क्रम संख्या |
श्रीग्रंथ |
अध्याय -
श्लोक संख्या |
भाव के दर्शन / प्रेरणापुंज |
913 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 85
श्लो 58 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... उनके ऐसे-ऐसे अदभुत चरित्र इतने हैं कि किसी प्रकार उनका पार नहीं पाया जा सकता ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन प्रभु श्री शुकदेवजी ने राजा श्री परीक्षितजी को कहे ।
प्रभु के इतने अदभुत श्रीचरित्र हैं जिनका किसी भी प्रकार से पार नहीं पाया जा सकता । प्रभु के श्रीचरित्र सुनने से हमारे पातक और अमंगल का नाश होता है और हमारे पुण्यों की वृद्धि होती है । जीव पर अनुकंपा करने के लिए प्रभु ने विभिन्न अवतार ग्रहण किए और प्रत्येक अवतार में दिव्य श्रीलीलाएं की । इन लीला चरित्रों का मुख्य उद्देश्य जीव का उद्धार करना है । प्रभु के श्रीलीला चरित्रों के श्रवण, कथन, मनन और चिंतन के बिना जीव का उद्धार संभव नहीं है । हर अवतार में प्रभु ने दिव्य श्रीलीलाएं की इसलिए उन सबका पार पाना किसी के लिए भी संभव नहीं है ।
इसलिए जीव को चाहिए कि वह अपने उद्धार के लिए प्रभु के दिव्य और अदभुत श्रीचरित्रों का श्रवण, मनन और चिंतन करें ।
प्रकाशन तिथि : 19 जुलाई 2017 |
914 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 85
श्लो 59 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... उसकी संपूर्ण चित्तवृत्ति भगवान में लग जाती है और वह उन्हीं के परम कल्याणस्वरूप धाम को प्राप्त होता है ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन श्री सूतजी ने श्री शौनकादि ऋषियों को कहे ।
प्रभु का श्रीचरित्र अमृतमयी और अमर है और जगत के पाप और ताप को मिटाने वाला है । प्रभु का श्रीचरित्र भक्तजनों में आनंदसुधा प्रवाहित करने वाला है । जो जीव प्रभु के श्रीचरित्रों का श्रद्धा से श्रवण करता है उसका संपूर्ण चित्त प्रभु में लग जाता है और वह प्रभु के परम धाम को प्राप्त करता है । जीवन में प्रभु की श्रीलीला चरित्र के श्रवण, मनन और चिंतन की आदत जीव को बनानी चाहिए । यह उस जीव के मंगल का सूचक है और उसके अमंगलों को नष्ट करने वाला उपक्रम है । ऋषियों ने, संतों ने और भक्तों ने सदैव प्रभु के श्रीचरित्रों का रसास्वादन किया है ।
जीव तभी संसार में रहकर परमानंद का अनुभव कर सकता है जब वह प्रभु के दिव्य श्रीचरित्रों का श्रवण, मनन और चिंतन करेगा ।
प्रकाशन तिथि : 19 जुलाई 2017 |
915 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 86
श्लो 21 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... स्थान-स्थान पर मनुष्य और देवता भगवान की उस कीर्ति का गान करके सुनाते, जो समस्त दिशाओं को उज्जवल बनाने वाली एवं समस्त अशुभों का विनाश करने वाली है ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन प्रभु श्री शुकदेवजी ने राजा श्री परीक्षितजी को कहे ।
प्रभु एक बार श्री मिथिलाजी के एक गृहस्थ ब्राह्मण और वहाँ के राजा जो दोनों प्रभु के भक्त थे उनसे मिलने श्रीद्वारकापुरी से ऋषियों के साथ श्री मिथिलाजी के लिए प्रस्थान किया । रास्ते में जो जो नगर पड़े वहाँ के नर नारियों ने प्रभु का दिव्य स्वागत किया और प्रभु की पूजा अर्चना की । प्रभु की दृष्टि पड़ते ही सभी नर नारियों का परम कल्याण हो गया । स्थान-स्थान पर मनुष्य और देवता प्रभु की कीर्ति का गान करने लगे जो समस्त दिशाओं को उज्जवल बनाने वाली एवं समस्त अशुभों का विनाश करने वाली थी । प्रभु की कीर्ति का गान सभी शास्त्रों, ऋषियों, संतों और भक्तों ने किया है । प्रभु की कीर्ति का गान जीव को पवित्र करने वाला सबसे उत्तम साधन है ।
इसलिए जीव को चाहिए कि अपने जीवन में नित्य प्रभु की कीर्ति का गान करके अपना जीवन सफल करे ।
प्रकाशन तिथि : 21 जुलाई 2017 |
916 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 86
श्लो 32 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
भगवन ! आपके वचन हैं कि मेरा अनन्य प्रेमी भक्त मुझे अपने स्वरूप बलरामजी, पत्नी लक्ष्मी और पुत्र ब्रह्मा से भी बढ़कर प्रिय है । ....
