क्रम संख्या |
श्रीग्रंथ |
संख्या |
भाव के दर्शन / प्रेरणापुंज |
181 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/208/दोहा (ख) |
चौपाई / छंद / दोहा -
कृपासिंधु मतिधीर अखिल बिस्व कारन करन ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - इस दोहे में प्रभु के लिए तीन विशेषणों का प्रयोग हुआ है । प्रभु कृपा के समुद्र हैं यानी प्रभु के समान कृपा करने वाला अन्य कोई नहीं है । प्रभु धीर बुद्धि हैं और संपूर्ण जगत के कारण के भी कारण हैं ।
प्रकाशन तिथि : 28 दिसम्बर 2019 |
182 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/210/4 |
चौपाई / छंद / दोहा -
भगति हेतु बहु कथा पुराना। कहे बिप्र जद्यपि प्रभु जाना ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु ने ऋषि श्री विश्वामित्रजी के आश्रम पधारकर उनके यज्ञ की राक्षसों से रक्षा की और यज्ञ निर्विघ्न संपन्न हुआ । फिर प्रभु कुछ दिन आश्रम पर रुके तो वहाँ नित्य सत्संग होता था । भक्ति के कारण आश्रम में रहने वाले मुनि और ब्राह्मण प्रभु के समक्ष श्रीपुराणों की बहुत सारी कथाएं कहते और यद्यपि प्रभु सब जानते थे फिर भी प्रभु प्रसन्न चित्त होकर उन कथाओं का नित्य श्रवण करते थे । प्रभु यह श्रीलीला करके उपदेश देना चाहते हैं कि श्रीग्रंथों में वर्णित कथाओं का श्रवण सत्संग के रूप में नित्य करना चाहिए ।
प्रकाशन तिथि : 28 दिसम्बर 2019 |
183 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/211/छंद (1) |
चौपाई / छंद / दोहा -
परसत पद पावन सोक नसावन प्रगट भई तपपुंज सही ।
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब ऋषि श्री विश्वामित्रजी के साथ प्रभु ने श्री जनकपुरजी की यात्रा की तो मार्ग में एक आश्रम पड़ा जहाँ कोई नहीं था । वहाँ पर एक शिला को देखकर प्रभु ने पूछा तो ऋषि श्री विश्वामित्रजी बोले कि यह श्रापवश पत्थर का देह धारण करी हुई भगवती अहिल्याजी है । वे श्रापमुक्त होने के लिए प्रभु के श्रीकमलचरणों की धूलि की प्रतीक्षा कर रही है । प्रभु ने तत्काल अनुग्रह किया और परम पवित्र और शोक नाश करनेवाली प्रभु की श्रीकमलचरणों की धूलि पाकर भगवती अहिल्याजी श्राप से मुक्त होकर शिलाखंड से प्रगट हो गई । प्रभु के श्रीकमलचरणों की धूलि की महान महिमा का इस प्रसंग से पता चलता है ।
प्रकाशन तिथि : 29 दिसम्बर 2019 |
184 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/211/छंद (3) |
चौपाई / छंद / दोहा -
मुनि श्राप जो दीन्हा अति भल कीन्हा परम अनुग्रह मैं माना । देखेउँ भरि लोचन हरि भवमोचन इहइ लाभ संकर जाना ॥ बिनती प्रभु मोरी मैं मति भोरी नाथ न मागउँ बर आना । पद कमल परागा रस अनुरागा मम मन मधुप करै पाना ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - भगवती अहिल्याजी श्रापमुक्त होकर प्रकट होने के बाद प्रभु के समक्ष हाथ जोड़कर खड़ी हो गई, उनका शरीर पुलकित हो उठा, नेत्रों से प्रेम और आनंद के आंसू बहने लगे और वे प्रभु के श्रीकमलचरणों में नत हो गई । उन्होंने प्रभु की स्तुति करते हुए कहा कि ज्ञान से जानने योग्य प्रभु हैं, जगत को पवित्र करने वाले और भक्तों को सुख देने वाले भी प्रभु ही हैं । उन्होंने कहा कि जन्म-मृत्यु के भय से छुड़ाने वाले केवल प्रभु ही हैं । उन्होंने कहा कि जो श्राप मिला था उसे वे अपने ऊपर अनुग्रह मानती है क्योंकि उसके कारण ही प्रभु के दर्शन का लाभ उन्हें मिला । फिर भगवती अहिल्याजी ने प्रभु से एक विनती करी जो हृदयस्पर्शी है । उन्होंने कहा कि वे प्रभु की भक्ति चाहती हैं और चाहती हैं कि उनका मनरूपी भंवरा प्रभु के श्रीकमलचरणों की रज का सदैव रसपान करता रहे ।
प्रकाशन तिथि : 29 दिसम्बर 2019 |
185 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/211/छंद (4) |
चौपाई / छंद / दोहा -
जेहिं पद सुरसरिता परम पुनीता प्रगट भई सिव सीस धरी । सोइ पद पंकज जेहि पूजत अज मम सिर धरेउ कृपाल हरी ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु के जिन श्रीकमलचरणों से परम पवित्र भगवती गंगा माता निकली है जिनको प्रभु श्री महादेवजी ने अपने मस्तक पर धारण किया है, उन्हीं श्रीकमलचरणों की पूजा प्रभु श्री ब्रह्माजी ने की है । आज उन्हीं श्रीकमलचरणों की रज का स्पर्श पाकर भगवती अहिल्याजी धन्य हो गई । वे बार-बार प्रभु के श्रीकमलचरणों में गिरकर प्रभु की स्तुति करती हुई अपने पति के पास चली गई ।
प्रकाशन तिथि : 30 दिसम्बर 2019 |
186 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/211/दोहा |
चौपाई / छंद / दोहा -
अस प्रभु दीनबंधु हरि कारन रहित दयाल । तुलसिदास सठ तेहि भजु छाड़ि कपट जंजाल ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी भगवती अहिल्याजी पर कृपा करने की प्रभु की श्रीलीला का हमें दर्शन करवाकर कहते हैं कि संसार के कपट और जंजाल को भुलाकर हमें प्रभु श्री रामजी का भजन करना चाहिए । प्रभु दीनबंधु हैं और बिना ही कारण अपने शरणागत पर अहैतुकी कृपा करने वाले हैं ।
प्रकाशन तिथि : 30 दिसम्बर 2019 |
187 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/215/4 |
चौपाई / छंद / दोहा -
भए सब सुखी देखि दोउ भ्राता । बारि बिलोचन पुलकित गाता ॥ मूरति मधुर मनोहर देखी । भयउ बिदेहु बिदेहु बिसेषी ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब श्रीजनकपुर में महाराज श्री जनकजी ने ऋषि श्री विश्वामित्रजी और श्री अयोध्याजी के दो राजकुमारों का आगमन सुना तो वे उनकी अगवानी करने आए । जैसे ही महाराज श्री जनकजी और उनके साथ आए समाज ने प्रभु को पहली बार देखा तो सभी उनके रूप और तेज से अत्यंत प्रभावित हुए और मंत्रमुग्ध हो गए । प्रभु को देखकर सभी ने बहुत सुख अनुभव किया और उनके शरीर में रोमांच हुआ और उनके नेत्रों में प्रेम जल भर आए । प्रभु के मनोहर रूप को देखकर महाराज श्री जनकजी तो मानो अपनी देह की सुध बुध ही भूल गए ।
