क्रम संख्या |
श्रीग्रंथ |
अध्याय -
श्लोक संख्या |
भाव के दर्शन / प्रेरणापुंज |
721 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 32
श्लो 14 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
बड़े-बड़े योगेश्वर अपनी योगसाधना से पवित्र किए हुए हृदय में जिनके लिए आसन की कल्पना करते रहते हैं, किंतु फिर भी अपने हृदय-सिंहासन पर बिठा नहीं पाते, वही सर्वशक्तिमान भगवान यमुनाजी की रेती में गोपियों की ओढ़नी पर बैठ गए । ....
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन प्रभु श्री शुकदेवजी ने राजा श्री परीक्षितजी को कहे ।
बड़े-बड़े ऋषि अपनी साधना से पवित्र किए हृदय में प्रभु के लिए आसन की कल्पना मात्र करते हैं पर फिर भी प्रभु को हृदय सिंहासन पर बैठा नहीं पाते । वे ही सर्वशक्तिमान प्रभु श्री यमुनाजी के तट पर गोपियों की ओढ़नी पर बैठ गए । प्रभु प्रेम के वशीभूत हैं और प्रेम अगर हृदय में हो तो प्रभु वह हृदयरूपी आसन को स्वीकार करते हैं । गोपियों में प्रभु के लिए विलक्षण प्रेम था इसलिए प्रभु ने उनका आसन स्वीकार किया । प्रभु गोपियों के बीच बैठ कर उनसे पूजित होकर बड़े ही शोभायमान हुए । प्रभु सच्चे प्रेम करने वाले की पूजा स्वीकार करते हैं ।
इसलिए जीव को चाहिए कि वो अपने हृदय को पवित्र कर प्रेमरूपी आसन प्रभु को अर्पण करे ।
प्रकाशन तिथि : 25 मार्च 2017 |
722 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 32
श्लो 14 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... परीक्षित ! तीनों लोकों में, तीनों कालों में जितना भी सौंदर्य प्रकाशित होता है, वह सब तो भगवान के बिंदुमात्र सौंदर्य का आभासभर है । ....
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन प्रभु श्री शुकदेवजी ने राजा श्री परीक्षितजी को कहे ।
उपरोक्त श्लोक में प्रभु के अद्वितीय सौंदर्य का वर्णन है । प्रभु श्री शुकदेवजी कहते हैं कि तीनों लोकों और तीनों कालों में जितना भी ब्रह्माण्ड में सौंदर्य है यानी जितना सौंदर्य प्रकाशित हो रहा है वह प्रभु के बिंदुमात्र सौंदर्य का आभास मात्र है । प्रभु के सौंदर्य का बिंदुमात्र एक तरफ और पूरे ब्रह्माण्ड का सौंदर्य दूसरी तरफ रखा हो तो भी प्रभु के सौंदर्य का बिंदुमात्र अधिक प्रकाशित होगा । प्रभु का सौंदर्य असीम है । उस सौंदर्य की कल्पना करना भी हमारी बुद्धि से परे है । प्रभु के सौंदर्य की व्याख्या शास्त्र भी नहीं कर सकते । प्रभु का सौंदर्य इतना है कि उससे मोहित हुए बिना कोई नहीं रह पाया है ।
इसलिए जीव को प्रभु की एक सौंदर्य से परिपूर्ण छवि हृदय में बसा कर रखनी चाहिए ।
प्रकाशन तिथि : 25 मार्च 2017 |
723 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 32
श्लो 22 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... यदि मैं अमर शरीर से, अमर जीवन से अनंत काल तक तुम्हारे प्रेम, सेवा और त्याग का बदला चुकाना चाहूँ तो भी नहीं चुका सकता । ....
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन प्रभु ने गोपियों को कहे ।
प्रभु अपने प्रेमी के भगवत् प्रेम को कितना मान देते हैं यह तथ्य यहाँ देखने को मिलता है । गोपियों ने प्रभु के लिए संसार का त्याग किया और प्रभु से निर्मल और निर्दोष मिलन की चाह रखी । प्रभु इस पर रीझ गए और प्रभु ने गोपियों से कहा कि अनंत काल तक भी वे अगर गोपियों के प्रेम, सेवा और त्याग का बदला चुकाना चाहे तो भी वे नहीं चुका सकते । प्रभु गोपियों से कहते हैं कि गोपियों ने अपने प्रेम के कारण प्रभु को जन्मों-जन्मों के लिए ऋणी बना दिया है । प्रभु कहते हैं कि वे कुछ भी कर ले पर गोपियों के ऋण से कभी भी उऋण नहीं हो सकते ।
प्रभु प्रेम का इतना बड़ा सामर्थ्य है कि प्रभु अपने सच्चे प्रेमी के बंधन को स्वीकार करके उसके ऋणी बन जाते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 26 मार्च 2017 |
724 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 33
श्लो 07 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
यमुनाजी की रमणरेती पर बृजसुंदरियों के बीच में भगवान श्रीकृष्ण की बड़ी अनोखी शोभा हुई । ....
