/155/दोहा चौपाई / छंद / दोहा -
राम राम कहि राम कहि राम राम कहि राम । तनु परिहरि रघुबर बिरहँ राउ गयउ सुरधाम ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - यह दोहा महाराज श्री दशरथजी के अतुलनीय प्रभु प्रेम को दर्शाता है । जब तक प्रभु से जीवन भर प्रेम नहीं होगा तब तक अंत समय में प्रभु का नाम हमारी जिह्वा पर नहीं आएगा । महाराज श्री दशरथजी की अंतिम बेला इतनी गौरवशाली थी कि उन्होंने राम-राम कहा, फिर राम कहा, फिर राम-राम कहा और फिर राम कहकर अपना शरीर प्रभु के वियोग में तिनके की तरह त्याग दिया । प्रभु का एक नाम भी अंतिम बेला में मुँह पर आना परम सौभाग्य की बात होती है और इतनी बार प्रभु का नाम महाराज श्री दशरथजी के मुँह से निकला कि वे प्रभु प्रेम के अमर पात्र बन गए । प्रभु का नाम अंतिम बेला पर उच्चारण हो जाए तो वह जीव सीधे प्रभु के धाम जाता है और इसलिए महाराज श्री दशरथजी भी प्रभु के धाम पधार गए ।

प्रकाशन तिथि : 09 मार्च 2020
385 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/156/1 चौपाई / छंद / दोहा -
जिअत राम बिधु बदनु निहारा । राम बिरह करि मरनु सँवारा ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि जीने और मरने दोनों का गौरव महाराज श्री दशरथजी ने पाया । जीते जी वे प्रभु श्री रामजी के सानिध्य में रहे और जीवन में प्रभु का विरह होते ही उस विरह को निमित्त बनाकर उन्होंने अपना मरण सुधार लिया । प्रभु के सानिध्य में जीवन जीना और प्रभु के विरह में प्राण त्यागना इससे ऊँ‍‍ची कोई अवस्था नहीं हो सकती । ऐसा कर पाने के कारण महाराज श्री दशरथजी का निर्मल यश अनेकों ब्रह्मांडों में फैल गया ।

प्रकाशन तिथि : 10 मार्च 2020
386 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/158/4 चौपाई / छंद / दोहा -
खग मृग हय गय जाहिं न जोए । राम बियोग कुरोग बिगोए ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब श्री भरतलालजी अपने ननिहाल से गुरु श्री वशिष्ठजी के बुलावे पर तत्काल आए तो उन्हें श्री अयोध्याजी प्रभु श्री रामजी के विरह में बड़ी भयानक और शोभाहीन लग रही थी । प्रभु श्री रामजी के वियोग में नगर के स्त्री-पुरुषों को उन्होंने अत्यंत दुःखी देखा मानो वे अपनी सारी संपत्ति हारकर बैठे हैं । यहाँ तक कि पशु और पक्षी सभी दुःख से परम व्याकुल उन्हें दिखे । प्रभु श्री रामजी के वियोगरूपी रोग से मनुष्य क्या, पशु-पक्षी तक तड़प रहे थे ।

प्रकाशन तिथि : 10 मार्च 2020
387 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/160/दोहा चौपाई / छंद / दोहा -
भरतहि बिसरेउ पितु मरन सुनत राम बन गौनु ।


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब श्री भरतलालजी ने भगवती कैकेयी माता से महाराज श्री दशरथजी का परलोक गमन सुना तो वे अत्यंत व्याकुल होकर जमीन पर गिर पड़े । उन्हें दुःख इस बात का था कि पिताजी जाने से पहले उन्हें प्रभु श्री रामजी को सौंपकर नहीं गए । पर जब श्री भरतलालजी ने प्रभु श्री रामजी के वनवास के बारे में सुना तो वे अपने पूज्य पिताजी के मरण के दुःख को भूल गए और अपने हृदय में प्रभु श्री रामजी के वनवास के इतने बड़े अनर्थ से स्तंभित रह गए । उनकी बोली बंद हो गई और वे सन्न रह गए । उनके ऊपर जैसे वज्राघात हुआ हो या पहाड़ टूट गया हो ऐसी दशा उनकी हो गई क्योंकि वे प्रभु श्री रामजी को अपने प्राणों से भी ज्यादा प्रेम करते थे ।

