क्रम संख्या |
श्रीग्रंथ |
अध्याय -
श्लोक संख्या |
भाव के दर्शन / प्रेरणापुंज |
1105 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(द्वादश स्कंध) |
अ 10
श्लो 01 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... इस माया से मुक्त होने के लिए मायापति भगवान की शरण ही एकमात्र उपाय है, उन्हीं की शरण में स्थित हो गए ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - प्रभु ने अपनी माया का श्री मार्कण्डेय मुनि को विस्तृत दर्शन कराया ।
प्रभु की माया से मोहित होकर श्री मार्कण्डेय मुनि घबरा गए । प्रभु की माया के अंतर्गत श्री मार्कण्डेय मुनि ने वह सब कुछ देखा जिसकी वे कल्पना भी नहीं कर सकते थे । प्रभु ने फिर जब अपनी माया को अंतर्ध्यान किया तो श्री मार्कण्डेय मुनि ने यह निश्चय किया कि प्रभु की माया से सदैव के लिए मुक्त होने का एकमात्र यही उपाय है कि मायापति प्रभु की शरणागति ग्रहण की जाए । प्रभु की शरण में रहने से प्रभु की माया उस जीव पर अपना प्रभाव नहीं डालती । माया से हमें केवल और केवल मायापति प्रभु ही बचा सकते हैं अन्यथा माया सभी को अपनी चपेट में ले लेती है ।
इसलिए संसार में माया से बचने के लिए हमें प्रभु की शरणागति ग्रहण करनी चाहिए ।
प्रकाशन तिथि : 23 नवम्बर 2017 |
1106 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(द्वादश स्कंध) |
अ 10
श्लो 08 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... जगत के जितने भी संत हैं, उनके एकमात्र आश्रय और आदर्श भी वही हैं । .....
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन श्री सूतजी ने श्री शौनकादि ऋषियों को कहे ।
जगत में जितने भी संत हुए हैं उन सबके एकमात्र आश्रय प्रभु ही हैं । सभी संतों ने एकमत से प्रभु को ही अपना एकमात्र आश्रय माना है । प्रभु ही सभी संतों के एकमात्र आदर्श भी हैं । सभी संतों ने प्रभु की श्रीलीला कथा का श्रवण करके और प्रभु के पावन चरित्र को देखकर प्रभु को ही अपने एकमात्र आदर्श के रूप में स्वीकार किया है । हमें भी प्रभु को ही अपने एकमात्र आश्रय और एकमात्र आदर्श के रूप में स्वीकार करना चाहिए तभी हमारा कल्याण संभव है ।
प्रभु ही हमारे लिए एकमात्र आश्रयदाता और एकमात्र आदर्श स्वरूप होने चाहिए ।
प्रकाशन तिथि : 24 नवम्बर 2017 |
1107 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(द्वादश स्कंध) |
अ 10
श्लो 34 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... आपमें मेरी अविचल भक्ति सदा-सर्वदा बनी रहे ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन श्री मार्कण्डेय मुनि ने प्रभु श्री शिवजी की स्तुति में कहे ।
जब प्रभु श्री शिवजी ने प्रसन्न होकर श्री मार्कण्डेय मुनि को वर मांगने को कहा तो उन्होंने प्रभु से प्रभु की भक्ति मांगी । उन्होंने मांगा कि उनकी प्रभु भक्ति अविचल रूप से सदा सर्वदा बनी रहे । सिद्धांत के रूप में एक बात देखने को मिलती है कि प्रभु के सभी श्रेष्ठ भक्त निष्काम होते हैं और प्रभु के कहने पर भी प्रभु से कुछ नहीं मांगते । यहाँ तक कि वे प्रभु से मोक्ष की भी चाह नहीं रखते । प्रभु के सच्चे भक्त केवल प्रभु से प्रभु की भक्ति का ही दान मांगते हैं क्योंकि उन्हें भक्ति में इतना रस आता है कि वे चाहते हैं कि प्रभु की भक्ति सदैव बनी रहें ।
जीव को भी प्रभु से भक्ति का ही दान मांगना चाहिए तभी उसका मानव जीवन सफल माना जाएगा ।
प्रकाशन तिथि : 25 नवम्बर 2017 |
1108 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(द्वादश स्कंध) |
अ 12
श्लो 03 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
इस श्रीमद् भागवतपुराण में सर्व पापहारी स्वयं भगवान श्रीहरि का ही संकीर्तन हुआ है । वे ही सबके हृदय में विराजमान, सबकी इंद्रियों के स्वामी और प्रेमी भक्तों के जीवनधन हैं ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन श्री सूतजी ने श्री शौनकादि ऋषियों को कहे ।
