क्रम संख्या |
श्रीग्रंथ |
अध्याय -
श्लोक संख्या |
भाव के दर्शन / प्रेरणापुंज |
577 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(नवम स्कंध) |
अ 24
श्लो 56 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
जब-जब संसार में धर्म का ह्रास और पाप की वृद्धि होती है, तब-तब सर्वशक्तिमान भगवान श्रीहरि अवतार ग्रहण करते हैं ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - यह श्लोक श्रीमद् भागवतजी एवं श्रीमद् भगवद् गीताजी दोनों में है एवं प्रभु के श्रीवचन हैं और प्रभु का आश्वासन है ।
जब-जब संसार में धर्म की हानि होती है और पाप की वृद्धि होती है तब तब सर्वशक्तिमान प्रभु अवतार ग्रहण करके आते हैं और संसार को पापमुक्त करते हैं एवं धर्म की पुनःस्थापना करते हैं । यह प्रभु का आश्वासन जीवों को इतना बल प्रदान करता है अन्यथा धर्म की हानि पर और पापों की वृद्धि पर लगाम कसने का कोई उपाय ही नहीं होता । प्रभु का आश्वासन न हो तो संसार अंधकारमय प्रतीत होगा एवं यहाँ की व्यवस्था चरमरा जाएगी ।
प्रभु के आश्वासन के बल पर ही कहा गया है कि धर्म कभी भी पराजित नहीं हो सकता क्योंकि धर्म की रक्षा प्रभु करते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 07 जनवरी 2017 |
578 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(नवम स्कंध) |
अ 24
श्लो 61 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
पृथ्वी का भार तो उतारा ही, साथ ही कलियुग में पैदा होने वाले भक्तों पर अनुग्रह करने के लिए भगवान ने ऐसे परम पवित्र यश का विस्तार किया, जिसका गान और श्रवण करने से ही उनके दुःख, शोक और अज्ञान सब-के-सब नष्ट हो जाएंगे ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - प्रभु पृथ्वी का भार तो उतारते हैं पर यह कार्य तो प्रभु स्वधाम में बैठे संकल्प मात्र से भी कर सकते हैं । इसके लिए प्रभु को पृथ्वी पर अवतार लेने की कोई आवश्यकता नहीं ।
संतजन कहते हैं कि भक्तों पर अनुग्रह करने के लिए प्रभु पधारते हैं । भक्तों को भक्ति का रसास्वादन कराने के लिए प्रभु को आना पड़ता है । जब प्रभु आते हैं तो अनेकों श्रीलीलाएं करते हैं जिससे प्रभु के यश का विस्तार होता है । इन श्रीलीलाओं को करने का कारण यह होता है कि इनका गान और श्रवण करने से जीव के दुःख, शोक और अज्ञान नष्ट होते हैं ।
इसलिए जीवन में नित्य प्रभु की श्रीलीलाओं का गान और श्रवण करना चाहिए जिससे हमारा मानव जीवन सफल हो सके ।
प्रकाशन तिथि : 07 जनवरी 2017 |
579 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(नवम स्कंध) |
अ 24
श्लो 62 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
उनका यश क्या है, लोगों को पवित्र करने वाला श्रेष्ठ तीर्थ है । संतों के कानों के लिए तो वह साक्षात अमृत ही है । एक बार भी यदि कान की अंजलियों से उसका आचमन कर लिया जाता है, तो कर्म की वासनाएं निर्मूल हो जाती हैं ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन प्रभु श्री शुकदेवजी ने राजा श्री परीक्षितजी को कहे ।
प्रभु के यश का गुणगान करना लोगों को पवित्र करने का श्रेष्ठ साधन है । शास्त्र कहते है कि जीवात्मा को पवित्र करने के लिए प्रभु के गुणगान का साधन सबसे सर्वोपरि साधन है । संतों के कानों के लिए तो प्रभु का गुणगान साक्षात अमृततुल्य है । संतजन प्रभु के गुणगान का फल अमृत पान से भी बहुत ऊँचा मानते हैं । एक बार प्रभु का गुणगान सच्ची भक्ति से कर लिया जाए तो हमारी कर्म की वासनाएं निर्मूल हो जाती हैं ।
इसलिए संतजन भक्ति के द्वारा प्रभु के निर्मल यश का सदैव गान करते रहते हैं जिससे वे प्रभु का सानिध्य पाने में सफल होते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 08 जनवरी 2017 |
580 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(नवम स्कंध) |
अ 24
श्लो 65 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... सभी नर-नारी अपने नेत्रों के प्यालों से उनके मुख की माधुरी का निरंतर पान करते रहते, परंतु तृप्त नहीं होते । वे उसका रस ले-लेकर आनंदित तो होते ही, परंतु पलकें गिरने से उनको गिराने वाली निमि पर खीझते भी ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन प्रभु श्री शुकदेवजी ने राजा श्री परीक्षितजी को कहे ।
