श्री गणेशाय नमः
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प्रभु प्रेरणा से लेखन द्वारा चन्द्रशेखर करवा

लेख सार : परमपिता प्रभु की श्रीअंगुली पकड़ने से हम वैसे निश्चिंत हो जाते हैं जैसे एक छोटा बच्चा अपने पिता की अंगुली पकड़ने से होता है । सांसारिक मेले में अगर हम परमपिता की श्रीअंगुली पकड़कर रखेंगे तो हमें हमारी कोई चिंता नहीं करनी पड़ेगी क्योंकि हमारी चिंता प्रभु करेंगे । पूरा लेख नीचे पढ़ें -



अगर हम प्रभु की शरणागति लेकर जीवन में प्रभु की श्रीअंगुली पकड़ लेते हैं तो हम निश्चिंत और निश्चित हो जाते हैं । हम निश्चिंत हो जाते हैं सभी विपदा, विपत्ति और प्रतिकूलता से क्योंकि हमारी रक्षा करने की जिम्मेदारी प्रभु की हो जाती है । हम निश्चिंत हो जाते हैं कि प्रभु की श्रीअंगुली पकड़ने से हमारा कल्याण और उद्धार सुनिश्चित हो गया ।


जैसे एक नन्हा बच्चा अपनी माता की गोद में निश्चिंत रहता है वैसे ही हमें प्रभु की शरणागति लेकर जीवन में निश्चिंत हो जाना चाहिए । नन्हे बच्चे की पूरी जिम्मेदारी उसकी माता की होती है । नन्हा बच्चा सिर्फ अपनी माता का आंचल पकड़े रहता है । इसी प्रकार भक्त की पूरी जिम्मेदारी प्रभु उठाते हैं, भक्त को तो सिर्फ प्रभु की श्रीअंगुली पकड़नी होती है ।


जैसे एक नन्हे बच्चे का पूरा ख्याल उसकी माता रखती है और उसे समय पर दूध पिलाती है, स्नान कराती है, निद्रा दिलाती है, उसी प्रकार अपने भक्त का पूरा ख्याल प्रभु रखते हैं । भक्त केवल प्रभु का चिंतन करता है और उसकी पूरी चिंता प्रभु करते हैं । भक्त सदैव निश्चिंत रहता है क्योंकि उसे पता होता है कि उसको संभालने वाले प्रभु हैं ।


एक पिता अपने नन्हे बच्चे को प्रेम से ऊँ‍चा उछालता है पर उछालने पर भी बच्चा डरता नहीं कि वह गिर जाएगा क्योंकि उसे पता होता है कि उसका पिता उसे अपनी बाहों में नीचे आने पर पकड़ लेगा । उछालने पर भी बच्चा हंसता है और वह उछलकर आनंद लेता है क्योंकि उसे अपने पिता पर विश्वास होता है । ऐसे ही प्रतिकूलता आने पर प्रभु के भक्त भी मौज में रहते हैं क्योंकि उन्हें प्रभु पर पूर्ण विश्वास होता है और उन्हें पता होता है कि बचाने के लिए प्रभु सदैव मौजूद हैं ।


जैसे एक मेले में एक नन्हा बच्चा अपने पिता की अंगुली पकड़कर रखता है और उसे कोई चिंता नहीं रहती वैसे ही सांसारिक मेले में अगर हम परमपिता की श्रीअंगुली पकड़ कर रखेंगे तो हमें कोई चिंता नहीं रहेगी ।


जीवन में अगर निश्चिंत होना है तो प्रभु की शरणागति लेकर प्रभु की श्रीअंगुली पकड़ लेना सबसे लाभप्रद है । जैसे नन्हा बच्चा अगर अपनी पिता की अंगुली नहीं पकड़ कर रखेगा तो रास्ते में गड्ढे में गिर जाएगा पर अगर वह पिता की अंगुली पकड़े है तो पिता उसे गोद में उठाकर गड्ढा पार करा देंगे । वैसे ही संसार की उलझनों में अगर हमने प्रभु की श्रीअंगुली पकड़ी है तो प्रभु हमें उससे पार करा देंगे ।


इसलिए अगर सच्चे मायने में जीवन आनंद से जीना है तो प्रभु की शरणागति लेकर और प्रभु की श्रीअंगुली पकड़कर ही जीना चाहिए ।