क्रम संख्या |
श्रीग्रंथ |
अध्याय -
श्लोक संख्या |
भाव के दर्शन / प्रेरणापुंज |
841 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 65
श्लो 06 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... इन ग्वालों ने कमलनयन भगवान श्रीकृष्ण के लिए समस्त भोग, स्वर्ग और मोक्ष तक त्याग रखा था । ....
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन प्रभु श्री शुकदेवजी ने राजा श्री परीक्षितजी को कहे ।
श्रीबृज के गोप और गोपियां ने प्रभु के लिए समस्त भोग त्याग रखे थे । उन्होंने प्रभु के लिए स्वर्ग के सुख भी त्याग रखे थे । यहाँ तक कि उन्होंने प्रभु के लिए मोक्ष भी त्याग रखे थे । गोप और गोपियों की प्रभु से अत्यंत प्रीति थी इसलिए उन्होंने प्रभु के लिए सब कुछ त्याग रखा था । जब हम प्रभु के लिए कुछ भी त्यागते हैं तो प्रभु उस त्याग का बहुत आदर करते हैं । संसार और प्रभु दोनों कभी किसी को एक साथ नहीं मिलते । संसार को त्यागने पर ही प्रभु मिलते हैं । पर जीव संसार को पकड़ कर रखता है इसलिए उसे प्रभु नहीं मिलते ।
इसलिए जीव को चाहिए कि वह अपने जीवन में प्रभु को पाने का प्रयास करे और उसके लिए जो कुछ भी त्यागना हो उसे त्यागने के लिए तत्पर रहे ।
प्रकाशन तिथि : 06 जून 2017 |
842 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 66
श्लो 24 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... वह भगवान का बनावटी वेश धारण किए रहता था, इससे बार-बार उन्हीं का स्मरण होने के कारण वह भगवान के सारूप्य को ही प्राप्त हुआ ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन प्रभु श्री शुकदेवजी ने राजा श्री परीक्षितजी को कहे ।
पौंड्रक प्रभु का रूप धारण करके और प्रभु जैसा दिखने का प्रयास करता था । चाहे किसी भी भाव से हो वह सदा प्रभु का ही चिंतन करता रहता था । प्रभु इतने कृपालु और दयालु हैं कि उनसे बैर करने वाले को भी वे मुक्ति प्रदान कर देते हैं । प्रभु से बैर करने के बावजूद भी प्रभु ने बार-बार प्रभु का चिंतन करने के कारण पौंड्रक को भी मुक्ति दे दी । जो बैर की भावना से भी प्रभु का चिंतन करता है प्रभु उसे भी मुक्ति दे देते हैं तो जो भक्ति से प्रभु का चिंतन करे उस पर तो प्रभु स्वयं न्यौछावर हो जाते हैं ।
इसलिए जीव को चाहिए कि जीवन में भक्ति से प्रभु का निरंतर चिंतन करे ।
प्रकाशन तिथि : 06 जून 2017 |
843 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 69
श्लो 15 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
परीक्षित ! इसमें संदेह नहीं कि भगवान श्रीकृष्ण चराचर जगत के परम गुरु हैं और उनके चरणों का धोवन गंगाजल सारे जगत को पवित्र करने वाला है । फिर भी वे परम भक्तवत्सल और संतों के परम आदर्श, उनके स्वामी हैं । ....
