श्री गणेशाय नमः
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क्रम संख्या श्रीग्रंथ अध्याय -
श्लोक संख्या
भाव के दर्शन / प्रेरणापुंज
601 श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध)
अ 06
श्लो 08
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... इसलिए उन्‍होंने उसी क्षण जान लिया कि यह बच्‍चों को मार डालने वाला पूतना है और अपने नेत्र बंद कर लिए । ....


श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - श्रीमद् भागवतजी के प्रत्‍येक प्रसंग पर टीकाकारों ने विभिन्‍न भावों की टीकाएं लिखी हैं । यह इस महाग्रंथ का गौरव है कि जितनी बार भी भाव से इसका श्रवण किया जाता है उतनी बार नई-नई व्‍याख्‍याएं निकल कर सामने आती हैं । इसलिए प्रभु की विभिन्‍न श्रीलीलाओं के बहुत सारे भाव भक्‍तों के समक्ष प्रकट हुए हैं । सभी भाव आदरणीय हैं । प्रभु ने पूतना को देखकर अपने श्रीनेत्र बंद कर लिए इस पर विभिन्‍न टीकाकारों ने टिकाएं लिखी है ।

पूतना माता की तरह दूध पिलाने आई थी । इसलिए प्रभु आँखें बंद कर मानो उसके पूर्व जन्‍म के पुण्य देख रहे हैं जिस कारण उसे यह माता जैसा सौभाग्‍य मिला । प्रभु ने इसलिए भी अपने श्रीनेत्र बंद किए क्‍योंकि प्रभु ने सोचा कि अगर मैं करुणा दृष्टि से पूतना को देख लूँगा तो इसका वध कैसे कर पाऊँगा और अगर उग्र दृष्टि से देख लिया तो यह दूध पिलाने से पहले ही यह भस्‍म हो जाएगी । प्रभु जगतपिता हैं और असुर राक्षस आदि भी प्रभु की ही संतान हैं । प्रभु पूतना को मारने वाले हैं इसलिए अपने बच्‍चों की मृत्युकालीन पीड़ा उनसे देखी नहीं जाएगी यह सोच कर प्रभु ने अपने श्रीनेत्र बंद कर लिए ।

परंतु मेरा सबसे प्रिय भाव यह है कि प्रभु ने मानो अपने श्रीनेत्र बंद कर प्रभु श्री महादेवजी का ध्‍यान किया जिन्‍हें विष पीने का अभ्‍यास है और उनसे निवेदन किया कि आप आकर विष पी लें और मैं दूध पी लूंगा ।

प्रकाशन तिथि : 20 जनवरी 2017
602 श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध)
अ 06
श्लो 20
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
उन्‍होंने पहले बालक श्रीकृष्ण को गौमूत्र से स्‍नान कराया, फिर सब अंगों में गौ-रज लगाई और फिर बारहों अंगों में गोबर लगाकर भगवान के केशव आदि नामों से रक्षा की ।


श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - यह श्‍लोक यह दर्शाता है कि गौ-माता का स्‍थान भारतीय संस्कृति में कितना महान है । प्रभु ने श्रीबृज में गौपालक की भूमिका की इसलिए गोपाल कहलाए । प्रभु ने अपनी श्रीलीला में गौ-माता को बहुत ऊँ‍चा स्‍थान प्रदान किया है ।

पूतना का जब प्रभु ने उद्धार किया तो सभी बृजवासियों ने अमंगल नाश के लिए और प्रभु के शुद्धिकरण के लिए पहले प्रभु को गौमूत्र से स्‍नान करवाया । फिर प्रभु के सभी श्रीअंगों पर गौ-माता की रज लगाई । फिर गोबर का लेप किया और गौ-माता की पूंछ से झाड़ा लगवाया । फिर गौशाला की पवित्र भूमि पर भगवान के एक-एक नामों का उच्चारण करके प्रभु के एक-एक श्रीअंगों की रक्षा करने का आह्वान किया ।

गौ-माता की महिमा अपार है । सभी देवी देवताओं का वास गौ-माता में है इसलिए गौ-माता परम पूज्‍यनीय हैं ।

प्रकाशन तिथि : 20 जनवरी 2017
603 श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध)
अ 06
श्लो 29
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... ये सभी अनिष्‍ट भगवान विष्‍णु का नामोच्‍चारण करने से भयभीत होकर नष्‍ट हो जाएं ।


श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - प्रभु के नाम का इतना बल है कि जब प्रभु ने पूतना का उद्धार किया तो बृजवासियों ने प्रभु का एक-एक नाम लेकर बालस्‍वरूप प्रभु श्री कृष्णजी के एक-एक श्रीअंग की रक्षा करने का विधान किया ।

प्रभु ने अपने लीला काल में बहुतों का उद्धार किया पर प्रभु के स्‍वधाम गमन से आज तक प्रभु के नामों ने अगणित जीवों का उद्धार किया है । इसलिए संतजन विनोद में कहते हैं कि प्रभु से भी बड़ा प्रभु का नाम है क्‍योंकि प्रभु ने भी उतनों को नहीं तारा जितनों को प्रभु के नाम ने तार दिया । प्रभु नाम के प्रताप का एक प्रसंग श्रीरामायणजी में मिलता है । प्रभु को स्‍वयं समुद्रदेवजी को पार करने के लिए सेतु बनवाना पड़ा पर प्रभु का नाम लेकर प्रभु श्री हनुमानजी छलांग लगाकर सौ योजन के समुद्र को पार कर गए ।

