क्रम संख्या |
श्रीग्रंथ |
संख्या |
भाव के दर्शन / प्रेरणापुंज |
01 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
मंगलाचरण 2 |
चौपाई / छंद / दोहा -
भवानीशङ्करौ वन्दे श्रद्धाविश्वासरूपिणौ । याभ्यां विना न पश्यन्ति सिद्धाः स्वान्तःस्थमीश्वरम् ।
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी प्रथमपूज्य प्रभु श्री गणेशजी और विद्यादात्री भगवती सरस्वती माता की वंदना के बाद प्रभु श्री महादेवजी एवं भगवती पार्वती माता की वंदना करते हैं । गोस्वामीजी प्रभु श्री महादेवजी एवं भगवती पार्वती माता को श्रद्धा और विश्वास के स्वरूप मानते हैं जिनकी कृपा के बिना साधारण जीव तो क्या सिद्धजन भी अपने अंतःकरण में स्थित प्रभु को नहीं देख सकते ।
प्रकाशन तिथि : 29 सितम्बर 2019 |
02 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
मंगलाचरण 6 |
चौपाई / छंद / दोहा -
यत्पादप्लवमेकमेव हि भवाम्भोधेस्तितीर्षावतां ।
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी प्रभु श्री रामजी की वंदना करते हुए उनके श्रीकमलचरणों की वंदना करते हैं । वे कहते हैं कि प्रभु के श्रीकमलचरण भवसागर से तरने की इच्छा रखने वाले जीव के लिए एकमात्र नौका हैं । प्रभु के श्रीकमलचरणों का आश्रय लिए बिना भवसागर से तरना किसी भी जीव के लिए कतई संभव नहीं है ।
प्रकाशन तिथि : 29 सितम्बर 2019 |
03 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
मंगलाचरण छंद 2 |
चौपाई / छंद / दोहा -
मूक होइ बाचाल पंगु चढ़इ गिरिबर गहन । जासु कृपाँ सो दयाल द्रवउ सकल कलि मल दहन ।
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी प्रभु का गुणगान करने से पहले प्रभु की दया और कृपा की याचना करते हैं । गोस्वामीजी प्रभु की कृपा की दो उपमाएं देते हैं जो की बहुत सुंदर हैं । वे कहते हैं कि प्रभु की कृपा से एक गूंगा भी बहुत सुंदर बोलने वाला बन जाता है और एक लंगड़ा-लूला भी दुर्गम पर्वत पर चढ़ जाता है । गोस्वामीजी आगे कहते हैं कि प्रभु की कृपा कलियुग के सभी पापों को जला डालने वाली होती है ।
प्रकाशन तिथि : 30 सितम्बर 2019 |
04 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/1/4 |
चौपाई / छंद / दोहा -
उघरहिं बिमल बिलोचन ही के । मिटहिं दोष दुख भव रजनी के ॥ सूझहिं राम चरित मनि मानिक । गुपुत प्रगट जहँ जो जेहि खानिक ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी प्रभु का गुणगान करने से पहले सद्गुरुदेव की वंदना करते हैं । सद्गुरुदेव की कृपा होने पर हृदय के निर्मल नेत्र खुल जाते हैं और अंधेरा मिट जाता है । फिर प्रभु का गुणगान करने के लिए प्रभु चरित्ररूपी मणि जो गुप्त है, वह प्रकट हो जाती है ।
प्रकाशन तिथि : 30 सितम्बर 2019 |
05 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/3/1 |
चौपाई / छंद / दोहा -
काक होहिं पिक बकउ मराला ॥ सुनि आचरज करै जनि कोई । सतसंगति महिमा नहिं गोई ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी इस चौपाई में सत्संग की महिमा बताते हैं । सत्संग हमें प्रभु के प्रभाव और स्वभाव से परिचित कराता है और प्रभु के लिए हमारे अंतःकरण में भक्ति और प्रेम जागृत करता है । गोस्वामीजी सत्संग के प्रभाव को बताने के लिए दो उपमाएं देते हैं । गोस्वामीजी कहते हैं कि सत्संग के प्रभाव से कौआ कोयल बन जाता है और बगुला हंस बन जाता है ।
प्रकाशन तिथि : 01 अक्टूबर 2019 |
06 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/3/4 |
चौपाई / छंद / दोहा -
बिनु सतसंग बिबेक न होई । राम कृपा बिनु सुलभ न सोई ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - यह श्री रामचरितमानसजी की एक अमर चौपाई है । गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि सत्संग के बिना किसी भी सूरत में मनुष्य में विवेक जागृत नहीं होता । आगे की बात जो गोस्वामीजी कहते हैं वह और भी महत्वपूर्ण है । गोस्वामीजी कहते हैं कि प्रभु की कृपा जिस पर नहीं होती उसे सत्संग का भाग्य और लाभ नहीं मिलता । प्रभु की कृपा जिसने जीवन में अर्जित नहीं की ऐसे दुर्भाग्यशाली मनुष्य को सत्संग नहीं सुहाता । कलियुग में ऐसा प्रायः देखने में आता है कि जीव को मौज मस्ती, सैर सपाटा सुहाता है पर सत्संग में कोई रुचि नहीं होती । ऐसा जीव प्रभु की कृपा दृष्टि में नहीं है, यही मानना चाहिए । ऐसे जीव को प्रभु की कृपा जीवन में अर्जित करने के लिए प्रयत्न करना चाहिए ।
प्रकाशन तिथि : 01 अक्टूबर 2019 |
07 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/7/5 |
चौपाई / छंद / दोहा -
साधु असाधु सदन सुक सारीं । सुमिरहिं राम देहिं गनि गारी ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - इस चौपाई में गोस्वामी श्री तुलसीदासजी ने एक बहुत सुंदर उपमा दी है । वे कहते हैं कि एक तोता-मैना को एक साधु या भक्त के घर में रख दें तो सात्विक और प्रभुमय वातावरण में रहकर वह प्रभु का नाम बोलने लग जाता है । वहीं किसी दूसरे तोता-मैना को असाधु यानी दुष्ट के घर रहने दें तो वह गिन-गिन कर गालियां देना सीख जाता है । संग का कितना बड़ा महत्व एक साधक के जीवन में हो सकता है यह इस दृष्टांत से समझने को मिलता है । इसलिए हमें जीवन में उन्हीं लोगों का और उन्हीं स्थान का संग करना चाहिए जहाँ प्रभु चर्चा, कीर्तन, भजन, जप और पूजा होती हो ।
प्रकाशन तिथि : 02 अक्टूबर 2019 |
08 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/7/6 |
चौपाई / छंद / दोहा -
धूम कुसंगति कारिख होई । लिखिअ पुरान मंजु मसि सोई ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कुसंगति से बचने के लिए और सुसंगति में रहने के लिए बड़ा बल देते हैं । वे कहते हैं कि कुसंग के कारण धुआं कालिख कहलाता है और कोई भी उसे छूता नहीं क्योंकि वह उसे छूने वाले को गंदा कर देता है । पर वही धुआं जब सुसंगति करता है तो सुंदर स्याही बन जाता है और श्रीपुराणों को लिखने में काम आता है । सुसंगति से वह इतना पवित्र हो जाता है कि प्रभु का गुणानुवाद लिखने के लिए उपयोग में लिया जाता है । इसलिए जीव को चाहिए कि वह जीवन में भक्तों का ही संग करे ।
