क्रम संख्या |
श्रीग्रंथ |
अध्याय -
श्लोक संख्या |
भाव के दर्शन / प्रेरणापुंज |
673 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 21
श्लो 13 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... उनके हृदय में भी होता है भगवान का संस्पर्श और नेत्रों में छलकते होते हैं आनंद के आंसू । ....
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन गोपियों ने आपस में बातचीत करते हुए एक दूसरे से कहे ।
प्रभु की बांसुरी सुनकर गोपियां तो प्रेममग्न होती ही है और वन के पशु-पक्षी भी मंत्रमुग्ध हो जाते हैं । गौ-माताएं जब प्रभु की बांसुरी की ध्वनि सुनती हैं तो अपने दोनों कानों को खड़े कर लेती हैं और संगीत का रस लेने लगती है । ऐसा प्रतीत होता है मानो वे अमृत पान कर रही हैं । गौ-माताएं अपने नेत्रों से प्रभु की छवि को अपने हृदय में विराजमान कर देती हैं और मन-ही-मन प्रभु का आलिंगन करती हैं । उनके नेत्रों से आनंद के आंसू छलकने लगते हैं । उनका हृदय प्रभु का स्पर्श पाते ही आनंदित हो उठता है और उनके थनों से अपने आप दूध झरता रहता है ।
सिर्फ प्रभु ही हैं जो सबको मंत्रमुग्ध करने की क्षमता रखते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 28 फरवरी 2017 |
674 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 21
श्लो 14 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... वृंदावन के पक्षियों को तुम नहीं देखती हो । उन्हें पक्षी कहना ही भूल है । सच पूछो तो उनमें से अधिकांश बड़े-बड़े ऋषि-मुनि हैं । ....
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन गोपियों ने आपस में बातचीत करते हुए एक दूसरे से कहे ।
श्री वृंदावनजी के पशु पक्षियों को पशु-पक्षी कहना ही भूल है क्योंकि वे वास्तव में श्रेष्ठ देवता, ऋषि और मुनि हैं जिन्होंने प्रभु की लीला स्थली में प्रभु की श्रीलीला में शामिल होने के लिए जन्म लिया है । यह पशु-पक्षी प्रभु के बांसुरी वादन के समय प्रभु के आस पास बैठ जाते हैं और अपनी आँखों से प्रभु के रूप माधुर्य को देखकर निहाल होते रहते हैं । अपने कानों को अन्य सभी प्रकार के शब्दों को छोड़कर वे प्रभु की बांसुरी की ध्वनि में ही केंद्रित करते हैं और अपना जीवन धन्य करते हैं ।
प्रभु का सानिध्य पाने के लिए वन के सभी पशु, पक्षी, वृक्ष, लताएं लालायित रहते हैं । प्रभु सभी को अपनी श्रीलीला में शामिल करके आनंद का दान देते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 28 फरवरी 2017 |
675 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 21
श्लो 15 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... ये अपनी तरंगों के हाथों से उनके चरण पकड़ कर कमल के फूलों का उपहार चढ़ा रही हैं और उनका आलिंगन कर रही हैं, मानो उनके चरणों पर अपना हृदय ही निछावर कर रही हैं ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन गोपियों ने आपस में बातचीत करते हुए एक दूसरे से कहे ।
गोपियां कहतीं हैं कि पशु, पक्षी, वृक्ष, लताओं की बात छोड़ दो, इन नदियों को भी प्रभु से मिलने की तीव्र इच्छा होती है । वे अपने प्रवाह को रोक कर प्रभु की बांसुरी की धुन सुनती हैं । वे अपनी तरंगों के माध्यम से अपने अंदर खिले कमल के फूलों को किनारे लाकर मानो प्रभु को अर्पण करती हैं । वे अपने जल से मानों प्रभु का आलिंगन करती हैं और प्रभु के श्रीकमलचरणों में अपना हृदय न्यौछावर कर रही हैं ।
प्रभु से संपर्क में आने वाले प्रत्येक तत्व में मानो होड़-सी लगी है कि वे अपने आप को प्रभु पर न्यौछावर करे ।
प्रकाशन तिथि : 01 मार्च 2017 |
676 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 21
श्लो 16 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... वे उनके ऊपर मंडराने लगते हैं और वे श्यामघन अपने सखा धनश्याम के ऊपर अपने शरीर को ही छाता बनाकर तान देते हैं । ....