प्रभु का रूप इतना दिव्य है और सुंदरता की पराकाष्ठा है कि प्रभु के दर्शन के लिए सभी नर नारी अपने नेत्रों के प्याले बनाकर प्रभु के रूप के माधुर्य का निरंतर पान करते रहते हैं । प्रभु जब श्रीलीला करते हुए पृथ्वी पर थे तो उस समय के नर नारी प्रभु के रूप और सौंदर्य का रसपान करते थे । प्रभु जब स्वधाम गए तो आज तक भी भक्त अपने हृदय में प्रभु के माधुर्य रूप का दर्शन कर अतृप्त रहते हैं । प्रभु के दर्शन में विघ्न न आए इसके लिए भक्तों को आँखों की पलकों का गिरना भी नहीं सुहाता और वे पलकें गिरने से खीझते हैं ।
प्रभु के रूप माधुर्य को शब्दों में बयां कर पाना असंभव है । प्रभु के रूप का दर्शन करने के बाद ऐसा प्रतीत होता है मानो आनंद की बाढ़-सी आ गई हो ।
अब हम श्रीमद् भागवतजी महापुराण के दशम स्कंध में प्रभु कृपा के बल पर मंगल प्रवेश करेंगे । हमारा धन्य भाग्य है कि प्रभु श्री कृष्णजी की दिव्य कथा का विस्तार से मंगलमय रसस्वादन करने हम जा रहे हैं । दशम स्कंध सुंदर, सुखद और रस से भरा स्कंध है एवं प्रभु श्रीकृष्णजी की कथा होने के कारण श्रीमद भागवतजी का हृदय स्वरूप है ।
श्रीमद् भागवतजी महापुराण के नवम स्कंध तक की इस यात्रा को प्रभु के पावन और पुनीत श्रीकमलचरणों में सादर अर्पण करता हूँ ।
जगतजननी भगवती सरस्वती माता का सत्य कथन है कि अगर पूरी पृथ्वीमाता कागज बन जाए एवं श्री समुद्रदेव का पूरा जल स्याही बन जाए, तो भी वे बहुत अपर्याप्त होंगे मेरे प्रभु के ऐश्वर्य का लेशमात्र भी बखान करने के लिए, इस कथन के मद्देनजर हमारी क्या औकात कि हम किसी भी श्रीग्रंथ के किसी भी अध्याय, खण्ड में प्रभु की पूर्ण महिमा का बखान तो दूर, बखान करने का सोच भी पाएं ।
जो भी हो पाया प्रभु की कृपा के बल पर ही हो पाया है । प्रभु की कृपा के बल पर किया यह प्रयास मेरे (एक विवेकशून्य सेवक) द्वारा प्रभु को सादर अर्पण ।
प्रभु का,
चन्द्रशेखर कर्वा
प्रकाशन तिथि : 08 जनवरी 2017 |
581 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 01
श्लो 04 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
जिनकी तृष्णा की प्यास सर्वदा के लिए बुझ चुकी है, वे जीवन्मुक्त महापुरुष जिसका पूर्ण प्रेम से अतृप्त रहकर गान किया करते हैं, मुमुक्षुजनों के लिए जो भवरोग की रामबाण औषधि है तथा विषयी लोगों के लिए भी उनके कान और मन को परम आल्हाद देने वाला है, भगवान श्रीकृष्णचन्द्र के ऐसे सुंदर, सुखद, रसीले, गुणानुवाद से पशुघाती अथवा आत्मघाती मनुष्य के अतिरिक्त और कौन है जो विमुख हो जाए, उससे प्रीति न करे ?
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन प्रभु श्री शुकदेवजी ने राजा श्री परीक्षितजी को कहे ।
प्रभु श्री कृष्णजी का परम पावन श्रीचरित्र राजा श्री परीक्षितजी विस्तार के साथ सुनना चाहते थे । प्रभु के श्रीचरित्र का महापुरुष प्रेम से गान करते हैं और फिर भी अतृप्त ही रहते हैं । प्रभु का श्रीचरित्र भवरोग को नाश करने की रामबाण औषधि है । प्रभु का श्रीचरित्र संतजनों को तो परमानंद प्रदान करता ही है साथ ही विषयी लोगों के लिए भी उनके कान और मन को आनंद प्रदान करने वाला है । प्रभु के श्रीचरित्र से प्रीति न करने वाला और विमुख रहने वाला मनुष्य अपने स्वयं का घात ही करता है ।
इसलिए जीव को चाहिए कि वो अपने जीवन में नित्य प्रभु के श्रीचरित्र का गान और श्रवण करे ।
प्रकाशन तिथि : 09 जनवरी 2017 |
582 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 01
श्लो 05 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
परंतु मेरे स्वनाम-धन्य पितामह भगवान श्रीकृष्ण के चरणकमलों की नौका का आश्रय लेकर उस समुद्र को अनायास ही पार कर गए, ठीक वैसे ही जैसे कोई मार्ग में चलता हुआ स्वभाव से ही बछड़े के खुर का गड्ढा पार कर जाए ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - यह मेरा एक प्रिय श्लोक है क्योंकि इसमें राजा श्री परीक्षितजी का प्रभु के प्रति कृतज्ञता का भाव झलकता है ।