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - प्रभु श्री शुकदेवजी यहाँ पर महारास के दर्शन करवाते हैं ।
प्रभु महारास के लिए सबसे पहले दो-दो गोपियों के बीच में प्रकट हो गए । इस प्रकार एक गोपी और एक प्रभु यही क्रम बन गया । सभी गोपियां ऐसा अनुभव करने लगी कि मानो हमारे प्रिय प्रभु हमारे ही पास हैं । दिव्य रास जब प्रारंभ हुआ तो आकाश में देवताओं के विमानों की भीड़ लग गई । सभी देवता अपनी पत्नियों के साथ प्रभु के दिव्य रासोत्सव का दर्शन करने लगे । स्वर्ग के नगाड़े बज उठे । स्वर्ग से पुष्पों की वर्षा होने लगी । गंधर्वगण प्रभु के निर्मल यश का गान करने लगे । गोपियों के बीच प्रभु की दिव्य शोभा बड़ी अनोखी प्रतीत हो रही थी ।
प्रभु ने सभी को नित्य आनंद प्रदान करने के लिए श्रीरास की दिव्य लीला की । संतजनों का अनुभव है कि नित्य रास आज भी चल रहा है ।
प्रकाशन तिथि : 26 मार्च 2017 |
725 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 33
श्लो 15 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... लक्ष्मीजी के परम प्रियतम एकांतवल्लभ भगवान श्रीकृष्ण को अपने परम प्रियतम के रूप में पाकर गोपियां गान करती हुई उनके साथ विहार करने लगी । ....
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - श्रीरास लीला मुख्यतः भगवत् कृपा से ही समझ में आती है । जिन भाग्यवान और भगवत् कृपा प्राप्त महात्माओं ने इसका अनुभव किया है वे धन्य हैं ।
गोपियों के हृदय में प्रभु को तृप्त करने वाला प्रेमामृत था । गोपियों और प्रभु के श्रीरास को स्त्री-पुरुष के भाव से देखना भगवान के प्रति और सत्य के प्रति महान अन्याय और अपराध होगा । जैसे नन्हा सा शिशु दर्पण या जल में पड़े अपने प्रतिबिंब के साथ खेलता है वैसे ही प्रभु ने गोपियों के साथ श्रीरास का खेल किया । गोपियां प्रभु को अपने परम प्रियतम के रूप में पाकर गान करने लगी और प्रभु के साथ विहार करने लगी ।
श्रीरास करके प्रभु ने गोपियों का सौभाग्य इतना बढ़ा दिया और गोपियों का प्रभु प्रेम लोकदृष्टि हेतु और भी उज्जवल कर दिया ।
प्रकाशन तिथि : 28 मार्च 2017 |
726 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 33
श्लो 35 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... वे ही भगवान अपने भक्तों की इच्छा से अपना चिन्मय श्रीविग्रह प्रकट करते हैं । ....