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन गोपियों ने आपस में बातचीत करते हुए एक दूसरे से कहे ।
गोपियां कहतीं हैं कि श्री वृंदावनजी की प्रत्येक वस्तु तो प्रभु पर मोहित है ही पर आकाश के बादल भी प्रभु की सेवा में तत्पर हैं । जब प्रभु गौचारण करते हुए बांसुरी बजाते हैं तो आकाश के बादलों के हृदय में प्रेम उमड़ आता है । वे प्रभु के ऊपर छाया करने के लिए मंडराते हैं और छाता बनकर अपने आपको तान देते हैं जिससे प्रभु को कष्ट न हो । वे प्रभु को शीतल करने के लिए नन्ही-नन्ही फुहारों की वर्षा करने लगते हैं । ऐसा प्रतीत होता है मानो वे प्रभु का श्रृंगार करते हुए प्रभु पर कुमकुम चढ़ा रहे हो । इस प्रकार बादल भी अपने जीवन को प्रभु सेवा में न्यौछावर कर रहे हैं ।
प्रभु की सेवा के लिए संपूर्ण प्रकृति तत्पर रहती है ।
प्रकाशन तिथि : 01 मार्च 2017 |
677 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 22
श्लो 20 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... क्योंकि उन्हें नमस्कार करने से ही सारी त्रुटियों और अपराधों का मार्जन हो जाता है ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - यहाँ एक सिद्धांत का प्रतिपादन मिलता है कि अगर हमसे कोई त्रुटि हो गई या कोई अपराध हो गया तो सभी कर्मों के साक्षी प्रभु की शरण में आने पर उसका मार्जन हो जाता है ।
जीव जीवन में त्रुटियां और अपराध कर बैठता है । जीव का स्वभाव है कि उससे गलती होती है । इसके मार्जन का एक ही उपाय है कि प्रभु जो की हमारे सभी कर्मों के साक्षी हैं उनकी शरण ग्रहण की जाए, अपराध के लिए प्रभु से क्षमायाचना कर सच्चा प्रायश्चित किया जाए और उस अपराध को जीवन में दोबारा नहीं दोहराने का संकल्प किया जाए । अगर ऐसा किया जाता है तो प्रभु सभी त्रुटियों और अपराधों के लिए तत्काल क्षमादान दे देते हैं ।
प्रभु क्षमामूर्ति हैं और हमारी त्रुटियों और अपराधों को तत्काल क्षमा कर देते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 02 मार्च 2017 |
678 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 22
श्लो 26 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
जिन्होंने अपना मन और प्राण मुझे समर्पित कर रखा है, उनकी कामनाएं उन्हें सांसारिक भोगों की ओर ले जाने में समर्थ नहीं होती, ठीक वैसे ही, जैसे भुने या उबाले हुए बीज फिर अंकुर के रूप में उगने के योग्य नहीं रह जाते ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन प्रभु ने कुमारियों को कहे ।
प्रभु कहते हैं कि जिन्होंने अपना मन और प्राण प्रभु को समर्पित कर रखा है उनके मन में सांसारिक भोगों की कोई कामना नहीं होती । उनकी कामनाएं उन्हें अधीन करके सांसारिक भोगों की तरफ ले जाने का सामर्थ्य नहीं रखती । प्रभु उपमा देते हैं कि जैसे भुने या उबाले हुए बीज को धरती में बोया जाए तो वे अंकुरित नहीं होते, वैसे ही सांसारिक भोग की कामना प्रभु के भक्तों के मन में कभी अंकुरित नहीं होती । जो जीव प्रभु को समर्पित हो जाता है उसे सांसारिक भोग कभी आकर्षित नहीं कर सकते ।
इसलिए जीव को चाहिए कि वह प्रभु को समर्पित होकर अपना जीवन यापन करे जिससे सांसारिक भोगों के दलदल में उसे नहीं फंसना पड़े ।
प्रकाशन तिथि : 02 मार्च 2017 |
679 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 23
श्लो 19 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... तथा भाई-बंधु, पति-पुत्रों के रोकते रहने पर भी अपने प्रियतम भगवान श्रीकृष्ण के पास जाने के लिए घर से निकल पड़ी, ठीक वैसे ही, जैसे नदियां समुद्र के लिए । ....
