लेख सार : प्रभु की भक्ति में इतनी अदभुत शक्ति होती है कि वह हमारा इहलोक में भी कल्याण करती है और हमारा परलोक भी सुधार देती है । भक्ति हमें सीधे प्रभु के श्रीकमलचरणों में पहुँचा देती है और हमें जन्म-मृत्यु के चक्कर से सदैव के लिए मुक्ति दे देती है । पूरा लेख नीचे पढ़ें -
संसार की कोई भी चीज जब हमें भरपूर मात्रा में मिल जाती है तो भी वह हमें अतृप्त रखती है और हमारा लोभ बढ़ता ही चला जाता है । हम उस वस्तु के लोभ में अपना जीवन व्यतीत कर देते हैं ।
उदाहरण के तौर पर धन को ही लें । अगर हमने सात पीढ़ियों तक के लिए धन कमा लिया है और कमाते-कमाते बुढ़ापा भी आ गया तो भी हमारा लोभ बरकरार ही रहेगा । हम जानते हैं कि अगर हमारे पास जरूरत से बहुत ज्यादा है, तो भी हम संतुष्ट नहीं होते । बुढ़ापे में हमारा शरीर शिथिल होने लगता है फिर भी हम दफ्तर और कारखाने में जाते हैं और अपने व्यवसाय से और अधिक आमदनी करने का प्रयत्न करते हैं ।
धन, संपत्ति, परिवार, समाज के लिए किए लोभ से संसार में हमें कीर्ति, मान, प्रतिष्ठा जरूर मिल जाती है पर मृत्यु पर जैसे हम खाली हाथ आए थे वैसे ही खाली हाथ हमें लौटना पड़ता है ।
पर अगर यही कमाई हम भक्ति की करते हैं और अगर भक्ति का लोभ हम बढ़ाते चले जाते हैं तो हमारा कल्याण सिद्ध हो जाता है । धन के लिए अतृप्त होने पर और अधिक धन कमाने का प्रयास करके अपना मानव जीवन व्यर्थ गँवाने पर हमारा पतन होता है । पर भक्ति के लिए अतृप्त होकर और अधिक लगन से प्रभु की भक्ति करने पर हमारे मानव जीवन के उद्देश्य की पूर्ति होती है ।
हमें मानव जीवन प्रभु प्राप्ति के लिए ही मिला है और प्रभु प्राप्ति का सबसे उत्तम मार्ग भक्ति का ही है । मानव जीवन का सदुपयोग भक्ति करके ही करना चाहिए तभी हमारी जीत है । शास्त्रों ने अपनी लेखनी में हमें यही मार्ग दिखाया है । संतों ने अपनी वाणी में यही कहा है ।
जो प्रभु भक्ति में रम गया उसने ही भक्ति रस के परमानंद का अनुभव किया है । उस भक्ति रस के सामने संसार के सभी रस तुच्छ हैं । संसार का सुख हमारा पतन करवाने वाला होता है । संसार का सुख हमारा कैसे पतन कराता है यह एक उदाहरण में देखते हैं ।
धन का सुख लेने के लिए व्यक्ति अनैतिक कमाई करता है । व्यापार में हेरा-फेरी, मिलावट और झूठ का सहारा लेता है और इस तरह पाप का भागी बनता है । अनीति से कमाया धन अपने साथ रोग, शोक और पतन लेकर आता ही है । हमारे पूरे जीवन भर के कमाए धन में यह शक्ति नहीं कि बीमार पड़ने पर और अस्पताल में भर्ती होने पर हमें डॉक्टर और दवाई से एक श्वास ज्यादा दिला सके ।
पर अगर धन की जगह हम जीवन में प्रभु के प्रेम, प्रभु की भक्ति के लिए प्रयास करते हैं तो हमें इस जीवन में भी परमानंद मिलता है और मृत्यु होने पर भी हम प्रभु के श्रीकमलचरणों में पहुँच जाते हैं । हमने कितने ही मनुष्य जन्म संसार में रम कर व्यर्थ कर लिए जिस कारण चौरासी लाख योनियों के हर बार के चक्कर में हमें पड़ना पड़ता है । जरूरत इस बात की है कि इस बार इस मानव जीवनरूपी स्वर्णिम अवसर को व्यर्थ नहीं गँवाया जाए और इसे प्रभु भक्ति में लगाकर सफल किया जाए ।