क्रम संख्या |
श्रीग्रंथ |
संख्या |
भाव के दर्शन / प्रेरणापुंज |
121 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/122/1 |
चौपाई / छंद / दोहा -
सोइ जस गाइ भगत भव तरहीं । कृपासिंधु जन हित तनु धरहीं ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु अवतार ग्रहण करके धर्म की स्थापना करते हैं और विभिन्न श्रीलीलाएं करते हैं जिसके कारण उनका निर्मल यश जगत में फैल जाता है । उसी यश को गा-गाकर भक्तों का उद्धार होता है और वे संसार के भवसागर से तर जाते हैं । इसलिए भक्त ऐसा मानते हैं कि कृपासिंधु प्रभु भक्तों का हित करने के लिए ही अवतार ग्रहण करते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 28 नवम्बर 2019 |
122 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/124/दोहा (क) |
चौपाई / छंद / दोहा -
जेहि जस रघुपति करहिं जब सो तस तेहि छन होइ ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री महादेवजी एक बहुत मर्म की बात इस दोहे में कहते हैं । वे कहते हैं कि संसार में न तो कोई ज्ञानी है और न ही कोई मूर्ख । प्रभु जब जिसको जैसा करते हैं और जिससे जैसा करवाते हैं वह उसी क्षण वैसा ही हो जाता है और वैसा ही करता है जैसा प्रभु चाहते हैं । संसार के सभी जीव कठपुतली की तरह हैं जिनकी डोर प्रभु के श्रीहाथों में होती है ।
प्रकाशन तिथि : 28 नवम्बर 2019 |
123 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/124/दोहा (ख) |
चौपाई / छंद / दोहा -
भव भंजन रघुनाथ भजु तुलसी तजि मान मद ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी एक बहुत मार्मिक बात इस दोहे में कहते हैं । वे कहते हैं कि जीव को मान और मद को छोड़कर प्रभु श्री रामजी को भजना चाहिए । ऐसा करने से प्रभु सदैव के लिए उस जीव का संसार से आवागमन का नाश कर उस जीव को तार देते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 29 नवम्बर 2019 |
124 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/126/4 |
चौपाई / छंद / दोहा -
सीम कि चाँपि सकइ कोउ तासू । बड़ रखवार रमापति जासू ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब देवर्षि प्रभु श्री नारदजी की तपस्या को देखकर श्री इंद्रदेवजी डर गए तो उन्होंने श्री कामदेवजी को तपस्या भंग करने के लिए भेजा । श्री कामदेवजी ने अपना पूरा प्रयास किया पर प्रभु जिसके रक्षक बन जाते हैं उसकी मर्यादा को कोई खंडित नहीं कर सकता । प्रभु के कृपापात्र होने के कारण प्रभु ने देवर्षि प्रभु श्री नारदजी का रक्षण किया और श्री कामदेवजी ने हार मानकर देवर्षि प्रभु श्री नारदजी के श्रीचरण पकड़कर उनका अभिनंदन किया ।
प्रकाशन तिथि : 29 नवम्बर 2019 |
125 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/127/दोहा |
चौपाई / छंद / दोहा -
हरि इच्छा बलवान ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - यह एक अकाट्य सिद्धांत है कि श्रीहरि की इच्छा बड़ी बलवती है और प्रभु जैसा चाहते हैं वैसा ही होकर रहता है । इस बात का बहुत जोर देकर श्री रामचरितमानसजी एवं अन्य शास्त्रों में प्रतिपादन हुआ है कि श्रीहरि की भावी इच्छा बड़ी बलवान है । इसलिए जीव को प्रभु इच्छा को ही सर्वोपरि और अपने लिए परम हितकारी मानकर उसे सहर्ष स्वीकार करना चाहिए ।
प्रकाशन तिथि : 30 नवम्बर 2019 |
126 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/128/1 |
चौपाई / छंद / दोहा -
राम कीन्ह चाहहिं सोइ होई । करै अन्यथा अस नहिं कोई ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - एक अकाट्य सिद्धांत का इस चौपाई में प्रतिपादन हुआ है । सिद्धांत यह है कि जैसा प्रभु करना चाहते हैं वैसा ही होता है । ऐसा जगत में कोई नहीं जो उसके विरुद्ध जाकर कुछ भी कर सके । प्रभु का किया ही जगत में होता है इसलिए प्रभु की रजा में ही हमें राजी रहना चाहिए । प्रभु का किया ही जीवन में स्वीकार करना चाहिए यह मानकर कि उसमें ही हमारा परम हित छिपा है । जो प्रभु की रजा में राजी रहता है वह प्रभु की कृपा से कभी भी वंचित नहीं होता ।
प्रकाशन तिथि : 30 नवम्बर 2019 |
127 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/128/4 |
चौपाई / छंद / दोहा -
अति प्रचंड रघुपति कै माया । जेहि न मोह अस को जग जाया ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु की माया अति बलवती, प्रचंड और प्रबल है । जगत में ऐसा कोई नहीं जन्मा जिसे प्रभु की माया ने मोहित न किया हो । प्रभु की माया ने सभी को नचाया है और कोई भी उससे बच नहीं पाया है । प्रभु जब कृपा करते हैं तब ही किसी जीव के जीवन से माया अंतर्ध्यान होती है अन्यथा वह जीव माया के बंधन और प्रभाव में फंसा हुआ ही रहता है ।
प्रकाशन तिथि : 01 दिसम्बर 2019 |
128 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/129/3 |
चौपाई / छंद / दोहा -
पन हमार सेवक हितकारी ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब प्रभु श्री महादेवजी के मना करने पर भी देवर्षि प्रभु श्री नारदजी ने प्रभु श्री हरिजी को अपनी श्री कामदेवजी पर विजय की बात बताई तो प्रभु को यह गर्व अच्छा नहीं लगा । प्रभु ने देखा कि उनके परम भक्त देवर्षि प्रभु श्री नारदजी के हृदय में गर्व के वृक्ष के अंकुर फूट पड़े हैं । प्रभु को अपने भक्त में अभिमान देखना सबसे अप्रिय लगता है । प्रभु ने निर्णय लिया कि वे उस गर्व के अंकुर को वृक्ष बनने से पहले ही उखाड़ फेकेंगे क्योंकि अपने भक्तों का परम हित करने का प्रभु का सदैव से प्रण रहा है ।
प्रकाशन तिथि : 01 दिसम्बर 2019 |
129 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/132/दोहा |
