क्रम संख्या |
श्रीग्रंथ |
अध्याय -
श्लोक संख्या |
भाव के दर्शन / प्रेरणापुंज |
937 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 88
श्लो 09 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... तब मैं उस पर अपनी अहैतुकी कृपा की वर्षा करता हूँ ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन प्रभु श्रीकृष्णजी ने राजा श्री युधिष्ठिरजी को उनके प्रश्न के उत्तर में कहे ।
प्रभु कहते हैं कि जिस जीव पर वे सच्ची कृपा करते हैं उसका सारा धन धीरे-धीरे छीन लेते हैं । जब वह जीव निर्धन हो जाता है तो सगे-संबंधी उसकी परवाह न करके उसे छोड़ देते हैं । अगर फिर भी वह जीव धन कमाने के लिए प्रयत्न करता है तो प्रभु उसे निष्फल कर देते हैं । इस प्रकार बार-बार प्रयत्न करने पर भी जब वह धन कमाने में असफल होता है तो उसका मन विरक्त हो जाता है और वह धन कमाने से मुँह मोड़कर प्रभु भक्ति की तरफ मुड़ जाता है । जैसे ही वह भक्ति का आश्रय लेता है प्रभु अपने अहैतुकी कृपा की वर्षा उस पर करते हैं । प्रभु की कृपा से उस जीव को प्रभु की प्राप्ति हो जाती है ।
माया से मुँह मोड़कर भक्ति के द्वारा प्रभु तक पहुँचना ही सर्वोत्तम है ।
प्रकाशन तिथि : 04 अगस्त 2017 |
938 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 88
श्लो 20 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... शरणागत भक्तों द्वारा केवल जल चढ़ाने से ही संतुष्ट हो जाया करता हूँ । ....
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन प्रभु श्री शुकदेवजी ने राजा श्री परीक्षितजी को कहे ।
इस श्लोक में देवों के देव प्रभु श्री महादेवजी की महिमा बताई गई है । प्रभु श्री महादेवजी आशुतोष हैं एवं सबसे शीघ्र प्रसन्न होने वाले देव हैं । प्रभु श्री महादेवजी के बारे में कहा गया है कि प्रभु केवल शरणागत भक्तों के जल चढ़ाने मात्र से ही प्रसन्न हो जाते हैं । प्रभु श्री महादेवजी को अपने भक्तों से किसी भी बड़े रूप में पूजा की अपेक्षा नहीं होती । वे अति शीघ्र प्रसन्न होते हैं और केवल भाव और भक्ति से जल अर्पण करने मात्र से तृप्त हो जाते हैं । अन्य सभी देवताओं की पूजा के विधान है पर प्रभु श्री महादेवजी की पूजा का विधान सबसे सरल है ।
इसलिए ही प्रभु श्री महादेवजी को देवाधिदेव कहा गया है ।
प्रकाशन तिथि : 04 अगस्त 2017 |
939 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 88
श्लो 40 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
भगवान अनंत शक्तियों के समुद्र हैं । उनकी एक-एक शक्ति मन और वाणी की सीमा के परे है । ....
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - इस श्लोक में प्रभु की शक्तियों का वर्णन किया गया है ।
श्लोक में कहा गया है कि प्रभु अनंत शक्तियों के समुद्र हैं । जैसे समुद्र में अथाह जल होता है वैसे ही प्रभु की शक्तियां भी अथाह हैं । प्रभु की अनंत शक्तियों का वर्णन शास्त्र, ऋषि, संत और भक्त भी नहीं कर सकते । पूरे ब्रह्मांड का संचालन प्रभु की शक्ति से होता है । एक पेड़ का पत्ता भी हिलता है तो वह शक्ति भी प्रभु की ही होती है । प्रभु की एक-एक शक्ति हमारे मन और वाणी की सीमा के परे हैं । हम अपने मन से प्रभु की शक्ति की कल्पना भी नहीं कर सकते और अपनी वाणी से प्रभु की शक्ति का वर्णन भी नहीं कर सकते ।
इसलिए जीव को सर्वशक्तिमान प्रभु के शरणागत होकर अपना जीवन व्यतीत करना चाहिए ।
प्रकाशन तिथि : 05 अगस्त 2017 |
940 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 89
श्लो 21 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
शौनकादि ऋषियों ! भगवान पुरुषोत्तम की यह कमनीय कीर्ति-कथा जन्म-मृत्यु रूप संसार के भय को मिटाने वाली है । ....
