लेख सार : जीवन जीने की आयु हमारी सच्ची आयु नहीं है । शास्त्र कहते हैं कि उस जीवन जीने की अवधि में हमने जितना समय प्रभु के लिए निकाला वही हमारी सच्ची आयु है । पूरा लेख नीचे पढ़ें -
कोई सत्तर वर्ष की आयु पाता है, कोई अस्सी वर्ष तक जीता है, कोई नब्बे वर्ष का होकर मृत्यु को प्राप्त होता है । पर क्या हमने कभी सोचा है कि हमारी असली उम्र क्या है ? एक नब्बे वर्ष जीने वाले की असली उम्र क्या मानी जानी चाहिए ?
शास्त्र कहते हैं कि जीवन का जो समय हमने भक्ति, भजन, जप, साधन और समर्पण करके प्रभु को अर्पित किया वही हमारी आयु की गणना में गिना जाएगा । जीवन में जो समय हमने प्रभु को नहीं दिया वह हमारी आयु में नहीं गिना जाएगा ।
एक संत एक कथा इसी दृष्टांत के रूप में सुनाते थे । वे कहते थे कि प्राचीन काल में एक गांव था जहाँ एक सार्वजनिक जगह पर उस गांव के मृत लोगों के नाम पत्थर पर लिखे जाते थे । एक व्यक्ति उस गांव में कोई काम से आया तो उसने देखा कि बहुत सारे पत्थरों पर बहुत सारे मृत लोगों के नाम लिखे हुए हैं । पर किसी की आयु दो वर्ष, किसी की तीन वर्ष, किसी की चार वर्ष लिखी हुई है । ज्यादा से ज्यादा एक मृत व्यक्ति की आयु आठ वर्ष लिखी हुई थी । वह व्यक्ति यह देखकर अचंभित हुआ कि इस गांव के सभी मृत अल्पायु को ही प्राप्त हुए और अल्पायु में ही उनका देहांत हो गया । उसने हिम्मत करके उस गांव के मुखिया से अपनी जिज्ञासा पूछी । गांव के मुखिया ने कहा कि हमारे गांव के सभी लोग लंबी आयु लेकर मृत्यु को प्राप्त हुए हैं पर हमारे गांव का नियम है कि जिसने अपने जीवन में जितना समय प्रभु के लिए निकाला और भक्ति, भजन, पूजन, जप और साधन में दिया उसे ही उसकी असली आयु मानी जाती है । तात्पर्य यह था कि नब्बे वर्ष के व्यक्ति की मृत्यु पर अगर उसने जीवन में रोजाना एक घंटे प्रभु को दिया तो उसकी आयु की गणना उस हिसाब से करके पत्थर पर उसके नाम के आगे लिख दिया जाता है ।
इस कथा से हमें सीखना चाहिए कि यह कितना सही मापदंड है आयु की गणना का । जो समय श्रीहरि स्मरण में, श्रीहरि के साधन में गया वही हमारी असली आयु है । हमारा उतना ही मानव जीवन सार्थक होता है जितना समय हम प्रभु को अर्पित करते हैं । शास्त्र इस बात के प्रमाण हैं कि जीवन में केवल और केवल प्राथमिकता प्रभु की ही होनी चाहिए ।
भक्त सदैव प्रभु से कहता है कि उसकी उतनी ही आयु प्रभु अपने खाते में लिखें जो वह प्रभु स्मरण, प्रभु नाम जप, प्रभु पूजन, प्रभु भजन, प्रभु सेवा और प्रभु के लिए अन्य साधन में अर्पित कर पाए । यही शाश्वत सत्य है और शास्त्रों का निष्कर्ष है ।
इसलिए जीवन में प्रभु की भक्ति करके आध्यात्मिक रूप से एक बड़ी आयु प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए । प्रभु के लिए निरंतर जीवन में समय बढ़ाते चलना चाहिए । जीवन में प्रभु के लिए जितना-जितना समय हम बढ़ाएंगे उतना-उतना मानव जीवन को हम सफल करते चले जाएंगे ।