प्रकाशन तिथि : 31 दिसम्बर 2019 |
188 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/217/1 |
चौपाई / छंद / दोहा -
आनँदहू के आनँद दाता ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - महाराज श्री जनकजी ने ऋषि श्री विश्वामित्रजी से प्रभु के बारे में पूछा कि क्या वे साक्षात चराचर के स्वामी प्रभु हैं । प्रभु ने हंसकर ऋषि श्री विश्वामित्रजी की तरफ देखा मानो आँखों-ही-आँखों उन्हें संदेश दिया कि मेरा भेद न खोलें कि मैं जगतपति हूँ । तब ऋषि श्री विश्वामित्रजी ने प्रभु का परिचय रघुकुल के शिरोमणि के रूप में कराया । तब महाराज श्री जनकजी ने कहा कि प्रभु आनंद को भी आनंद देने वाले हैं । प्रभु वे हैं जिनके कारण आनंद भी आनंद पाता है ।
प्रकाशन तिथि : 31 दिसम्बर 2019 |
189 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/218/दोहा |
चौपाई / छंद / दोहा -
करहु सुफल सब के नयन सुंदर बदन देखाइ ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब श्री लक्ष्मणजी का श्रीजनकपुर नगर देखने का मन हुआ तो प्रभु उसे भांप गए और ऋषि श्री विश्वामित्रजी से नगर भ्रमण की आज्ञा मांगने गए । ऋषि श्री विश्वामित्रजी ने आज्ञा देते हुए बहुत सुंदर बात प्रभु से कही कि प्रभु नगर भ्रमण के लिए जाएं और अपने रूप का दर्शन देकर सभी श्रीजनकपुर के नगरवासियों के नेत्रों को सफल करें । सिद्धांत यह है कि जीव के नेत्र तभी सफल होते हैं जब वे प्रभु का दर्शन पाते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 01 जनवरी 2020 |
190 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/220/1 |
चौपाई / छंद / दोहा -
धाए धाम काम सब त्यागी । मनहु रंक निधि लूटन लागी ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब श्रीजनकपुर नगर में समाचार फैला कि श्री अयोध्याजी के दोनों राजकुमार नगर भ्रमण के लिए आ रहे हैं तो प्रभु का दर्शन पाने के लिए सभी नगरवासी घर-बार और सब काम-काज छोड़कर दौड़े । जैसे दरिद्र धन का खजाना लूटने दौड़ता है वैसे ही नगरवासी प्रभु का दर्शन पाने दौड़े ।
प्रकाशन तिथि : 01 जनवरी 2020 |
191 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/220/3 |
चौपाई / छंद / दोहा -
कहहिं परसपर बचन सप्रीती । सखि इन्ह कोटि काम छबि जीती ॥ सुर नर असुर नाग मुनि माहीं । सोभा असि कहुँ सुनिअति नाहीं ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु जब श्रीजनकपुर नगर भ्रमण को निकले तो उनके दिव्य और अनुपम स्वरूप को देखकर नगरवासियों ने माना कि अब हमारे नेत्र सफल और सुखी हुए हैं । वे आपस में बात करने लगे कि करोड़ों और अरबों श्री कामदेवजी की सुंदरता भी अगर मिल जाए तो भी प्रभु की सुंदरता की किंचित बराबरी नहीं कर सकती । उन्होंने कहा कि देवता, मनुष्य, असुर, नाग और मुनियों में ऐसी दिव्य शोभा कही सुनने में भी नहीं आती ।
प्रकाशन तिथि : 02 जनवरी 2020 |
192 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/222/दोहा |
चौपाई / छंद / दोहा -
नाहिं त हम कहुँ सुनहु सखि इन्ह कर दरसनु दूरि । यह संघटु तब होइ जब पुन्य पुराकृत भूरि ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब सखियों ने श्रीजनकपुर भ्रमण करते वक्त प्रभु का दिव्य रूप देखा तो उन्होंने अपनी प्रिय भगवती सीता माता के लिए प्रभु ही वर हो ऐसा संकल्प किया । वे आपस में कहने लगी कि प्रभु का विवाह भगवती सीता माता के साथ हुआ तो इनके दर्शन का सौभाग्य हमें बार-बार मिलता रहेगा क्योंकि प्रभु दामाद बनकर श्रीजनकपुर आते-जाते रहेंगे । उन्होंने कहा कि सभी श्री जनकपुरवासियों के पूर्व जन्मों के बहुत सारे पुण्य एकत्र रूप से उदय होंगे तभी ऐसा संयोग बनेगा ।
प्रकाशन तिथि : 02 जनवरी 2020 |
193 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/223/दोहा |
चौपाई / छंद / दोहा -
जाहिं जहाँ जहँ बंधु दोउ तहँ तहँ परमानंद ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्रीजनकपुर नगर भ्रमण में प्रभु जहाँ-जहाँ भी जाते नगरवासी अपने नेत्रों को सफल करते और जी भरकर प्रभु की दिव्य छवि को निहारते । प्रभु जिनको-जिनको दर्शन देते उनके हृदय में परमानंद छा जाता । यह सिद्धांत है कि प्रभु का दर्शन मात्र ही जीवों को परमानंद देने वाला है ।
प्रकाशन तिथि : 03 जनवरी 2020 |
194 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/225/2 |
चौपाई / छंद / दोहा -
लव निमेष महँ भुवन निकाया । रचइ जासु अनुसासन माया ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - इस चौपाई में प्रभु के ऐश्वर्य की एक उपमा दी गई है जो बहुत विलक्षण है । प्रभु की आज्ञा पाकर प्रभु की माया उतने समय में ब्रह्मांडों के समूह की रचना कर डालती है जितना समय लवनिमेष का होता है यानी जितना हमारे आँखों की पलक गिरने का चौथाई समय होता है । जरा कल्पना करें कि एक ब्रह्मांड नहीं, ब्रह्मांडों के समूह यानी अगणित ब्रह्मांडों का निर्माण प्रभु आज्ञा से प्रभु की माया हमारी आँखों की पलकें झपकने के भी चौथाई समय में कर देती है । इतना दिव्य और अदभुत प्रभु का ऐश्वर्य है ।
प्रकाशन तिथि : 03 जनवरी 2020 |
195 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/225/4 |
चौपाई / छंद / दोहा -