प्रकाशन तिथि : 10 मार्च 2020
388 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/168/3 चौपाई / छंद / दोहा -
जे नहिं साधुसंग अनुरागे । परमारथ पथ बिमुख अभागे ॥ जे न भजहिं हरि नरतनु पाई । जिन्हहि न हरि हर सुजसु सोहाई ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री भरतलालजी के मुँह से पापों की श्रेणी गिनाते हुए गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि जिन्हें सत्संग प्रिय नहीं है, जो परमार्थ के मार्ग से विमुख हैं, जो मानव शरीर पाकर प्रभु का भजन नहीं करते और जिन्हें प्रभु का सुयश सुना हुआ नहीं सुहाता वे सब घोर पाप के भागी होते हैं और उनकी बहुत बड़ी दुर्गति होती है ।

प्रकाशन तिथि : 11 मार्च 2020
389 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/169/1 चौपाई / छंद / दोहा -
राम प्रानहु तें प्रान तुम्हारे । तुम्ह रघुपतिहि प्रानहु तें प्यारे ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री रामजी के वनवास पर श्री भरतलालजी के पश्चाताप के सच्चे और सरल वचन सुनकर भगवती कौशल्या माता उनसे कहतीं हैं कि श्री भरतलालजी मन, वचन और शरीर से सदा प्रभु श्री रामजी के प्यारे रहे हैं । भगवती कौशल्या माता कहतीं हैं कि वे प्रभु श्री रामजी के और श्री भरतलालजी के परस्पर प्रेम को जानती हैं । श्री भरतलालजी को प्रभु श्री रामजी अपने प्राणों से भी अधिक प्रिय है और प्रभु श्री रामजी को भी श्री भरतलालजी उनके प्राणों से भी ज्यादा प्रिय हैं ।

प्रकाशन तिथि : 11 मार्च 2020
390 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/169/2 चौपाई / छंद / दोहा -
मत तुम्हार यहु जो जग कहहीं । सो सपनेहुँ सुख सुगति न लहहीं ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री भरतलालजी की सबसे बड़ी कमाई यही थी कि उनके श्रीराम प्रेम को देखकर प्रभु श्री रामजी की माता भगवती कौशल्या माता को भी कहना पड़ा कि चाहे श्री चंद्रदेवजी विष बरसाने लगे या पाला आग बरसाने लगे या जलचर जीव जलरहित जी पाएं पर श्री भरतलालजी प्रभु श्री रामजी के प्रतिकूल व्यवहार स्वप्न में भी नहीं कर सकते । भगवती कौशल्या माता कहतीं हैं कि जगत में अगर जो भी स्वप्न में भी ऐसा कहेगा कि प्रभु श्री रामजी के वनवास में श्री भरतलालजी की सम्मति है वह कहने वाला सुख और शुभ से विहीन हो जाएगा । प्रभु प्रेम में अपने जीवन को दांव पर लगाने वाले श्री भरतलालजी के लिए यह कितना बड़ा प्रमाणपत्र है ।

प्रकाशन तिथि : 11 मार्च 2020
391 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/178/1 चौपाई / छंद / दोहा -
हित हमार सियपति सेवकाई ।


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - पिताजी द्वारा दिए वचन की अनुपालना, गुरुदेवजी की आज्ञा, मंत्रियों की पूर्ण सहमति और भगवती कौशल्या माता द्वारा अनुमोदन के बाद श्री भरतलालजी को राजसिंहासन पर बैठने पर कोई भी कतई दोष नहीं देता । पर सबकी बात सुनने के बाद उन्होंने सबसे नम्र निवेदन किया कि उनका कल्याण तो उन्हें केवल और केवल प्रभु श्री रामजी की चाकरी में ही दिखता है । उन्होंने कहा कि दूसरे किसी भी उपाय में उनका कल्याण उन्हें निहित नहीं दिखता ।