प्रकाशन तिथि : 02 अक्टूबर 2019 |
09 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/8/3 |
चौपाई / छंद / दोहा -
करन चहउँ रघुपति गुन गाहा । लघु मति मोरि चरित अवगाहा ॥ सूझ न एकउ अंग उपाऊ । मन मति रंक मनोरथ राऊ ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी इस चौपाई में अपनी दीनता दिखाते हैं । दीनता का भाव प्रभु को अतिशय प्रिय है । दीन वचन सुनकर प्रभु तुरंत रीझ जाते हैं । गोस्वामीजी कहते हैं कि मैं प्रभु के सद्गुणों का वर्णन करना चाहता हूँ पर मुझमें सामर्थ्य नहीं क्योंकि मेरी बुद्धि छोटी है और प्रभु का श्रीचरित्र अथाह है जिसका कोई पार नहीं पा सकता है । इसलिए वे ऐसा कर पाएंगे इसका लेशमात्र भी उपाय उन्हें नहीं सूझता । गोस्वामीजी कहते हैं कि बुद्धि से वे कंगाल है पर प्रभु का गुणानुवाद करने का उनका मनोरथ एक राजा के समान है ।
प्रकाशन तिथि : 03 अक्टूबर 2019 |
10 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/9/3 |
चौपाई / छंद / दोहा -
हरि हर पद रति मति न कुतरकी । तिन्ह कहुँ मधुर कथा रघुबर की ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि जिनको प्रभु के श्रीकमलचरणों में प्रेम है उन्हें प्रभु का गुणगान मीठा लगता है । वे कहते हैं कि जिनको प्रभु श्री विष्णुजी एवं प्रभु श्री महादेवजी के श्रीकमलचरणों में प्रीति है और जिनकी बुद्धि प्रभु के विषय में कुर्तक करने वाली नहीं है और जो प्रभु के विभिन्न रूपों में भेद नहीं करते उन्हें प्रभु श्री रामजी की कथा अत्यंत मीठी लगेगी ।
प्रकाशन तिथि : 03 अक्टूबर 2019 |
11 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/10/1 |
चौपाई / छंद / दोहा -
एहि महँ रघुपति नाम उदारा । अति पावन पुरान श्रुति सारा ॥ मंगल भवन अमंगल हारी । उमा सहित जेहि जपत पुरारी ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि उनकी रचना सब गुणों से रहित है, इसमें बस एक जगत प्रसिद्ध गुण है कि इसमें प्रभु श्री रामजी का गुणानुवाद है । प्रभु श्री रामजी का उदार नाम और गुण जो की अत्यंत पवित्र हैं और श्री वेदजी और श्रीपुराणों के सार हैं । प्रभु श्री रामजी का नाम कल्याण का भवन है और अमंगल को हरने वाला है । प्रभु श्री रामजी का नाम इतना मूल्यवान है कि प्रभु श्री महादेवजी भगवती पार्वती माता के साथ मिलकर सदा इसे जपते रहते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 04 अक्टूबर 2019 |
12 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/10/2 |
चौपाई / छंद / दोहा -
भनिति बिचित्र सुकबि कृत जोऊ । राम नाम बिनु सोह न सोऊ ॥ बिधुबदनी सब भाँति सँवारी । सोह न बसन बिना बर नारी ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि मेरी रचना में अगर दोष भी है तो भी वह पवित्र है क्योंकि इसमें प्रभु का गुणगान है । इसके विपरीत किसी अच्छे कवि द्वारा रची कोई अनूठी कविता क्यों न हो, अगर उसमें प्रभु का गुणगान नहीं तो उसकी कतई शोभा नहीं है । वह तो वैसी ही है जैसे एक बहुत सुंदर सुसज्जित स्त्री हो पर वस्त्रहीन हो तो उसकी शोभा नहीं होती । इस चौपाई का सारांश यह है कि जिस भी काव्य या लेखनी में प्रभु का गुणानुवाद नहीं है वह बैरन है और उसकी कतई शोभा नहीं है ।
प्रकाशन तिथि : 04 अक्टूबर 2019 |
13 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/10/3 |
चौपाई / छंद / दोहा -
सब गुन रहित कुकबि कृत बानी । राम नाम जस अंकित जानी ॥ सादर कहहिं सुनहिं बुध ताही । मधुकर सरिस संत गुनग्राही ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी इस चौपाई में प्रभु गुणानुवाद की महिमा बताते हैं । वे कहते हैं कि अगर किसी कुकवि द्वारा रचित कविता या काव्य सभी काव्य रसों के गुणों से रहित भी क्यों न हो पर यदि उसमें प्रभु के नाम और यश का बखान हो तो बुद्धिमान लोग उसे आदरपूर्वक सुनते और कहते हैं । गोस्वामीजी कहते हैं कि संत और भक्तजन भौंरों के समान होते हैं जो कहीं से भी प्रभु गुणों के गान को ग्रहण करने के लिए तत्पर रहते हैं । प्रभु का गुणगान संतों और भक्तों के मन को सदा भाने वाला होता है ।
प्रकाशन तिथि : 05 अक्टूबर 2019 |
14 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/10/छंद |
चौपाई / छंद / दोहा -
मंगल करनि कलिमलहरनि तुलसी कथा रघुनाथ की ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि उनके द्वारा रचित प्रभु श्री रामजी की कथा कहने और सुनने वालों का कल्याण करने वाली है । प्रभु श्री रामजी का गुणगान जीव का निश्चित कल्याण करता है इसमें तनिक भी संदेह नहीं है । दूसरी बात जो गोस्वामीजी कहते हैं कि प्रभु श्री रामजी की कथा कलियुग के पापों को हरने वाली है । कलियुग के पापों से अगर बचना है तो उसका एकमात्र साधन प्रभु का गुणगान करना ही है ।
प्रकाशन तिथि : 05 अक्टूबर 2019 |
15 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/11/3 |
चौपाई / छंद / दोहा -
राम चरित सर बिनु अन्हवाएँ । सो श्रम जाइ न कोटि उपाएँ ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि जब कोई कवि भक्ति से प्रभु का स्मरण करता है तो कवि के स्मरण करते ही भक्ति के कारण भगवती सरस्वती माता उस पर अनुग्रह करने के लिए ब्रह्मलोक को छोड़कर दौड़ी चली आती है । माता के आने पर उनकी थकावट प्रभु के गुणानुवाद से प्रतिपादित काव्य या कविता रूपी सरोवर में उन्हें नहलाएं बिना करोड़ों उपायों से भी दूर नहीं होती । भगवती सरस्वती माता उस कवि पर अपना अनुग्रह पूर्ण रूप से करती हैं जो प्रभु का गुणानुवाद गाता है ।
प्रकाशन तिथि : 06 अक्टूबर 2019 |
16 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/11/4 |
चौपाई / छंद / दोहा -
कीन्हें प्राकृत जन गुन गाना । सिर धुनि गिरा लगत पछिताना ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि प्रभु का गुणानुवाद करने वाले कवि के बिना बुलाए भगवती सरस्वती माता दौड़ी आती है और अपना अनुग्रह उस कवि पर करती है । पर इसके ठीक विपरीत जो कवि संसारी मनुष्य का गुणगान करते हैं और प्रभु का गुणगान नहीं करते उनके बुलाने पर भगवती सरस्वती माता आकर पछताती है कि मैं क्यों आई । सिद्धांत स्पष्ट है कि भगवती सरस्वती माता को प्रभु का गुणगान ही एकमात्र प्रिय है और वे उस कवि या रचनाकार पर ही अपना पूर्ण अनुग्रह करती हैं जो प्रभु का गुणगान अपने काव्य या कविता में करता है ।
