क्रम संख्या |
श्रीग्रंथ |
अध्याय -
श्लोक संख्या |
भाव के दर्शन / प्रेरणापुंज |
1129 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(माहात्म्य) |
अ 03
श्लो 50 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... भगवान के भक्तों को श्रीमद् भागवत के सेवन से श्रीकृष्ण-तत्त्व का प्रकाश प्राप्त हो सकता है ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त श्लोक में श्रीमद् भागवतजी महापुराण की महिमा बताई गई है ।
श्री उद्धवजी कहते हैं कि श्रीमद् भागवतजी महापुराण के श्रवण से प्रभु के भक्तों को प्रभु तत्व का प्रकाश प्राप्त हो जाता है । इसका साक्षात उदाहरण श्री उद्धवजी द्वारा प्रभु के प्रपौत्र श्री वज्रनाभजी एवं प्रभु की रानियों को श्रीमद् भागवत महापुराण की मास कथा सुनाने के दौरान मिलता है । उस समय श्रीमद् भागवतजी महापुराण के रस का आस्वादन करते हुए सभी प्रेमी श्रोताओं की दृष्टि में प्रभु की श्रीलीला प्रकाशित हो गई और सर्वत्र उन्हें प्रभु के दर्शन होने लगे । उस समय सभी ने अपने को प्रभु के प्रकाश में प्रकाशित देखा और प्रभु के स्वरूप में स्थित देखा ।
श्रीमद् भागवतजी महापुराण का श्रद्धा से किया श्रवण अलौकिक आनंद प्रदान करने वाला है ।
प्रकाशन तिथि : 17 दिसम्बर 2017 |
1130 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(माहात्म्य) |
अ 03
श्लो 73 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... जो लोग श्रीकृष्ण के प्रेम में मग्न हैं, उन भावुक भक्तों को उनके दर्शन भी होते हैं ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन श्री सूतजी ने श्री शौनकादि ऋषियों को कहे ।
जो भक्त प्रभु के प्रेम में मग्न रहते हैं उन भावुक भक्तों को प्रभु के दर्शन अवश्य होते हैं । भक्ति का सामर्थ्य है कि वह भक्त को साक्षात प्रभु के दर्शन करवा देती है । जो प्रभु की भक्ति करते हैं और प्रभु से प्रेम करते हैं उन्हें प्रभु साक्षात दर्शन देते हैं । ऐसा नहीं है कि सतयुग, त्रेता या द्वापर में ही भक्तों ने प्रभु के दर्शन पाए हैं अपितु कलियुग में भी बहुत सारे भक्तों ने प्रभु के दर्शन पाए हैं और प्रभु के सानिध्य का अनुभव किया है । प्रभु हर युग में अपने प्रेमी भक्तों के लिए उपलब्ध रहते हैं और उन्हें दर्शन देकर कृतार्थ करते हैं ।
इसलिए जीव को चाहिए कि प्रभु से प्रेम करे और प्रभु की भक्ति करे जिससे उसका जीवन सफल हो सके ।
प्रकाशन तिथि : 18 दिसम्बर 2017 |
1131 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(माहात्म्य) |
अ 04
श्लो 21 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
