श्री गणेशाय नमः
Devotional Thoughts
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प्रभु प्रेरणा से लेखन द्वारा चन्द्रशेखर करवा

लेख सार : प्रभु का वर्चस्व कोटि-कोटि ब्रह्मांडों में फैला हुआ है । सभी प्रभु के पराधीन हैं । इसलिए अगर हम अपनी जान पहचान भक्ति के द्वारा प्रभु से कर लेते हैं तो हमारे लिए कुछ भी संसार में दुर्लभ नहीं रहता । पूरा लेख नीचे पढ़ें -



प्रभु से पहचान होने पर संसार के हमारे सारे कार्य सुचारु रूप से स्वतः ही होते रहेंगे । प्रभु से पहचान करने का सबसे सरल साधन भक्ति है ।


जैसे किसी देश के प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति से आपकी घनिष्ठ जान पहचान है तो उस देश में आपका सभी कार्य सुचारु रूप से हो जाता है । कहीं कोई दिक्कत नहीं आती और अगर आती भी है तो वह सुलझ जाती है । वैसे ही अगर पूरे ब्रह्मांड के नायक, परमपिता परमेश्वर से भक्ति के कारण हमारी पहचान है तो संसार में हमारे सभी कार्य सुचारु रूप से संपन्न होते चले जाएंगे ।


जैसे एक देश के प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति से जान पहचान उस देश में आपका कार्य कराने में सक्षम है वैसे ही प्रभु से जान पहचान पूरे ब्रह्मांड में आपके कार्य को करवाने की क्षमता रखती है । प्रभु से जान पहचान जल, थल और नभ सभी जगह हमारी सुरक्षा करती है । हम जल, थल और नभ में कहीं भी फंस जाए तो प्रभु उससे हमें उबार देते हैं । इहलोक, परलोक में प्रभु हमारा मंगल करते हैं, यहाँ तक कि नर्क की यातना से भी प्रभु हमें बचा लेते हैं । प्रभु की सत्ता सभी जगह पर समान रूप से चलती है इसलिए प्रभु सभी जगह हमारे लिए उपलब्ध रहते हैं और दया एवं कृपा करने के लिए सदैव तैयार रहते हैं ।


एक देश का प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति अगले चुनाव के बाद बदल जाता है फिर आपकी उससे जान पहचान का कोई महत्व नहीं रहता पर प्रभु सर्वदा और सर्वत्र हैं । प्रभु कभी बदल नहीं सकते क्योंकि कोटि-कोटि ब्रह्मांडों में प्रभु तो केवल एक ही हैं । इसलिए एक बार प्रभु से हुई जान पहचान जन्मों-जन्मों तक अपका कार्य करती है और कार्य करने का सामर्थ्‍य रखती है ।


प्रभु से जान पहचान का इतना बड़ा महत्व और फायदा देखने के बाद अब चर्चा करें उस साधन की जिससे प्रभु से सबसे सुलभता और सरलता से जान पहचान हो सकती है । ऐसा एकमात्र साधन है प्रभु की भक्ति । भक्ति प्रभु से जान पहचान करने का, प्रभु के रक्षा कवच के भीतर आने का और प्रभु के सानिध्य को पाने का सबसे सुगम उपाय है ।


प्रभु ने अपने भक्तों के लिए जो किया है वह अन्य किसी के लिए भी नहीं किया । भक्ति से प्रभु भक्त के बंधन को स्वीकार कर लेते हैं और स्वयं को भक्त पर न्यौछावर कर देते हैं । भक्ति का सामर्थ्‍य अदभुत है और इतिहास गवाह है कि भक्तों के लिए कुछ भी करने में प्रभु कभी भी पीछे नहीं हटे ।


इसलिए जीव को चाहिए कि मानव जन्म की सफलता के लिए इस जीवन में भक्ति करके प्रभु से जान पहचान स्थापित करके सदैव के लिए निश्चित और निश्चिंत हो जाए ।