चौपाई / छंद / दोहा -
जेहि बिधि होइहि परम हित नारद सुनहु तुम्हार । सोइ हम करब न आन कछु बचन न मृषा हमार ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु द्वारा माया से रची नगरी, राजा और राजकुमारी को देखकर देवर्षि प्रभु श्री नारदजी मोहित हो गए और प्रभु के पास उनका रूप मांगने गए जिससे राजकुमारी उनका वरण कर ले । एक बात जो देवर्षि प्रभु श्री नारदजी ने अंत में प्रभु से कही वह बड़ी काम की बात है । उन्होंने प्रभु से कहा कि जिसमें उनका हित हो प्रभु वही करें । प्रभु भी उनकी बात सुनकर बोले कि जिसमें उनका परम हित होगा वैसा ही प्रभु करेंगे, दूसरा वे कुछ नहीं करेंगे ।
प्रकाशन तिथि : 02 दिसम्बर 2019 |
130 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/133/1 |
चौपाई / छंद / दोहा -
कुपथ माग रुज ब्याकुल रोगी । बैद न देइ सुनहु मुनि जोगी ॥ एहि बिधि हित तुम्हार मैं ठयऊ ।
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - रोग से व्याकुल रोगी अगर कुपथ्य मांगे तो उसके मांगने या कहने पर भी एक अच्छा वैद्य उसे मना कर देता है और नहीं देता । वैसे ही प्रभु भी अपने प्रिय भक्त के गलत चीज मांगने पर उनका हित करने के लिए उन्हें बुरी भी लगे तो भी वह नहीं देते । प्रभु ने अपने भक्तों का हित करने का व्रत लिया हुआ है इसलिए जो भक्त के लिए भविष्य में उचित है प्रभु वही करते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 02 दिसम्बर 2019 |
131 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/138/4 |
चौपाई / छंद / दोहा -
जेहि पर कृपा न करहिं पुरारी । सो न पाव मुनि भगति हमारी ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री हरिजी ने देवर्षि प्रभु श्री नारदजी को प्रभु श्री महादेवजी का जप करने को कहा जिससे उनके हृदय में उन्हें तुरंत शांति मिलेगी । उन्होंने कहा कि प्रभु श्री महादेवजी के समान उनको कोई भी प्रिय नहीं है । प्रभु श्री हरिजी ने कहा कि प्रभु श्री महादेवजी जिन पर कृपा करते हैं वे ही उनकी भक्ति प्राप्त कर पाते हैं । हरि और हर दोनों एक दूसरे को अतिशय प्रिय हैं और दोनों एक दूसरे की भक्ति सदैव करते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 03 दिसम्बर 2019 |
132 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/139/दोहा |
चौपाई / छंद / दोहा -
सुर रंजन सज्जन सुखद हरि भंजन भुबि भार ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु के लिए यहाँ तीन विशेषणों का प्रयोग हुआ है । पहला, प्रभु देवताओं के कार्य सिद्ध करके उनको प्रसन्न करने वाले और उन पर कृपा करने वाले हैं । दूसरा, प्रभु सज्जनों को आपत्ति से निकाल कर उन्हें सुख देने वाले हैं । तीसरा, प्रभु भगवती पृथ्वी माता का भार हरण करने वाले हैं । जब-जब भगवती पृथ्वी माता पर अधर्म बढ़ता है और आसुरी शक्ति का बोलबाला हो जाता है प्रभु उसका विनाश कर धर्म की पुनःस्थापना भगवती पृथ्वी माता के लिए करते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 03 दिसम्बर 2019 |
133 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/140/3 |
चौपाई / छंद / दोहा -
हरि अनंत हरिकथा अनंता । कहहिं सुनहिं बहुबिधि सब संता ॥ रामचंद्र के चरित सुहाए । कलप कोटि लगि जाहिं न गाए ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - यह श्री रामचरितमानसजी की एक प्रसिद्ध चौपाई है । प्रभु अनंत हैं और उनका पार नहीं पाया जा सकता । ऐसे ही अनंत प्रभु की अनंत कथाएं भी हैं जिन्हें संत और भक्त अनंत काल से बहुत प्रकार से कहते और सुनते आ रहे हैं । जब एक ही प्रभु विभिन्न कल्पों में अनंत अवतार लेकर नाना प्रकार की सुंदर श्रीलीलाएं करते हैं तो उनकी कथाएं भी अनंत हो जाती हैं । संत और भक्तजन इन अनंत कथाओं का रसपान करते रहते हैं । इस तरह प्रभु का सुंदर श्रीचरित्र इतना अनंत है कि करोड़ों कल्प में भी उसे गाया नहीं जा सकता ।
प्रकाशन तिथि : 04 दिसम्बर 2019 |
134 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/140/4 |
चौपाई / छंद / दोहा -
प्रभु कौतुकी प्रनत हितकारी । सेवत सुलभ सकल दुखहारी ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री महादेवजी भगवती पार्वती माता को कहते हैं कि प्रभु लीलामय हैं यानी श्रीलीलाएं करते रहते हैं । प्रभु अपने शरणागत का परम हित करने वाले हैं । प्रभु अपनी सेवा करने वालों के लिए बहुत सुलभ हो जाते हैं जिससे भक्त उनकी सेवा बड़ी सुलभता से कर सके । प्रभु सभी के दुःखों को हरने वाले हैं ।
प्रकाशन तिथि : 04 दिसम्बर 2019 |
135 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/140/दोहा |
चौपाई / छंद / दोहा -
सुर नर मुनि कोउ नाहिं जेहि न मोह माया प्रबल । अस बिचारि मन माहिं भजिअ महामाया पतिहि ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु की माया का प्रभाव इस दोहे में बताया गया है । प्रभु श्री महादेवजी भगवती पार्वती माता से कहते हैं कि पूरे जगत में देवतागण, मुनि और मनुष्य में ऐसा कोई नहीं है जो प्रभु की बलवती माया के प्रभाव से बच पाए । प्रभु की माया सभी को मोहित कर देती है । प्रभु श्री महादेवजी कहते हैं कि माया का ऐसा प्रभाव देखकर जीव को चाहिए कि माया के स्वामी प्रभु का भजन करें ।
प्रकाशन तिथि : 05 दिसम्बर 2019 |
136 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/141/दोहा |
चौपाई / छंद / दोहा -