प्रकाशन तिथि : 12 मार्च 2020
392 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/178/3 चौपाई / छंद / दोहा -
सरुज सरीर बादि बहु भोगा । बिनु हरिभगति जायँ जप जोगा ॥ जायँ जीव बिनु देह सुहाई । बादि मोर सबु बिनु रघुराई ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री भरतलालजी कहते हैं कि प्रभु श्री सीतारामजी के श्रीकमलचरणों के दर्शन करना ही उन्हें परम लाभ दिखता है । उन्हें राज्य करने में कोई लाभ नहीं दिखता । उन्होंने कहा जैसे कपड़े बिना गहनों का बोझ व्यर्थ है, वैराग्य बिना ब्रह्मविचार व्यर्थ है, रोगी शरीर के लिए भोग व्यर्थ है और भक्ति के बिना सब योग व्यर्थ है वैसे ही उनके लिए प्रभु श्री सीतारामजी के बिना सब कुछ व्यर्थ है ।

प्रकाशन तिथि : 12 मार्च 2020
393 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/182/3 चौपाई / छंद / दोहा -
मोहि लगि भे सिय रामु दुखारी ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री भरतलालजी कहते हैं कि उन्हें इस बात की तनिक भी चिंता नहीं है कि जगत में उनकी बुराई होगी या उनका परलोक बिगड़ जाएगा । उनका हृदय केवल और केवल इसलिए दुःख से धधक रहा है कि उनके कारण उनके प्रभु श्री सीतारामजी को वनवास का दुःख उठाना पड़ रहा है ।

प्रकाशन तिथि : 12 मार्च 2020
394 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/182/4 चौपाई / छंद / दोहा -
जीवन लाहु लखन भल पावा । सबु तजि राम चरन मनु लावा ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु के अग्रणी भक्तों और संतों में श्री भरतलालजी की गिनती होती है । ऐसे श्री भरतलालजी के द्वारा अपने छोटे भाई श्री लक्ष्मणजी को दिया यह प्रमाण पत्र कितना महत्वपूर्ण है । श्री भरतलालजी कहते हैं कि जीवन का सर्वोत्तम लाभ तो श्री लक्ष्मणजी ने पाया जिन्होंने सब कुछ तजकर प्रभु श्री रामजी के श्रीकमलचरणों से अपने आपको अलग नहीं होने दिया । श्री अयोध्याजी जैसा वैभव, माता-पिता, पत्नी सब कुछ भुलाकर और अपना सर्वस्व प्रभु श्री सीतारामजी को मानकर प्रभु को भी अपने प्रेम में बाध्य करके वे प्रभु और माता के साथ वनवास में गए ।

प्रकाशन तिथि : 13 मार्च 2020
395 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/183/2 चौपाई / छंद / दोहा -
जद्यपि मैं अनभल अपराधी । भै मोहि कारन सकल उपाधी ॥ तदपि सरन सनमुख मोहि देखी । छमि सब करिहहिं कृपा बिसेषी॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - भक्त को प्रभु की शरणागति का कितना बड़ा भरोसा होता है यह यहाँ देखने को मिलता है । श्री भरतलालजी कहते हैं कि यद्यपि वे अपराधी हैं, बुरे हैं क्योंकि उनके कारण ही सब उपद्रव हुए फिर भी प्रभु श्री रामजी की शरण जाने पर उन्हें शरणागति का इतना प्रबल विश्वास है कि प्रभु उनको देखते ही उनके सब अपराध क्षमा करके उन पर विशेष कृपा करेंगे ।

प्रकाशन तिथि : 13 मार्च 2020
396 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/183/3 चौपाई / छंद / दोहा -
सील सकुच सुठि सरल सुभाऊ । कृपा सनेह सदन रघुराऊ ॥ अरिहुक अनभल कीन्ह न रामा । मैं सिसु सेवक जद्यपि बामा ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री भरतलालजी कहते हैं कि प्रभु श्री रामजी अत्यंत सरल स्वभाव के हैं । प्रभु श्री रामजी कृपा और स्नेह के सागर हैं । प्रभु श्री रामजी में इतनी दया है कि वे कभी अपने शत्रु का भी अनिष्ट नहीं कर सकते । श्री भरतलालजी कहते हैं कि यद्यपि उनमें बहुत दोष है पर वे अपने आपको प्रभु श्री रामजी का बालक, उनका सेवक और उनका गुलाम मानते हैं ।

