श्री गणेशाय नमः
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प्रभु प्रेरणा से लेखन द्वारा चन्द्रशेखर करवा

लेख सार : संसार में आकर संसार से व्यर्थ की दुनियादारी में उलझ हम अपना अमूल्य मानव जीवन प्रभु को समय दिए बिना और प्रभु की भक्ति किए बिना व्यर्थ गंवा देते हैं । पूरा लेख नीचे पढ़ें -



अधिक जीवन दुनियादारी करते हुए गुजार देने पर हमें अंत में कुछ भी नहीं मिलता है । इसलिए दुनियादारी जीवन में बहुत साधारण रखनी चाहिए और प्रभु प्राप्ति का लक्ष्य जीवन में मुख्य रखना चाहिए ।


संसार की दुनियादारी इतना समय ले लेती है कि प्रभु के लिए सीमित समय ही जीवन में बचता है । इसलिए दुनियादारी इतनी कम रखनी चाहिए कि प्रभु के लिए ज्यादा-से-ज्यादा समय जीवन में बचे ।


तीन चार पीढ़ी पहले के हमारे दादाजी के दादाजी की करी हुई भरपूर दुनियादारी को आज कौन याद करता है ? दादाजी भी चले गए और जिनके साथ उन्होंने दुनियादारी निभाई वे भी चले गए । आज दादाजी किस योनि में होंगे हमें पता नहीं पर अगर वे साधारण दुनियादारी रखते और भरपूर प्रभु की भक्ति करते तो वे निश्चित ही प्रभु के धाम में होते ।


संसार का नियम है कि अगर आप दुनियादारी रखकर किसी के पुत्र या पुत्री की शादी में जाएंगे तो वे भी आपके पुत्र या पुत्री की शादी में आएंगे । संसार जैसे को तैसा फल देता है । अगर आप किसी रिश्तेदार के यहाँ की दो शादियों में नहीं गए तो वे भी बुलाने पर बहाना बना देंगे और नहीं आएंगे । हम अगर दुनिया से व्यवहार में चूक जाएंगे तो दुनिया भी हमारे से व्यवहार नहीं रखेगी ।


पर प्रभु के घर ऐसा नहीं होता है । हमने पता नहीं कितनी योनियों में, कितने जन्मों में प्रभु से व्यवहार नहीं रखा पर फिर भी करुणामय प्रभु सब कुछ भुलाकर हमारे हृदय से की गई एक पुकार पर दौड़े चले आते हैं । प्रभु कभी आने से पहले यह हिसाब भी नहीं देखते कि इस जीव ने मुझसे कितना प्रेम किया है या मेरी कितनी भक्ति की है । प्रभु के पास सब हिसाब उपलब्ध होता है पर सभी को नजरअंदाज करके प्रभु हमारी पुकार पर दौड़े आते हैं । यह प्रभु की असीम करुणा है जो जीव मात्र के लिए सदैव से रही है और सदैव ही रहेगी ।


चौरासी लाख योनियों में भटकने के बाद मानव जीवन हमें मिलता है । उस मानव जीवन में भी अल्प अवधि मिलती है । उसमें से भी अधिकतर समय हम संसार के पचड़े में पड़कर या दुनियादारी करके व्यर्थ गंवा देते हैं और इस तरह इस अनमोल मानव जन्म से हम कुछ भी लाभ नहीं ले पाते ।


दुनियादारी करने वालों को दुनिया में एक या दो पीढ़ी बाद भुला दिया और हमें भी दुनिया भुला देगी । दूसरी बात, हमें फिर चौरासी लाख योनियों में भ्रमण करना पड़ेगा । पर प्रभु से प्रेम और प्रभु की भक्ति करने वाला युगों-युगों तक अमर हो जाता है । उसकी कथा श्री भक्तमालजी जैसे ग्रंथ में अंकित होती है जिसका श्रवण प्रभु भी बड़े आनंद से करते हैं । प्रभु से प्रेम और प्रभु की भक्ति करने वाले का प्रभु उद्धार कर देते हैं और वह सदैव के लिए प्रभु के श्रीकमलचरणों में पहुँच जाता है ।


इसलिए दुनिया से बहुत साधारण दुनियादारी रखनी चाहिए जिससे जीवन का अधिक-से-अधिक समय प्रभु की भक्ति के लिए हम निकाल पाएँ । यही जीव के कल्याण और उद्धार का मार्ग भी है ।