जय श्री हरि !
आज के इस भौतिकवादी संसार में जीवन में बड़ी परेशानियाँ हैं । जीवन की इस आपाधापी से प्रभु ही हमें बचा सकते हैं ।
समस्त श्रीग्रंथों के सारांश के रूप में एक श्रीब्रह्म वाक्य निकलकर आता है कि दिन में जब भी प्रभु का स्मरण हो, प्रभु की फोटो या मूर्ति को देखें, किसी मंदिर के पास से गुजरे तो बस इतना कहे कि प्रभु, मैं आपकी शरण में हूँ । दिन भर में बार-बार मन में यह कहने की आदत बना लें ।
इससे यह होगा कि श्रीमद् भगवद् गीताजी में प्रभु द्वारा कहा योगक्षेम का प्रण हम पर लागू हो जाएगा । योग का अर्थ है कि प्रभु कहते हैं कि मेरी शरण में आए हुए को जब जिस चीज की आवश्यकता पड़ेगी मैं उसका प्रबंध करूँगा । क्षेम का अर्थ है कि प्रभु कहते हैं कि मेरी शरण में आए हुए के पास जो भी है उसकी मैं रक्षा करूँगा ।
दो प्रण जो प्रभु के हैं इससे ज्यादा एक मनुष्य को कुछ भी नहीं चाहिए । जब जिस चीज की जरूरत होगी वह उपलब्ध हो जाएगी और जो उसके पास है उसकी रक्षा होगी ।
इसलिए ऐसा बार-बार माने और कहें कि प्रभु, मैं आपकी शरण में हूँ ।