प्रभु के नाम में प्रभु का पूरा बल समाया हुआ है । आज कलियुग में तो विशेष कर प्रभु नाम ही एकमात्र आधार है ।

प्रकाशन तिथि : 21 जनवरी 2017
604 श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध)
अ 06
श्लो 34
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
जब उसका शरीर जलने लगा, तब उसमें से ऐसा धुँआ निकला, जिसमें से अगर (एक सुगंधित वनस्पति) की सी सुगंध आ रही थी । क्‍यों न हो, भगवान ने जो उसका दूध पी लिया था जिससे उसके सारे पाप तत्‍काल ही नष्‍ट हो गए थे ।


श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्‍त वचन प्रभु श्री शुकदेवजी ने राजा श्री परीक्षितजी को कहे ।

जब प्रभु ने पूतना का उद्धार किया और पूतना के विशाल राक्षसी शरीर को बृजवासियों ने जलाया तो उसमें से दुर्गंध आने के बजाए सुगंध आने लगी । पूतना राक्षसी थी और उसका आहार व्‍यवहार वैसा ही था इसलिए उसके शरीर से दुर्गंध आना लाजमी था । पर सभी बृजवासियों के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा जब उन्‍होंने देखा कि पूतना के शरीर के जलने पर जो धुँआ निकल रहा है उसमें से सुगंध आ रही है । ऐसा इसलिए हुआ कि प्रभु ने उस राक्षसी पूतना का दूध पिया था इसलिए उसे माता जैसी गति दे दी थी और इस कारण उसके सारे पाप प्रभु ने तत्‍काल नष्‍ट कर दिए थे ।

प्रभु इतने कृपालु और दयालु हैं कि सन्‍मुख होने पर दुर्जनों का भी उद्धार कर देते हैं ।

प्रकाशन तिथि : 21 जनवरी 2017
605 श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध)
अ 06
श्लो 36
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
ऐसी स्थिति में जो परब्रह्म परमात्‍मा भगवान श्रीकृष्ण को श्रद्धा और भक्ति से माता के समान अनुरागपूर्वक अपनी प्रिय-से-प्रिय वस्‍तु और उनको प्रिय लगने वाली वस्‍तु समर्पित करते हैं, उनके संबंध में तो कहना ही क्‍या है ।


श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्‍त वचन प्रभु श्री शुकदेवजी ने राजा श्री परीक्षितजी को कहे ।

प्रभु को श्रद्धा और भक्ति के साथ अपनी सबसे प्रिय लगने वाली वस्‍तु प्रभु को समर्पित करनी चाहिए । जो हमें जीवन में प्रिय-से-प्रिय वस्‍तु लगे उसको प्रभु को समर्पित करना चाहिए । पर जीव इतना चतुर है कि वह प्रभु को वो चीज समर्पित करता है जो उसे प्रिय नहीं होती है । उदाहरण के तौर पर पर हम कटा-फटा नोट जो कहीं भी नहीं चलता उसे मंदिर में चढ़ा कर आते हैं । या कोई व्‍यंजन जिसका स्‍वाद हमें पसंद ही नहीं है उसे हम प्रभु के निमित्त समर्पित कर छोड़ देते हैं । यह ढोंग है जो प्रभु के समक्ष नहीं चलता क्‍योंकि प्रभु सब कुछ जानते हैं । प्रभु को रिझाना है तो अपनी प्रिय-से-प्रिय वस्‍तु प्रभु को समर्पित करना अनिवार्य है ।

इसलिए जीव को चाहिए कि श्रद्धा और भक्ति से अपनी प्रियतम वस्‍तु प्रभु को समर्पित करे ।

प्रकाशन तिथि : 22 जनवरी 2017
606 श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध)
अ 06
श्लो 40
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
राजन ! वे गौएं और गोपियां, जो नित्‍य-निरंतर भगवान श्रीकृष्ण को अपने पुत्र के ही रूप में देखती थीं, फिर जन्‍म-मृत्यु रूप संसार के चक्र में कभी नहीं पड़ सकती क्‍योंकि यह संसार तो अज्ञान के कारण ही है ।


श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्‍त वचन प्रभु श्री शुकदेवजी ने राजा श्री परीक्षितजी को कहे ।

जो गौ-माताएं और गोपियां जिन्‍होंने नित्‍य निरंतर प्रभु से वात्‍सल्‍य का संबंध बनाया उन्‍हें फिर जन्‍म-मृत्यु के संसार चक्र में कभी भी नहीं पड़ना पड़ा । जीव संसार चक्र में तब तक ही पड़ता है जब तक वह प्रभु से प्रेम और प्रभु की भक्ति नहीं करता । जो जीव प्रभु से एक संबंध बना लेता है और प्रेमाभक्ति करता है उसे आवागमन से सदैव के लिए मुक्ति मिल जाती है । इसलिए संतजन कहते हैं कि प्रभु से कोई भी संबंध बनाए और श्रद्धा के साथ उस संबंध से प्रभु से जुड़ जाएं ।

इसलिए जीव को चाहिए कि प्रभु से स्‍थाई संबंध बनाकर प्रभु से प्रेम करे और प्रभु की भक्ति करे जिससे उसे संसार चक्र में दोबारा नहीं आना पड़े ।

प्रकाशन तिथि : 22 जनवरी 2017
607 श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध)
अ 07
श्लो 04
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
परीक्षित ! एक बार भगवान श्रीकृष्ण के करवट बदलने का अभिषेक-उत्‍सव मनाया जा रहा था । ....


