श्री गणेशाय नमः
Devotional Thoughts
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प्रभु प्रेरणा से लेखन द्वारा चन्द्रशेखर करवा
क्रम संख्या श्रीग्रंथ संख्या भाव के दर्शन / प्रेरणापुंज
241 श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड)
1/324/छंद (1) चौपाई / छंद / दोहा -
जे सकृत सुमिरत बिमलता मन सकल कलि मल भाजहीं ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब विवाह की विधि में महाराज श्री जनकजी और भगवती सुनयनाजी प्रभु श्री रामजी के श्रीकमलचरणों को पखारने लगे तो गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि वे उन श्रीकमलचरणों को पखार रहे थे जिनके स्मरण मात्र से मन में निर्मलता आ जाती है और कलियुग के सारे पाप भाग जाते हैं ।

प्रकाशन तिथि : 22 जनवरी 2020
242 श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड)
1/324/दोहा चौपाई / छंद / दोहा -
जय धुनि बंदी बेद धुनि मंगल गान निसान । सुनि हरषहिं बरषहिं बिबुध सुरतरु सुमन सुजान ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब विवाह की रीति में कन्यादान हुआ और गठजोड़ हुआ तो प्रभु श्री रामजी और भगवती सीता माता के पाणिग्रहण का उल्लास सब तरफ छा गया । सब तरफ से जयध्वनि, श्रीवेदध्वनि और मंगलगान की ध्वनि आने लगी । देवतागण हर्षित होकर कल्पवृक्ष के पुष्पों की वर्षा करने लगे ।

प्रकाशन तिथि : 22 जनवरी 2020
243 श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड)
1/325/1 चौपाई / छंद / दोहा -
नयन लाभु सब सादर लेहीं ॥ जाइ न बरनि मनोहर जोरी । जो उपमा कछु कहौं सो थोरी ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री रामजी और भगवती सीता माता के मनोहर जोड़े को सब आदरपूर्वक देखने लगे और अपने नेत्र होने का परम लाभ लेने लगे । गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि इस अनुपम और अति मनोहर जोड़ी का वर्णन करना उनके लिए कतई संभव नहीं है क्योंकि ऐसा करने के लिए वे जो भी उपमा सोचते हैं वही उन्हें थोड़ी जान पड़ती है ।

प्रकाशन तिथि : 22 जनवरी 2020
244 श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड)
1/325/4 चौपाई / छंद / दोहा -
राम सीय सिर सेंदुर देहीं । सोभा कहि न जाति बिधि केहीं ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब जगतपति जगदीश्वर प्रभु श्री रामजी ने जगजननी जगतमाता भगवती सीता माता के श्रीमाथे पर विवाह की बेला पर सिंदूर अर्पण किया तो देखने वालों के लिए इसकी शोभा इतनी दुर्लभ और निराली थी कि उसका किसी भी प्रकार से शब्दों में वर्णन कर पाना किसी के लिए भी कतई संभव नहीं है ।

प्रकाशन तिथि : 23 जनवरी 2020
245 श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड)
1/327/छंद (4) चौपाई / छंद / दोहा -
चले हरषि बरषि प्रसून निज निज लोक जय जय जय भनी ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री रामजी और भगवती सीता माता का मंगल विवाह जब संपन्न हुआ तो सब देवतागण, योगी, सिद्ध और मुनिजन प्रसन्न होकर अपनी वाणी को सत्य करने के लिए आशीर्वाद देने लगे । देवतागणों ने दुन्दुभी बजाई और हर्षित होकर फूलों की वर्षा करते हुए प्रभु और माता की बारंबार जय-जयकार करते हुए विदा लेकर अपने-अपने लोकों के लिए प्रस्थान किया ।

प्रकाशन तिथि : 23 जनवरी 2020
246 श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड)
1/328/3 चौपाई / छंद / दोहा -
बहुरि राम पद पंकज धोए । जे हर हृदय कमल महुँ गोए ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - महाराज श्री जनकजी ने जब भोजन के लिए बारातियों को बुलाया तो जब प्रभु श्री रामजी आए तो उन्होंने उनके श्रीकमलचरणों को पखारा । गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि महाराज श्री जनकजी उन श्रीकमलचरणों को अपने हाथों से पखार रहे थे जिनको प्रभु श्री महादेवजी सदा-सदा अपने हृदय कमल में छिपाए रखते हैं ।

प्रकाशन तिथि : 23 जनवरी 2020
247 श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड)
1/335/3 चौपाई / छंद / दोहा -
मरनसीलु जिमि पाव पिऊषा । सुरतरु लहै जनम कर भूखा ॥ पाव नारकी हरिपदु जैसें । इन्ह कर दरसनु हम कहँ तैसे ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब बारात की विदाई का समय आया और प्रभु श्री रामजी भगवती सीता माता को विदा करवाने गए तो प्रभु को देखकर सबने कहा कि अब प्रभु चले जाएंगे इसलिए इनकी शोभा को हृदय में धारण करके रख लेनी चाहिए । सबने कहा कि प्रभु का दुर्लभ दर्शन वैसा है जैसा मरने वाले ने मानो अमृत पा लिया हो, जन्म के भूखे ने श्रीकल्पवृक्ष को पा लिया हो और नर्क में रहने वाले ने मानो प्रभु का परमपद पा लिया हो ।

प्रकाशन तिथि : 24 जनवरी 2020
248 श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड)
1/336/दोहा चौपाई / छंद / दोहा -
जन गुन गाहक राम दोष दलन करुनायतन ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - भगवती सुनयनाजी ने विदाई के समय प्रभु श्री रामजी से कहा कि आप भावप्रिय हैं यानी भक्तों के भाव आपको सबसे प्यारे हैं । प्रभु अपने भक्तों के गुणों को ग्रहण करने वाले और अपने भक्तों के दोषों का नाश करने वाले हैं । प्रभु दया के धाम हैं । भक्तों पर अकारण दया करना प्रभु का स्वभाव है ।

प्रकाशन तिथि : 24 जनवरी 2020
249 श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड)
1/338/दोहा चौपाई / छंद / दोहा -
कुँअरि चढ़ाई पालकिन्ह सुमिरे सिद्धि गनेस ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब विदाई के समय भगवती सीता माता के लिए पालकी आई तो महाराज श्री जनकजी ने सुंदर मुहूर्त जानकर भगवती रिद्धि और भगवती सिद्धि माताओं के समेत प्रभु श्री गणेशजी का स्मरण किया और तब भगवती सीता माता को पालकी में चढ़ाया । भगवती रिद्धि और सिद्धि माताओं के साथ प्रथम पूज्य प्रभु श्री गणेशजी का स्मरण करके ही किसी कार्य का संपादन करना चाहिए । ऐसा करने से सब मंगल-ही-मंगल होता है ।

