श्री गणेशाय नमः
Devotional Thoughts
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Words of Prayer प्रभु के लिए प्रार्थना, कविता
GOD prayers & poems
प्रभु प्रेरणा से लेखन द्वारा चन्द्रशेखर करवा
क्रम संख्या श्रीग्रंथ संख्या भाव के दर्शन / प्रेरणापुंज
301 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/72/2 चौपाई / छंद / दोहा -
गुर पितु मातु न जानउँ काहू । कहउँ सुभाउ नाथ पतिआहू ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब प्रभु श्री रामजी ने श्री लक्ष्मणजी को यह कहकर श्री अयोध्याजी में रोकना चाहा कि गुरु, पिता, माता, परिवार और प्रजा को संभालने वाला कोई नहीं रहेगा तो श्री लक्ष्मणजी ने अदभुत अनन्यता दिखाई । उन्होंने प्रभु से कहा कि वे प्रभु के स्नेह में पले प्रभु के बच्चे हैं और वे विश्वास पूर्वक कहते हैं कि प्रभु ही उनके एकमात्र गुरु, माता, पिता और परिजन हैं । फिर जो श्री लक्ष्मणजी ने कहा वह अत्यंत हृदयस्पर्शी है । श्री लक्ष्मणजी ने मर्यादा अवतार में गुरु, माता, पिता की सेवा की मिसाल रखने वाले प्रभु से ही कह दिया कि वे किसी गुरु, माता, पिता को नहीं जानते क्योंकि उनके लिए सब कुछ उनके प्रभु ही हैं । ऐसी अनन्यता हो तो प्रभु भी अपना निर्णय बदलने के लिए बाध्य हो जाते हैं ।

प्रकाशन तिथि : 11 फरवरी 2020
302 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/72/3 चौपाई / छंद / दोहा -
जहँ लगि जगत सनेह सगाई । प्रीति प्रतीति निगम निजु गाई ॥ मोरें सबइ एक तुम्ह स्वामी । दीनबंधु उर अंतरजामी ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री लक्ष्मणजी का प्रभु प्रेम में कहा यह वचन अत्यंत हृदयस्पर्शी है । श्री लक्ष्मणजी कहते हैं कि जगत में जहाँ तक स्नेह, प्रेम और विश्वास का संबंध है वह सब उनके लिए केवल प्रभु के साथ है । कहने का तात्पर्य यह है कि सब संबंधों को वे प्रभु के साथ ही जोड़कर मानते हैं । उनका स्नेह, प्रेम और विश्वास केवल प्रभु के लिए ही है और उनके सब कुछ केवल प्रभु ही हैं ।

प्रकाशन तिथि : 11 फरवरी 2020
303 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/74/1 चौपाई / छंद / दोहा -
तात तुम्हारि मातु बैदेही । पिता रामु सब भाँति सनेही ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री रामजी ने श्री लक्ष्मणजी को वनवास में साथ चलने की आज्ञा दे दी और उन्हें जब भगवती सुमित्रा माता से आज्ञा लेने भेजा तो भगवती सुमित्रा माता ने जो कहा उससे उनकी गरिमा सबकी नजरों में बहुत बढ़ गई । भगवती सुमित्रा माता ने तुरंत अपनी ममता और मातृत्व को रोक लिया और श्री लक्ष्मणजी से कहा कि प्रभु श्री रामजी और भगवती सीता माता की वन में सेवा करने का सौभाग्य कभी नहीं चूकना चाहिए । उन्होंने श्री लक्ष्मणजी को कहा कि आज से भगवती सीता माता ही तुम्हारी माता और सब प्रकार से स्नेह करने वाले प्रभु श्री रामजी ही तुम्हारे पिता हैं । इस श्रीलीला का संदेश यह है कि माता वही माता कहलाने योग्य है जो अपनी संतान को प्रभु से जोड़ती है और प्रभु सेवा में लगाती है ।

प्रकाशन तिथि : 11 फरवरी 2020
304 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/74/2 चौपाई / छंद / दोहा -
अवध तहाँ जहँ राम निवासू । तहँइँ दिवसु जहँ भानु प्रकासू ॥ जौ पै सीय रामु बन जाहीं । अवध तुम्हार काजु कछु नाहिं ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री लक्ष्मणजी को वनवास नहीं मिला था पर उनकी माता ने उनसे कहा कि अगर प्रभु श्री रामजी और भगवती सीता माता वन में जाते हैं तो उनका श्री अयोध्याजी में कतई कोई काम नहीं है । उनकी श्री अयोध्याजी वही है जहाँ उनके प्रभु श्री रामजी निवास करेंगे । श्री लक्ष्मणजी जब अपनी माता से प्रभु के साथ में जाने की आज्ञा लेने गए तो वे डर रहे थे कि कहीं उनकी माता ममता के कारण उन्हें रोक न ले पर उनकी माता धन्य हैं जिन्होंने उन्हें तत्काल प्रभु के साथ जाने का ही आदेश दिया ।

प्रकाशन तिथि : 12 फरवरी 2020
305 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/74/4 चौपाई / छंद / दोहा -
पूजनीय प्रिय परम जहाँ तें । सब मानिअहिं राम के नातें ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - भगवती सुमित्रा माता ने श्री लक्ष्मणजी को एक बहुत मर्म की बात कही । उन्होंने कहा कि जगत में जहाँ तक पूजनीय और परम प्रिय लोग हैं वे सब तब तक ही हमारे लिए पूजनीय और प्रिय होने चाहिए जब तक उनका नाता प्रभु के साथ रहता है । तात्पर्य यह है कि जो प्रभु के हैं वे ही हमारे पूजनीय और प्रिय होने चाहिए । जो प्रभु से विमुख हैं वे चाहे कितने भी हमारे करीबी हो फिर भी वे न तो हमारे पूजनीय और न ही हमारे प्रिय होने चाहिए ।

प्रकाशन तिथि : 12 फरवरी 2020
306 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/74/दोहा चौपाई / छंद / दोहा -
जौं तुम्हरें मन छाड़ि छलु कीन्ह राम पद ठाउँ ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - भगवती सुमित्रा माता ने श्री लक्ष्मणजी को प्रभु श्री रामजी के साथ वन जाने की तत्काल आज्ञा दी और कहा कि ऐसा करके प्रभु सानिध्य में जगत में जीने का लाभ उठाना चाहिए । उन्होंने कहा कि श्री लक्ष्मणजी तो सौभाग्य के पात्र हैं ही कि उनके मन ने प्रभु श्री रामजी के श्रीकमलचरणों में स्थान प्राप्त किया है । पर साथ ही श्री लक्ष्मणजी की माता होने के कारण वे भी अपने को सौभाग्यशाली मानती हैं क्योंकि उनके पुत्र ने प्रभु के साथ जाकर प्रभु की सेवा करने का निर्णय लिया है ।