श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्‍त वचन प्रभु श्री शुकदेवजी ने राजा श्री परीक्षितजी को कहे ।

इस श्‍लोक में ध्‍यान देने योग्‍य बात यह है कि बृजवासी प्रभु से कितना प्रेम करते हैं । बाल स्‍वरूप प्रभु ने जब पहली बार करवट बदली तो श्री गोकुलजी में बृजवासियों ने उत्‍सव मनाया । प्रभु के करवट बदलने पर उत्‍सव मनाना इस बात का संकेत है कि बृजवासी प्रभु से कितने गहरे रूप से जुड़े हुए थे । प्रभु के करवट बदलने को एक साधारण बात न मानकर उत्‍सव योग्‍य मानना यह दर्शाता है कि बृजवासी प्रभु से कितना अधिक प्रेम करते थे ।

सनातन धर्म में प्रभु के विभिन्‍न रूपों में देवी-देवताओं की पूजा का विधान है और वर्ष भर में विभिन्‍न उत्‍सवों को मनाने का प्रावधान है । यह गौरवशाली परंपरा है जिसमें प्रभु के लिए उत्‍सव मनाकर अपने आनंद को प्रकट किया जाता है ।

प्रकाशन तिथि : 23 जनवरी 2017
608 श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध)
अ 07
श्लो 35
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
जब वे प्रायः दूध पी चुके और माता यशोदा उनके रुचिर मुस्कान से युक्‍त मुख को चूम रही थी उसी समय श्रीकृष्ण को जंभाई आ गई और माता ने उनके मुख में यह देखा ।


श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - एक बार भगवती यशोदा माता बालगोपाल प्रभु श्री कृष्णजी को दूध पिला रही थी । प्रभु को दूध पीने से तृप्ति ही नहीं हो रही थी । तब माता के मन में शंका हुई कि कहीं अधिक दूध पीने से अपच न हो जाए ।

तब प्रभु ने अपने श्रीमुँह में आकाश, अंतरिक्ष, श्री सूर्यदेवजी, श्री चंद्रदेवजी, श्री अग्निदेवजी, श्री वायुदेवजी, समुद्रदेवजी, द्वीप, पर्वत, नदियां, वन और समस्‍त प्राणियों का दर्शन करवाया । विश्‍वरूप दिखाकर मानो प्रभु यह कह रहे हैं कि दूध मैं अकेला नहीं पी रहा, मेरे श्रीमुँह में बैठकर यह संपूर्ण विश्‍व इसका पान कर रहा है ।

इस दृष्टांत से यह बात सिद्ध होती है कि प्रभु के तृप्‍त होते ही संपूर्ण विश्‍व स्‍वतः ही तृप्‍त हो जाता है । इसलिए जीव को चाहिए कि संपूर्ण विश्‍व को तृप्‍त करने के बजाए वह प्रभु की सेवा और भक्ति कर प्रभु को तृप्‍त करे ।

प्रकाशन तिथि : 23 जनवरी 2017
609 श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध)
अ 08
श्लो 15
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
तुम्‍हारे पुत्र के और भी बहुत-से नाम हैं तथा रूप भी अनेक हैं । इसके जितने गुण हैं और जितने कर्म, उन सबके अनुसार अलग-अलग नाम पड़ जाते हैं ।


श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्‍त वचन आचार्य श्री गर्गाचार्यजी ने श्री नंदजी से कहे ।

जब आचार्य श्री गर्गाचार्यजी श्री गोकुलजी पधारे तो श्री नंदजी ने उनका आदर सत्‍कार किया और उन्‍हें दोनों बाल गोपालों का नामकरण करने का आग्रह किया । प्रभु श्री कृष्णजी का नामकरण करते हुए उन्‍होंने कहा कि इन्‍होंने अनेकों रूप धारण किए हैं इसलिए इनके अनेकों नाम हैं । साथ ही प्रभु के जितने सद्गुण हैं और जितने कर्म प्रभु ने किए हैं उनके अनुसार भी प्रभु के अलग-अलग नाम पड़े हैं ।

प्रभु के अनंत रूप हैं और अनंत नाम हैं । भक्तों को जो भी नाम प्रिय लगता है वे उससे प्रभु को पुकारते हैं और प्रभु प्रेम से उस नाम को ग्रहण कर लेते हैं ।

प्रकाशन तिथि : 24 जनवरी 2017
610 श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध)
अ 08
श्लो 18
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
जो मनुष्‍य तुम्‍हारे इस सांवले-सलोने शिशु से प्रेम करते हैं वे बड़े भाग्‍यवान हैं । जैसे विष्णु भगवान के करकमलों की छत्रछाया में रहने वाले देवताओं को असुर नहीं जीत सकते, वैसे ही इससे प्रेम करने वालों को भीतर या बाहर किसी भी प्रकार के शत्रु नहीं जीत सकते ।


श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्‍त वचन आचार्य श्री गर्गाचार्यजी ने श्री नंदजी से कहे ।