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - प्रभु एक बार ग्वाल बालकों के साथ गौचारण करते हुए वन में काफी दूर तक चले गए । ग्वाल बालकों को भूख लगी तो उन्होंने प्रभु से यह बात कही । प्रभु ने ब्राह्मण पत्नियों पर अनुग्रह करने के लिए श्रीलीला की ।
प्रभु ने ग्वाल बालकों से कहा कि यहाँ से कुछ दूरी पर ब्राह्मण यज्ञ कर रहें हैं । उनसे जाकर प्रभु का नाम लेकर भोजन सामग्री मांग कर ले आओ । ब्राह्मण स्वार्गादि तुच्छ फल के लिए बड़े-बड़े यज्ञ कर्मों में उलझे हुए थे और उन्होंने ग्वाल बालकों की याचना पर ध्यान नहीं दिया । तब प्रभु ने वापस ग्वाल बालकों को उन ब्राह्मण की पत्नियों के पास याचना लेकर भेजा । वे ब्राह्मण पत्नियां प्रभु के गुण, लीला, सौंदर्य और माधुर्य आदि का वर्णन सुन-सुनकर प्रभु के श्रीकमलचरणों में अपना हृदय न्यौछावर कर चुकी थी । इसलिए वे तत्काल अपने भाई, बंधु, पति, पुत्रों के रोकने पर भी किसी की परवाह किए बिना प्रभु के पास भोजन सामग्री लेकर जाने के लिए निकल पड़ीं ।
जीव को भी प्रभु की प्रभुता को समझना चाहिए और प्रभु सेवा और प्रभु मिलन की चाह रखनी चाहिए और मात्र साधनों में ही उलझकर नहीं रहना चाहिए ।
प्रकाशन तिथि : 03 मार्च 2017 |
680 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 23
श्लो 26 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
इसमें संदेह नहीं कि संसार में अपनी सच्ची भलाई को समझने वाले जितने भी बुद्धिमान पुरुष हैं, वे अपने प्रियतम के समान ही मुझसे प्रेम करते हैं, और ऐसा प्रेम करते हैं, जिसमें किसी प्रकार की कामना नहीं रहती .... ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन प्रभु ने ब्राह्मण पत्नियों को कहे ।
प्रभु कहते हैं कि संसार में अपनी सच्ची भलाई को जानने वाले जो बुद्धिमान पुरुष हैं, वे सबसे ज्यादा प्रेम प्रभु से ही करते हैं । उनका प्रेम निष्काम होता है और उस प्रेम में किसी भी प्रकार का व्यवधान, संकोच, छिपाव और दुविधा नहीं होती । संसार से प्रेम करने वाले को अंत में निराशा ही हाथ लगती है पर जो प्रभु से ही एकमात्र सच्चा प्रेम करते हैं उन्हें परमानंद की अनुभूति होती है । संसार में आकर एकमात्र प्रभु से ही प्रेम करना अपने जीवन की पूर्णता है । जीवन तभी सफल होता है जब इस जीवन में हम एकमात्र प्रभु से ही सच्चा प्रेम करें ।
इसलिए जीव को चाहिए कि वह प्रभु से अत्यंत प्रेम करके अपना मानव जीवन सफल करे ।
प्रकाशन तिथि : 03 मार्च 2017 |
681 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 23
श्लो 29 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... श्रुतियां कहती हैं कि जो एक बार भगवान को प्राप्त हो जाता है, उसे फिर संसार में नहीं लौटना पड़ता । ....
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन ब्राह्मण पत्नियों ने प्रभु से कहे ।
यहाँ एक सिद्धांत का प्रतिपादन मिलता है । सिद्धांत यह है कि जो एक बार प्रभु को प्राप्त कर लेता है उसे फिर संसार में नहीं लौटना पड़ता है । जब तक हम प्रभु को प्राप्त नहीं करते हमें संसार चक्र में उलझकर जन्म और मृत्यु के चक्र में फंसे रहना पड़ता है । पर जब हम भक्ति से प्रभु को प्राप्त कर लेते हैं तो हमारा संसार से आवागमन सदैव के लिए समाप्त हो जाता है और फिर हमें कभी भी संसार में नहीं लौटना पड़ता है । हम जन्म और मृत्यु के चक्र से सदैव के लिए मुक्त हो जाते हैं । जन्म और मृत्यु का चक्र तभी तक है जब तक हमें प्रभु की प्राप्ति नहीं हो जाती ।
इसलिए जीव को चाहिए कि वह अपने मानव जीवन में प्रभु प्राप्ति का प्रयास करे जिससे कि पुनः उसे संसार में कभी नहीं आना पड़े ।
प्रकाशन तिथि : 04 मार्च 2017 |
682 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 23
श्लो 30 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... वीरशिरोमणे ! अब हम आपके चरणों में आ पड़ी हैं । हमें और किसी का सहारा नहीं है । इसलिए अब हमें दूसरों की शरण में न जाना पड़े, ऐसी व्यवस्था कीजिए ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन ब्राह्मण पत्नियों ने प्रभु से कहे ।
उपरोक्त वचन में शरणागति भाव की प्रधानता है । जीव को प्रभु की शरण में आकर क्या प्रार्थना करनी चाहिए इसका सुंदर दृष्टांत यहाँ देखने को मिलता है । ब्राह्मण पत्नियां प्रभु से कहती हैं कि अब वे प्रभु के श्रीकमलचरणों में आ पड़ी हैं । प्रभु के श्रीकमलचरणों के अलावा उन्हें और किसी का सहारा नहीं है । वे प्रभु से कहती हैं कि अब कभी उन्हें किसी दूसरे की शरण में नहीं जाना पड़े, ऐसी व्यवस्था प्रभु सदैव के लिए कर दें । शरणागति में इन्हीं बातों की प्रधानता होती है । पहली बात, प्रभु की शरण ग्रहण करना । दूसरी बात, प्रभु के अलावा किसी से कोई आस नहीं रखना । तीसरी बात, प्रभु के अलावा किसी दूसरे की शरण में कभी नहीं जाना ।
जीव को चाहिए कि अपने मानव जीवन में प्रभु की पूर्ण शरणागति ग्रहण करे ।
प्रकाशन तिथि : 04 मार्च 2017 |
683 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 23
श्लो 31 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... उनकी तो बात ही क्या, सारा संसार तुम्हारा सम्मान करेगा । इसका कारण है कि अब तुम मेरी हो गई हो, मुझसे युक्त हो गई हो । ....
