क्रम संख्या |
श्रीग्रंथ |
अध्याय -
श्लोक संख्या |
भाव के दर्शन / प्रेरणापुंज |
409 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(षष्ठम स्कंध) |
अ 2
श्लो 07 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
यमदूतों ! इसने कोटि-कोटि जन्मों की पाप राशि का पूरा-पूरा प्रायश्चित कर लिया है । क्योंकि इसने विवश होकर ही सही, भगवान के परम कल्याणमय (मोक्षप्रद) नाम का उच्चारण तो किया है ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन प्रभु के पार्षदों ने यमदूतों से कहे ।
श्री अजामिलजी एक जितेंद्रिय ब्राह्मण थे पर एक गलत दृश्य देखने पर पतित हो गए । मृत्यु के समय यमदूत उन्हें लेने पहुँचे तो उन्होंने अपने पुत्र को पुकारा जिसका नाम नारायण था । मृत्यु के समय भगवत् नाम का उच्चारण होते ही प्रभु के पार्षद आ पहुँचे ।
प्रभु के पार्षदों ने कहा कि प्रभु का नाम किसी भी निमित्त से लिया गया हो उससे कोटि-कोटि जन्मों की पाप राशि का पूरा-पूरा प्रायश्चित हो जाता है । श्री अजामिलजी से विवश अवस्था में ही क्यों न हो पर प्रभु के परम मंगलमय और कल्याणमय नाम का उच्चारण हो गया इसलिए वे सभी पापों से मुक्त हो गए । जीव को भी प्रभु के मंगलमय नाम का उच्चारण जीवन में सदैव करते रहना चाहिए ।
प्रकाशन तिथि : 22 जुलाई 2016 |
410 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(षष्ठम स्कंध) |
अ 2
श्लो 08 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
जिस समय इसने 'नारायण' इन चार अक्षरों का उच्चारण किया, उसी समय केवल उतने से ही इस पापी के समस्त पापों का प्रायश्चित हो गया ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन प्रभु के पार्षदों ने यमदूतों से कहे ।
प्रभु के नाम के उच्चारण का कितना बड़ा महात्म्य है वह इस श्लोक में देखने को मिलता है । श्री अजामिलजी ने अपने पुत्र का नाम पुकारा जो कि नारायण था । उसके पापों का घड़ा भरा हुआ था पर यमदूतों को प्रभु के पार्षदों ने कहा कि नारायण नाम के चार अक्षरों का उच्चारण करते ही उसी समय केवल उतने उच्चारण मात्र से ही पापी अजामिल के समस्त पापों का प्रायश्चित हो गया ।
प्रभु के नाम के उच्चारण का इतना बड़ा महत्व है । तात्पर्य यह है कि प्रभु के नाम के एक उच्चारण करने मात्र से सभी पापों की निवृत्ति हो जाती है । पाप की निवृत्ति के लिए प्रभु नाम का एक अंश ही पर्याप्त है, जैसे 'राम' का 'रा' । इस तथ्य को समझने के बाद जीव को चाहिए कि जीवन में प्रभु नाम के उच्चारण की आदत डालें जिससे अंत समय प्रभु के नाम का उच्चारण हो सके ।
प्रकाशन तिथि : 23 जुलाई 2016 |
411 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(षष्ठम स्कंध) |
अ 2
श्लो 12 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... इसलिए जो लोग ऐसा प्रायश्चित करना चाहें कि जिससे पापकर्मों और वासनाओं की जड़ ही उखड़ जाए, उन्हें भगवान के गुणों का ही गान करना चाहिए, क्योंकि उससे चित्त सर्वथा शुद्ध हो जाता है ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन प्रभु के पार्षदों ने यमदूतों से कहे ।
शास्त्रों और ऋषियों ने पापों के बहुत से प्रायश्चित बताए हैं । पर प्रायश्चित करने के बाद भी मन फिर से कुमार्ग में, पाप की ओर दौड़ता है । इसलिए शास्त्र कहते हैं कि जो सच्चा प्रायश्चित करना चाहता है जिससे की पापकर्म जड़ से ही उखड़ जाए और पापकर्म करने की वासनाएं भी जड़ से समाप्त हो जाए उसे प्रभु के सद्गुणों का गान करना चाहिए । प्रभु के सद्गुणों का गान करने से हमारा चित्त सर्वथा शुद्ध हो जाता है ।