श्रीमद् भागवतजी महापुराण का श्रवण सर्वपापहारी है । संत मानते हैं कि श्रीमद् भागवतजी महापुराण में प्रभु की श्रीलीला कथा द्वारा एक तरह से प्रभु का संकीर्तन हुआ है । श्रीमद् भागवतजी महापुराण परम रहस्यमय है और इनमें अत्यंत गोपनीय ब्रह्म तत्व का वर्णन है । श्रीमद् भागवतजी महापुराण के श्रवण से प्रभु हमारे हृदय में आकर विराजमान हो जाते हैं । श्रीमद् भागवतजी महापुराण प्रेमी भक्तों के हृदय में प्रभु को जीवनधन के रूप में स्थापित कर देती है । श्रीमद् भागवतजी महापुराण में भक्ति का श्रेष्ठतम प्रतिपादन हुआ है । श्रीमद् भागवतजी महापुराण में प्रभु के श्रेष्ठ भागवत् भक्तों के चरित्र का वर्णन है ।
प्रभु शब्दरूप में इस महानतम श्रीग्रंथ में समाहित हैं इसलिए श्रीमद् भागवतजी महापुराण की महिमा अपरंपार है ।
प्रकाशन तिथि : 26 नवम्बर 2017 |
1109 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(द्वादश स्कंध) |
अ 12
श्लो 46 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
जो मनुष्य गिरते-पड़ते, फिसलते, दुःख भोगते अथवा छींकते समय विवशता से भी ऊँचे स्वर से बोल उठता है, 'हरये नमः', वह सब पापों से मुक्त हो जाता है ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन श्री सूतजी ने श्री शौनकादि ऋषियों को कहे ।
मनुष्य किसी भी अवस्था में और किसी भी विवशता में अगर प्रभु के नाम का उच्चारण कर लेता है तो वह पाप मुक्त हो जाता है । प्रभु के नाम, गुण और लीला का संकीर्तन किया जाए और प्रभु की महिमा का श्रवण किया जाए तो प्रभु उस जीव के सारे दुःख और कष्ट मिटा देते हैं । जैसे प्रभु श्री सूर्यनारायणजी के उदय होने पर अंधकार नष्ट हो जाता है और जैसे आंधी बादलों को तितर-बितर कर देती है वैसे ही प्रभु अपने परायण भक्तों के दुःख और क्लेशों का नाश कर देते हैं और जीव को पापमुक्त कर देते हैं ।
इसलिए जीव को प्रभु के नाम का उच्चारण, प्रभु नाम का संकीर्तन और प्रभु की महिमा का श्रवण करना चाहिए ।
प्रकाशन तिथि : 27 नवम्बर 2017 |
1110 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(द्वादश स्कंध) |
अ 12
श्लो 48 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... जो वाणी और वचन भगवान के गुणों से परिपूर्ण रहते हैं, वे ही परम पावन हैं, वे ही मंगलमय हैं और वे ही परम सत्य हैं ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन श्री सूतजी ने श्री शौनकादि ऋषियों को कहे ।
जो वाणी प्रभु के सद्गुणों का परिपूर्ण गान करती है वही वाणी पावन, मंगलमय, सत्य और श्रेष्ठ है । हमारी वाणी से सदैव प्रभु का गुणगान ही होना चाहिए । जो वाणी प्रभु के गुणानुवाद में लगी रहती है वही वाणी अपने को धन्य करती है । जिस वाणी से प्रभु के नाम, श्रीलीला और सद्गुणों का उच्चारण नहीं होता वह निरर्थक और सारहीन है । सभी ऋषियों, संतों और भक्तों ने अपनी वाणी को प्रभु के गुणगान करने में लगाया है । शास्त्रों का मत है कि वाणी हमें मिली ही इसलिए है कि उससे प्रभु का गुणगान किया जाए ।
इसलिए हमें अपनी वाणी को संसार की व्यर्थ बातों में न लगाकर उसे प्रभु के गुणगान में लगाना चाहिए ।
प्रकाशन तिथि : 28 नवम्बर 2017 |
1111 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(द्वादश स्कंध) |
अ 12
श्लो 49 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... मनुष्य का सारा शोक, चाहे वह समुद्र के समान लंबा और गहरा क्यों न हो, उस वचन के प्रभाव से सदा के लिए सूख जाता है ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन श्री सूतजी ने श्री शौनकादि ऋषियों को कहे ।