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन श्रीमिथिला नरेश ने प्रभु से कहे ।
जब प्रभु उन्हें दर्शन देने श्रीद्वारकापुरी से श्री मिथिलाजी पधारे तो प्रेम भक्ति से उनका हृदय भर आया । नेत्रों से आंसू बह निकले । उन्होंने अपने पूज्यतम प्रभु को प्रणाम किया और श्रीकमलचरणों को पखारा । फिर कुटुंब समेत उस लोकपावन जल को अपने सिर पर धारण किया । फिर प्रभु का विभिन्न पूजन सामग्री से पूजन किया । फिर प्रभु को प्रेमपूर्वक भोजन करवाया और प्रभु के श्रीकमलचरणों को अपनी गोद में लेकर बैठ गए । उन्होंने प्रभु की स्तुति की और कहा कि यह प्रभु के श्रीवचन है कि प्रभु को अपने भक्तों से प्रिय अन्य कोई भी नहीं है ।
प्रभु अपने भक्तों को बड़ा मान देते हैं और उनसे प्रिय किसी को भी नहीं मानते ।
प्रकाशन तिथि : 21 जुलाई 2017 |
917 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 86
श्लो 33 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
प्रभो ! जिन्होंने जगत की समस्त वस्तुओं का एवं शरीर आदि का भी मन से परित्याग कर दिया है, उन परम शांत मुनियों को आप अपने तक को भी दे डालते हैं ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन श्रीमिथिला नरेश ने प्रभु से कहे ।
जिन ऋषियों, संतों और भक्तों ने जगत की समस्त वस्तुओं का, यहाँ तक कि अपने शरीर आदि का भी मन से परित्याग कर दिया उन्हें प्रभु स्वयं अपने आपका भी दान दे देते हैं । जगत की समस्त वस्तुओं और कामनाओं का त्याग करना बहुत कठिन है । परंतु जो प्रभु के लिए ऐसा कर पाते हैं प्रभु उन्हें अपने आपको भी प्रदान कर देते हैं । वैसे ही केवल भक्ति करने के लिए एक साधन मानते हुए शरीर का पोषण करना तो ठीक है पर जो शरीर का लाड़ लड़ाने से अपने मन को हटा लेते हैं ऐसे जीवों पर प्रभु प्रसन्न होकर उन्हें अपने स्वयं का दान दे देते हैं । प्रभु इतने बड़े दानी हैं कि अपने भक्तों को स्वयं तक भी दे डालते हैं ।
इसलिए जीव को चाहिए कि संसार में न उलझकर प्रभु को भक्ति द्वारा प्राप्त करने का प्रयास करें ।
प्रकाशन तिथि : 22 जुलाई 2017 |
918 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 86
श्लो 46 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
जो लोग सर्वदा आपकी लीला कथा का श्रवण-कीर्तन तथा आपकी प्रतिमाओं का अर्चन-वंदन करते हैं और आपस में आपकी ही चर्चा करते हैं, उनका हृदय शुद्ध हो जाता है और आप उसमें प्रकाशित हो जाते हैं ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन श्री मिथिलाजी के श्री श्रुतदेवजी ब्राह्मण ने प्रभु से कहे ।
जो लोग सर्वदा प्रभु की श्रीलीलाओं और कथाओं का श्रवण और उनका कीर्तन करते हैं वे प्रभु के प्रिय होते हैं । जो लोग प्रभु की प्रतिमाओं का अर्चन, वंदन और पूजन करते हैं उनका हृदय पवित्र हो जाता है । सबसे ध्यान देने योग्य बात जो श्लोक में कही गई है वह यह कि जो लोग आपस में प्रभु की चर्चा करते हैं प्रभु उनके भीतर प्रकाशित हो जाते हैं । हम संसार की व्यर्थ बातों की चर्चा में अपना जीवन व्यतीत कर देते हैं पर प्रभु के ऐश्वर्य, करुणा, रूप माधुर्य, स्वभाव और प्रभाव की चर्चा नहीं करते । ऋषि, संत और भक्तजन ऐसा किया करते हैं । वे जब भी आपस में मिलते हैं उनकी चर्चा का विषय ही प्रभु होते हैं ।