प्रभु के गुणगान से चित्त शुद्ध होने पर फिर जीव से पाप होंगे ही नहीं । इसलिए जीव को चाहिए कि वह प्रभु के सद्गुणों का गान करने की आदत जीवन में बनाए ।
प्रकाशन तिथि : 24 जुलाई 2016 |
412 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(षष्ठम स्कंध) |
अ 2
श्लो 14-15 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
बड़े-बड़े महात्मा पुरुष यह बात जानते हैं कि संकेत में, परिहास में, तान अलापने में अथवा किसी की अवहेलना करने में भी यदि कोई भगवान के नामों का उच्चारण करता है तो उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं । जो मनुष्य गिरते समय, पैर फिसलते समय, अंग भंग होते समय और सांप के डंसते, आग में जलते तथा चोट लगते समय भी विवशता में 'हरि-हरि' कहकर भगवान के नाम का उच्चारण कर लेता है, वह यमयातना का पात्र नहीं रह जाता ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन प्रभु के पार्षदों ने यमदूतों से कहे ।
जो व्यक्ति किसी भी बहाने से प्रभु नाम का उच्चारण कर लेता है उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं । प्रभु के नाम का उच्चारण करने वाला व्यक्ति यमयातना का पात्र नहीं रह जाता । प्रभु नाम का उच्चारण करने पर प्रभु सारे पापों को हर लेते हैं । प्रभु नाम का उच्चारण करने वाला समस्त पापों से मुक्त होकर प्रभु को प्राप्त होता है ।
केवल प्रभु नाम का उच्चारण करने मात्र से जीव मुक्त हो जाता है । चाहे किसी भी अवस्था में जो प्रभु नाम का उच्चारण करता है वह बाहर और भीतर से पवित्र हो जाता है । जिनकी जिह्वा पर प्रभु का मंगलमय नाम आ जाता है उनकी कोटि-कोटि महापातक राशि तत्काल भस्म हो जाती है ।
प्रकाशन तिथि : 25 जुलाई 2016 |
413 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(षष्ठम स्कंध) |
अ 2
श्लो 18 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
यमदूतों ! जैसे जाने-अनजाने में ईंधन से अग्नि का स्पर्श हो जाए तो वह भस्म हो जाता है, वैसे ही जानबूझकर या अनजाने में भगवान के नामों का संकीर्तन करने से मनुष्य के सारे पाप भस्म हो जाते हैं ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन प्रभु के पार्षदों ने यमदूतों से कहे ।
जाने या अनजाने में किसी ईंधन का अग्नि से स्पर्श हो जाए तो वह ईंधन भस्म हो जाता है । ठीक वैसे ही जानबूझकर या अनजाने में प्रभु के नामों का कीर्तन करने से जीव के सारे पाप भस्म हो जाते हैं ।
प्रभु के नाम के संकीर्तन को कलियुग में सबसे बड़ा साधन माना गया है । जो फल सतयुग में ध्यान से, त्रेता में यज्ञ से और द्वापर में अर्चा पूजा से मिलता था, वह कलियुग में प्रभु नाम के संकीर्तन से प्राप्त होता है । पापों का क्षय करने के लिए जीव को चाहिए कि वह प्रभु नाम का नित्य कीर्तन करे ।
प्रकाशन तिथि : 26 जुलाई 2016 |
414 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(षष्ठम स्कंध) |
अ 2
श्लो 19 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
जैसे कोई परम शक्तिशाली अमृत को उसका गुण न जानकर अनजाने में पी ले तो भी वह अवश्य ही पीनेवाले को अमर बना देता है, वैसे ही अनजाने में उच्चारण करने पर भी भगवान का नाम अपना फल देकर ही रहता है ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन प्रभु के पार्षदों ने यमदूतों से कहे ।