जो प्रभु से प्रेम करते हैं वे बड़े भाग्‍यवान जीव होते हैं । जैसे प्रभु के श्रीकरकमलों की छत्रछाया में रहने के कारण देवताओं का असुर कुछ नहीं बिगाड़ सकते, वैसे ही प्रभु से प्रेम करने वालों को भीतर या बाहर का कोई भी शत्रु नहीं जीत सकता । प्रभु से प्रेम करना और प्रभु की छत्रछाया में रहना परम मंगल का सूचक है । ऐसा करने वाले का कोई भी बाल भी बाँका नहीं कर सकता । जो प्रभु की शरण में रहता है उसका कोई भी अमंगल कुछ नहीं बिगाड़ सकता ।

इसलिए जीव को चाहिए कि प्रभु से प्रेम करे और प्रभु की शरणागति ग्रहण करे जिससे वह सदैव के लिए निश्चिंत हो सके ।

प्रकाशन तिथि : 24 जनवरी 2017
611 श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध)
अ 08
श्लो 31
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... उनकी यह दशा देखकर नंदरानी यशोदाजी उनके मन का भाव ताड़ लेती और उनके हृदय में स्‍नेह और आनंद की बाढ़ आ जाती । वे इस प्रकार हंसने लगती कि अपने लाड़ले कन्‍हैया को इस बात का उलाहना भी न दे पाती, डांटने की बात तक नहीं सोच पाती ।


श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - प्रभु श्रीबृज में माखन चोरी की श्रीलीला करने लगे । इस प्रकार वे गोपियों को आनंद प्रदान करने लगे । गोपियां पूर्व जन्‍म में देवकन्‍याएं, श्रुतियां, तपस्‍वी, ऋषि और भक्‍त थे जिन्‍होंने प्रभु की श्रीलीला में शामिल होने के लिए श्रीबृज में जन्‍म पाया ।

गोपियों का तन, मन और धन सभी कुछ प्रभु का था । वे संसार में जीती थीं तो प्रभु के लिए, घर में रहती थीं तो प्रभु के लिए और घर का काम भी करती थीं तो प्रभु के लिए । वे प्रभु को देखकर ही आनंदित होती थीं । सुबह निद्रा टूटने से लेकर रात को सोने तक वे प्रभु से प्रीति करती थीं । स्‍वप्‍न में भी उन्‍हें प्रभु के ही दर्शन होते थे । वे दही जमाती थीं तो इस भावना से कि दही बढ़िया जमें, फिर बढ़िया सा माखन निकले, फिर उसे ऊँ‍चा रखूँ जहाँ पर प्रभु आसानी से पहुँच जाए । वे उम्‍मीद लगाकर बैठती थीं कि प्रभु क्रीड़ा करते हुए उनके घर में आए, माखन लूटे और आनंदित होकर आंगन में नाचे और गोपी उन्‍हें अपने नेत्रों से देखकर अपना जन्‍म सफल करे । प्रभु जिस दिन नहीं आते वे अपने भाग्‍य को कोसती । वे आंसू बहाते हुए दरवाजे पर जाती, लाज त्‍याग कर रास्‍ते पर आकर खड़ी हो जाती । एक-एक पल उन्‍हें युग के समान लगता ।

श्री नंदजी के यहाँ नौ लाख गाएं थीं और उनके घर में माखन की कोई कमी नहीं थी इसलिए प्रभु को गोपियों के घर माखन चोरी की कोई आवश्‍यकता नहीं थी । दूसरी बात संसार या संसार के बाहर ऐसी कौन सी वस्‍तु है जो प्रभु की नहीं है जिसकी प्रभु चोरी करेंगे । इसलिए यह माखन चोरी नहीं थी, यह तो गोपियों की पूजा थी जो प्रभु स्‍वीकार करते थे ।

प्रकाशन तिथि : 25 जनवरी 2017
612 श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध)
अ 08
श्लो 32
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
एक दिन बलराम आदि ग्‍वालबाल श्रीकृष्ण के साथ खेल रहे थे । उन लोगों ने मां यशोदा के पास आकर कहा - मां ! कन्‍हैया ने मिट्टी खाई है ।


श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - एक बार प्रभु ने मिट्टी खाई तो ग्‍वाल बालकों ने जाकर माता यशोदा से कहा ।

संतों ने भाव दिया है कि प्रभु के उदर में कोटि-कोटि ब्रह्माण्डों के जीव रहते हैं । श्रीबृज की रज जिसमें गोपियों की चरण रज भी है उन्‍हें प्राप्‍त करने के लिए उन ब्रह्माण्डों के कोटि-कोटि जीव व्‍याकुल हो रहे थे इसलिए प्रभु ने मिट्टी खाई । दूसरा भाव संतों ने किया कि प्रभु स्‍वयं अपने भक्‍तों की चरण रज अपने श्रीमुँह के द्वारा अपने हृदय में धारण करना चाहते थे इसलिए प्रभु ने मिट्टी खाई । भक्‍तों को प्रभु कितना मान देते हैं यह ऊपर वर्णित दोनों भावों से पता चलता है ।

जब भगवती यशोदा माता ने प्रभु से श्रीमुँह खोलने को कहा तो प्रभु ने वैसा किया और माता को पूरा ब्रह्माण्‍ड के दर्शन करवा कर मानो कहा कि मिट्टी मेरे श्रीमुँह में विराजमान सम्‍पूर्ण विश्‍व ने खाई है ।