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन ऋषि श्री सूतजी ने श्री शौनकादि ऋषियों को कहे ।
प्रभु के श्रीकमलचरणों की सेवा करके जीव परमानंद और अंत में परमपद की प्राप्ति कर लेता है । प्रभु की कीर्ति कथा का श्रवण, कथन, मनन और चिंतन जीव के जन्म-मृत्यु रूपी इस संसार के भय को मिटाने वाला है । जो जीव प्रभु की श्रीलीला कथा का नित्य निरंतर पान करते हैं उनके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं और उन्हें परमानंद की अनुभूति होती है । इसलिए जीव को चाहिए कि अपने दोनों कानों के दोने बनाकर प्रभु की श्रीलीला कथा का रसास्वादन करें । प्रभु की श्रीलीला कथा आत्म तृप्ति का सबसे बड़ा साधन है ।
जो जीव प्रभु की श्रीलीला कथा का नित्य पान करते हैं वे सचमुच धन्य होते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 05 अगस्त 2017 |
941 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 89
श्लो 63 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... उन्होंने ऐसा अनुभव किया कि जीवों में जो कुछ बल-पौरुष है, वह सब भगवान श्रीकृष्ण की ही कृपा का फल है ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - एक बार प्रभु ने श्री द्वारकापुरी के एक ब्राह्मण के मृत बच्चों को लाने के लिए श्री अर्जुनजी के साथ अपने परमधाम की यात्रा की ।
श्री अर्जुनजी ने प्रभु के परमधाम को जब देखा तो उनकी आश्चर्य की सीमा नहीं रही । श्री अर्जुनजी ने साक्षात अनुभव किया कि जीवन में जो भी बल और पौरुष है, वह सभी प्रभु की कृपा का ही फल है । श्री अर्जुनजी ने प्रतिज्ञा की थी कि उस ब्राह्मण के बच्चे को वे मरने नहीं देंगे और जो मर चुके हैं उन्हें वापस लाएंगे । पर वे अपने प्रण को निभा नहीं पाए । तब उन्हें ज्ञान हुआ कि जीव में जो भी बल और सामर्थ्य है वह प्रभु द्वारा प्रदान किया हुआ है । इसलिए जीव के बल और सामर्थ्य को प्रभु कृपा का ही फल मानना चाहिए ।
जीव को अपने बल और सामर्थ्य का कभी घमंड नहीं करना चाहिए और उसे प्रभु की दी हुई कृपा प्रसादी मानना चाहिए ।
प्रकाशन तिथि : 06 अगस्त 2017 |
942 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 89
श्लो 64 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
परीक्षित ! भगवान ने और भी ऐसी अनेकों ऐश्वर्य और वीरता से परिपूर्ण लीलाएं की । ....
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन प्रभु श्री शुकदेवजी ने राजा श्री परीक्षितजी को कहे ।
प्रभु ने अपने अवतार काल में अनेकों ऐश्वर्ययुक्त और वीरता से परिपूर्ण श्रीलीलाएं की । प्रभु ने बड़े-बड़े श्रेष्ठ यज्ञ किए और समस्त प्रजा के सारे मनोरथ पूर्ण किए । प्रभु ने बहुत सारे अधर्मी राजाओं का वध किया और पृथ्वीलोक पर धर्म की पुनःस्थापना की । प्रभु ने पृथ्वीलोक में धर्म और मर्यादा, जो कि लुप्त हो चुकी थी उसको स्थापित किया । ऐसा करते समय प्रभु ने बड़ी दिव्य ऐश्वर्य और वीरता की श्रीलीलाएं की । प्रभु के पृथ्वीलोक में प्रवास काल में धर्म पूरी तरह से स्थापित हो चुका था ।
प्रभु का व्रत है कि जब-जब धर्म की हानि होती है प्रभु पृथ्वीलोक पर अवतार लेकर ऐश्वर्ययुक्त और वीरतापूर्ण श्रीलीलाएं करते हैं और इस प्रकार धर्म की रक्षा करते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 06 अगस्त 2017 |
943 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 90
श्लो 14 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
परीक्षित ! रानियों के जीवन-सर्वस्व, उनके एकमात्र हृदयेश्वर भगवान श्रीकृष्ण ही थे । ....