प्रकाशन तिथि : 06 अक्टूबर 2019 |
17 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/12/दोहा |
चौपाई / छंद / दोहा -
सारद सेस महेस बिधि आगम निगम पुरान । नेति नेति कहि जासु गुन करहिं निरंतर गान ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि वे न तो कवि हैं, न चतुर हैं और उनकी बुद्धि भी संसार में आसक्त है । फिर भी वे प्रभु श्री रामजी का अपार चरित्र गाने का किंचित प्रयास कर रहे हैं । प्रभु श्री महादेवजी, प्रभु श्री ब्रह्माजी, भगवती सरस्वती माता, प्रभु श्री शेषजी, समस्त शास्त्र, श्री वेदजी और श्रीपुराण भी प्रभु श्री रामजी का गुणगान करने में स्वयं को असमर्थ पाते हैं और नेति-नेति कहकर शांत हो जाते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 07 अक्टूबर 2019 |
18 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/13/1 |
चौपाई / छंद / दोहा -
भजन प्रभाउ भाँति बहु भाषा ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि प्रभु की महिमा का पूर्ण रूप से वर्णन कर पाना किसी के लिए भी कतई संभव नहीं है । फिर भी हमें चाहिए कि जितना भी हमारी बुद्धि से बन पड़े प्रभु का गुणगान करना चाहिए । ऐसा इसलिए क्योंकि प्रभु के गुणानुवाद का प्रभाव बड़ा अनोखा और दिव्य है । नाना शास्त्र इस बात को सिद्धांत रूप में वर्णन करते हैं कि प्रभु का थोड़ा-सा भी गुणगान और भजन जीव को सहज ही भवसागर से तार देता है ।
प्रकाशन तिथि : 07 अक्टूबर 2019 |
19 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/13/3 |
चौपाई / छंद / दोहा -
परम कृपाल प्रनत अनुरागी ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि प्रभु अपने भक्तों के हित के लिए अजन्मा होकर भी शरीर धारण करते हैं और अनेक प्रकार की मनोहर श्रीलीलाएं करते हैं । यह श्रीलीलाएं केवल भक्तों का हित करने के उद्देश्य से होती है कि भक्त इनका चिंतन और गान करके अपना उद्धार कर सकें । ऐसा इसलिए क्योंकि प्रभु परम कृपालु हैं और अपने शरणागत हुए जीव के बड़े प्रेमी हैं ।
प्रकाशन तिथि : 08 अक्टूबर 2019 |
20 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/13/4 |
चौपाई / छंद / दोहा -
गई बहोर गरीब नेवाजू । सरल सबल साहिब रघुराजू ॥ बुध बरनहिं हरि जस अस जानी । करहिं पुनीत सुफल निज बानी ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी इस चौपाई में प्रभु के कुछ सद्गुणों का वर्णन करते हैं । वे कहते हैं कि प्रभु जीवन से गई हुई वस्तु को फिर प्राप्त कराने वाले हैं । प्रभु दीनबंधु यानी गरीबों के परम सहायक हैं । प्रभु सरल स्वभाव के, सर्वशक्तिमान और सबके परम स्वामी हैं । यही समझकर बुद्धिमान संत और भक्त अपनी वाणी को पवित्र करने के लिए और मोक्ष एवं भगवत् प्रेम प्राप्त करने के लिए प्रभु के यश का गान करते रहते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 08 अक्टूबर 2019 |
21 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/15/1 |
चौपाई / छंद / दोहा -
पुनि बंदउँ सारद सुरसरिता । जुगल पुनीत मनोहर चरिता ॥ मज्जन पान पाप हर एका । कहत सुनत एक हर अबिबेका ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी भगवती सरस्वती माता और भगवती गंगा माता की वंदना करते हैं । वे कहते हैं कि दोनों मनोहर और पवित्र करने वाली माताएं हैं । भगवती गंगा माता अपने अमृत जल में स्नान करने वाले को और अपना अमृत जल पीने वाले जीवों के पापों को हर लेती हैं । दूसरी तरफ भगवती सरस्वती माता प्रभु के सद्गुणों और यश को कहने और सुनने वालों का अज्ञान नष्ट कर देती है और उनका कल्याण करती हैं ।
प्रकाशन तिथि : 09 अक्टूबर 2019 |
22 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/15/2 |
चौपाई / छंद / दोहा -
गुर पितु मातु महेस भवानी । प्रनवउँ दीनबंधु दिन दानी ॥ सेवक स्वामि सखा सिय पी के । हित निरुपधि सब बिधि तुलसी के ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी प्रभु श्री महादेवजी और भगवती पार्वती माता को अपनी रचना लिखने से पहले प्रणाम करते हैं । गोस्वामीजी प्रभु और माता को अपने गुरु और माता पिता के रूप में देखते हैं । वे प्रभु और माता को दीनबंधु और नित्य कथा का दान करने वाला कहते हैं । फिर जो गोस्वामीजी कहते हैं वह अदभुत है । वे प्रभु श्री महादेवजी और प्रभु श्री रामजी का रिश्ता बताते हैं जो इससे सुंदर वर्णित नहीं हो सकता । गोस्वामीजी कहते हैं कि प्रभु श्री महादेवजी प्रभु श्री रामजी के सेवक भी हैं, स्वामी भी हैं और सखा भी हैं । जब लंका युद्ध से पहले प्रभु श्री रामजी ने श्री रामेश्वरमजी की स्थापना की तो प्रभु श्री रामजी से इसका अर्थ पूछा गया तो उन्होंने कहा कि “जो राम के ईश्वर वह रामेश्वर” । फिर जब प्रभु श्री महादेवजी से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि “राम जिनके ईश्वर वह रामेश्वर” । इस तरह दोनों एक दूसरे के सेवक भी हैं और स्वामी भी हैं । ऐसा अदभुत रिश्ता प्रभु श्री महादेवजी और प्रभु श्री रामजी के बीच है ।
प्रकाशन तिथि : 09 अक्टूबर 2019 |
23 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/15/6 |
चौपाई / छंद / दोहा -
जे एहि कथहि सनेह समेता । कहिहहिं सुनिहहिं समुझि सचेता ॥ होइहहिं राम चरन अनुरागी । कलि मल रहित सुमंगल भागी ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि जो प्रभु श्री सीतारामजी की कथा को प्रेम सहित और सावधानीपूर्वक समझ बूझकर सुनेंगे अथवा कहेंगे उन्हें बड़ा भारी लाभ होगा । यह लाभ यह है कि ऐसा करने वाले कलियुग के पापों से मुक्त हो जाएंगे और परम कल्याण के भागी होंगे । सबसे बड़ा लाभ उन्हें यह होगा कि वे प्रभु श्री सीतारामजी के श्रीकमलचरणों के प्रेमी बन जाएंगे ।
प्रकाशन तिथि : 10 अक्टूबर 2019 |
24 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/15/दोहा |