प्रकाशन तिथि : 25 जनवरी 2017
613 श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध)
अ 08
श्लो 45
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
सारे वेद, उपनिषद, सांख्‍य, योग और भक्‍तजन जिनके माहात्‍म्‍य का गान गाते-गाते अघाते नहीं, उन्‍हीं भगवान को यशोदाजी अपना पुत्र मानती थी ।


श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - जब प्रभु ने अपने श्रीमुँह में आकाश, पहाड़, द्वीप, श्री समुद्रदेवजी, भगवती पृथ्वी माता, श्री अग्निदेवजी, श्री चंद्रदेवजी, तारे, ज्योतिमंडल दिखाए तो भगवती यशोदा माता अपने पुत्र के प्रभु तत्‍व को समझ गई । तब प्रभु ने योगमाया को आदेश दिया कि वह माता को यह घटना भूला दे ।

माता पूरी घटना भूल गई और पहले की तरह प्रभु को अपनी गोद में उठा कर दुलार करने लगी । सारे श्रीवेदजी, उपनिषद, शास्त्र और भक्‍त जिन प्रभु के माहात्‍म्‍य को गाते-गाते थकते नहीं हैं उन प्रभु को भगवती यशोदा माता अपने पुत्र रूप में दुलार करती थी ।

भगवती यशोदा माता की पूर्व जन्‍म में की गई भक्ति का सामर्थ्‍य है कि जिन प्रभु की महिमा का गान करते हुए श्रीवेदशास्त्र भी नेति-नेति कह कर शांत हो जाते हैं उन प्रभु को भगवती यशोदा माता बालगोपाल के रूप में लाड़ लड़ाती थी ।

प्रकाशन तिथि : 27 जनवरी 2017
614 श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध)
अ 08
श्लो 47
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
भगवान श्रीकृष्ण की वे बाल-लीलाएं, जो वे अपने ऐश्‍वर्य और महत्‍ता आदि को छिपाकर ग्‍वालबालों में करते हैं, इतनी पवित्र हैं कि उनका श्रवण-कीर्तन करने वाले लोगों के भी सारे पाप-ताप शांत हो जाते हैं । त्रिकालदर्शी ज्ञानी पुरुष आज भी उनका गान करते रहते हैं ।


श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - प्रभु ने अपने ऐश्‍वर्य को छुपाकर बहुत मधुर बाल लीलाएं श्रीबृज में की । गोप और गोपियों के साथ प्रभु की बाल लीलाएं इतनी मधुर और पवित्र थी कि उनके श्रवण मात्र से बड़ा आनंद मिलता है और साथ ही हमारा कल्‍याण भी होता है ।

प्रभु की बाल लीलाएं इतनी पवित्र हैं कि उनका श्रवण और कीर्तन करने वाले लोगों के सारे पाप और ताप शांत हो जाते हैं । संसार के पाप और ताप शांत करने का इससे उत्‍तम साधन अन्‍य कोई नहीं है । इसलिए ऋषि, संत, ज्ञानी एवं भक्‍त पुरुष आज भी उनका नित्‍य गान करते हैं ।

इसलिए जीव को चाहिए कि प्रभु की मनोहर लीलाओं का श्रवण, कीर्तन और मनन करके अपना मानव जीवन सफल करे ।

प्रकाशन तिथि : 27 जनवरी 2017
615 श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध)
अ 09
श्लो 01
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
परीक्षित ! एक समय की बात है, नंदरानी यशोदाजी ने घर की दासियों को तो दूसरे कामों में लगा दिया और स्‍वयं अपने लाला को मक्‍खन खिलाने के लिए दही मथने लगी ।


श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - भगवती यशोदा माता बालगोपाल प्रभु से इतना अधिक प्रेम करती थी कि प्रभु के लिए सभी कार्य स्‍वयं अपने हाथों से करती थी । उनके यहाँ दास दासियों की कोई कमी नहीं थी पर भगवती यशोदा माता उन दास दासियों को सदैव अन्‍य कार्यों में लगा देती थी ।

भगवती यशोदा माता जान बूझकर दास दासियों को दूसरे कार्य में लगाती थी जिससे प्रभु का कार्य वे स्‍वयं कर सके । प्रभु को माखन अति प्रिय था इसलिए भगवती यशोदा माता दही मथने का कार्य स्वयं अपने हाथों से करती थी जिससे उनके हाथों का माखन प्रभु को मिल सके । जब प्रभु से प्रेम होता है तो प्रभु की सेवा करने का हमारा मन स्वतः ही बन जाता है ।

इसलिए जीव को चाहिए कि प्रभु से प्रेम करे और प्रभु की अपने घर की ठाकुरबाड़ी में या मंदिर में अपने हाथों से सेवा करे ।

प्रकाशन तिथि : 28 जनवरी 2017
616 श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध)
अ 09
श्लो 02
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
मैंने तुमसे अब तक भगवान की जिन-जिन बाल-लीलाओं का वर्णन किया है, दधिमंथन के समय वे उन सबका स्‍मरण करती और गाती भी जाती थी ।


श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - प्रभु श्री शुकदेवजी ने उपरोक्त वचन राजा श्री परीक्षितजी को कहे ।