प्रकाशन तिथि : 24 जनवरी 2020
250 श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड)
1/342/2 चौपाई / छंद / दोहा -
मोर भाग्य राउर गुन गाथा। कहि न सिराहिं सुनहु रघुनाथा ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - महाराज श्री जनकजी विदाई के वक्त प्रभु श्री रामजी से मिले और उन्होंने प्रभु से कहा कि प्रभु ने संबंध जोड़कर उन्हें सभी प्रकार से मान और बढ़ाई दी है । अगर भगवती सरस्वती माता और प्रभु श्री शेषजी करोड़ों कल्प तक भी वर्णन करते रहे तो भी प्रभु से संबंध जुड़ने के कारण महाराज श्री जनकजी का सौभाग्य और प्रभु के सद्गुणों को वर्णित नहीं किया जा सकता ।

प्रकाशन तिथि : 25 जनवरी 2020
251 श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड)
1/342/3 चौपाई / छंद / दोहा -
बार बार मागउँ कर जोरें । मनु परिहरै चरन जनि भोरें ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - महाराज श्री जनकजी ने विदाई के वक्त प्रभु श्री रामजी से जो मांगा वह ध्यान देने योग्य है । महाराज श्री जनकजी ने कहा कि वे बारंबार हाथ जोड़कर प्रभु श्री रामजी से मांगते हैं कि उनका मन कभी भूलकर भी प्रभु के श्रीकमलचरणों को न छोड़ें । उनके जीवन में उन्हें प्रभु के श्रीकमलचरणों का स्मरण निरंतर बना रहे ।

प्रकाशन तिथि : 25 जनवरी 2020
252 श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड)
1/347/4 चौपाई / छंद / दोहा -
समउ जानी गुर आयसु दीन्हा । पुर प्रबेसु रघुकुलमनि कीन्हा ॥ सुमिरि संभु गिरजा गनराजा । मुदित महीपति सहित समाजा ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - मंगल अवसर पर खुशी और उल्लास में प्रभु को कभी भी नहीं भूलना चाहिए । जब बारात श्री अयोध्याजी पहुँची तो नगर में वर-वधू के साथ प्रवेश करने से पहले महाराज श्री दशरथजी ने प्रभु श्री गणेशजी, प्रभु श्री महादेवजी और भगवती पार्वती माता का आदरपूर्वक स्मरण किया और फिर बारातियों के साथ आनंद से नगर में प्रवेश किया ।

प्रकाशन तिथि : 25 जनवरी 2020
253 श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड)
1/347/दोहा चौपाई / छंद / दोहा -
होहिं सगुन बरषहिं सुमन सुर दुंदुभीं बजाइ । बिबुध बधू नाचहिं मुदित मंजुल मंगल गाइ ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - विवाह के बाद जब प्रभु श्री रामजी और भगवती सीता माता श्री अयोध्याजी में बारात के साथ प्रवेश कर रहे थे तो नाना शकुन होने लगे । देवतागण आकाश से दुन्दुभी बजाकर फूल बरसाने लगे । देवताओं की पत्नियां सुंदर मंगलगीत गाने लगीं । नगर के भाट प्रभु का यशगान करने लगे । सभी ओर से प्रभु के लिए जयध्वनि सुनाई देने लगी । श्रीवेदध्वनि दसों दिशाओं से सुनाई देने लगी । आकाश में देवतागण और श्री अयोध्याजी के वासी प्रेम मग्न होकर अत्यंत आनंदित हो गए । गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि उस प्रेम और महान आनंद का वर्णन कोई नहीं कर सकता ।

प्रकाशन तिथि : 26 जनवरी 2020
254 श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड)
1/349/4 चौपाई / छंद / दोहा -
सारद उपमा सकल ढँढोरीं ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री रामजी और भगवती सीता माता की छवि को बार-बार देखकर श्री अयोध्याजी की स्त्रियां जगत में अपने जीवन को सफल मान आनंदित हो रही थीं । राजमहल में माताएं और सखियां भगवती सीता माता की अलौकित सुंदरता को देखकर अपने पुण्यों की सराहना करने लगीं जिस कारण उन्हें यह सौभाग्य मिला । देवतागण क्षण-क्षण फूल बरसाकर, नाचकर, गाकर अपनी सेवा प्रभु और माता को समर्पित कर रहे थे । भगवती सरस्वती माता ने वर-वधू को देने के लिए सारी उपमाओं को खोज लिया पर उन्हें कोई उपमा देते नहीं बनी । कोई भी उपमा जो वे सोचती थीं वह उन्हें प्रभु और माता को देने के लिए तुच्छ जान पड़ती ।

प्रकाशन तिथि : 26 जनवरी 2020
255 श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड)
1/350/3 चौपाई / छंद / दोहा -
अमृत लहेउ जनु संतत रोगीं ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री रामजी और भगवती सीता माता को वर-वधू के रूप में देखकर तीनों माताएं हर्षित हो रही थीं और अनेक वस्तुओं का निछावर सभी को कर रही थीं । वे सब आनंद से इतनी भर गई जितना जन्म से रोगी जीव को अमृत पा लेने पर आनंद होता है ।

प्रकाशन तिथि : 26 जनवरी 2020
256 श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड)
1/350/दोहा चौपाई / छंद / दोहा -
एहि सुख ते सत कोटि गुन पावहिं मातु अनंदु ॥ भाइन्ह सहित बिआहि घर आए रघुकुलचंदु ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जितना आनंद जन्म से दरिद्र जीव को पारस मणि पाने से होता है, जितना आनंद अंधे को सुंदर नेत्र को पाने से होता है, जितना आनंद गूंगे को बोलने की शक्ति पाने से होता है, जितना आनंद शूरवीर को युद्ध में विजय पाने से होता है इनसे भी सौ करोड़ गुना आनंद तीनों माताओं को प्रभु श्री रामजी और भगवती सीता माता को वर-वधू के रूप में देखकर हुआ ।

प्रकाशन तिथि : 27 जनवरी 2020
257 श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड)
1/355/2 चौपाई / छंद / दोहा -
प्रेम प्रमोद बिनोदु बढ़ाई । समउ समाजु मनोहरताई ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री अयोध्याजी में प्रभु श्री रामजी और भगवती सीता माता के विवाह के उपलक्ष्य में छाए प्रेम, आनंद और विनोद का वर्णन भगवती सरस्वती माता, प्रभु श्री शेषजी, श्री वेदजी, प्रभु श्री ब्रह्माजी, प्रभु श्री महादेवजी और प्रभु श्री गणेशजी भी करने में संकोच करते हैं । गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि फिर वे भला कैसे उसका वर्णन कर सकते हैं । गोस्वामीजी अपनी दीनता दिखाते हुए कहते हैं कि क्या एक केंचुआ धरती को अपने सिर पर लेने का साहस कर सकता है ।