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन प्रभु ने ब्राह्मण पत्नियों को कहे ।
ब्राह्मण पत्नियां प्रभु से मिलने के लिए अपने भाई, पति और पुत्रों के रोकने और मना करने के बाद भी गई । इसलिए उन्हें डर था कि वापस जाने पर उनके भाई, पति और पुत्र उनका तिरस्कार करेंगे । उनकी यह वेदना अंतर्यामी प्रभु जानते थे । इसलिए प्रभु ने उन्हें सांत्वना देते हुए कहा कि अब वे प्रभु की शरण में आ चुकी है और प्रभु की बन गई हैं इसलिए अब उनका परिवार तो क्या सारा संसार उनका सम्मान करेगा । यहाँ पर प्रभु के उक्त वचन से एक सिद्धांत का प्रतिपादन होता है । सिद्धांत यह है कि जो प्रभु से युक्त हो जाते हैं उस जीव का सम्मान सारा संसार करता है । ऐसे जीव संसार के लिए पूज्य हो जाते हैं । इसके उदाहरण हमारे ऋषि, संत और भक्त हैं ।
इसलिए जीव को चाहिए कि वह प्रभु की शरणागति लेकर प्रभु का बन जाए तभी उसका मानव जीवन सफल होगा ।
प्रकाशन तिथि : 05 मार्च 2017 |
684 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 23
श्लो 44 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... अहो, भगवान की कितनी कृपा है । भक्तवत्सल प्रभु ने ग्वाल बालकों को भेजकर उनके वचनों से हमें चेतावनी दी, अपनी याद दिलाई ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन ब्राह्मणों ने आपस में बातचीत करते हुए कहे ।
जब ब्राह्मण पत्नियां प्रभु को भोजन सामग्री देकर और प्रभु का सानिध्य प्राप्त करके वापस आई और ब्राह्मणों को पता चला कि प्रभु मनुष्य लीला करते हुए साक्षात परमेश्वर ही हैं तो उन्हें बहुत पछतावा हुआ । अपनी पत्नियों के हृदय में प्रभु के लिए अलौकिक प्रेम देखकर और खुद में प्रभु के लिए वैसा प्रेम नहीं पाकर ब्राह्मणों ने खूब पछतावा किया, स्वयं की निंदा की और स्वयं को धिक्कारा । प्रभु के श्रीकमलचरणों में उनकी पत्नियों का अगाध प्रेम था जिन्होंने कोई सत्कर्म नहीं किए थे परंतु सत्कर्म करने के उपरांत भी ब्राह्मणों का प्रभु के श्रीकमलचरणों में प्रेम नहीं हो पाया था । उन्होंने प्रभु की कृपा मानी कि प्रभु ने उन्हें चेता दिया और उनकी भूल से उन्हें अवगत करा दिया ।
सूत्र यह है कि सभी कर्मों का सार प्रभु के लिए प्रेम और भक्ति निर्माण करना है । जब तक ऐसा नहीं हो पाता तब तक हमारे वह कर्म सार्थक सिद्ध नहीं होंगे ।
प्रकाशन तिथि : 05 मार्च 2017 |
685 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 23
श्लो 49 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
यह सब होने पर भी हम धन्यातिधन्य हैं, हमारे अहोभाग्य हैं । तभी तो हमें वैसी पत्नियां प्राप्त हुई हैं । उनकी भक्ति से हमारी बुद्धि भी भगवान श्रीकृष्ण के अविचल प्रेम से युक्त हो गई है ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन ब्राह्मणों ने आपस में बातचीत करते हुए कहे ।
जब ब्राह्मणों को प्रभु का सानिध्य प्राप्त नहीं कर पाने के कारण पछतावा हुआ और उन्होंने अपने स्वयं को धिक्कारा तब साथ ही उन्हें सांत्वना भी मिली । उन्होंने अपना अहोभाग्य मान कर अपने को धन्य माना कि उन्हें ऐसी पत्नियां प्राप्त हुई है जो प्रभु से इतना अगाध प्रेम करती हैं । ध्यान देने योग्य बात यह है कि ब्राह्मणों ने माना कि उनकी पत्नियों की प्रभु भक्ति और प्रभु प्रेम के कारण ही उनकी बुद्धि भी अब प्रभु प्रेम से युक्त हो गई है । जब परिवार का कोई भी सदस्य प्रभु भक्ति करता है तो उसके भक्ति के संस्कार धीरे-धीरे दूसरों को भी प्रभावित करते हैं और वो उनके लिए भी प्रभु की भक्ति करने की प्रेरणा बनते हैं ।
जिस भी परिवार में कोई सच्चा प्रभु भक्त होता है तो वह परिवार ही तर जाता है ।
प्रकाशन तिथि : 06 मार्च 2017 |
686 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 25