जासु त्रास डर कहुँ डर होई ।
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु जब डरने की श्रीलीला करते हैं तो गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि जिन प्रभु के भय से भय को भी डर लगता है और भय भी प्रभु के सामने भय से कांपता रहता है वे प्रभु इतना सुंदर भय का नाटक करते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 04 जनवरी 2020 |
196 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/226/4 |
चौपाई / छंद / दोहा -
पौढ़े धरि उर पद जलजाता ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब प्रभु रात्रि विश्राम करने के लिए लेटते तो श्री लक्ष्मणजी प्रभु के श्रीकमलचरणों को अपने हृदय से लगाकर परम सुख का अनुभव करते और उन्हें प्रभु की थकान मिटाने के लिए दबाते रहते । प्रभु जब बार-बार श्री लक्ष्मणजी को कहते कि अब सो जाओ तो भी श्री लक्ष्मणजी प्रभु के श्रीकमलचरणों को अपने हृदय पर धरकर ही लेटते । प्रभु से इतना प्रेम श्री लक्ष्मणजी का था और इतनी अतुलनीय सेवा वे प्रभु की करते थे ।
प्रकाशन तिथि : 04 जनवरी 2020 |
197 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/228/3 |
चौपाई / छंद / दोहा -
पूजा कीन्हि अधिक अनुरागा । निज अनुरूप सुभग बरु मागा ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - भगवती सीता माता ने प्रभु श्री रामजी को पाने के लिए भगवती पार्वती माता के मंदिर जाकर उन्हें आराधना से प्रसन्न कर उनकी कृपा मांगी जिससे उन्हें प्रभु श्री रामजी के रूप में योग्य वर मिल जाए । ऐसी ही प्रार्थना भगवती रुक्मिणी माता ने भी प्रभु श्री कृष्णजी को पाने के लिए भगवती पार्वती माता से की थी । भगवती पार्वती माता की अनुकंपा से ही भगवती सीता माता को प्रभु श्री रामजी और भगवती रुक्मिणी माता को प्रभु श्री कृष्णजी वर रूप में मिले । दोनों माताओं ने लोक शिक्षा के लिए ऐसा किया कि बालिकाओं को सुयोग्य वर पाने के लिए आरंभ से ही भगवती पार्वती माता की आराधना करनी चाहिए ।
प्रकाशन तिथि : 05 जनवरी 2020 |
198 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/229/1 |
चौपाई / छंद / दोहा -
स्याम गौर किमि कहौं बखानी । गिरा अनयन नयन बिनु बानी ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब भगवती सीता माता मंदिर में भगवती पार्वती माता की पूजा कर रही थी तो उनकी एक सखी फुलवारी में चली गई जहाँ प्रभु श्री रामजी का दर्शन उन्हें हुआ । वह सखी पुलकित शरीर और नेत्रों में प्रेमजल भरकर तुरंत दौड़ती हुई वापस आई और सबसे कहा कि उसने प्रभु को देखा है । पर वह प्रभु के सौन्दर्य का किंचित बखान भी नहीं कर सकती क्योंकि जिन नेत्रों ने प्रभु को देखा है उन नेत्रों के वाणी नहीं है और जो उसकी वाणी है उसके नेत्र नहीं है ।
प्रकाशन तिथि : 05 जनवरी 2020 |
199 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/230/4 |
चौपाई / छंद / दोहा -
सब उपमा कबि रहे जुठारी । केहिं पटतरौं बिदेहकुमारी ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी की प्रभु श्री रामजी और भगवती सीता माता के युगल चरणों की भक्ति का इस चौपाई में दर्शन होता है । जब प्रभु श्री रामजी ने पहली बार वाटिका में भगवती सीता माता को देखा तो उनकी सुंदरता का वर्णन करने में गोस्वामी श्री तुलसीदासजी सकुचा गए । वे कहते हैं कि काव्य की सभी उपमाओं को किसी-न-किसी को पहले से देकर अन्य कवियों ने जूठा कर रखा है । माता की अलौकिक सुंदरता को देखकर नई उपमा उन्हें सूझती नहीं और पुरानी प्रचलित उपमा जूठी होने के कारण वे देना नहीं चाहते । गोस्वामीजी की जगह अन्य कोई कवि होता तो कोई पुरानी उपमा दे देता पर अपनी भक्ति के कारण गोस्वामीजी ने ऐसा नहीं किया ।
प्रकाशन तिथि : 06 जनवरी 2020 |
200 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/232/2 |
चौपाई / छंद / दोहा -
हरषे जनु निज निधि पहिचाने ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब भगवती सीता माता ने वाटिका में पहली बार प्रभु श्री रामजी को देखा तो वे ऐसी प्रसन्न हुई मानो उन्होंने अपना खजाना पहचान लिया हो । प्रभु के अनुपम और मनोहर रूप को देखकर उनके श्रीनेत्र प्रभु की छवि को लगातार निहारते रहने के लिए ललचा उठे । प्रभु और माता की अलौकिक सुंदरता ने एक दूसरे के मन को मोह लिया ।
प्रकाशन तिथि : 06 जनवरी 2020 |
201 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/232/3 |
चौपाई / छंद / दोहा -
पलकन्हिहूँ परिहरीं निमेषें ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री रामजी की मनोहर छवि को देखकर भगवती सीता माता के श्रीनेत्रों की पलकों ने गिरना छोड़ दिया । माता को क्षणमात्र का भी प्रभु का अदर्शन न हो इसलिए आँखों की पलकों ने बाधा बनना स्वतः ही छोड़ दिया । माता ने श्रीनेत्रों के रास्ते प्रभु को अपने हृदय में लाकर बसा लिया और पलकों का किवाड़ बंद कर लिया यानी अपने श्रीनेत्रों को मूंदकर प्रभु का ध्यान मन में करने लगी ।
प्रकाशन तिथि : 07 जनवरी 2020 |
202 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/233/1 |
चौपाई / छंद / दोहा -
सोभा सीवँ सुभग दोउ बीरा ।
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - इस चौपाई में प्रभु श्री रामजी की सुंदरता को कोई उपमा न देकर गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि प्रभु की सुंदरता शोभा की सीमा है । शोभा इससे ज्यादा कुछ हो ही नहीं सकती । प्रभु की सुंदरता में ही शोभा विश्राम पाती है । प्रभु की सुंदरता को शोभा भी वर्णित नहीं कर सकती ।