प्रकाशन तिथि : 27 जनवरी 2020
258 श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड)
1/355/4 चौपाई / छंद / दोहा -
राखेहु नयन पलक की नाई ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - महाराज श्री दशरथजी भगवती कौशल्या माता, भगवती कैकेयी माता और भगवती सुमित्रा माता से कहते हैं कि भगवती सीता माता को वैसे रखें जैसे पलकें नेत्रों को रखती है । जैसे पलक नेत्रों की सब प्रकार से रक्षा भी करती है और नेत्रों को आराम देकर उन्हें सुख भी पहुँचाती है । वैसे ही भगवती सीता माता को आदर, सम्मान और आनंद के साथ रखना और उन्हें हर प्रकार से सुख पहुँचाने की चेष्टा निरंतर करना, ऐसी इच्छा महाराज श्री दशरथजी ने अपनी तीनों रानियों के समक्ष प्रकट की ।

प्रकाशन तिथि : 27 जनवरी 2020
259 श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड)
1/357/4 चौपाई / छंद / दोहा -
जे दिन गए तुम्हहि बिनु देखें । ते बिरंचि जनि पारहिं लेखें ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री रामजी का श्रीमुख देखकर भगवती कौशल्या माता, भगवती कैकेयी माता और भगवती सुमित्रा माता कहती है कि आज उनका जगत में जन्म लेना मानो सफल हुआ । वे कहती हैं कि जो दिन प्रभु को देखे बिना बीते उसे उनकी आयु की गिनती में शामिल नहीं किया जाए । कितना सुंदर उपदेश है कि जो दिन प्रभु सानिध्य में बीते वही दिन दिन कहलाने योग्य है, बाकी के दिन हमने व्यर्थ गंवा दिए जिसमें हमने प्रभु का भजन, पूजन और सेवा नहीं की ।

प्रकाशन तिथि : 28 जनवरी 2020
260 श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड)
1/359/1 चौपाई / छंद / दोहा -
देखि रामु सब सभा जुड़ानी । लोचन लाभ अवधि अनुमानी ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - इस दोहे में कहा गया है कि प्रभु के दर्शन करना ही हमारे नेत्रों का सबसे बड़ा लाभ है । गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि नेत्रों के लाभ की बस यही सीमा है कि उनसे प्रभु का दर्शन बारंबार किया जाए । हमें अपने नेत्रों को संसार दर्शन में न लगाकर प्रभु दर्शन में लगाना चाहिए ।

प्रकाशन तिथि : 28 जनवरी 2020
261 श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड)
1/359/दोहा चौपाई / छंद / दोहा -
उमगी अवध अनंद भरि अधिक अधिक अधिकाति ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री रामजी और भगवती सीता माता के विवाह के बाद श्री अयोध्याजी आने पर वहाँ नित्य नए मंगल और आनंद छा गए । उत्सव में दिन बीतने लगे । गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि श्री अयोध्याजी में आनंद ऐसा उमड़ पड़ा कि उसकी अधिकता दिन प्रतिदिन बढ़ती ही चली जाती रही । यह सिद्धांत है कि प्रभु और माता जहाँ बिराजेंगे वहाँ आनंद उनकी सेवा में उपस्थित होगा ।

प्रकाशन तिथि : 28 जनवरी 2020
262 श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड)
1/361/4 चौपाई / छंद / दोहा -
कबिकुल जीवनु पावन जानी ॥राम सीय जसु मंगल खानी ॥ तेहि ते मैं कछु कहा बखानी । करन पुनीत हेतु निज बानी ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि प्रभु श्री सीतारामजी का यशगान कलियुग के जीवन को पवित्र करने वाला है । प्रभु और माता का यशगान परम मंगल का सूचक है । गोस्वामीजी कहते हैं कि प्रभु और माता का पूर्ण यशगान तो भगवती सरस्वती माता और प्रभु श्री शेषजी भी नहीं कर सकते । इसलिए गोस्वामीजी कहते हैं कि उन्होंने अपनी वाणी को पवित्र करने के लिए अपनी बुद्धि अनुसार मात्र थोड़ा-सा प्रभु के यश का गान किया है ।

प्रकाशन तिथि : 29 जनवरी 2020
263 श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड)
1/361/छंद चौपाई / छंद / दोहा -
निज गिरा पावनि करन कारन राम जसु तुलसी कह्यो । रघुबीर चरित अपार बारिधि पारु कबि कौनें लह्यो ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी किसी लाभ के लिए नहीं बल्कि मात्र अपनी वाणी को पवित्र करने के लिए प्रभु और माता का यशगान करते हैं । वे कहते हैं कि प्रभु का श्रीचरित्र अपार सागर की तरह है जिसका पार कोई भी नहीं पा सकता । उनका प्रभु का किंचित यश गाने का एकमात्र उद्देश्य अपने हृदय को आनंद देना और अपनी वाणी को पवित्र करना है ।

प्रकाशन तिथि : 29 जनवरी 2020
264 श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड)
1/361/दोहा चौपाई / छंद / दोहा -
सिय रघुबीर बिबाहु जे सप्रेम गावहिं सुनहिं । तिन्ह कहुँ सदा उछाहु मंगलायतन राम जसु ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी श्री बालकांडजी के विश्राम पर उसकी फलश्रुति बताते है कि जो प्रभु की बाललीला और विवाह उत्सव का मंगलमय वर्णन आदर से पढ़ेगा या सुनेगा वह भगवती सीता माता और प्रभु श्री रामजी की कृपा से सदा सुख पाएगा । इसलिए प्रभु और माता की श्रीलीलाओं का श्री बालकांडजी में प्रेमपूर्वक श्रवण करना चाहिए जिसका फल आनंद-ही-आनंद है ।