श्लो 13 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... प्रभो ! इस सारे गोकुल के एकमात्र स्वामी, एकमात्र रक्षक तुम्हीं हो । भक्तवत्सल ! इंद्र के क्रोध से अब तुम्हीं हमारी रक्षा कर सकते हो ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन गोप गोपियों ने प्रभु से कहे ।
यहाँ पर भी प्रधान भाव प्रभु की शरणागति का है । जब प्रभु ने श्री गिरिराजजी प्रभु का पूजन करवाया तो श्रीइंद्रदेवजी रुष्ट हो गए और प्रलय करने वाले सावर्तक मेघों को बुलाकर श्रीबृज पर वेग से मूसलधार वर्षा करके श्रीबृज को जल में डुबो देने की आज्ञा दी । सावर्तक मेघ श्रीबृज पर जल की मोटी-मोटी धाराएं गिराने लगे और श्रीबृज का कोना-कोना पानी से भर गया और ठंड के मारे सभी बृजवासी ठिठुरने और कांपने लगे । तब सब के सब प्रभु की शरण में आए । उन्होंने प्रभु की शरणागति ली और प्रभु से कहा कि उनके एकमात्र स्वामी और एकमात्र रक्षक प्रभु ही हैं । उन्होंने भक्तवत्सल प्रभु से रक्षा करने की प्रार्थना की ।
जीव को भी विपत्ति में प्रभु की ही शरणागति ग्रहण करके एकमात्र प्रभु से ही रक्षा की आशा रखनी चाहिए ।
प्रकाशन तिथि : 06 मार्च 2017 |
687 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 25
श्लो 18 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
यह सारा बृज मेरे आश्रित है, मेरे द्वारा स्वीकृत है और एकमात्र मैं ही इसका रक्षक हूँ । अतः मैं अपनी योगमाया से इसकी रक्षा करूंगा । संतों की रक्षा करना तो मेरा व्रत ही है । अब उसके पालन का अवसर आ पहुँचा है ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - शरणागत पर प्रभु कितनी कृपा करते हैं और उसकी रक्षा करते हैं, यह प्रभु के भाव से यहाँ देखने को मिलता है ।
प्रभु का व्रत है कि जो एक बार प्रभु की शरण में आ जाता है और रक्षा की याचना करता है उसे प्रभु अभय कर देते हैं । जब बृजवासी श्री इंद्रदेवजी के कोप से बचने के लिए प्रभु की शरण में गए तो प्रभु ने उनकी रक्षा करने का संकल्प लिया । प्रभु ने देखा कि बृजवासी प्रभु पर ही आश्रित हैं और प्रभु को ही अपना एकमात्र रक्षक मानते हैं । अतः उनकी रक्षा करने का दायित्व प्रभु ने अपने ऊपर ले लिया । जब भी कोई शरणागत प्रभु को रक्षा के लिए पुकारता है प्रभु सदैव उसकी रक्षा की जिम्मेदारी का वहन करते हैं ।
जीव को चाहिए कि वह प्रभु की शरणागति ग्रहण करे और विपत्ति में प्रभु से ही रक्षा के लिए अरदास करे ।
प्रकाशन तिथि : 07 मार्च 2017 |
688 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 25
श्लो 23 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
भगवान श्रीकृष्ण ने सब बृजवासियों के देखते-देखते भूख-प्यास की पीड़ा, आराम-विश्राम की आवश्यकता आदि सब कुछ भुलाकर सात दिन तक लगातार उस पर्वत को उठाए रखा । वे एक डग भी वहाँ से इधर-उधर नहीं हुए ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - बृजवासियों को श्री इंद्रदेवजी के कोप से बचाने के लिए प्रभु ने खेल-खेल में श्री गिरिराजजी को अपनी कनिष्ठा अंगुली के नख पर धारण किया ।
फिर प्रभु ने समस्त बृजवासियों का आह्वान किया कि वे अपने परिवार और गौ-माताओं को लेकर पर्वत के उठाने पर बने गड्ढे में आकर आराम से बैठ जाए । प्रभु ने उन्हें ढांढस बंधाया और कहा कि आंधी और वर्षा से बचाने के लिए प्रभु ने यह युक्ति की है । फिर प्रभु ने अपनी भूख प्यास को त्यागकर, अपने आराम विश्राम की आवश्यकता को भुलाकर सात दिनों तक श्री गिरिराजजी को अपनी कनिष्ठा अंगुली के नख पर उठाए रखा । प्रभु अपनी जगह से सात दिनों तक एक कदम भी इधर-उधर नहीं हुए । प्रभु अपने शरणागतों के लिए अपने द्वारा दिए रक्षा के व्रत को निभाने के लिए कुछ भी कर सकते हैं । शरणागतों का अमंगल प्रभु कदापि नहीं होने देते ।
जीवन में प्रभु की शरणागति से बढ़कर कुछ भी नहीं है, इसलिए जीव को सदैव प्रभु की पूर्ण शरणागति ग्रहण करके रखनी चाहिए ।
प्रकाशन तिथि : 07 मार्च 2017 |
689 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 26
श्लो 21 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