प्रकाशन तिथि : 13 मार्च 2020
397 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/184/2 चौपाई / छंद / दोहा -
भरतहि कहहि सराहि सराही । राम प्रेम मूरति तनु आही ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब श्री भरतलालजी ने राज्य को स्वीकार करने से मना कर दिया और प्रभु श्री रामजी को मनाने के लिए वन जाने की बात कही तो सभी स्नेह से श्री भरतलालजी की सराहना करने लगे । लोग जो संदेहग्रस्त थे और श्री भरतलालजी के लिए विपरीत सोच रहे थे उनको भी कहना पड़ा कि श्री भरतलालजी श्रीराम प्रेम की साक्षात मूर्ति हैं ।

प्रकाशन तिथि : 14 मार्च 2020
398 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/185/दोहा चौपाई / छंद / दोहा -
जरउ सो संपति सदन सुखु सुहद मातु पितु भाइ । सनमुख होत जो राम पद करै न सहस सहाइ ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब प्रभु श्री रामजी को मनाने के लिए वन जाने की बात निश्चित हुई तो सभी जाने को उतावले हो गए । कोई भी घर पर रुकना नहीं चाहता था । लोग कहने लगे कि वह संपत्ति, घर, सुख, मित्र, माता, पिता और भाई सभी त्याज्य हैं जो प्रभु श्री रामजी से मिलन में बाधा डाले । यह सत्य है कि प्रभु मिलन में बाधा डालने वाले प्रत्येक कारण का जीवन में त्याग कर देना चाहिए ।

प्रकाशन तिथि : 14 मार्च 2020
399 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/186/2 चौपाई / छंद / दोहा -
संपति सब रघुपति कै आही ।


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री भरतलालजी के मन को राजा बनने का प्रस्ताव आने पर भी कभी भी श्री अयोध्याजी की अतुलनीय संपत्ति ने उन्हें प्रभावित नहीं किया । वे अपने मन में सब कुछ प्रभु श्री रामजी की धरोहर मानते रहे । उन्होंने श्री अयोध्याजी का सारा वैभव और संपत्ति प्रभु श्री रामजी की ही मानी और स्वयं को प्रभु का सेवक और दास माना । यह प्रसंग हमें सिखाता है कि हमें भी अपना सब कुछ प्रभु का ही मानना चाहिए और स्वयं को प्रभु का नीच सेवक और तुच्छ दास मानना चाहिए ।

प्रकाशन तिथि : 14 मार्च 2020
400 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/188/दोहा चौपाई / छंद / दोहा -
करत राम हित नेम ब्रत परिहरि भूषन भोग ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब श्री भरतलालजी के साथ अयोध्यावासी प्रभु श्री रामजी को मनाने चले तो वे सब अपने भोग विलास को छोड़कर प्रभु श्री रामजी के लिए नियम और व्रत ग्रहण करके चले । वे प्रभु श्री रामजी से इतना प्रेम करते थे कि प्रभु के लिए नियम पालन करने और व्रत लेने में उन्होंने अपना गौरव माना ।

प्रकाशन तिथि : 15 मार्च 2020
401 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/190/3 चौपाई / छंद / दोहा -
तजउँ प्रान रघुनाथ निहोरें ।


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - निषादराज गुहजी को जब पता चला कि श्री भरतलालजी सेना और अयोध्यावासियों के साथ आ रहे हैं तो उनके मन में विपरीत विचार आया कि कहीं श्री भरतलालजी युद्ध करने तो नहीं जा रहे । प्रभु श्री रामजी के प्रति निषादराज गुहजी का इतना प्रेम और इतनी निष्ठा थी कि उन्होंने तत्काल संकल्प किया कि पहले वे प्रभु के पक्ष से युद्ध करेंगे और इतनी विशाल सेना के सामने वे युद्ध करते-करते प्रभु के लिए अपने प्राणों का त्याग कर देंगे ।