श्री बालकांडजी के विश्राम के बाद अब हम श्री रामचरितमानसजी के नवीन श्री अयोध्याकांडजी में प्रभु कृपा के बल पर मंगल प्रवेश करेंगे ।
श्री रामायणजी और श्री रामचरितमानसजी में मेरी अटूट आस्था है । प्रभु श्री महादेवजी और भगवती पार्वती माता की असीम कृपा से ही इन श्रीग्रंथों को पढ़ने की, लिखने की प्रेरणा मुझे मिली है और मैं शपथपूर्वक कहता हूँ कि मात्र और मात्र प्रभु कृपा के बल पर ही मेरे लिए ऐसा करना संभव हो पाया है ।
प्रभु श्री हनुमानजी की विशेष कृपा के साथ-साथ देवर्षि प्रभु श्री नारदजी का आशीर्वाद का मैंने साक्षात अनुभव किया है । दो महात्माओं का मैं विशेष आभारी हूँ जो ऋषि श्री वाल्मीकिजी और गोस्वामी श्री तुलसीदासजी हैं जिनका अनुग्रह मुझे बराबर मिला है ।
जो कुछ भी लेखन हुआ है वह प्रभु की कृपा के बल पर ही हुआ है । मेरा प्रयास मेरे प्रभु को प्रिय लगे इसी अभिलाषा के साथ में उसे प्रभु के श्रीकमलचरणों में सादर समर्पित करता हूँ ।
प्रभु का,
चन्‍द्रशेखर कर्वा


प्रकाशन तिथि : 29 जनवरी 2020
265 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/1/दोहा चौपाई / छंद / दोहा -
बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी श्री रामचरितमानसजी के श्री अयोध्याकांडजी का आरंभ करने पर कहते हैं कि अब वे अपने सद्गुरुदेव का स्मरण करके प्रभु श्री रामजी के निर्मल यश का वर्णन करने जा रहे हैं । गोस्वामीजी कहते हैं कि प्रभु का यशगान चारों पुरुषार्थ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को देने वाला साधन है ।

प्रकाशन तिथि : 30 जनवरी 2020
266 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/2/3 चौपाई / छंद / दोहा -
मंगलमूल रामु सुत जासू ।


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री रामजी को यहाँ गोस्वामी श्री तुलसीदासजी ने मंगलों का मूल कहा है । यह बात बिलकुल सत्य और अकाट्य है कि संसार के सभी मंगलों के मूल में प्रभु ही हैं । अगर हम जीवन में मंगल चाहते हैं तो हमें मूल को पकड़ना होगा । जिसने भी अपने जीवन में प्रभु को अपना लिया उसके जीवन में मंगल-ही-मंगल होंगे ।

प्रकाशन तिथि : 30 जनवरी 2020
267 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/4/4 चौपाई / छंद / दोहा -
सुनु नृप जासु बिमुख पछिताहीं । जासु भजन बिनु जरनि न जाहीं ॥ भयउ तुम्हार तनय सोइ स्वामी । रामु पुनीत प्रेम अनुगामी ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - ऋषि श्री वशिष्ठजी कहते हैं कि जो प्रभु श्री रामजी से विमुख होते हैं उन्हें जीवन में पछताना-ही-पछताना पड़ता है । वे कहते हैं कि प्रभु के भजन बिना जी की जलन और जी का जंजाल नहीं मिट सकता । फिर जो ऋषिवर ने कहा वह ध्यान देने योग्य है । वे कहते हैं कि प्रभु पवित्र प्रेम के अनुगामी है यानी प्रभु अपने भक्तों और प्रेमी के पवित्र प्रेम के पीछे-पीछे चलने वाले हैं । प्रेम के बंधन को ही प्रभु स्वीकार करते हैं ।

प्रकाशन तिथि : 30 जनवरी 2020
268 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/4/दोहा चौपाई / छंद / दोहा -
बेगि बिलंबु न करिअ नृप साजिअ सबुइ समाजु । सुदिन सुमंगलु तबहिं जब रामु होहिं जुबराजु ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - ऋषि श्री वशिष्ठजी कहते हैं कि प्रभु के युवराज पद पर अभिषेक के लिए सभी दिन शुभ और मंगलमय हैं । यह सिद्धांत है कि प्रभु के लिए सभी दिन, समय सभी अनुकूल, शुभ और मंगलमय होते हैं क्योंकि उन सभी के स्वामी प्रभु हैं ।

प्रकाशन तिथि : 31 जनवरी 2020
269 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/7/4 चौपाई / छंद / दोहा -
रामहि बंधु सोच दिन राती । अंडन्हि कमठ ह्रदउ जेहि भाँती ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री रामजी का अपने अनुज श्री भरतलालजी से प्रेम का इस दोहे में वर्णन मिलता है । श्री भरतलालजी अपने ननिहाल गए हुए थे पर प्रभु श्री रामजी श्री अयोध्याजी में उनके बारे में रात-दिन सोचकर उन्हें याद करते थे । जैसे कछुए के हृदय के चिंतन का विषय उसके अंडे होते हैं वैसे ही प्रभु का हृदय श्री भरतलालजी का चिंतन करता था ।

प्रकाशन तिथि : 31 जनवरी 2020
270 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/9/दोहा चौपाई / छंद / दोहा -
राम कस न तुम्ह कहहु अस हंस बंस अवतंस ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब ऋषि श्री वशिष्ठजी प्रभु श्री रामजी का युवराज पद पर अभिषेक की वार्ता देने और नियम बताने उनके महल आए तो प्रभु ने उनका आदरपूर्वक सत्कार किया और अपने महल में लेकर आए । मानव लीला करते हुए प्रभु की दीनता देखें कि प्रभु ऋषिवर से कहते हैं कि वे तो सेवक हैं और ऋषिवर उनके स्वामी हैं । स्वामी के पधारने से उनका महल पवित्र हो गया यद्यपि उचित तो यह होता कि सेवक को बुलावा भेजा जाता । प्रभु ने कहा कि ऋषिवर की सेवा में ही उनका लाभ छिपा है । प्रभु के ऐसे दीन वचन सुनकर ऋषिवर गदगद हो गए और उन्होंने कहा कि ऐसे दीन वचन केवल और केवल प्रभु ही बोल सकते हैं ।

प्रकाशन तिथि : 31 जनवरी 2020
271 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/10/4 चौपाई / छंद / दोहा -
प्रभु सप्रेम पछितानि सुहाई । हरउ भगत मन कै कुटिलाई ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब प्रभु श्री रामजी को सूचना मिली कि महाराज श्री दशरथजी ने उन्हें युवराज पद देने का निश्चय किया तो प्रभु ने सोचा कि चारों भाइयों का जन्म, खानपान, सोना-उठना, खेलकूद, शिक्षा और विवाह एक साथ ही हुए हैं । फिर भी तीन भाईयों को छोड़कर उनका चुनाव ही युवराज पद के लिए क्यों किया गया । गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि प्रभु का स्वभाव इतना कोमल और उनका हृदय इतना निर्मल है कि उन्हें इस बात की खुशी नहीं बल्कि प्रेमपूर्ण पछतावा हुआ कि उनका चुनाव ही क्यों हुआ ।