प्रभु के पार्षद कहते हैं कि जैसे कोई अमृत को उसके गुणों को जानकर या अनजाने में पी लेता है तो वह अमृत पीने वाले को अमर बना देता है । क्योंकि यह अमृत का गुण है कि वह पीने वाले को अमरत्व देता है । वैसे ही जाने-अनजाने में भी प्रभु के नाम का उच्चारण करने पर प्रभु का नाम उच्चारण करने वाले को उसका फल मिलकर ही रहता है ।
किसी भी अवसर पर, चाहे जब भी और कभी भी भगवान के नाम का स्मरण करने वाले मनुष्य की पाप राशि तत्काल नष्ट हो जाती है । प्रभु नाम का उच्चारण अपना प्रभाव पूर्ण करके ही रहता है ।
प्रकाशन तिथि : 27 जुलाई 2016 |
415 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(षष्ठम स्कंध) |
अ 2
श्लो 25 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
सर्वपापहारी भगवान की महिमा सुनने से अजामिल के हृदय में शीघ्र ही भक्ति का उदय हो गया ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - श्री अजामिलजी को प्रभु के पार्षदों ने यमदूतों से मुक्त करा दिया । भगवान के नाम के उच्चारण की महिमा सुनकर श्री अजामिलजी के हृदय में प्रभु भक्ति का उदय हुआ । उन्हें अपने पापकर्मों पर सच्चा पश्चाताप हुआ ।
श्री अजामिलजी ने अब अपना बचा हुआ जीवन प्रभु के नामों के कीर्तन में लगाकर हृदय को शुद्ध करने का निर्णय लिया । उन्होंने अपना तन और मन प्रभु की प्राप्ति के लिए लगा दिया । प्रभु के पार्षदों और यमदूतों के बीच संवाद सुनकर उन्हें विश्वास हो गया कि प्रभु नाम के उच्चारण करने से भूत, वर्तमान और भविष्य के सारे पाप भस्म हो जाते हैं ।
जीव को भी चाहिए कि वह अपने हृदय में भक्ति जागृत करके अपना जीवन प्रभु को समर्पित करे ।
प्रकाशन तिथि : 28 जुलाई 2016 |
416 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(षष्ठम स्कंध) |
अ 2
श्लो 49 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
परीक्षित ! देखो - अजामिल जैसे पापी ने मृत्यु के समय पुत्र के बहाने भगवान के नाम का उच्चारण किया । उसे भी बैकुंठ की प्राप्ति हो गयी । फिर जो लोग श्रद्धा के साथ भगवन् नाम का उच्चारण करते हैं, उनकी तो बात ही क्या है ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन प्रभु श्री शुकदेवजी ने राजा श्री परीक्षितजी को कहे ।
श्री अजामिलजी जैसे पापी ने मृत्यु के समय अपने पुत्र के बहाने प्रभु के मंगलमय नाम का उच्चारण किया और प्रभु के पार्षदों ने वहाँ पहुँचकर उसे यमदूतों से बचा लिया । वे नर्क जाने से और वहाँ यमयातना भोगने से बच गए । पुत्र के निमित्त से किए प्रभु नाम के उच्चारण से उनके पापों का क्षय हो गया और वे अंत में अपना चित्त प्रभु में लगाकर वे प्रभु के लोक चले गए ।
पुत्र के निमित्त लिए नाम से श्री अजामिलजी जैसे पापी की ऐसी सद्गति हुई तो फिर श्रद्धा के साथ जो भगवत् नाम का उच्चारण करते हैं उनकी सद्गति तो निश्चित है । इसलिए जीव को चाहिए कि वह श्रद्धा से प्रभु नाम का नित्य जाप और कीर्तन करे जिससे उसकी सद्गति हो ।
प्रकाशन तिथि : 29 जुलाई 2016 |
417 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(षष्ठम स्कंध) |
अ 3
श्लो 22 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
इस जगत में जीवों के लिए बस, यही सबसे बड़ा कर्तव्य और परम धर्म है कि वे नाम-कीर्तन आदि उपायों से भगवान के चरणों को भक्तिभाव प्राप्त कर लें ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन प्रभु श्री यमराजजी ने अपने दूतों से कहे ।
यहाँ प्रभु श्री यमराजजी भगवत् धर्म का रहस्य बताते हैं । इस जगत में जीव के लिए सबसे बड़ा कर्तव्य और परम धर्म यही है कि वह प्रभु के नामों का जप और कीर्तन आदि उपायों से प्रभु के श्रीकमलचरणों में समर्पित होकर भक्ति को प्राप्त कर लें ।