इस श्लोक में प्रभु के गुणानुवाद से मिलने वाले लाभ के बारे में बताया गया है । श्री सूतजी जी कहते हैं कि जो वाणी प्रभु के परम पवित्र यश का गान करती है वह गान करने वाले एवं श्रवण करने वाले के मन को परमानंद की अनुभूति कराती है । प्रभु का गुणानुवाद जीव को सारे शोक, दुःख और क्लेश से मुक्त कर देता है । हमारा शोक चाहे श्री समुद्रदेव के समान लंबा अथवा गहरा क्यों न हो, वह प्रभु गुणानुवाद के वचनों के प्रभाव से सदा के लिए सूख जाता है । प्रभु के गुणानुवाद की महिमा अनंत है और इसे करने वाला और इसका श्रवण करने वाला दोनों ही लाभान्वित होते हैं ।
इसलिए प्रभु के गुणानुवाद को करने का एवं उसके श्रवण करने का नियम जीवन में नित्य बनाना चाहिए ।
प्रकाशन तिथि : 29 नवम्बर 2017 |
1112 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(द्वादश स्कंध) |
अ 12
श्लो 51 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
इसके विपरीत जिसमें सुंदर रचना भी नहीं है और जो व्याकरण आदि की दृष्टि से दूषित शब्दों से युक्त भी है, परंतु जिसके प्रत्येक श्लोक में भगवान के सुयशसूचक नाम जड़े हुए हैं, वह वाणी लोगों के सारे पापों का नाश कर देती है क्योंकि सत्पुरुष ऐसी ही वाणी का श्रवण, गान और कीर्तन किया करते हैं ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन श्री सूतजी ने श्री शौनकादि ऋषियों को कहे ।
जो लेखन चाहे वह रस, भाव और अलंकार से युक्त हो पर उसमें अगर प्रभु के यश का गान नहीं हुआ तो वह अत्यंत अपवित्र है । भक्त और परमहंस संत कभी उसका सेवन नहीं करते । पर इसके विपरीत जिस लेखन में सुंदर रचना भी नहीं है और जो व्याकरण की दृष्टि से भी अशुद्ध है परंतु जिसके प्रत्येक श्लोक में प्रभु के सुयश का गान हुआ है वह सबके पापों का नाश कर देती है । सत्पुरुष ऐसी ही लेखनी का श्रवण, गान और कीर्तन किया करते हैं । इसलिए जिस वाणी या लेखनी में प्रभु का गुणगान हुआ हो वही श्रेष्ठतम है ।
इसलिए जीव को चाहिए कि ऐसी वाणी का श्रवण करें और ऐसी लेखनी को पढ़ें जिसमें प्रभु का गुणानुवाद हुआ हो ।
प्रकाशन तिथि : 30 नवम्बर 2017 |
1113 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(द्वादश स्कंध) |
अ 12
श्लो 52 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
वह निर्मल ज्ञान भी, जो मोक्ष की प्राप्ति का साक्षात साधन है, यदि भगवान की भक्ति से रहित हो तो उसकी उतनी शोभा नहीं होती । फिर जो कर्म भगवान को अर्पण नहीं किया गया है, वह चाहे कितना ही ऊँचा क्यों न हो, सर्वदा अमंगलरूप, दुःख देनेवाला ही है ....
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन श्री सूतजी ने श्री शौनकादि ऋषियों को कहे ।
श्री सूतजी यहाँ प्रभु की भक्ति और प्रभु के प्रति समर्पण के भाव का प्रतिपादन करते हैं । श्री सूतजी कहते हैं कि ज्ञान और यहाँ तक कि मोक्ष के लिए किए गए साधन भी अगर भक्ति से रहित हो तो वे भी अपूर्ण होते हैं और उनकी शोभा नहीं होती । भक्ति एकमात्र पूर्ण साधन है बाकी सभी साधन अपूर्ण हैं इसलिए बाकी सभी साधनों के साथ भक्ति का जुड़ना अनिवार्य है । श्री सूतजी कहते हैं कि ऐसे ही जो कर्म प्रभु को समर्पित नहीं किया जाता है वह चाहे कितना महान भी क्यों न हो वह सर्वदा अमंगलमय और दुःख देने वाला ही होता है । प्रभु को जो कर्म अर्पण नहीं किया जाता वह कर्म कभी भी हितकारी नहीं हो सकता ।
इसलिए जीव को चाहिए कि अपने सभी कर्म प्रभु को अर्पित करने का नियम जीवन में बनाए ।
प्रकाशन तिथि : 01 दिसम्बर 2017 |
1114 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(द्वादश स्कंध) |
अ 12
श्लो 53 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... परंतु भगवान के गुण, लीला, नाम आदि का श्रवण, कीर्तन आदि तो उनके श्रीचरणकमलों की अविचल स्मृति प्रदान करता है ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन श्री सूतजी ने श्री शौनकादि ऋषियों को कहे ।