प्रकाशन तिथि : 07 जनवरी 2020 |
203 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/236/1 |
चौपाई / छंद / दोहा -
देबि पूजि पद कमल तुम्हारे । सुर नर मुनि सब होहिं सुखारे ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - यह भगवती सीता माता द्वारा भगवती पार्वती माता की स्तुति है । भगवती सीता माता कहती है कि आप भक्तों को मुँह मांगा वर देने वाली हैं । आपके असीम प्रभाव को श्री वेदजी भी बखान नहीं कर सकते । आपकी सेवा करने से चारों पुरुषार्थ जीव के लिए एकदम सुलभ हो जाते हैं । भगवती सीता माता कहती हैं कि आपके श्रीकमलचरणों की पूजा करके देवतागण, मनुष्य, ऋषि और मुनि सभी सुखी हो जाते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 08 जनवरी 2020 |
204 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/236/छंद |
चौपाई / छंद / दोहा -
एहि भाँति गौरि असीस सुनि सिय सहित हियँ हरषीं अली । तुलसी भवानिहि पूजि पुनि पुनि मुदित मन मंदिर चली ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - भगवती सीता माता की प्रेम और विनय से की गई प्रार्थना से उन्होंने मानो भगवती पार्वती माता को अपने वश में कर लिया । भगवती पार्वती माता के विग्रह से माला खिसक कर भगवती सीता माता को प्रसाद और आशीर्वाद रूप में मिली और माता ने मुस्कुराते हुए आशीर्वाद दिया कि प्रभु श्री रामजी से ही भगवती सीता माता का विवाह होगा । यह सुनते ही सखियों के साथ भगवती सीता माता हृदय से हर्षित हो उठी और भगवती पार्वती माता को बारंबार प्रणाम करते हुए राजमहल लौट गई । भगवती पार्वती माता को अपने अनुकूल जानकर भगवती सीता माता को अत्यंत हर्ष हुआ ।
प्रकाशन तिथि : 08 जनवरी 2020 |
205 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/237/1 |
चौपाई / छंद / दोहा -
सरल सुभाउ छुअत छल नाहीं ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री रामजी जब वाटिका से श्री लक्ष्मणजी के साथ लौटकर ऋषि श्री विश्वामित्रजी के पास आए तो उन्होंने जो भी घटना घटी थी वह सब कुछ ऋषि को निवेदन कर दिया । प्रभु का मानव श्रीलीला करते वक्त इतना सरल स्वभाव था और छिपाव की वे कल्पना भी नहीं कर सकते थे । प्रभु की जगह ओर कोई होता तो वाटिका के प्रसंग को छुपा लेता पर प्रभु ने ऐसा नहीं किया । अपने मर्यादा अवतार में प्रभु के हर व्यवहार में असीम मर्यादा और सद्गुण देखने को और हमें प्रेरणा देने को मिलते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 09 जनवरी 2020 |
206 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/238/दोहा |
चौपाई / छंद / दोहा -
जिमि तुम्हार आगमन सुनि भए नृपति बलहीन ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री लक्ष्मणजी प्रभु श्री रामजी से कहते हैं कि प्रभात होने पर तारे का प्रकाश फीका पड़ जाता है और प्रभु श्री सूर्यनारायणजी का तेज और उज्जवल प्रकाश सब ओर छा जाता है । वैसे ही भगवती सीता माता के स्वयंवर में प्रभु श्री रामजी के आने पर वहाँ आए अन्य सभी राजा अपने आप कांतिहीन और बलहीन हो गए । जैसे तारों का प्रकाश लुप्त होता है वैसे ही राजाओं का बल मानो लुप्त हो गया ।
प्रकाशन तिथि : 09 जनवरी 2020 |
207 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/240/1 |
चौपाई / छंद / दोहा -
लखन कहा जस भाजनु सोई । नाथ कृपा तव जापर होई ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री लक्ष्मणजी इस चौपाई में एक सिद्धांत का प्रतिपादन करते हैं । वे कहते हैं कि प्रभु जिस पर कृपा करते हैं वही जीव जगत में बढ़ाई का पात्र बनता है । जगत में बढ़ाई और मान अपने पुरुषार्थ से मिली है ऐसा नहीं मानना चाहिए, वह प्रभु कृपा से ही मिली है ऐसा ही मानना चाहिए क्योंकि यही सत्य है ।
प्रकाशन तिथि : 10 जनवरी 2020 |
208 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/241/2 |
चौपाई / छंद / दोहा -
जिन्ह कें रही भावना जैसी । प्रभु मूरति तिन्ह देखी तैसी ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - यह श्री रामचरितमानसजी की एक प्रसिद्ध चौपाई है । यह सिद्धांत है कि प्रभु के लिए जो जैसी भावना रखता है उसको उस भावना के अनुरूप प्रभु के दर्शन और प्रभु की अनुभूति होती है । इसलिए प्रभु के लिए श्रेष्ठ-से-श्रेष्ठ भावना हमें जीवन में रखनी चाहिए । जिस भावना और जिस रूप से हम प्रभु को भजते हैं प्रभु उसी भावना और उसी रूप के अनुसार हमारे लिए उपलब्ध हो जाते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 10 जनवरी 2020 |
209 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/246/2 |
चौपाई / छंद / दोहा -
सुंदर सुखद सकल गुन रासी । ए दोउ बंधु संभु उर बासी ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जो विवेकी और बुद्धिमान राजा स्वयंवर में आए थे वे प्रभु श्री रामजी को देखकर ही हृदय से हार गए । प्रभु के आते ही उन्होंने एक दूसरे से कहा कि अपना यश, प्रताप, बल और तेज न गवांकर हमें घर चल देना चाहिए क्योंकि धनुष पर प्रत्यंचा तो प्रभु ही चढ़ाएंगे, इसमें कोई संदेह नहीं है । जाने से पहले उन्होंने कहा कि अपने नेत्र भरकर प्रभु के अनुपम और अति सुख देने वाली छवि को देख लेना चाहिए क्योंकि ऐसा अवसर बार-बार जीवन में नहीं मिलेगा । ऐसा इसलिए क्योंकि प्रभु श्री रामजी की मधुर छवि को प्रभु श्री महादेवजी अपने हृदय में सदैव बसाकर और छिपाकर रखते हैं जो आज भाग्य से सबके सामने प्रकट हुआ है ।
प्रकाशन तिथि : 11 जनवरी 2020 |