प्रकाशन तिथि : 12 फरवरी 2020
307 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/75/1 चौपाई / छंद / दोहा -
पुत्रवती जुबती जग सोई । रघुपति भगतु जासु सुतु होई ॥ नतरु बाँझ भलि बादि बिआनी । राम बिमुख सुत तें हित जानी ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - भगवती सुमित्रा माता के द्वारा एक अमर वाक्य इस दोहे में कहा गया है । वे कहती हैं कि संसार में वही स्त्री पुत्रवती कहलाने योग्य है जिसने प्रभु भक्त संतान को जन्म दिया हो । नहीं तो जो भक्त संतान को जन्म नहीं देती उसका बांझ ही रहना उचित है । अगर किसी स्त्री ने भक्त संतान को जन्म नहीं दिया तो उसने प्रसव की पीड़ा व्यर्थ ही उठाई । श्री लक्ष्मणजी और श्री शत्रुघ्नजी जैसे दो भक्त संतानों को जन्म देकर भगवती सुमित्रा माता का यह उपदेश कितना सटीक है ।

प्रकाशन तिथि : 13 फरवरी 2020
308 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/75/2 चौपाई / छंद / दोहा -
सकल सुकृत कर बड़ फलु एहू । राम सीय पद सहज सनेहू ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - भगवती सुमित्रा माता श्री लक्ष्मणजी से कहती हैं कि उन्हें अपने भाग्य और पुण्य के कारण प्रभु श्री रामजी और भगवती सीता माता के साथ वन में जाकर उनकी सेवा करने का दुर्लभ अवसर मिल रहा है । भगवती सुमित्रा माता कहती हैं की संपूर्ण पुण्यों का सबसे बड़ा फल यही है कि जीव का प्रभु श्री सीतारामजी के श्रीकमलचरणों में निश्छल और स्वाभाविक प्रेम हो जाए ।

प्रकाशन तिथि : 13 फरवरी 2020
309 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/75/छंद चौपाई / छंद / दोहा -
रति होउ अबिरल अमल सिय रघुबीर पद नित नित नई ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - भगवती सुमित्रा माता श्री लक्ष्मणजी को उपदेश देकर कहती हैं कि वन में मन, वचन और कर्म से प्रभु श्री सीतारामजी की सेवा करें और प्रभु श्री सीतारामजी को जिसमें क्लेश न हो और आनंद एवं आराम हो वही करें । प्रभु श्री सीतारामजी को अपना माता, पिता और परिवार माने और श्री अयोध्याजी के माता, पिता, परिवार और नगर के सुख को भूला दें । भगवती सुमित्रा माता ने यह कहकर श्री लक्ष्मणजी को आशीर्वाद दिया कि उनका प्रभु के श्रीकमलचरणों में निर्मल, निष्काम, अनन्य और प्रगाढ़ प्रेम नित्य प्रतिदिन बढ़ता जाए । यही सीख और यही आशीर्वाद एक माता को अपनी संतानों को देनी चाहिए ।

प्रकाशन तिथि : 13 फरवरी 2020
310 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/81/1 चौपाई / छंद / दोहा -
गनपती गौरि गिरीसु मनाई । चले असीस पाइ रघुराई ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - अनुकूलता और प्रतिकूलता दोनों अवसरों पर प्रभु का सुमिरन करके ही यथोचित कार्य करना चाहिए । हम अनुकूलता की खुशी में प्रभु को भूल जाते हैं और प्रतिकूलता में विषाद के कारण प्रभु को भूल जाते हैं । यहाँ पर प्रभु श्री रामजी ने प्रतिकूल अवस्था में वनवास जाते समय प्रभु श्री गणेशजी, भगवती पार्वती माता और प्रभु श्री महादेवजी का स्मरण किया और उनका आशीर्वाद लेकर ही वन के लिए चले ।

प्रकाशन तिथि : 14 फरवरी 2020
311 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/82/3 चौपाई / छंद / दोहा -
पितृगृह कबहुँ कबहुँ ससुरारी । रहेहु जहाँ रुचि होइ तुम्हारी ॥ एहि बिधि करेहु उपाय कदंबा । फिरइ त होइ प्रान अवलंबा ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब भगवती सीता माता वनवास में प्रभु के साथ जा रही थी तो महाराज श्री दशरथजी ने उन्हें वन का कष्ट बताया और सास, ससुर और पिता के पास रहने का सुख समझाया । गुरुदेव की गुरुपत्नी, मंत्रियों की पत्नी और राज महल की स्त्रियों ने उन्हें समझाया कि उनको वनवास नहीं दिया गया है इसलिए वे श्री अयोध्याजी में ही रुके । फिर भी जब वे प्रभु श्री रामजी के साथ जाने लगी तो महाराज श्री दशरथजी ने मंत्री श्री सुमंत्रजी से कहा कि आप रथ लेकर जाए और दो-चार दिन में जब भगवती सीता माता वन को देखकर डरे या कष्ट को देखकर घबराए तो मौका पाकर उन्हें समझाकर लौटा लाए । महाराज श्री दशरथजी ने कहा कि चौदह वर्ष भगवती सीता माता अपनी इच्छानुसार चाहे सुख से अपने पीहर श्री जनकपुरजी में रहे या ससुराल श्री अयोध्याजी में रहे पर वे वन में न रहे । इतने आग्रह के बाद भी भगवती सीता माता ने अपने पतिव्रत धर्म का पालन किया और विपत्ति और दुःख में अपने पति के साथ ही रही । इसलिए ही पतिव्रत धर्म पालन करने वालों में उनका नाम अग्रणी है और उनका नाम बड़े आदर से लिया जाता है ।

प्रकाशन तिथि : 14 फरवरी 2020
312 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/83/2 चौपाई / छंद / दोहा -
चलत रामु लखि अवध अनाथा ।


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि प्रभु श्री रामजी के श्री अयोध्याजी छोड़कर जाते समय नगर के सभी लोग अपने को अनाथ जान अति व्याकुल हो उठे । यह सत्य सिद्धांत है कि जब तक प्रभु हमारे संग हैं तभी तक ही हम सनाथ हैं और अगर प्रभु सानिध्य जीवन में नहीं हैं तो हम सचमुच अनाथ हो जाते हैं ।

प्रकाशन तिथि : 14 फरवरी 2020
313 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/83/4 चौपाई / छंद / दोहा -
घर मसान परिजन जनु भूता । सुत हित मीत मनहुँ जमदूता ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री रामजी और भगवती सीता माता के श्री अयोध्याजी छोड़कर जाने पर अयोध्यावासियों को श्री अयोध्याजी बड़ी डरावनी लगने लगी । नगर के नर नारी एक-दूसरे को भयंकर दिखने लगे और एक-दूसरे को देखकर डरने लगे । गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि बिना प्रभु अयोध्यावासियों को अपने घर श्मशान, अपने कुटुंबी भूत-प्रेत और अपने हितैषी नर्क के दूत जैसे लगने लगे । तात्पर्य यह है कि जीवन की सब अनुकूलता सदैव प्रभु के कारण ही होती है ।