प्रकाशन तिथि : 01 फरवरी 2020
272 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/12/दोहा चौपाई / छंद / दोहा -
अजस पेटारी ताहि करि गई गिरा मति फेरि ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब देवतागणों ने देखा कि प्रभु के राज्याभिषेक की तैयारी श्री अयोध्याजी में हो रही है तो वे भगवती सरस्वती माता की शरण में गए । माता ने उनका निवेदन सुना और सोचा कि प्रभु का राज्याभिषेक नहीं होगा तो प्रभु वन में जाएंगे और राक्षसों का वध होगा जिससे सारा जगत सुखी हो जाएगा । तब माता ऐसा सोचकर श्री अयोध्याजी आई पर किसी अयोध्यावासी को उन्होंने इसके लिए माध्याम नहीं बनाया क्योंकि सभी अयोध्यावासियों के हृदय में प्रभु के लिए असीम और अद्वितीय प्रेम था । तब माता ने उस दासी मंथरा को चुना जो मूलतः श्री अयोध्याजी की नहीं थी और कैकई देश से आई थी ।

प्रकाशन तिथि : 01 फरवरी 2020
273 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/15/4 चौपाई / छंद / दोहा -
जौं बिधि जनमु देइ करि छोहू । होहुँ राम सिय पूत पुतोहू ॥ प्रान तें अधिक रामु प्रिय मोरें । तिन्ह कें तिलक छोभु कस तोरें ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - मंथरा ने जब आकर भगवती कैकेयी माता को प्रभु श्री रामजी के राज्याभिषेक की बात बताई तो वे बहुत प्रसन्न हुई । उन्होंने कहा कि प्रभु श्री रामजी उन्हें प्राणों से भी अधिक प्रिय हैं । उन्होंने कहा कि अगर विधाता उन्हें अगला जन्म दे तो यह भी दे कि प्रभु श्री रामजी उनको पुत्र और भगवती सीता माता उनको बहु रूप में मिले । यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि मंथरा के कुसंग के कारण प्रभु से इतना स्नेह करने वाली भगवती कैकेयी माता की मति भी विपरीत हो गई । कुसंग जीवन में कभी नहीं करना चाहिए क्योंकि यह हमें प्रभु से विमुख कर देता है और हमारा पतन करवा देता है ।

प्रकाशन तिथि : 01 फरवरी 2020
274 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/24/2 चौपाई / छंद / दोहा -
को रघुबीर सरिस संसारा । सीलु सनेह निबाहनिहारा ।


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि प्रभु श्री रामजी की तरह शीलवान कोई नहीं और प्रभु श्री रामजी की तरह स्नेह को निभाने वाला भी कोई नहीं है । यह सत्य है कि जो प्रभु से प्रेम और स्नेह करते हैं प्रभु भी उनसे भरपूर प्रेम और स्नेह करते हैं । प्रभु जिस तरह से स्नेह को निभा सकते हैं और निभाते हैं उस तरह से संसार कतई नहीं निभा सकता ।

प्रकाशन तिथि : 02 फरवरी 2020
275 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/24/3 चौपाई / छंद / दोहा -
जेंहि जेंहि जोनि करम बस भ्रमहीं । तहँ तहँ ईसु देउ यह हमहीं ॥ सेवक हम स्वामी सियनाहू । होउ नात यह ओर निबाहू ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब प्रभु श्री रामजी के राजतिलक की वार्ता प्रभु के बालसखाओं ने सुनी तो वे हर्ष में प्रभु से मिलने आए । प्रभु अति स्नेह से उन सबसे मिले और अपने प्रेम से उन्हें संतुष्ट किया । तब सभी बालसखा विधाता से अति सुंदर विनती करने लगे जो हमें भी करनी चाहिए । वे कहने लगे कि कर्मवश उन्हें आगे जिस-जिस योनि में जन्म मिले वहाँ उस-उस योनि में वे सदैव प्रभु के सेवक बनकर रहे और सदैव प्रभु उनको स्वामी रूप में मिले । विधाता ऐसी कृपा करे कि यह सेवक-स्वामी का नाता अंत तक निभता रहे ।

प्रकाशन तिथि : 02 फरवरी 2020
276 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/33/1 चौपाई / छंद / दोहा -
जिऐ मीन बरू बारि बिहीना । मनि बिनु फनिकु जिऐ दुख दीना ॥ कहउँ सुभाउ न छलु मन माहीं । जीवनु मोर राम बिनु नाहीं ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब भगवती कैकेयी माता ने प्रभु श्री रामजी के लिए महाराज श्री दशरथजी से चौदह वर्ष का वनवास मांगा तो महाराज श्री दशरथजी का हृदय जल उठा । उन्होंने कहा कि प्रभु तो बहुत साधु स्वभाव के हैं इसलिए उनका कोई अपराध तो बताओ जिस कारण उन्हें वनवास दिया जाए । महाराज श्री दशरथजी ने कहा कि यहाँ तक प्रभु के स्वभाव की शत्रु भी भूरि-भूरि प्रशंसा करते हैं । फिर महाराज श्री दशरथजी ने कहा कि चाहे मछली पानी बिना जी सकती है या सांप अपनी मणि बिना जीवित रह सकता है पर उनका जीवन प्रभु श्री रामजी के बिना नहीं रह पाएगा । तात्पर्य यह है कि महाराज श्री दशरथजी के प्राण प्रभु श्री रामजी हैं ।

प्रकाशन तिथि : 02 फरवरी 2020
277 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/33/2 चौपाई / छंद / दोहा -
जीवनु राम दरस आधीना ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - महाराज श्री दशरथजी का प्रभु प्रेम इस चौपाई में देखने को मिलता है । महाराज श्री दशरथजी भगवती कैकेयी माता से स्पष्ट कहते हैं कि उनका जीवन प्रभु श्री रामजी के दर्शन के आधीन है । जब तक उन्हें जीवन में प्रभु श्री रामजी के दर्शन होते रहेंगे तब तक ही वे अपना जीवन धारण करके रख पाएंगे ।

प्रकाशन तिथि : 03 फरवरी 2020
278 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/34/4 चौपाई / छंद / दोहा -
मागु माथ अबहीं देउँ तोही । राम बिरहँ जनि मारसि मोही ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - महाराज श्री दशरथजी भगवती कैकेयी माता से कहते हैं कि उन्हें अगर मरना ही है तो सीधे उनका मस्तक ही मांग लें जो वे तुरंत देने को तैयार हैं । पर प्रभु श्री रामजी के वियोग में उन्हें नहीं मारे । वे कहते हैं कि प्रभु के वियोग से उनका मरण निश्चित होगा । इतना अतुल्य प्रेम महाराज श्री दशरथजी प्रभु श्री रामजी से करते थे ।