जीव जो भी सांसारिक परिश्रम करता है उसका फल केवल यश और धन की प्राप्ति होती है । पर जो जीव इससे ऊपर उठकर प्रभु के सद्गुण, श्रीलीला और नाम का श्रवण और कीर्तन करते हैं, उन्हें प्रभु के श्रीकमलचरणों की अविचल स्मृति और भक्ति प्राप्त होती है । प्रभु के श्रीकमलचरणों की अविचल भक्ति से जीव के सारे पाप, ताप और अमंगल नष्ट हो जाते हैं और वह जीव परम शांति का अनुभव करता है । उसका अंतःकरण शुद्ध हो जाता है और उसे संसार से वैराग्य हो जाता है । भक्ति उस जीव को प्रभु के स्वरूप का ज्ञान और अनुभव प्राप्त करवा देती है ।
इसलिए जीव को चाहिए कि संसारी यश और धन की ओर आकर्षित न होकर प्रभु की अविचल भक्ति करके अपना जीवन सफल करें ।
प्रकाशन तिथि : 02 दिसम्बर 2017 |
1115 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(द्वादश स्कंध) |
अ 12
श्लो 55 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... क्योंकि आपलोग बड़े प्रेम से निरंतर अपने हृदय में सर्वांतर्यामी, सर्वात्मा, सर्वशक्तिमान आदिदेव सबके आराध्यदेव एवं स्वयं दूसरे आराध्यदेव से रहित नारायण भगवान को स्थापित करके भजन करते रहते हैं ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन श्री सूतजी ने श्री शौनकादि ऋषियों को कहे ।
प्रभु सबके अंतःकरण की बात को जानने वाले अंतर्यामी हैं । प्रभु सबकी आत्मा में स्थित हैं । प्रभु सर्वशक्तिमान हैं । प्रभु सबके आराध्य देव हैं । इसलिए प्रभु को अपने हृदय में अनुभव करके प्रभु का भजन करना चाहिए । श्री सूतजी कहते हैं कि श्री शौनकादि ऋषि बड़े भाग्यवान हैं और धन्य हैं जो कि बड़े प्रेम से निरंतर अपने हृदय में प्रभु का भजन करते रहते हैं । संसार में वही जीव धन्य होता है जो प्रभु की भक्ति करके प्रभु का भजन करता है । यह शास्त्रों का सिद्धांत है और ऋषियों, संतों और भक्तों ने ऐसा ही किया है ।
जीव को चाहिए कि बड़े प्रेम से निरंतर प्रभु की भक्ति करके अपने जीवन को धन्य करें ।
प्रकाशन तिथि : 03 दिसम्बर 2017 |
1116 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(द्वादश स्कंध) |
अ 12
श्लो 57 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
शौनकादि ऋषियों ! भगवान वासुदेव की एक-एक लीला सर्वदा श्रवण-कीर्तन करने योग्य है । ....
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन श्री सूतजी ने श्री शौनकादि ऋषियों को कहे ।
श्री सूतजी कहते हैं कि प्रभु की एक-एक श्रीलीला सर्वदा श्रवण करने योग्य है और कीर्तन करने योग्य है । प्रभु के श्रीलीला प्रसंग और प्रभु की महिमा का वर्णन करने पर जीव के सारे अशुभ संस्कार नष्ट हो जाते हैं । जो जीव एकाग्र मन से प्रभु की श्रीलीला का प्रतिदिन श्रवण और कीर्तन करता है वह अंतःकरण से पवित्र हो जाता है । जो श्रद्धा के साथ प्रभु की श्रीलीलाओं का श्रवण और कीर्तन करता है उसे परमानंद की अनुभूति होती है । प्रभु की श्रीलीलाओं के श्रवण और कीर्तन से जीव के पाप भी नष्ट होते हैं और पाप करने की प्रवृत्ति भी नष्ट होती है । प्रभु की श्रीलीलाओं के श्रवण और कीर्तन से जीव सारे भयों से मुक्त हो जाता है । जो जीव प्रभु की श्रीलीलाओं का श्रवण और कीर्तन करते हैं उससे सभी देवता, सिद्धि, मुनि, पितर आदि संतुष्ट हो जाते हैं । जो जीव प्रभु की श्रीलीलाओं का श्रवण और कीर्तन करता है उसकी सारी सात्विक अभिलाषा को प्रभु पूर्ण करते हैं ।
इसलिए जीवन में प्रभु की श्रीलीलाओं के श्रवण और कीर्तन का नित्य नियम बनाकर उसका अनुसरण करना चाहिए ।
प्रकाशन तिथि : 04 दिसम्बर 2017 |
1117 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(द्वादश स्कंध) |
अ 12
श्लो 65 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
भगवान ही सबके स्वामी हैं और समूह-के-समूह कलिमलों को ध्वंस करने वाले हैं । ....