210 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/246/3 |
चौपाई / छंद / दोहा -
हम तौ आजु जनम फलु पावा ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - स्वयंवर में आए जो विवेकी और बुद्धिमान राजा थे उन्होंने प्रभु के स्वरूप का जी भरकर दर्शन किया और कृतकृत्य हो गए । उन्होंने कहा कि उन्होंने प्रभु का दर्शन करके मानो मनुष्य रूप में जन्म लेने का फल पा लिया । प्रभु का दर्शन करके उनका जीवन और जन्म दोनों सफल हो गए ।
प्रकाशन तिथि : 11 जनवरी 2020 |
211 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/253/4 |
चौपाई / छंद / दोहा -
नाथ जानि अस आयसु होऊ । कौतुकु करौं बिलोकिअ सोऊ ॥ कमल नाल जिमि चाफ चढ़ावौं । जोजन सत प्रमान लै धावौं ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब सभी राजा स्वयंवर में बल हार गए तो महाराज श्री जनकजी ने कहा कि लगता है धरती वीरों से रहित हो गई है । तब श्री लक्ष्मणजी क्रोधित हो उठे और उन्होंने प्रभु श्री रामजी से कहा कि आपकी आज्ञा हो तो ब्रह्मांड को वे गेंद की तरह उठाकर कच्चे घड़े की तरह फोड़ डालें । सुमेरु पर्वत को वे मूली की तरह उखाड़ फेंके और धनुष में प्रत्यंचा चढ़ाकर सौ योजन तक दौड़ लगा दे । उनके कहने का तात्पर्य यह था कि उनके प्रभु श्री रामजी का बल तो उनसे कोटि-कोटि गुना ज्यादा है तो प्रभु क्या कर सकते हैं इसकी कल्पना भी हम नहीं कर सकते ।
प्रकाशन तिथि : 12 जनवरी 2020 |
212 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/255/4 |
चौपाई / छंद / दोहा -
बंदि पितर सुर सुकृत सँभारे । जौं कछु पुन्य प्रभाउ हमारे ॥ तौ सिवधनु मृनाल की नाईं । तोरहुँ राम गनेस गोसाईं ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु ने श्री जनकपुरजी आते ही वहाँ के सभी लोगों का हृदय जीत लिया था । भगवती सीता माता तो जनकपुरवासियों को वैसे ही अति प्रिय थी । तो स्वयंवर के समय सभी जनकपुरवासियों ने प्रभु और माता के लिए अपने समस्त जन्मों के पुण्य दांव पर लगाकर प्रभु श्री गणेशजी और देवताओं से यह मन्नत मांगी कि प्रभु श्री रामजी के लिए धनुष कमल की डंडी को तोड़ने जितना कोमल हो जाए और आसानी से टूट जाए ।
प्रकाशन तिथि : 12 जनवरी 2020 |
213 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/257/3 |
चौपाई / छंद / दोहा -
मनहीं मन मनाव अकुलानी । होहु प्रसन्न महेस भवानी ॥ करहु सफल आपनि सेवकाई । करि हितु हरहु चाप गरुआई ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब स्वयंवर में सभी राजा अपना बल हार गए और धनुष को तनिक भी हिला नहीं पाए तो ऋषि श्री विश्वामित्रजी ने प्रभु श्री रामजी से कहा कि अब आप जाकर महाराज श्री जनकजी के प्रण को पूरा करें । प्रभु जब उठे तो भगवती सीता माता ने मन-ही-मन प्रभु श्री महादेवजी और भगवती पार्वती माता और प्रभु श्री गणेशजी का स्मरण किया कि वे उनका मनोरथ सफल करें और धनुष का भारीपन प्रभु के लिए एकदम हल्का हो जाए । यह सिद्धांत है कि प्रभु को किसी भी क्रिया से पहले याद करने से वह क्रिया सफल होती है क्योंकि प्रभु का अनुग्रह हमें प्राप्त हो जाता है ।
प्रकाशन तिथि : 12 जनवरी 2020 |
214 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/260/1 |
चौपाई / छंद / दोहा -
दिसकुंजरहु कमठ अहि कोला । धरहु धरनि धरि धीर न डोला ॥ रामु चहहिं संकर धनु तोरा । होहु सजग सुनि आयसु मोरा ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब श्री लक्ष्मणजी, जो कि श्री शेषअवतार हैं, ने देखा कि प्रभु श्री रामजी धनुष के पास पहुँच गए हैं तो उन्होंने पूरे ब्रह्मांड को अपने श्रीचरणों से दबाकर रखा और भगवती पृथ्वी माता को धीरज धरकर थामे रखा जिससे धनुष भंग होने पर वे हिलने न पाए । उन्होंने सबको आज्ञा दी कि सब सावधान हो जाए क्योंकि उनके प्रभु अब धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाना चाहते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 13 जनवरी 2020 |
215 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/262/4 |
चौपाई / छंद / दोहा -
रही भुवन भरि जय जय बानी ।
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब प्रभु श्री रामजी के श्रीहाथों धनुष टूटा तो सब तरफ प्रभु की जय-जयकार होने लगी । आकाश में जोर-जोर से नगाड़े बजने लगे, अप्सराएं गान करके नाचने लगी । देवतागण, सिद्ध और मुनिजन प्रभु की भूरि-भूरि प्रशंसा करने लगे । सारे ब्रह्मांड में जय-जयकार की ध्वनि छा गई । श्री जनकपुरजी के भाट प्रभु की कीर्ति गाने लगे और वहाँ की प्रजा धन, मणि और वस्त्र न्यौछावर करने लगे । मृदंग, शंख, शहनाई, ढोल बज उठे और श्री जनकपुरजी की युवतियां मंगल गीत गाने लगी । तात्पर्य यह है कि सब तरफ अति परमानंद छा गया ।
प्रकाशन तिथि : 13 जनवरी 2020 |
216 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/265/3 |
चौपाई / छंद / दोहा -
करहिं आरती पुर नर नारी । देहिं निछावरि बित्त बिसारी ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - भगवती सीता माता ने जयमाला प्रभु श्री रामजी को पहनाई और प्रभु ने माता का वरण कर लिया तो पृथ्वी, पाताल और स्वर्ग सभी जगह उल्लास छा गया । श्री जनकपुरजी के नर-नारी प्रभु और माता की आरती करने लगे । वे अपनी पूंजी अपनी हैसियत को भुलाकर यानी अपनी सामर्थ्य से बहुत अधिक एक दूसरे पर निछावर करने लगे । इस चौपाई से सीखने की बात यह है कि हमें भी अपनी हैसियत और सामर्थ्य से ऊपर उठकर प्रभु के लिए अपना सर्वस्व अर्पण करना चाहिए ।
प्रकाशन तिथि : 13 जनवरी 2020 |