जब भगवती यशोदा माता प्रभु के लिए दही मथने का कार्य करती थी तो उनका हाथ प्रभु सेवा का कार्य करता था । प्रभु ने श्रीबृज में जो-जो मधुर बाल लीलाएं की थी भगवती यशोदा माता दही मथने के समय उनका स्‍मरण करती थी । इस तरह दही मथने के समय उनके हृदय में प्रभु स्‍मरण चलता रहता था । दही मथने के समय भगवती यशोदा माता प्रभु की उन बाल लीलाओं का गान भी करती थी । यानी वाणी से भी प्रभु का गुणगान होता रहता था । इस तरह यह दृष्टांत हमें यह बताता है कि तन, मन और वचन को एक ही समय प्रभु में कैसे लगाया जाए ।

हमें भी प्रभु सेवा, प्रभु का चिंतन और प्रभु का गुणगान एक ही समय एक साथ करने की प्रेरणा इस दृष्टांत से लेनी चाहिए ।

प्रकाशन तिथि : 28 जनवरी 2017
617 श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध)
अ 09
श्लो 03
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... हाथों के कंगन और कानों के कर्णफूल हिल रहे थे । मुँह पर पसीने की बूंदें झलक रही थी । चोटी में गुंथे हुए मालती के सुंदर पुष्‍प गिरते जा रहे थे । सुंदर भौंहों वाली यशोदा इस प्रकार दही मथ रही थी ।


श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन प्रभु श्री शुकदेवजी ने राजा श्री परीक्षितजी को कहे ।

प्रभु के लिए दही मथते समय भगवती यशोदा माता के हाथों के कंगन और कानों के कर्णफूल हिल रहे थे । संतजन भाव करते हैं कि माता के हाथों के कंगन इसलिए झंकार ध्‍वनि कर रहे थे मानो यह कह रहे हों कि वही हाथ धन्‍य है जो प्रभु सेवा में लगे हैं । कानों के कर्णफूल माता के मुँह से प्रभु की श्रीलीलाओं का गान सुनकर मानो कानों की सफलता की सूचना दे रहे थे । हाथ वही धन्‍य होता है जो प्रभु की सेवा करें और कान वही धन्‍य होता है जो प्रभु का गुणगान सुनें । भगवती यशोदा माता की चोटी पर गुंथे हुए सुंदर फूल उनके चरणों में गिरते जा रहे थे मानो यह कह रहे हों कि हम सिर पर रहने के अधिकारी नहीं हैं क्‍योंकि हमारा स्‍थान भगवती यशोदा माता के चरणों में हैं । जो भक्‍त प्रभु सेवा करता है उनके चरणों में रहना ही पुष्‍प अपना सौभाग्‍य मानते हैं ।

प्रभु की सेवा करने वाले भक्‍त की महिमा बहुत बड़ी होती है और प्रकृति भी उनका आदर करती है ।

प्रकाशन तिथि : 29 जनवरी 2017
618 श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध)
अ 09
श्लो 05
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... उसे देख कर यशोदाजी उन्‍हें अतृप्‍त ही छोड़ कर जल्‍दी से दूध उतारने के लिए चली गई ।


श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - जब भगवती यशोदा माता की गोद में बैठ कर प्रभु दूध पी रहे थे तो माता की नजर पद्मगंधा गाय के दूध पर पड़ी जो गर्म हो रहा था । संतजन भाव करते हैं कि जब पद्मगंधा दूध ने देखा कि प्रभु माता का दूध पी रहे हैं तो जन्‍म-जन्‍मों से प्रभु के होठों का स्‍पर्श पाने के लिए वे व्‍याकुल थे, इसलिए वे निराश हो गए और सोचने लगे कि इस जीवन का क्‍या लाभ जो प्रभु के काम न आए । तब वे अग्नि से कूद कर गिरने लगे ।

पद्मगंधा दूध जो रोज प्रभु के लिए आता था उसको बनाने की विधि संतों ने इस प्रकार बताई है । श्री नंदजी के गौशाला में नौ लाख गायें थीं । श्री नंदजी की गौशाला के श्रेष्‍ठ एक लाख गायों का दूध दस हजार गायों को पिलाया जाता था । उन दस हजार गायों का दूध एक हजार गायों को पिलाया जाता था । उन एक हजार गायों का दूध सौ गायों को पिलाया जाता था । उन सौ गायों का दूध दस गायों को पिलाया जाता था । उन दस गायों का दूध एक गौ-माता को पिलाया जाता था जिन्‍हें पद्मगंधा गौ-माता कहा जाता था । इस विधि से रोजाना प्रभु के लिए पद्मगंधा गौ-माता का दूध भगवती यशोदा माता तैयार करती थी । इन्‍हीं पद्मगंधा गौ-माता के दूध का उपयोग प्रभु के लिए किया जाता था ।

प्रभु को श्रेष्‍ठ-से-श्रेष्‍ठ सामग्री का भोग लगे इसकी यह एक अदभुत मिसाल है । दूसरी बात यह है कि जब भी हमें प्रभु की सेवा करने में आलस्‍य आए तो इस दृष्टांत से हमें सीख लेनी चाहिए कि प्रभु की सेवा कैसे की जाती है ।

प्रकाशन तिथि : 29 जनवरी 2017
619 श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध)
अ 09
श्लो 09
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... उन्‍हीं भगवान के पीछे-पीछे उन्‍हें पकड़ने के लिए यशोदाजी दौड़ी ।