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन प्रभु श्री शुकदेवजी ने राजा श्री परीक्षितजी को कहे ।
एक बार देवर्षि प्रभु श्री नारदजी प्रभु की गृहचर्या के दर्शन करने के लिए आए । उस समय प्रभु भगवती रुक्मिणी माता के साथ उनके महल में थे और माता प्रभु की सेवा कर रही थी । जैसे ही प्रभु ने देखा कि देवर्षि प्रभु श्री नारदजी पधारे हैं प्रभु उठ खड़े हुए और उनका अभिनंदन कर हाथ जोड़कर उन्हें अपने आसन पर बैठाया । प्रभु सारे चराचर जगत के एकमात्र स्वामी हैं और परम भक्तवत्सल हैं । प्रभु संतों के परम आदर्श और उनके स्वामी हैं । फिर भी प्रभु संतों को और अपने भक्तों को बड़ा मान देते हैं । यहाँ पर प्रभु ने देवर्षि प्रभु श्री नारदजी की विधिवत पूजा की और उनका स्वागत सत्कार किया और उनकी सेवा में स्वयं को प्रस्तुत किया ।
प्रभु संतों और भक्तों से बेहद प्रेम करते हैं और उनका बड़ा आदर करते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 07 जून 2017 |
844 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 69
श्लो 18 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... आप ऐसी कृपा कीजिए कि आपके उन चरणकमलों की स्मृति सर्वदा बनी रहे और मैं चाहे जहाँ और जैसे रहूँ, उनके ध्यान में तन्मय रहूँ ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन देवर्षि प्रभु श्री नारदजी ने प्रभु से कहे ।
देवर्षि प्रभु श्री नारदजी कहते हैं कि प्रभु समस्त लोकों के एकमात्र स्वामी हैं । प्रभु भक्तजनों से प्रेम करने के लिए और दुष्टों को दण्ड देने के लिए एवं जगत की रक्षा और कल्याण करने के लिए अवतार ग्रहण करते हैं । प्रभु के श्रीकमलचरण मोक्ष प्रदान करने में एकमात्र समर्थ हैं । देवता, ऋषि, संत और भक्त सदा सर्वदा अपने हृदय में प्रभु का चिंतन करते रहते हैं । संसार सागर को पार करने के लिए प्रभु के श्रीकमलचरण एकमात्र अवलंबन हैं । देवर्षि प्रभु श्री नारदजी कहते हैं कि प्रभु ऐसी कृपा करें कि चाहे वे जहाँ भी रहें उनका ध्यान प्रभु के श्रीकमलचरणों में तन्मयता से सदैव लगा रहे और प्रभु के श्रीकमलचरणों की स्मृति उनके हृदय पटल पर सदा बनी रहे ।
जीव को भी अपना ध्यान प्रभु के श्रीकमलचरणों में ही केंद्रित करके रखना चाहिए ।
प्रकाशन तिथि : 07 जून 2017 |
845 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 69
श्लो 39 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
देवताओं के भी आराध्यदेव भगवन ! चौदहों भुवन आपके सुयश से परिपूर्ण हो रहे हैं । अब मुझे आज्ञा दीजिए कि मैं आपकी त्रिभुवनपावनी लीला का गान करता हुआ उन लोकों में विचरण करूं ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन देवर्षि प्रभु श्री नारदजी ने प्रभु से कहे ।
देवर्षि प्रभु श्री नारदजी ने प्रभु की गृहचर्या देखने के बाद प्रभु की योगमाया को प्रणाम किया । प्रभु एक ही समय अनेकों महलों में अनेकों कार्य संपादित कर रहे थे । प्रभु का सुयश देखकर देवर्षि प्रभु श्री नारदजी गदगद हो गए । फिर लौटते समय उन्होंने प्रभु से आज्ञा मांगने के समय जो विनती की वह बड़ी मार्मिक है । देवर्षि प्रभु श्री नारदजी ने प्रभु से कहा कि अब उन्हें आज्ञा दे कि वे प्रस्थान करे और प्रभु की परमपावनी श्रीलीला का गान करते हुए सभी लोकों में विचरण करें । किसी भी जीव के लिए प्रभु की श्रीलीला के गान से बड़ा संकल्प और पुण्य कुछ भी नहीं हो सकता । किसी भी जीव के लिए प्रभु की श्रीलीला के गान से बड़ा उद्देश्य और गौरव कुछ नहीं हो सकता ।
इसलिए जीव को भी प्रभु की श्रीलीलाओं का नित्य गान करना चाहिए ।
प्रकाशन तिथि : 08 जून 2017 |
846 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 69
श्लो 45 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... जो उनकी लीलाओं का गान, श्रवण और गान-श्रवण करने वालों का अनुमोदन करता है, उसे मोक्ष के मार्गस्वरूप भगवान श्रीकृष्ण के चरणों में परम प्रेममयी भक्ति प्राप्त हो जाती है ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन प्रभु श्री शुकदेवजी ने राजा श्री परीक्षितजी को कहे ।
जो जीव प्रभु की श्रीलीलाओं का गान करता है अथवा उनका श्रवण करता है अथवा उनका चिंतन करता है उसे मानो मोक्ष का मार्ग मिल जाता है । उस जीव को प्रभु के श्रीकमलचरणों की परम प्रेममयी भक्ति प्राप्त होती है । इसलिए ही सभी ऋषि, संत और भक्त प्रभु की मधुर श्रीलीलाओं का गान, श्रवण और चिंतन करते हैं । संसार सागर पार करने का यह अचूक साधन है । प्रभु की मधुर श्रीलीलाओं का गान, श्रवण और चिंतन मोक्षदायक है । यह जीव के भीतर प्रभु के लिए परम भक्ति के जागरण का कार्य करता है ।
इसलिए जीव को चाहिए कि प्रभु की मधुर श्रीलीलाओं का गान, श्रवण और चिंतन करने का नियम अपनी दिनचर्या में बनाएं ।
प्रकाशन तिथि : 08 जून 2017 |
847 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 70
श्लो 29 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
भगवन ! आपके चरणकमल शरणागत पुरुषों के समस्त शोक और मोहों को नष्ट कर देने वाले हैं । ....
