लेख सार : संसार धन के पीछे चलता है और धन की कमाई को सर्वोपरि मानता है । प्रभु भक्ति के पीछे चलते हैं और भक्ति करने वाले को ही अपना सबसे प्रिय मानते हैं । पूरा लेख नीचे पढ़ें -
जैसे रुपया कमाने वाला मनुष्य संसार वालों को प्यारा होता है वैसे ही भक्ति करने वाला जीव परमपिता प्रभु को प्यारा होता है ।
यह संसार की रीत है कि रुपया कमाने वाला बेटा अपने माता-पिता को प्यारा होता है । रुपया कमाने वाला एक पति अपनी पत्नी को प्यारा होता है । रुपया कमाने वाला भाई एक बहन को प्यारा होता है । रुपया कमाने वाला पिता अपने पुत्र और पुत्री को प्यारा होता है । यह संसार की रीत है पर प्रभु के यहाँ यह रीत नहीं चलती । प्रभु के यहाँ इससे विपरीत भक्ति की कमाई करने वाला जीव ही प्रभु को प्रिय होता है ।
संसार सभी रिश्तों को धन की कसौटी पर आंकता है । एक पिता कैसे भी अनीति या बेईमानी से धन कमाकर लाए पर जब तक वह घर में धन कमाकर लाता है वह सभी को प्रिय होता है । संसार में कीर्ति, प्रतिष्ठा पाने के लिए सबसे बड़ा साधन धन बन गया है । संसार उसके पीछे चलता है जिसके पास धन होता है ।
पर प्रभु के यहाँ यह रीति नहीं चलती । प्रभु उसके पीछे चलते हैं जो प्रभु की भक्ति करता है । प्रभु धन से कभी आकर्षित नहीं होते, प्रभु केवल और केवल भक्ति से ही रीझते हैं । किसी धनवान के पास बहुत धन है पर भक्ति नहीं है तो प्रभु का सानिध्य उसे कभी नहीं मिलता । इसके विपरीत एक निर्धन जिसके पास धन नहीं है पर प्रभु के लिए श्रद्धा, भक्ति और प्रेम है उसके जीवन को धन्य करने के लिए प्रभु उसे अपना सानिध्य प्रदान करते हैं ।
जैसे धन से प्रिय संसारी को कुछ भी नहीं होता वैसे ही भक्ति से प्रिय प्रभु के लिए दूसरा कुछ भी नहीं होता । भक्ति प्रभु को सर्वाधिक प्रिय है । प्रभु ने अपने श्रीवचन में यहाँ तक कहा है कि प्रभु भक्तों के पीछे-पीछे चलते हैं कि भक्तों के चरणों की धूलि उड़कर प्रभु पर पड़े और प्रभु उससे पवित्र हो जाए । जरा सोचिए कि यह कौन कह रहा है । यह प्रभु कह रहे हैं जो पवित्रता की पराकाष्ठा हैं । पर भक्ति की मर्यादा स्थापित करने के लिए, भक्ति का गौरव बढ़ाने के लिए, भक्ति करने वालों को मान देने के लिए प्रभु ऐसा कहते हैं ।
संसार में आकर अगर हमने संसार को खुश करने के लिए केवल धन कमाया तो हमने मात्र संसार सागर में गोता लगाकर कंकड़ ही अर्जित किए । पर अगर हमने मानव जीवन को धन्य करने के लिए संसार में आकर भक्ति की कमाई की तो ही हमने संसार सागर में गोता लगाकर तह से मोती लाने में सफलता पाई ।
इसलिए मनुष्य जीवन में आकर जो प्रभु को सबसे प्रिय है उसी की कमाई करनी चाहिए और वह कमाई है भक्ति की । इसलिए अपना जीवन भक्तिमय बनाना चाहिए क्योंकि इसी में हमारे मानव जीवन की सफलता है ।