जीव को भी संसार की व्यर्थ चर्चा त्यागकर प्रभु की ही चर्चा में रुचि लेनी चाहिए तभी उसका उद्धार संभव है ।
प्रकाशन तिथि : 22 जुलाई 2017 |
919 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 86
श्लो 49 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... नेत्रों के द्वारा आपका दर्शन होने तक ही जीवों के क्लेश रहते हैं । आपके दर्शन में ही समस्त क्लेशों की परिसमाप्ति है ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन श्रीमिथिला के श्री श्रुतदेवजी ब्राह्मण ने प्रभु से कहे ।
जब तक हमारे नेत्र प्रभु के दर्शन नहीं करते तब तक जीवन में क्लेश रहता है । इसलिए शास्त्रों ने रोजाना प्रभु प्रतिमा के दर्शन का विधान बनाया है । प्रभु के स्वरूप का दर्शन करने से हमारे जीवन के दुःख और क्लेश का नाश होता है । प्रभु के रोजाना दर्शन करने का नियम जीवन में बनाना चाहिए । यह जीवन के क्लेश नाश करने का अचूक साधन है । शास्त्र कहते हैं कि भाव से अगर रोजाना प्रभु के विग्रह के दर्शन किए जाएं तो प्रभु के दर्शन मात्र से हमारे सभी क्लेशों की समाप्ति सुनिश्चित हो जाती है । इसलिए घर के सभी सदस्यों को और खासकर बच्चों को घर की ठाकुरबाड़ी में या फिर घर के पास मंदिर में प्रभु विग्रह के दर्शन करने का नियम लेना चाहिए ।
प्रभु के दर्शन मात्र हमारे दुःख और क्लेश का नाश करने में सर्वदा समर्थ है ।
प्रकाशन तिथि : 23 जुलाई 2017 |
920 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 86
श्लो 53 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... यदि वह तपस्या, विद्या, संतोष और मेरी उपासना, मेरी भक्ति से युक्त हो तब तो कहना की क्या है ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन प्रभु ने श्री श्रुतदेवजी ब्राह्मण को कहे ।
प्रभु कहते हैं कि जो जीव तप करता है और जो जीव आध्यात्म विद्या से युक्त है और जो संतोषी है एवं जो प्रभु की उपासना करता है वह सभी जीवों में श्रेष्ठ है । प्रभु कहते हैं कि जो जीव प्रभु की भक्ति से युक्त है उसके बारे में तो कुछ कहने की आवश्यकता ही नहीं है क्योंकि वह तो सर्वश्रेष्ठ है ही । आध्यात्म विद्या को प्रभु ने सबसे बड़ा माना है । जीवन में संतोषी होने को प्रभु ने बड़ा ऊँचा स्थान दिया है । प्रभु की उपासना करने वाले को प्रभु ने सौभाग्यशाली कहा है । पर सबसे ज्यादा प्रभु ने भक्ति की महिमा अपने श्रीमुख से बताई है । भक्ति सर्वोच्च स्थान रखती है और सर्वोपरि है ।
इसलिए जीव को चाहिए कि अपने जीवन को भक्ति से युक्त करे ।
प्रकाशन तिथि : 23 जुलाई 2017 |
921 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 86
श्लो 59 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
प्रिय परीक्षित ! जैसे भक्त भगवान की भक्ति करते हैं, वैसे ही भगवान भी भक्तों की भक्ति करते हैं । ....