राजा श्री परीक्षितजी कहते हैं कि महाभारत के युद्ध में कौरव पक्ष में श्री भीष्म पितामह एवं अन्य कई धुरंधर योद्धा थे और कौरवों की सेना भी पाण्डवों से बहुत बड़ी थी । परंतु पाण्डवों ने प्रभु श्री कृष्णजी के श्रीकमलचरणों का आश्रय लिया और उस युद्ध के समुद्र को अनायास ही पार कर गए । कितनी सहजता से पाण्डवों ने युद्ध के समुद्र को पार किया इसके लिए राजा श्री परीक्षितजी द्वारा जो उपमा दी गई है वह अद्वितीय है । राजा श्री परीक्षितजी कहते हैं कि जैसे गौ-माता के बछड़े के चलने से उसके पैरों से बना गड्ढा हम अनायास ही बिना परिश्रम पार कर लेते हैं क्योंकि वह गड्ढा बहुत छोटा होता है, वैसे ही पाण्डवों ने प्रभु कृपा से युद्ध के समुद्र को अनायास ही पार कर लिया ।
हमें भी जीवन में प्रभु के प्रति कृतज्ञता का भाव सदैव रखना चाहिए ।
प्रकाशन तिथि : 09 जनवरी 2017 |
583 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 01
श्लो 13 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
भगवन ! अन्न की तो बात ही क्या, मैंने जल का भी परित्याग कर दिया है । फिर भी वह असाध्य भूख-प्यास मुझे तनिक भी नहीं सता रही है, क्योंकि मैं आपके मुखकमल से झरती हुई भगवान की सुधामयी लीला-कथा का पान कर रहा हूँ ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन राजा श्री परीक्षितजी ने प्रभु श्री शुकदेवजी को कहे ।
राजा श्री परीक्षितजी पूरी तन्मयता से प्रभु की कथा का श्रवण कर रहे थे क्योंकि उन्हें पता था कि उनके पास सात दिन का ही जीवन शेष है । अन्न की तो बात ही क्या उन्होंने जल का भी परित्याग कर रखा था । उनको प्रभु की मधुर कथा इतना रस प्रदान कर रही थी कि भूख प्यास की उनको तनिक भी चिंता नहीं थी । प्रभु की लीला कथा का रसपान करने में वे इतने मग्न थे कि उन्हें बाकी कोई विषयों का भान ही नहीं था ।
प्रभु की कथा हम जितनी तन्मयता से सुनते हैं उतना ही उसका फल हमें प्राप्त होता है । कथा सुनना एक बात है और तन्मय होकर कथा सुनना एक अलग बात है । अगर हम अपना उद्धार चाहते हैं तो हमें तन्मय होकर प्रभु की कथा का रसपान करना चाहिए ।
प्रकाशन तिथि : 10 जनवरी 2017 |
584 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 01
श्लो 16 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
भगवान श्रीकृष्ण की कथा के संबंध में प्रश्न करने से ही वक्ता, प्रश्नकर्ता और श्रोता तीनों ही पवित्र हो जाते हैं, जैसे गंगाजी का जल या भगवान शालिग्राम का चरणामृत सभी को पवित्र कर देता है ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन प्रभु श्री शुकदेवजी ने राजा श्री परीक्षितजी को कहे ।
प्रभु के संबंध में कथा सुनने के लिए किए गए प्रश्न वक्ता, प्रश्नकर्ता और श्रोता तीनों को पवित्र कर देते है । जैसे भगवती गंगा माता का जल या भगवान श्री शालिग्रामजी का चरणामृत सभी को पवित्र करते हैं वैसे ही प्रभु की कथा सभी को पवित्र करती है । इसलिए प्रभु कथा सुनने की जिज्ञासा हमारे हृदय में सदैव होनी चाहिए । प्रभु की कथा कलिकाल में जीव को पवित्र करने का अचूक साधन है ।
इसलिए जीव को चाहिए कि प्रभु कथा सुनने की जिज्ञासा अपने हृदय में सदैव जागृत रखें और नित्य प्रभु की कथा का रसपान करें ।
प्रकाशन तिथि : 10 जनवरी 2017 |
585 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 01
श्लो 20 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
भगवान देवताओं के भी आराध्यदेव हैं । वे अपने भक्तों की समस्त अभिलाषाएं पूर्ण करते और उनके समस्त क्लेशों को नष्ट कर देते हैं । वे ही जगत के एकमात्र स्वामी हैं ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - प्रभु देवताओं के भी आराध्य देव हैं । देवताओं को कोई विपत्ति सताती है तो वे भी प्रभु की शरण में ही जाते हैं ।
प्रभु अपने भक्तों की समस्त अभिलाषाओं को पूर्ण करने वाले हैं । प्रभु अपने भक्तों के समस्त क्लेशों का नाश करने वाले हैं । प्रभु के अलावा जीव की अभिलाषाओं को पूर्ण करने वाला और कोई भी नहीं है । प्रभु के अलावा जीव के क्लेशों का नाश करने वाला भी कोई नहीं है । यह दोनों चीजें प्रभु कृपा से ही संभव होती है । जीव की जीवन में कुछ अभिलाषाएँ होती हैं और कुछ क्लेश होते हैं, इन दोनों के लिए प्रभु कृपा आवश्यक है क्योंकि प्रभु ही जगत के एकमात्र स्वामी हैं ।
इसलिए जीव को चाहिए कि वह भक्ति से प्रभु को प्रसन्न रखें जिससे प्रभु कृपा उसके जीवन में निरंतर बनी रहे ।
प्रकाशन तिथि : 11 जनवरी 2017 |
586 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 02
श्लो 10-12 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