217 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/267/2 |
चौपाई / छंद / दोहा -
हरि पद बिमुख परम गति चाहा ।
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु के श्रीकमलचरणों से विमुख होकर अगर कोई जीव अपना उद्धार चाहे तो यह कतई संभव नहीं है । जो जीव परमगति चाहता है उसे प्रभु के श्रीकमलचरणों का ही आश्रय लेना होगा तभी यह संभव है । यह सिद्धांत है कि प्रभु से विमुख होकर आज तक किसी का भी कल्याण नहीं हुआ है । अपना जन्म और मरण सुधारने के लिए जीव को प्रभु के सन्मुख होना ही पड़ेगा ।
प्रकाशन तिथि : 14 जनवरी 2020 |
218 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/285/1 |
चौपाई / छंद / दोहा -
जय रघुबंस बनज बन भानू । गहन दनुज कुल दहन कृसानु ॥ जय सुर बिप्र धेनु हितकारी । जय मद मोह कोह भ्रम हारी ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब प्रभु श्री परशुरामजी ने अपना संदेह मिटाने के लिए अपने पास का प्रभु श्री विष्णुजी का धनुष प्रभु श्री रामजी की तरफ बढ़ाया तो वह धनुष स्वतः ही प्रभु श्री रामजी के पास चला गया । प्रभु श्री परशुरामजी तत्काल समझ गए कि प्रभु श्री रामजी साक्षात प्रभु श्री विष्णुजी हैं । प्रभु श्री परशुरामजी का शरीर पुलकित और प्रफुल्लित हो गया और उन्होंने दिव्य शब्दों से प्रभु की स्तुति करी । उन्होंने प्रभु श्री रामजी को रघुकुल के प्रभु श्री सूर्यनारायणजी कहकर संबोधित किया । उन्होंने प्रभु को राक्षसों को कुल समेत जलाने वाले श्री अग्निदेवजी कहा । उन्होंने प्रभु को देवतागण, ब्राह्मण और गौ-माता का परम हित करने वाला कहा । उन्होंने प्रभु को जीव के मद, मोह, क्रोध और भ्रम को हरने वाला कहकर संबोधित किया ।
प्रकाशन तिथि : 14 जनवरी 2020 |
219 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/289/2 |
चौपाई / छंद / दोहा -
जेहिं मंडप दुलहिनि बैदेही । सो बरनै असि मति कबि केही ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी की दीनता देखें कि भगवती सीता माता और प्रभु श्री रामजी के रूप का वर्णन करने में उन्हें कोई उपमा देते नहीं बनी क्योंकि उनके अनुसार सभी उपमाओं को पहले से कवियों ने जूठा कर रखा है । अब जब विवाह के उपलक्ष्य में विवाह मंडप का वर्णन करने का समय आया तो फिर उन्होंने कह दिया कि जिस मंडप में भगवती सीता माता दुल्हन होंगी और प्रभु श्री रामजी दूल्हे होंगे वह अपने आप ही तीनों लोकों में ख्याति प्राप्त करके प्रसिद्ध हो जाएगा और कौन कवि होगा जो अपनी बुद्धि से उसका वर्णन करने का साहस करेगा ।
प्रकाशन तिथि : 14 जनवरी 2020 |
220 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/294/2 |
चौपाई / छंद / दोहा -
सुकृती तुम्ह समान जग माहीं । भयउ न है कोउ होनेउ नाहीं ॥ तुम्ह ते अधिक पुन्य बड़ काकें । राजन राम सरिस सुत जाकें ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब प्रभु श्री रामजी के श्री जनकपुरजी में किए कौशल की वार्ता लेकर वहाँ के दूत श्री अयोध्याजी आए और यह समाचार महाराज श्री दशरथजी को दिए तो उन्होंने तुरंत गुरु ऋषि श्री वशिष्ठजी को समाचार निवेदन किए । तब जो ऋषि श्री वशिष्ठजी ने महाराज श्री दशरथजी को कहा वह ध्यान देने योग्य है । ऋषि श्री वशिष्ठजी ने महाराज श्री दशरथजी को कहा कि आपके समान पुण्यात्मा जगत में न कोई हुआ है, न कोई है और न आगे कोई होने वाला है । आपके जैसा पुण्य और किसका होगा जिसके कारण साक्षात जगतपति जगदीश आपके पुत्र रूप में आपको मिले हैं । प्रभु ने जिनको अवतार लेने के लिए अपना माता-पिता के रूप में चुना हो उनसे भाग्यवान जगत में कौन हो सकता है ।
प्रकाशन तिथि : 15 जनवरी 2020 |
221 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/297/4 |
चौपाई / छंद / दोहा -
बहुत उछाहु भवनु अति थोरा । मानहुँ उमगि चला चहु ओरा ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब प्रभु श्री रामजी के विवाह का अति शुभ समाचार श्री अयोध्याजी पहुँचा तो उसका उत्साह इतना भारी था कि मानो राजमहल उसके लिए अत्यंत छोटा पड़ गया । उत्साह राजमहल में न समाकर मानो वह आनंद और उत्साह चारों दिशाओं में उमड़ पड़ा । श्री अयोध्याजी के प्रत्येक जनों को प्रभु श्री रामजी प्राणों से भी अधिक प्रिय थे इसलिए उनके उत्साह की कोई सीमा ही नहीं रही ।
प्रकाशन तिथि : 15 जनवरी 2020 |
222 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/301/2 |
चौपाई / छंद / दोहा -
महा भीर भूपति के द्वारें । रज होइ जाइ पषान पबारें ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब श्री अयोध्याजी में प्रभु श्री रामजी के विवाह का मंगल समाचार फैला तो सब नागरिक सज धजकर बारात में शामिल होने के उद्देश्य से महाराज श्री दशरथजी के महल के दरवाजे पर जा पहुँचे । गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि राजमहल के बाहर इतनी भयंकर भीड़ हो गई कि वहाँ अगर पत्थर फेंका जाए तो वह भी भीड़ से टकराकर पिसकर धूल बन जाए ।
प्रकाशन तिथि : 15 जनवरी 2020 |
223 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/301/दोहा |
चौपाई / छंद / दोहा -
आपु चढ़ेउ स्पंदन सुमिरि हर गुर गौरि गनेसु ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - इस दोहे से एक प्रेरणा मिलती है कि किसी भी शुभ काम का आरंभ करने से पूर्व हमें प्रभु का ध्यान करना चाहिए और प्रभु को याद करना चाहिए । कभी-कभी हम खुशी की बेला में ऐसा करने से चूक जाते हैं । हमें ध्यान रखना चाहिए कि वह खुशी हमें प्रभु की ही दी हुई है । इस प्रसंग में महाराज श्री दशरथजी श्री अयोध्याजी से श्री जनकपुरजी के लिए बारात प्रस्थान से पूर्व रथ में चढ़ने से पहले प्रभु श्री गणेशजी, प्रभु श्री महादेवजी और भगवती पार्वती माता का स्मरण करके रथ पर चढ़े । पहले उन्होंने अपने गुरुजी ऋषि श्री वशिष्ठजी को रथ पर चढ़ाया और फिर स्वयं चढ़े ।