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन प्रभु श्रीशुकदेवजी ने राजा श्री परीक्षितजी को कहे ।
प्रभु अपने भक्तों की इच्छा पूर्ति के लिए अपने आपको भक्तों के बीच प्रकट करते हैं और भक्तों पर कृपा करने के लिए उनके साथ लीलाएं करते हैं । लीलाओं का उद्देश्य उस समय के भक्तों को परमानंद प्रदान करना होता है । दूसरा उद्देश्य यह होता है कि जो बाद में भक्त होने वाले हैं वे उन लीलाओं को सुनकर भगवत् परायण हो जाएं । चाहे किसी भी भाव से, कुभाव से, अभाव से, कामना से, लोभ से, क्रोध से जो प्रभु की लीलाओं का चिंतन करता है उसका निश्चित कल्याण हो जाता है ।
पर एक बात का हमें विशेष ध्यान रखना चाहिए कि प्रभु की श्रीलीलाओं में तर्कों का प्रवेश कभी नहीं हो ।
प्रकाशन तिथि : 28 मार्च 2017 |
727 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 33
श्लो 39 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... क्योंकि वे अपनी प्रत्येक चेष्टा से, प्रत्येक संकल्प से केवल भगवान को ही प्रसन्न करना चाहती थी ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन प्रभु श्री शुकदेवजी ने राजा श्री परीक्षितजी को कहे ।
गोपियों की प्रेमाभक्ति की महानता का सबसे बड़ा रहस्य यह है कि गोपियां अपनी प्रत्येक चेष्टा से, प्रत्येक संकल्प से केवल प्रभु को प्रसन्न करना चाहतीं थीं । प्रभु के प्रेमी और प्रभु के भक्त के मन में बस एक ही संकल्प उठता है कि प्रभु उससे प्रसन्न रहे । वह अपने समस्त कर्म प्रभु की प्रसन्नता के लिए ही करता है । उसके जीवन की सभी चेष्टाएं प्रभु को प्रसन्न करने के लिए ही होती है । यह सिद्धांत भी है कि जिसने प्रभु को प्रसन्न कर लिया उसे मानव जीवन में फिर कुछ भी अर्जित करना शेष नहीं बचता । शास्त्रों और ऋषियों ने यही बात कही है कि मानव जीवन प्रभु की प्रसन्नता के लिए उपयोग करना चाहिए तभी यह जीवन सार्थक है ।
जीव को अपनी हर क्रिया से प्रभु को प्रसन्न करने का प्रयास जीवन में करना चाहिए ।
प्रकाशन तिथि : 29 मार्च 2017 |
728 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 33
श्लो 40 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
परीक्षित ! जो धीर पुरुष बृजयुवतियों के साथ भगवान श्रीकृष्ण के इस चिन्मय रास-विलास का श्रद्धा के साथ बार-बार श्रवण और वर्णन करता है, उसे भगवान के चरणों में परा भक्ति की प्राप्ति होती है । ....
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन प्रभु श्री शुकदेवजी ने महारास के श्रवण की फलश्रुति के रूप मे राजा श्री परीक्षितजी को कहे ।
श्रीरास श्रीमद् भागवतजी का हृदय है पर सभी संसारी जीव इसको सुनने के अधिकारी नहीं हैं । जिनकी बुद्धि में प्रभु की लीलाओं के प्रति अपूर्व श्रद्धा भाव है और जिनकी बुद्धि में प्रभु की लीलाओं के लिए तनिक भी तर्क बुद्धि नहीं है, वे ही इसके श्रवण के पात्र हैं । पर जो प्रभु के प्रेमीभक्त इस श्रीरास लीला का श्रद्धा के साथ श्रवण, पठन या चिंतन करते हैं उनके सारे विकार शीघ्र ही नष्ट हो जाते हैं और उन्हें प्रभु की परम भक्ति की प्राप्ति होती है । जो जीव प्रभु की दिव्य श्रीरास लीला का चिंतन करते हैं वे अपने सभी विकारों से छुटकारा पा जाते हैं और उनका हृदय अत्यंत निर्मल हो जाता है । उनके विकार सर्वदा के लिए नष्ट हो जाते हैं ।
इसलिए अपने भीतर प्रभु के लिए ऐसी अदभुत श्रद्धा का निर्माण करना चाहिए जिससे हम श्रीरास का श्रवण, पठन और चिंतन करने की पात्रता पा सके ।
प्रकाशन तिथि : 29 मार्च 2017 |
729 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 34
श्लो 09 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
भगवान के श्रीचरणों का स्पर्श होते ही अजगर के सारे अशुभ भस्म हो गए ....
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन प्रभु श्री शुकदेवजी ने राजा श्री परीक्षितजी को कहे ।
एक बार श्रीशिवरात्रि के अवसर पर देवाधिदेव प्रभु श्री महादेवजी की आराधना करने के लिए श्री नंदजी ने एवं सभी बृजवासियों ने श्रीसरस्वती नदी के तट पर आकर प्रभु श्री महादेवजी एवं भगवती अंबिका माता का पूजन किया और रात को वहीं सो गए । वहाँ एक अजगर रहता था जो भूखा था । उसने श्री नंदजी को पकड़ लिया । श्री नंदजी ने विपत्ति में तुरंत प्रभु को पुकारा । इतने में ही भक्तवत्सल प्रभु वहाँ पहुँच गए और उन्होंने मात्र अपने श्रीकमलचरणों से उस अजगर को छू दिया । प्रभु के श्रीकमलचरणों का स्पर्श होते ही उस अजगर के सारे अशुभ भस्म हो गए और वह उसी क्षण उस अजगर शरीर से मुक्त हो गया ।
सिद्धांत यह है कि प्रभु के श्रीकमलचरणों का स्पर्श तत्काल ही हमारे सभी अशुभों का नाश करने की अलौकिक क्षमता रखता है ।
प्रकाशन तिथि : 30 मार्च 2017 |
730 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 34
श्लो 15 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
समस्त पापों का नाश करने वाले प्रभो ! जो लोग जन्म-मृत्यु रूप संसार से भयभीत होकर आपके चरणों की शरण ग्रहण करते हैं, उन्हें आप समस्त भयों से मुक्त कर देते हैं । अब मैं आपके श्रीचरणों के स्पर्श से शाप से छूट गया हूँ ....