प्रकाशन तिथि : 03 फरवरी 2020
279 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/37/1 चौपाई / छंद / दोहा -
राम राम रट बिकल भुआलू । जनु बिनु पंख बिहंग बेहालू ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब भगवती कैकेयी माता कैसे भी नहीं मानी तो महाराज श्री दशरथजी प्रभु श्री रामजी का बार-बार नाम लेकर बेहद व्याकुल हो उठे । उनका शरीर शिथिल हो गया, कंठ अवरुद्ध हो गया । गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि जैसे मछली पानी के बिना तड़प रही हो, पक्षी बिना पंख के बेहाल हो, वही अवस्था महाराज श्री दशरथजी की प्रभु प्रेम के कारण हो गई । महाराज श्री दशरथजी विधाता को मनाने लगे की सवेरा ही न हो और कोई जाकर प्रभु श्री रामजी से वनवास की बात ही न कहे ।

प्रकाशन तिथि : 03 फरवरी 2020
280 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/42/1 चौपाई / छंद / दोहा -
भरत प्रानप्रिय पावहिं राजू । बिधि सब बिधि मोहि सनमुख आजु ।


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब प्रभु श्री रामजी को भगवती कैकेयी माता ने दोनों वरदानों के बारे में बताया जो उन्होंने महाराज श्री दशरथजी से मांगे तो प्रभु प्रसन्न हो गए । प्रभु को प्रसन्नता थी कि उनके प्राण प्रिय भाई श्री भरतलालजी को राज्य मिलेगा और उन्हें वन जाना पड़ेगा । प्रभु ने कहा कि उन्हें लगता है कि आज विधाता सब प्रकार से उनके अनुकूल हो गए ।

प्रकाशन तिथि : 04 फरवरी 2020
281 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/43/2 चौपाई / छंद / दोहा -
तुम्ह अपराध जोगु नहिं ताता । जननी जनक बंधु सुखदाता ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब प्रभु श्री रामजी ने सहर्ष वनवास स्वीकार किया तो ग्लानिवश महाराज श्री दशरथजी कुछ नहीं कह पाए और चुप रहे । तो प्रभु ने भगवती कैकेयी माता से पूछा कि उनसे क्या अपराध हुआ जिस कारण महाराज श्री दशरथजी उनसे कुछ नहीं बोल रहे । तब भगवती कैकेयी माता को भी कहना पड़ा कि प्रभु के द्वारा अपने माता-पिता का अपराध बने यह संभव ही नहीं है । प्रभु सदैव माता-पिता के वचनों के पालन में तत्पर रहने वाले हैं और अपने माता-पिता की आज्ञा पालन से सदैव उन्हें सुख देने वाले हैं ।

प्रकाशन तिथि : 04 फरवरी 2020
282 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/44/दोहा चौपाई / छंद / दोहा -
तुम्ह प्रेरक सब के हृदयँ सो मति रामहि देहु । बचनु मोर तजि रहहि घर परिहरि सीलु सनेहु ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब महाराज श्री दशरथजी ने देखा कि बिना विरोध के सहर्ष प्रभु ने वनवास स्वीकार कर लिया तो वे प्रभु श्री महादेवजी से विनती करने लगे । महाराज श्री दशरथजी ने प्रभु श्री महादेवजी से विनती करी कि वे प्रभु श्री रामजी की बुद्धि बदल दें जिससे प्रभु वरदान की बात को नहीं मानकर श्री अयोध्याजी में ही रहे । हम प्रभु से मांगते हैं कि हमारे बच्चे हमारे कहने में रहे पर यहाँ महाराज श्री दशरथजी उल्टा मांग रहे हैं कि प्रभु श्री रामजी उनकी आज्ञा पालन नहीं करें क्योंकि प्रभु श्री रामजी पूर्ण आज्ञाकारी पुत्र हैं । यह कितना बड़ा फर्क है ।

प्रकाशन तिथि : 04 फरवरी 2020
283 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/45/1 चौपाई / छंद / दोहा -
अजसु होउ जग सुजसु नसाऊ । नरक परौ बरु सुरपुरु जाऊ ॥ सब दुख दुसह सहावहु मोही । लोचन ओट रामु जनि होंही ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - महाराज श्री दशरथजी विधाता से मनाने लगे कि चाहे उनका जगत में अपयश हो और उनका अर्जित सुयश नष्ट हो जाए पर प्रभु श्री रामजी उनसे दूर न हो । चाहे वचन भंग होने के कारण उन्हें नर्क में वास मिले और उनका स्वर्ग पर पुण्यकर्मों के कारण मिला अधिकार नष्ट हो जाए पर प्रभु श्री रामजी उनको छोड़कर नहीं जाएँ ।

प्रकाशन तिथि : 05 फरवरी 2020
284 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/46/4 चौपाई / छंद / दोहा -
जो जहँ सुनइ धुनइ सिरु सोई ।


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु के वनवास की वार्ता श्री अयोध्याजी में वैसे फैली जैसे वन में आग फैलती है । प्रभु से सभी लोग इतना अपार स्नेह करते थे कि जो जहाँ वनवास की बात सुनता वह वही अपना सिर दुःख के कारण पीटने लग जाता और पछताता । सभी तरफ भयंकर विषाद फैल गया और कोई भी धीरज धारण करके नहीं रह सका ।

प्रकाशन तिथि : 05 फरवरी 2020
285 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/48/4 चौपाई / छंद / दोहा -
कान मूदि कर रद गहि जीहा । एक कहहिं यह बात अलीहा ॥ सुकृत जाहिं अस कहत तुम्हारे । रामु भरत कहुँ प्रानपिआरे ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री अयोध्याजी के लोग भगवती कैकेयी माता को दोष देने लगे । पर जब कुछ ने श्री भरतलालजी को दोष दिया और उनकी इसमें सम्मति बताई तो वे लोग जो श्री भरतलालजी का श्रीराम प्रेम जानते थे वे अपने हाथों से अपने कानों को बंद कर लेते क्योंकि वे मानते थे कि ऐसी बात सुनने से भी पाप लगेगा । उन्होंने कहने वालों से कहा कि ऐसी बात कहने से कहने वाले के सारे पुण्य ही नष्ट हो जाएंगे क्योंकि श्री भरतलालजी को प्रभु श्री रामजी अपने प्राणों से भी ज्यादा प्यारे हैं ।