श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - भगवती यशोदा माता जब पद्मगंधा दूध को संभालने गई तो उन्‍होंने प्रभु को गोद से उतार दिया । प्रभु लीलावश इससे क्रोध में भर गए और उन्‍होंने दही के मटकों को तोड़ दिया ।

भगवती यशोदा माता ने जब वापस आकर देखा कि मटकों के टुकड़े-टुकड़े हो गए तो वे हाथ में छड़ी लेकर प्रभु को पकड़ने दौड़ी । संतजन कहते हैं कि प्रभु ने अब डरने की श्रीलीला की जिसकी झाँकी अदभुत थी । जिन प्रभु की आँखों की भृकुटी के हिलने मात्र से काल और सृष्टि भय से कांपने लगते हैं, वे प्रभु भयभीत होने की श्रीलीला कर रहे थे । प्रभु ने मानो अपने ऐश्वर्यों को श्रीबृज के बाहर ही तिलांजली दे दी और भगवती यशोदा माता के वात्‍सल्‍य प्रेम पर अपने ऐश्वर्यों को न्यौछावर कर दिया । जब प्रभु के समक्ष असुर अस्त्र-शस्त्र लेकर आते थे तो प्रभु अपने श्री सुदर्शन चक्र का स्‍मरण करते थे । पर वात्‍सल्‍य से भरी भगवती यशोदा माता की छड़ी से रक्षा के लिए प्रभु किसका स्‍मरण करते । धन्‍य है प्रभु के भय को जिसने प्रभु के भयभीत होने की मूर्ति को इतना मधुर बना दिया ।

प्रभु प्रेम के वश में होकर सब कुछ करते हैं ।

प्रकाशन तिथि : 30 जनवरी 2017
620 श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध)
अ 09
श्लो 16
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... इस प्रकार वे ज्‍यों-ज्‍यों रस्‍सी लाती और जोड़ती गई, त्‍यों-त्‍यों जुड़ने पर भी वे सब दो-दो अंगुल छोटी पड़ती गई ।


श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - जब भगवती यशोदा माता ने छड़ी को फेंक दिया तो प्रभु उनके पास आ गए । भगवती यशोदा माता ने सोचा कि प्रभु डरे हुए हैं इसलिए कहीं छोड़ने पर भागकर वन में चले गए तो पूरा दिन भूखा प्‍यासा ही रहना पड़ेगा । इसलिए माता ने सोचा कि थोड़ी देर मैं प्रभु को बांध कर रखूँ और दूध माखन तैयार होने पर प्रभु को मना लूँगी । प्रभु को बांधने में भी वात्‍सल्‍य का ही हेतु था ।

पर जब माता ऊखल से प्रभु को बांधने लगी तो रस्‍सी दो अंगुल छोटी पड़ गई । जितनी रस्सियां माता जोड़ती गई फिर भी अंत में रस्‍सी दो अंगुल छोटी ही रहती । संतजन भाव देते हैं कि यह जीव के पुरुषार्थ की रस्‍सी है । जीव प्रभु को पाने के लिए कितना भी पुरुषार्थ कर ले पर फिर भी प्रभु से दो अंगुल दूर ही रहेगा । यह दो अंगुल प्रभु की कृपा और प्रभु की दया है जिसका तात्‍पर्य यह है कि जब प्रभु कृपा और दया करेंगे तब ही जीव प्रभु को अपने प्रेम बंधन में बांध पाएगा ।

जीव जब प्रभु को पाने के लिए भक्ति का पुरुषार्थ करता है तो प्रभु अपनी कृपा और दया का दान उसे देते हैं और जीव के प्रेम बंधन को स्‍वीकार करते हैं ।

प्रकाशन तिथि : 30 जनवरी 2017
621 श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध)
अ 09
श्लो 19
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
परीक्षित ! भगवान श्रीकृष्ण परम स्वतंत्र हैं । ब्रह्मा, इंद्र आदि के साथ यह संपूर्ण जगत उनके वश में है । फिर भी इस प्रकार बंधकर उन्‍होंने संसार को यह बात दिखला दी कि मैं अपने प्रेमी भक्‍तों के वश में हूँ ।


श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्‍त वचन प्रभु श्री शुकदेवजी ने राजा श्री परीक्षितजी को कहे ।

भक्‍त के हठ को भगवान अवश्‍य पूरा करते हैं । अपना मान टले टल जाए पर भक्‍त का मान प्रभु कभी टलने नहीं देते । जब भगवती यशोदा माता ने प्रभु को बांधने का प्रयास किया तो माता के हठ को देखकर प्रभु ने अपना हठ छोड़ दिया । भक्‍त का श्रम देखकर प्रभु कृपावश हो जाते हैं कि भक्‍त को थकान न हो इसलिए भक्‍त के बंधन को प्रभु स्‍वीकार कर लेते हैं । भगवती यशोदा माता से बंधकर प्रभु ने संसार को यह दिखाया कि मैं प्रेमी भक्‍तों के वश में हूँ । प्रभु वैसे परम स्वतंत्र हैं । सारा जगत उनके वश में है । उन्‍हें कौन बांध सकता है ? पर यह भक्ति का सामर्थ्‍य है कि भक्‍त के बंधन को प्रभु स्‍वीकार करते हैं ।

इसलिए जीव को मानव जीवन में प्रभु की भक्ति करनी चाहिए जिसका सामर्थ्‍य इतना बड़ा है कि प्रभु प्रेम के बंधन में आ जाते हैं ।