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन श्री सुदर्शन विद्याधर ने प्रभु को कहे ।
ऋषि के श्राप के कारण अजगर योनि प्राप्त करने वाले श्री सुदर्शन विद्याधर को जब प्रभु के श्रीकमलचरणों का स्पर्श मात्र हुआ तो वह पाप मुक्त होकर अपनी योनि में लौट गया । उसने प्रभु की स्तुति की और प्रभु से कहा कि प्रभु जीव के समस्त पापों को नाश करने वाले हैं । जो लोग
जन्म-मृत्यु रूपी संसार चक्र से भयभीत होकर प्रभु के श्रीकमलचरणों की शरण ग्रहण करते हैं उन्हें प्रभु समस्त भयों से मुक्त कर अभय कर देते हैं । प्रभु के श्रीकमलचरणों का स्पर्श मात्र जीव का परम कल्याण करने में सर्वथा समर्थ है ।
इसलिए जीव को चाहिए कि प्रभु के श्रीकमलचरणों का सेवन जीवन में करे जिससे उसका निश्चित कल्याण हो सके ।
प्रकाशन तिथि : 30 मार्च 2017 |
731 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 34
श्लो 17 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... क्योंकि जो पुरुष आपके नामों का उच्चारण करता है, वह अपने-आपको और समस्त श्रोताओं को भी तुरंत पवित्र कर देता है । ....
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन श्री सुदर्शन विद्याधर ने प्रभु को कहे ।
जो जीव प्रभु के नामों का उच्चारण करता है वह अपने आपको तुरंत पवित्र कर लेता है । प्रभु के नाम उच्चारण की इतनी महिमा है कि जीव के सारे पाप कट जाते हैं और वह जीव पवित्र हो जाता है । प्रभु नाम का उच्चारण हम किसी से भी करवाते हैं तो वह भी पवित्र हो जाता है । कलियुग में प्रभु नाम की महिमा अपरंपार है । प्रभु का नाम उच्चारण इस युग में जीव की मुक्ति का सबसे बड़ा साधन है । प्रभु नाम उच्चारण अधम से अधम और पापी से पापी को भी तार देता है ।
इसलिए जीवन में प्रभु नाम के जप की आदत जरूर डालनी चाहिए जिससे हमारा उद्धार संभव हो सके ।
प्रकाशन तिथि : 31 मार्च 2017 |
732 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 35
श्लो 01 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
परीक्षित ! भगवान श्रीकृष्ण के गौओं को चराने के लिए प्रतिदिन वन में चले जाने पर उनके साथ गोपियों का चित्त भी चला जाता था । उनका मन श्रीकृष्ण का चिंतन करता रहता और वे वाणी से उनकी लीलाओं का गान करती रहती । इस प्रकार वे बड़ी कठिनाई से अपना दिन बिताती ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन प्रभु श्री शुकदेवजी ने राजा परीक्षित को कहे ।
प्रभु जब गौचारण के लिए प्रतिदिन सुबह वन में जाते थे तो गोपियों का चित्त भी प्रभु के साथ चला जाता था । गोपियां प्रभु से प्रेमाभक्ति में इतना एकाकार हो गईं थीं कि उनका चित्त सर्वदा प्रभु के साथ ही रहता था । प्रभु के गौचारण के लिए वन को जाने के बाद गोपियां दिन में भी प्रभु का ही चिंतन करती और अपनी वाणी से प्रभु के विभिन्न श्रीलीलाओं का गान करतीं रहती । वे प्रभु को एक पल के लिए भी भूल नहीं पाती और दिन भर प्रभु को याद करतीं रहती । इस प्रकार उनका दिन बड़ी कठिनाई से व्यतीत होता ।
संतजन कहते हैं कि बड़े-बड़े महात्मा प्रयास करके प्रभु को याद करना चाहते हैं और गोपियां थी कि प्रयास करके प्रभु को भूलना चाहती थी जिससे वे संसार का काम कर सके क्योंकि प्रभु निरंतर उनके हृदय पटल पर छाए रहते थे । यह गोपियों की महानता का प्रतीक है इसलिए उनके प्रभु प्रेम की बराबरी कोई नहीं कर सकता ।
प्रकाशन तिथि : 31 मार्च 2017 |
733 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 35
श्लो 02 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
अरी सखी ! अपने प्रेमीजनों को प्रेम वितरण करने वाले और द्वेष करने वालों तक को मोक्ष दे देने वाले श्यामसुंदर ....