चौपाई / छंद / दोहा -
सपनेहुँ साचेहुँ मोहि पर जौं हर गौरि पसाउ । तौ फुर होउ जो कहेउँ सब भाषा भनिति प्रभाउ ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी को प्रभु श्री महादेवजी और भगवती पार्वती माता के अनुग्रह का कितना बड़ा भरोसा है यह इस दोहे में देखने को मिलता है । गोस्वामीजी कहते हैं कि अगर सपने में भी प्रभु श्री महादेवजी और भगवती पार्वती माता का अनुग्रह उन्हें मिल जाए तो भी उनके द्वारा रचित प्रभु श्री रामजी की कथा सबका मंगल और कल्याण करने में समर्थ होगी और उसका जो प्रभाव उन्होंने बताया है वह सच होगा ।
प्रकाशन तिथि : 10 अक्टूबर 2019 |
25 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/16/दोहा |
चौपाई / छंद / दोहा -
बंदउँ अवध भुआल सत्य प्रेम जेहि राम पद । बिछुरत दीनदयाल प्रिय तनु तृन इव परिहरेउ ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी सबकी वंदना करते-करते श्रीअवधपुरी के महाराज और प्रभु श्री रामजी के पिता राजा श्री दशरथजी की वंदना करते हैं । गोस्वामीजी ने जो महाराज श्री दशरथजी के लिए कहा है वह अत्यंत हृदयस्पर्शी है । वे कहते हैं कि महाराज श्री दशरथजी का प्रभु के श्रीकमलचरणों में सच्चा प्रेम था । इसलिए उन्होंने दीनदयालु प्रभु से बिछड़ते ही एक मामूली तिनके की तरह अपने प्यारे शरीर का त्याग कर दिया । प्रभु के बिना जीवन धारण करना उन्हें एक पल के लिए भी गंवारा नहीं था ।
प्रकाशन तिथि : 11 अक्टूबर 2019 |
26 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/17/2 |
चौपाई / छंद / दोहा -
प्रनवउँ प्रथम भरत के चरना । जासु नेम ब्रत जाइ न बरना ॥ राम चरन पंकज मन जासू । लुबुध मधुप इव तजइ न पासू ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी प्रभु के भाइयों में सबसे पहले श्री भरतलालजी के चरणों में प्रणाम करते हैं और उनकी वंदना करते हैं । गोस्वामीजी जो एक बात इस चौपाई में श्री भरतलालजी के लिए कहते हैं वह बिलकुल सत्य है । वे कहते हैं कि श्री भरतलालजी का प्रभु के लिए धारण किए नियम और व्रत का वर्णन करना पूर्णतया असंभव है । श्री भरतलालजी का मन सदैव भौंरे की तरह प्रभु के श्रीकमलचरणों में ही आकर्षित रहता था और उनका मन प्रभु के श्रीकमलचरणों का संग कभी छोड़ता ही नहीं था ।
प्रकाशन तिथि : 11 अक्टूबर 2019 |
27 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/17/दोहा |
चौपाई / छंद / दोहा -
प्रनवउँ पवनकुमार खल बन पावक ग्यान घन । जासु हृदय आगार बसहिं राम सर चाप धर ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी श्री रामचरितमानसजी लिखने से पहले अनुग्रह प्राप्त करने के लिए प्रभु श्री हनुमानजी के श्रीकमलचरणों में प्रणाम करते हैं । वे कहते हैं कि प्रभु श्री हनुमानजी महावीर हैं और उनका यशगान स्वयं प्रभु श्री रामजी ने अपने श्रीमुख से बार-बार किया है । गोस्वामीजी प्रभु श्री हनुमानजी को ज्ञानस्वरूप और भक्तिस्वरूप मानते हैं जिनके हृदयरूपी भवन में सदैव प्रभु श्री रामजी निवास किया करते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 12 अक्टूबर 2019 |
28 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/18/4 |
चौपाई / छंद / दोहा -
जनकसुता जग जननि जानकी । अतिसय प्रिय करुनानिधान की ॥ ताके जुग पद कमल मनावउँ । जासु कृपाँ निरमल मति पावउँ ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी जगजननी और जगत की माता भगवती जानकी माता की वंदना करते हैं और उन्हें प्रणाम करते हैं । वे कहते हैं कि करुणानिधान प्रभु श्री रामजी की वे प्रियतमा है । गोस्वामीजी माता के दोनों श्रीकमलचरणों में धरती पर अपना सिर टेककर प्रणाम करते हैं और माता की कृपा चाहते हैं । गोस्वामीजी कहते हैं कि माता की कृपा होने पर ही उनकी बुद्धि निर्मल होगी जिसके बाद वे अपनी रचना में प्रभु और माता का यशगान कर पाएंगे ।
प्रकाशन तिथि : 12 अक्टूबर 2019 |
29 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/18/5 |
चौपाई / छंद / दोहा -
भगत बिपति भंजन सुखदायक ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी इस चौपाई में प्रभु श्री रामजी की वंदना करते हैं और उन्हें प्रणाम करते हैं । प्रभु के श्रीकमलचरणों में प्रणाम करते हुए वे प्रभु के लिए तीन विशेषणों का प्रयोग करते हैं । वे कहते हैं कि प्रभु भक्तों की विपत्ति का पूर्णरूप से नाश करने वाले हैं । वे कहते हैं कि प्रभु अपने आश्रितों को सुख प्रदान करने वाले हैं । वे कहते हैं कि प्रभु सब कुछ करने में सर्वसमर्थ हैं ।
प्रकाशन तिथि : 13 अक्टूबर 2019 |
30 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/18/दोहा |
चौपाई / छंद / दोहा -
जिन्हहि परम प्रिय खिन्न ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी युगल प्रभु के यानी श्री सीतारामजी के श्रीकमलचरणों की वंदना करते हैं और प्रभु के युगल रूप को प्रणाम करते हैं । वे एक मार्मिक बात कहते हैं कि मैं उन युगल श्रीकमलचरणों की वंदना करता हूँ जिन युगल सरकार को दीन और दुःखी बहुत ही प्रिय हैं । जो दीन हैं, दुःखी हैं और जिनको संसार की उपेक्षा झेलनी पड़ती है पर एकमात्र प्रभु ही हैं जिनके द्वार पर उन दीन और दुःखी का स्वागत होता है क्योंकि वे प्रभु को अतिशय प्रिय होते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 13 अक्टूबर 2019 |
31 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/19/1 |
चौपाई / छंद / दोहा -
बंदउँ नाम राम रघुबर को । हेतु कृसानु भानु हिमकर को ॥ बिधि हरि हरमय बेद प्रान सो । अगुन अनूपम गुन निधान सो ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी प्रभु श्री रामजी की वंदना करने के बाद प्रभु के नाम श्रीराम की वंदना करते हैं । वे कहते हैं कि श्रीराम नाम बीजरूपी महामंत्र है । श्रीराम नाम में सनातन धर्म के त्रिदेव यानी प्रभु श्री ब्रह्माजी, प्रभु श्री विष्णुजी और प्रभु श्री महादेवजी समाहित हैं । श्रीराम नाम की महिमा बताते हुए गोस्वामीजी कहते हैं कि यह नाम श्रीवेदों के प्राण हैं । गोस्वामीजी कहते हैं कि वे श्रीराम नाम की कोई उपमा नहीं दे सकते क्योंकि प्रभु का यह दिव्य नाम उपमा रहित है । गोस्वामीजी कहते हैं कि प्रभु श्री रामजी का नाम सद्गुणों का भंडार है यानी प्रभु श्री रामजी के नाम के उच्चारण से ही मानव अवतार में मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु के सद्गुण झलकते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 14 अक्टूबर 2019 |