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन श्री सूतजी ने श्री शौनकादि ऋषियों को कहे ।
प्रभु प्राणी मात्र के एवं जगत के स्वामी है । प्रभु कलिकाल के समस्त पापों के समूहों को नष्ट करने वाले हैं । युग का प्रभाव है कि कलियुग दोषों से युक्त है और इस युग में जीव से अनायास ही पाप हो जाते हैं । पर जो भक्ति के द्वारा प्रभु की शरण ग्रहण करता है उसके सारे दोष, पाप और ताप को प्रभु नष्ट कर देते हैं । कलियुग के दोषों और पापों से बचना है तो भक्ति के द्वारा प्रभु की शरणागति के अलावा अन्य कोई भी उपाय नहीं है । प्रभु एक नहीं, दो नहीं बल्कि कलियुग के दोषों और पापों के समूह-के-समूह को ध्वंस करने वाले हैं ।
इसलिए कलियुग में प्रभु की भक्ति कर प्रभु की शरणागति लेना अत्यंत आवश्यक है ।
प्रकाशन तिथि : 05 दिसम्बर 2017 |
1118 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(द्वादश स्कंध) |
अ 12
श्लो 65 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... श्रीमद् भागवत महापुराण में तो प्रत्येक कथा-प्रसंग में पद-पद पर सर्वस्वरूप भगवान का ही वर्णन हुआ है ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन श्री सूतजी ने श्री शौनकादि ऋषियों को कहे ।
श्री सूतजी कहते हैं कि यों तो प्रभु का गुणानुवाद करने के लिए बहुत सारे श्रीपुराण हैं परंतु उनमें सर्वत्र और निरंतर प्रभु का वर्णन नहीं मिलता । श्रीमद् भागवतजी महापुराण इसलिए सबमें श्रेष्ठतम है क्योंकि यहाँ पर प्रत्येक कथा प्रसंग में पद-पद पर प्रभु का ही वर्णन मिलता है । इसलिए सभी श्रीपुराणों में श्रीमद् भागवतजी महापुराण का स्थान सबसे ऊँचा है । सभी श्रीपुराणों की रचना करने के बाद भी प्रभु श्री वेदव्यासजी को वह संतोष नहीं हुआ जो कि उन्हें श्रीमद् भागवतजी महापुराण की रचना के बाद हुआ । ऐसा इसलिए क्योंकि उनके द्वारा श्रीमद् भागवतजी महापुराण में प्रभु की भक्ति और प्रभु के प्रेम का निरूपण और प्रतिपादन हुआ है ।
देवर्षि प्रभु श्री नारदजी प्रभु की सलाह पर प्रभु श्री वेदव्यासजी ने प्रभु भक्ति और प्रभु प्रेम का प्रतिपादन कर श्रीमद् भागवतजी महापुराण को श्रेष्ठतम स्थान प्रदान किया है ।
प्रकाशन तिथि : 06 दिसम्बर 2017 |
1119 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(द्वादश स्कंध) |
अ 12
श्लो 68 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... फिर भी मुरलीमनोहर श्यामसुंदर की मधुमयी, मंगलमयी, मनोहारिणी लीलाओं ने उनकी वृत्तियों को अपनी ओर आकर्षित कर लिया ....
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन श्री सूतजी ने श्री शौनकादि ऋषियों को कहे ।
श्रीमद् भागवतजी महापुराण में प्रभु की मधुर, मंगलमयी और मनोहर श्रीलीलाएं हैं जो कि सभी ऋषियों, संतों और भक्तों को अपनी तरफ आकर्षित कर लेती है । इसके सबसे बड़े उदाहरण स्वयं प्रभु श्री शुकदेवजी हैं । सब कुछ त्याग कर अपने पिता प्रभु श्री वेदव्यासजी के रोकने के बावजूद जब वे वन को चले गए तो श्रीमद् भागवतजी महापुराण के श्लोकों को सुनकर उन्हें वापस आना पड़ा । श्रीमद् भागवतजी महापुराण के श्लोकों ने उन्हें इतना प्रभावित किया और इतना आकर्षित कर लिया कि वापस घर लौटकर उन्होंने इसका परायण किया और फिर इस महापुराण को राजा श्री परीक्षितजी को उपदेश देकर हम सभी को कृतार्थ किया ।
श्रीमद् भागवतजी महापुराण में प्रभु की श्रीलीलाओं का इतना मधुर, मंगलमयी और मनोहर वर्णन है जो अन्यत्र कहीं भी नहीं मिलेगा ।
प्रकाशन तिथि : 07 दिसम्बर 2017 |
1120 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(द्वादश स्कंध) |
अ 13
श्लो 18 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... जो इसका श्रवण, पठन और मनन करने लगता है, उसे भगवान की भक्ति प्राप्त हो जाती है और वह मुक्त हो जाता है ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन श्री सूतजी ने श्री शौनकादि ऋषियों को कहे ।