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन जरासंध के कैद में बंद राजाओं ने अपने संदेश में प्रभु से कहे ।
जरासंध ने बीस हजार राजाओं को बंदी बना कर रखा था । उन राजाओं ने एक दूत भेजकर प्रभु से उन्हें मुक्त करने की प्रार्थना की । उन्होंने संदेश में कहा कि अधिकांश जीव सकाम कर्मों में फंसे हुए हैं और प्रभु द्वारा बताए परम कल्याणकारी मार्ग से विमुख हैं । उन राजाओं ने कहा कि उनके अशुभ कर्म ही उन्हें दुःख पहुँचा रहे हैं । उन्होंने प्रभु से कहा कि प्रभु का अवतार संतों की रक्षा और दुष्टों को दण्ड देने के लिए होता है । इसलिए अब वे प्रभु के श्रीकमलचरणों की शरण ग्रहण करते हैं जो शरणागत जीव के समस्त शोक और मोह को नष्ट करने वाले हैं ।
जीव को भी चाहिए कि प्रभु के श्रीकमलचरणों की शरण ग्रहण करके अपने मानव जीवन को सफल करे ।
प्रकाशन तिथि : 09 जून 2017 |
848 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 70
श्लो 39 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... वास्तव में उसी के हित के लिए आप नाना प्रकार के लीलावतार ग्रहण करके अपने पवित्र यश का दीपक जला देते हैं, जिसके सहारे वह इस अनर्थकारी शरीर से मुक्त हो सके । इसलिए मैं आपकी शरण में हूँ ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन देवर्षि प्रभु श्री नारदजी ने प्रभु से कहे ।
जीव शरीर और शरीर से संबंध रखने वाली वासनाओं में फंसकर जन्म और मृत्यु के चक्कर में भटकता रहता है । अज्ञानी जीव यह जानने का प्रयास ही नहीं करता कि वह इस चक्कर से कैसे मुक्त हो सकता है । उस अज्ञानी जीव का हित करने के लिए प्रभु नाना प्रकार के अवतार ग्रहण करके नाना प्रकार की श्रीलीला करते हैं । उन श्रीलीलाओं और अवतारों का यशगान करने से जीव मुक्त हो सकता है । यह प्रभु की जीव पर असाधारण कृपा है कि प्रभु के यश का गुणगान उस जीव को जन्म और मृत्यु के चक्कर से सदैव के लिए मुक्त कर देता है ।
इसलिए जीव को प्रभु का नित्य यशगान करना चाहिए ।
प्रकाशन तिथि : 09 जून 2017 |
849 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 70
श्लो 43 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... आपके श्रवण, कीर्तन और ध्यान करने मात्र से अन्त्यज भी पवित्र हो जाते हैं । ....
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन देवर्षि प्रभु श्री नारदजी ने प्रभु से कहे ।
प्रभु की श्रीलीलाओं का श्रवण करने से, प्रभु की श्रीलीलाओं का कीर्तन करने से और प्रभु का ध्यान करने मात्र से पतित से पतित भी पवित्र हो जाते हैं । कितने ही जन्मों के पापों के कारण जो अत्यंत पतित है वे जीव भी प्रभु की श्रीलीला श्रवण, कीर्तन और प्रभु के ध्यान करने मात्र से पवित्र हो जाते हैं । ऐसा करने वालों के संपूर्ण पाप नष्ट हो जाते हैं और वे परम पवित्र हो जाते हैं । प्रभु की श्रीलीलाओं के श्रवण, कीर्तन और प्रभु के ध्यान में पाप दहन करने की अदभुत शक्ति है ।
इसलिए जीव को चाहिए कि प्रभु की श्रीलीलाओं का श्रवण, कीर्तन करे और प्रभु के स्वरूप का ध्यान करे ।
प्रकाशन तिथि : 10 जून 2017 |
850 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 71
श्लो 07 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... भगवन ! इसमें संदेह नहीं कि यदि आपकी उपस्थिति में भीमसेन और जरासंध का मलयुद्ध हो, तो भीमसेन उसे मार डालेंगे ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन श्री उद्धवजी ने प्रभु से कहे ।
जब जरासंध के यहाँ बंदी बीस हजार राजाओं ने प्रभु से मुक्ति के लिए प्रार्थना की और दूसरी तरफ पाण्डव दिग्विजय करने के लिए राजसूय यज्ञ करने के लिए प्रभु से आज्ञा चाहते थे तो श्री उद्धवजी ने प्रभु से कहा कि एक साथ ही दोनों कार्य सिद्ध हो सकते हैं । पाण्डवों को दिग्विजय के लिए जरासंध को जीतना पड़ेगा और अगर प्रभु की उपस्थिति में महाबली भीमसेनजी का जरासंध से मल्लयुद्ध होता है तो प्रभु की शक्ति से महाबली भीमसेनजी निमित्त बनकर जरासंध का वध कर देंगे । श्री उद्धवजी ने कहा कि सत्य यही है कि जरासंध का वध तो होगा पर वह प्रभु की शक्ति से होगा, महाबली भीमसेनजी केवल उसमें निमित्त मात्र बनेंगे ।