32 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/19/2 |
चौपाई / छंद / दोहा -
महामंत्र जोइ जपत महेसू । कासीं मुकुति हेतु उपदेसू ॥ महिमा जासु जान गनराऊ । प्रथम पूजिअत नाम प्रभाऊ ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी प्रभु श्री रामजी के नाम की महिमा बताते हुए कहते हैं कि यह तो साक्षात महामंत्र है । इसी श्रीराम नामरूपी महामंत्र का प्रयोग देवों के देव प्रभु श्री महादेवजी सदा करते रहते हैं और इसी श्रीराम नामरूपी महामंत्र के उपयोग से वे अपने धाम श्री काशीजी में मृत जीवात्माओं को मुक्ति प्रदान करते हैं । प्रभु श्री रामजी के श्रीराम नाम की महिमा प्रथम पूज्य प्रभु श्री गणेशजी जानते हैं जिनके कारण वे सभी देवों में परम आदरणीय और प्रथम पूज्य बने ।
प्रकाशन तिथि : 14 अक्टूबर 2019 |
33 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/19/3 |
चौपाई / छंद / दोहा -
जान आदिकबि नाम प्रतापू । भयउ सुद्ध करि उलटा जापू ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी श्री रामायणजी के प्रथम रचेता आदिकवि ऋषि श्री वाल्मीकिजी की वंदना करते हैं । ऋषि श्री वाल्मीकिजी त्रिकालदर्शी थे और उन्होंने प्रभु श्री रामजी के युग में ही वह भी पूर्व में लिख दिया था जो की आगे घटने वाला था । गोस्वामीजी कहते हैं कि ऋषि श्री वाल्मीकिजी प्रभु श्री रामजी और उनके दिव्य नाम के प्रताप को जानने वाले थे । वे पूर्व में ऋषि नहीं थे और पापों के कारण श्रीराम नाम उनसे लिया भी नहीं गया । तब देवर्षि प्रभु श्री नारदजी के कहने पर राम का उल्टा मरा-मरा जपते जपते भी वे पवित्र हो गए और रामप्रिय होकर ऋषि बन गए । प्रभु श्री रामजी के उल्टे नाम का भी इतना अदभुत प्रभाव है ।
प्रकाशन तिथि : 15 अक्टूबर 2019 |
34 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/19/3 |
चौपाई / छंद / दोहा -
सहस नाम सम सुनि सिव बानी । जपि जेईं पिय संग भवानी ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि साक्षात जगदंबा भगवती पार्वती माता ने प्रभु श्री महादेवजी के श्रीमुख से श्रीराम नाम की महिमा सुनी है कि एक श्रीराम नाम प्रभु के सहस्त्रनामों के समान है और सहस्त्रनाम से भी अधिक फल देने वाला है । इसलिए भगवती पार्वती माता सदा अपने पति प्रभु श्री महादेवजी की नाम जपने में प्रीति देखकर उनका अनुसरण करती है और उनके साथ दिव्य श्रीराम नाम का निरंतर जाप किया करती है । ऐसा देखकर प्रभु श्री महादेवजी अत्यंत हर्षित होते हैं और भगवती पार्वती माता के लिए उनका आदर बढ़ जाता है ।
प्रकाशन तिथि : 15 अक्टूबर 2019 |
35 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/19/4 |
चौपाई / छंद / दोहा -
नाम प्रभाउ जान सिव नीको । कालकूट फलु दीन्ह अमी को ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि दिव्य श्रीराम नाम का प्रभाव सबसे ज्यादा प्रभु श्री महादेवजी जानते हैं । प्रभु श्री महादेवजी ने इस दिव्य श्रीराम नाम का कितनी बार आश्रय लिया है । समुद्र मंथन के दौरान देवताओं की रक्षा के लिए और जगत के कल्याण के लिए जब उन्होंने कालकूट विष का पान किया तो उन्होंने दिव्य श्रीराम नाम का आश्रय लेकर ही ऐसा किया और विष ने उन्हें अमृत का फल दिया । प्रभु श्री रामजी के नाम का प्रभाव इतना दिव्य है ।
प्रकाशन तिथि : 16 अक्टूबर 2019 |
36 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/19/दोहा |
चौपाई / छंद / दोहा -
बरषा रितु रघुपति भगति तुलसी सालि सुदास ॥ राम नाम बर बरन जुग सावन भादव मास ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी इस दोहे में बड़ी सुंदर उपमाएं देते हैं । वे कहते हैं कि प्रभु श्री रामजी की भक्ति वर्षा ऋतु है और प्रभु की भक्ति करने वाला सेवक धान के समान है जो वर्षा ऋतु में अंकुरित होता है । वर्षा होने पर ही धान अंकुरित होते हैं और इसके लिए सावन और भादों के महीने की जरूरत होती है जो कि प्रभु श्रीरामजी के नाम के दो अक्षर हैं । यानी श्रीराम नाम का उच्चारण करने से ही भक्ति के बीज जीवन में अंकुरित होकर हमें फल-फूल यानी अपना प्रसाद प्रदान करते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 16 अक्टूबर 2019 |
37 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/21/1 |
चौपाई / छंद / दोहा -
प्रीति परसपर प्रभु अनुगामी ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी प्रभु श्री रामजी और श्रीराम नाम के बीच का संबंध बताते हैं । वे कहते हैं कि दोनों में से प्रभु श्री रामजी स्वामी और श्रीराम नाम सेवक के समान है । नाम और नामी में पूर्ण एकता होती है । नाम के पीछे नामी चलते हैं यानी प्रभु श्री रामजी अपने श्रीराम नाम का अनुसरण करते हैं । जहाँ भी प्रभु श्री रामजी का नाम लिया जाता है वहाँ प्रभु श्री रामजी साक्षात पहुँच जाते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 17 अक्टूबर 2019 |
38 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/21/दोहा |
चौपाई / छंद / दोहा -
राम नाम मनिदीप धरु जीह देहरीं द्वार । तुलसी भीतर बाहेरहुँ जौं चाहसि उजिआर ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी इस दोहे में एक बहुत सुंदर निवेदन करते हैं । वे प्रभु नाम के प्रताप से हमारा परिचय करवाते हुए कहते हैं कि अगर हम अपने बाहर और भीतर दोनों ओर उजाला चाहते हैं तो इसका एक ही उपाय है । हमारे मुख की जिह्वा पर सदा श्रीराम नाम के मणिरूपी दीपक को रखना ही इसका एकमात्र उपाय है । तात्पर्य यह है कि श्रीराम नाम का जप और कीर्तन जितना हमारी जुबान से होगा उतना ही हमारे भीतर और बाहर प्रकाश होगा ।
प्रकाशन तिथि : 17 अक्टूबर 2019 |
39 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/22/3 |