तुम लोगों को मुँहमांगे वरदान देने में समर्थ होओगी । मनुष्य तुम्हें अपनी समस्त अभिलाषाओं को पूर्ण करने वाली जानकर धूप-दीप, नैवेद्य एवं अन्य प्रकार की सामग्रियों से तुम्हारी पूजा करेंगे । पृथ्वी में लोग तुम्हारे लिए बहुत-से स्थान बनाएंगे और दुर्गा, भद्रकाली, विजया, वैष्णवी, कुमुदा, चण्डिका, कृष्णा, माधवी, कन्या, माया, नारायणी, ईशानी, शारदा और अम्बिका आदि बहुत-से नामों से पुकारेंगे ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - कंस ने भगवती देवकी माता के छह बालकों को मार डाला और सातवें गर्भ के रूप में प्रभु श्रीशेषजी को पधारना था । तो प्रभु ने योगमाया को बुलाया और आदेश दिया कि इस गर्भ को भगवती रोहिणी माता के गर्भ में स्थापित कर दें । साथ ही प्रभु ने कहा कि मैं भगवती देवकी माता के यहाँ जन्म लूंगा और प्रभु ने योगमाया को भगवती यशोदा माता के यहाँ जन्म लेने का आदेश दिया ।
प्रभु ने प्रसन्न होकर योगमाया को वरदान दिया कि उनकी पृथ्वी लोक में विभिन्न नामों से पूजा होगी और वे संसार के लोगों को मुँहमांगा वर देने में समर्थ हो जाएंगी । जो माता की पूजा करेंगे उनकी समस्त अभिलाषाएं माता पूर्ण करेंगी । पृथ्वी के लोग माता की बहुत रूप में पूजा करेंगे एवं माता के अनेक स्थान पृथ्वी पर बनेंगे ।
आज इसी कारण माता की पूजा पृथ्वी लोक में अनेकों रूपों में होती है और सबको माता अपनी संतान मानकर सबकी अभिलाषाएं पूर्ण करती हैं ।
प्रकाशन तिथि : 11 जनवरी 2017 |
587 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 02
श्लो 16 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
भगवान भक्तों को अभय करने वाले हैं । वे सर्वत्र सब रूप में हैं, उन्हें कहीं आना-जाना नहीं है । ....
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - प्रभु भक्तों को अभयदान देने वाले हैं । संसार के जीव भय से ग्रस्त रहते हैं । पर जो प्रभु शरण में चला जाता है प्रभु उसे अभय प्रदान करते हैं । शास्त्रों में अगणित ऐसे प्रसंग हैं जहाँ पर प्रभु ने भक्तों को अभय प्रदान किया है । प्रभु के श्रीवचन हैं कि जो प्रभु की शरण में आ जाता है प्रभु उसे अभय कर देते हैं ।
प्रभु सर्वत्र सभी रूपों में स्थित हैं । कण-कण में प्रभु का वास है । ऐसा कोई स्थान नहीं जहाँ पर प्रभु न हो । प्रभु को भक्तों की पुकार पर कहीं से आना जाना नहीं पड़ता क्योंकि एक रूप में प्रभु वहीं पर स्थित हैं । भक्तों ने जब भी विपत्ति में प्रभु को पुकारा है प्रभु ने तत्काल ही प्रकट होकर भक्तों का समाधान किया है ।
जीव को चाहिए कि अभय होकर प्रभु की शरण में रहे एवं प्रभु को अपने पास अनुभव करें ।
प्रकाशन तिथि : 12 जनवरी 2017 |
588 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 02
श्लो 24 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
वह उठते-बैठते, खाते-पीते, सोते-जागते और चलते-फिरते, सर्वदा ही श्रीकृष्ण के चिंतन में लगा रहता । जहाँ उसकी आँख पड़ती, जहाँ कुछ खड़का होता, वहाँ उसे श्रीकृष्ण दिख जाते । इस प्रकार उसे सारा जगत ही श्रीकृष्णमय दिखने लगा ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - प्रभु दुष्टों का उद्धार करके उन्हें सद्गति देते हैं । इसका एक कारण यह है कि प्रभु के पास सद्गति के अलावा देने के लिए कुछ अन्य है ही नहीं । इसलिए प्रभु सद्गति के अलावा कुछ दे ही नहीं सकते ।
दुष्टों के उद्धार का दूसरा कारण यह है कि उनका डर के कारण या विरोध के कारण निरंतर प्रभु का अनुसंधान बना रहता है । कंस उठते-बैठते, खाते-पीते, सोते-जागते और चलते-फिरते सर्वदा भय के कारण प्रभु के चिंतन में लगा रहता क्योंकि उसे प्रभु से भय था । उसकी जहाँ भी दृष्टि जाती उसे भय के कारण प्रभु ही दिखते । इस तरह उसे सारा जगत ही प्रभुमय दिखने लगा ।
इसलिए अनेक स्थानों पर हमें वर्णन पढ़ने को मिलेगा कि प्रभु ने दुष्टों का, असुरों का संहार किया और उनकी ज्योत निकल पर प्रभु के श्रीकमलचरणों में समा गई और उनका उद्धार हो गया ।
प्रकाशन तिथि : 12 जनवरी 2017 |
589 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 02
श्लो 28 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
इस संसार रूपी वृक्ष की उत्पत्ति के आधार एकमात्र आप ही हैं । आपमें ही इसका प्रलय होता है और आपके ही अनुग्रह से इसकी रक्षा भी होती है । ....
