श्री गणेशाय नमः
Devotional Thoughts
Devotional Thoughts Read Articles सर्वसामर्थ्यवान एवं सर्वशक्तिमान प्रभु के करीब ले जाने वाले आलेख (हिन्दी एवं अंग्रेजी में)
Articles that will take you closer to OMNIPOTENT & ALMIGHTY GOD (in Hindi & English)
Precious Pearl of Life श्रीग्रंथ के श्लोकों पर छोटे आलेख (हिन्दी एवं अंग्रेजी में)
Small write-ups on Holy text (in Hindi & English)
Feelings & Expressions प्रभु के बारे में उत्कथन (हिन्दी एवं अंग्रेजी में)
Quotes on GOD (in Hindi & English)
Devotional Thoughts Read Preamble हमारे उद्देश्य एवं संकल्प - साथ ही प्रायः पूछे जाने वाले प्रश्नों के उत्तर भी
Our Objectives & Pledges - Also answers FAQ (Frequently Asked Questions)
Visualizing God's Kindness वर्तमान समय में प्रभु कृपा के दर्शन कराते, असल जीवन के प्रसंग
Real life memoirs, visualizing GOD’s kindness in present time
Words of Prayer प्रभु के लिए प्रार्थना, कविता
GOD prayers & poems
प्रभु प्रेरणा से लेखन द्वारा चन्द्रशेखर करवा

लेख सार : प्रभु की शरणागति हमें जीवन की विपत्ति में बहुत बड़ा बल देती है और हमारा उद्धार करती है । प्रभु ने शास्त्रों में कहे अपने श्रीवचनों में भी शरणागति का बहुत बड़ा महत्व बताया है । पूरा लेख नीचे पढ़ें -



कभी-कभी प्रारब्धवश किसी जीव के जीवन में घोर विपदा आती है । हमारे पूर्व जन्मों के संचित पापों के कारण और जीवन में प्रभु का भजन नहीं होने के कारण जीव घोर विपदा और प्रतिकूलता में घिर जाता है ।


कभी-कभी विपत्ति की बेला इतनी कड़ी होती है कि जीव के पास आत्महत्या करना ही विकल्प रूप में बचता है । वह घोर विषाद में चला जाता है और जीवन को आत्मघात करके अंत करना ही उसे एकमात्र राह दिखती है । विपत्ति उसे जकड़ चुकी होती है, उसकी विपत्ति से लड़ने की क्षमताएं खत्म हो चुकी होती है और वह मानता है कि वह जीवन की बाजी हार चुका है ।


ऐसी घोर विपदा में उसके पास एक और विकल्प बचता है जिसे वह प्रायः नजरअंदाज कर चुका होता है । यह विकल्प है प्रभु की शरणागति ग्रहण करने का । जब किसी भक्त या संत के कारण या किसी सत्संग के प्रभाव के कारण वह इस विकल्प को पहचान पाता है और उसके मन में यह बात दृढ़ता से उतर जाती है कि इससे उसकी सभी विपदाओं का निश्चित अंत हो जाएगा तो वह विषाद से बाहर आ जाता है । ऐसा इसलिए क्योंकि आत्मघात के मुकाबले यह बहुत सरल और प्रभावी विकल्प है ।


आत्मघात करके हम अपने अमूल्य मानव जीवन को ही नष्ट कर लेते हैं । मूर्खता में हमने इतनी योनियों में भटकने के बाद प्रभु की कृपा के फलस्वरूप प्राप्त अनमोल मानव जीवन का ही अंत कर लिया । दूसरी तरफ प्रभु की शरणागति लेकर हम उस विपदा से तो निकलते ही हैं और साथ ही अपने मानव जीवन को भी सफल कर लेते हैं क्योंकि प्रभु की शरणागति ही मानव जीवन का एकमात्र लक्ष्य और उद्देश्य है ।


बहुत सारे भगवत् भक्तों ने घोर विपत्ति में और अंतिम बेला में प्रभु की शरणागति ग्रहण की और प्रभु ने तत्काल उनका उद्धार किया । शरणागति लेना हमारा काम है और शरणागत की रक्षा और उसका उद्धार करना प्रभु का कार्य है । प्रभु अपना कार्य सदैव से करते आए हैं और करते रहेंगे पर चूक हमसे ही हो जाती है । हम ही अपनी विपत्ति में उलझे रहते हैं, विषाद में चले जाते हैं, आत्मघात की सोचते हैं पर इन सबसे सरल प्रभु की शरणागति ग्रहण नहीं करते ।


प्रभु की शरणागति ग्रहण करते ही जीव की रक्षा और कष्ट निवारण का दायित्व स्वतः ही प्रभु पर आ जाता है । प्रभु अपना दायित्व बखूबी निभाते हैं । प्रभु का कितना बड़ा आश्वासन है सभी के लिए कि किसी भी परिस्थिति में प्रभु की शरण में आ जाएं तो उसके उद्धार का दायित्व प्रभु तत्काल ले लेते हैं ।


प्रभु के शरणागत होकर जिया हुआ जीवन ही सबसे उत्तम होता है और सबसे सफल होता है । इसलिए जीव को जीवन के प्रारंभ काल से ही प्रभु की शरणागति ग्रहण करके जीवन जीना चाहिए जिससे उसका कभी अमंगल होने की संभावना ही खत्म हो जाए ।