नंदबाबा ! जो तुम्हारे इस सांवले शिशु से प्रेम करते हैं, वे बड़े भाग्यवान हैं । जैसे विष्णु भगवान के करकमलों की छत्र-छाया में रहने वाले देवताओं को असुर नहीं जीत सकते, वैसे ही इससे प्रेम करने वालों को भीतरी या बाहरी, किसी भी प्रकार के शत्रु नहीं जीत सकते ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन महर्षि श्री गर्गाचार्यजी ने श्री नंदजी को कहे ।
जब प्रभु ने सात दिनों तक अपनी कनिष्ठा अंगुली के नख पर प्रभु श्री गिरिराजजी को धारण किया तो सभी गोप प्रभु के इस अलौकिक कर्म को देखकर आश्चर्य में पड़ गए । उन्होंने श्री नंदजी से अपनी शंका का समाधान चाहा । श्री नंदजी ने उन्हें प्रभु के नामकरण के समय जो महर्षि श्री गर्गाचार्यजी ने कहा था वह बतलाया । महर्षि श्री गर्गाचार्यजी ने श्री नंदजी को कहा था कि जो तुम्हारे इस पुत्र से प्रेम करेंगे वे बड़े भाग्यवान होंगे । उन्होंने कहा था कि जैसे प्रभु की छत्रछाया में रहने वाले देवताओं को असुर जीत नहीं सकते वैसे ही प्रभु से प्रेम करने वाले को भीतरी या बाहरी किसी भी प्रकार के शत्रु कभी जीत नहीं सकेंगे ।
जीवन में अगर हमें कभी पराजित नहीं होना है तो हमें प्रभु की प्रेमाभक्ति कर प्रभु के शरण में रहना चाहिए ।
प्रकाशन तिथि : 08 मार्च 2017 |
690 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 27
श्लो 06 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
आप जगत के पिता, गुरु और स्वामी हैं । ....
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन श्री इंद्रदेवजी ने प्रभु की स्तुति करते हुए कहे ।
श्री इंद्रदेवजी अपने अपराध की क्षमा मांगने लज्जित होकर प्रभु के समक्ष उपस्थित हुए । उनका अहंकार जाता रहा कि वे ही तीनों लोकों के स्वामी हैं । उन्होंने प्रभु से कहा कि जगत के परमपिता प्रभु हैं । उन्होंने प्रभु से कहा कि प्रभु ही जगत के आदिगुरु हैं । इसलिए ही समस्त श्रीग्रंथों में प्रभु को ही जगद्गुरु की संज्ञा दी गई है । उन्होंने प्रभु से कहा कि जगत के एकमात्र स्वामी भी प्रभु ही हैं ।
इसलिए हमें भी प्रभु को जगत के पिता, जगत के गुरु और जगत के स्वामी के रूप में देखना चाहिए । जब हम ऐसा करते हैं तो प्रभु पिता की तरह हमारा दायित्व उठाते हैं, गुरु की तरह हमारा मार्गदर्शन करते हैं और स्वामी की तरह हमारे ऊपर अनुग्रह करते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 08 मार्च 2017 |
691 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 27
श्लो 16 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... मैं जिस पर अनुग्रह करना चाहता हूँ, उसके ऐश्वर्य को नष्ट कर देता हूँ ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन प्रभु ने श्री इंद्रदेवजी को कहे ।
यहाँ प्रभु ने एक सिद्धांत का प्रतिपादन किया है । प्रभु कहते हैं कि मैं जिन पर अनुग्रह करता हूँ उनके ऐश्वर्य को नष्ट कर देता हूँ । भक्तों के जीवन में यह तथ्य देखने को मिलता है कि प्रभु ने उन्हें सांसारिक माया से निकालने के लिए और अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए उनके ऐश्वर्य को खत्म किया । जब तक जीव के मन में धन, संपत्ति, वैभव और ऐश्वर्य का आकर्षण रहेगा तब तक वह प्रभु को प्राप्त नहीं कर सकता । इसलिए प्रभु सच्चे भक्तों के जीवन से ऐश्वर्य का नाश करते हैं जिससे वह वैराग्य से युक्त हो भक्ति मार्ग पर चलकर प्रभु तक पहुँचने की पात्रता पा सकें ।
भक्ति करने वाला जीव वैराग्य से युक्त हो और प्रभु तक पहुँच सके इसलिए प्रभु संसार के ऐश्वर्य को उसके मार्ग से हटाने की कृपा करते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 09 मार्च 2017 |
692 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 28
श्लो 03 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... भगवान श्रीकृष्ण सर्वशक्तिमान हैं एवं सदा से ही अपने भक्तों का भय भगाते आए हैं । .....