प्रकाशन तिथि : 15 मार्च 2020
402 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/190/4 चौपाई / छंद / दोहा -
राम भगत महुँ जासु न रेखा ॥ जायँ जिअत जग सो महि भारू ।


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि जिस जीव ने प्रभु के भक्तों में भक्ति करके अपना स्थान नहीं बनाया उसका जगत में जन्म लेना व्यर्थ है । जो जीव अपने जीवन में प्रभु का भक्त नहीं बन पाया वह भगवती पृथ्वी माता पर भार रूप ही है । तात्पर्य यह है कि उसी का जीवन सफल है और उसी का जन्म सार्थक है जो अपने जीवन में प्रभु की भक्ति करता है ।

प्रकाशन तिथि : 15 मार्च 2020
403 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/194/1 चौपाई / छंद / दोहा -
धन्य धन्य धुनि मंगल मूला । सुर सराहि तेहि बरिसहिं फूला ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब ऋषि श्री वशिष्ठजी ने श्री भरतलालजी को निषादराज गुहजी का परिचय यह कहकर कराया कि ये प्रभु श्री रामजी के सखा हैं तो श्री भरतलालजी ने तुरंत उन्हें अपने आलिंगन में भरकर हृदय से लगा लिया । प्रभु का प्रिय है इतना परिचय पाते ही श्री भरतलालजी का अत्यंत प्रेम उमड़ पड़ा । यह देखकर कि श्रीराम प्रिय का कितना बड़ा सम्मान और भाग्य होता है देवतागण आकाश मंडल से धन्य-धन्य कहकर फूल बरसाने लगे ।

प्रकाशन तिथि : 16 मार्च 2020
404 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/194/3 चौपाई / छंद / दोहा -
राम राम कहि जे जमुहाहीं । तिन्हहि न पाप पुंज समुहाहीं ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी एक अकाट्य सिद्धांत का प्रतिपादन इस दोहे में करते हैं । वे कहते हैं कि जो लोग प्रभु का नाम लेकर जंभाई भी लेते हैं यानी आलस्य में भी अनायास जिनके मुँह से प्रभु का नाम उच्चारित हो जाता है, उनके पापों के समूह का क्षय हो जाता है । फिर जरा कल्पना करें कि जिसने वास्तव में हृदय की गहराई से प्रभु का स्मरण कर लिया उसके जीवन में पाप कैसे टिकेंगे ।

प्रकाशन तिथि : 16 मार्च 2020
405 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/194/4 चौपाई / छंद / दोहा -
उलटा नामु जपत जगु जाना । बालमीकि भए ब्रह्म समाना ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी महामुनि श्री वाल्मीकिजी का स्मरण करते हुए कहते हैं कि जगत में उनकी कथा विख्यात है कि राम-राम को उल्टा जपते हुए यानी मरा-मरा जपते हुए उनका कल्याण हो गया और वे ब्रह्म के समान पूज्य हो गए । जब देवर्षि प्रभु श्री नारदजी ने उन्हें राम कहने को कहा तो उनके संचित पाप उनके कंठ में आकर बैठ गए और प्रभु के इतने सरल नाम का उच्चारण भी उनसे नहीं हुआ । तब उन्हें प्रभु का नाम उल्टा जपने को कहा गया और उल्टा जपते-जपते उनके संचित पापों का क्षय हो गया । यह सत्य सिद्धांत है कि प्रभु का नाम कैसे भी जपा जाए वह अपना कार्य करके ही रहता है ।