यह सिद्धांत है कि विश्व का हर कार्य प्रभु की शक्ति से संपादित होता है, करने वाला कर्ता तो मात्र निमित्त होता है ।
प्रकाशन तिथि : 10 जून 2017 |
851 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 71
श्लो 24 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... इस प्रकार वे बड़े आदर से हृषिकेश भगवान का स्वागत करने के लिए चले, जैसे इंद्रियां मुख्य प्राण से मिलने जा रही हो ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन प्रभु श्री शुकदेवजी ने राजा श्री परीक्षितजी को कहे ।
प्रभु पाण्डवों के राजसूय यज्ञ का निमंत्रण स्वीकार करके इंद्रप्रस्थ पहुँचे । जैसे ही श्री युधिष्ठिरजी को समाचार मिला कि प्रभु नगर के बाहर पधार चुके हैं उनका रोम-रोम आनंद से खिल उठा । वे अपने आचार्यों और स्वजनों को लेकर तुरंत प्रभु की आगवानी के लिए नगर के बाहर दौड़े । प्रभु के स्वागत में मंगल गीत गाए जाने लगे, बाजे बजने लगे और श्रेष्ठ ब्राह्मण ऊंचे स्वर में वेदमंत्रों का उच्चारण करने लगे । प्रभु के स्वागत के लिए पाण्डव वैसे दौड़े जैसे इंद्रियां प्राणों से मिलने के लिए दौड़ती हैं । प्रभु को देखकर पाण्डव गदगद हो गए क्योंकि प्रभु का दर्शन अत्यंत दुर्लभ होता है । बहुत दिनों के बाद प्रभु के दर्शन का सौभाग्य पाण्डवों को मिला था इसलिए उन्होंने प्रभु को अपने हृदय से लगा लिया ।
प्रभु का दर्शन अति दुर्लभ है और बहुत जन्मों के सौभाग्य से प्राप्त होता है ।
प्रकाशन तिथि : 11 जून 2017 |
852 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 71
श्लो 26 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... राजा युधिष्ठिर अपनी दोनों भुजाओं से उनका आलिंगन करके समस्त पाप-तापों से छुटकारा पा गए । ....
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन प्रभु श्री शुकदेवजी ने राजा श्री परीक्षितजी को कहे ।
प्रभु के इंद्रप्रस्थ आगमन पर पाण्डव एक-एक करके प्रभु से मिलने लगे । सबसे पहले राजा श्री युधिष्ठिरजी ने अपनी दोनों भुजाओं से प्रभु का आलिंगन किया । जैसे ही उन्होंने ऐसा किया उन्हें उसी क्षण अपने समस्त पाप और ताप से छुटकारा मिल गया । वे परमानंद के समुद्र में मग्न हो गए । उनके नेत्रों से प्रेम भरे आंसू छलक पड़े । उनका अंग-अंग पुलकित हो गया । प्रभु के दर्शन मात्र से श्री युधिष्ठिरजी का सांसारिक प्रपंच का भ्रम खत्म हो गया । अन्य पाण्डव भी जब प्रभु से मिले तो उनके नेत्रों से आंसुओं की बाढ़ सी आ गई ।
जीवन में प्रभु का स्वागत हृदय की अत्यंत गहराई से करना चाहिए ।
प्रकाशन तिथि : 11 जून 2017 |
853 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 71
श्लो 40 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
देवदेवेश्वर भगवान श्रीकृष्ण को राजमहल के अंदर लाकर राजा युधिष्ठिर आदर भाव और आनंद के उद्रेक से आत्मविस्मृत हो गए, उन्हें इस बात की भी सुध न रही कि किस क्रम से भगवान की पूजा करनी चाहिए ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन प्रभु श्री शुकदेवजी ने राजा श्री परीक्षितजी को कहे ।
प्रभु के स्वागत के लिए पूरा इंद्रप्रस्थ उमड़ पड़ा । सभी अपने भाग्य की सराहना करने लगे कि उन्हें प्रभु के दर्शन का लाभ मिला और राजपथ पर शोभा यात्रा में पधारने पर सभी ने प्रभु की पूजा अर्चना की और स्वागत सत्कार किया । जब प्रभु ने राजमहल में प्रवेश किया तो श्री युधिष्ठिरजी आदर भाव और आनंद से आत्म विभोर हो गए और उल्लास में उन्हें इस बात की सुध ही न रही कि किस क्रम से प्रभु की पूजा करनी है । यह भक्ति की एक बहुत ऊँची अवस्था है कि प्रभु प्रेम के कारण साधन का ही विस्मरण हो जाए ।
भक्ति में भाव की प्रधानता है, साधन की प्रधानता नहीं है ।
प्रकाशन तिथि : 12 जून 2017 |
854 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 72
श्लो 04 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
कमलनाभ ! आपके चरणकमलों की पादुकाएं समस्त अमंगलों को नष्ट करने वाली हैं । जो लोग निरंतर उनकी सेवा करते हैं, ध्यान और स्तुति करते हैं, वास्तव में वे ही पवित्रात्मा हैं । ....