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन प्रभु श्री शुकदेवजी ने राजा श्री परीक्षितजी को कहे ।
यह मेरा एक प्रिय श्लोक है क्योंकि इसमें भक्ति की महिमा बताई गई है । प्रभु श्री शुकदेवजी कहते हैं कि जैसे भक्त भगवान की भक्ति करके कृतार्थ होता है वैसे ही प्रभु भी भक्त की भक्ति करके प्रसन्न होते हैं । भक्त के लिए भगवान ही सब कुछ होते हैं और भगवान के लिए भी उनके भक्त ही सब कुछ होता है । भक्त एक कदम प्रभु की तरफ बढ़ता है तो प्रभु दस कदम भक्त की तरफ बढ़ते हैं । प्रभु भक्त को बड़ा मान और आदर देते हैं । उनके लिए उनका भक्त ही सर्वोपरि स्थान रखता है ।
इसलिए अगर जीवन में प्रभु का प्रिय बनना है तो जीवन में प्रभु की भक्ति सदैव करनी चाहिए ।
प्रकाशन तिथि : 26 जुलाई 2017 |
922 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 87
श्लो 13 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... तब प्रलय के अंत में श्रुतियां उनका प्रतिपादन करने वाले वचनों से उन्हें इस प्रकार जगाती हैं ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन ऋषिकुमार सनंदनजी ने अपने तीनों भाईयों को कहे ।
प्रातःकाल होने पर किसी राज्य के सम्राट को जगाने के लिए कुछ लोग सम्राट के पास आते हैं और सम्राट के पराक्रम और सुयश का गान करके उसे जगाते हैं । वैसे ही जब प्रभु जगत की समस्त शक्तियों को अपने में लीन कर सोए रहते हैं तब प्रलय के अंत में श्रुतियां प्रभु का प्रतिपादन करने वाले वचन कह कर प्रभु को जगाती है । श्रुतियां प्रभु की कीर्ति का गान करती है । वे प्रभु से कहतीं है कि आप अजीत हैं और सर्वश्रेष्ठ हैं । वे प्रभु से कहतीं हैं कि आप समस्त ऐश्वर्यों से पूर्ण हैं एवं मायापति हैं । जगत में जितनी भी क्रियाएँ और शक्तियां हैं उन सबके कर्ता प्रभु ही हैं । प्रभु का कीर्ति गान
करते-करते श्रुतियां कहतीं हैं कि हम आपकी कीर्ति का वर्णन करने में पूर्णतः असमर्थ हैं ।
प्रभु की कीर्ति का वर्णन कोई भी नहीं कर सकता और श्रुतियां भी प्रभु की कीर्ति का वर्णन करते-करते नेति-नेति कहकर शांत हो जातीं हैं ।
प्रकाशन तिथि : 26 जुलाई 2017 |
923 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 87
श्लो 16 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... इसलिए विचारशील पुरुष आपकी लीला कथा के अमृत सागर में गोते लगाते रहते हैं और इस प्रकार अपने सारे पाप-ताप को धो-बहा देते हैं । क्यों न हो, आपकी लीला कथा सभी जीवों के मायामल को नष्ट करने वाली जो है । ....
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन श्रुतियों ने प्रभु की स्तुति करते हुए कहे ।
श्रुतियां कहतीं हैं कि जो विचारशील जीव प्रभु की श्रीलीला कथा के अमृत सागर में डूब जाते हैं वे अपने सारे पाप और ताप धो डालते हैं । प्रभु की श्रीलीला कथा जीवों को माया से मुक्त कराने वाली है । प्रभु की श्रीलीला कथा का श्रवण, मनन और चिंतन जीव को सभी क्लेशों से मुक्त करता है । जो जीव प्रभु की श्रीलीला कथा सुनते हैं वे प्रभु के स्वभाव और प्रभाव को जानने लगते हैं और प्रभु से प्रेम करने लगते हैं । प्रभु की श्रीलीला कथा का श्रवण हमारे भीतर प्रभु के लिए भक्ति का संचार करता है ।
इसलिए ऋषियों, संतों और भक्तों ने सदैव प्रभु की श्रीलीला कथा का श्रवण, मनन और चिंतन किया है । जीव को भी चाहिए कि वह भी ऐसा ही करे ।
प्रकाशन तिथि : 27 जुलाई 2017 |
924 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 87
श्लो 17 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
भगवन ! प्राणधारियों के जीवन की सफलता इसी में है कि वह आपका भजन-सेवन करें, आपकी आज्ञा का पालन करें ....
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन श्रुतियों ने प्रभु की स्तुति करते हुए कहे ।
श्रुतियां कहतीं हैं कि प्राणधारी जीवों के जीवन की सफलता इसी में है कि वे प्रभु का भजन और प्रभु की सेवा करे । प्राणधारी जीवों का कर्तव्य है कि वे प्रभु की आज्ञा का पालन करें । अगर वे ऐसा करते हैं तभी उनका जीवन सार्थक है अन्यथा उनका जीवन ही व्यर्थ है । प्रभु का भजन करना और प्रभु की सेवा करना जीवन का सबसे बड़ा लक्ष्य होना चाहिए । श्रुतियों से बड़ा प्रमाण इस जगत में कुछ भी नहीं है और यहाँ पर श्रुतियों ने कहा है कि प्रभु का भजन और प्रभु की सेवा करने वाले का ही जीवन सार्थक है ।
इसलिए जीव को चाहिए कि प्रभु के भजन और प्रभु की सेवा का क्रम अपने दैनिक जीवन में अवश्य बनाए और ऐसा करके अपना मानव जीवन सफल करे ।
प्रकाशन तिथि : 27 जुलाई 2017 |
925 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 87
श्लो 19 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
भगवन ! आपने ही देवता, मनुष्य और पशु-पक्षी आदि योनियां बनाई हैं । सदा-सर्वत्र सब रूपों में आप ही हैं ....