सबसे बड़ा परम धर्म यही है कि प्रभु की भक्ति को प्राप्त करना । इसलिए मानव जन्म लेकर हमें प्रभु की भक्ति करनी चाहिए जो कि जीव का सबसे बड़ा कर्तव्य है । प्रभु भक्ति कर मानव जीवन को सफल करना ही मानव जीवन का उद्देश्य होना चाहिए । जीव का प्रयास सदैव इसी दिशा में होना चाहिए ।
प्रकाशन तिथि : 30 जुलाई 2016 |
418 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(षष्ठम स्कंध) |
अ 3
श्लो 24 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
भगवान के गुण, लीला और नामों का भलीभांति कीर्तन मनुष्यों के पापों का सर्वथा विनाश कर दे, यह कोई उसका बहुत बड़ा फल नहीं है, क्योंकि अत्यंत पापी अजामिल ने मरने के समय चंचल चित्त से अपने पुत्र का नाम 'नारायण' उच्चारण किया । इस नामाभासमात्र से ही उसके सारे पाप तो क्षीण हो ही गए, मुक्ति की प्राप्ति भी हो गयी ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन प्रभु श्री यमराजजी ने अपने दूतों से कहे ।
प्रभु के नाम के उच्चारण की महिमा ऐसी है कि श्री अजामिलजी जैसा पापी भी एक बार पुत्र के निमित्त से प्रभु नाम उच्चारण करने मात्र से मृत्यु के पाश से मुक्त हो गया । फिर जो प्रभु के सद्गुण, श्रीलीला और नामों का भाव से कीर्तन करता है उस मनुष्य के समस्त पापों का सर्वथा विनाश हो जाता है । इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं क्योंकि अत्यंत पापी श्री अजामिलजी के प्रभु नाम के एक उच्चारण से उसके समस्त पाप क्षीण हो गए थे और उसे मुक्ति की प्राप्ति भी हो गई ।
इसलिए जीव को चाहिए कि प्रभु के सद्गुण, श्रीलीला और नामों का कीर्तन करे जिससे वह पापमुक्त हो जाए ।
प्रकाशन तिथि : 31 जुलाई 2016 |
419 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(षष्ठम स्कंध) |
अ 3
श्लो 26 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
प्रिय दूतों ! बुद्धिमान पुरुष ऐसा विचार कर भगवान अनंत में ही सम्पूर्ण अंतःकरण से अपना भक्तिभाव स्थापित करते हैं । वे मेरे दण्ड के पात्र नहीं हैं । पहली बात तो यह है कि वे पाप करते ही नहीं, परंतु यदि कदाचित संयोगवश कोई पाप बन भी जाए, तो उसे भगवान का गुणगान तत्काल नष्ट कर देता है ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन प्रभु श्री यमराजजी ने अपने दूतों से कहे ।
प्रभु श्री यमराजजी कहते हैं कि जो मनुष्य अपने अंतःकरण को प्रभु को समर्पित करके प्रभु की भक्ति करते हैं वे उनके दण्ड के पात्र नहीं होते । एक सिद्धांत का प्रतिपादन यहाँ मिलता है कि जो प्रभु की भक्ति करते हैं वे प्रभु श्री यमराजजी के दण्ड के पात्र नहीं होते । भक्ति करने वाले जीव पहले तो पाप करते ही नहीं परंतु यदि कदाचित उनसे कोई पाप हो भी जाता है तो भी प्रभु का गुणगान करने से वो पाप तत्काल नष्ट हो जाता है ।
इसलिए जीव को चाहिए कि वह प्रभु भक्ति करे जिससे उसे यमयातना सहना ही नहीं पड़े ।
प्रकाशन तिथि : 01 अगस्त 2016 |
420 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(षष्ठम स्कंध) |
अ 3
श्लो 27 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... मेरे दूतों ! भगवान की गदा उनकी सदा रक्षा करती रहती है । उनके पास तुम लोग कभी भूलकर भी मत फटकना । उन्हें दण्ड देने की सामर्थ्य न हममें है और न साक्षात काल में ही है ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन प्रभु श्री यमराजजी ने अपने दूतों से कहे ।
