लेख सार : हमारी विडंबना है कि हम प्रभु की भक्ति के अलावा अपने मानव जीवन में सब कुछ कर लेते हैं और प्रभु की भक्ति को सबसे कम प्राथमिकता देते हैं जबकि होना इसका ठीक उल्टा चाहिए । पूरा लेख नीचे पढ़ें -
जिसने खूब दुनियादारी की, खूब व्यापार किया, खूब नाम कमाया पर प्रभु की भक्ति की कमाई करना भूल गया उसका मानव जीवन असफल हो गया । मानव जीवन की सफलता सिर्फ और सिर्फ प्रभु की भक्ति की कमाई में ही है ।
किसी के दादाजी के दादाजी के दादाजी ने कितनी दुनियादारी की, कितना धन कमाया और कितना नाम कमाया यह किसे याद रहता है ? छः या सात पीढ़ी पहले के किसी के वंशज का नाम भी उसे याद नहीं रहता तो फिर उनकी करनी उसे क्या याद रहेगी । पर इसके ठीक विपरीत जो प्रभु की भक्ति करता है उसे जगत सदियों तक हजारों-हजारों वर्ष तक याद रखता है । आज श्री प्रह्लादजी, श्री ध्रुवजी, भगवती मीराबाई, श्री नरसीजी मेहता, श्री तुलसीदासजी, श्री सूरदासजी को हम बड़े आदर के साथ याद करते हैं, भले ही वे हमारे वंशज न हो और उनसे हमारा कोई रिश्ता न हो ।
दूसरी बात आज जो जीव भक्ति के अलावा सब कुछ करता है और प्रभु की भक्ति नहीं करता उसे योनि दर योनि पतित होकर भटकना पड़ता है । उसे लगातार चौरासी लाख योनियों में भटकते रहना पड़ता है और जलचर, नभचर, थलचर और वनस्पति बनना पड़ता है । वह कभी मुक्त नहीं होता और उसकी यह जन्म और मृत्यु की यात्रा चलती ही रहती है ।
मानव जीवन के अलावा सभी योनियां भोग योनियां हैं । केवल मानव जीवन की मुक्ति योनि है जिसमें प्रभु की भक्ति करके मुक्त हुआ जा सकता है । पर हम यह मानव जीवन भक्ति के अलावा सब कुछ करने में गँवा देते हैं । हम दुनियादारी करते हैं जिसको दो पीढ़ियों बाद ही भुला दिया जाएगा । हम धन और संपत्ति इकट्ठा करते हैं जो मृत्यु के बाद हमारे काम आने वाली नहीं है । मृत्यु की बात छोड़ दें, हमारी पूरे जीवन कमाई हुई धन-संपत्ति हमें जीवन का एक अतिरिक्त लम्हा, एक अतिरिक्त श्वास भी नहीं दिला सकती ।
इसलिए अन्य सब कुछ औपचारिकता के रूप में करना ठीक है पर सच्ची लगन से तो केवल मानव जीवन में भक्ति ही करने योग्य है । सभी शास्त्रों का सार यही है और सभी ऋषियों और संतों ने अपनी वाणी से इसी तथ्य का प्रतिपादन किया है । मानव जीवन का शिखर वही पाता है जो अपने मानव जीवन में सच्ची लगन से प्रभु की भक्ति करता है ।
इसलिए प्रभु की भक्ति करना सबके लिए अनिवार्य साधन होना चाहिए क्योंकि मानव जीवन हमें इसी के लिए मिला है । अगर मानव जीवन को सफल और धन्य करना है तो हमें प्रभु की भक्ति ही करनी चाहिए ।