प्रकाशन तिथि : 15 फरवरी 2020
314 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/84/4 चौपाई / छंद / दोहा -
चले साथ अस मंत्रु दृढ़ाई । सुर दुर्लभ सुख सदन बिहाई ॥ राम चरन पंकज प्रिय जिन्हही । बिषय भोग बस करहिं कि तिन्हही ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री रामजी के साथ सभी अयोध्यावासियों ने वन में रहने का निश्चय किया । उन्होंने एक-दूसरे से कहा कि प्रभु के बिना श्री अयोध्याजी में उनका कतई कोई काम नहीं है । गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि देवतागणों के लिए भी दुर्लभ, ऐसे सुखों से पूर्ण अपने घरों को क्षणभर में त्यागकर सब प्रभु श्री रामजी के साथ चल पड़े । गोस्वामीजी कहते हैं कि जिनको प्रभु के श्रीकमलचरणों से प्रेम है उन्हें विषय भोग कभी आकर्षित नहीं कर सकते । इसलिए श्री अयोध्याजी जैसे दुर्लभ सुख और विषय भोग को क्षणभर में त्यागकर सभी प्रभु के पीछे चले ।

प्रकाशन तिथि : 15 फरवरी 2020
315 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/85/1 चौपाई / छंद / दोहा -
करुनामय रघुनाथ गोसाँई । बेगि पाइअहिं पीर पराई ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - अपनी प्रजा को अपने पीछे आते देख प्रभु ने अपने दयालु हृदय में अति दुःख का अनुभव किया । गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि प्रभु श्री रामजी स्वभाव से बड़े ही करुणामय हैं । प्रभु का एक बहुत बड़ा सद्गुण यह है कि पराई पीड़ा को वे तुरंत अपनी पीड़ा मान लेते हैं और पराई पीड़ा के दुःख से स्वयं दुःखी हो जाते हैं ।

प्रकाशन तिथि : 15 फरवरी 2020
316 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/87/2 चौपाई / छंद / दोहा -
गंग सकल मुद मंगल मूला । सब सुख करनि हरनि सब सूला ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब प्रभु श्री रामजी भगवती गंगा माता के तट पर पहुँचे तो भगवती गंगा माता को देखते ही प्रभु तुरंत रथ से उतर गए और बड़े हर्ष से दंडवत प्रणाम किया । प्रभु ने सभी को कहा कि भगवती गंगा माता समस्त आनंद और मंगलों की मूल हैं । प्रभु ने कहा कि भगवती गंगा माता सभी को सुखी करने वाली और सबकी पीड़ा हरने वाली माता है । प्रभु ने भाव विभोर होकर भगवती सीता माता, श्री लक्ष्मणजी और श्री सुमंत्रजी को देवनदी की बड़ी महिमा सुनाई ।

प्रकाशन तिथि : 16 फरवरी 2020
317 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/87/दोहा चौपाई / छंद / दोहा -
चरित करत नर अनुहरत संसृति सागर सेतु ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि सच्चिदानंद प्रभु मानव श्रीचरित्र करते हुए ऐसी श्रीलीला करते हैं जिसका श्रवण और गान करके जीव संसार सागर से तर सकेगा । गोस्वामीजी कहते हैं कि प्रभु की श्रीलीला संसाररूपी सागर से पार उतरने के लिए सेतु के समान है ।

प्रकाशन तिथि : 16 फरवरी 2020
318 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/88/3 चौपाई / छंद / दोहा -
नाथ कुसल पद पंकज देखें । भयउँ भागभाजन जन लेखें ॥ देव धरनि धनु धामु तुम्हारा । मैं जनु नीचु सहित परिवारा ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब श्रृंगवेरपुर के निषादराज गुहजी ने खबर पाई कि प्रभु श्री रामजी पधारे हैं तो वे अति आनंदित होकर प्रभु के स्वागत के लिए आए । उन्होंने प्रभु को साष्टांग दंडवत प्रणाम किया और प्रभु ने स्नेह से उनकी कुशल पूछी । तब निषादराज गुहजी ने कहा कि प्रभु के श्रीकमलचरणों के दर्शन पाकर आज वे भी भाग्यवान पुरुषों की गिनती में शामिल हो गए हैं । उन्होंने कहा कि उनका राज्य, धन और घर सब कुछ प्रभु का ही है और वे अपने परिवार सहित प्रभु के एक नीच सेवक हैं । निषादराज गुहजी ने कहा कि उनकी प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिए और उनके भाग्य को बड़ाई दिलाने के लिए प्रभु पूरी वनवास अवधि में उनके पास ही रुके । प्रभु की जगह अगर कोई और होता तो सहर्ष रुक जाता पर प्रभु ने कहा कि उन्हें वन का वास मिला है और उन्हें पिताजी की आज्ञा शिरोधार्य करनी है ।

प्रकाशन तिथि : 16 फरवरी 2020
319 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/89/2 चौपाई / छंद / दोहा -
एक कहहिं भल भूपति कीन्हा । लोयन लाहु हमहि बिधि दीन्हा ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब श्रृंगवेरपुर के लोगों ने प्रभु श्री रामजी और भगवती सीता माता को देखा तो वे कहने लगे कि इतने सुकुमार और सुंदर प्रभु को कैसे इनके माता-पिता ने वनवास दे दिया । चर्चा में किसी ने कहा कि इनके माता-पिता ने अच्छा ही किया क्योंकि इस बहाने उन्हें प्रभु के अति दुर्लभ दर्शन का घर बैठे लाभ मिल गया । उन्होंने कहा कि नेत्रों का सबसे बड़ा लाभ यही है कि उनसे प्रभु और माता का दर्शन हो जाए ।

प्रकाशन तिथि : 17 फरवरी 2020
320 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/93/2 चौपाई / छंद / दोहा -
जानिअ तबहिं जीव जग जागा । जब जब बिषय बिलास बिरागा ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री लक्ष्मणजी निषादराज गुहजी को उपदेश देते हुए कहते हैं कि जगत में उसी जीव को जगा हुआ जानना चाहिए जिसका कि संसार के संपूर्ण भोग विलासों से वैराग्य हो गया हो । जो अभी संसार के भोग विलासों में लिप्त है वह जीव अभी मुक्त नहीं है बल्कि फंसा हुआ है ।

प्रकाशन तिथि : 17 फरवरी 2020
321 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/93/3 चौपाई / छंद / दोहा -
होइ बिबेकु मोह भ्रम भागा । तब रघुनाथ चरन अनुरागा ॥ सखा परम परमारथु एहू । मन क्रम बचन राम पद नेहू ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री लक्ष्मणजी निषादराज गुहजी से कहते हैं कि विवेक जागृत होने पर जीव का अज्ञान नष्ट हो जाता है और अज्ञान नष्ट होने पर जीव अपना प्रभु से रिश्ता पहचान लेता है । फिर उस जीव का प्रभु के श्रीकमलचरणों में स्वाभाविक प्रेम हो जाता है । श्री लक्ष्मणजी कहते हैं कि मन, वचन और कर्म से प्रभु के श्रीकमलचरणों में प्रेम होना, यही सर्वश्रेष्ठ पुरुषार्थ है ।