प्रकाशन तिथि : 16 मार्च 2020
406 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/194/दोहा चौपाई / छंद / दोहा -
स्वपच सबर खस जमन जड़ पावँर कोल किरात । रामु कहत पावन परम होत भुवन बिख्यात ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि नीच-से-नीच जाति में जन्मा जीव भी अगर प्रभु का नाम जपने लग जाता है तो वह परम आदरणीय और पवित्र हो जाता है और त्रिभुवन में उनका यश फैल जाता है । सिद्धांत यह है कि प्रभु का नाम जपने वाले को नाम जप त्रिलोकी में आदर दिलाती है और प्रभु भक्तों में शामिल कर उस जीव को विख्यात करके उसे सम्मान दिलाती है ।

प्रकाशन तिथि : 17 मार्च 2020
407 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/195/1 चौपाई / छंद / दोहा -
नहिं अचिरजु जुग जुग चलि आई । केहि न दीन्हि रघुबीर बड़ाई ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि इसमें तनिक भी आश्चर्य नहीं क्योंकि युगों-युगों से प्रभु अपने भक्तों को संसार में बढ़ाई दिलाते आए हैं । गोस्वामीजी कहते हैं कि आज तक ऐसा कोई भक्त नहीं जन्मा जिसको प्रभु ने जगत में सम्मान और बढ़ाई नहीं दिलाई हो । प्रभु अपने भक्तों की जगत में बढ़ाई देख सबसे ज्यादा प्रसन्न होते हैं ।

प्रकाशन तिथि : 17 मार्च 2020
408 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/195/दोहा चौपाई / छंद / दोहा -
जो न भजइ रघुबीर पद जग बिधि बंचित सोइ ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - निषादराज गुहजी श्री भरतलालजी को एक बहुत मर्म की बात कहते हैं । वे कहते हैं कि उन जैसे नीच कुल में जन्में व्यक्ति को भी प्रभु श्री रामजी ने अपना सखा मान अहेतु की कृपा की । फिर भी ऐसे करुणामय प्रभु का संसार में आकर जो जीव भजन नहीं करता वह सचमुच में जगत में आकर ठगा गया है । कहने का तात्पर्य यह है कि जगत में आकर सबसे बड़ा लाभ यही है कि जीव प्रभु का भजन करे ।

प्रकाशन तिथि : 17 मार्च 2020
409 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/196/1 चौपाई / छंद / दोहा -
कपटी कायर कुमति कुजाती । लोक बेद बाहेर सब भाँती ॥ राम कीन्ह आपन जबही तें । भयउँ भुवन भूषन तबही तें ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - निषादराज गुहजी एक बहुत बड़े सत्य का निवेदन श्री भरतलालजी से करते हैं । वे कहते हैं कि वे कुबुद्धि और कुजाति के हैं पर जब से उन्हें प्रभु श्री रामजी ने अपनाया है उनका सम्मान हर जगह होने लगा है । यह सिद्धांत है कि प्रभु के अपनाते ही वह जीव सबके मध्य गौरव पा जाता है और उसकी बढ़ाई सब तरफ होने लगती है ।

प्रकाशन तिथि : 18 मार्च 2020
410 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/197/2 चौपाई / छंद / दोहा -
रामघाट कहँ कीन्ह प्रनामू ।


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री भरतलालजी को जब निषादराज गुहजी ने भगवती गंगा माता के श्रीराम घाट के दर्शन कराए जहाँ प्रभु श्री रामजी ने स्नान और संध्या पूजन किया था तो श्री भरतलालजी आनंद मग्न हो गए और बड़े आदर के साथ उन्होंने श्रीराम घाट को प्रणाम किया । भगवती गंगा माता का तट और उस पर भी प्रभु श्री रामजी का स्पर्श पाया वह घाट श्री भरतलालजी के लिए परम वंदनीय और परम पूजनीय बन गया ।

प्रकाशन तिथि : 18 मार्च 2020
411 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/197/3 चौपाई / छंद / दोहा -
करि मज्जनु मागहिं कर जोरी । रामचंद्र पद प्रीति न थोरी ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री अयोध्यावासी भगवती गंगा माता के जल में स्नान करते और माता से यही हाथ जोड़कर वर मांगते कि प्रभु श्री रामजी के श्रीकमलचरणों में उनका प्रेम कभी कम न हो अपितु दिन प्रतिदिन बढ़ता ही चला जाए । भगवती गंगा माता से हम संसार की मनौती मांगते हैं पर जो श्री अयोध्यावासियों ने मांगा वह मांगना कितना श्रेष्ठ है ।