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन प्रभु श्री शुकदेवजी ने राजा श्री परीक्षितजी को कहे ।
हमारे जीवन के सर्वस्व प्रभु होने चाहिए । प्रभु ने जीव को मनुष्य जन्म देकर भेजा है और जीव मनुष्य जन्म पाकर प्रभु को ही भूल जाता है । जबकि जीव को मनुष्य जीवनरूपी प्रभु कृपा को सदा सर्वदा याद रखकर अपना सर्वस्व प्रभु को ही मानना चाहिए । अगर हम अपना सर्वस्व प्रभु को मानेंगे तो प्रभु भी आगे आकर हमारे पूरे दायित्व का वहन करेंगे । जीव का सबसे बड़ा धर्म है कि वह अपना सर्वस्व प्रभु को ही माने । हमारे एकमात्र हृदयेश्वर भी प्रभु ही होने चाहिए । हमारे हृदय में स्थान पाने का एकमात्र अधिकार प्रभु का है क्योंकि वे ही हमारे परमपिता हैं ।
जो जीव अपना सर्वस्व प्रभु को मानता है उसका ही मानव जीवन सफल होता है ।
प्रकाशन तिथि : 08 अगस्त 2017 |
944 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 90
श्लो 26 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
भगवान श्रीकृष्ण की लीलाएं अनेकों प्रकार से अनेकों गीतों द्वारा गान की गई हैं । ....
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन प्रभु श्री शुकदेवजी ने राजा श्री परीक्षितजी को कहे ।
प्रभु द्वारा की गई अनेकों श्रीलीलाओं का पावन गीतों के रूप में गान हुआ है । इन मधुर गीतों का गान जिनमें प्रभु की श्रीलीलाओं का वर्णन है, जीव का उद्धार करने वाला है । प्रभु के भक्तों ने और संतों ने प्रभु की श्रीलीलाओं के बहुत सारे पद लिखे और बहुत सारे गीतों एवं भजनों की रचना की । इन गीतों का गान प्राचीन काल से होता आया है । मंदिरों में, घरों में प्रभु की श्रीलीलाओं के गीत गाए जाते हैं जो जीव को परमानंद देते हैं और उसके अमंगल का नाश करते हैं । प्रभु की श्रीलीलाओं के गीत मंगलकारी होते हैं और सभी भाषाओं में गाए जाते हैं ।
इसलिए जीव को चाहिए कि प्रभु की श्रीलीलाओं के गीतों का श्रवण और गायन करें और ऐसा करके अपने आपको धन्य करे ।
प्रकाशन तिथि : 08 अगस्त 2017 |
945 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 90
श्लो 47 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
परीक्षित ! भगवान की चरणधोवन गंगाजी अवश्य ही समस्त तीर्थों में महान एवं पवित्र हैं । ....
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन प्रभु श्री शुकदेवजी ने राजा श्री परीक्षितजी को कहे ।
श्लोक में भगवती गंगा माता की महिमा बताई गई है । भगवती गंगा माता, जो प्रभु के श्रीकमलचरणों से निकली हैं, वह समस्त तीर्थों की तरह महान एवं परम पवित्र करने वाली हैं । जो भी जीव माता के रूप में उनकी उपासना करता है उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं और वह जीव पवित्र हो जाता है । भगवती गंगा माता जीव के अमंगल का नाश करती है और उसे पुण्य प्रदान करती हैं । सभी शास्त्रों, ऋषियों, संतों और भक्तों ने एकमत से भगवती गंगा माता की महिमा गाई है और माता के रूप में उनकी पूजा की है ।
इसलिए जीव को मातृ बुद्धि के साथ भगवती गंगा माता का दर्शन और पूजन करना चाहिए ।
प्रकाशन तिथि : 09 अगस्त 2017 |
946 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 90
श्लो 47 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... भगवान का नाम एक बार सुनने अथवा उच्चारण करने से ही सारे अमंगलों को नष्ट कर देता है । ....
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन प्रभु श्री शुकदेवजी ने राजा श्री परीक्षितजी को कहे ।
श्लोक में कहा गया है कि सच्चे मन से प्रभु के नाम का एक बार उच्चारण करने से अथवा प्रभु के नाम को एक बार सुनने मात्र से जीव के सारे अमंगलों का नाश हो जाता है । प्रभु के नाम में प्रभु की सारी शक्तियां समाई हुई हैं । इसलिए शास्त्रों ने प्रभु नाम की महिमा गाई है । कलियुग में प्रभु नाम का साधन सबसे बड़ा साधन है । इसलिए जो जीव प्रभु के नाम का उच्चारण अपनी जिह्वा से करता है अथवा अपने कानों से प्रभु के नाम को सुनता है उसका मंगल-ही-मंगल होता है । प्रभु का नाम हमारे सारे अमंगल को हर लेता है । इसलिए जीवन में प्रभु के किसी भी मंगलकारी नाम का आश्रय लेना चाहिए तभी जीव को शांति और आनंद की प्राप्ति होती है ।
इसलिए जीव को चाहिए कि प्रभु नाम को सुनने का और उच्चारण करने का व्रत जीवन में ले ।
प्रकाशन तिथि : 09 अगस्त 2017 |
947 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 90
श्लो 48 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... परीक्षित ! भगवान स्वभाव से ही चराचर जगत का दुःख मिटाते रहते हैं । ....