प्रभु श्री यमराजजी कहते हैं कि जो प्रभु का आश्रय लेते हैं प्रभु उनकी रक्षा स्वयं करते हैं । प्रभु श्री यमराजजी अपने दूतों को सावधान करते हैं कि ऐसे जीवों के पास, जिन्होंने प्रभु का आश्रय लिया हो, कभी भूल कर भी मत जाना । क्योंकि ऐसे जीवों को दण्ड देने का सामर्थ्य न तो प्रभु श्री यमराजजी में है और न ही काल में है ।
प्रभु का आश्रय लेने वाले को प्रभु अपनी शरण में लेकर अभय कर देते हैं । फिर उस जीव को दण्ड देने का सामर्थ्य किसी में नहीं होता । इसलिए जीव को चाहिए कि प्रभु की भक्ति करके प्रभु की शरणागति ग्रहण करे ।
प्रकाशन तिथि : 02 अगस्त 2016 |
421 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(षष्ठम स्कंध) |
अ 3
श्लो 29 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
जिनकी जीभ भगवान के गुणों और नामों का उच्चारण नहीं करती, जिनका चित्त उनके चरणारविन्दों का चिंतन नहीं करता और जिनका सिर एक बार भी भगवान श्रीकृष्ण के चरणों में नहीं झुकता, उन भगवत्सेवाविमुख पापियों को ही मेरे पास लाया करो ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन प्रभु श्री यमराजजी ने अपने दूतों से कहे ।
प्रभु श्री यमराजजी अपने दूतों को बताते हैं कि किन-किन लोगों को उनके पास लाया जाना चाहिए । जिनकी जिह्वा कभी भी प्रभु के सद्गुणों का कीर्तन और प्रभु के नाम का उच्चारण नहीं करती उनको यमलोक लाना चाहिए । जिनके चित्त प्रभु के श्रीकमलचरणों का चिंतन नहीं करते उन्हें यमलोक लाना चाहिए । जिनके शीश प्रभु के श्रीकमलचरणों के आगे नहीं झुकते उन्हें यमलोक लाना चाहिए । जो भगवत् सेवा विमुख पापी हैं उन्हें यमलोक लाना चाहिए ।
इसलिए जीव को चाहिए कि प्रभु के सद्गुणों और नामों का उच्चारण करे, चित्त से प्रभु के श्रीकमलचरणों का चिंतन करे, प्रभु के श्रीकमलचरणों में शीश झुकाए और भगवत् सेवा करे जिससे उसे यमलोक के दर्शन नहीं हों ।
प्रकाशन तिथि : 03 अगस्त 2016 |
422 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(षष्ठम स्कंध) |
अ 3
श्लो 31 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
परीक्षित ! इसलिए तुम ऐसा समझ लो कि बड़े-से-बड़े पापों का सर्वोत्तम, अन्तिम और पाप वासनाओं को भी निर्मूल कर डालने वाला प्रायश्चित यही है कि केवल भगवान के गुणों, लीलाओं और नामों की कीर्तन किया जाए । इसी से संसार का कल्याण हो सकता है ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन प्रभु श्री शुकदेवजी ने राजा श्री परीक्षितजी को कहे ।
बड़े-से-बड़े पापों का सर्वोत्तम और अन्तिम प्रायश्चित यही है कि प्रभु के सद्गुणों, श्रीलीलाओं और नामों का कीर्तन किया जाए । पाप वासनाओं को भी निर्मूल कर डालने का उपाय भी यही है कि प्रभु के सद्गुणों, श्रीलीलाओं और नामों का कीर्तन किया जाए । जीव और संसार का कल्याण इसी में है ।
जो लोग प्रभु के कृपापूर्ण श्रीचरित्रों का श्रवण और कीर्तन करते हैं उनके हृदय में प्रभु के लिए प्रेमाभक्ति का भाव उदय होता है । भक्ति उनकी आत्मशुद्धि कर देती है जिससे पापों का क्षय हो जाता है । इसलिए जीव को चाहिए कि वह प्रभु के सद्गुणों, श्रीलीलाओं और नामों का कीर्तन करे जिससे उसके पापों का क्षय हो ।
प्रकाशन तिथि : 04 अगस्त 2016 |
423 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(षष्ठम स्कंध) |
अ 3
श्लो 34 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
परीक्षित ! जब यमदूतों ने अपने स्वामी धर्मराज के मुख से इस प्रकार भगवान की महिमा सुनी और उसका स्मरण किया, तब उनके आश्चर्य की सीमा न रही । तभी से वे धर्मराज की बात पर विश्वास करके अपने नाश की आशंका से भगवान के आश्रित भक्तों के पास नहीं जाते । और तो क्या, वे उनकी ओर आँख उठाकर देखने में भी डरते हैं ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन प्रभु श्री शुकदेवजी ने राजा श्री परीक्षितजी को कहे ।