राम कथा कलि मल हरनि मंगल करनि सुहाइ ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - ऋषि श्री याज्ञवल्क्यजी कहते हैं कि प्रभु श्री रामजी की मनोहर कथा कलियुग के पापों का नाश करने वाली है । प्रभु की कथा बड़ी अनुपम है और सुनने वालों का कल्याण करने वाली है । जो तल्लीनता से प्रभु की कथा का श्रवण करता है उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं और उसका परम मंगल होता है । इसलिए जीवन को धन्य करने के लिए प्रभु की मंगलमय कथा का नित्य श्रवण करना चाहिए ।
प्रकाशन तिथि : 05 दिसम्बर 2019 |
137 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/142/दोहा |
चौपाई / छंद / दोहा -
होइ न बिषय बिराग भवन बसत भा चौथपन । हृदयँ बहुत दुख लाग जनम गयउ हरिभगति बिनु ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - महाराज श्री मनुजी ने बहुत वर्षों तक राज्य किया और फिर उनके मन में उनकी पत्नी के साथ एक विचार आया । उन्होंने विचार किया कि घर में रहते हुए बुढ़ापा आ गया पर फिर भी संसार के विषयों से वैराग्य नहीं हुआ । इस बात को सोच कर उनके मन में बहुत दुःख हुआ कि इस तरह तो बिना प्रभु भक्ति के उनका जन्म ही व्यर्थ चला जाएगा । हमें यह देखना चाहिए कि क्या हमारे मन में भी ऐसा विचार आता है कि हमारा जीवन भक्ति बिना व्यर्थ जा रहा है ।
प्रकाशन तिथि : 06 दिसम्बर 2019 |
138 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/144/4 |
चौपाई / छंद / दोहा -
ऐसेउ प्रभु सेवक बस अहई । भगत हेतु लीलातनु गहई ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जो प्रभु अनंत और अनादि हैं और जिनका श्री वेदजी भी निरूपण नहीं कर पाते ऐसे महान प्रभु भी अपने सेवकों के वश में होते हैं । परम स्वतंत्र प्रभु भी अपने को स्वतंत्र नहीं मानते और अपने को अपने भक्तों के अधीन मानते हैं । प्रभु अपने भक्तों के साथ श्रीलीला करने के लिए और उन्हें आनंद देने के लिए दिव्य लीला-विग्रह धारण करते हैं । यह प्रभु का अपने भक्तों पर कितना बड़ा अनुग्रह है ।
प्रकाशन तिथि : 06 दिसम्बर 2019 |
139 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/146/1 |
चौपाई / छंद / दोहा -
सेवत सुलभ सकल सुखदायक । प्रनतपाल सचराचर नायक ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु सेवा करने में सुलभ हैं और सेवा करने वालों के लिए भी सुलभ हैं । प्रभु ही जीव को सभी सुखों को प्रदान करने वाले हैं । प्रभु के अलावा इस दुखालय संसार में जीव को कोई सुख प्रदान नहीं कर सकता । प्रभु अपने शरणागत के रक्षक हैं । जो प्रभु की शरण में आ जाता है उसकी रक्षा का व्रत प्रभु ने लिया हुआ है । शरणागत हुए जीव को प्रभु तत्काल अभय प्रदान कर देते हैं । प्रभु जड़ और चेतन सभी के एकमात्र स्वामी हैं ।
प्रकाशन तिथि : 07 दिसम्बर 2019 |
140 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/146/2 |
चौपाई / छंद / दोहा -
जौं अनाथ हित हम पर नेहू ।
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु अनाथों का कल्याण करने वाले हैं । जो संसार से अपने माने हुए रिश्ते को भूलकर अनाथ बनकर प्रभु की शरण में चला जाता है, प्रभु ऐसे जीवों को अत्यंत प्रेम और करुणा से अपना लेते हैं और उन पर कृपा करके उनका कल्याण कर देते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 07 दिसम्बर 2019 |
141 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/146/3 |
चौपाई / छंद / दोहा -
कृपा करहु प्रनतारति मोचन ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु अपने शरणागत हुए जीव के दुःख को मिटाते हैं । जो जीव संसार के तापों से तपा हुआ और प्रारब्धवश विवश होकर दुःख झेलता है और प्रभु की शरण में आ जाता है प्रभु उसे उसके दुःख से निवृत्त कर देते हैं । शरणागत हुए जीव के दुःखों को मिटाने का प्रभु का संकल्प है और प्रभु ऐसा करने से कभी नहीं चूकते ।
प्रकाशन तिथि : 08 दिसम्बर 2019 |
142 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/146/4 |
चौपाई / छंद / दोहा -
भगत बछल प्रभु कृपानिधाना । बिस्वबास प्रगटे भगवाना ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब महाराज श्री मनुजी ने अपनी पत्नी के साथ प्रभु के दर्शन पाने के लिए बड़ा तप किया तो प्रभु प्रकट हुए । राजा और रानी के कोमल और प्रेम से भरे एवं विनययुक्त वचन प्रभु को बहुत प्रिय लगे । प्रभु का स्वभाव है कि दीन वचन सुनकर प्रभु रीझ जाते हैं । चार विशेषणों का प्रयोग प्रभु के लिए इस चौपाई में हुआ है । प्रभु भक्तवत्सल हैं यानी अपने भक्तों के प्रति वात्सल्य भाव रखने वाले हैं । प्रभु कृपानिधान हैं यानी अपने भक्तों पर अहेतु की कृपा करने वाले हैं । प्रभु में संपूर्ण व्यापक विश्व का निवास है । प्रभु सर्वसामर्थ्यवान हैं यानी सब कुछ करने में समर्थ हैं ।
प्रकाशन तिथि : 08 दिसम्बर 2019 |
143 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/148/2 |
चौपाई / छंद / दोहा -
भृकुटि बिलास जासु जग होई ।
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - इस दोहे में प्रभु के असीम ऐश्वर्य की एक उपमा दी गई है जो बहुत विलक्षण है । प्रभु की भृकुटी यानी भौंह के इशारे मात्र से जगत की रचना हो जाती है । जब महाप्रलय के बाद सृष्टि प्रभु में विलीन होती है और जब फिर नई सृष्टि की रचना का समय आता है तो इसके लिए प्रभु को तनिक भी श्रम नहीं करना पड़ता । प्रभु के इशारे मात्र से यह कार्य संपन्न हो जाता है । इतना विलक्षण प्रभु का ऐश्वर्य है ।
प्रकाशन तिथि : 09 दिसम्बर 2019 |
144 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/148/4 |
चौपाई / छंद / दोहा -