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन प्रभु श्री शुकदेवजी ने राजा श्री परीक्षितजी को कहे ।
प्रभु का स्वभाव है कि वे चराचर जगत के प्राणियों का दुःख और कष्ट मिटाते रहते हैं । यह प्रभु का स्वभाव है कि प्रभु से अपने प्रिय भक्तों का दुःख देखा नहीं जाता और अनायास ही प्रभु उनके दुःख मिटा देते हैं । जीव अपने कर्मों के कारण दुःख और कष्ट भोगता है पर जैसे ही वह प्रभु की शरण में आ जाता है प्रभु उसके दुःख और कष्ट का अंत कर देते हैं । जीव के जन्मों-जन्मों में कितने भी पातक किए हुए हो और उन पातकों के कारण कितने भी दुःख और कष्ट वह भोग रहा हो पर जैसे ही वह प्रभु के शरणागत होता है प्रभु स्वभाववश उसके दुःख और कष्ट को मिटा देते हैं । प्रभु की कृपा के आगे पापों का पहाड़ भी टिक नहीं सकता ।
इसकी जीव को चाहिए कि जीवन में प्रभु की शरण ग्रहण करे ।
प्रकाशन तिथि : 10 अगस्त 2017 |
948 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 90
श्लो 49 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... उनका एक-एक कर्म स्मरण करने वालों के कर्मबंधनों को काट डालने वाला है । ....
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन प्रभु श्री शुकदेवजी ने राजा श्री परीक्षितजी को कहे ।
प्रभु की एक-एक श्रीलीला और प्रभु के अवतार काल के एक-एक कर्म का स्मरण करने वाला अपने कर्मबंधन से मुक्त हो जाता है । प्रभु के
एक-एक कर्म का स्मरण हमारे कर्मबंधन को काट डालता है । इसलिए ही शास्त्रों ने प्रभु की श्रीलीला का स्मरण करने का जीव को आदेश दिया है । शास्त्रों के इसी आदेश को मान्य करते हुए ऋषि, संत और भक्त प्रभु की लीलाकाल के कर्मों का स्मरण करके अपने कर्मबंधन से मुक्त हो जाते हैं । जीव को कर्मबंधन से छूटने का इससे सरल उपाय एवं इससे सरल साधन अन्य कोई भी नहीं है ।
इसलिए जीव को चाहिए कि प्रभु के विभिन्न अवतार काल की श्रीलीलाओं और कर्मों का स्मरण करके अपने कर्मबंधन से मुक्त होने का साधन जीवन में करे और ऐसा करके अपना मानव जीवन सफल करे ।
प्रकाशन तिथि : 10 अगस्त 2017 |
949 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 90
श्लो 49 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... जो यदुवंशशिरोमणि भगवान श्रीकृष्ण के चरणकमलों की सेवा का अधिकार प्राप्त करना चाहे, उसे उनकी लीलाओं का ही श्रवण करना चाहिए ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन प्रभु श्री शुकदेवजी ने राजा श्री परीक्षितजी को कहे ।
प्रभु श्री शुकदेवजी कहते हैं कि जो लोग प्रभु के श्रीकमलचरणों की सेवा का अधिकार प्राप्त करना चाहते हैं उन्हें प्रभु की दिव्य श्रीलीलाओं का श्रवण करना चाहिए । प्रभु की श्रीलीलाओं का श्रवण हमारे भीतर प्रभु के लिए प्रेम और भक्ति को जागृत करता है । प्रभु प्रेम और भक्ति के कारण जीव प्रभु की सेवा करने के लिए लालायित होता है और इस प्रकार वह प्रभु की सेवा का अधिकार प्राप्त कर लेता है । प्रभु से प्रेम और प्रभु की भक्ति को जागृत करने के लिए प्रभु की श्रीलीला कथा का श्रवण मुख्य साधन है ।
इसलिए जीव को चाहिए कि प्रभु की सेवा का अधिकार प्राप्त करने हेतु अपने जीवन में प्रभु की दिव्य श्रीलीला और कथा के श्रवण करने का क्रम बनाए ।
प्रकाशन तिथि : 11 अगस्त 2017 |
950 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 90
श्लो 50 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
परीक्षित ! जब मनुष्य प्रतिक्षण भगवान श्रीकृष्ण की मनोहारिणी लीला कथाओं का अधिकाधिक श्रवण, कीर्तन और चिंतन करने लगता है, तब उसकी यही भक्ति उसे भगवान के परमधाम में पहुँचा देती है । ....