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन श्रुतियों ने प्रभु की स्तुति करते हुए कहे ।
श्रुतियां कहतीं हैं कि प्रभु ने ही देवता, मनुष्य, पशु, पक्षी एवं अन्य बहुत सारी योनियां बनाई है । उन सभी में सदा सर्वत्र सब रूपों में प्रभु का ही वास है । शास्त्र कहते हैं कि ब्रह्माण्ड में प्रभु के अलावा कुछ भी नहीं है । संसार के निर्माण से पहले भी एकमात्र प्रभु थे, संसार में भी केवल एकमात्र प्रभु हैं और संसार विलीन होने पर भी एकमात्र प्रभु ही रहेंगे । श्रीमद् भागवतजी, श्रीमद् गीताजी एवं श्री रामचरितमानसजी इस बात का प्रतिपादन करते हैं कि संसार में सदा ही, सर्वत्र ही एवं सभी रूपों में केवल और केवल प्रभु का ही वास है ।
इसलिए जीव को चाहिए कि सारे जगत को प्रभुमय देखे ।
प्रकाशन तिथि : 28 जुलाई 2017 |
926 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 87
श्लो 20 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... इसीसे बुद्धिमान पुरुष जीव के वास्तविक स्वरूप पर विचार करके परम विश्वास के साथ आपके चरणकमलों की उपासना करते हैं । ....
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन श्रुतियों ने प्रभु की स्तुति करते हुए कहे ।
श्रुतियां कहतीं हैं कि बुद्धिमान पुरुष अपने स्वरूप का विचार करके परम श्रद्धा के साथ प्रभु के श्रीकमलचरणों की उपासना करते हैं क्योंकि प्रभु के श्रीकमलचरण ही मोक्ष स्वरूप हैं । जीव प्रभु का अंश है इसलिए वह प्रभु के श्रीकमलचरणों की सेवा करके प्रभु की माया द्वारा निर्मित बंधन से मुक्त होने के लिए प्रभु से प्रार्थना करता है । प्रभु के श्रीकमलचरणों की उपासना के बिना जीव की कोई गति नहीं है । इसलिए जो जीव अपना उद्धार चाहता है वह प्रभु के श्रीकमलचरणों की उपासना करता है । प्रभु के श्रीकमलचरणों की उपासना हमें जीवन में परमानंद की अनुभूति करवाती है और अंत में मोक्ष प्रदान करती है ।
इसलिए जीव को चाहिए कि प्रभु के श्रीकमलचरणों की सेवा का व्रत जीवन में ले ।
प्रकाशन तिथि : 28 जुलाई 2017 |
927 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 87
श्लो 21 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... कुछ प्रेमी भक्त तो ऐसे होते हैं, जो आपकी लीला-कथाओं को छोड़कर मोक्ष की भी अभिलाषा नहीं करते, स्वर्ग आदि की तो बात ही क्या है । ....
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन श्रुतियों ने प्रभु की स्तुति करते हुए कहे ।
प्रभु विभिन्न अवतार ग्रहण करते हैं और उनमें ऐसी दिव्य श्रीलीलाएं करते हैं जो अमृत के महासागर से भी मधुर होती है । जो लोग प्रभु के लीलामृत का सेवन करते हैं वे परमानंद में मग्न हो जाते हैं । प्रभु की श्रीलीलाएं इतनी मनोहर होती है कि प्रभु के सच्चे प्रेमी भक्त उनको छोड़कर मोक्ष की भी अभिलाषा नहीं रखते, फिर स्वर्ग की तो बात ही क्या है । वे प्रभु की श्रीलीला कथाओं में इतना सुख मानते हैं कि मोक्ष का भी त्याग कर देते हैं । प्रभु की दिव्य श्रीलीला कथा वास्तव में परमानंद प्रदान करने वाली और हमारे पापों और दुःखों को हरने वाली होती हैं । इसलिए ऋषि, संत और भक्त सदा प्रभु की कथा का श्रवण, मनन और चिंतन करते हैं ।
जीव को भी चाहिए कि प्रभु की कथा का रसास्वादन जीवन में करे ।
प्रकाशन तिथि : 29 जुलाई 2017 |
928 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 87
श्लो 22 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... आप जीव के सच्चे हितैषी, प्रियतम और आत्मा ही हैं और सदा-सर्वदा जीव को अपनाने के लिए तैयार भी रहते हैं । ....