श्री सूतजी कहते हैं कि अन्य सभी श्रीपुराणों की शोभा तब होती है जब उनके बीच श्रीमद् भागवतजी महापुराण के दर्शन होते हैं । प्रभु के प्यारे भक्त श्रीमद् भागवतजी महापुराण से बड़ा प्रेम करते हैं । इसका मुख्य कारण यह है कि जो श्रीमद् भागवतजी महापुराण का श्रवण, पठन और मनन करने लगता है उन्हें प्रभु की भक्ति प्राप्त हो जाती है । प्रभु की भक्ति से श्रेष्ठ पाने योग्य इस जगत में अन्य कुछ भी नहीं है । श्रीमद् भागवतजी महापुराण जीव के हृदय में प्रभु के लिए भक्ति स्थापित करने वाला श्रीग्रंथ है । श्रीमद् भागवतजी महापुराण में मुख्य रूप से प्रभु की भक्ति का ही प्रतिपादन हुआ है । इस श्रीग्रंथ में भागवत् भक्तों के चरित्र हैं जिससे उनके जीवन में प्रभु की भक्ति का दर्शन हमें प्राप्त होता है और जो प्रेरणास्त्रोत बनकर हमारा मार्गदर्शन करता है ।
सभी भक्तों को चाहिए कि श्रीमद् भागवतजी महापुराण का नित्य श्रवण, पठन और मनन करें ।
प्रकाशन तिथि : 08 दिसम्बर 2017 |
1121 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(द्वादश स्कंध) |
अ 13
श्लो 23 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
जिन भगवान के नामों का संकीर्तन सारे पापों को सर्वथा नष्ट कर देता है और जिन भगवान के चरणों में आत्मसमर्पण, उनके चरणों में प्रणति सर्वदा के लिए सब प्रकार के दुःखों को शांत कर देती है, उन्हीं परमतत्त्वस्वरूप श्रीहरि को मैं नमस्कार करता हूँ ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन श्री सूतजी ने प्रभु से प्रार्थना में कहे ।
श्रीमद् भागवतजी महापुराण के विश्राम के समय श्री सूतजी प्रभु से प्रार्थना करते हैं कि प्रभु की अविचल भक्ति सदैव बनी रहे । वे प्रभु का नाम संकीर्तन करते रहे जिससे सारे पाप सर्वथा के लिए नष्ट हो जाते हैं । उनका प्रभु के श्रीकमलचरणों में आत्मसमर्पण हो जिससे सब प्रकार के दुःखों से मुक्ति मिल सके । श्री सूतजी प्रभु से कहते हैं कि प्रभु ही जीव के एकमात्र स्वामी एवं सर्वस्व हैं इसलिए वे प्रभु को बारंबार प्रणाम करते हैं । श्रीमद् भागवतजी महापुराण का विश्राम प्रभु से भक्ति की अरदास करके एवं प्रभु को आत्मसमर्पण करके प्रभु के श्रीकमलचरणों में साष्टांग दंडवत प्रणाम करते हुए किया गया है ।
श्रीमद् भागवतजी महापुराण अद्वितीय महापुराण है और इसकी तुलना किसी से भी नहीं की जा सकती ।
अब हम श्रीमद् भागवतजी महापुराण के उत्तरार्द्ध के माहात्म्य में प्रभु कृपा के बल पर मंगल प्रवेश करेंगे । हमारा धन्य भाग्य है कि द्वादश स्कंध का रसास्वादन हमने किया ।
श्रीमद भागवतजी महापुराण के द्वादश स्कंध तक की इस यात्रा को प्रभु के पावन और पुनीत श्रीकमलचरणों में सादर अर्पण करता हूँ ।
जगतजननी मेरी सरस्वती माता का सत्य कथन है कि अगर पूरी पृथ्वीमाता कागज बन जाए एवं समुद्रदेव का पूरा जल स्याही बन जाए, तो भी वे बहुत अपर्याप्त होंगे मेरे प्रभु के ऐश्वर्य का लेशमात्र भी बखान करने के लिए - इस कथन के मद्देनजर हमारी क्या औकात कि हम किसी भी श्रीग्रंथ के किसी भी अध्याय, खंड में प्रभु की पूर्ण महिमा का बखान तो दूर, बखान करने का सोच भी पाएं ।
जो भी हो पाया प्रभु की कृपा के बल पर ही हो पाया है । प्रभु की कृपा के बल पर किया यह प्रयास मेरे (एक विवेकशून्य सेवक) द्वारा प्रभु को सादर अर्पण ।
प्रभु का,
चन्द्रशेखर कर्वा
प्रकाशन तिथि : 09 दिसम्बर 2017 |
1122 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(माहात्म्य) |
अ 01
श्लो 01 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