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - एक बार श्री नंदजी ने भूल से रात्रि में ही स्नान करने की इच्छा से श्री यमुनाजी के जल में प्रवेश किया । श्री नंदजी को मालूम नहीं था कि वह असुरों की बेला है इसलिए उनकी गलती के कारण उन्हें श्री वरुणदेवजी के सेवक पकड़कर श्रीवरुण लोक ले गए ।
जब गोपों को श्री नंदजी के खो जाने का पता चला तो वे तुरंत विलाप करते हुए प्रभु के पास पहुँचे । उन्होंने प्रभु से श्री नंदजी की रक्षा करने की अरदास की । गोप जानते थे कि प्रभु सर्वशक्तिमान हैं एवं सब कुछ करने में समर्थ हैं । गोपों को पता था कि श्री नंदजी की गलती के बावजूद भी एकमात्र प्रभु ही हैं जो श्री नंदजी को बचाकर ला सकते हैं । प्रभु का व्रत है कि वे सदा ही अपने भक्तों के भय को भगा कर उन्हें अभय करते हैं ।
किसी भी अपराध के हो जाने पर भी हमें प्रभु की शरण में ही जाना चाहिए तभी हम उस संकट से बच सकते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 09 मार्च 2017 |
693 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 28
श्लो 05 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
प्रभो ! आज मेरा शरीर धारण करना सफल हुआ । आज मुझे संपूर्ण पुरुषार्थ प्राप्त हो गया क्योंकि आज मुझे आपके चरणों की सेवा का शुभ अवसर प्राप्त हुआ है । भगवन ! जिन्हें भी आपके चरणकमलों की सेवा का सुअवसर मिला, वे भवसागर से पार हो गए ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - प्रभु जब श्री नंदजी को मुक्त करवाने श्रीवरुण लोक पहुँचे तो श्री वरुणदेवजी ने प्रभु की बड़े रूप में पूजा की । प्रभु के दर्शन से उनके रोम-रोम आनंद से खिल उठे । उन्होंने प्रभु से जो निवेदन किया वह बड़ा हृदयस्पर्शी है ।
श्री वरुणदेवजी ने प्रभु से कहा कि आज उनका शरीर धारण करना सफल हुआ क्योंकि आज प्रभु के श्रीकमलचरणों की सेवा का सुअवसर उन्हें प्राप्त हुआ है । प्रभु के आगमन से श्रीवरुण लोक पवित्र हो गया । उन्होंने प्रभु से कहा कि प्रभु के दर्शन होने पर आज उन्होंने संपूर्ण पुरुषार्थ प्राप्त कर लिए । श्री वरुणदेवजी ने प्रभु से कहा कि उन्हें पता है कि पूर्व में भी जिनको भी प्रभु के श्रीकमलचरणों की सेवा का सुअवसर मिला है वे भवसागर से पार हो गए ।
प्रभु की सेवा का अवसर मिलने से बड़ा लाभ जीवन में कुछ भी नहीं है । इसलिए जीव को चाहिए कि प्रभु सेवा का अवसर जीवन में कभी भी हाथ से नहीं जाने दे ।
प्रकाशन तिथि : 10 मार्च 2017 |
694 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 28
श्लो 17 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... वहाँ उन्होंने देखा कि सारे वेद मूर्तिमान होकर भगवान श्रीकृष्ण की स्तुति कर रहे हैं । यह देखकर वे सब-के-सब परम विस्मित हो गए ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - प्रभु जब श्री नंदजी को श्रीवरुण लोक से मुक्त करा कर वापस श्रीबृज लाए तो श्री नंदजी ने बृजवासियों को श्रीवरुण लोक में श्री वरुणदेवजी द्वारा प्रभु के स्वागत सत्कार और पूजन की बात सबको बताई ।