प्रकाशन तिथि : 05 फरवरी 2020
286 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/48/दोहा चौपाई / छंद / दोहा -
चंदु चवै बरु अनल कन सुधा होइ बिषतूल । सपनेहुँ कबहुँ न करहिं किछु भरतु राम प्रतिकूल ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जो लोग श्री भरतलालजी के श्रीराम प्रेम को जानते थे वे कहते हैं कि चाहे श्री चंद्रदेवजी आग की चिंगारियां बरसाने लगे या अमृत चाहे विष के समान हो किसी के प्राण ले ले पर श्री भरतलालजी स्वप्न में भी प्रभु श्री रामजी के विरुद्ध कुछ नहीं कर सकते । इसलिए भगवती कैकेयी माता द्वारा मांगे प्रभु श्री रामजी के वनवास में श्री भरतलालजी की कतई सहमति नहीं होगी ।

प्रकाशन तिथि : 06 फरवरी 2020
287 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/49/दोहा चौपाई / छंद / दोहा -
सीय कि पिय सँगु परिहरिहि लखनु कि रहिहहिं धाम । राजु कि भूँजब भरत पुर नृपु कि जिइहि बिनु राम ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री अयोध्याजी के ब्राह्मणों की पत्नियां और कुल की बड़ी बूढ़ी स्त्रियां जो भगवती कैकेयी माता को परम प्रिय थी वे भी उन्हें समझाने आई । उन्होंने स्पष्ट कहा कि प्रभु श्री रामजी के वनवास जाने पर न तो भगवती सीता माता रुकेगी, न ही श्री लक्ष्मणजी रुकेंगे, न श्री भरतलालजी राजा बनकर राज्य करेंगे और न ही महाराज श्री दशरथजी जीवित रह पाएंगे ।

प्रकाशन तिथि : 06 फरवरी 2020
288 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/53/3 चौपाई / छंद / दोहा -
पिताँ दीन्ह मोहि कानन राजू ।


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री रामजी वनवास के लिए विदा लेने जब अपनी माता भगवती कौशल्या माता के पास गए तो उन्होंने यह नहीं कहा कि उन्हें वनवास मिला है पर यह कहा कि पिताजी ने उन्हें वन का राज्य दिया है जिसमें उनका मंगल होगा । यह प्रभु के मनोभाव को दर्शाता है कि दुखद वनवास को भी उन्होंने आनंद और मंगल का सूचक माना ।

प्रकाशन तिथि : 06 फरवरी 2020
289 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/56/3 चौपाई / छंद / दोहा -
बड़भागी बनु अवध अभागी ।


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - भगवती कौशल्या माता को जब वनवास की बात पता चली तो अपना पतिव्रत धर्म निभाते हुए उन्होंने प्रभु श्री रामजी से कहा कि पिता की आज्ञा का पालन करना सब धर्मों का शिरोमणि धर्म है । उन्होंने कहा कि अब वन बड़ा बड़भागी बन जाएगा जहाँ प्रभु के श्रीकमलचरण पड़ेंगे और अब श्री अयोध्याजी प्रभु के जाने के बाद अभागी और वीरान हो जाएगी । सिद्धांत यह है कि प्रभु जहाँ जाते हैं भाग्य उसी का जग जाता है ।

प्रकाशन तिथि : 07 फरवरी 2020
290 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/57/1 चौपाई / छंद / दोहा -
तुम्ह करुनाकर धरम धुरीना ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - भगवती कौशल्या माता प्रभु श्री रामजी से कहतीं हैं कि प्रभु दया की खान है क्योंकि प्रभु जितनी दया करने वाला अन्य कोई भी नहीं है । प्रभु धर्म की ध्वजा को धारण करने वाले हैं यानी प्रभु कभी भी धर्म की हानि नहीं होने देते ।

प्रकाशन तिथि : 07 फरवरी 2020
291 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/57/3 चौपाई / छंद / दोहा -
सब कर आजु सुकृत फल बीता ।


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - भगवती कौशल्या माता कहतीं हैं कि वनवास के कारण प्रभु श्री रामजी को श्री अयोध्याजी को छोड़कर जाना पड़ेगा । उन्होंने कहा कि आज ऐसा प्रतीत हो रहा है मानो श्री अयोध्याजी के सभी जनों के सभी पुण्य पूरे हो गए जिसके कारण उन्हें प्रभु का वियोग सहना पड़ेगा ।

प्रकाशन तिथि : 07 फरवरी 2020
292 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/58/2 चौपाई / छंद / दोहा -
की तनु प्रान कि केवल प्राना ।


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब प्रभु श्री रामजी भगवती कौशल्या माता के महल में थे तो वनवास की वार्ता सुनकर भगवती सीता माता वहाँ आयी । वे एक ही विचार कर रही थी कि क्या शरीर और प्राण दोनों प्रभु के साथ वन को जाएंगे या केवल प्राण ही प्रभु के साथ जा पाएंगे । अगर प्रभु ने साथ चलने की आज्ञा दी तो शरीर और प्राण दोनों जाएंगे और अगर आज्ञा नहीं दी तो शरीर उनका छूट जाएगा और केवल प्राण ही प्रभु के साथ चले जाएंगे ।

प्रकाशन तिथि : 08 फरवरी 2020
293 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/60/2 चौपाई / छंद / दोहा -
चित्रलिखित कपि देखि डेराती ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री रामजी ने भगवती सीता माता को कहा कि वनवास बड़ा कठिन और भयंकर होता है । वहाँ धूप, ठंड, वर्षा और हवा सहनी पड़ती है । रास्ते में कांटे और कंकड़ होते हैं और उन पर पैदल चलना होता है । रास्ते में दुर्गम पर्वत, गुफाएं और नदियां होती हैं । रीछ, सर्प, बाघ, भेड़िए, सिंह और हाथी के शब्द सुनकर धीरज भी भाग जाता है । प्रभु ने माता को कहा कि माता तो इतनी कोमल हृदय की है जो कि तस्वीर में भी बंदर को देखकर डर जाती है तो वे वन के असली हिंसक जानवरों के बीच किस तरह रह पाएंगी । इसलिए प्रभु ने कहा कि माता सुखपूर्वक श्री अयोध्याजी में ही रहे पर माता प्रभु के लिए सब कुछ सहने को तैयार थीं ।