जब यमदूतों ने प्रभु श्री यमराजजी के श्रीमुख से प्रभु की दिव्य महिमा सुनी तब से वे प्रभु के आश्रित भक्तों के पास भूल कर भी कभी नहीं जाते । जाने की बात तो दूर वे प्रभु भक्तों की ओर आँख उठाकर देखते तक नहीं ।
प्रभु की महिमा सुनने के बाद यमदूतों को यह पता चल गया कि प्रभु के आश्रित भक्त उनकी पहुँच से बाहर हैं । इसलिए जीव को चाहिए कि प्रभु का आश्रय ग्रहण कर प्रभु की भक्ति करे जिससे मृत्यु के पश्चात यमयातना का भागी नहीं बनना पड़े ।
प्रकाशन तिथि : 05 अगस्त 2016 |
424 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(षष्ठम स्कंध) |
अ 4
श्लो 13 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
प्रचेताओ ! समस्त प्राणियों के हृदय में सर्वशक्तिमान भगवान आत्मा के रूप में विराजमान हैं । इसलिए आप लोग सभी को भगवान का निवास स्थान समझें । यदि आप ऐसा करेंगे तो भगवान को प्रसन्न कर लेंगे ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - सभी प्राणियों के हृदय में सर्वशक्तिमान प्रभु आत्मा के रूप में विराजमान हैं । सभी के हृदय में प्रभु का निवास स्थान है ।
यह एक शाश्वत सिद्धांत है कि प्रभु सभी जीवों के अंतःकरण में आत्मा के रूप में विराजमान हैं । इस तथ्य का प्रतिपादन श्रीमद् भागवतजी महापुराण, श्रीमद् भगवद् गीताजी एवं श्री रामचरितमानसजी में मिलता है ।
सभी के हृदय को प्रभु का निवास स्थान मानते हुए सभी जीवों में अगर हम प्रभु का दर्शन करना सीख जाएंगे तो प्रभु प्रसन्न होंगे । इसलिए जीव को चाहिए कि वह हर जीव में प्रभु के दर्शन करने की क्षमता भक्ति के द्वारा जागृत करे ।
प्रकाशन तिथि : 06 अगस्त 2016 |
425 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(षष्ठम स्कंध) |
अ 4
श्लो 30 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
भगवन ! आप में ही यह सारा जगत स्थित है, आपसे ही निकला है और आपके अलावा और किसी के सहारे नहीं, अपने आप से ही इसका निर्माण किया है । यह आपका ही है और आपके लिए ही है । ....
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन श्री दक्ष प्रजापतिजी ने प्रभु की स्तुति में कहे ।
प्रभु में ही सारा जगत स्थित है । जगत की उत्पत्ति प्रभु से ही हुई है । जगत का निर्माण प्रभु ने ही किया है । इसलिए जगत प्रभु का ही है । प्रभु ही इस जगत के मालिक हैं । जगत प्रभु ने अपने लिए ही रचा है ।
जगत की उत्पत्ति, संचालन और लय प्रभु द्वारा ही किया जाता है । प्रभु के एक रोमावली में कोटि-कोटि जगत स्थित हैं । जब प्रभु एक से अनेक होना चाहते हैं तो अपने अंदर से जगत की उत्पत्ति करते हैं । क्योंकि जगत का निर्माण प्रभु ने अपने लिए ही किया है इसलिए जगत के मालिक प्रभु हैं । इसलिए जीव को जगत के मालिक परमपिता परमेश्वर की भक्ति करनी चाहिए ।
प्रकाशन तिथि : 07 अगस्त 2016 |
426 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(षष्ठम स्कंध) |
अ 4
श्लो 33 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
प्रभो ! आप अनंत हैं । आपका न तो कोई प्राकृत नाम है और न कोई प्राकृत रूप, फिर भी जो आपके चरणकमलों का भजन करते हैं, उन पर अनुग्रह करने के लिए आप अनेक रूपों में प्रकट होकर अनेकों लीलाएं करते हैं तथा उन-उन रूपों एवं लीलाओं के अनुसार अनेकों नाम धारण कर लेते हैं । ....