चौपाई / छंद / दोहा -
जपहिं नामु जन आरत भारी । मिटहिं कुसंकट होहिं सुखारी ॥ राम भगत जग चारि प्रकारा । सुकृती चारिउ अनघ उदारा ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि प्रभु के चार प्रकार के भक्त होते हैं और सभी को प्रभु के नाम का जप करने से परम लाभ मिलता है । जो संकट से घबराकर प्रभु का नाम जप करते हैं उनके बुरे-से-बुरे संकट मिट जाते हैं और वे सुखी हो जाते हैं । जो धन की इच्छा रखकर प्रभु का नाम जप करते हैं उन्हें धन-संपत्ति प्राप्त होती है । जो प्रभु को जानने की जिज्ञासा से नाम जप करते हैं उनकी जिज्ञासा पूरी होती है । जो प्रभु का नाम जप स्वाभाविक प्रेम से करते हैं उन्हें प्रभु प्रेम प्राप्त होता है ।
प्रकाशन तिथि : 18 अक्टूबर 2019 |
40 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/22/4 |
चौपाई / छंद / दोहा -
चहुँ जुग चहुँ श्रुति नाम प्रभाऊ । कलि बिसेषि नहिं आन उपाऊ ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी यहाँ कलियुग में भक्तों का सटीक मार्गदर्शन करते हैं कि प्रभु नाम का कलियुग में कितना विशेष प्रभाव है और प्रभु नाम को छोड़कर कलियुग में जीव का अन्य कोई समाधान और सहारा नहीं है । चारों प्रकार के भक्तों के लिए, चारों युगों में और चारों श्री वेदजी में नाम जप का अत्यंत बड़ा प्रभाव है पर कलियुग में तो केवल प्रभु का नाम ही एकमात्र आधार है । कलियुग में प्रभु नाम का आधार जीवन में लेने वाले का कल्याण सुनिश्चित है, इसमें कोई शंका की गुंजाइश ही नहीं है ।
प्रकाशन तिथि : 18 अक्टूबर 2019 |
41 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/24/2 |
चौपाई / छंद / दोहा -
राम एक तापस तिय तारी । नाम कोटि खल कुमति सुधारी ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि प्रभु ने अपने अवतार काल में जितनों को तारा उनका परम पवित्र और पुनीत नाम उससे भी अधिक करोड़ों को तारता है । प्रभु का नाम दुष्टों की बिगड़ी बुद्धि को सुधार देता है । प्रभु का नाम जपने वाले के दोष, दुःख का ऐसे नाश होता है जैसे प्रभु श्री सूर्यनारायणजी अंधकार का नाश करते हैं । प्रभु का नाम जीवों के संसार के सभी भय का नाश करता है । प्रभु का नाम प्रभु का अपनी श्रीलीला को विश्राम देकर अपने श्रीधाम पधारने के बाद भी उनके आश्रितों का निरंतर हित और कल्याण करता रहता है ।
प्रकाशन तिथि : 19 अक्टूबर 2019 |
42 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/24/4 |
चौपाई / छंद / दोहा -
दंडक बनु प्रभु कीन्ह सुहावन । जन मन अमित नाम किए पावन ॥ निसिचर निकर दले रघुनंदन । नामु सकल कलि कलुष निकंदन ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी प्रभु के नाम की महिमा गाते हुए कहते हैं कि प्रभु ने भयानक दण्डक वन को अपने आगमन से सुहावना बनाया पर प्रभु के नाम का प्रभाव देखें कि वह तो असंख्य मनुष्यों के हृदय को ही पवित्र कर देता है । प्रभु ने अवतार काल में राक्षसों के समूह को मारा पर प्रभु के नाम की महिमा देखें कि वह तो कलियुग के पापों को जड़ से मार देता है, पापों का नाश कर देता है ।
प्रकाशन तिथि : 19 अक्टूबर 2019 |
43 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/24/दोहा |
चौपाई / छंद / दोहा -
सबरी गीध सुसेवकनि सुगति दीन्हि रघुनाथ । नाम उधारे अमित खल बेद बिदित गुन गाथ ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी प्रभु श्री रामजी के नाम की महिमा का बखान करते हुए कहते हैं कि प्रभु ने अपने अवतार काल में भगवती अहिल्याजी, भगवती शबरीजी, श्री जटायुजी एवं अनेकों को तारा और मुक्ति दी । ऐसा प्रभु ने किया पर प्रभु का दिव्य नाम तो अगणित दुष्टों और पापात्माओं का उद्धार करता आया है । प्रभु तो अपनी श्रीलीला को विश्राम देकर अपने धाम चले गए पर उनका परम पुनीत नाम तो अब तक उद्धार करने का यह काम करता आया है और भविष्य में भी करता रहेगा । इसलिए प्रभु के नाम की महिमा श्री वेदजी में भी प्रसिद्ध है ।
प्रकाशन तिथि : 20 अक्टूबर 2019 |
44 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/25/1 |
चौपाई / छंद / दोहा -
राम सुकंठ बिभीषन दोऊ । राखे सरन जान सबु कोऊ ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी एक बहुत मार्मिक बात इस चौपाई में कहते हैं । वे कहते हैं कि प्रभु श्री रामजी ने अपने अवतार काल में श्री सुग्रीवजी और श्री विभीषणजी को अपनी शरण में लिया और अभयदान देकर उन्हें अपनी शरण में रखा । पर प्रभु का नाम अगणित जीवों पर कृपा करता है और शरण आने पर उन्हें शरणागति प्रदान करता है । प्रभु नाम की यह विशेष महिमा है कि अपने शरणागत पर असीम कृपा करना और उनका परम हित करना और उन्हें अमंगल से बचाना ।
प्रकाशन तिथि : 20 अक्टूबर 2019 |
45 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/26/3 |
चौपाई / छंद / दोहा -
सुमिरि पवनसुत पावन नामू । अपने बस करि राखे रामू ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि श्रीराम नाम का प्रभाव प्रभु श्री महादेवजी जानते हैं और उन्होंने नाम को सबके साररूप में चुनकर ग्रहण किया है । प्रभु श्री शुकदेवजी, श्रीसनकादिक ऋषि, मुनिजन और योगीजन भी नाम का प्रभाव जानते हैं । नाम का प्रभाव देवर्षि प्रभु श्री नारदजी भी जानते हैं । नाम से पवित्र होकर भक्तराज श्री प्रह्लादजी और भक्तराज श्री ध्रुवजी इतने विख्यात हुए । फिर गोस्वामीजी कहते हैं कि नाम का प्रभाव प्रभु श्री हनुमानजी से ज्यादा कौन जान सकता है जिन्होंने इस परम पवित्र और पुनीत श्रीराम नाम के जप से प्रभु श्री रामजी को ही अपने वश में करके रखा है ।
प्रकाशन तिथि : 21 अक्टूबर 2019 |
46 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/26/4 |
चौपाई / छंद / दोहा -