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन प्रभु श्री शुकदेवजी ने राजा श्री परीक्षितजी को कहे ।
जब जीव प्रतिक्षण प्रभु की मनोहारिणी श्रीलीला कथाओं का अधिकाधिक श्रवण, कीर्तन और चिंतन करने लगता है तब उसमें तीव्र भक्ति जागृत होती है । उसकी यह तीव्र भक्ति उसे प्रभु के परमधाम पहुँचा देती है । भक्ति को जागृत करने के लिए प्रभु की श्रीलीला कथाओं का श्रवण, उनका कीर्तन और उनका हृदय की गहराई से चिंतन करना अनिवार्य है । जब ऐसा अधिकाधिक होने लगता है तो वह तीव्र भक्ति हमें प्रभु के श्रीकमलचरणों तक पहुँचा देती है । प्रभु को पाने का भक्ति के अलावा अन्य कोई सरल साधन नहीं है और भक्ति को जागृत करने के लिए प्रभु की श्रीलीला कथा के श्रवण, कीर्तन और चिंतन से सरल साधन अन्य कोई नहीं है ।
इसलिए जीव को चाहिए कि वह पूरी श्रद्धा से प्रभु की दिव्य श्रीलीला कथा का श्रवण, कीर्तन और चिंतन करे ।
अब हम श्रीमद् भागवतमहापुराण के एकादश स्कंध में प्रभु कृपा के बल पर मंगल प्रवेश करेंगे । हमारा धन्य भाग्य है कि दशम स्कंध में प्रभु श्रीकृष्णजी की दिव्य कथा का विस्तार से मंगलमय रसास्वादन हमने किया । दशम स्कंध सुंदर, सुखद और रस से भरा स्कंध है एवं प्रभु श्रीकृष्णजी की कथा होने के कारण श्रीमद भागवतजी का हृदय स्वरूप है ।
श्रीमद् भागवतमहापुराण के दशम स्कंध के उत्तरार्ध तक की इस यात्रा को प्रभु के पावन और पुनीत श्रीकमलचरणों में सादर अर्पण करता हूँ ।
जगतजननी मेरी सरस्वती माता का सत्य कथन है कि अगर पूरी पृथ्वीमाता कागज बन जाए एवं समुद्रदेव का पूरा जल स्याही बन जाए, तो भी वे बहुत अपर्याप्त होंगे मेरे प्रभु के ऐश्वर्य का लेशमात्र भी बखान करने के लिए - इस कथन के मद्देनजर हमारी क्या औकात कि हम किसी भी श्रीग्रंथ के किसी भी अध्याय, खंड में प्रभु की पूर्ण महिमा का बखान तो दूर, बखान करने का सोच भी पाएं ।
जो भी हो पाया प्रभु की कृपा के बल पर ही हो पाया है । प्रभु की कृपा के बल पर किया यह प्रयास मेरे (एक विवेकशून्य सेवक) द्वारा प्रभु को सादर अर्पण ।
प्रभु का,
चन्द्रशेखर कर्वा
प्रकाशन तिथि : 11 अगस्त 2017 |
951 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(एकादश स्कंध) |
अ 01
श्लो 06 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... उन्होंने अपनी सौंदर्य-माधुरी से सबके नेत्र अपनी और आकर्षित कर लिए थे । उनकी वाणी, उनके उपदेश परम मधुर, दिव्यातिदिव्य थे । .....
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन प्रभु श्री शुकदेवजी ने राजा श्री परीक्षितजी को कहे ।
प्रभु का सौंदर्य इतना अदभुत है कि सबके नेत्रों को अपनी ओर आकर्षित कर लेता है । जो एक बार प्रभु के रूप सौंदर्य का दर्शन कर लेता है वह अपनी नजर प्रभु से हटा ही नहीं पाता है । पूरी त्रिलोकी में प्रभु जैसी सौंदर्य माधुरी किसी के पास भी नहीं है । प्रभु का अलौकिक रूप सबको मुग्ध कर देने वाला है । प्रभु की वाणी और प्रभु के दिव्य उपदेश परम मधुर और दिव्यत्तम हैं । प्रभु की वाणी में दिव्य मिठास है । प्रभु के श्री अर्जुनजी को श्रीमद् भगवद् गीताजी में दिए उपदेश एवं श्री उद्धवजी को श्रीमद् भागवतजी में दिए उपदेश अति दिव्यत्तम हैं ।
प्रभु के रूप और प्रभु के उपदेश का स्मरण करने वाला जीव धन्य होता है ।
प्रकाशन तिथि : 12 अगस्त 2017 |
952 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(एकादश स्कंध) |
अ 01
श्लो 11 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
भगवान श्रीकृष्ण ने ऐसे परम मंगलमय और पुण्य-प्रापक कर्म किए, जिनका गान करने वाले लोगों के सारे कलिमल नष्ट हो जाते हैं । ....