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन श्री दक्ष प्रजापतिजी ने प्रभु की स्तुति में कहे ।
प्रभु अनंत हैं । जो प्रभु के श्रीकमलचरणों का भजन करते हैं उन पर कृपा करने के लिए प्रभु अनेकों रूपों में प्रकट होकर अनेकों श्रीलीलाएं करते हैं । प्रभु उन रूपों और श्रीलीलाओं के अनुसार अनेकों नाम धारण कर लेते हैं ।
वैसे प्रभु का न तो कोई प्राकृत नाम है और न ही कोई प्राकृत रूप है । फिर भी भक्तों की श्रद्धा अनुसार प्रभु नाम और रूप धारण करके भक्तों को आनंदित करते हैं । प्रभु अनंत हैं इसलिए भक्त जिस भी रूप और नाम से प्रभु को भजता है प्रभु वही रूप और नाम धारण कर लेते हैं । भक्तों को आनंदित करने के लिए प्रभु उन रूपों और नामों में अनेकों श्रीलीलाएं करते हैं ।
प्रकाशन तिथि : 08 अगस्त 2016 |
427 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(षष्ठम स्कंध) |
अ 8
श्लो 33 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... इस कारण सर्वज्ञ, सर्वव्यापक भगवान श्रीहरि सदा सर्वत्र सब स्वरूपों से हमारी रक्षा करें ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - भय और विपत्ति के अवसर उपस्थित होने पर श्रीनारायण कवच धारण करके अपनी रक्षा करने का विधान है । श्रीनारायण कवच का उपदेश ऋषि श्री विश्वरूपजी ने देवताओं को दिया था ।
श्रीनारायण कवच में प्रभु के विभिन्न रूपों का आह्वान करके शरीर के विभिन्न अंगों की रक्षा करने का प्रावधान है । प्रभु सर्वज्ञ और सर्वव्यापक हैं । प्रभु सदा सर्वदा सभी स्वरूपों से हमारी रक्षा करते हैं ।
विपत्ति के समय रक्षा करने वाले सिर्फ और सिर्फ प्रभु ही होते हैं इसलिए विपत्ति के समय प्रभु का ध्यान और आह्वान करना चाहिए । प्रभु अपने भक्तों की सदा सर्वदा रक्षा करते हैं । विपत्ति के समय सिर्फ प्रभु की शरण में जाकर प्रभु को ही पुकारना चाहिए ।
प्रकाशन तिथि : 09 अगस्त 2016 |
428 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(षष्ठम स्कंध) |
अ 9
श्लो 22 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... जो आपको छोड़कर किसी दूसरे की शरण लेता है, वह मूर्ख है । ....
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन देवताओं ने प्रभु से प्रार्थना करते वक्त कहे ।
देवता वृत्रासुर के प्रकोप से भयभीत होकर प्रभु की शरण में गए । देवताओं ने प्रभु से कहा कि जो प्रभु को छोड़कर किसी दूसरे की शरण लेता है वह मूर्ख है ।
किसी भी विपत्ति और भय के अवसर पर हमें शरणागति प्रभु की ही लेनी चाहिए क्योंकि एकमात्र प्रभु ही हैं जो विपत्ति के निवारण में और भय से अभय करने में समर्थ हैं । इसलिए जो प्रभु को छोड़कर अन्य किसी की भी शरण ग्रहण करता है वह मूर्ख है । जीव को चाहिए कि सदैव प्रभु की शरणागति ग्रहण करके रखें, विपत्ति और भय में तो खासकर प्रभु की शरणागति ग्रहण करे तभी उस विपत्ति अथवा भय का निवारण संभव है ।
प्रकाशन तिथि : 10 अगस्त 2016 |
429 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(षष्ठम स्कंध) |
अ 9
श्लो 33 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
भगवान ! नारायण ! वासुदेव ! आप आदि पुरुष और महापुरुष हैं । आपकी महिमा असीम है । आप परम मंगलमय, परम कल्याण स्वरूप और परम दयालु हैं । आप ही सारे जगत के आधार एवं अद्वितीय हैं, केवल आप ही सारे जगत के स्वामी हैं । ....