प्रकाशन तिथि : 17 फरवरी 2020
322 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/93/दोहा चौपाई / छंद / दोहा -
भगत भूमि भूसुर सुरभि सुर हित लागि कृपाल । करत चरित धरि मनुज तनु सुनत मिटहि जग जाल ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री लक्ष्मणजी निषादराज गुहजी से कहते हैं कि प्रभु अपने भक्त, भगवती पृथ्वी माता, ब्राह्मण, गौ-माता और देवतागण के हित के लिए अवतार ग्रहण करते हैं और विभिन्न श्रीलीलाएं करते हैं । प्रभु की इन श्रीलीलाओं को सुनने से जगत के जंजाल मिट जाते हैं ।

प्रकाशन तिथि : 18 फरवरी 2020
323 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/94/1 चौपाई / छंद / दोहा -
सिय रघुबीर चरन रत होहू ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री लक्ष्मणजी निषादराज गुहजी को उपदेश देते वक्त एक बहुत मर्म की बात कहते हैं । वे कहते हैं जगत के मोह को त्यागकर प्रभु और माता के श्री युगलचरणों में प्रेम करना चाहिए । यही अध्यात्म की दृष्टि से जीव की सच्ची और सबसे बड़ी उपलब्धि है ।

प्रकाशन तिथि : 18 फरवरी 2020
324 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/95/3 चौपाई / छंद / दोहा -
धरमु न दूसर सत्य समाना । आगम निगम पुरान बखाना ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब श्री सुमंत्रजी ने प्रभु श्री रामजी से कहा कि महाराज श्री दशरथजी ने उनसे कहा है कि दो-चार दिन वन में घुमाकर प्रभु और माता को वापस श्री अयोध्याजी लौटा लाए तो प्रभु ने सत्य की दुहाई दी । प्रभु ने कहा कि उन्हें माता-पिता के वचनों को सत्य करना है । प्रभु ने कहा कि श्री वेदजी, शास्त्रों और पुराणों में वर्णित है कि सत्य के समान कोई दूसरा धर्म नहीं है । प्रभु ने कहा कि सत्यरूपी धर्म का जीवन की किसी भी अवस्था में और किसी भी परिस्थिति में त्याग नहीं होना चाहिए ।

प्रकाशन तिथि : 18 फरवरी 2020
325 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/97/दोहा चौपाई / छंद / दोहा -
आरजसुत पद कमल बिनु बादि जहाँ लगि नात ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब श्री सुमंत्रजी ने भगवती सीता माता से कहा कि महाराज श्री दशरथजी चाहते हैं कि आप लौट आए और मायके या ससुराल में जहाँ भी आपका मन करे वहाँ सुखपूर्वक प्रभु के वनवास काल की अवधि तक रहे । तब भगवती सीता माता ने कहा कि क्या छाया को शरीर के साथ आने से रोका जा सकता है । क्या प्रभु श्री सूर्यनारायणजी की प्रभा उन्हें छोड़कर कहीं जा सकती है । क्या चांदनी श्री चंद्रदेवजी को त्याग कर कहीं जा सकती है । वैसे ही वे प्रभु श्री रामजी को छोड़कर कहीं नहीं जा सकती । माता ने कहा कि प्रभु उनके स्वामी हैं और प्रभु के श्रीकमलचरणों के बिना जगत में जहाँ तक भी नाते हैं वे सब उनके लिए व्यर्थ हैं ।

प्रकाशन तिथि : 19 फरवरी 2020
326 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/98/3 चौपाई / छंद / दोहा -
बिनु रघुपति पद पदुम परागा । मोहि केउ सपनेहुँ सुखद न लागा ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - भगवती सीता माता ने कहा कि उनके पिताजी राजाओं के शिरोमणि हैं और उनके ससुरजी चक्रवर्ती सम्राट हैं पर कोई भी प्रभु श्री रामजी के श्रीकमलचरणों की रज के बिना उन्हें स्वप्न में भी सुखदायक नहीं लगते । दूसरी तरफ प्रभु का साथ होने पर दुर्गम रास्ते, जंगल, जंगली पशु-पक्षी सब उन्हें सुख देने वाले प्रतीत होते हैं ।

प्रकाशन तिथि : 19 फरवरी 2020
327 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/99/4 चौपाई / छंद / दोहा -
मेटि जाइ नहिं राम रजाई ।


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी एक अकाट्य सिद्धांत का प्रतिपादन यहाँ पर करते हैं । वे कहते हैं कि प्रभु की आज्ञा कभी भी और किसी भी परिस्थिति में पूर्ण होकर ही रहती है । उस आज्ञा को कैसे भी मिटाया नहीं जा सकता । प्रभु की आज्ञा का पालन करने के अलावा किसी के पास कोई विकल्प ही नहीं होता । इसलिए सभी प्रभु की आज्ञा को शिरोधार्य कर मान्य करते हैं और उसकी अनुपालना करते हैं ।

प्रकाशन तिथि : 19 फरवरी 2020
328 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/100/1 चौपाई / छंद / दोहा -
जासु बियोग बिकल पसु ऐसे । प्रजा मातु पितु जिइहहिं कैसें ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री रामजी ने जब श्री सुमंत्रजी को बहुत समझाकर वापस लौटाया तो उनके रथ के घोड़े की यह दशा हो गई कि वे वापस जाना ही नहीं चाहते और प्रभु को देख देखकर बार-बार हिनहिनाते हैं । गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि प्रभु के वियोग में जब पशु की यह दशा हो गई और वे इतने व्याकुल हो उठे तो प्रभु के वियोग में उनके माता-पिता और श्री अयोध्याजी की प्रजा की क्या दशा हुई होगी इसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते ।

प्रकाशन तिथि : 20 फरवरी 2020
329 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/100/छंद चौपाई / छंद / दोहा -
तब लगि न तुलसीदास नाथ कृपाल पारु उतारिहौं ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री केवटजी प्रभु श्री रामजी के श्रीकमलचरणों को पखारने का बहाना तलाश रहे थे जिससे कि चरणामृत को प्रसाद रूप में ग्रहण करके वे अपने पितरों के साथ आवागमन के चक्र से सदा के लिए मुक्त हो जाए । इसलिए उन्होंने प्रभु को प्रभु की ही दुहाई दे दी कि प्रभु आज्ञा दें कि वे प्रभु के श्रीकमलचरणों को पखार लें अन्यथा वे प्रभु को भगवती गंगाजी के पार अपनी नांव में नहीं उतारेंगे । भवसागर से पार उतारने वाले प्रभु को भी इस प्रेम के वशीभूत होकर कहना पड़ा कि भगवती गंगाजी के पार उतारने से पहले श्री केवटजी अपनी मन की इच्छा पूरी कर लें ।