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन प्रभु श्री शुकदेवजी ने राजा श्री परीक्षितजी को कहे ।
प्रभु श्री शुकदेवजी कहते हैं कि प्रभु ने अपने अवतार काल में इतने परम मंगलमय कर्म किए जिनका गान करने वाले जीव के सभी कलिकाल के दोष समाप्त हो जाते हैं । प्रभु द्वारा अवतार काल में किए गए एक-एक कर्म को जीव को स्मरण करना चाहिए और उनका चिंतन करना चाहिए । यह उस जीव के पाप नाश का अचूक साधन है । कलिकाल के पातक एवं पूर्व जन्मों के संचित पातक को नष्ट करने का इससे सरल साधन अन्य कोई नहीं है । इसलिए शास्त्रों ने प्रभु के मंगलमय कर्मों को वर्णित करने के लिए प्रभु कथा का प्रचलन जनमानस हेतु किया है । प्रभु की कथाएं हमें प्रभु की दिव्य श्रीलीलाओं और कर्मों का रसास्वादन कराती है ।
प्रभु की श्रीलीला कथा का नित्य सेवन जीवन में जीव को करते रहना चाहिए ।
प्रकाशन तिथि : 12 अगस्त 2017 |
953 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(एकादश स्कंध) |
अ 02
श्लो 13 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
जिनके गुण, लीला और नाम आदि का श्रवण तथा कीर्तन पतितों को भी पावन करने वाला है, ....
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन देवर्षि प्रभु श्री नारदजी ने श्री वसुदेवजी को कहे ।
प्रभु के सद्गुण, प्रभु की श्रीलीला और प्रभु के दिव्य नाम का श्रवण और कीर्तन पतितों को भी पावन करने वाला है । प्रभु को पतितपावन कहा गया है । जो जीव अपने कर्मों से पतित हो गया है वह भी प्रभु का सानिध्य पाने पर पावन हो जाता है । प्रभु के सद्गुण, श्रीलीला और नाम कानों द्वारा सुनने से, वाणी द्वारा उच्चारण करने से और हृदय से स्मरण करने से जीव उसी समय पवित्र हो जाता है । प्रभु के सद्गुण, श्रीलीला और नाम के श्रवण, उच्चारण और स्मरण में इतनी शक्ति है कि वह कैसे भी पतित जीव को पावन कर देती है ।
इसलिए जीव को चाहिए कि प्रभु के सद्गुण, श्रीलीला और नाम का श्रवण, उच्चारण और स्मरण जीवन में करे ।
प्रकाशन तिथि : 13 अगस्त 2017 |
954 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(एकादश स्कंध) |
अ 02
श्लो 17 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
..... यह भारतवर्ष भी एक अलौकिक स्थान है ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन देवर्षि प्रभु श्री नारदजी ने श्री वसुदेवजी को कहे ।
श्रीमद् भागवतजी के उपरोक्त श्लोक में भारतवर्ष की महिमा बताई गई है । श्लोक में कहा गया है कि भारतवर्ष एक अलौकिक स्थान है । भारतवर्ष के शास्त्र, ऋषि, संत और भक्तों के कारण भारतवर्ष सदा ही धर्मपरायण और आध्यात्मिक दृष्टि से विश्वगुरु रहा है । प्रभु ने जब भी अवतार ग्रहण किया है भारतवर्ष को ही इसके लिए चुना है । भारतवर्ष की महिमा देवतागण भी गाते हैं और भारतवर्ष में मनुष्य जन्म पाने के लिए लालायित रहते हैं । भारतवर्ष के तीर्थ और देवालय, भारतवर्ष की देव नदियां सचमुच इस भूमि को अलौकिक बनाते हैं । भारतवर्ष की संस्कृति और भारतवर्ष की विरासत अतुलनीय है ।
मानव का तन पाना और भारतवर्ष में जन्म पाना सचमुच बड़े पुण्यों के फलस्वरूप होता है ।
प्रकाशन तिथि : 13 अगस्त 2017 |
955 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(एकादश स्कंध) |
अ 02
श्लो 29 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
जीवों के लिए ये मनुष्य-शरीर का प्राप्त होना दुर्लभ है । ....