प्रकाशन तिथि : 16 जनवरी 2020 |
224 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/304/1 |
चौपाई / छंद / दोहा -
मंगल सगुन सुगम सब ताकें ।
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब महाराज श्री दशरथजी श्री अयोध्याजी से बारात लेकर चले तो रास्ते में अनेकों अनेक मंगल शकुन उन्हें मिले । सब इस बात की सूचना दे रहे थे कि आगे मंगल-ही-मंगल होने वाला है । गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि जहाँ प्रभु श्री रामजी दूल्हा हो और भगवती सीता माता दुल्हन हो वहाँ मंगल को उपस्थित होकर मंगल शकुन करना अनिवार्य ही हो जाता है क्योंकि मंगल के भी मंगल प्रभु और माता हैं ।
प्रकाशन तिथि : 16 जनवरी 2020 |
225 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/304/2 |
चौपाई / छंद / दोहा -
सुनि अस ब्याहु सगुन सब नाचे । अब कीन्हे बिरंचि हम साँचे ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री रामजी और भगवती सीता माता के विवाह की वार्ता सुनकर मानो शकुन आनंदित होकर नाच उठे । गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं मानो शकुन यह कह रहे हो कि जगत के रचयिता प्रभु श्री ब्रह्माजी ने शकुन की उत्पत्ति करके आज उन्हें सत्य और धन्य कर दिया ।
प्रकाशन तिथि : 16 जनवरी 2020 |
226 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/306/4 |
चौपाई / छंद / दोहा -
हृदयँ सुमिरि सब सिद्धि बोलाई । भूप पहुनई करन पठाई ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब भगवती सीता माता को पता चला कि प्रभु की बारात श्री जनकपुरजी आ गई है तो उन्होंने अपनी किंचित महिमा प्रकट की और हृदय में स्मरण किया तो सभी सिद्धियां भगवती सीता माता की सेवा में तत्काल उपस्थित हो गई । माता ने सभी सिद्धियों को बारात स्वागत और मेजबानी की जिम्मेदारी देकर भेजा ।
प्रकाशन तिथि : 17 जनवरी 2020 |
227 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/310/1 |
चौपाई / छंद / दोहा -
इन्ह सम काँहु न सिव अवराधे । काहिँ न इन्ह समान फल लाधे ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - महाराज श्री दशरथजी और महाराज श्री जनकजी के लिए इस चौपाई में कहा गया है कि दोनों के समान किसी ने भी प्रभु श्री महादेवजी की आराधना नहीं की । दोनों के समान किसी ने भी प्रभु श्री महादेवजी से फल भी नहीं पाया । प्रभु श्री महादेवजी की आराधना के फलस्वरूप एक के यहाँ जगतपिता प्रभु श्री रामजी और एक के यहाँ जगतजननी भगवती सीता माता पधारी ।
प्रकाशन तिथि : 17 जनवरी 2020 |
228 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/311/छंद |
चौपाई / छंद / दोहा -
पुर नारि सकल पसारि अंचल बिधिहि बचन सुनावहीं ॥ ब्याहिअहुँ चारिउ भाइ एहिं पुर हम सुमंगल गावहीं ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री जनकपुरवासियों ने जब पाया कि महाराज श्री दशरथजी के चारों सुपुत्र बल, विनय, विद्या, शील और शोभा के समुद्र हैं तो उन्होंने आंचल फैला फैलाकर विधाता से विनती करी कि चारों भाइयों का विवाह श्री जनकपुरजी में ही हो जाए । उन्होंने विचार किया कि चारों भाई अपनी बहुओं को विदा कराने के बहाने से आया करेंगे और उन्हें देखकर भली-भांति वे सब अपने नेत्रों को सफल करते रहेंगे ।
प्रकाशन तिथि : 17 जनवरी 2020 |
229 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/313/दोहा |
चौपाई / छंद / दोहा -
भाग्य बिभव अवधेस कर देखि देव ब्रह्मादि । लगे सराहन सहस मुख जानि जनम निज बादि ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु ने जिनको अवतार लेने के लिए पिता के रूप में चुना ऐसे महाराज श्री दशरथजी का भाग्य देखकर सभी देवतागण हजारों मुख से उनके भाग्य की सराहना करने लगे । सिद्धांत यह है कि प्रभु जिनको अपने किसी भी कार्य के लिए चुनते हैं वे ही सच्चे भाग्यवान होते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 18 जनवरी 2020 |
230 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/314/दोहा |
चौपाई / छंद / दोहा -
सिवँ समुझाए देव सब जनि आचरज भुलाहु । हृदयँ बिचारहु धीर धरि सिय रघुबीर बिआहु ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब देवतागण विवाह में शामिल होने आए और उन्होंने श्री जनकपुरजी को देखा तो उनको अपने-अपने लोक बहुत तुच्छ लगने लगे । प्रभु श्री ब्रह्माजी ने देखा तो वे आश्चर्यचकित हो गए क्योंकि उनको वहाँ अपनी कोई भी रचना दिखी ही नहीं । तब प्रभु श्री महादेवजी ने सबका समाधान किया कि यह साक्षात अखिल ब्रह्मांड के परम ईश्वर प्रभु श्री रामजी का विवाह है इसलिए यहाँ सब कुछ अलौकिक है ।
प्रकाशन तिथि : 18 जनवरी 2020 |
231 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/315/1 |
चौपाई / छंद / दोहा -
जिन्ह कर नामु लेत जग माहीं । सकल अमंगल मूल नसाहीं ॥ करतल होहिं पदारथ चारी । तेइ सिय रामु कहेउ कामारी ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री महादेवजी कहते हैं कि प्रभु श्री रामजी का नाम लेते ही जगत के सारे अमंगल की जड़ ही कट जाती है । जगत के माता-पिता प्रभु श्री सीतारामजी का नाम लेते ही चारों पदार्थ यानी धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष जीव की मुट्ठी में आ जाते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 18 जनवरी 2020 |