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - प्रभु जब श्रीकृष्णावतार में आने वाले थे तब प्रभु की स्तुति करने प्रभु श्री शिवजी, प्रभु श्री ब्रह्माजी, देवर्षि प्रभु श्री नारदजी एवं समस्त देवतागण आदि कंस के कारागृह में आए ।
स्तुति करते हुए उन्होंने कहा कि संसार रूपी वृक्ष की उत्पत्ति का एकमात्र आधार प्रभु ही हैं । प्रभु के कारण ही संसार की उत्पत्ति और संचालन होता है । प्रलय के समय यह संसार प्रभु में ही समा जाता है । प्रभु के अनुग्रह के कारण ही प्रलय की अवस्था में संसार की रक्षा होती है । संसार की उत्पत्ति, संसार का संचालन और संसार का प्रलय यह तीनों प्रभु के द्वारा ही होते हैं ।
संसार की उत्पत्ति, स्थिति और प्रलय तीनों के कारण प्रभु ही हैं । प्रभु की इच्छा और प्रभु की शक्ति से ही यह तीनों होते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 13 जनवरी 2017 |
590 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 02
श्लो 31 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... वास्तव में सत्पुरुषों पर आपकी महान कृपा है । उनके लिए आप अनुग्रहस्वरूप ही हैं ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - प्रभु के भक्त जगत के सच्चे हितैषी होते हैं । प्रभु के भक्त स्वयं तो प्रभु कृपा से इस भयंकर और कष्ट से पार करने योग्य संसार सागर के पार उतर जाते हैं । साथ ही वे भक्ति का प्रतिपादन करके संसार के कल्याण के लिए प्रभु के श्रीकमलचरणों का आश्रय लेकर संसार सागर को पार करने का मार्ग जगत को बता जाते हैं ।
संत पुरुष पर प्रभु की महान एवं विशेष कृपा होती है । उनके ऊपर प्रभु का इतना अनुग्रह होता है जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते । क्योंकि संत पुरुष स्वयं भक्ति से तरते हैं और भक्ति का प्रतिपादन कर संसार के लोगों को तारने का मार्ग दिखाते हैं इसलिए वे प्रभु की कृपा के विशेष पात्र होते हैं ।
जो दूसरों को प्रभु से जोड़ता है प्रभु की उस संत पुरुष पर विशेष कृपा होती है ।
प्रकाशन तिथि : 13 जनवरी 2017 |
591 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 02
श्लो 33 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... कोई भी विघ्न उनके मार्ग में रुकावट नहीं डाल सकते, क्योंकि उनके रक्षक आप जो हैं ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - प्रभु की स्तुति में उपरोक्त वचन देवताओं ने प्रभु से कहे ।
जिन्होंने भक्ति के द्वारा प्रभु के श्रीकमलचरणों में अपनी सच्ची प्रीति जोड़ रखी है, वे अपने साधन मार्ग से कभी भी गिरते नहीं । उनके साधन मार्ग में कोई भी विघ्न रुकावट नहीं डाल सकती क्योंकि उनकी रक्षा स्वयं प्रभु करते हैं । भक्ति मार्ग पर चलने वाला कभी भी गिरता नहीं क्योंकि प्रभु उसे संभाले रखते हैं और गिरने नहीं देते । भक्ति मार्ग में कोई रुकावट भी नहीं है इसलिए साधक सीधे प्रभु तक पहुँचने में सफल हो जाता है । भक्ति मार्ग में साधक की रक्षा का दायित्व प्रभु ने स्वयं उठा रखा है ।
इसलिए जीव को चाहिए कि वह भक्ति मार्ग पर आगे बढ़े और अपना मानव जीवन सफल करे ।
प्रकाशन तिथि : 14 जनवरी 2017 |
592 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 02
श्लो 37 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
जो पुरुष आपके मंगलमय नामों और रूपों का श्रवण, कीर्तन, स्मरण और ध्यान करता है और आपके चरणकमलों की सेवा में ही अपना चित्त लगाए रहता है, उसे फिर जन्म-मृत्यु रूप संसार के चक्र में नहीं आना पड़ता ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - प्रभु की स्तुति में उपरोक्त वचन देवताओं ने प्रभु से कहे ।