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन श्रुतियों ने प्रभु की स्तुति करते हुए कहे ।
प्रभु जीव के सच्चे हितैषी, प्रियतम और आत्मा हैं । प्रभु सदा सर्वदा जीव को अपनाने के लिए तैयार रहते हैं । फिर भी जो जीव प्रभु की उपासना नहीं करते और प्रभु में नहीं रमते वे अधोगति में पहुँचते हैं । उन्हें अपनी दूषित वासनाओं के कारण बुरे-बुरे शरीर ग्रहण करने पड़ते हैं और जन्म-मृत्यु के अत्यंत भयावह चक्र में उन्हें भटकना पड़ता है । इसलिए हमें प्रभु की उपासना और भक्ति जीवन में करनी चाहिए जिससे प्रभु हमें अपना लें और हम इस भयावह संसार चक्र से सदैव के लिए मुक्त हो सकें ।
प्रभु ही जगत में हमारे सच्चे हितैषी और प्रियतम हैं इसलिए प्रभु की भक्ति करके प्रभु को जीवन में अपनाना ही श्रेयस्कर है ।
प्रकाशन तिथि : 29 जुलाई 2017 |
929 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 87
श्लो 27 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
भगवन ! जो लोग यह समझते हैं कि आप समस्त प्राणियों और पदार्थों के अधिष्ठान हैं, सबके आधार हैं वे सर्वात्मभाव से आपका भजन-सेवन करते हैं ....
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन श्रुतियों ने प्रभु की स्तुति करते हुए कहे ।
श्रुतियां कहतीं हैं कि विश्व के समस्त प्राणियों और पदार्थों के मूल प्रभु हैं । समस्त प्राणियों और पदार्थों के आधार भी प्रभु ही हैं । इसलिए जो जीव ऐसा समझते और मानते हैं, वे प्रभु का भजन और सेवन करते हैं । जगत के कारणस्वरूप प्रभु हैं इसलिए प्रभु का भजन और सेवन करना जीव का परम कर्तव्य है । प्रभु को अपना सब कुछ मानकर प्रभु का भजन और सेवा करने वाला जीव कभी भी अधोगति को प्राप्त नहीं होता अपितु परमानंद को प्राप्त करता है ।
इसलिए जीव को चाहिए कि प्रभु का भजन और प्रभु की सेवा करके अपना मानव जीवन सफल करे ।
प्रकाशन तिथि : 30 जुलाई 2017 |
930 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 87
श्लो 32 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... परंतु बुद्धिमान पुरुष इस भ्रम को समझ लेते हैं और संपूर्ण भक्तिभाव से आपकी शरण ग्रहण करते हैं, क्योंकि आप जन्म-मृत्यु के चक्कर से छुड़ाने वाले हैं । ....
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन श्रुतियों ने प्रभु की स्तुति करते हुए कहे ।
श्रुतियां कहतीं हैं कि संसार के सभी जीव प्रभु की माया के भ्रम में भटक रहे हैं । वे प्रभु के अंश हैं पर अपने आपको प्रभु से अलग मानकर
जन्म-मृत्यु के चक्कर काट रहे हैं । परंतु जो बुद्धिमान पुरुष इस भ्रम को समझ लेते हैं वे संपूर्ण भक्ति भाव से प्रभु की शरण ग्रहण करते हैं । प्रभु की शरणागति ही वह एकमात्र साधन है जो जीव को जन्म-मृत्यु के चक्कर से मुक्त कराने वाली है । इसलिए जीव का परम कल्याण इसी में है कि वह प्रभु की भक्ति करे और प्रभु की शरणागति ग्रहण करे । प्रभु के लिए भक्ति भाव रखने वाला जीव ही प्रभु की शरणागति स्वीकार करता है । प्रभु की शरणागति स्वीकार करने वाला जीव ही जन्म-मृत्यु के भयावह चक्कर से मुक्त हो सकता है ।
इसलिए जीव को अपने अंदर प्रभु के लिए भक्ति का संचार करके प्रभु की शरणागति ग्रहण करनी चाहिए ।
प्रकाशन तिथि : 30 जुलाई 2017 |
931 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 87
श्लो 32 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... जो आपके शरणागत भक्त हैं, उन्हें भला, जन्म-मृत्यु रूप संसार का भय कैसे हो सकता है ?