अपतु अजामिलु गजु गनिकाऊ । भए मुकुत हरि नाम प्रभाऊ ॥ कहौं कहाँ लगि नाम बड़ाई । रामु न सकहिं नाम गुन गाई ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि श्रीराम नाम के प्रभाव से अजामिलजी, गजेंद्रजी और गणिका मुक्त हो गए और इन सबने प्रभु को पा लिया । प्रभु के नाम ने कितनों को अभी तक तार दिया है इसकी कोई गिनती नहीं है । इसलिए गोस्वामीजी कहते हैं कि मैं कहाँ तक प्रभु नाम की महिमा गांऊ और बताऊं । फिर जो गोस्वामीजी कहते हैं वह बड़ा मार्मिक है । वे कहते हैं कि कोई भी प्रभु के नाम की महिमा नहीं गा सकता, यहाँ तक कि स्वयं प्रभु भी अपने नाम और गुणों की महिमा गाने में स्वयं को असमर्थ पाएंगे । प्रभु नाम की महिमा अथाह और अंतहीन है ।
प्रकाशन तिथि : 21 अक्टूबर 2019 |
47 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/26/दोहा |
चौपाई / छंद / दोहा -
नामु राम को कलपतरु कलि कल्यान निवासु ।
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी प्रभु श्री रामजी के श्रीराम नाम की महिमा गाते-गाते उसे कल्पतरु बताते हैं और कहते हैं कि प्रभु का नाम मनोवांछित फल देने वाला है । जैसे कल्पवृक्ष मनचाहा पदार्थ देता है वैसे ही कलियुग में प्रभु का नाम मनचाहा फल जीव को प्रदान करता है । दूसरी बात जो गोस्वामीजी कहते हैं वह यह कि प्रभु का नाम कल्याण का निवास है यानी प्रभु के नाम में ही हमारा कल्याण निहित है । वे कहते हैं कि प्रभु का नाम मुक्ति प्रदान करने वाला है ।
प्रकाशन तिथि : 22 अक्टूबर 2019 |
48 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/27/1 |
चौपाई / छंद / दोहा -
चहुँ जुग तीनि काल तिहुँ लोका । भए नाम जपि जीव बिसोका ॥ बेद पुरान संत मत एहू । सकल सुकृत फल राम सनेहू ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि कलियुग में प्रभु नाम का प्रभाव अनंत गुना है । चारों युगों में, तीनों कालों में और तीनों लोकों में सदैव से ही प्रभु नाम का अमिट प्रभाव रहा है । चारों युग, तीन काल और तीन लोक में जिसने भी प्रभु का नाम जपा है वह जीव निश्चिंत और शोकरहित हुआ है इसमें तनिक भी शंका या संदेह नहीं है । इसलिए ही श्री वेदजी, श्रीपुराण और ऋषियों एवं संतों का एकमत है कि जीव के समस्त पुण्यों का यही फल है कि उसकी प्रभु में और प्रभु के नाम में प्रीति दृढ़ हो जाए ।
प्रकाशन तिथि : 22 अक्टूबर 2019 |
49 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/27/3 |
चौपाई / छंद / दोहा -
राम नाम कलि अभिमत दाता ।
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि अन्य युगों में ध्यान, यज्ञ, पूजन करके प्रभु की प्राप्ति होती थी पर कलियुग में प्रभु प्राप्ति के लिए केवल प्रभु का नाम ही एकमात्र आधार है । कलियुग में प्रभु का नाम ही कल्पवृक्ष है । कलियुग में संसार के जंजाल से मुक्त होने का प्रभु नाम ही एकमात्र साधन है । कलियुग में प्रभु का नाम ही मनोवांछित फल देने वाला है । प्रभु का नाम ही कलियुग में इहलोक में हमारा पालन और रक्षण करता है और परलोक में परम हितैषी बनकर हमारा उद्धार करता है ।
प्रकाशन तिथि : 23 अक्टूबर 2019 |
50 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/28/1 |
चौपाई / छंद / दोहा -
भायँ कुभायँ अनख आलसहूँ । नाम जपत मंगल दिसि दसहूँ ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - यह श्री रामचरितमानसजी की एक अमर चौपाई है । इसमें गोस्वामी श्री तुलसीदासजी ने प्रभु के नाम की महिमा का प्रतिपादन बड़े जोरदार ढंग से किया है । गोस्वामीजी कहते हैं कि प्रभु का नाम कैसे भी, किसी भी भाव से जपा जाए तब भी वह हमारा परम कल्याण ही करेगा क्योंकि प्रभु का नाम मूलतः ही परम कल्याणकारी है । गोस्वामीजी यहाँ तक कह देते हैं कि प्रभु का नाम अच्छे प्रेम के भाव से, बुरे वैर के भाव से, क्रोध के भाव से या आलस्य के भाव से कैसे भी जपा जाए वह हमारा परम मंगल और कल्याण ही करेगा । इतिहास में ऐसे कितने ही चरित्र मिलेंगे जिन्होंने वैर के भाव से, क्रोध से, आलस्य से प्रभु का नाम जपा और उनका उद्धार हो गया । कंस, रावण, शिशुपाल इसके जीवंत उदाहरण हैं । फिर जो प्रेम और भक्ति के अच्छे भाव से प्रभु का नाम जपता है उसके मंगल, कल्याण और उद्धार में कोई शंका हो ही नहीं सकती ।
प्रकाशन तिथि : 23 अक्टूबर 2019 |
51 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/28/2 |
चौपाई / छंद / दोहा -
राम सुस्वामि कुसेवकु मोसो । निज दिसि देखि दयानिधि पोसो ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी इस चौपाई में अपनी दीनता दिखाते हैं जो भाव प्रभु को अतिशय प्रिय है । गोस्वामीजी कहते हैं कि प्रभु जैसा उत्तम स्वामी और उनके जैसा बुरा सेवक अन्य कोई हो ही नहीं सकता । बुरा सेवक होने पर भी प्रभु अपने सेवक की बिगड़ी बनाते हैं और उस पर असीम कृपा करते हैं । बुरा सेवक होने पर भी दयानिधि प्रभु उस सेवक का पालन करते हैं । गोस्वामीजी की तरह हमें भी अपने हृदय में दीनता का भाव रखना चाहिए तभी हम अपने जीवन में प्रभु की कृपा और दया पा सकेंगे ।
प्रकाशन तिथि : 24 अक्टूबर 2019 |
52 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/28/6 |
चौपाई / छंद / दोहा -
रीझत राम सनेह निसोतें ।
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि प्रभु श्री रामजी विशुद्ध प्रेम से रीझते हैं । प्रभु जब अपने भक्त के हृदय में अपने लिए शुद्ध प्रेम देखते हैं तो प्रभु से रहा नहीं जाता और प्रभु दया और कृपा करके उस भक्त को अपना लेते हैं । प्रेम के भाव से प्रभु रीझ जाते हैं । भक्त के हृदय में अपने लिए प्रभु केवल प्रेमभाव ही देखना चाहते हैं । भक्त हृदय में प्रेम देखते ही प्रभु अपने आपको रोक नहीं पाते और उस भक्त पर अनुग्रह करते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 24 अक्टूबर 2019 |
53 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/29/1 |
चौपाई / छंद / दोहा -
अति बड़ि मोरि ढिठाई खोरी । सुनि अघ नरकहुँ नाक सकोरी ॥ समुझि सहम मोहि अपडर अपनें । सो सुधि राम कीन्हि नहिं सपनें ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी अपनी दीनता दिखाते हुए कहते हैं कि उनके दोष और पाप सुनकर तो उन्हें नर्क में भी जगह नहीं मिलेगी । फिर भी प्रभु इतने करुणानिधान हैं कि इतने दोष और पापों की तरफ स्वप्न में भी प्रभु ध्यान नहीं देते और इतने दोष और पापों के साथ उन्हें अपना लेते हैं । गोस्वामीजी कहते हैं कि उनमें प्रभु का सेवक कहलाने का भाग्य और गुण नहीं है फिर भी प्रभु इतने कृपालु हैं कि अपनी निंदा सहकर भी ऐसे पतित सेवक को अपना लेते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 25 अक्टूबर 2019 |