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन राजा श्री निमिजी ने नौ योगेश्वरजी को कहे ।
जीवों के लिए मनुष्य का शरीर प्राप्त करना अति दुर्लभ है । कितनी योनियों में भटकने के बाद मानव के रूप में जन्म मिलता है । शास्त्र कहते हैं कि चौरासी लाख योनियों के पश्चात मनुष्य जन्म मिलता है । उन चौरासी लाख योनियों में जलचर, नभचर, थलचर और वनस्पति बनने के बाद मनुष्य जीवन मिलता है । बाकी सभी योनियां भोग योनियां हैं, केवल मनुष्य योनि ही कर्म योनि है । जीव के सभी योनियों में भटकने के बाद प्रभु कृपा करते हैं और वह जीव मनुष्य जन्म पाता है । इसलिए मनुष्य जन्म का सदुपयोग प्रभु प्राप्ति के लिए करना चाहिए ।
मनुष्य का जन्म पाकर भक्ति का साधन करके प्रभु प्राप्ति के लिए दृढ़ संकल्प होकर प्रयासरत होना चाहिए ।
प्रकाशन तिथि : 15 अगस्त 2017 |
956 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(एकादश स्कंध) |
अ 02
श्लो 31 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... भगवान श्रीकृष्ण प्रसन्न होते हैं और उन धर्मों का पालन करने वाले शरणागत भक्तों को अपने आप तक का दान कर डालते हैं ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन राजा श्री निमिजी ने नौ योगेश्वरजी को कहे ।
जब हम भागवत् धर्म का पालन करते हैं और प्रभु के शरणागत होकर प्रभु की भक्ति करते हैं तो ऐसे भक्तों को प्रभु अपने आप तक का दान कर डालते हैं । भागवत् धर्म का पालन करने वाला प्रभु को अत्यधिक प्रिय होता है । भक्ति करके प्रभु की शरणागति लेने वाले भक्त पर प्रभु स्वयं अपने आपको न्यौछावर कर देते हैं । जब हम शरणागत भक्तों का चरित्र देखते हैं तो पता चलता है कि जैसे ही भक्त अपने आपको प्रभु को समर्पित करता है प्रभु भी उन पर न्यौछावर हो जाते हैं । भक्त के न्यौछावर होते ही प्रभु भी न्यौछावर हो जाते हैं । प्रभु ऐसे भक्तों के लिए अपना प्रभुत्व भुलाकर उन्हें अपने आपका भी दान कर देते हैं ।
इसलिए जीव को चाहिए कि वह भागवत् धर्म का पालन करे और प्रभु की शरण में जाए ।
प्रकाशन तिथि : 15 अगस्त 2017 |
957 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(एकादश स्कंध) |
अ 02
श्लो 33 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
राजन ! भक्तजनों के हृदय से कभी दूर न होने वाले अच्युत भगवान के चरणों की नित्य निरंतर उपासना ही इस संसार में परम कल्याण, आत्यंतिक क्षेम है और सर्वथा भयशून्य है, ऐसा मेरा निश्चित मत है । .....
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन नौ योगेश्वरजी में से श्री कविजी ने राजा श्री निमिजी को कहे ।
प्रभु भक्तों के हृदय से कभी दूर नहीं होते । प्रभु का वास सदैव भक्तों के हृदय में ही होता है । प्रभु के श्रीकमलचरणों की नित्य उपासना करना ही इस संसार में परम कल्याणकारी मार्ग है । प्रभु के श्रीकमलचरणों की उपासना के बिना जीव का कल्याण संभव ही नहीं है । इसलिए जो जीव अपना सर्वदा कल्याण चाहता है उसे नित्य निरंतर प्रभु के श्रीकमलचरणों की उपासना करनी चाहिए । यह भयशून्य होने का भी साधन है । जीव संसार में मृत्यु एवं अन्य भयों से ग्रस्त रहता है । उन सभी भयों से मुक्त होने का केवल एक ही मार्ग है जो कि प्रभु के श्रीकमलचरणों में शरणागत होना है ।
इसलिए जीव को प्रभु के श्रीकमलचरणों की शरणागति लेनी चाहिए ।
प्रकाशन तिथि : 16 अगस्त 2017 |
958 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(एकादश स्कंध) |
अ 02
श्लो 36 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... वह सब परमपुरुष भगवान नारायण के लिए ही है, इस भाव से उन्हें समर्पण कर दे ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन नौ योगेश्वरजी में से श्री कविजी ने राजा श्री निमिजी को कहे ।