प्रकाशन तिथि : 18 मार्च 2020
412 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/199/1 चौपाई / छंद / दोहा -
कीन्ह प्रनामु प्रदच्छिन जाई ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री भरतलालजी को जब निषादराज गुहजी ने वह जगह दिखाई जहाँ प्रभु श्री रामजी और भगवती सीता माता ने रात्रि विश्राम किया था तो उन्होंने अत्यंत प्रेम से बड़े ही आदरपूर्वक उस स्थान को दंडवत प्रणाम किया । उन्होंने उस जगह की प्रदक्षिणा की और वहाँ की रज को अपने आँखों में लगाया । प्रभु का स्पर्श पाने से उस स्थान का गौरव कितना बड़ा हो गया था इसका अंदाज हम श्री भरतलालजी के द्वारा किए आचरण से लगा सकते हैं ।

प्रकाशन तिथि : 19 मार्च 2020
413 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/200/3 चौपाई / छंद / दोहा -
रूप सील सुख सब गुन सागर ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री भरतलालजी कहते हैं कि प्रभु श्री रामजी रूप, शील, सुख और समस्त सद्गुणों के सागर हैं । प्रजा, कुटुंबी, गुरुदेव, माता-पिता सभी को प्रभु श्री रामजी अपने स्वभाव से सुख प्रदान करने वाले हैं । प्रभु श्री रामजी के सद्गुणों के समूह की गिनती कोई भी नहीं कर सकता । प्रभु श्री रामजी मंगल और आनंद के भंडार हैं ।

प्रकाशन तिथि : 19 मार्च 2020
414 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/203/4 चौपाई / छंद / दोहा -
सिर भर जाउँ उचित अस मोरा । सब तें सेवक धरमु कठोरा ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री भरतलालजी के प्रभु प्रेम और दीनता के दर्शन इस चौपाई में होते हैं । जब श्री भरतलालजी वन यात्रा में पैदल चलने लगे तो सेवकों ने उनसे आग्रह किया कि वे रथ पर बैठें । तब श्री भरतलालजी ने बहुत सुंदर उत्तर दिया कि उनके प्रभु पैदल चलकर गए हैं इसलिए उचित तो यही है कि वे अपने सिर के बल चलकर जाए । उन्होंने कहा कि सेवक का स्थान सदैव अपने स्वामी से बहुत नीचा होता है ।

प्रकाशन तिथि : 19 मार्च 2020
415 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/203/दोहा चौपाई / छंद / दोहा -
कहत राम सिय राम सिय उमगि उमगि अनुराग ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री भरतलालजी ने वन यात्रा का पूरा मार्ग प्रेम और उमंग से श्रीसीताराम-श्रीसीताराम कहते-कहते तय किया । पूरी यात्रा में प्रभु और माता का क्षणभर के लिए भी विस्मरण उन्होंने अपने हृदय और वाणी से नहीं होने दिया । यह भक्त का सबसे बड़ा लक्षण होता है कि वह हर समय और हर परिस्थिति में प्रभु को याद रखता है ।

प्रकाशन तिथि : 20 मार्च 2020
416 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/204/दोहा चौपाई / छंद / दोहा -
अरथ न धरम न काम रुचि गति न चहउँ निरबान । जनम जनम रति राम पद यह बरदानु न आन ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री रामचरितमानसजी की यह एक बहुत प्रसिद्ध चौपाई है । इस चौपाई में श्री भरतलालजी द्वारा तीर्थराज श्री प्रयागराजजी से मांगा वह वरदान है जिससे ऊँ‍‍ची मांग और कुछ भी नहीं हो सकती । श्री भरतलालजी कहते हैं कि न उन्हें अर्थ यानी धन चाहिए, न उन्हें धर्म और न ही उन्हें कामना पूर्ति चाहिए । यहाँ तक कि उन्हें दुर्लभ मोक्ष भी नहीं चाहिए । उन्हें बस इतना चाहिए कि जन्मों-जन्मों तक उनका प्रभु श्री रामजी के श्रीकमलचरणों में निश्छल और निष्काम प्रेम हो । श्री भरतलालजी कहते हैं कि प्रभु प्रेम के अलावा उन्हें और कुछ भी नहीं चाहिए ।