प्रकाशन तिथि : 20 फरवरी 2020
330 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/101/2 चौपाई / छंद / दोहा -
जासु नाम सुमरत एक बारा । उतरहिं नर भवसिंधु अपारा ॥ सोइ कृपालु केवटहि निहोरा । जेहिं जगु किय तिहु पगहु ते थोरा ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि जिन प्रभु का एक बार नाम स्मरण करके जीव अपार भवसागर से पार हो जाता है वे प्रभु प्रेम के कारण भगवती गंगाजी के पार उतरने के लिए श्री केवटजी के निहोरे कर रहे हैं । जिन प्रभु ने श्रीवामन अवतार में दो श्रीकमलचरणों से ही पूरी त्रिलोकी को नाप लिया था वे प्रभु प्रेम के कारण श्री केवटजी की मनुहार कर रहे हैं । तात्पर्य यह है कि जब प्रभु अपने भक्त में अनन्य प्रेम का भाव देखते हैं तो प्रभु अपनी प्रभुता को भी भूला देते हैं ।

प्रकाशन तिथि : 20 फरवरी 2020
331 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/101/4 चौपाई / छंद / दोहा -
बरषि सुमन सुर सकल सिहाहीं । एहि सम पुन्यपुंज कोउ नाहीं ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब श्री केवटजी अत्यंत आनंद और प्रेम से भरकर प्रभु के श्रीकमलचरणों को पखारने लगे तो उनके भाग्य को देखकर आकाश से देवतागण उन पर फूल बरसाने लगे । सभी देवतागण उनके भाग्य की सराहना करने लगे और कहने लगे कि श्री केवटजी के समान पुण्य की राशि अन्य कोई नहीं है जिन्हें प्रभु के श्रीकमलचरणों को पखारने का परम सौभाग्य मिला है ।

प्रकाशन तिथि : 21 फरवरी 2020
332 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/101/दोहा चौपाई / छंद / दोहा -
पद पखारि जलु पान करि आपु सहित परिवार । पितर पारु करि प्रभुहि पुनि मुदित गयउ लेइ पार ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु के श्रीकमलचरणों को पखारकर उस चरणामृत को श्री केवटजी ने अपने परिवार सहित ग्रहण किया और इस महान पुण्य के कारण उनके सभी पितर तत्काल भवसागर से स्वतः पार हो गए । प्रभु की करुणा और कृपा देखें कि स्वयं भगवती गंगाजी से पार होने के पूर्व प्रभु ने श्री केवटजी के सभी पितरों को भवसागर से पार कर दिया ।

प्रकाशन तिथि : 21 फरवरी 2020
333 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/102/3 चौपाई / छंद / दोहा -
नाथ आजु मैं काह न पावा । मिटे दोष दुख दारिद दावा ॥ बहुत काल मैं कीन्हि मजूरी । आजु दीन्ह बिधि बनि भलि भूरी ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब भगवती गंगाजी के पार उतरने के बाद प्रभु श्री रामजी ने श्री केवटजी को उतराई देनी चाहिए तो श्री केवटजी ने व्याकुल होकर मना कर दिया और प्रभु के श्रीकमलचरणों को पकड़ लिया । उन्होंने प्रभु से कहा कि आज उन्होंने सब कुछ पा लिया है । उन्हें विधाता ने प्रभु सेवा करने का अवसर देकर जीवन भर की भरपूर मजदूरी दे दी है । प्रभु के चरणामृत के प्रसाद ने परिवार सहित उनके सभी दुःख, दोष और दरिद्रता का निवारण सदैव के लिए कर दिया है ।

प्रकाशन तिथि : 21 फरवरी 2020
334 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/102/दोहा चौपाई / छंद / दोहा -
बिदा कीन्ह करुनायतन भगति बिमल बरु देइ ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु के बहुत आग्रह और यत्न करने के बाद भी जब श्री केवटजी ने प्रभु से उतराई में कुछ नहीं लिया तो करुणा के धाम प्रभु को बाध्य होकर उन्हें निर्मल भक्ति का दान देना पड़ा । कितना सुंदर संदेश इस दोहे में छिपा है कि जब हम प्रभु सेवा की एवज में प्रभु से कुछ भी मांग लेते हैं तो प्रभु हमें वह दे देते हैं । पर जब हम कुछ नहीं मांगते और निष्काम हो जाते हैं तो प्रभु को बाध्य होकर सबसे दुर्लभ भक्ति का दान देना पड़ता है क्योंकि प्रभु का स्वभाव है कि प्रभु दिए बिना नहीं रह सकते । अब यह हमें देखना है कि हमें प्रभु से मांगकर तुच्छ वस्तुएं लेनी है या निष्काम बनकर सबसे दुर्लभ भक्ति का दान प्रभु से लेना है ।

प्रकाशन तिथि : 22 फरवरी 2020
335 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/103/4 चौपाई / छंद / दोहा -
तदपि देबि मैं देबि असीसा । सफल होपन हित निज बागीसा ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - भगवती गंगाजी के पार उतरने के बाद प्रभु श्री रामजी ने श्री गंगाजल में स्नान करके प्रभु श्री महादेवजी की पार्थिव पूजा की और उन्हें प्रणाम किया । भगवती सीता माता ने भगवती गंगा माता से मनौती मनाई । तब भगवती गंगा माता ने भगवती सीता माता से कहा कि आपके प्रभाव को जगत में सब जानते हैं । फिर भी आपने मुझसे विनती करके मुझे बड़ाई दी है । भगवती गंगा माता ने भगवती सीता माता से कहा कि वे अपनी वाणी को सफल और पवित्र करने के लिए उन्हें आशीर्वाद देती हैं कि वे वनवास काल पूर्ण करके कुशलपूर्वक लौटेगी और उनका सुंदर सुयश जगत भर में छा जाएगा ।

प्रकाशन तिथि : 22 फरवरी 2020
336 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/104/दोहा चौपाई / छंद / दोहा -
तब गनपति सिव सुमिरि प्रभु नाइ सुरसरिहि माथ ।


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - भगवती गंगाजी को पार करने के बाद और वन में प्रवेश करने से पहले प्रभु श्री रामजी ने प्रथम पूज्य प्रभु श्री गणेशजी, प्रभु श्री महादेवजी और भगवती गंगा माता को मस्तक नवाकर प्रणाम किया और उनका आशीर्वाद लेकर वन में प्रवेश किया । प्रभु ऐसा करके बताते हैं कि किसी भी नई चुनौती का सामना करने से पहले प्रभु का स्मरण करके, प्रभु को दंडवत प्रणाम करके और प्रभु का आशीर्वाद लेकर ही ऐसा करना चाहिए ।