परे दंड इव गहि पद पानी ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब महाराज श्री मनुजी और उनकी पत्नी भगवती शतरूपा महारानी के तप से प्रसन्न होकर प्रभु ने उन्हें दर्शन दिया तो दर्शन पाते ही वे दोनों आनंद से विभोर हो गए । उन्होंने प्रभु के श्रीकमलचरणों को पकड़ने के लिए डंडा जैसे भूमि पर गिरता है वैसे ही सीधे भूमि पर गिरकर प्रभु को साष्टांग दंडवत प्रणाम निवेदन किया । इस पर कृपा के राशि प्रभु ने अपने श्रीकरकमलों का स्पर्श उनके मस्तक को आशीर्वाद देते हुए कराया और उनको भूमि से उठा लिया ।
प्रकाशन तिथि : 09 दिसम्बर 2019 |
145 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/149/4 |
चौपाई / छंद / दोहा -
मोरें नहिं अदेय कछु तोही ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु ने तप से प्रसन्न होकर जब महाराज श्री मनुजी और उनकी पत्नी भगवती शतरूपाजी को वर मांगने को कहा तो उन्होंने कहा कि प्रभु के श्रीकमलचरणों को देखकर ही उनकी सारी मनोकामनाएं पूर्ण हो गई हैं । फिर भी प्रभु ने कहा कि संकोच को छोड़कर उनसे वर मांगें । फिर जो प्रभु ने कहा उससे एक सिद्धांत का प्रतिपादन होता है । प्रभु ने कहा कि ऐसा उनके पास कुछ भी नहीं है जो वे नहीं दे सकते । तात्पर्य यह है कि प्रभु सभी अभीष्ट वस्तु दे सकते हैं और प्रभु अपने पास ऐसा कुछ भी बाकी नहीं रखते जो वे किसी को नहीं देते हैं । अपना सर्वस्व प्रभु अपने भक्तों को देने को तत्पर रहते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 10 दिसम्बर 2019 |
146 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/149/दोहा |
चौपाई / छंद / दोहा -
दानि सिरोमनि कृपानिधि नाथ कहउँ सतिभाउ ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु से वर मांगने का कहने पर महाराज श्री मनुजी ने प्रभु को बहुत सुंदर संबोधन से पुकारा । महाराज श्री मनुजी ने प्रभु से कहा कि आप दानियों के शिरोमणि हैं यानी आपसे बड़ा महादानी अन्य कोई ब्रह्मांड में नहीं है । कृपानिधान प्रभु जब दान देने को आते हैं तो अपना सर्वस्व दान दे देते हैं और यहाँ तक कि भक्तों को अपने स्वयं का भी दान कर देते हैं । प्रभु को छोड़कर कौन ऐसा विश्व में दाता होगा जो ऐसा कर सकता है । ऐसे मात्र और मात्र प्रभु ही हैं ।
प्रकाशन तिथि : 10 दिसम्बर 2019 |
147 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/150/3 |
चौपाई / छंद / दोहा -
ब्रह्म सकल उर अंतरजामी ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - भगवती शतरूपाजी ने प्रभु के लिए एक बहुत सुंदर संबोधन का प्रयोग इस चौपाई में किया है । वे कहती हैं कि प्रभु सबके हृदय को भीतर से जानने वाले परब्रह्म हैं । यह बात हमें याद रखनी चाहिए कि प्रभु हम सबके हृदय में छिपे भाव को जानने वाले अंतर्यामी हैं । जो भाव हमारे भीतर था, जो भाव है और जो भाव आगे होने वाला है उन सबको प्रभु पहले से ही जानते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 11 दिसम्बर 2019 |
148 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/150/दोहा |
चौपाई / छंद / दोहा -
सोइ सुख सोइ गति सोइ भगति सोइ निज चरन सनेहु ॥ सोइ बिबेक सोइ रहनि प्रभु हमहि कृपा करि देहु ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - भगवती शतरूपाजी को प्रभु ने जब वर मांगने को कहा तो उन्होंने बहुत सुंदर वर मांगा । उन्होंने प्रभु से कहा कि प्रभु के निज भक्त जैसा अलौकिक और अखंड सुख पाते हैं और परम गति को पाते हैं वही सुख, वही गति और वही भक्ति प्रभु उन्हें दें । उन्होंने प्रभु से आगे कहा कि जैसा प्रभु के भक्त प्रभु के श्रीकमलचरणों का प्रेम और प्रभु का ज्ञान पाते हैं वैसा ही प्रभु उन्हें दें । उन्होंने प्रभु से कहा कि जैसा रहन-सहन प्रभु भक्तों का होता है वैसा ही प्रभु उन्हें प्रदान करें ।
प्रकाशन तिथि : 11 दिसम्बर 2019 |
149 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/151/3 |
चौपाई / छंद / दोहा -
मनि बिनु फनि जिमि जल बिनु मीना । मम जीवन तिमि तुम्हहि अधीना ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - महाराज श्री मनुजी को जब तप से प्रसन्न होकर प्रभु ने वरदान दे दिया तो उन्होंने प्रभु के अंतर्ध्यान होने से पहले प्रभु के श्रीकमलचरणों की वंदना कर एक विनती की जो बहुत सुंदर है । उन्होंने प्रभु से कहा कि जैसे मणि के बिना सांप और जल के बिना मछली एक पल भी नहीं रह सकती वैसे ही उनका जीवन प्रभु के अधीन रहे और वे प्रभु के बिना नहीं रह सकें ।
प्रकाशन तिथि : 12 दिसम्बर 2019 |
150 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/152/2 |
चौपाई / छंद / दोहा -
जे सुनि सादर नर बड़भागी । भव तरिहहिं ममता मद त्यागी ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु ने महाराज श्री मनुजी और महारानी शतरूपाजी को विदा होने से पहले कहा कि आपके मांगे वर अनुसार प्रभु अपने अंशों सहित और भगवती माता सहित मनुष्य देह धारण करके प्रकट होंगे । प्रभु भक्तों को आनंद प्रदान करने वाली दिव्य श्रीलीलाएं करेंगे । प्रभु के उन श्रीचरित्रों को बड़े भाग्यशाली मनुष्य आदर सहित श्रवण करेंगे जिसके फलस्वरूप वे ममता और मद से रहित होकर भवसागर से तर जाएंगे । प्रभु के श्रीचरित्रों का श्रवण करके भवसागर तर जाने वाले मनुष्यों को प्रभु ने बड़े भाग्यशाली कहकर संबोधित किया है जो ध्यान देने योग्य है । सच्चा भाग्यशाली वही है जो जीवन में ऐसा कर पाता है ।
प्रकाशन तिथि : 12 दिसम्बर 2019 |
151 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/156/1 |
चौपाई / छंद / दोहा -