232 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/315/दोहा |
चौपाई / छंद / दोहा -
राम रूपु नख सिख सुभग बारहिं बार निहारि । पुलक गात लोचन सजल उमा समेत पुरारि ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब प्रभु श्री महादेवजी और जगजननी भगवती पार्वती माता अपने इष्ट प्रभु श्री रामजी के विवाह में शामिल होने आए तो वे प्रभु का रूप देखकर मंत्रमुग्ध हो गए । प्रभु श्री रामजी के श्रीकमलचरणों के नख से श्रीमस्तक की शिखा का सुंदर रूप वे बार-बार देखते रहे और देखते-देखते उनके श्रीनेत्रों से प्रेमाश्रु बहने लगे और उनका शरीर पुलकित हो गया । प्रभु श्री महादेवजी और भगवती पार्वती माता को सारी सुंदरता बड़ी अलौकिक और मन को अति प्रिय लगने वाली लगी ।
प्रकाशन तिथि : 19 जनवरी 2020 |
233 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/317/2 |
चौपाई / छंद / दोहा -
निरखि राम छबि बिधि हरषाने । आठइ नयन जानि पछिताने ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब प्रभु श्री रामजी का श्रृंगार दूल्हे के रूप में हुआ तब उनका रूप देखकर सभी मोहित हो गए । प्रभु की शोभा देखकर प्रभु श्री ब्रह्माजी बड़े प्रसन्न हुए पर फिर वे पछताने लगे कि उनके चार श्रीमुख में आठ ही श्रीनेत्र हैं जिससे वे प्रभु का दर्शन कर पा रहे हैं । अधिक नेत्र होते तो प्रभु की शोभा अधिक देख पाते ।
प्रकाशन तिथि : 19 जनवरी 2020 |
234 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/318/4 |
चौपाई / छंद / दोहा -
मिलीं सकल रनिवासहिं जाई ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री रामजी और भगवती सीता माता के विवाह की बेला में भगवती सरस्वती माता, भगवती पार्वती माता, भगवती लक्ष्मी माता, श्री इंद्रदेवजी की पत्नी भगवती शची देवी और अन्य देवांगनाएं भगवती सीता माता के पीहर पक्ष में जाकर स्त्री वेश धरकर शामिल हो गई । वे अपनी मनोहर वाणी से मंगलगान करने लगी और ऐसा करके उन्हें विशेष हर्ष का अनुभव हुआ ।
प्रकाशन तिथि : 19 जनवरी 2020 |
235 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/319/छंद |
चौपाई / छंद / दोहा -
अवलोकि रघुकुल कमल रबि छबि सुफल जीवन लेखहीं ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री रामजी के विवाह में शामिल होने के लिए सभी देवतागण ब्राह्मण वेश बनाकर आ गए । मन को अति प्रफुल्लित करने वाली प्रभु श्री रामजी के दूल्हे के रूप में छवि देखकर उन्होंने अपना जीवन सफल माना ।
प्रकाशन तिथि : 20 जनवरी 2020 |
236 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/321/छंद |
चौपाई / छंद / दोहा -
सुर लखे राम सुजान पूजे मानसिक आसन दए । अवलोकि सीलु सुभाउ प्रभु को बिबुध मन प्रमुदित भए ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री ब्रह्माजी, प्रभु श्री विष्णुजी, प्रभु श्री महादेवजी, प्रभु श्री सूर्यनारायणजी और सभी देवतागण ब्राह्मण वेश बनाकर विवाह में ऐसे शामिल हुए और सब प्रभु श्री रामजी को देखकर अपनी सुध बुध ही भूल गए । सर्वज्ञ प्रभु श्री रामजी ने सभी को पहचान लिया और उन सभी की मानसिक पूजा करके उन्हें मानसिक आसन दिया । विवाह के उल्लास में भी प्रभु के ऐसे शील स्वभाव को देखकर सभी देवतागण मन-ही-मन बहुत आनंदित हुए ।
प्रकाशन तिथि : 20 जनवरी 2020 |
237 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/323/2 |
चौपाई / छंद / दोहा -
सबहि मनहिं मन किए प्रनामा ।
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब रूप की राशि और अपने नाम से ही पवित्र करने वाली भगवती सीता माता विवाह मंडप में आई तो सभी बारातियों और बारातियों में सम्मिलित देवतागण ने उन्हें साक्षात जगजननी जानकर मन-ही-मन प्रणाम किया ।
प्रकाशन तिथि : 20 जनवरी 2020 |
238 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/323/छंद (1) |
चौपाई / छंद / दोहा -
सुर प्रगटि पूजा लेहिं देहिं असीस अति सुखु पावहीं ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - कुल के आचार के अनुसार विवाह से पहले देवताओं का आह्वान कर उनकी पूजा की विधि चली । सभी देवतागण जिनका आह्वान होता था वे प्रकट होकर पूजा ग्रहण करते और वर-वधू को आशीर्वाद देते और ऐसा करके मन में अत्यंत सुख पाते और अपने को धन्य मानते ।
प्रकाशन तिथि : 21 जनवरी 2020 |
239 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/323/छंद (2) |
चौपाई / छंद / दोहा -
कुल रीति प्रीति समेत रबि कहि देत सबु सादर कियो ।
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री रामजी का अवतार रघुकुल में हुआ था । उनके कुलदेव प्रभु श्री सूर्यनारायणजी स्वयं प्रकट होकर प्रेम सहित अपने कुल की सभी रीतियां बताते । जैसा वे बताते उसी अनुरूप सभी आदरपूर्वक बताए विधि अनुसार सभी कर्म करते ।
प्रकाशन तिथि : 21 जनवरी 2020 |
240 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/323/दोहा |
चौपाई / छंद / दोहा -
होम समय तनु धरि अनलु अति सुख आहुति लेहिं । बिप्र बेष धरि बेद सब कहि बिबाह बिधि देहिं ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री रामजी और भगवती सीता माता के विवाह के उपलक्ष्य में किए हवन के समय स्वयं श्री अग्निदेवजी प्रकट होकर और शरीर धारण करके बड़े सुख से आहुति ग्रहण करते । सारे श्री वेदजी ब्राह्मण वेश बनाकर विवाह की सारी विधियां बताते और सभी उनका अनुसरण करते ।
प्रकाशन तिथि : 21 जनवरी 2020 |