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन श्रुतियों ने प्रभु की स्तुति करते हुए कहे ।
श्रुतियां कहतीं हैं कि जो प्रभु के शरणागत भक्त हैं उन्हें जन्म मृत्यु रूपी सांसारिक भय किसी भी प्रकार से भयभीत नहीं कर सकता । प्रभु के शरणागत भक्तों को जन्म मृत्यु रूपी सांसारिक भय होता ही नहीं है । जन्म मृत्यु रूपी सांसारिक भय हमें तब तक ही भयभीत करता है जब तक हम प्रभु शरण में नहीं जाते । प्रभु के शरणागत होते ही यह भय समाप्त हो जाता है क्योंकि जीव प्रभु का सानिध्य पा जाता है । जीव को जन्म-मरण का चक्कर तब तक ही है जब तक वह भक्ति करके प्रभु की शरणागति ग्रहण नहीं कर लेता । प्रभु के शरणागत भक्तों को प्रभु जन्म-मृत्यु के चक्कर से ही सदा के लिए मुक्त कर देते हैं ।
इसलिए जीव को भयमुक्त होने के लिए अविलंब अपने जीवन में प्रभु की शरणागति लेनी चाहिए ।
प्रकाशन तिथि : 01 अगस्त 2017 |
932 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 87
श्लो 34 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
भगवन ! आप अखंड आनंदस्वरूप और शरणागतों के आत्मा हैं । ....
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन श्रुतियों ने प्रभु की स्तुति करते हुए कहे ।
श्रुतियां कहतीं हैं कि प्रभु अखंड आनंदस्वरूप हैं । संसार में हमें सुख मिल सकता है पर आनंद, जो सुख से बहुत बड़ा है, वह तो केवल प्रभु के सानिध्य में ही मिलेगा । प्रभु के सानिध्य में मिलने वाला आनंद अखंड है । संसार का सुख भी अखंड नहीं होता क्योंकि कभी थोड़े से सुख के बाद बहुत सारा दुःख भोगना पड़ता है । संसार में हम दुःख के अभाव को ही सुख मान लेते हैं । दूसरी बात जो श्लोक में कही गई है वह यह कि प्रभु शरणागतों की आत्मा हैं । शरणागति लेने पर प्रभु उस जीव का पूरा दायित्व उठा लेते हैं । इसलिए शास्त्रों ने प्रभु की शरणागति को बहुत बड़ा मान कर उसे बहुत ऊँचा स्थान दिया है ।
इसलिए जीव को चाहिए अखण्ड आनंदस्वरूप परमात्मा की शरण में रहे ।
प्रकाशन तिथि : 01 अगस्त 2017 |
933 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 87
श्लो 38 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... इसी से आपका ऐश्वर्य, धर्म, यश, श्री, ज्ञान और वैराग्य अपरिमित है, अनंत है ....
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन श्रुतियों ने प्रभु की स्तुति करते हुए कहे ।
श्रुतियां कहतीं हैं कि प्रभु का ऐश्वर्य, प्रभु का धर्म, प्रभु का यश, प्रभु की श्री, प्रभु का ज्ञान और प्रभु के वैराग्य की कोई सीमा नहीं है क्योंकि वे अनंत हैं । इसलिए शास्त्रों का एकमत है कि प्रभु के ऐश्वर्य, यश और श्री का कोई पार नहीं पा सकता । हमारी कल्पना शक्ति के द्वारा भी हम उसको नहीं जान सकते । प्रभु के ऐश्वर्य, यश और श्री की कल्पना मात्र करना भी किसी के लिए संभव नहीं है । शास्त्र, ऋषि, संत और भक्त प्रभु के ऐश्वर्य, यश और श्री का गान करते हैं और नेति-नेति कहकर शांत हो जाते हैं ।
इसलिए जीव को चाहिए कि जीवन में प्रभु के अनंत ऐश्वर्य, यश और श्री का गुणगान करें ।
प्रकाशन तिथि : 02 अगस्त 2017 |
934 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 87
श्लो 40 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... जिसे आप के स्वरूप का ज्ञान नहीं हुआ है, वह भी यदि प्रतिदिन आपकी प्रत्येक युग में की हुई लीलाओं, गुणों का गान सुन-सुनकर उनके द्वारा आपको अपने हृदय में बैठा लेता है तो अनंत, अचिंत्य, दिव्य गुणों के निवास स्थान प्रभो ! आपका वह प्रेमी भक्त भी पाप-पुण्यों के फल सुख-दुःखों और विधि-निषेधों से अतीत हो जाता है । ....