प्रकाशन तिथि : 08 फरवरी 2020
294 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/63/3 चौपाई / छंद / दोहा -
मानस सलिल सुधाँ प्रतिपाली । जिअइ कि लवन पयोधि मराली ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री रामजी भगवती सीता माता से कहते हैं कि वन की विपत्ति बखानी नहीं जा सकती । वन में बड़े कष्टों को सहन कर रहना पड़ता है । वन में राक्षसों के झुंड-के-झुंड रहते हैं । प्रभु कहते हैं कि माता को अभी तक अपने पीहर और ससुराल में सब सुख और अनुकूलता ही मिली है इसलिए माता उसे त्यागकर क्लेश से भरे वनवास के योग्य नहीं है । प्रभु कहते हैं कि क्या मानसरोवर के अमृत के समान जल में पली और बड़ी हुई हंसिनी खारे समुद्रजी के जल में जी सकती है । प्रभु के अनुसार यह कतई संभव नहीं है पर माता ने अपना पतिव्रत धर्म और प्रभु प्रेम के कारण इस असंभव को भी संभव कर दिखाया ।

प्रकाशन तिथि : 08 फरवरी 2020
295 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/64/दोहा चौपाई / छंद / दोहा -
तुम्ह बिनु रघुकुल कुमुद बिधु सुरपुर नरक समान ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - वनवास में जाने के लिए भगवती सीता माता प्रभु श्री रामजी से विनती करती हैं कि वे भी उनके साथ जाना चाहतीं हैं । माता कहतीं हैं कि प्रभु के बिना उनके लिए स्वर्ग भी नर्क के समान है । संसार उन्हें प्रभु के बिना नर्क की पीड़ा देने वाला प्रतीत होता है । प्रभु के बिना जगत में उन्हें कुछ भी सुखदाई नहीं दिखता । इसलिए माता ने प्रभु को दया के धाम और सुखों को देने वाले कहकर संबोधित किया और उन्हें कहा कि वनवास में साथ ले जाकर उन्हें प्रभु सानिध्य का सुख दें ।

प्रकाशन तिथि : 09 फरवरी 2020
296 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/65/2 चौपाई / छंद / दोहा -
जहँ लगि नाथ नेह अरु नाते । पिय बिनु तियहि तरनिहु ते ताते ॥ तनु धनु धामु धरनि पुर राजू । पति बिहीन सबु सोक समाजू ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - भगवती सीता माता स्त्री का धर्म पालन करने में सबसे अग्रणी हैं जिसकी मिसाल इस दोहे में मिलती है । माता कहतीं हैं कि प्रभु श्री रामजी के बिना उन्हें अपने माता, पिता, बहन, भाई, परिवार, मित्र, सास-ससुर, गुरुजन, पुत्र और जहाँ तक स्नेह के नाते होते हैं वह सब त्याज्य हैं । प्रभु के बिना उनका शरीर, धन, घर, भूमि, नगर और राज्य सब उन्हें शोक देने वाले हैं । जैसा पतिव्रत धर्म और स्त्री धर्म का पालन भगवती सीता माता ने किया वैसा कोई स्वप्न में भी करने की कल्पना भी नहीं कर सकता । अपने पतिव्रत और स्त्री धर्म को निभाने और बल देने के लिए स्त्रियों को आज चाहिए कि वे भगवती पार्वती माता और भगवती सीता माता की आराधना करें ।

प्रकाशन तिथि : 09 फरवरी 2020
297 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/66/3 चौपाई / छंद / दोहा -
बन दुख नाथ कहे बहुतेरे । भय बिषाद परिताप घनेरे ॥ प्रभु बियोग लवलेस समाना । सब मिलि होहिं न कृपानिधाना ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - भगवती सीता माता प्रभु श्री रामजी से कहतीं हैं कि आपने वनवास के बहुत सारे कष्ट, भय और दुःख बताए । आपने बताया कि वनवास में साथ जाने से विषाद और संताप के अलावा कुछ नहीं मिलेगा । पर माता ने कहा कि यह सब मिलकर भी प्रभु के वियोग की वेदना की बराबरी किंचित मात्रा में भी नहीं कर सकती क्योंकि प्रभु का वियोग उनके लिए असहनीय और प्राण लेने वाला होगा ।

प्रकाशन तिथि : 09 फरवरी 2020
298 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/67/1 चौपाई / छंद / दोहा -
मोहि मग चलत न होइहि हारी । छिनु छिनु चरन सरोज निहारी ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री रामजी ने वनवास के दौरान वन में लगातार चलते रहने से थकावट और परिश्रम की बात भगवती सीता माता को समझाने के लिए कही । माता ने बहुत सुंदर भाव प्रकट किया कि उनकी थकावट क्षण-क्षण प्रभु के श्रीकमलचरणों के दर्शन करते रहने से दूर होती रहेगी । यह जीवन का भी सिद्धांत है कि प्रभु के श्रीकमलचरणों का निरंतर स्मरण संसार द्वारा दी जाने वाली थकावट को दूर कर देता है ।

प्रकाशन तिथि : 10 फरवरी 2020
299 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/67/4 चौपाई / छंद / दोहा -
तुम्हहि उचित तप मो कहुँ भोगू ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - भगवती सीता माता प्रभु श्री रामजी से कहतीं हैं कि अगर आपको वनवास की तपस्या मिली है तो क्या उनके लिए श्री अयोध्याजी में रहकर विषय भोग करना उचित है । माता ने अपने पतिव्रत और स्त्री धर्म के ऐसे मर्म की बात कही कि प्रभु को साथ चलने की स्वीकृति देनी ही पड़ी कि माता भी वनवास में साथ चले ।

प्रकाशन तिथि : 10 फरवरी 2020
300 श्रीरामचरित मानस
(अयोध्याकाण्ड)
2/70/3 चौपाई / छंद / दोहा -
देह गेह सब सन तृनु तोरें ॥


व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब श्री लक्ष्मणजी ने वनवास की बात सुनी तो वे तुरंत प्रभु श्री रामजी के पास पहुँचे । गोस्वामी श्री तुलसीदासजी एक बहुत मार्मिक बात कहते हैं कि श्री लक्ष्मणजी अपने शरीर और घर के सभी नाते मन से तोड़कर प्रभु के सामने खड़े हो गए । कहने का तात्पर्य है कि श्री लक्ष्मणजी ने न तो अपने पिता महाराज श्री दशरथजी से, न अपनी माता भगवती सुमित्राजी से, न अपनी पत्नी भगवती उर्मिलाजी से कुछ पूछा । उन्होंने प्रभु के लिए सब नाते तत्काल भूला दिए । ऐसे पूर्ण समर्पण को देखकर प्रभु श्री रामजी के पास भी उन्हें अपने साथ वन चलने की आज्ञा देने के अलावा कोई उपाय नहीं बचा ।

प्रकाशन तिथि : 10 फरवरी 2020