करइ जे धरम करम मन बानी । बासुदेव अर्पित नृप ग्यानी ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - कैकई देश के राजा प्रतापभानुजी के लिए इस चौपाई में कहा गया है कि वे ज्ञानी राजा थे । वे जो भी कर्म और धर्म करते थे उसे प्रभु को अर्पित करके करते थे । हमारे मन, वचन और शरीर से जो भी कर्म और धर्म हो उन्हें हमें प्रभु को अर्पित करना चाहिए । इससे दो बड़े लाभ होते हैं । पहला, प्रभु को अर्पित होने के कारण हम कर्मबंधन से बच जाते हैं । दूसरा, ऐसा करने पर प्रभु प्रसन्न होते हैं कि जीव ने प्रभु के लिए कर्म किया और कोई फल इच्छा अपने लिए नहीं रखी ।
प्रकाशन तिथि : 13 दिसम्बर 2019 |
152 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/159/दोहा (ख) |
चौपाई / छंद / दोहा -
आपुनु आवइ ताहि पहिं ताहि तहाँ लै जाइ ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी इस चौपाई में एक सिद्धांत का प्रतिपादन करते हैं । वे कहते हैं कि जैसी प्रभु ने हमारे ललाट पर होनी लिख दी वह घटित होकर ही रहती है । होनीवश हमें वैसी ही सहायता विपत्ति काल में मिल जाती है यानी या तो सहायता चलकर हमारे पास आ जाती है या हम अपने आप चलकर सहायता के पास पहुँच जाते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 13 दिसम्बर 2019 |
153 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/175/दोहा |
चौपाई / छंद / दोहा -
भरद्वाज सुनु जाहि जब होइ बिधाता बाम । धूरि मेरुसम जनक जम ताहि ब्यालसम दाम ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - ऋषि श्री याज्ञवल्क्यजी ऋषि श्री भरद्वाजजी से कहते हैं कि जब विधाता विपरीत हो जाते हैं तो उस जीव के लिए प्रतिकूलता-ही-प्रतिकूलता निर्माण हो जाती है । उस जीव के लिए धूल का एक साधारण कण भी भारी और कुचल देने वाले पर्वत के समान बन जाता है । उस जीव के पिता ही उसके कालरूप हो जाते हैं और उसके लिए साधारण रस्सी भी सांप के समान जहर से काट लेने वाली बन जाती है ।
प्रकाशन तिथि : 14 दिसम्बर 2019 |
154 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/177/दोहा |
चौपाई / छंद / दोहा -
तेहिं मागेउ भगवंत पद कमल अमल अनुरागु ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - भक्त की बुद्धि को अगर कोई प्रलोभन होता है तो वह प्रभु भक्ति और प्रभु प्रेम पाने का ही होता है । जब पितामह प्रभु श्री ब्रह्माजी ने श्री विभीषणजी के तप से प्रसन्न होकर उन्हें वरदान मांगने को कहा तो उन्होंने प्रभु के श्रीकमलचरणों का निर्मल, निष्काम और अनन्य प्रेम मांगा । भक्त होने के कारण राक्षस कुल में उत्पन्न होने पर भी उन्होंने केवल और केवल प्रभु की भक्ति और प्रभु का प्रेम ही मांगा ।
प्रकाशन तिथि : 14 दिसम्बर 2019 |
155 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/184/दोहा |
चौपाई / छंद / दोहा -
धरनि धरहि मन धीर कह बिरंचि हरि पद सुमिरु । जानत जन की पीर प्रभु भंजिहि दारुन बिपति ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब रावण के पृथ्वीलोक में अत्याचार से भगवती पृथ्वी माता व्याकुल हुई तो वे गौ-माता का रूप लेकर प्रभु श्री ब्रह्माजी के पास अरदास लेकर गई । प्रभु श्री ब्रह्माजी ने भगवती पृथ्वी माता को कहा कि आप जिन प्रभु श्री हरिजी की दासी हैं उनके श्रीकमलचरणों का स्मरण करें क्योंकि वे ही आपका कष्ट दूर करेंगे । उन्होंने कहा कि प्रभु अपने दासों की पीड़ा जानते हैं और जो प्रभु की शरण में आ जाता है प्रभु उसकी पीड़ा एवं विपत्ति का नाश करते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 15 दिसम्बर 2019 |
156 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/185/2 |
चौपाई / छंद / दोहा -
जाके हृदयँ भगति जसि प्रीती । प्रभु तहँ प्रगट सदा तेहिं रीती ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु सर्वत्र मौजूद हैं और अपने शरणागत के हृदय में जैसी भक्ति और प्रीति होती है उस अनुरूप प्रभु उनके लिए सदा वहाँ उपलब्ध रहते हैं । जीव को प्रभु को खोजने कहीं जाना नहीं पड़ता । प्रभु उसके लिए सदैव जहाँ उसे आवश्यकता होती है वहीं उपलब्ध रहते हैं और उसका हित करते हैं । भक्त को केवल अनन्यता से प्रभु को पुकारने मात्र की देर है, प्रभु वहीं उसके लिए उपलब्ध हो जाते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 15 दिसम्बर 2019 |
157 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/185/3 |
चौपाई / छंद / दोहा -
हरि ब्यापक सर्बत्र समाना । प्रेम तें प्रगट होहिं मैं जाना ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - यह श्री रामचरितमानसजी की एक बहुत प्रसिद्ध चौपाई है । प्रभु व्यापक हैं और सर्वत्र समान रूप से ब्रह्मांड और सृष्टि में एक ही समय सभी जगह उपलब्ध हैं । उपलब्ध होने पर भी प्रभु अप्रकट हैं क्योंकि उन्हें केवल प्रेम से ही प्रकट किया जा सकता है । जो भक्त प्रभु की भक्ति करता है और उसकी प्रभु में प्रीति होती है उसके लिए प्रभु सर्वत्र उपलब्ध हैं और उसे सर्वत्र अपनी अनुभूति देते हैं । प्रभु श्री महादेवजी भगवती पार्वती माता को इस चौपाई के माध्यम से यह अकाट्य सिद्धांत बताते हैं कि अपनी भक्ति और प्रेम के बल पर भक्त प्रभु को कहीं भी प्रकट करवा लेता है ।
प्रकाशन तिथि : 16 दिसम्बर 2019 |
158 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/186/छंद (1) |
चौपाई / छंद / दोहा -