प्रकाशन तिथि : 31 जनवरी 2017
622 श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध)
अ 09
श्लो 21
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
यह गोपिकानंदन भगवान अनन्‍य प्रेमी भक्‍तों के लिए जितने सुलभ हैं, उतने देहाभिमानी कर्मकाण्‍डी एवं तपस्वियों को तथा अपने स्‍वरूपभूत ज्ञानियों के लिए भी नहीं हैं ।


श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्‍त वचन प्रभु श्री शुकदेवजी ने राजा श्री परीक्षितजी को कहे ।

इस श्‍लोक में भक्ति का प्रतिपादन मिलता है । प्रभु अपने अनन्‍य प्रेमी भक्‍तों के लिए जितने सुलभ हैं उतने किसी अन्‍य के लिए नहीं हैं । अन्‍य कोई भी साधन मार्ग हो उससे प्रभु को पाना असंभव नहीं तो दुर्लभ जरूर है । उस साधन मार्ग में भी अनिवार्य रूप से भक्ति को जोड़ने पर ही प्रभु मिलेंगे । पर भक्ति करने वाले को किसी अन्‍य साधन का सहारा नहीं चाहिए क्‍योंकि भक्ति अपने आप में परिपूर्ण है । भक्ति मार्ग पर भक्‍त जब प्रभु की तरफ पहला कदम बढ़ाता है उसी समय से प्रभु उसे संभालते हैं और उसका पूरा दायित्‍व उसी समय से प्रभु ले लेते हैं । इसलिए भक्ति मार्ग प्रभु को पाने का सबसे सरल और सुलभ मार्ग है । सभी शास्त्रों का और सभी संतों का इस बारे में एक मत है ।

इसलिए जीव को चाहिए कि जीवन में भक्ति मार्ग पर चलकर प्रभु को पाने का प्रयास करे ।

प्रकाशन तिथि : 31 जनवरी 2017
623 श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध)
अ 10
श्लो 25
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
भगवान ने सोचा कि देवर्षि नारद मेरे अत्‍यंत प्‍यारे हैं और यह दोनों भी मेरे भक्‍त कुबेर के पुत्र हैं । इसलिए महात्‍मा नारद ने जो कुछ कहा है, उसे मैं ठीक उसी रूप में पूरा करूंगा ।


श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्‍त वचन प्रभु श्री शुकदेवजी ने राजा श्री परीक्षितजी को कहे ।

श्री कुबेरजी के पुत्र नलकूबर और मणिग्रीव को देवर्षि प्रभु श्री नारदजी के श्राप के कारण वृक्ष योनि में जाना पड़ा । पर संतों का श्राप भी एक प्रकार का अनुग्रह ही होता है । देवर्षि प्रभु श्री नारदजी ने उन्‍हें कहा कि उन्‍हें प्रभु श्री कृष्णजी का सानिध्य प्राप्‍त होगा और उन्‍हें प्रभु ही इस वृक्ष योनि से मुक्‍त करके वापस उनके लोक भेज देंगे । देवर्षि प्रभु श्री नारदजी भक्ति के प्रचारक हैं इसलिए जिसका भक्ति से संपर्क हो गया उस पर कृपा करने के लिए स्‍वयं बंधकर भी भगवान आते हैं । प्रभु जब ऊखल से बंधे थे तो उन्‍होंने देवर्षि प्रभु श्री नारदजी के वचनों को सत्‍य करने का सोचा । क्‍योंकि श्री कुबेरजी भी प्रभु के भक्‍त हैं इसलिए प्रभु ने उनके पुत्रों पर अनुग्रह करने का विचार किया ।

प्रभु इतने कृपालु और दयालु हैं कि जीव पर अकारण कृपा करने का बहाना ढूँढ़ते रहते हैं ।

प्रकाशन तिथि : 02 फरवरी 2017
624 श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध)
अ 10
श्लो 30
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
आप ही समस्‍त प्राणियों के शरीर, प्राण, अंतःकरण और इंद्रियों के स्‍वामी हैं । तथा आप ही सर्वशक्तिमान काल, सर्वव्‍यापक एवं अविनाशी ईश्‍वर हैं ।


श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्‍त स्‍तुति श्री कुबेरजी के पुत्र नलकूबर और मणिग्रीव ने प्रभु की करी जब प्रभु ने उन्‍हें वृक्ष योनि से मुक्‍त कर उनका उद्धार किया ।

प्रभु ही समस्‍त प्राणियों के शरीर, प्राण और अंतःकरण में विराजमान हैं । हमारे शरीर और प्राणों को शक्ति प्रभु ही प्रदान करते हैं । हमारे अंतःकरण में दृष्टा के रूप में प्रभु ही स्थित हैं । हमारी सभी इंद्रियों के स्‍वामी प्रभु ही हैं । इसलिए जीव को अपनी समस्‍त इंद्रियों को प्रभु में ही लगाना चाहिए । प्रभु ही सर्वशक्तिमान काल हैं । प्रभु ही सर्वव्‍यापक ईश्‍वर हैं । प्रभु ही अविनाशी ईश्‍वर भी हैं ।

सभी श्रीग्रथों में प्रभु की दिव्‍य स्‍तुतियां हमें मिलेगी । उन स्‍तुतियों का पाठ कर हमें प्रभु को रिझाना चाहिए ।

प्रकाशन तिथि : 02 फरवरी 2017