प्रकाशन तिथि : 22 फरवरी 2020
337 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/106/1 चौपाई / छंद / दोहा -
सुख सागर रघुबर सुखु पावा ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी श्री प्रयागराजजी की महिमा बताते हुए कहते हैं कि श्री प्रयागराजजी के दर्शन से दुःख और दरिद्रता नष्ट हो जाते हैं । श्री वेदजी और श्रीपुराण भाट की तरह श्री प्रयागराजजी के निर्मल यश और प्रभाव का गान करते हैं । श्री प्रयागराजजी का माहात्म्य यह है कि वे जीव के पापों के समूह को ही नष्ट कर देते हैं । गोस्वामीजी कहते हैं कि ऐसे मनोहर श्री प्रयागराजजी के दर्शन करके सुख के सागर प्रभु श्री रामजी ने भी अत्यंत सुख पाया । प्रभु ने अपने श्रीमुख से श्री प्रयागराजजी की महिमा का सबके सामने बखान किया और विधिपूर्वक श्री प्रयागराजजी का पूजन किया ।

प्रकाशन तिथि : 23 फरवरी 2020
338 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/106/दोहा चौपाई / छंद / दोहा -
लोचन गोचर सुकृत फल मनहुँ किए बिधि आनि ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब प्रभु श्री रामजी मुनि श्री भरद्वाजजी के आश्रम पधारें तो मुनि के हृदय में प्रभु का आगमन सुनकर अति आनंद हुआ । उन्हें लगा कि विधाता ने आज उनके संपूर्ण संचित पुण्यों का फल एक साथ लाकर प्रभु के रूप में उनकी आँखों के सामने कर दिया है । सत्य यही है कि हमारे जन्मों-जन्मों के संचित पुण्यों का जब उदय होता है तो ही प्रभु का अति दुर्लभ दर्शन हमें मिलता है ।

प्रकाशन तिथि : 23 फरवरी 2020
339 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/107/4 चौपाई / छंद / दोहा -
लाभ अवधि सुख अवधि न दूजी । तुम्हारें दरस आस सब पूजी ॥ अब करि कृपा देहु बर एहू । निज पद सरसिज सहज सनेहू ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - मुनि श्री भरद्वाजजी ने प्रभु श्री रामजी का अपने आश्रम में आदर सत्कार किया और कहा कि प्रभु के आगमन से आज उनके द्वारा किए संपूर्ण शुभ साधन सफल हो गए । उन्होंने कहा कि प्रभु का दर्शन ही लाभ और सुख की सीमा है । प्रभु के दर्शन से ज्यादा लाभ और सुख अन्यत्र कहीं नहीं है । उन्होंने कहा कि प्रभु के दर्शन से उनकी सभी आशाएं पूर्ण हो गई । फिर मुनि श्री भरद्वाजजी ने प्रभु से बड़ी सुंदर मांग की । उन्होंने प्रभु से वर मांगा कि उनका प्रभु के श्रीकमलचरणों में निरंतर स्वाभाविक प्रेम हो । यह कितना सुंदर वरदान है जो हमें भी प्रभु से मांगना चाहिए ।

प्रकाशन तिथि : 23 फरवरी 2020
340 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/107/दोहा चौपाई / छंद / दोहा -
करम बचन मन छाड़ि छलु जब लगि जनु न तुम्हार । तब लगि सुखु सपनेहुँ नहीं किएँ कोटि उपचार ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - मुनि श्री भरद्वाजजी ने प्रभु श्री रामजी से कहा कि जब तक जीव मन, कर्म और वचन के छल को छोड़कर प्रभु का दास नहीं बन जाता तब तक करोड़ों उपाय करने पर भी स्वप्न में भी वह कभी सुख नहीं पा सकता । प्रभु का दास बनने में ही सच्चा गौरव और सुख है ।

प्रकाशन तिथि : 24 फरवरी 2020
341 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/112/1 चौपाई / छंद / दोहा -
पुनि सियँ राम लखन कर जोरी । जमुनहि कीन्ह प्रनामु बहोरी ॥ चले ससीय मुदित दोउ भाई । रबितनुजा कइ करत बड़ाई ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री रामजी जब भगवती यमुनाजी के तट पर पहुँचे तो प्रभु ने स्नान किया और हाथ जोड़कर भगवती यमुना माता को प्रणाम किया । प्रभु श्री सूर्यनारायणजी की पुत्री भगवती यमुनाजी की प्रभु ने बहुत बढ़ाई की और आनंदित होकर उनका आशीर्वाद लेकर आगे चले ।

प्रकाशन तिथि : 24 फरवरी 2020
342 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/113/1 चौपाई / छंद / दोहा -
जे पुर गाँव बसहिं मग माहीं । तिन्हहि नाग सुर नगर सिहाहीं ॥ केहि सुकृतीं केहि घरीं बसाए । धन्य पुन्यमय परम सुहाए ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री रामजी जिस मार्ग से जाते उस रास्ते में बसे गांव की प्रशंसा देवतागण करते और उनके भाग्य की सराहना करते कि आज वे प्रभु दर्शन पाकर इतने धन्य और पुण्यमय हो गए । जहाँ-जहाँ प्रभु के श्रीकमलचरण पड़ते उस जगह की शोभा श्री इंद्रदेवजी की अमरावती से भी अधिक हो जाती । रास्ते में बसने वाले जो लोग प्रभु के दर्शन करते उनको देवतागण सच्चे पुण्यात्मा मानते । जिन तालाबों और नदियों में प्रभु स्नान करते देवसरोवर और देवनदियां उनकी बढ़ाई करते नहीं थकती ।

प्रकाशन तिथि : 24 फरवरी 2020
343 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/113/4 चौपाई / छंद / दोहा -
जेहि तरु तर प्रभु बैठहिं जाई । करहिं कलपतरु तासु बड़ाई ॥ परसि राम पद पदुम परागा । मानति भूमि भूरि निज भागा ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री रामजी मार्ग में जिस वृक्ष के नीचे आराम करने के लिए बैठ जाते, कल्पवृक्ष भी उन वृक्षों की बढ़ाई करते । प्रभु श्री रामजी के श्रीकमलचरण का स्पर्श पाकर भगवती पृथ्वी माता अपना परम सौभाग्य मानती । प्रभु जिस मार्ग से चलते रास्ते में बादल आकर प्रभु के लिए छाया करते और अपनी सेवा प्रभु को अर्पित करते । देवतागण आकाश से प्रभु पर फूलों की वर्षा करते ।

प्रकाशन तिथि : 25 फरवरी 2020
344 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/114/3 चौपाई / छंद / दोहा -
एकन्ह एक बोलि सिख देहीं । लोचन लाहु लेहु छन एहीं ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री रामजी और भगवती सीता माता को देखकर अपने नेत्रों का परम फल पाकर लोग प्रेमानंद में मग्न हो जाते । प्रभु और माता का दर्शन करके प्रेम के कारण उनके शरीर, मन और वाणी के व्यवहार बंद हो जाते । ऐसा प्रतीत होता मानो जन्मों से दरिद्र ने एकाएक चिंतामणि पा ली हो । वे सब एक दूसरे को पुकार-पुकार कर कहते कि इसी क्षण प्रभु और माता का भरपूर दर्शन करके अपने नेत्र होने का परम लाभ ले लेना चाहिए ।

