लेख सार : मनुष्य शरीर की जरूरतें बहुत कम है पर माया के प्रभाव से हम जरूरतों का एक पहाड़ बना देते हैं और उसे पूरा करने में अपना जीवन लगा देते हैं । इस तरह हमारा बहुमूल्य मनुष्य जीवन अपने मुख्य उद्देश्य प्रभु प्राप्ति से वंचित रह जाता है । पूरा लेख नीचे पढ़ें -
हमारे छोटे से पेट को दिन में तीन बार भोजन करने के लिए कितना अन्न चाहिए ? अपने शरीर को प्रकृति से सुरक्षित रखने के लिए कितनी छत चाहिए ? तन को ढकने के लिए कितने वस्त्र चाहिए ? पर मनुष्य का दुर्भाग्य देखिए कि इन रोटी, कपड़ा और मकान के लिए अपना बहुमूल्य मनुष्य जीवन पूरा खर्च कर देता है । यह मनुष्य जीवन का सही उपयोग नहीं है ।
हमें अपने मनुष्य जीवन का उपयोग सही दिशा में करना चाहिए । मनुष्य योनि सभी चौरासी लाख योनियों में सर्वश्रेष्ठ है । यह मनुष्य जन्म हमारा अंतिम जन्म बन सकता है अगर हम इसका सही उपयोग करते हैं । मनुष्य जीवन का सही उपयोग भक्ति करके प्रभु प्राप्ति करने में है ।
पर हम अपने मनुष्य जीवन का उपयोग रोटी, कपड़ा और मकान के लिए करते हैं । इस कारण हमें फिर से चौरासी लाख योनियों में भटकना पड़ता है । शास्त्र और संत हमारा ध्यान इस ओर आकर्षित करते हैं कि मनुष्य जीवन का सही उपयोग करना हमसे अपेक्षित है पर हम ठीक इसकी विपरीत दिशा में ही कार्य करते हैं । शास्त्र और संत कहते हैं कि परम दयालु और परम कृपालु प्रभु ने करुणा करके हमें मनुष्य जीवन दिया है और हमें इसमें जीवन यापन जितनी जरूरत पूरी करके इसका मुख्य उपयोग प्रभु प्राप्ति के लिए करना चाहिए ।
ऐसा प्रायः देखा जाता है कि हम अपना मनुष्य जीवन भोगों और संग्रह में व्यतीत कर देते हैं । हम सात पीढ़ियों तक के लिए संग्रह कर लेते हैं । पर अगले जन्म में हमारा क्या हश्र होगा, हम कहाँ और किस योनि में होंगे, उसका हम आकलन नहीं करते । हम अपना हित करने में चूक जाते हैं जो केवल मनुष्य जीवन में किए गए प्रयासों से ही संभव है । सात पीढ़ियों तक के लिए संग्रह करने पर भी सात पीढ़ी बाद हमारा नाम भी जानने वाला कोई नहीं मिलेगा । पर अगर मनुष्य जीवन पाकर हमने अपने कल्याण का साधन किया तो प्रभु कृपा करके हमें संसार चक्र के आवागमन से मुक्ति दे देंगे और अपने श्रीकमलचरणों में स्थान दे देंगे ।
प्रभु ने यह बहुमूल्य मनुष्य जीवन हमें भक्ति द्वारा प्रभु प्राप्ति के लिए दिया है । ऐसा दिशा निर्देश देने के लिए शास्त्र, संत और भक्त हमारा मार्गदर्शन करते हैं । इसके बाद भी अगर हम ऐसा नहीं कर पाते तो यह हमारी मूढ़ता होगी और हमारा दुर्भाग्य होगा ।
मनुष्य जीवन को ऐसे जिया जाए कि इसके बाद दोबारा जन्म ही नहीं लेना पड़े । भक्ति ही इसका एकमात्र उपाय है जो कि बहुत सरल, सुगम और परमानंद प्रदान करने वाला साधन है । अपने जीवन का उपयोग भक्ति द्वारा प्रभु की प्राप्ति के लिए किया जाए तो ही हमारा मनुष्य जीवन सफल और धन्य होगा और भक्ति हमारा कल्याण और उद्धार भी करवा देगी ।