जय जय सुरनायक जन सुखदायक प्रनतपाल भगवंता । गो द्विज हितकारी जय असुरारी सिधुंसुता प्रिय कंता ॥ पालन सुर धरनी अद्भुत करनी मरम न जानइ कोई । जो सहज कृपाला दीनदयाला करउ अनुग्रह सोई ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - यह प्रभु श्री हरिजी की दिव्य स्तुति प्रभु श्री ब्रह्माजी द्वारा की गई है । वे प्रभु को सुशोभित विशेषणों से संबोधित करते हैं । प्रभु देवताओं के एकमात्र स्वामी हैं । प्रभु अपने सेवकों को सुख प्रदान करने वाले हैं । प्रभु अपने शरणागतों की रक्षा करके उन्हें अभय देने वाले हैं । प्रभु आसुरी शक्तियों का विनाश करने वाले हैं । प्रभु देवतागण और भगवती पृथ्वी माता का पालन करने वाले हैं । प्रभु अदभुत श्रीलीलाएं करने वाले हैं जिनका भेद कोई नहीं जान सकता । प्रभु स्वभाव से अत्यंत कृपालु और दीनों पर दया करने वाले हैं । प्रभु श्री ब्रह्माजी ऐसे प्रभु श्री हरिजी की जय-जय बोलकर उनका आह्वान करते हैं कि वे उन सभी पर इस विपत्ति की घड़ी में कृपा करें ।
प्रकाशन तिथि : 16 दिसम्बर 2019 |
159 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/186/छंद (2) |
चौपाई / छंद / दोहा -
जय जय अबिनासी सब घट बासी ब्यापक परमानंदा । अबिगत गोतीतं चरित पुनीतं मायारहित मुकुंदा ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - यह प्रभु श्री हरिजी की दिव्य स्तुति प्रभु श्री ब्रह्माजी द्वारा की गई है । वे प्रभु को अविनाशी और सबके हृदय में निवास करने वाले और सबके हृदय के भाव को जानने वाले अंतर्यामी कहते हैं । वे प्रभु को सर्वव्यापक और परम आनंदस्वरूप कहते हैं । वे प्रभु को इंद्रियों से परे, पवित्र श्रीचरित्र करने वाले, माया से रहित और मोक्ष के दाता कहकर संबोधित करते हैं और प्रभु की जय-जयकार करते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 17 दिसम्बर 2019 |
160 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/186/छंद (3) |
चौपाई / छंद / दोहा -
सो करउ अघारी चिंत हमारी जानिअ भगति न पूजा ॥ जो भव भय भंजन मुनि मन रंजन गंजन बिपति बरूथा । मन बच क्रम बानी छाड़ि सयानी सरन सकल सुर जूथा ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - यह प्रभु श्री हरिजी की दिव्य स्तुति प्रभु श्री ब्रह्माजी द्वारा की गई है । प्रभु श्री ब्रह्माजी देवतागणों की तरफ से प्रभु को कहते हैं कि वे न तो भक्ति जानते हैं, न पूजा पर वे अपने मन, वचन और कर्म की चतुराई छोड़कर प्रभु की शरण में आए हैं । प्रभु संसार के जन्म-मृत्यु के भय का नाश करने वाले हैं और ऋषियों एवं मुनियों को आनंद देने वाले हैं । प्रभु श्री ब्रह्माजी कहते हैं कि प्रभु विपत्तियों के समूह को अपनी एक कृपा दृष्टि से नष्ट करने वाले हैं ।
प्रकाशन तिथि : 17 दिसम्बर 2019 |
161 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/188/4 |
चौपाई / छंद / दोहा -
हृदयँ भगति मति सारँगपानी ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्री अवधपुरीजी के रघुकुल के महाराज श्री दशरथजी और उनकी महारानियों का वर्णन इस चौपाई में हुआ है । महाराज श्री दशरथजी और भगवती कौशल्याजी आदि महारानियों के हृदय में प्रभु की पूर्ण भक्ति थी और उनकी बुद्धि भी सर्वदा प्रभु में ही लगी रहती थी । उन सबका प्रभु के श्रीकमलचरणों में दृढ़ प्रेम था ।
प्रकाशन तिथि : 18 दिसम्बर 2019 |
162 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/190/दोहा |
चौपाई / छंद / दोहा -
जोग लगन ग्रह बार तिथि सकल भए अनुकूल । चर अरु अचर हर्षजुत राम जनम सुखमूल ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु के अवतार लेने के समय योग, लग्न, ग्रह, वार और तिथि सभी अपने आप अनुकूल हो गए । यह होना ही था क्योंकि अपने स्वामी के प्राकट्य पर उन सबको अति आनंद हुआ । सभी ग्रहों के स्वामी प्रभु हैं तो प्रभु के अवतार लेकर आगमन पर बिना कहे ही सभी पूर्ण रूप से अनुकूल हो गए । संसार के सभी जड़ और चेतन हर्षित हो उठे क्योंकि प्रभु का प्राकट्य सभी सुखों का मूल है ।
प्रकाशन तिथि : 18 दिसम्बर 2019 |
163 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/191/दोहा |
चौपाई / छंद / दोहा -
जगनिवास प्रभु प्रगटे अखिल लोक बिश्राम ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब प्रभु के प्राकट्य का समय आया तो शीतल और सुगंधित वायु बहने लगी । वन फूल और फलों से लद गए । पर्वतों में मणियां जगमगा उठी । नदियों में अमृत जल बहने लगा । देवतागण हर्षित हो उठे और आकाश देवताओं के समूह से भर गया । गंधर्व प्रभु का यशगान करने लगे । आकाश में नगाड़े बज उठे और फूलों की वृष्टि होने लगी । देवतागण, ऋषि और मुनि प्रभु की दिव्य स्तुति करने लगे ।
प्रकाशन तिथि : 19 दिसम्बर 2019 |
164 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/192/2 |
चौपाई / छंद / दोहा -
कह दुइ कर जोरी अस्तुति तोरी केहि बिधि करौं अनंता । माया गुन ग्यानातीत अमाना बेद पुरान भनंता ॥ करुना सुख सागर सब गुन आगर जेहि गावहिं श्रुति संता । सो मम हित लागी जन अनुरागी भयउ प्रगट श्रीकंता ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - दीनों पर दया करने वाले प्रभु प्रगट हुए तो भगवती कौशल्या माता ने प्रभु से कहा कि वे किस प्रकार प्रभु की स्तुति करें यह उन्हें समझ में नहीं आ रहा । श्री वेदजी और श्रीपुराणों में प्रभु को माया, गुण और ज्ञान से अतीत बताया है । श्रुतियां और संतजन प्रभु को दया और आनंद के सागर और सभी सद्गुणों के धाम कहकर प्रभु की वंदना करते हैं । भगवती कौशल्या माता ने हर्ष से भरकर प्रभु से कहा कि भक्तों से प्रेम और भक्तों पर दया करने वाले ऐसे प्रभु उनका कल्याण करने के लिए उनके समक्ष प्रकट हुए हैं ।
प्रकाशन तिथि : 19 दिसम्बर 2019 |
165 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/193/3 |
चौपाई / छंद / दोहा -
जाकर नाम सुनत सुभ होई ।
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब महाराज श्री दशरथजी को पता चला कि प्रभु उनके यहाँ पुत्र रूप में प्रकट हो गए हैं तो उनका शरीर पुलकित हो गया और वे परमानंद में मग्न हो गए । उनको खुशी सबसे ज्यादा इस बात की हुई कि जिन प्रभु का मात्र नाम सुनते ही शुभ होता है और कल्याण होता है वे प्रभु अनुग्रह करके उनके यहाँ साक्षात पधारे हैं ।