प्रकाशन तिथि : 25 फरवरी 2020
345 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/116/1 चौपाई / छंद / दोहा -
बरनि न जाइ मनोहर जोरी । सोभा बहुत थोरि मति मोरी ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि वनवास के वेश में भी प्रभु श्री रामजी और भगवती सीता माता की अति सुंदर और मनोहर जोड़ी का वर्णन उनसे नहीं किया जा सकता । गोस्वामीजी कहते हैं कि प्रभु और माता की शोभा बहुत अधिक है और उसे वर्णन करने के लिए उनकी बुद्धि बहुत अल्प है ।

प्रकाशन तिथि : 25 फरवरी 2020
346 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/118/4 चौपाई / छंद / दोहा -
मिटा मोदु मन भए मलीने । बिधि निधि दीन्ह लेत जनु छीने ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री रामजी और भगवती सीता माता जिस गांव के बाहर विश्राम करने के लिए थोड़ी देर रुकते उस गांव के लोग इस प्रकार आनंदित होते मानो कंगालों को धन का खजाना मिल गया हो । गांव की स्त्री पुरुष उनसे कहते कि उन्हें अपना दास और दासी मानकर सेवा का मौका दें । पर जब विश्राम के बाद श्री लक्ष्मणजी आगे जाने का मार्ग पूछते तो यह सुनते ही सभी दुःखी हो जाते, सबका आनंद मिट जाता और वे मन में ऐसे उदास होते मानो विधाता ने दी हुई संपत्ति वापस छीन ली हो । गांव वाले प्रभु और माता से हाथ जोड़ जोड़कर विनती करते कि लौटते वक्त भी इसी मार्ग से वापस लौटे और उन्हें अवश्य दर्शन दें ।

प्रकाशन तिथि : 26 फरवरी 2020
347 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/120/4 चौपाई / छंद / दोहा -
एक कहहिं हम बहुत न जानहिं । आपुहि परम धन्य करि मानहिं ॥ ते पुनि पुन्यपुंज हम लेखे । जे देखहिं देखिहहिं जिन्ह देखे ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री रामजी का दर्शन करके सभी अपने को परम धन्य मानने लगते । वे मानते कि सबसे बड़े पुण्यवान वे हैं जिन्होंने प्रभु का दर्शन कर लिया, जो दर्शन कर रहे हैं और जो आगे वनवास अवधि में प्रभु का दर्शन करेंगे । सत्य यही है कि जिन्होंने प्रभु का अति दुर्लभ दर्शन किया है जगत में वे ही सबसे बड़े भाग्यवान और पुण्यवान होते हैं ।

प्रकाशन तिथि : 26 फरवरी 2020
348 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/121/3 चौपाई / छंद / दोहा -
जौं मागा पाइअ बिधि पाहीं । ए रखिअहिं सखि आँखिन्ह माहीं ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु को नंगे श्रीचरणों से चलते हुए देखकर लोगों के हृदय में परम वेदना होती । वे विधाता से मांगते कि प्रभु जिस मार्ग से चले उस मार्ग को ही पूरा पुष्पमय बना दें । वे कहते कि अगर विधाता से उन्हें वर मिले तो वे यही मांगे कि प्रभु को वे अपनी आँखों और पलकों में ही बसा कर रखें जिससे उन्हें कठोर धरती पर चलना ही न पड़े ।

प्रकाशन तिथि : 26 फरवरी 2020
349 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/122/3 चौपाई / छंद / दोहा -
जहँ जहँ जाहिं धन्य सोइ ठाऊँ ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गांव की लोग प्रभु श्री रामजी को देखकर आपस में बात करते हैं कि वही देश, पर्वत, वन और गांव धन्य है जहाँ प्रभु के श्रीकमलचरण पड़ते हैं । वे कहते कि वही स्थान धन्य हो जाता है जहाँ-जहाँ प्रभु जाते हैं । यह सत्य सिद्धांत है कि प्रभु के कारण ही वह वस्तु, स्थान और जीव धन्य होता है जिसको प्रभु सानिध्य मिलता है ।

प्रकाशन तिथि : 27 फरवरी 2020
350 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/123/3 चौपाई / छंद / दोहा -
प्रभु पद रेख बीच बिच सीता । धरति चरन मग चलति सभीता ॥ सीय राम पद अंक बराएँ । लखन चलहिं मगु दाहिन लाएँ ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - वन में चलने के दौरान प्रभु श्री रामजी आगे चलते, भगवती सीता माता उनके पीछे और श्री लक्ष्मणजी सबसे पीछे चलते । प्रभु के श्रीकमलचरणों के श्रीचिह्न को सावधानी से बचाते हुए भगवती सीता माता पीछे चलती जिससे भूल से भी प्रभु के श्रीकमलचरणों के श्रीचिह्न पर उनके श्रीचरण नहीं पड़ जाए । श्री लक्ष्मणजी सेवक के रूप में इतनी बड़ी मर्यादा का पालन करते कि वे प्रभु और माता दोनों के श्रीचरण चिह्नों को बचाते हुए पीछे चलते । कितनी अदभुत मर्यादा भगवती सीता माता और श्री लक्ष्मणजी की देखने को मिलती है जिसकी आज हम कल्पना भी नहीं कर सकते ।

प्रकाशन तिथि : 27 फरवरी 2020
351 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/123/4 चौपाई / छंद / दोहा -
खग मृग मगन देखि छबि होहीं ।


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - लोग प्रभु श्री रामजी की मनोहर छवि देखकर मंत्रमुग्ध होते चले जाते । गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि वन के पशु-पक्षी भी प्रभु की छवि देखकर प्रेमानंद में मग्न हो जाते । प्रभु श्री रामजी वन के पशु-पक्षी के भी चित्त को चुरा लेते । वन के पशु-पक्षी अपना सब कुछ भुलाकर प्रभु की मनोहर छवि को टकटकी लगाकर देखते ही रहते ।

प्रकाशन तिथि : 27 फरवरी 2020
352 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/123/दोहा चौपाई / छंद / दोहा -
जिन्ह जिन्ह देखे पथिक प्रिय सिय समेत दोउ भाइ । भव मगु अगमु अनंदु तेइ बिनु श्रम रहे सिराइ ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि प्रभु इतने कृपालु और अकारण दया करने वाले हैं कि प्रभु और माता का वन में दर्शन जिन भी लोगों ने किया वे आनंद के साथ बिना परिश्रम आवागमन के चक्र से सहज ही छूटकर मुक्त हो गए । उनके जन्म मृत्युरूपी संसार चक्र में भटकना सदैव के लिए समाप्त हो गया ।