जो वक्ता के सामने उन्हें विधिवत प्रणाम करके बैठे और अन्य संसारी बातों को छोड़कर केवल श्रीभगवान की लीला-कथाओं को ही सुनने की इच्छा रखे, समझने में अत्यंत कुशल हो, नम्र हो, हाथ जोड़े रहे, शिष्य भाव से उपदेश ग्रहण करे और भीतर श्रद्धा तथा विश्वास रखे, इसके सिवाय, जो कुछ सुने उसका बराबर चिंतन करता रहे, जो बात समझ में न आये, पूछे और पवित्र भाव से रहे तथा श्रीकृष्ण के भक्तों पर सदा ही प्रेम रखता हो, ऐसे ही श्रोता को वक्ता लोग उत्तम श्रोता कहते हैं ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन श्री सूतजी ने श्री शौनकादि ऋषियों को कहे ।
इस श्लोक में श्रीमद् भागवतजी महापुराण के उत्तम श्रवण करने वाले श्रोता के लक्षण बताए गए हैं । उत्तम श्रोता को प्रभु की कथा सुनते वक्त प्रभु को विधिवत प्रणाम करके बैठना चाहिए । उत्तम श्रोता को अन्य सभी संसारी बातों को त्यागकर केवल प्रभु की श्रीलीला कथा को सुनने की इच्छा रखनी चाहिए । उत्तम श्रोता कथा का सार समझने में कुशल हो, नम्र हो एवं हाथ जोड़कर श्रद्धा और विश्वास के साथ कथा का श्रवण करे । उत्तम श्रोता जो कुछ भी श्रवण करे उसका निरंतर चिंतन करता रहे और पवित्र भाव रखें । उत्तम श्रोता प्रभु के लिए निरंतर प्रेम भाव अपने हृदय में रखें ।
अगर हम उत्तम श्रोता बनकर कथा का रसास्वादन करेंगे तो हम सच्चे रूप में लाभान्वित होंगे ।
प्रकाशन तिथि : 19 दिसम्बर 2017 |
1132 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(माहात्म्य) |
अ 04
श्लो 31 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
जो केवल श्रीकृष्ण की लीलाओं के ही श्रवण, कीर्तन एवं रसास्वादन के लिए लालायित रहते और मोक्ष की भी इच्छा नहीं रखते, उनका तो श्रीमद् भागवत ही धन है ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन श्री सूतजी ने श्री शौनकादि ऋषियों को कहे ।
श्री सूतजी कहते हैं कि जो जीव प्रभु की श्रीलीला कथा के श्रवण, कीर्तन और रसास्वादन के लिए लालायित रहते हैं वे परम भाग्यवान होते हैं । ऐसे भक्त मोक्ष की भी लालसा नहीं रखते । ऐसे भक्तों का श्रीमद् भागवतजी महापुराण सही मायने में परम धन होता है । उन्हें श्रीमद् भागवतजी महापुराण से प्रिय अन्य कुछ भी नहीं होता । दूसरी तरफ जो जीव संसार के दुःखों से घबराकर मुक्ति चाहते हैं उनके लिए भी श्रीमद् भागवतजी महापुराण भवरोग की औषधि है । अतः इस कलियुग में दोनों तरह के जीवों को प्रयत्नपूर्वक श्रीमद् भागवतजी महापुराण का सेवन करना चाहिए ।
श्रीमद् भागवतजी महापुराण प्रभु की भक्ति और प्रेम प्रदान करती है जो कि सर्वोच्च उपलब्धि है जिसकी निष्काम भक्त अभिलाषा रखते हैं । साथ ही श्रीमद् भागवतजी महापुराण सकाम भक्तों के लिए मोक्ष एवं उनकी अन्य इच्छा पूर्ति का साधन भी है । इसलिए श्रीमद् भागवतजी महापुराण इस कलियुग में सभी के लिए श्रवण करने योग्य है । सकाम भाव से श्रीमद् भागवतजी महापुराण का सहारा लेने वालों को संसार में मनोवांछित उत्तम भोग भोगने को मिलते हैं पर सकाम भाव की बड़ी विडंबना यह है कि वह शोभायुक्त नहीं है । ऐसा इसलिए क्योंकि श्रीमद् भागवतजी महापुराण कलियुग में साक्षात प्रभु की प्राप्ति कराने वाला और प्रभु की भक्ति और प्रेम प्रदान करने वाला श्रीग्रंथ है । अतः श्रीमद् भागवतजी महापुराण से प्रभु की प्राप्ति का ही लक्ष्य जीवन में रखना चाहिए ।