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन श्री युगल गीत में गोपियों ने आपस में कहे ।
प्रभु अपने प्रेमीजनों में प्रेम वितरण करने वाले हैं । जो प्रभु से प्रेम करते हैं वे प्रभु का भी प्रेम पाते हैं । भक्तों और प्रेमियों के बीच दिव्य प्रेम का वितरण करना प्रभु का स्वभाव है । जहाँ एक तरफ अपने से प्रेम करने वाले को प्रभु प्रेम का दान करते हैं वही दूसरी तरफ अपने से द्वेष करने वाले को भी प्रभु मोक्ष प्रदान करते हैं । रावण, कंस, शिशुपाल आदि अनेक उदाहरण हैं जिन्होंने प्रभु से द्वेष किया और प्रभु ने उन्हें भी सद्गति प्रदान की । अकल्याण नाम की वस्तु प्रभु के पास है ही नहीं इसलिए जो भी प्रभु से जिस भी भाव के साथ टकराता है प्रभु उसका कल्याण ही करते हैं ।
सिद्धांत यह है कि प्रभु सभी का कल्याण करते हैं और सभी से प्रेम करते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 01 अप्रैल 2017 |
734 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 35
श्लो 04 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... वे जब दुखीजनों को सुख देने के लिए, विरहियों के मृतक शरीर में प्राणों का संचार करने के लिए बांसुरी बजाते हैं, तब बृज के झुंड-के-झुंड बैल, गौएं और हरिन उनके पास ही दौड़ आते हैं । ....
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन श्री युगल गीत में गोपियों ने आपस में कहे ।
प्रभु के प्रेम का प्रभाव पशु-पक्षी पर कितना होता है यह भाव गोपियां प्रकट करती हैं । दुःखी जनों को सुख देने का प्रभु का व्रत है और प्रभु जब पशु-पक्षी को सुख देने के लिए बांसुरी बजाते हैं तो पशु-पक्षी के शरीर में मानो नवीन प्राणों का संचार हो उठता है । पशु और पक्षी झुंड-के-झुंड प्रभु के पास दौड़ कर आ जाते हैं और दोनों कान खड़े करके स्थिर भाव से खड़े हो जाते हैं । प्रभु की बांसुरी की तान उनके चित्त को चुरा लेती है । वे मंत्रमुग्ध हो जाते हैं और उनके दातों से चबाया हुआ खाना मुँह में ज्यों-का-त्यों पड़ा रह जाता है । न तो वे उसे निगल पाते हैं और न ही उगल पाते हैं ।
प्रभु में सभी को मुग्ध करने की अदभुत शक्ति है ।
प्रकाशन तिथि : 01 अप्रैल 2017 |
735 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 35
श्लो 06 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... नदियों की गति भी रुक जाती है । वे चाहती हैं कि वायु उड़ाकर हमारे प्रियतम के चरणों की धूलि हमारे पास पहुँचा दे और उसे पाकर हम निहाल हो जाएं ....
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन श्री युगल गीत में गोपियों ने आपस में कहे ।
गोपियां कहतीं हैं कि जब प्रभु बांसुरी बजाते हैं तब नदियों की गति भी रुक जाती है । ऐसा प्रतीत होता है मानों जल प्रवाह इस उम्मीद में रुक गया हो कि वायु उड़ाकर प्रभु के श्रीकमलचरणों की रज उनके पास पहुँचा दे जिससे वे निहाल हो जाए । नदियां प्रभु के श्रीकमलचरणों की रज प्राप्त करने के लिए लालायित हो उठती हैं और इस कारण उनकी गति को वे रोक देती हैं । वायु से उड़कर प्रभु के श्रीकमलचरणों की रज नदी का स्पर्श कर उन्हें पवित्र कर दें इसी आशा के साथ नदियां अपना प्रवाह रोक कर रुक जाती हैं और इसका इंतजार करती रहती हैं ।
प्रभु के श्रीकमलचरणों की रज को पाने की लालसा सबके अंदर होती है क्योंकि वे हमारा तत्काल कल्याण करने का सामर्थ्य रखते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 02 अप्रैल 2017 |
736 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 35
श्लो 08 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... उस समय वन के वृक्ष और लताएं फूल और फलों से लद जाती हैं, उनके भार से डालियां झुककर धरती छूने लगती हैं, मानो प्रणाम कर रही हों ....