प्रकाशन तिथि : 20 दिसम्बर 2019 |
166 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/193/4 |
चौपाई / छंद / दोहा -
रूप रासि गुन कहि न सिराई ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - महाराज श्री दशरथजी द्वारा भेजा प्रभु प्राकट्य का शुभ समाचार सुनकर गुरुदेव श्री वशिष्ठजी ब्राह्मणों को लेकर तुरंत राजमहल आए । उन्होंने दिव्य रूप की राशि प्रभु को अनुपम बालरूप में देखा । गुरुदेव श्री वशिष्ठजी ने उन प्रभु को देखा जिनके सद्गुण अनंत और असीम हैं और कहने से कभी भी समाप्त या पूर्ण होने वाले नहीं हैं ।
प्रकाशन तिथि : 20 दिसम्बर 2019 |
167 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/196/3 |
चौपाई / छंद / दोहा -
यह सुभ चरित जान पै सोई । कृपा राम कै जापर होई ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री महादेवजी भगवती पार्वती माता से कहते हैं कि प्रभु की श्रीलीला और शुभ चरित्र का मर्म वही जीव जान सकता है जिस पर प्रभु की कृपा होती है । प्रभु के अनुग्रह के बिना प्रभु की श्रीलीला और श्रीचरित्र का भेद कोई नहीं जान सकता ।
प्रकाशन तिथि : 21 दिसम्बर 2019 |
168 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/197/3 |
चौपाई / छंद / दोहा -
जो आनंद सिंधु सुखरासी । सीकर तें त्रैलोक सुपासी ॥ सो सुख धाम राम अस नामा । अखिल लोक दायक बिश्रामा ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब बालरूप में प्रभु के नामकरण का समय आया तो ऋषि श्री वशिष्ठजी ने प्रभु का नामकरण किया । वर्णमाला के सभी शब्द प्रभु के नाम में आने के लिए लालायित हो उठे । ऋषि श्री वशिष्ठजी ने कहा कि जो प्रभु आनंद के सागर हैं और सुख की राशि हैं उनका नाम "राम" होगा । प्रभु श्री रामजी सुख के भवन और संपूर्ण लोकों को शांति देने वाले हैं । उन्होंने कहा कि आनंद सिंधु प्रभु के एक नाम से तीनों लोक सुखी होंगे । इस तरह प्रभु को सुंदर, अनुपम और दिव्य श्रीराम नाम मिला ।
प्रकाशन तिथि : 21 दिसम्बर 2019 |
169 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/198/दोहा |
चौपाई / छंद / दोहा -
ब्यापक ब्रह्म निरंजन निर्गुन बिगत बिनोद । सो अज प्रेम भगति बस कौसल्या के गोद ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु सर्वव्यापक हैं और माया से अतीत हैं । प्रभु निर्गुण हैं और अजन्मा ब्रह्म हैं । ऐसे प्रभु मात्र भक्ति के कारण सगुण रूप लेकर भगवती कौशल्या माता की गोद में बाललीला करते हैं और उन्हें परम आनंद पहुँचाते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 22 दिसम्बर 2019 |
170 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/199/दोहा |
चौपाई / छंद / दोहा -
सुख संदोह मोहपर ग्यान गिरा गोतीत । दंपति परम प्रेम बस कर सिसुचरित पुनीत ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु सुख के पुंज हैं यानी सभी को सुख देने वाले हैं । प्रभु ज्ञान, वाणी और इंद्रियों से अतीत हैं । महाराज श्री दशरथजी और भगवती कौशल्या माता के भक्ति और प्रेम के वश होकर ऐसे प्रभु मधुर, मनोहर और पवित्र बाललीला करके सभी को आनंदित करते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 22 दिसम्बर 2019 |
171 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/200/2 |
चौपाई / छंद / दोहा -
रघुपति बिमुख जतन कर कोरी । कवन सकइ भव बंधन छोरी ॥ जीव चराचर बस कै राखे । सो माया प्रभु सों भय भाखे ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री महादेवजी भगवती पार्वती माता से कहते हैं कि प्रभु से विमुख रहकर चाहे मनुष्य करोड़ों उपाय क्यों न कर ले फिर भी उसका संसार का बंधन कोई नहीं छुड़ा सकता । प्रभु जब कृपा करते हैं तो प्रभु के अनुग्रह के कारण ही जीव इस संसार के बंधन से मुक्त हो सकता है । दूसरी बात जो प्रभु श्री महादेवजी कहते हैं वह यह कि संसार के समस्त चराचर जीवों को प्रभु की जिस माया ने अपने वश में कर रखा है वह माया केवल प्रभु के भय से भयभीत रहती है । माया उस जीव के जीवन से अंतर्ध्यान हो जाती है जिस पर प्रभु कृपा करते हैं अन्यथा माया के प्रभाव से कोई नहीं बच सकता ।
प्रकाशन तिथि : 23 दिसम्बर 2019 |
172 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/200/3 |
चौपाई / छंद / दोहा -
भृकुटि बिलास नचावइ ताही । अस प्रभु छाड़ि भजिअ कहु काही ॥ मन क्रम बचन छाड़ि चतुराई । भजत कृपा करिहहिं रघुराई ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जो माया पूरे जगत के जीव को नचाती है और इतनी प्रबल है वह प्रभु की भृकुटी यानी भौंह के इशारे पर नाचती है । माया उनका कुछ नहीं बिगाड़ती जिन पर प्रभु अनुग्रह करते हैं । प्रभु श्री महादेवजी कहते हैं कि ऐसे मायापति प्रभु का जीव को निरंतर भजन करना चाहिए । प्रभु श्री महादेवजी एक सिद्धांत का प्रतिपादन करते हैं और कहते हैं कि मन, वचन और कर्म की चतुराई छोड़कर जो प्रभु की भक्ति करते हैं प्रभु तत्काल उन पर कृपा करते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 23 दिसम्बर 2019 |
173 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/201/दोहा |
चौपाई / छंद / दोहा -
देखरावा मातहि निज अदभुत रुप अखंड । रोम रोम प्रति लागे कोटि कोटि ब्रह्मंड ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु ने बाललीला करते हुए एक बार भगवती कौशल्या माता को अपना ऐश्वर्य दिखाया । प्रभु ने अपना अदभुत और दिव्य रूप प्रकट किया जो इतना विशाल था कि जिसके एक-एक रोमावली में करोड़ों-करोड़ों ब्रह्मांड समाए हुए थे । माता ने वह सब कुछ उस दिव्य रूप में देखा जिसकी वे कल्पना भी नहीं कर सकती थीं ।