जो जीव प्रभु के मंगलमय नामों और मंगलमय रूपों का श्रवण, कीर्तन, स्मरण और ध्यान करता है उसे संसार चक्र से मुक्ति मिल जाती है । जो जीव प्रभु के श्रीकमलचरणों की सेवा में अपने चित्त को लगा देता है उन्हें जन्म मृत्यु रूपी संसार चक्र में फिर दोबारा नहीं आना पड़ता । भक्ति के द्वारा प्रभु के नाम और रूप का श्रवण, कीर्तन, स्मरण और ध्यान हमारा तत्काल कल्याण करता है । जो जीव अपने जीवन में ऐसा कर पाता है उसको आवागमन से सदैव के लिए मुक्ति मिल जाती है । संसार में दोबारा नहीं आना पड़े इसके लिए सबसे सरल साधन यही है ।
इसलिए जीव को चाहिए कि प्रभु के नाम और रूप का श्रवण, कीर्तन, स्मरण और ध्यान करे ।
प्रकाशन तिथि : 14 जनवरी 2017 |
593 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 03
श्लो 01-03 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
परीक्षित ! अब समस्त शुभ गुणों से युक्त सुहावना समय आया । रोहिणी नक्षत्र था । आकाश के सभी नक्षत्र, ग्रह और तारे शांत और सौम्य हो रहे थे । दिशाएं स्वच्छ प्रसन्न थी । निर्मल आकाश में तारे जगमगा रहे थे । पृथ्वी के बड़े-बड़े नगर, छोटे-छोटे गांव, अहीरों की बस्तियां, हीरे आदि की खानें मंगलमय हो रही थी । नदियों का जल निर्मल हो गया था । रात्रि के समय भी सरोवरों में कमल खिल रहे थे । वन के वृक्षों की पत्तियां रंग-बिरंगे पुष्पों के गुच्छों से लद गई थी । कहीं पक्षी चहक रहे थे तो कहीं भँवरे गुनगुना रहे थे ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - जब प्रभु श्री कृष्णजी के प्राकट्य का समय आया तो पूरा ब्रह्माण्ड झूम उठा ।
आकाश के नक्षत्र, ग्रह, तारे सभी शांत एवं निर्मल हो गए । चारो दिशाएं पवित्र और प्रसन्न हो गईं । पृथ्वी माता अपने पति के स्वागत के लिए अपने पुत्र मंगल को लेकर मंगलमयी हो गई और हीरों की खानों से लद गईं । निर्मल हृदय वाले को भगवान मिलते हैं इसलिए सभी नदिया निर्मल हो गईं । भगवती यमुना माता के तट पर प्रभु जल क्रीडा करेंगे यह सोचकर नदिया आनंद से भर गईं । अग्नि प्रसन्न हो उठी क्योंकि उन्हें पता था कि प्रभु श्रीलीला करते हुए दो बार अग्नि को अपने श्रीमुँह में धारण करेंगे । कंस ने यज्ञ बंद करा दिए थे इसलिए प्रभु के पधारने पर देवताओं को अग्नि से आहुति मिलेगी इसलिए भोजन मिलने की आशा से श्री अग्निदेव प्रसन्न हो गए । श्री वायुदेव ने सोचा कि आनंदकंद प्रभु के मुखारविंद पर जब श्रमजनित पसीना आएगा तो मैं शीतल सुगंधित गति से बह कर उसे सुखाऊंगा इसलिए वे आनंदित हो उठे । रात्रि में भी कमल खिल उठे, वनों के वृक्ष पुष्पों से लद गए । पक्षी और भँवरे गुनगुनाने लगे ।
प्रभु जब अवतार लेकर पधारते हैं तो प्रकृति स्वागत करने के लिए आतुर हो जाती है ।
प्रकाशन तिथि : 16 जनवरी 2017 |
594 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 03
श्लो 26 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... आप सर्वशक्तिमान और परम कल्याण के आश्रय हैं । मैं आपकी शरण लेती हूँ ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त स्तुति भगवती देवकी माता ने प्रभु की करी जब प्रभु ने अवतार ग्रहण किया ।
प्रभु सर्वशक्तिमान हैं । प्रभु सभी शक्तियों से युक्त हैं । दुष्टों का नाश करने की शक्ति सिर्फ प्रभु में ही है । जगत की उत्पत्ति, संचालन और प्रलय की शक्ति प्रभु की ही है । प्रभु की शक्ति से ही पूरा ब्रह्माण्ड गतिमान है । हम जो भी कार्य करते है वह प्रभु की शक्ति से ही करते हैं । प्रभु परम कल्याण के आश्रय हैं । प्रभु से हमारा संयोग होते ही हमारा परम कल्याण सुनिश्चित हो जाता है । प्रभु का आश्रय परम कल्याणकारी है । इसलिए ऋषि, संत और भक्त प्रभु के आश्रय में ही रहते हैं ।
इसलिए जीव को चाहिए कि प्रभु की शरण लेकर अपना मानव जीवन सफल करे ।
प्रकाशन तिथि : 16 जनवरी 2017 |
595 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 03