श्री कविजी कहते हैं कि भागवत् धर्म का पालन करने वालों के लिए यह नियम नहीं है कि वह एक विशेष प्रकार का ही कर्म करें । हम अपने शरीर से, वाणी से, मन से, इंद्रियों से और बुद्धि से जो-जो भी कर्म करें वह सब हम प्रभु के लिए ही कर रहे हैं, इस भाव से करें । अपने शरीर से, वाणी से, मन से, इंद्रियों से और बुद्धि से किया प्रत्येक कर्म हम प्रभु को समर्पित कर दें । यह सरल-से-सरल और सीधा-सा भागवत् धर्म है । प्रभु को प्रसन्न करने के लिए जीव को कितने सरल दो कार्य करने हैं । पहला, जो भी किया वह प्रभु के लिए किया और दूसरा, जो भी किया उसे प्रभु को समर्पित कर दिया ।
जीव को भागवत् धर्म का पालन करते हुए अपने प्रत्येक कर्म प्रभु के लिए और प्रभु को समर्पित करके करना चाहिए ।
प्रकाशन तिथि : 16 अगस्त 2017 |
959 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(एकादश स्कंध) |
अ 02
श्लो 39 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
संसार में भगवान के जन्म की और लीला की बहुत-सी मंगलमयी कथाएं प्रसिद्ध हैं । उनको सुनते रहना चाहिए । उन गुणों और लीलाओं का स्मरण दिलाने वाले भगवान के बहुत-से नाम भी प्रसिद्ध हैं । लाज-संकोच छोड़कर उनका गान करते रहना चाहिए । ....
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन नौ योगेश्वरजी में से श्री कविजी ने राजा श्री निमिजी को कहे ।
जगत में प्रभु के अनेक अवतार हुए हैं । प्रत्येक अवतार में प्रभु के मंगल जन्म की कथा और प्रभु की बहुत सारी मंगलमय श्रीलीला कथाएं प्रसिद्ध हैं । जीव को चाहिए कि वह नित्य निरंतर उनका रसपान करें । संसार के क्लेशों से मुक्त होने का एवं मोक्ष को पाने का यह अचूक साधन है । प्रभु के सद्गुण और श्रीलीला का स्मरण नित्य निरंतर करते रहना चाहिए । प्रभु के अनेक अवतारों में अनेक नाम प्रसिद्ध हुए हैं । जीव को प्रभु के उन मंगलमय नामों का गान करना चाहिए । प्रभु की सारी शक्ति प्रभु के नाम में समाई हुई है । कलियुग में नाम का साधन सबसे श्रेष्ठ साधन माना गया है ।
जीव को चाहिए कि प्रभु की श्रीलीलाओं का नित्य रसपान करें और प्रभु के नाम का नित्य उच्चारण करें । जो इस प्रकार का व्रत लेता है उसके हृदय में परम प्रियतम प्रभु का प्रेम अंकुरित हो जाता है ।
प्रकाशन तिथि : 17 अगस्त 2017 |
960 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(एकादश स्कंध) |
अ 02
श्लो 42 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
..... वैसे ही जो मनुष्य भगवान की शरण लेकर उनका भजन करने लगता है, उसे भजन के प्रत्येक क्षण में भगवान के प्रति प्रेम, अपने प्रेमास्पद प्रभु के स्वरूप का अनुभव और उनके अतिरिक्त अन्य वस्तुओं में वैराग्य, इन तीनों की एक साथ ही प्राप्ति होती जाती है ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन नौ योगेश्वरजी में से श्री कविजी ने राजा श्री निमिजी को कहे ।
जो जीव प्रभु की शरण लेकर प्रभु की भक्ति करने लगता है उसको तीन चीजें एक साथ ही प्राप्त हो जाती है । प्रभु की शरण लेकर भक्ति करने वाले को सबसे पहले प्रत्येक क्षण प्रभु प्रेम की प्राप्ति होती है । वह जीव क्षण-क्षण प्रभु के प्रेम में मग्न रहने लगता है । दूसरी बात जो प्रभु की शरण लेकर प्रभु की भक्ति करने वाले के साथ होती है वह यह कि वह प्रत्येक क्षण अपने प्रेमास्पद प्रभु के स्वरूप का अनुभव करने लगता है । जीव को प्रभु का अनुभव करवाने का सामर्थ्य सिर्फ भक्ति में ही है । तीसरी बात जो प्रभु की शरण लेकर प्रभु की भक्ति करने वाले के साथ होती है वह यह कि उस जीव को प्रभु के अलावा अन्य सभी चीजों से वैराग्य हो जाता है ।
इसलिए जीव को प्रभु की शरण लेकर प्रभु की भक्ति करने में अपना जीवन लगाना चाहिए ।
प्रकाशन तिथि : 17 अगस्त 2017 |