प्रकाशन तिथि : 24 दिसम्बर 2019 |
174 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/202/2 |
चौपाई / छंद / दोहा -
देखी माया सब बिधि गाढ़ी । अति सभीत जोरें कर ठाढ़ी ॥ देखा जीव नचावइ जाही । देखी भगति जो छोरइ ताही ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - भगवती कौशल्या माता को जब प्रभु ने अपना अदभुत और दिव्य रूप दिखाया तो माता ने प्रभु की बलवती माया को उस रूप में देखा जो प्रभु के सामने अत्यंत भयभीत होकर हाथ जोड़कर खड़ी थी । माता ने फिर जीव को देखा जिसको माया अपने इशारे पर नचाती है और फिर भगवती भक्ति माता को देखा जो जीव को इस माया के प्रभाव से छुड़ा कर सदा के लिए मुक्त करा देती है ।
प्रकाशन तिथि : 24 दिसम्बर 2019 |
175 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/204/1 |
चौपाई / छंद / दोहा -
जिन कर मन इन्ह सन नहिं राता । ते जन बंचित किए बिधाता ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - प्रभु श्री रामजी की मनोहर और मनभावनी बाल लीलाओं में जिनका चित्त अनुरक्त नहीं हुआ ऐसा मानना चाहिए कि विधाता ने उन्हें भाग्यहीन बनाकर इस परमानंद की अनुभूति से वंचित कर दिया । संतों और भक्तों का चित्त प्रभु की श्रीलीलाओं का चिंतन करने में ही उलझा रहता है और ऐसा करके वे अपने जीवन को सार्थक और धन्य करते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 25 दिसम्बर 2019 |
176 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/204/2 |
चौपाई / छंद / दोहा -
गुरगृहँ गए पढ़न रघुराई । अलप काल बिद्या सब आई ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - संतों का ऐसा मत है कि विद्या अध्ययन करने वाले छात्रों को रोजाना विद्या अध्ययन करने से पूर्व इस चौपाई का गान अवश्य करना चाहिए । इससे उन्हें बड़ा लाभ मिलेगा और भगवती सरस्वती माता की कृपा से सुगमता से वे विद्या अर्जित कर पाएंगे । चौपाई में वर्णित है कि प्रभु अपने भाइयों सहित गुरु गृह विद्या अध्ययन करने के लिए गए और अल्पकाल में ही सभी विद्याओं और कलाओं में वे पारंगत हो गए ।
प्रकाशन तिथि : 25 दिसम्बर 2019 |
177 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/204/4 |
चौपाई / छंद / दोहा -
जिन्ह बीथिन्ह बिहरहिं सब भाई । थकित होहिं सब लोग लुगाई ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - बालरूप से ही प्रभु श्री रामजी के श्रीहाथों में धनुष-बाण बहुत शोभा देते थे । प्रभु को इस रूप में देखकर चराचर यानी जड़ और चेतन सभी मोहित हो जाते थे । प्रभु अपने भाइयों के साथ बाल अवस्था में श्री अयोध्याजी की जिन गलियों में खेलते हुए निकलते थे उन गलियों के सभी स्त्री-पुरुष अपना कामकाज छोड़कर मुग्ध और मोहित होकर स्नेह से भरकर प्रभु को निहारते ही रहते थे ।
प्रकाशन तिथि : 26 दिसम्बर 2019 |
178 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/204/दोहा |
चौपाई / छंद / दोहा -
प्रानहु ते प्रिय लागत सब कहुँ राम कृपाल ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - ऐसा माना जाता है कि प्रभु जिस स्थान पर अवतार लेकर श्रीलीला करना सुनिश्चित करते हैं वहाँ ऋषि, सिद्ध, मुनि, संत और भक्त पहले ही जन्म लेकर प्रभु की सेवा के लिए पहुँच जाते हैं । श्री अयोध्याजी के प्रत्येक नागरिक ऐसे ही थे इसलिए वहाँ रहने वाले सभी स्त्री, पुरुष, बूढ़े और बालक सभी को कृपालु प्रभु श्री रामजी अपने प्राणों से भी बढ़कर प्रिय लगते थे ।
प्रकाशन तिथि : 26 दिसम्बर 2019 |
179 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/207/3 |
चौपाई / छंद / दोहा -
राम देखि मुनि देह बिसारी ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - जब राक्षस आकर ऋषि श्री विश्वामित्रजी के आश्रम के आसपास उपद्रव मचाते तो ऋषि ने विचार किया कि प्रभु ने अधर्म का नाश करने के लिए अवतार लिया है और प्रभु के श्रीहाथों इन आततायियों का विनाश होना सुनिश्चित है । उन्होंने सोचा कि इस बहाने वे श्री अयोध्याजी जाकर प्रभु के श्रीकमलचरणों का दर्शन करेंगे और ज्ञान, वैराग्य और सभी सद्गुणों के धाम प्रभु को नेत्र भरकर देखेंगे और उनको राक्षस के उद्धार के लिए अपने साथ लेकर आएंगे । श्री अयोध्याजी पहुँचकर जब महाराज श्री दशरथजी ने प्रभु का पहला दर्शन ऋषि श्री विश्वामित्रजी को कराया तो वे मंत्रमुग्ध होकर प्रभु की शोभा देखने में ऐसे मग्न हुए मानो चकोर पक्षी श्री चंद्रदेवजी को देखता है । ऋषि श्री विश्वामित्रजी प्रभु के अनुपम रूप का दर्शन करते-करते अपने देह की सुध-बुध भूल गए ।
प्रकाशन तिथि : 27 दिसम्बर 2019 |
180 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/208/3 |
चौपाई / छंद / दोहा -
राम देत नहिं बनइ गोसाई ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - यहाँ पर महाराज श्री दशरथजी का प्रभु से कितना प्रेम था यह देखने को मिलता है । जब ऋषि श्री विश्वामित्रजी ने राक्षसों के उपद्रव से आश्रम की रक्षा करने के लिए प्रभु को मांगा तो महाराज श्री दशरथजी ने कहा कि आप भूमि, गौ-माता, धन, खजाना ले लीजिए पर प्रभु को नहीं मांगें । उन्होंने कहा कि उनके पास राजा के रूप में जो कुछ भी है वे सर्वस्व देने को तैयार हैं । यहाँ तक कि वे अपने देह और प्राणों को भी देने को तैयार हैं पर किसी भी प्रकार अपने मन को समझाने पर भी प्रभु को देते उनसे नहीं बनता । इतना अतुल्य प्रेम महाराज श्री दशरथजी के हृदय में प्रभु के लिए था ।
प्रकाशन तिथि : 27 दिसम्बर 2019 |