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन धर्मराज श्री युधिष्ठिरजी ने प्रभु से कहे ।
श्री युधिष्ठिरजी कहते हैं कि प्रभु का यजन करने के लिए वे प्रभु से राजसूय यज्ञ की अनुमति चाहते हैं । वे कहते हैं कि प्रभु के श्रीकमलचरणों की पादुकाएं ही समस्त अमंगलों का नाश करने वाली है । प्रभु के श्रीकमलचरण का ध्यान करना तो बहुत बड़ी बात है, उन श्रीकमलचरणों की पादुकाओं का भी जो ध्यान कर लेता है उसके सारे अमंगल नष्ट हो जाते हैं । प्रभु के श्रीकमलचरणों की पादुकाओं का महत्व इतना बड़ा है । जो निरंतर उनकी सेवा करते हैं, उनका ध्यान करते हैं और उनकी स्तुति करते हैं वास्तव में वे ही पवित्र आत्मा हैं । ऐसा करने वाले जन्म मृत्यु के चक्कर से छुटकारा पा जाते हैं और साथ ही अगर उन्हें सांसारिक भोग की भी अभिलाषा होती है तो वह भी पूर्ण हो जाती है ।
प्रभु के श्रीकमलचरणों की सेवा का प्रभाव है कि जीव को मुक्ति भी मिलती है और सांसारिक भोग की अभिलाषा हो तो वह भी पूर्ण होती है ।
प्रकाशन तिथि : 12 जून 2017 |
855 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 72
श्लो 06 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... फिर भी जो आपकी सेवा करते हैं, उन्हें उनकी भावना के अनुसार फल मिलता ही है, ठीक वैसे ही, जैसे कल्पवृक्ष की सेवा करने वाले को । ....
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन धर्मराज श्री युधिष्ठिरजी ने प्रभु से कहे ।
प्रभु की जो सेवा करते हैं उनको उनकी भावना के अनुसार फल प्राप्त होता है । जैसे प्रभु के बनाए कल्पवृक्ष की सेवा करने वाले को इच्छित फल मिलता है वैसे ही जो जीव प्रभु की सेवा करता है उसकी संपूर्ण अभिलाषा प्रभु पूर्ण करते हैं । सभी जीवों को फल प्रदान करने वाले प्रभु ही हैं इसलिए जो जीव प्रभु की सेवा करता है उसे निश्चित ही उसकी इच्छा के अनुरूप फल प्रभु प्रदान करते हैं । इच्छित फल पाने के लिए शास्त्रों ने, ऋषियों ने, संतों ने और भक्तों ने सदैव प्रभु सेवा का ही मार्ग बताया है ।
इसलिए जीव को चाहिए कि प्रभु सेवा करके अपने मानव जीवन में भक्ति प्राप्त करे जिससे बड़ा इच्छित फल अन्य कुछ भी नहीं हो सकता ।
प्रकाशन तिथि : 13 जून 2017 |
856 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 72
श्लो 10 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... आप लोगों ने अपने सद्गुणों से मुझे अपने वश में कर लिया है । जिन लोगों ने अपनी इंद्रियों और मन को वश में नहीं किया है, वे मुझे अपने वश में नहीं कर सकते ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन प्रभु ने धर्मराज श्री युधिष्ठिरजी से कहे ।
जब पाण्डवों ने प्रभु से राजसूय यज्ञ की आज्ञा मांगी तो प्रभु ने कहा कि पाण्डवों ने अपने सद्गुणों से प्रभु को अपने वश में कर लिया है । प्रभु ने कहा कि जिन लोगों ने अपनी इंद्रियों को और अपने मन को वश में नहीं किया है वे प्रभु को भी अपने वश में नहीं कर सकते । हमें अपनी इंद्रियों को प्रभु की तरफ मोड़ना पड़ेगा और मन को प्रभु में लगाना होगा एवं अपने अंदर सद्गुणों का विकास करना होगा तभी प्रभु हमारी तरफ आकर्षित होंगे । प्रभु को आकर्षित करने के लिए इंद्रियों और मन पर हमें विजय प्राप्त करनी होगी । इंद्रियों और मन को हम भक्ति द्वारा ही प्रभुमय कर सकते हैं और उन पर विजय प्राप्त कर सकते हैं । भक्ति द्वारा इंद्रियां और मन प्रभुमय होने पर फिर वह संसार की तरफ आकर्षित नहीं होगी क्योंकि उन्हें संसार से भी कहीं अधिक रस प्रभु में आने लगेगा ।