54 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/29/3 |
चौपाई / छंद / दोहा -
रहति न प्रभु चित चूक किए की । करत सुरति सय बार हिए की ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - यह श्री रामचरितमानसजी की एक बहुत सुंदर चौपाई है जो मुझे अति प्रिय है । गोस्वामी श्री तुलसीदासजी एक सिद्धांत का प्रतिपादन इस चौपाई में करते हैं । वे कहते हैं कि प्रभु को अपने चित्त में अपने भक्तों की भूल-चूक याद नहीं रहती । प्रभु अपने भक्तों की भूल-चूक माफ करके उसे तुरंत भूल जाते हैं । पर वे ही प्रभु अपने चित्त में अपने भक्तों की अच्छाई और नेकी को बारंबार याद करते रहते हैं और याद करके कभी थकते नहीं । संसार हमारी नेकी को भुला देता है और भूल को याद रखता है पर प्रभु इतने कृपालु और दयालु हैं कि इसका ठीक उल्टा करते हैं और हमारी भूल को भुलाकर हमारी नेकी को याद रखते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 25 अक्टूबर 2019 |
55 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/29/दोहा (क) |
चौपाई / छंद / दोहा -
तुलसी कहूँ न राम से साहिब सीलनिधान ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि प्रभु श्री रामजी के समान कृपानिधि स्वामी अन्य कोई नहीं है । प्रभु अपने सेवकों के अवगुण और गलती को माफ कर देते हैं एवं उस ओर ध्यान ही नहीं देते । प्रभु के हृदय में अपने सेवकों के लिए सदा दया, कृपा और करुणा का भाव रहता है । गोस्वामीजी दीनता दिखाते हुए अपने को बुरा सेवक मानते हैं पर वे कहते हैं कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि उनके स्वामी प्रभु श्री रामजी बड़े ही शीलनिधान हैं ।
प्रकाशन तिथि : 26 अक्टूबर 2019 |
56 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/29/दोहा (ख) |
चौपाई / छंद / दोहा -
राम निकाईं रावरी है सबही को नीक । जौं यह साँची है सदा तौ नीको तुलसीक ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि प्रभु का स्वभाव इतना करुणा से भरा हुआ है कि वे सबका कल्याण ही करते हैं । प्रभु स्वभाव से ही सबका मंगल और कल्याण करने वाले हैं । प्रभु को इससे फर्क नहीं पड़ता कि सामने कौन है और कैसा है क्योंकि जो भी जैसा भी हो प्रभु के संपर्क में आने पर प्रभु उसका मंगल और कल्याण ही करते हैं । गोस्वामीजी कहते हैं कि प्रभु के ऐसे स्वभाव के कारण उन्हें पूर्ण विश्वास है कि प्रभु उनका भी कल्याण ही करेंगे ।
प्रकाशन तिथि : 26 अक्टूबर 2019 |
57 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/29/दोहा (ग) |
चौपाई / छंद / दोहा -
बरनउँ रघुबर बिसद जसु सुनि कलि कलुष नसाइ ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि प्रभु श्री रामजी के श्रीकमलचरणों में मस्तक रखकर वे उनका निर्मल यशगान कर रहे हैं । वे कहते हैं कि प्रभु का यशगान सुनने से कलियुग के पाप नष्ट हो जाते हैं । प्रभु का यशगान हमारे संचित पापों को समूल नष्ट करने का सर्वोत्तम एवं सरलतम साधन है । ऋषियों ने, संतों ने और भक्तों ने प्रभु का यशगान करके अपना कल्याण और उद्धार किया है । शास्त्र हमें प्रभु का यशगान करने का ही मार्ग दिखाते हैं जिसके कारण हम पापरहित हो सकते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 27 अक्टूबर 2019 |
58 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/30/2 |
चौपाई / छंद / दोहा -
संभु कीन्ह यह चरित सुहावा । बहुरि कृपा करि उमहि सुनावा ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - श्रीराम चरित्र की महिमा इस बात से ही पता चलती है कि इसकी रचना और इसका गान सबसे पहले परम वैष्णव एवं परम श्रीराम भक्त प्रभु श्री महादेवजी ने स्वयं किया । इसके सबसे प्रथम वक्ता इस प्रकार प्रभु श्री महादेवजी हुए । इसकी प्रथम श्रोता जगजननी भगवती पार्वती माता हुई क्योंकि प्रभु श्री महादेवजी ने सबसे पहले इस रचना को माता को सुनाया । इस तरह श्रीराम चरित्र के मूल में प्रभु श्री महादेवजी और भगवती पार्वती माता हैं जिससे यह पता चलता है कि यह दिव्य श्रीराम चरित्र गान कितना अद्वितीय, अतुलनीय और श्रेष्ठतम है ।
प्रकाशन तिथि : 27 अक्टूबर 2019 |
59 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/31/4 |
चौपाई / छंद / दोहा -
रामकथा कलि कामद गाई । सुजन सजीवनि मूरि सुहाई ॥ सोइ बसुधातल सुधा तरंगिनि । भय भंजनि भ्रम भेक भुअंगिनि ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी प्रभु श्री रामजी की कथा को कलियुग में सब मनोरथ पूरी करने वाली बताते हैं और उसे कामधेनु गौ-माता की उपमा देते हैं । गोस्वामीजी प्रभु की कथा को दूसरी उपमा संजीवनी की देते हैं । गोस्वामीजी प्रभु की कथा को तीसरी उपमा अमृत नदी की देते हैं । जैसे कामधेनु गौ-माता हमारी हर कामना को पूर्ण करती हैं, जैसे संजीवनी हमें पूर्ण आरोग्य रखती है, जैसे अमृत की नदी हमारे जन्मों-जन्मों के भय का नाश करती है वैसे ही ये सब कार्य अकेले प्रभु की कथा करती है ।
प्रकाशन तिथि : 28 अक्टूबर 2019 |
60 |
श्रीरामचरित मानस
(बालकाण्ड) |
1/32/1 |
चौपाई / छंद / दोहा -
जग मंगल गुनग्राम राम के । दानि मुकुति धन धरम धाम के ॥
व्यक्त भाव एवं प्रेरणा - गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि प्रभु श्री रामजी का गुणगान जगत का कल्याण करने वाला साधन है । प्रभु का गुणगान इच्छित फल देने वाला साधन है । प्रभु का गुणगान जो भी जिस भी लक्ष्य से करता है वह उस लक्ष्य को प्राप्त कर लेता है । प्रभु के गुणगान से मुक्ति, धन, धर्म और प्रभु का परमधाम सब कुछ सुलभ हो जाता है । प्रभु के गुणगान से जिसे मोक्ष चाहिए उसे मोक्ष मिलता है, जिसे धन चाहिए उसे धन मिलता है । ऐसे ही प्रभु के गुणगान से जिसे अपने जीवन में धर्म की स्थापना चाहिए वह ऐसा कर पाता है और जिसे अति दुर्लभ प्रभु का परमधाम चाहिए वह वहाँ पहुँच जाता है ।
प्रकाशन तिथि : 28 अक्टूबर 2019 |