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन श्री युगल गीत में गोपियों ने आपस में कहे ।
प्रभु जब वन में गौचारण के लिए आते हैं तो वन के वृक्ष और लताएं फूलों और फलों से लद जाती थी । इसके तीन कारण संतजनों ने व्याख्या करते हुए बताए हैं । पहला कारण यह है कि वृक्ष और लताएं अपने फूलों और फलों को प्रभु को अर्पण करना चाहती हैं । दूसरा कारण कि वृक्ष और लताएं अपने फूलों और फलों से प्रभु का वन में स्वागत करती हैं । तीसरा कारण कि वृक्ष और लताएं अपने फूलों और फलों से लद जाने के कारण भार से झुककर धरती माता को छूने लगती है और इस प्रकार झुककर वे मानो प्रभु को प्रणाम कर रही हो ।
जब प्रभु प्रकृति के बीच होते हैं तो प्रकृति आनंदित हो उठती है और विभिन्न प्रकार से प्रभु का अभिनंदन करती हैं और प्रभु की सेवा करती हैं ।
प्रकाशन तिथि : 02 अप्रैल 2017 |
737 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 35
श्लो 10 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
अरे सखी ! जितनी भी वस्तुएं संसार में या उसके बाहर देखने योग्य हैं, उनमें सबसे सुंदर, सबसे मधुर, सबके शिरोमणि हैं, ये हमारे मनमोहन हैं । ....
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन श्री युगल गीत में गोपियों ने आपस में कहे ।
गोपियां कहतीं हैं कि जितना भी संसार में या संसार के बाहर देखने योग्य कुछ भी है उनमें सबसे सुंदर, सबसे मधुर और सबके शिरोमणि प्रभु ही हैं । एक सिद्धांत है कि जिनको प्रभु से प्रेम होगा उन्हें संसार में सबसे प्यारे प्रभु ही लगेंगे । इसके विपरीत जिन्हें संसार से प्रेम होगा उन्हें संसार ही सबसे ज्यादा प्रभावित करेगा । गोपियों का एकमात्र प्रभु से अनन्य प्रेम था इसलिए उन्हें संसार में और संसार के बाहर भी प्रभु ही सबसे प्रिय, सबसे सुंदर और मधुर लगे ।
इसलिए जीव को चाहिए कि उसे संसार से प्रेम न होकर संसार के निर्माता प्रभु से प्रेम हो तभी उसका कल्याण संभव है ।
प्रकाशन तिथि : 03 अप्रैल 2017 |
738 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 35
श्लो 11 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... उस मोहक संगीत को सुनकर सरोवर में रहने वाले सारस, हंस आदि पक्षियों का भी चित्त उनके हाथ से निकल जाता है, छिन जाता है । वे विवश होकर प्यारे श्यामसुंदर के पास आ बैठते हैं तथा आँखें मूंद, चुपचाप, चित्त एकाग्र करके उनकी आराधना करने लगते हैं ....
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन श्री युगल गीत में गोपियों ने आपस में कहे ।
प्रभु जब बांसुरी वादन करते हैं तो उस मधुर संगीत को सुनकर मुनिजन जो कि सारस, हंस और पक्षियों का रूप लेकर श्रीबृज में प्रभु की श्रीलीला में शामिल होने के लिए उपस्थित हैं, उनका चित्त उनके हाथ से निकल जाता है । प्रभु के बांसुरी वादन की महिमा इतनी है कि मुनिजनों का चित्त ही आकृष्ट करके प्रभु उनसे छीन लेते हैं । वे विवश होकर, प्यारे प्रभु के पास आकर बैठ जाते हैं । वे एकाग्र होकर अपनी आँखों को मूंद कर, चुपचाप बैठकर प्रभु की आराधना करने लगते हैं ।
प्रभु का प्रभाव सभी जीवों पर असीम रूप से पड़ता है और सभी प्रभु के सानिध्य में भाव विभोर हो जाते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 03 अप्रैल 2017 |
739 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 35
श्लो 13 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... नन्हीं-नन्हीं फुहियों के रूप में ऐसा बरसने लगता है, मानो दिव्य पुष्पों की वर्षा कर रहा हो । ....