यह सुनकर सबको आश्चर्य हुआ और सब गोप यह सोचने लग गए कि प्रभु साक्षात भगवान ही हैं । तब उन्होंने प्रभु के स्वधाम को देखने की इच्छा मन में प्रकट की जहाँ प्रभु के प्रेमी भक्त ही जा सकते हैं । प्रभु अंतर्यामी हैं और प्रभु ने उनकी अभिलाषा पूर्ण करने के लिए उन्हें अपने परमधाम के दर्शन करवाए । प्रभु का दिव्य लोक देखकर सभी गोप परमानंद में मग्न हो गए क्योंकि उन्होंने देखा कि सारे श्री वेदजी प्रभु की दिव्य स्तुति कर रहे हैं । यह देखकर वे भाव विभोर हो गए ।
प्रेम और भक्ति के बल पर जीव प्रभु के परमधाम को भी प्राप्त कर सकता है । प्रेमाभक्ति का इतना सामर्थ्य है कि वह जीव को प्रभु के परमधाम की प्राप्ति करवा देती है ।
प्रकाशन तिथि : 10 मार्च 2017 |
695 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 29
श्लो 08 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... विश्वविमोहन श्रीकृष्ण ने उनके प्राण, मन और आत्मा सब कुछ का अपहरण जो कर लिया था ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन प्रभु श्री शुकदेवजी ने राजा श्री परीक्षितजी को कहे ।
जब प्रभु ने श्रीरास के लिए बांसुरी वादन किया तो गोपियां भय, संकोच और धैर्य को त्यागकर प्रभु से मिलने के लिए दौड़ी । कुछ गोपियां दूध दुह रही थी, वे दूध दुहना छोड़कर दौड़ी । कुछ चूल्हे पर दूध उफनता हुआ छोड़कर दौड़ी । कुछ भोजन परोस रही थी, वे उन्हें छोड़कर दौड़ी । कुछ अपने छोटे बच्चों को दूध पिला रही थी, वे उन्हें बिसरा कर दौड़ी । कुछ स्वयं भोजन कर रही थी, वे भोजन त्यागकर दौड़ी । कुछ अपना श्रृंगार कर रही थी, वे
ज्यों-का-त्यों अधूरे श्रृंगार में दौड़ी । किसी गोपी ने अपनी एक आँख में काजल लगाया था वह दूसरे में लगाना भूल कर दौड़ी । कुछ गोपियां उलटे-पलटे वस्त्रों को धारण करके प्रभु के पास पहुँचने के लिए दौड़ी । पिता, पति, भाई और पुत्रों के रोकने पर भी वे प्रभु मिलन के लिए चली । प्रभु श्री शुकदेवजी कहते हैं कि ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि प्रभु ने उनके प्राण, मन और आत्मा सबको आकर्षित कर लिया था ।
प्रभु का आकर्षण इतना होता है कि भक्त अपने आपको प्रभु मिलन से रोक नहीं पाता है ।
प्रकाशन तिथि : 11 मार्च 2017 |
696 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 29
श्लो 15 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... इसलिए वृत्तियां भगवन्मय हो जाती हैं और उस जीव को भगवान की ही प्राप्ति होती है ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन प्रभु श्री शुकदेवजी ने राजा श्री परीक्षितजी को कहे ।
प्रभु श्री शुकदेवजी कहते हैं कि हमें केवल भगवान से एक संबंध बनाना चाहिए, चाहे वह संबंध कैसा भी हो । प्रभु से संबंध किसी भी कारण से हो चाहे वह भय से, स्नेह से या नातेदारी से क्यों न हो । हमें किसी भी भाव से अपनी नित्य निरंतर वृत्तियों को प्रभु से जोड़ना चाहिए । हमारी वृत्तियां जब प्रभु से जुड़ जाती हैं तो वे हमें प्रभु की प्राप्ति करवा देती है । सारांश यह है कि किसी भी भावना से क्यों न हो पर हमें अपने जीवन को प्रभु से जोड़कर रखना चाहिए । प्रभु से चाहे जैसे भी हो अगर हम एक भी रिश्ता जोड़ने में सफल हो जाते हैं तो हमारा कल्याण उसी समय सुनिश्चित हो जाता है ।
इसलिए जीव को चाहिए कि वह प्रभु से अपने आपको प्रिय लगने वाला कोई भी एक रिश्ता जोड़कर संबंध बना ले तभी उसका कल्याण सुनिश्चित होगा ।
प्रकाशन तिथि : 11 मार्च 2017 |