प्रकाशन तिथि : 28 फरवरी 2020
353 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/127/2 चौपाई / छंद / दोहा -
सोइ जानइ जेहि देहु जनाई । जानत तुम्हहि तुम्हइ होइ जाई ॥ तुम्हरिहि कृपाँ तुम्हहि रघुनंदन । जानहिं भगत भगत उर चंदन ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - यह श्री रामचरितमानसजी की एक बहुत प्रसिद्ध चौपाई है । महामुनि श्री वाल्मीकिजी प्रभु श्री रामजी से कहते हैं कि जिनको प्रभु अपने बारे में बताना चाहते हैं वे ही प्रभु को जान पाते हैं । यह सत्य है कि प्रभु की इच्छा बिना हम कितने भी श्रीग्रंथों और शास्त्रों को पढ़कर भी प्रभु को किंचित मात्रा में भी नहीं जान सकते । प्रभु की कृपा और प्रभु की इच्छा से ही भक्त प्रभु को जान पाता है ।

प्रकाशन तिथि : 28 फरवरी 2020
354 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/127/दोहा चौपाई / छंद / दोहा -
पूँछेहु मोहि कि रहौं कहँ मैं पूँछत सकुचाउँ । जहँ न होहु तहँ देहु कहि तुम्हहि देखावौं ठाउँ ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री रामजी ने महामुनि श्री वाल्मीकिजी से पूछा कि वनवास काल में ऐसा उपयुक्त स्थान बताए जहाँ वे निवास कर सकें । तो महामुनि श्री वाल्मीकिजी ने विनोद करते हुए प्रभु से पूछा कि पहले प्रभु उन्हें वैसा स्थान बताए जहाँ प्रभु नहीं विराजते हो । महामुनि श्री वाल्मीकिजी के कहने का तात्पर्य यह है कि सारा जगत ही प्रभुमय है और प्रभु की उपस्थिति सर्वत्र है और सर्वदा से है ।

प्रकाशन तिथि : 28 फरवरी 2020
355 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/128/2 चौपाई / छंद / दोहा -
जिन्ह के श्रवन समुद्र समाना । कथा तुम्हारि सुभग सरि नाना ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - महामुनि श्री वाल्मीकिजी से जब प्रभु श्री रामजी ने अपने रहने के लिए स्थान पूछा तो मुनिवर ने कहा कि जिनके कान श्री समुद्रदेवजी के भांति हैं और जो प्रभु की कथारूपी नदियों से सदा उन्हें भरते रहते हैं और कभी भी तृप्त नहीं होते, प्रभु के रहने के लिए उनका हृदय एक सुंदर घर है । प्रभु के बारे में श्रवण करने की महिमा यहाँ पर प्रकट की गई है । जो प्रभु के बारे में निरंतर श्रवण करता है प्रभु कानों के माध्यम से उसके हृदय में प्रवेश करके वहाँ वास करते हैं ।

प्रकाशन तिथि : 29 फरवरी 2020
356 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/128/3 चौपाई / छंद / दोहा -
लोचन चातक जिन्ह करि राखे । रहहिं दरस जलधर अभिलाषे ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - महामुनि श्री वाल्मीकिजी प्रभु श्री रामजी से कहते हैं कि जिन्होंने अपने नेत्रों को चातक पक्षी की तरह बना रखा है जो प्रभु के दर्शनरूपी मेघ के लिए सदा लालायित रहते हैं, प्रभु अपने रहने का स्थान उनके हृदय को बना लें । प्रभु के दर्शन करने की महिमा यहाँ पर प्रकट की गई है । जो प्रभु का जीवन में निरंतर दर्शन करता है प्रभु उसके नेत्रों के माध्यम से उसके हृदय में प्रवेश करके वहाँ वास करते हैं ।

प्रकाशन तिथि : 29 फरवरी 2020
357 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/128/दोहा चौपाई / छंद / दोहा -
जसु तुम्हार मानस बिमल हंसिनि जीहा जासु । मुकुताहल गुन गन चुनइ राम बसहु हियँ तासु ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - महामुनि श्री वाल्मीकिजी प्रभु श्री रामजी से कहते हैं कि प्रभु के यशरूपी निर्मल मानसरोवर में जिनकी जिह्वा हंसिनी बनी हुई है और प्रभु का गुणानुवादरूपी मोती चुगती रहती है, प्रभु अपने रहने का स्थान उनके हृदय को बना लें । प्रभु का गुणानुवाद गाने की महिमा यहाँ पर प्रकट की गई है । प्रभु का गुणानुवाद गाने का बहुत बड़ा लाभ शास्त्रों में बताया गया है । प्रभु का गुणानुवाद हमारे सभी संचित पापों को जला देता है ।

प्रकाशन तिथि : 29 फरवरी 2020
358 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/129/2 चौपाई / छंद / दोहा -
कर नित करहिं राम पद पूजा । राम भरोस हृदयँ नहि दूजा ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - महामुनि श्री वाल्मीकिजी प्रभु श्री रामजी से कहते हैं कि जिनके हाथ प्रभु के श्रीकमलचरणों की पूजा और सेवा करते हैं और जिनके हृदय में एकमात्र प्रभु का ही भरोसा है प्रभु ऐसे जीव के हृदय को अपना निवास स्थान बनाएं । जिस हृदय को केवल और केवल प्रभु का ही भरोसा होता है प्रभु ऐसे हृदय को छोड़कर कभी भी, कहीं भी नहीं जाते ।

प्रकाशन तिथि : 01 मार्च 2020
359 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/129/3 चौपाई / छंद / दोहा -
मंत्रराजु नित जपहिं तुम्हारा ।


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - महामुनि श्री वाल्मीकिजी प्रभु श्री रामजी से कहते हैं कि जो जीव प्रभु के नामरूपी मंत्र को सदैव जपते हैं उनका हृदय प्रभु के रहने योग्य सबसे उपयुक्त स्थान है । यह शाश्वत सिद्धांत है कि प्रभु सदैव उस हृदय में बसते हैं जिस हृदय से प्रभु का नाम जप होता रहता है । नाम जप की महिमा अपार है और कलियुग में तो इसका माहात्म्य बहुत बड़ा है ।

प्रकाशन तिथि : 01 मार्च 2020
360 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/130/1 चौपाई / छंद / दोहा -
काम कोह मद मान न मोहा । लोभ न छोभ न राग न द्रोहा ॥ जिन्ह कें कपट दंभ नहिं माया । तिन्ह कें हृदय बसहु रघुराया ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - महामुनि श्री वाल्मीकिजी कहते हैं कि अगर हमारे हृदय को प्रभु का निवास स्थान बनाना है तो सभी विकार जैसे कामना, क्रोध, अहंकार, मोह, लोभ, राग, द्वेष, कपट और माया से हमें बचना होगा । जिसके हृदय में यह विकार नहीं हैं प्रभु अपने आप उसके हृदय में आकर विराजते हैं ।

प्रकाशन तिथि : 01 मार्च 2020