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन श्रुतियों ने प्रभु की स्तुति करते हुए कहे ।
श्रुतियां कहतीं हैं कि जिन जीवों को प्रभु के स्वरूप का ज्ञान नहीं है वे भी अगर प्रतिदिन प्रभु की प्रत्येक युग में की गई श्रीलीलाओं और सद्गुणों के गान को सुन-सुनकर अपने हृदय में बैठा लेते हैं तो वे प्रेमी भक्त पाप-पुण्य के फल, सुख-दुःख से अतीत हो जाते हैं । प्रभु की दिव्य श्रीलीला कथा को सुनकर और प्रभु के गुण, स्वभाव और प्रभाव का चिंतन कर अगर हम प्रभु को अपने हृदय में स्थान देते हैं तो पाप-पुण्य और सुख-दुःख हमें प्रभावित नहीं कर सकते ।
इसलिए जीव को चाहिए कि वह प्रभु की श्रीलीला कथा और प्रभु के गुण, स्वभाव और प्रभाव का चिंतन करे तभी उसका मनुष्य के रूप में जन्म लेना सफल होगा ।
प्रकाशन तिथि : 02 अगस्त 2017 |
935 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 87
श्लो 46 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... आपकी कीर्ति परम पवित्र है । आप समस्त प्राणियों के परम कल्याण और मोक्ष के लिए कमनीय कलावतार धारण किया करते हैं । मैं आपको नमस्कार करता हूँ ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन देवर्षि प्रभु श्री नारदजी ने प्रभु से कहे ।
प्रभु की कीर्ति परम पवित्र है इसलिए शास्त्रों ने लोक कल्याण के लिए प्रभु की कीर्ति का गान किया है । सभी ऋषि, संत और भक्त प्रभु की कीर्ति का गान करके स्वयं को पवित्र करते हैं । प्रभु की कीर्ति का गान करने से हमारी वाणी पवित्र होती है और हमारे पाप नष्ट होते हैं । दूसरी बात जो श्लोक में कही गई है वह यह कि प्रभु समस्त प्राणियों के परम कल्याण के लिए और प्राणियों के मोक्ष के लिए अवतार ग्रहण करके श्रीलीलाएं करते हैं । जो प्रभु की श्रीलीलाओं का श्रवण, चिंतन और मनन करता है उसका कल्याण सुनिश्चित हो जाता है । प्रभु की श्रीलीलाओं के माध्यम से प्रभु की कीर्ति का गान करने वाला मोक्ष का अधिकारी हो जाता है ।
इसलिए जीव को चाहिए कि प्रभु की श्रीलीलाओं के माध्यम से प्रभु की कीर्ति का गान करें ।
प्रकाशन तिथि : 03 अगस्त 2017 |
936 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 87
श्लो 50 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... जैसे गाढ़ निद्रा-सुषुप्ति में मग्न पुरुष अपने शरीर का अनुसंधान छोड़ देता है, वैसे ही भगवान को पाकर यह जीव माया से मुक्त हो जाता है । ....
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन प्रभु श्री शुकदेवजी ने राजा श्री परीक्षितजी को कहे ।
प्रभु विश्व को उत्पन्न करने का संकल्प करते हैं और उसके आदि, मध्य और अंत में स्थित रहते हैं । प्रभु प्रकृति और जीव दोनों के स्वामी हैं । प्रभु को पाकर जीव माया से मुक्त हो जाता है । जैसे निद्रा में मग्न पुरुष अपने शरीर की सुध भूल जाता है, वैसे ही प्रभु को पाकर जीव माया की सुध भूल जाता है । इसलिए जिसने प्रभु से अपना रिश्ता जोड़ लिया, माया उसे प्रभावित नहीं कर सकती । माया से मुक्त होने का सबसे सरल उपाय है कि मायापति से अपना संबंध भक्ति के द्वारा जोड़ लेना । माया जीव को नचाती है और जीव को इस संसार में उलझा कर रखती है । इसलिए माया के प्रभाव से मुक्त होने के लिए प्रभु के सानिध्य में जाना चाहिए ।
जीव को चाहिए कि वह भक्ति करके प्रभु की शरण में जाए जिससे वह माया के प्रभाव से मुक्त हो सके ।
प्रकाशन तिथि : 03 अगस्त 2017 |