इसलिए जीव को चाहिए कि अपनी इंद्रियों और मन को प्रभु की तरफ मोड़ने का प्रयास जीवन में करे ।
प्रकाशन तिथि : 13 जून 2017 |
857 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 72
श्लो 11 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
संसार में कोई बड़े-से-बड़ा देवता भी तेज, यश, लक्ष्मी, सौंदर्य और ऐश्वर्य आदि के द्वारा मेरे भक्त का तिरस्कार नहीं कर सकता । ....
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन प्रभु ने धर्मराज श्री युधिष्ठिरजी से कहे ।
प्रभु कहते हैं कि उनके भक्त उन्हें इतने प्रिय हैं कि संसार में कोई भी उनका तिरस्कार करे यह प्रभु सहन नहीं कर सकते । प्रभु कहते हैं कि बड़े-से-बड़े देवता भी अपने तेज, यश और ऐश्वर्य से प्रभु के भक्तों का तिरस्कार नहीं कर सकते । फिर कोई संसारी प्रभु भक्त का तिरस्कार करे इसकी संभावना ही क्या है । प्रभु सदैव अपने भक्तों के पीछे खड़े रहते हैं इसलिए प्रभु भक्तों के तिरस्कार का साहस कोई नहीं कर सकता । प्रभु के भक्तों को प्रभु बहुत सम्मान की दृष्टि से देखते हैं ।
इसलिए जीव को सदैव प्रभु की भक्ति में अपने मन को रमाना चाहिए ।
प्रकाशन तिथि : 14 जून 2017 |
858 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 72
श्लो 12 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... भगवान श्रीकृष्ण ने पाण्डवों में अपनी शक्ति का संचार करके उनको अत्यंत प्रभावशाली बना दिया था ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन प्रभु श्री शुकदेवजी ने राजा श्री परीक्षितजी को कहे ।
प्रभु ने जब पाण्डवों को राजसूय यज्ञ और दिग्विजय करने की अनुमति दी तो प्रभु आज्ञा पाकर पाण्डवों का हृदय आनंद से भर गया । पाण्डव प्रफुल्लित हो गए क्योंकि उन्होंने प्रभु की आज्ञा द्वारा प्रभु की कृपा अर्जित कर ली थी । राजा श्री युधिष्ठिरजी ने अपने भाईयों को दिग्विजय करने का आदेश दिया । तब प्रभु ने पाण्डवों में अपनी दिव्य शक्ति का संचार करके उन्हें अजेय और अत्यंत प्रभावशाली बना दिया । एक समय पाण्डवों के पास कुछ भी नहीं था और आज वे पूरे विश्व को दिग्विजय करने जितने सामर्थ्यवान बन गए । यह मात्र और मात्र प्रभु की असीम कृपा का प्रभाव था ।
प्रभु जिस भी जीव पर कृपा करते हैं वह अत्यंत प्रभावशाली और अजेय बन जाता है ।
प्रकाशन तिथि : 14 जून 2017 |
859 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 73
श्लो 06 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... उनके सारे पाप तो भगवान के दर्शन से ही धूल चुके थे । उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण के चरणों पर अपना सिर रखकर प्रणाम किया ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन प्रभु श्री शुकदेवजी ने राजा श्री परीक्षितजी को कहे ।
जब प्रभु ने महाबली श्री भीमसेनजी के द्वारा जरासंध का वध करवाया तो उसके कारागृह से प्रभु ने राजाओं को मुक्त किया । प्रभु को देखकर सभी राजाओं को बड़ा उल्लास हुआ । प्रभु को देखकर उन राजाओं की ऐसी स्थिति हो गई मानो वे अपने नेत्रों से प्रभु का रसपान कर रहे हों, अपनी भुजाओं से प्रभु का आलिंगन कर रहे हों । उन समस्त राजाओं के समस्त पाप और ताप प्रभु दर्शन से धुल गए । उन्होंने प्रभु के द्वारा अनुग्रह करके उन्हें मुक्त करवाने के उपलक्ष्य में प्रभु के श्रीकमलचरणों में अपना सिर रखकर प्रभु को प्रणाम किया । प्रभु के दर्शन से उन सभी राजाओं को इतना आनंद हुआ कि कैद में रहने का उनका क्लेश बिलकुल खत्म हो गया । वे हाथ जोड़ कर विनम्र वाणी से प्रभु की स्तुति करने लगे ।