जिनका स्वरूप है सच्चिदानंदघन, जो अपने सौंदर्य और माधुर्यादि गुणों से सबका मन अपनी और आकर्षित कर लेते हैं और सदा-सर्वदा अनंत सुख की वर्षा करते रहते हैं, जिनकी ही शक्ति से इस विश्व की उत्पत्ति, स्थिति और प्रलय होते हैं, उन भगवान श्रीकृष्ण को हम भक्तिरस का आस्वादन करने के लिए नित्य-निरंतर प्रणाम करते हैं ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन महर्षि प्रभु श्री व्यासजी ने प्रभु को प्रणाम करते वक्त कहे ।
प्रभु का स्वरूप आनंद प्रदान करने वाला है । प्रभु अपने सौंदर्य और माधुर्य आदि गुणों से सबका मन अपनी ओर आकर्षित कर लेते हैं । जो प्रभु के स्वरूप के एक बार दर्शन कर लेता है वह प्रभु की तरफ आकर्षित हुए बिना नहीं रह सकता । प्रभु सदा सर्वदा अपने शरणागतों पर एवं अपने भक्तों पर अपनी कृपा और अनंत सुख की वर्षा करते रहते हैं । प्रभु की शक्ति से ही विश्व की उत्पत्ति, स्थिति और प्रलय होता है । प्रभु का सानिध्य सदैव हमें भक्ति रस का आस्वादन कराता है ।
हमें ऐसे भक्तवत्सल प्रभु की शरणागति ग्रहण करके प्रभु की भक्ति करनी चाहिए ।
प्रकाशन तिथि : 10 दिसम्बर 2017 |
1123 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(माहात्म्य) |
अ 01
श्लो 29 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
.... उस समय भगवान अपने अंतरंग प्रेमियों के साथ अवतार लेते हैं । उनके अवतार का यह प्रयोजन होता है कि रहस्य-लीला के अधिकारी भक्तजन भी अंतरंग परिकरों के साथ सम्मिलित होकर लीला-रस का आस्वादन कर सकें ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन श्री शांडिल्यजी ऋषि ने राजा श्री परीक्षितजी एवं प्रभु श्री कृष्णजी के प्रपौत्र राजा श्री व्रजनाभजी को कहे ।
प्रभु अपने स्वधाम में रहने वाले प्रेमियों के साथ पृथ्वी पर अवतार ग्रहण करते हैं । उनके अवतार का प्रयोजन यह होता है कि अधिकारी भक्तजनों के साथ सम्मिलित होकर श्रीलीला करें और सबको श्रीलीला रस का आस्वादन करवाए । प्रभु के साथ मिलकर श्रीलीला करके और उस श्रीलीला रस का आस्वादन करके भक्त तृप्त होते हैं इसलिए प्रभु ऐसा करने के लिए अवतार ग्रहण करते हैं । प्रभु के अवतार का सबसे बड़ा प्रयोजन भक्तों की तृप्ति है । अवतार के दूसरे सभी कारण जैसे धर्म की पुनःस्थापना करना, असुरों का संहार करना गौण हैं और उनकी प्राथमिकता बाद में आती है ।
प्रभु अपने भक्तों से इतना प्रेम करते हैं कि प्रभु के अवतार का मुख्य हेतु भक्तों को श्रीलीला रस का आस्वादन कराना ही होता है ।
प्रकाशन तिथि : 11 दिसम्बर 2017 |
1124 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(माहात्म्य) |
अ 02
श्लो 13 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
श्रीकृष्ण ही राधा हैं और राधा ही श्रीकृष्ण हैं । ....
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन भगवती श्री यमुनाजी ने प्रभु श्री कृष्णजी की रानियों से कहा ।
प्रभु श्री कृष्णजी की जितनी रानियां हैं वे सब-के-सब भगवती राधा माता के अंश का ही विस्तार हैं । प्रभु श्री कृष्णजी और भगवती राधा माता का परस्पर नित्य संयोग है । दोनों एकरूप हैं इसलिए प्रभु श्री कृष्णजी ही भगवती राधा माता हैं और भगवती राधा माता ही प्रभु श्री कृष्णजी हैं । भगवती राधा माता में भगवती रुक्मिणी माता एवं अन्य प्रभु की रानियों का समावेश देखा जाता है । इसलिए अधिकतर मंदिरों में प्रभु श्री कृष्णजी के साथ भगवती राधा माता ही विराजती हैं । नाम उच्चारण करते वक्त भी राधेकृष्ण कहने का ही प्रचलन है । भगवती राधा माता प्रभु श्री कृष्णजी का अभिन्न अंग हैं और दोनों एक स्वरूप हैं ।
भगवती राधा माता की भक्ति हमें प्रभु श्री कृष्णजी की कृपा प्राप्त करवा देती है ।
प्रकाशन तिथि : 12 दिसम्बर 2017 |
1125 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(माहात्म्य) |
अ 03
श्लो 09 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
श्रीकृष्ण का प्रकाश प्राप्त हुए बिना किसी को भी अपने स्वरूप का बोध नहीं हो सकता । ....