श्लो 27 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... आज बड़े भाग्य से इसे आपके चरणारविंदों की शरण मिल गई । अतः अब यह स्वस्थ होकर सुख की नींद सो रहा है । औरों की तो बात ही क्या, स्वयं मृत्यु भी इससे भयभीत होकर भाग गई है ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन भगवती देवकी माता ने प्रभु से स्तुति में कहे ।
जीव मृत्यु से भयभीत होकर भटकता रहता है पर उसे ऐसा कोई स्थान नहीं मिलता जहाँ वह निर्भय हो सके । वह जीव बड़ा भाग्यशाली होता है जिसे प्रभु के श्रीकमलचरणों की शरण मिल जाती है । फिर वह मृत्यु के डर को त्याग कर सुखी हो जाता है । स्वयं मृत्यु का डर भी उस जीव से, जो प्रभु की शरण में चला गया है, भयभीत होकर भाग जाता है । प्रभु भक्तभयहारी हैं यानी भक्तों के भय को हरने वाले हैं । मृत्यु का भय तब तक ही हमें सताता है जब तक हम प्रभु शरण में नहीं जाते ।
इसलिए जीव को चाहिए कि वह प्रभु की शरण ग्रहण करे ।
प्रकाशन तिथि : 17 जनवरी 2017 |
596 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 03
श्लो 37 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
पुण्यमयी देवि ! उस समय मैं तुम दोनों पर प्रसन्न हुआ । क्योंकि तुम दोनों ने तपस्या, श्रद्धा और प्रेममयी भक्ति से अपने हृदय में नित्य-निरंतर मेरी भावना की थी । ....
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन प्रभु ने भगवती देवकी माता को कहे ।
प्रभु ने भगवती देवकी माता को उनके पूर्व जन्म की कथा का स्मरण कराया । पूर्व जन्म में भगवती देवकी माता और श्री वसुदेवजी ने प्रभु की घोर तपस्या की थी । तपस्या से भगवती देवकी माता और श्री वसुदेवजी पर प्रभु प्रसन्न हुए । भगवती देवकी माता और श्री वसुदेवजी ने पूर्व जन्म में श्रद्धा और प्रेममयी भक्ति से प्रभु को पाने के लिए तपस्या की थी । उनके हृदय में नित्य-निरंतर प्रभु के लिए श्रद्धा और भक्ति की भावना थी । प्रभु श्रद्धा और भक्ति पर रीझ जाते हैं । इसलिए श्रद्धा और भक्ति से की गई तपस्या पर प्रभु प्रसन्न हो गए ।
प्रभु में श्रद्धा और प्रभु की भक्ति से प्रभु बहुत जल्दी प्रसन्न होते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 17 जनवरी 2017 |
597 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 03
श्लो 48-49 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... त्यों ही वे सब दरवाजे आप-से-आप खुल गए । ठीक वैसे ही, जैसे सूर्योदय होते ही अंधकार दूर हो जाता है । उस समय बादल धीरे-धीरे गरज कर जल की फुहारें छोड़ रहे थे । इसलिए शेषजी अपने फनों से जल को रोकते हुए भगवान के पीछे-पीछे चलने लगे ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - जब प्रभु ने अवतार ग्रहण किया तो बंदीगृह के सभी दरवाजे बंद थे और उनमें लोहे की जंजीरें और बड़े-बड़े ताले जड़े हुए थे ।
परंतु श्री वासुदेवजी ने जैसे ही प्रभु को गोद में लिया बंदीगृह के प्रहरी अचेत हो गए और दरवाजे अपने आप खुल गए । जंजीरें और ताले ठीक वैसे ही खुल गए जैसे सुर्योदय होने पर अंधकार हट जाता है । जिन प्रभु के नाम के स्मरण मात्र से जन्मों-जन्मों के प्रारब्ध बंधन खत्म हो जाते हैं, वे प्रभु गोद में आते ही सभी तरह के बंधनों को ध्वस्त कर देते हैं । जब श्री वासुदेवजी प्रभु के लेकर आगे चले तो बादल धीरे-धीरे गरज के जल की फुहार छोड़ रहे थे उस समय प्रभु श्री शेषजी अपने फनों से जल को रोकते हुए प्रभु के पीछे-पीछे चलने लगे । प्रभु श्री शेषजी वैसे तो अवतार में प्रभु के बड़े भाई श्री बलरामजी बने थे पर उन्होंने प्रभु सेवा को ही सदैव की तरह अपना मुख्य धर्म माना । उन्होंने सोचा कि यदि उनके रहते प्रभु को कष्ट पहुँचे तो यह ठीक नहीं है ।