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन श्री युगल गीत में गोपियों ने आपस में कहे ।
जब प्रभु वन में बांसुरी बजाते हैं तो मानो वे आनंद से भरकर अपनी ध्वनि से विश्व का आलिंगन कर रहे हो । उस समय मेघ बांसुरी की तान सुनकर मंद-मंद गरजने लगते हैं । पर वे इस बात का विशेष ध्यान रखते हैं कि उनकी गर्जना जोर से न हो और बांसुरी की तान से विपरीत न हो अन्यथा बेसुरापन आ जाने पर प्रभु का अपराध हो जाएगा । मेघ प्रभु के ऊपर आकर छाया करते हैं और छत्र बन जाते हैं । वे मेघ प्रसन्न होकर नन्ही-नन्ही फुहार के रूप में प्रभु को शीतल करने के लिए बरसते हैं जिससे ऐसा लगता है मानो दिव्य पुष्पों की वर्षा हो रही हो ।
प्रकृति का हर अंग प्रभु की सेवा में तत्पर रहता है ।
प्रकाशन तिथि : 05 अप्रैल 2017 |
740 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 35
श्लो 18 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... तुलसी की मधुर गंध उन्हें बहुत प्यारी है । इसीसे तुलसी की माला को तो वे कभी छोड़ते ही नहीं, सदा धारण किए रहते हैं । ....
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन श्री युगल गीत में गोपियों ने आपस में कहे ।
उपरोक्त श्लोक में श्री तुलसी माता की महिमा का वर्णन है । श्री तुलसी माता प्रभु को अत्यंत प्रिय हैं । श्री तुलसी माता की मधुर सुगंध प्रभु को अत्यंत प्रिय लगती है । श्री तुलसीजी की माला को प्रभु सदैव धारण करते हैं और कभी उसे छोड़ते नहीं । सनातन धर्म में श्री तुलसी माता का बहुत बड़ा महत्व है । प्रभु जब भोग ग्रहण करते हैं तो जब तक उसमें श्री तुलसी दल अर्पण नहीं किया जाता तब तक प्रभु उसे स्वीकार नहीं करते । मृत्यु बेला में जीव के मुँह में श्री तुलसी दल एवं श्री गंगाजल होने का बड़ा भारी महत्व है । श्री तुलसीजी की माला भक्त के गले में होना एक रक्षा कवच का काम करती है ।
हमारे भीतर भगवती श्री तुलसीजी के प्रति माता का भाव सदैव जागृत होना चाहिए ।
प्रकाशन तिथि : 05 अप्रैल 2017 |
741 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 35
श्लो 26 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
परीक्षित ! बड़भागिनी गोपियों का मन श्रीकृष्ण में ही लगा रहता था । वे श्रीकृष्णमय हो गई थी । ....
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन प्रभु श्री शुकदेवजी ने राजा श्री परीक्षितजी को कहे ।
प्रभु श्री शुकदेवजी गोपियों को बड़भागिनी कह कर संबोधित करते हैं क्योंकि गोपियों का मन सदैव प्रभु में लगा रहता है । यह सिद्धांत है कि जिसका मन प्रभु में लग जाता है उसके भाग्य की तुलना किसी से भी नहीं की जा सकती । गोपियों का मन इतना प्रभु में लगा रहता है कि वे श्रीकृष्णमय ही हो जाती हैं । जब प्रभु दिन में गौचारण के लिए वन में चले जाते हैं तो वे पीछे से प्रभु का ही नित्य चिंतन करती रहती हैं । गोपियां आपस में प्रभु की श्रीलीलाओं का गान करती एवं उनमें ही रम जाती हैं । प्रभु का चिंतन, प्रभु का गुणगान करना ही मानो उनकी दिनचर्या होती है ।
गोपियों का प्रभु प्रेम देखकर हमें भी प्रभु से प्रेम करने की शिक्षा लेनी चाहिए ।
प्रकाशन तिथि : 06 अप्रैल 2017 |
742 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 37
श्लो 11 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