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन देवताओं ने प्रभु से प्रार्थना करते वक्त कहे ।
प्रभु आदि पुरुष हैं और पुरुषोत्तम हैं । प्रभु की महिमा असीम है । प्रभु की महिमा का कोई पार नहीं पा सकता । प्रभु परम मंगलमय हैं यानी मंगल के स्त्रोत्र हैं । प्रभु परम कल्याण स्वरूप हैं यानी हर प्रकार से कल्याण करने वाले हैं । प्रभु परम दयालु हैं यानी पूर्ण दया करने वाले हैं । प्रभु सारे जगत के आधार हैं । प्रभु अद्वितीय हैं, यानी प्रभु जैसा अन्य कोई भी नहीं है । प्रभु ही सारे जगत के स्वामी हैं ।
हमें भी ऐसे कल्याण स्वरूप और मंगलमय प्रभु की शरण लेनी चाहिए जैसे देवताओं ने ली ।
प्रकाशन तिथि : 11 अगस्त 2016 |
430 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(षष्ठम स्कंध) |
अ 9
श्लो 36 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... आपके गुण अगणित हैं, महिमा अगाध है और आप सर्वशक्तिमान हैं । ....
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन देवताओं ने प्रभु से प्रार्थना करते वक्त कहे ।
प्रभु के सद्गुण अगणित हैं । प्रभु के सद्गुणों की गिनती संभव नहीं । प्रभु सद्गुणों के सागर हैं । ऐसा कोई सद्गुण नहीं जो प्रभु में विद्यमान नहीं हो । प्रभु सर्वगुण सम्पन्न हैं । प्रभु की महिमा अगाध है । प्रभु की महिमा का कोई पार नहीं पा सकता क्योंकि प्रभु की महिमा असीम है । प्रभु सर्वशक्तिमान हैं यानी सारी शक्तियों से युक्त हैं । सभी शक्तियों के केंद्र प्रभु ही हैं ।
जीव को चाहिए कि ऐसे प्रभु जो सर्वशक्तिमान हैं और सभी सद्गुणों से युक्त हैं और जिनकी महिमा अपार है उनकी भक्ति करे ।
प्रकाशन तिथि : 12 अगस्त 2016 |
431 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(षष्ठम स्कंध) |
अ 9
श्लो 38 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... आप सबके अंतर्यामी अंतरात्मा हैं । ....
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन देवताओं ने प्रभु से प्रार्थना करते वक्त कहे ।
प्रभु सबके अंतर्यामी हैं । प्रभु सबके मन की बात जानने वाले हैं । हमारे हृदय में जो चिंतन चलता है प्रभु उसको जानते हैं । इसलिए हमें सावधान रहना चाहिए कि हमारे हृदय में भी कोई गलत चिंतन नहीं आए । पाप करना तो दूर अगर पाप की वासना भी हृदय में जागृत हो तो भी प्रभु उसे जान लेते हैं ।
प्रभु हमारी अंतरात्मा हैं । हमारे भीतर दृष्टा के रूप में विद्यमान हैं । हमें अपनी अंतरात्मा की पुकार सुननी चाहिए क्योंकि हम जब भी जीवन में कुछ गलत करते हैं तो हमारे भीतर से ऐसा नहीं करने की पुकार आती है । जीव को चाहिए कि प्रभु अंतर्यामी हैं और अंतरात्मा में स्थित हैं इस बात से जीवन में सचेत रहे और गलत कार्य करने से बचे ।
प्रकाशन तिथि : 13 अगस्त 2016 |
432 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(षष्ठम स्कंध) |
अ 9
श्लो 39 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
मधुसूदन ! आपकी अमृतमयी महिमा रस का अनंत समुद्र है । .... मधुसूदन ! आपके वे प्यारे और सुहृद भक्तजन भला, आपके चरणकमलों का सेवन कैसे त्याग सकते हैं, जिससे जन्म मृत्युरूप संसार के चक्कर से सदा के लिए छुटकारा मिल जाता है ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन देवताओं ने प्रभु से प्रार्थना करते वक्त कहे ।
प्रभु की अमृतमयी महिमा भक्ति रस का अनंत समुद्र है । जितनी बार भी हम प्रभु की महिमा सुनते हैं उतनी बार हमें कुछ नए मोती मिलते हैं जैसे समुद्र में गोता लगाने से उसके तह में हमें मोती मिलते हैं ।
प्रभु के प्यारे भक्तजन कभी भी प्रभु के श्रीकमलचरणों की सेवा को नहीं त्यागते । उन्हें पता होता है कि यह सेवा उनको जन्म मृत्यु रूपी संसार चक्र से सदा के लिए छुटकारा दिलाने में सक्षम है । इसलिए जीव को चाहिए कि वह प्रभु के श्रीकमलचरणों की सेवा करे जिससे उसको आवागमन से मुक्ति मिल सके ।
प्रकाशन तिथि : 14 अगस्त 2016 |