प्रकाशन तिथि : 20 मार्च 2020
417 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/205/1 चौपाई / छंद / दोहा -
सीता राम चरन रति मोरें । अनुदिन बढ़उ अनुग्रह तोरें ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - किसी भी देवतागण या तीर्थ या किसी भी पूजा, पाठ, भजन और साधन के फलस्वरूप हमें यही मांगना चाहिए जो श्री भरतलालजी ने यहाँ मांगा है । श्री भरतलालजी तीर्थराज प्रयागराजजी से मांगते हैं कि उनकी कृपा से प्रभु श्री रामजी के श्रीकमलचरणों में उनका प्रेम दिन प्रतिदिन बढ़ता ही चला जाए । कितनी सुंदर मांग है जिससे बड़ी मांग और कुछ हो ही नहीं सकती । पर हम यह मांग मांगने से चूक जाते हैं और तुच्छ संसार मांग लेते हैं ।

प्रकाशन तिथि : 20 मार्च 2020
418 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/205/दोहा चौपाई / छंद / दोहा -
भरत धन्य कहि धन्य सुर हरषित बरषहिं फूल ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री भरतलालजी ने जब तीर्थराज श्री प्रयागराजजी से प्रभु की श्रीकमलचरणों में प्रीति मांगी तो उन्हें आशीर्वाद मिला कि प्रभु के श्रीकमलचरणों में उनका अथाह प्रेम रहा है और सदा बना रहेगा । श्री भरतलालजी की मांग और तीर्थराज श्री प्रयागराजजी के आशीर्वाद को सुनकर देवतागण हर्षित होकर श्री भरतलालजी को धन्य-धन्य कहकर उनके ऊपर फूलों की वर्षा करने लगे । जो अपने साधन के फल में संसार न मांगकर प्रभु की प्रीति मांगता है देवतागण भी हर्षित होकर उसका सम्मान करते हैं ।

प्रकाशन तिथि : 21 मार्च 2020
419 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/207/दोहा चौपाई / छंद / दोहा -
सकल सुमंगल मूल जग रघुबर चरन सनेहु ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब श्री भरतलालजी मुनि श्री भरद्वाजजी के आश्रम पहुँचे तो मुनि ने उनका स्वागत कर उन्हें आशीर्वाद दिया । मुनि श्री भरद्वाजजी ने श्री भरतलालजी से एक बहुत सार की बात कही । वे बोले कि प्रभु के श्रीकमलचरणों में प्रेम होना ही संसार के समस्त सुंदर मंगलो का मूल है । उन्होंने कहा कि श्री भरतलालजी का जीवनधन और प्राण प्रभु श्री रामजी हैं और प्रभु श्री रामजी के श्रीकमलचरणों में उनका अथाह प्रेम है इसलिए उनके समान जगत में कोई भी बड़भागी नहीं है ।

प्रकाशन तिथि : 21 मार्च 2020
420 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/208/4 चौपाई / छंद / दोहा -
प्रनत कुटुंब पाल रघुराई ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - मुनि श्री भरद्वाजजी द्वारा एक अकाट्य सत्य का प्रतिपादन इस दोहे में मिलता है । वे कहते हैं कि प्रभु श्री रामजी अपने शरणागत को उसके कुटुम्ब समेत पालने वाले हैं । जो जीवन में प्रभु की शरणागति ग्रहण कर लेता है उसकी पूरी-की-पूरी जिम्मेदारी प्रभु वहन करते हैं । शरणागत जीव को फिर किसी भी प्रकार की अपनी चिंता करने की जरूरत नहीं रहती । प्रभु के शरणागत होते ही जीव हर प्रकार से निश्चिंत हो जाता है ।

प्रकाशन तिथि : 21 मार्च 2020