आज 20 दिसंबर 2017 के दिन मैं बड़ा भावुक हो रहा हूँ क्योंकि आज श्रीमद् भागवतजी महापुराण का वेबसाईट पर विश्राम हो रहा है । 01 जून 2012 से शुरू इस यात्रा में मैंने साक्षात प्रभु कृपा का सदैव अनुभव किया है । प्रभु कृपा से ही इस श्रीग्रंथ को पढ़ने की, लिखने की प्रेरणा मुझे मिली है और मैं शपथपूर्वक कहता हूँ कि मात्र और मात्र प्रभु कृपा के बल पर ही ऐसा करना संभव हो पाया है । प्रभु के बारे में लिखने का सौभाग्य प्रभु किसी को भी दे सकते थे पर प्रभु ने अति कृपा करके मुझे यह सौभाग्य दिया इसलिए मैं कृतार्थ हूँ ।
श्रीमद् भागवतजी प्रभु का साक्षात विग्रह है क्योंकि प्रभु पृथ्वीलोक में अपनी श्रीलीला के बाद इसमें समा गए । इसलिए श्रीमद् भागवतजी महापुराण मेरे परम पिता हैं । मैं रोजाना श्रीमद् भागवतजी महापुराण के श्रीग्रंथ को अपने मस्तक पर धारण करके और साष्टांग दंडवत प्रणाम करके इनका परायण करता हूँ ।
प्रभु की कृपा के साथ-साथ तीन महात्माओं के आशीर्वाद का मैंने साक्षात अनुभव किया है । देवर्षि प्रभु श्री नारदजी प्रभु की प्रेरणा से श्रीमद् भागवतजी महापुराण का लेखन हुआ इसलिए उनका आशीर्वाद मेरे ऊपर सदा रहा है, ऐसा मैंने अनुभव किया है । प्रभु श्री वेदव्यासजी ने श्रीमद् भागवतजी महापुराण का लेखन किया इसलिए उनका आशीर्वाद का अनुभव मैंने सदैव किया है । प्रभु श्री शुकदेवजी ने श्रीमद् भागवतजी महापुराण का उपदेश करके सबको कृतार्थ किया इसलिए उनका आशीर्वाद का भी मैंने अनुभव किया है ।
श्रीमद् भागवतजी भक्ति का प्रतिपादन करने वाला श्रीग्रंथ है इसलिए मुझे अति-अति प्रिय है । मेरी पक्की धारणा है कि भक्ति से बड़ा प्राप्त करने योग्य इस मानव जीवन में अन्य कुछ भी नहीं है । इसलिए श्रीमद् भागवतजी में जब मैं प्रभु के भक्तों का चरित्र पढ़ता हूँ तो भाव विभोर हो जाता हूँ । प्रभु भक्तों के चरित्र भक्ति मार्ग में चलने के लिए हमारे लिए प्रेरणा का काम करते हैं ।
जो कुछ भी लेखन हुआ है वह प्रभु कृपा के बल पर हुआ है और उसे मैं प्रभु के श्रीकमलचरणों में सादर समर्पित करता हूँ । श्रीमद् भागवतजी महापुराण में मेरी अगाध श्रद्धा है और यह मेरा परम धन है ।
प्रभु की भक्ति और प्रभु से प्रेम कराने में श्रीमद् भागवतजी महापुराण का ही योगदान मेरे जीवन में बहुत रहा है । इसलिए इस श्रीग्रंथ को मैं नमन करता हूँ और इन्हें सदैव अपने मस्तक पर धारण करके रख पाऊँ, ऐसी प्रभु से प्रार्थना करता हूँ ।
श्रीभागवत भगवान से यही प्रार्थना है कि हम उनकी छत्रछाया में सदैव रहें और उनकी कृपा सदैव हम पर सदैव बनी रहे ।
मेरा प्रयास मेरे प्रभु को प्रिय लगे इसी अभिलाषा के साथ में उसे प्रभु के श्रीकमलचरणों में पुनः सादर समर्पित करता हूँ ।
प्रभु का,
चन्द्रशेखर कर्वा
प्रकाशन तिथि : 20 दिसम्बर 2017 |
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