सच्चिदानंदस्वरूप श्रीकृष्ण ! आपका स्वरूप मन और वाणी का विषय नहीं है । आप योगेश्वर हैं । सारे जगत का नियंत्रण आप ही करते हैं । आप सबके हृदय में निवास करते हैं और सब-के-सब आपके हृदय में निवास करते हैं । आप भक्तों के एकमात्र वांछनीय, यदुवंश-शिरोमणि और हमारे स्वामी हैं ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन देवर्षि प्रभु श्री नारदजी ने प्रभु की स्तुति में कहे ।
प्रभु का स्वरूप हमारे मन और वाणी से अतीत है । मन और वाणी से प्रभु के स्वरूप की व्याख्या नहीं की जा सकती है । प्रभु सारे जगत को नियंत्रण करने वाले हैं । पूरा जगत प्रभु की शक्ति से ही नियंत्रित होता है । प्रभु सभी के हृदय में निवास करते हैं । सभी जीव प्रभु के अंदर निवास करते हैं । प्रभु भक्तों के एकमात्र स्वामी हैं । जैसे अग्नि सभी लकड़ियों में व्याप्त रहती है वैसे ही प्रभु सभी के अंदर व्याप्त हैं । प्रभु समस्त प्राणियों की आत्मा में विद्यमान हैं । प्रभु साक्षी भाव से सबके अंदर विराजते हैं ।
इसलिए जीव को अपना रिश्ता प्रभु से जोड़कर रखना चाहिए और उसे भक्ति के द्वारा मजबूती प्रदान करते रहना चाहिए ।
प्रकाशन तिथि : 06 अप्रैल 2017 |
743 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 37
श्लो 13 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... यह सब करने के लिए आपको अपने से अतिरिक्त और किसी भी वस्तु की आवश्यकता नहीं है । क्योंकि आप सर्वशक्तिमान और सत्य संकल्प हैं ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन देवर्षि प्रभु श्री नारदजी ने प्रभु की स्तुति में कहे ।
जगत की उत्पत्ति, संचालन और प्रलय के लिए प्रभु को अपने अतिरिक्त किसी भी वस्तु की आवश्यकता नहीं है क्योंकि प्रभु सर्वशक्तिमान और सर्वसामर्थ्यवान हैं । प्रभु के द्वारा ही जगत की उत्पत्ति, संचालन और प्रलय होता है और इसके लिए प्रभु को किसी की सहायता या किसी के बल की आवश्यकता नहीं होती क्योंकि यह सब प्रभु की शक्ति से ही होता है । दूसरी बात यह है कि प्रभु के समान शक्तिशाली इस संसार में तो क्या पूरे ब्रह्मांड में कोई भी नहीं है और प्रभु के अलावा संसार में किसी का अस्तित्व ही नहीं है । इसलिए प्रभु को कुछ भी करने के लिए अपने अलावा किसी की भी आवश्यकता ही नहीं है ।
जगत में प्रभु का ही अस्तित्व है एवं प्रभु के अलावा अन्य किसी का अस्तित्व ही नहीं है ।
प्रकाशन तिथि : 07 अप्रैल 2017 |
744 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 37
श्लो 23 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... आप नित्य निरंतर अपने परमानंदस्वरूप में स्थित रहते हैं । इसलिए सारे पदार्थ आपको नित्य प्राप्त ही हैं । आपका संकल्प अमोघ है । ....
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन देवर्षि प्रभु श्री नारदजी ने प्रभु की स्तुति में कहे ।
प्रभु नित्य निरंतर अपने परमानंद स्वरूप में स्थित रहते हैं । प्रभु आनंद स्वरूप हैं और नित्य परमानंद में ही रहते हैं । इसलिए शास्त्रों और संतों ने प्रभु को सच्चिदानंद कहा है । जो प्रभु की भक्ति करता है और जो प्रभु से जुड़ जाता है उसे भी प्रभु के द्वारा आनंद प्रदान किया जाता है । संसार में वही जीव परमानंद की प्राप्ति करता है जो सच्ची भक्ति से प्रभु से जुड़ जाता है । जगतपति होने के कारण जगत के सारे पदार्थ प्रभु को नित्य प्राप्त रहते हैं । प्रभु का प्रत्येक संकल्प अमोघ होता है और पूर्ण होकर ही रहता है । प्रभु का कोई भी संकल्प पूरा हुए बिना कभी नहीं रहता ।
जिस जीव को संसार में रहकर आनंद की अनुभूति करनी है उसे प्रभु से जुड़ना ही पड़ेगा तभी ऐसा संभव हो पाएगा ।
प्रकाशन तिथि : 07 अप्रैल 2017 |