यह प्रभु का सिद्धांत है कि प्रभु विपदा में पड़े उन जीवों को मुक्त करते हैं जो प्रभु की शरण ग्रहण कर लेते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 15 जून 2017 |
860 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 73
श्लो 15 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
अब हमें कृपा करके आप वह उपाय बतलाइए, जिससे आपके चरणकमलों की विस्मृति कभी न हो, सर्वदा स्मृति बनी रहे । चाहे हमें संसार की किसी भी योनि में जन्म क्यों न लेना पड़े ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन जरासंध के कारागृह से मुक्त राजाओं ने प्रभु की स्तुति करते हुए प्रभु से कहे ।
राजाओं ने प्रभु से कहा कि पहले वे राजा होने के नाते धन संपत्ति के नशे में चूर रहते थे और दूसरे को जीतने के लिए होड़ करते थे । अब दिनों दिन उनका शरीर क्षीण होता जा रहा है और रोगों ने उन्हें दबोच लिया है । अब उन्हें भोगों की अभिलाषा नहीं है । वे अब मात्र प्रभु की कृपा चाहते हैं और उस मार्ग पर चलना चाहते हैं जहाँ प्रभु के श्रीकमलचरणों की विस्मृति कभी न हो और सर्वदा प्रभु के श्रीकमलचरणों की स्मृति बनी रहे । चाहे संसार में किसी भी योनि में उन्हें जन्म मिले वे प्रभु की स्मृति चाहते हैं ।
जीव को भी निरंतर अपने हृदय पटल पर प्रभु की स्मृति बनाकर रखनी चाहिए ।
प्रकाशन तिथि : 15 जून 2017 |
861 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 73
श्लो 19 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
नरपतियो ! तुम लोगों ने जो निश्चय किया है, वह सचमुच तुम्हारे लिए बड़े सौभाग्य और आनंद की बात है । ....
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन प्रभु ने जरासंध के कारागृह से मुक्त हुए राजाओं को कहे ।
जब राजाओं ने प्रभु से यह अभिलाषा व्यक्त की कि इस जन्म में एवं आगे किसी भी योनि में उन्हें जन्म लेना पड़े उनकी प्रभु के श्रीकमलचरणों में सर्वदा स्मृति बनी रहे तो प्रभु ने उन्हें आशीर्वाद दिया । प्रभु ने उन्हें कहा कि जैसी उन्होंने इच्छा प्रकट की है उसके अनुसार उन लोगों की सुदृढ़ भक्ति प्रभु के लिए होगी । प्रभु ने उनका अभिवादन किया और कहा कि उन्होंने जो निश्चय किया है वह सचमुच उनके लिए बड़े सौभाग्य और आनंद की बात है । जीव प्रभु से प्रभु की भक्ति मांगे इससे बड़ा जीव का सौभाग्य और कुछ नहीं हो सकता । जीव प्रभु से प्रभु की भक्ति मांगे इससे बड़ा जीवन में आनंद का अवसर अन्य कुछ नहीं हो सकता ।
इसलिए हमें भी प्रभु से प्रभु की भक्ति ही मांगनी चाहिए ।
प्रकाशन तिथि : 16 जून 2017 |
862 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 73
श्लो 22 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... अपना चित्त मुझमें लगाकर जीवन बिताओ ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन प्रभु ने जरासंध के कारागृह से मुक्त हुए राजाओं को कहे ।