जीव को भी जीवन में प्रभु सेवा को ही अपना मुख्य लक्ष्य बनाना चाहिए ।
प्रकाशन तिथि : 18 जनवरी 2017 |
598 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 03
श्लो 50 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... जैसे सीतापति भगवान श्रीरामजी को समुद्र ने मार्ग दे दिया था, वैसे ही यमुनाजी ने भगवान को मार्ग दे दिया ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - जब श्री वसुदेवजी प्रभु को लेकर भगवती यमुना माता के तट पर पहुँचे तो उस समय भगवती यमुनाजी का प्रवाह गहरा और तेज होने के कारण जल स्तर बढ़ गया था । संतजन कहते हैं कि भगवती यमुना माता ने देखा कि प्रभु मेरे तट पर आ रहे हैं इसलिए वे आनंद और प्रेम से भर गई और उनकी आँखों से इतने प्रेम के आंसू निकले की बाढ़ आ गई ।
प्रभु ने अपना श्रीकमलचरण नीचे किया और उन श्रीकमलचरणों का आशीर्वाद स्वरूप स्पर्श पाकर भगवती यमुना माता शांत हुई और उन्होंने श्री वसुदेवजी को अपने मध्य से जाने का मार्ग दे दिया । श्री रामावतार में श्री समुद्रदेवजी ने प्रभु को लंका जाने का मार्ग दिया वैसे ही भगवती यमुनाजी ने श्री कृष्णावतार में प्रभु को श्री गोकुलजी जाने का मार्ग दिया ।
प्रभु जब श्रीलीला करने आते है तो प्रकृति अपना नियम तोड़ कर प्रभु की सेवा करती है । प्रकृति के नियम प्रभु पर लागू नहीं होते क्योंकि प्रकृति को बनाने वाले, प्रकृति के मालिक प्रभु हैं ।
प्रकाशन तिथि : 18 जनवरी 2017 |
599 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 05
श्लो 13 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
भगवान श्रीकृष्ण समस्त जगत के एकमात्र स्वामी हैं । उनके ऐश्वर्य, माधुर्य, वात्सल्य सभी अनंत हैं । ....
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - प्रभु का श्री गोकुलजी में महान जन्म महोत्सव मनाया गया क्योंकि प्रभु जगत के एकमात्र स्वामी हैं और उन्होंने श्रीलीला करने के लिए पृथ्वी पर अवतार ग्रहण किया था ।
प्रभु का ऐश्वर्य अनंत है । प्रभु सम्पूर्ण ऐश्वर्यों से युक्त हैं । इसलिए जब प्रभु श्री गोकुलजी पधारे तो पहले ही समस्त ऐश्वर्य वहाँ आ गए थे । प्रभु का माधुर्य अनंत है । प्रभु का रूप और प्रभु का स्वभाव इतना मधुर है कि भक्तजन उसके आनंद में खो जाते हैं । प्रभु का एक-एक श्रीअंग माधुर्य की पराकाष्ठा है । प्रभु का वात्सल्य अनंत है । प्रभु माता-पिता की भांति जीव पर वात्सल्य का भाव रखते हैं और उनका दुलार करते हैं ।
इसलिए जीव को चाहिए कि ऐसे ऐश्वर्य, माधुर्य और वात्सल्य से युक्त प्रभु से प्रेम करे ।
प्रकाशन तिथि : 19 जनवरी 2017 |
600 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(दशम स्कंध) |
अ 06
श्लो 01 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... तब उन्होंने मन-ही-मन "भगवान की शरण हैं, वे ही रक्षा करेंगे" ऐसा निश्चय किया ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - जब श्री नंदजी कंस का वार्षिक कर चुकाने श्री गोकुलजी से श्री मथुराजी गए तो उनका मिलना श्री वसुदेवजी से हुआ । मिलने के बाद श्री वसुदेवजी ने उन्हें शीघ्र ही वापस श्री गोकुलजी जाने का सुझाव दिया क्योंकि उन्हें आशंका थी कि कंस कोई-न-कोई उत्पात जरूर करवाएगा ।
श्री नंदजी जब वापस श्री गोकुलजी के लिए चले तो रास्ते में विचार करने लगे कि श्री वासुदेवजी सत्यनिष्ठ हैं इसलिए उनका कथन कभी झूठा नहीं हो सकता । अमंगल की आशंका देख श्री नंदजी ने तत्काल मन-ही-मन प्रभु का स्मरण किया और प्रभु की शरण ग्रहण की । उन्होंने प्रभु को संकट से रक्षा करने का निवेदन किया ।
जीव को भी इस प्रसंग से प्रेरणा लेनी चाहिए कि संकट की बेला में प्रभु का स्मरण किया जाए, प्रभु की शरण ग्रहण की जाए और प्रभु से रक्षा करने की अरदास की जाए ।
प्रकाशन तिथि : 19 जनवरी 2017 |