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन श्री उद्धवजी ने राजा श्री परीक्षितजी को कहे ।
प्रभु का प्रकाश पाए बिना किसी को भी अपने वास्तविक स्वरूप का बोध नहीं हो सकता । प्रभु से ही हमारा अस्तित्व है और प्रभु के बिना हमारा कोई अस्तित्व ही नहीं है । जीवात्मा अपने भीतर के परमात्व तत्व का अनुभव तभी कर सकता है जब उस पर प्रभु का अनुग्रह होता है । हमारे स्वरूप का वास्तविक भान हमें प्रभु की कृपा से ही होता है । सभी जीवों के अंतःकरण में प्रभु के परमात्व तत्व का प्रकाश है परंतु उस पर सदा माया का पर्दा पड़ा रहता है । प्रभु कृपा से जब माया का पर्दा हटता है तब जीव को अपने सच्चे स्वरूप का बोध होता है ।
इसलिए जीव को चाहिए कि वह प्रभु की भक्ति करें जिससे माया के प्रभाव से मुक्त होकर उसे अपने आत्मस्वरूप का बोध हो ।
प्रकाशन तिथि : 13 दिसम्बर 2017 |
1126 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(माहात्म्य) |
अ 03
श्लो 12 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
भगवान के भक्त जहाँ जब कभी श्रीमद् भागवत शास्त्र का कीर्तन और श्रवण करते हैं, वहाँ उस समय भगवान श्रीकृष्ण साक्षात रूप से विराजमान रहते हैं ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त श्लोक में श्रीमद् भागवतजी महापुराण की महिमा बताई गई है ।
श्री उद्धवजी कहते हैं कि जहाँ प्रभु के भक्त श्रीमद् भागवतजी महापुराण का श्रवण और कीर्तन करते हैं वहाँ उस समय प्रभु साक्षात रूप से विराजमान रहते हैं । श्रीमद् भागवतजी महापुराण शब्द ब्रह्म हैं और प्रभु इसमें समाए हुए हैं । इसलिए श्रीमद् भागवतजी महापुराण प्रभु का साक्षात निवास स्थान है । जहाँ भी श्रीमद् भागवतजी महापुराण का श्रवण या कीर्तन होता है वहाँ प्रभु साक्षात रूप से उपस्थित होकर अपना अनुग्रह करते हैं । इसलिए कलियुग में श्रीमद् भागवतजी महापुराण के श्रवण का बहुत बड़ा महत्व है ।
श्रीमद् भागवतजी महापुराण इतना विलक्षण श्रीग्रंथ है कि इसके दर्शन मात्र से ही जीव कृतार्थ हो जाता है ।
प्रकाशन तिथि : 14 दिसम्बर 2017 |
1127 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(माहात्म्य) |
अ 03
श्लो 14 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
इस पवित्र भारतवर्ष में मनुष्य का जन्म पाकर भी जिन लोगों ने पाप के अधीन होकर श्रीमद् भागवत नहीं सुना, उन्होंने मानो अपने ही हाथों अपनी हत्या कर ली ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन श्री उद्धवजी ने राजा श्री परीक्षितजी को कहे ।
भारतवर्ष परम पवित्र भूमि है और यहाँ पर मनुष्य के रूप में जन्म पाना बहुत पुण्यों के कारण संभव होता है । जिस जीव ने भारतवर्ष में मनुष्य जन्म पाया है वह अति भाग्यवान है । पर जो जीव भारतवर्ष में मनुष्य जन्म पाकर भी श्रीमद् भागवतजी महापुराण का श्रवण नहीं करता उसने अपने हाथों अपना जीवन व्यर्थ कर लिया । जिसने भारतवर्ष में मनुष्य जन्म पाकर श्रीमद् भागवतजी महापुराण का श्रवण नहीं किया वह पतित हो गया । इसके ठीक विपरीत जिसने भारतवर्ष में मनुष्य जन्म पाकर श्रीमद् भागवतजी महापुराण का श्रवण किया वह बड़भागी है और उसने ऐसा करके अपने पिता, माता और पत्नी के कुल का भली भांति उद्धार कर दिया ।
भारतवर्ष में मनुष्य जन्म पाकर श्रीमद् भागवतजी महापुराण का नित्य श्रवण करना चाहिए ।
प्रकाशन तिथि : 15 दिसम्बर 2017 |
1128 |
श्रीमद् भागवतमहापुराण
(माहात्म्य) |
अ 03
श्लो 18 |
श्लोक का हिंदी अनुवाद -
अनेकों जन्मों तक साधन करते-करते जब मनुष्य पूर्ण सिद्ध हो जाता है, तब उसे श्रीमद् भागवत की प्राप्ति होती है । भागवत् से भगवान का प्रकाश मिलता है, जिससे भगवत् भक्ति उत्पन्न होती है ।
श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - उपरोक्त वचन श्री उद्धवजी ने राजा श्री परीक्षितजी को कहे ।
श्रीमद् भागवतजी महापुराण की प्राप्ति कितनी दुर्लभ है यह तथ्य इस श्लोक में बताया गया है । अनेकों जन्मों के साधन से जब मनुष्य सिद्ध हो जाता है तब कहीं जाकर उसे श्रीमद् भागवतजी महापुराण की प्राप्ति होती है । इसलिए जिन भक्तों को इस जन्म में श्रीमद् भागवतजी महापुराण के श्रवण का सौभाग्य प्राप्त हुआ है उन्हें अपने आपको बड़भागी मानना चाहिए क्योंकि उनके अनेक जन्मों के साधन के बाद ही ऐसा संभव हो पाया है । श्रीमद् भागवतजी महापुराण के श्रवण से प्रभु का प्रकाश जीव को मिलता है और उसके हृदय में प्रभु के लिए भक्ति के बीज अंकुरित होते हैं ।
श्रीमद् भागवतजी महापुराण जीव के हृदय में प्रभु के लिए भक्ति की स्थापना करने वाला श्रीग्रंथ है ।
प्रकाशन तिथि : 16 दिसम्बर 2017 |