प्रभु राजाओं से कहते हैं कि वे बहुत सावधानी से अपनी इंद्रियों और मन को वश में करके प्रभु का स्मरण करें । प्रारब्धवश जो भी मिले उसे प्रभु का प्रसाद समझ कर स्वीकार करें । प्रभु ने राजाओं से कहा कि अपना चित्त प्रभु में लगाकर अपना जीवन व्यतीत करें । हम अपना चित्त संसार में लगाते हैं और इसी कारण दुःखी रहते हैं । प्रभु का उपदेश है कि जीवन यापन करते समय अपना चित्त सर्वदा प्रभु में ही लगा कर रखना चाहिए । यह भक्ति के द्वारा ही संभव है क्योंकि भक्ति करने पर हमारा चित्त प्रभु से एकाकार हो जाता है । यह भक्ति का ही सामर्थ्य है कि वह जीव का एकाकार प्रभु से करवा देती है ।
इसलिए जीव को चाहिए कि भक्ति के द्वारा अपना चित्त प्रभु में लगा कर जीवन यापन करे । यही मानव जीवन जीने की सही विधि है ।
प्रकाशन तिथि : 16 जून 2017 |
863 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 73
श्लो 30 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
वहाँ जाकर उन लोगों ने अपनी-अपनी प्रजा से परमपुरुष भगवान श्रीकृष्ण की अदभुत कृपा और लीला कह सुनाई और फिर बड़ी सावधानी से भगवान के आज्ञानुसार वे अपना जीवन व्यतीत करने लगे ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन प्रभु श्री शुकदेवजी ने राजा श्री परीक्षितजी को कहे ।
प्रभु अपने भक्तों का कितना आदर सत्कार करते हैं यह यहाँ देखने को मिलता है । जब जरासंध की कैद से मुक्त हुए राजाओं ने प्रभु की शरणागति ली तो प्रभु ने आदेश देकर कैद में मलिन अवस्था में रहे उन सब राजाओं को राजमहल के दासों के द्वारा स्नान करवाया । फिर उन राजाओं को उत्तम वस्त्र, आभूषण, माला, चंदन दिलवाकर उनका सम्मान करवाया । फिर उन राजाओं को उत्तम पदार्थों का भोजन करवाया । फिर उन्हें श्रेष्ठ रथों पर बैठाकर प्रभु ने अपनी मधुर वाणी से उन्हें तृप्त करके उनके देशों को भेज दिया । वे सभी राजा प्रभु के रूप, सद्गुण और श्रीलीलाओं का चिंतन करते हुए अपनी राजधानी को चले गए । वहाँ पहुँच कर उन्होंने अपनी प्रजा को प्रभु की उन पर अदभुत कृपा और प्रभु की मनोहर श्रीलीला कह सुनाई । फिर वे प्रभु के आदेशानुसार बड़ी सावधानी से अपना जीवन व्यतीत करने लगे ।
प्रभु अपने शरणागत जीवों पर असीम कृपा करते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 17 जून 2017 |
864 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 74
श्लो 16 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
सबने बिना किसी प्रकार के कौतूहल के यह बात मान ली कि राजसूय यज्ञ करना युधिष्ठिर के योग्य ही है क्योंकि भगवान श्रीकृष्ण के भक्त के लिए ऐसा करना कोई बहुत बड़ी बात नहीं है । .....
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन प्रभु श्री शुकदेवजी ने राजा श्री परीक्षितजी को कहे ।
जब प्रभु ने राजा श्री युधिष्ठिरजी को राजसूय यज्ञ करने की आज्ञा दी तो उन्होंने यज्ञ के लिए वेदवादी ब्राह्मणों को आचार्य रूप में वरण किया । राजसूय यज्ञ में शामिल होने के लिए सभी देशों के राजा, मंत्री, कर्मचारी, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र आए । राजा श्री युधिष्ठिरजी के निमंत्रण पर देवता, ऋषि, लोकपाल, सिद्ध, गंधर्व, विघाधर, नाग, मुनि, यक्ष, राक्षस, पक्षी उपस्थित हुए । इनके अतिरिक्त द्रोणाचार्य, भीष्मपितामह, कृपाचार्य और कौरव भी आए । प्रभु की पाण्डवों पर कृपा का फल था कि सभी ने बिना किसी कौतूहल के यह बात मान ली कि राजसूय यज्ञ करना श्री युधिष्ठिरजी के योग्य ही है क्योंकि सबको पता था कि प्रभु जिसके पीछे खड़े होते हैं उस भक्त के लिए ऐसा करना कोई बड़ी बात नहीं है ।
प्रभु जब कृपा करते हैं तो उस जीव का डंका पूरे विश्व में बजता है ।
प्रकाशन तिथि : 17 जून 2017 |