लेख सार : विपत्ति काल में संसार धीरे-धीरे हमारा साथ छोड़ देता है पर एक प्रभु ही हैं जो घोर से घोर विपत्ति में भी हमारे साथ खड़े रहते हैं और हमारा पूरा साथ देते हैं । पूरा लेख नीचे पढ़ें -
हमारे साथ हमें लगता है कि बहुत लोग खड़े हैं पर जब विपत्ति आती है तो सिर्फ और सिर्फ प्रभु ही साथ खड़े नजर आएंगे । एक प्रभु ही हैं जो शुरू से अंत तक हमारे साथ खड़े रहते हैं ।
एक अरबपति उद्योगपति का उदाहरण देखकर हम इस तथ्य को समझ जाएंगे । जब वह उद्योगपति शिखर दर शिखर चढ़ता जा रहा था और उद्योग पर उद्योग सफलता से स्थापित करता जा रहा था तो उसके पीछे लाखों कर्मचारियों का समूह खड़ा था । उसके पीछे उसका पूरा परिवार एवं तमाम रिश्तेदारों की भीड़ खड़ी थी । अब जरा कल्पना करें कि वह उद्योगपति अरबपति नहीं रहता, उसे बड़ा नुकसान लगता है, उसके उद्योग एक के बाद एक बंद हो जाते हैं । वह दिवालिया घोषित कर दिया जाता है और उसके पास कुछ भी धन नहीं बचता । अब कितने लोग उसके साथ खड़े नजर आएंगे ? उसके कर्मचारी उसे छोड़ चुके होंगे, रिश्तेदारों ने मुँह फेर लिया होगा और यहाँ तक कि परिवार के लोग भी उससे नाता तोड़ लेते हैं । अंत में वह बिलकुल अकेला ही रह जाता है ।
जब सफलता थी तो पूरा समाज उसके साथ था । जब विफलता और प्रतिकूलता आई तो सबने साथ छोड़ दिया और उससे किनारा कर लिया । इस तरह यह बात समझ में आनी चाहिए कि संसार मतलब का है ।
केवल और केवल प्रभु ही हैं जो हमारे साथ तब भी होते हैं जब हम कुछ नहीं हैं, तब भी होते हैं जब हम बहुत बड़े बन जाते हैं और तब भी होते हैं जब हम फिर धरातल पर आ जाते हैं । ऐसा इसलिए है क्योंकि हमारी सफलता में प्रभु को हमसे कुछ नहीं चाहिए होता और हमारी विफलता में प्रभु के द्वार हमारे लिए कभी बंद नहीं होते ।
आप कितने भी अजीज रिश्ते की कल्पना करें, एक पिता-पुत्र का, एक भाई-भाई का, एक बहन-भाई का, एक पति-पत्नी का पर जब हम पर विपत्ति आती है और प्रतिकूलता हमें घेरती है तो एक-दो बार, ज्यादा से ज्यादा तीन-चार बार, बहुत ज्यादा पांच-छह बार वे हमारी मदद कर देंगे । फिर जब वे देखेंगे कि यह मदद मांगने का सिलसिला चलता ही जा रहा है तो एक दिन थककर वे अपने द्वार सदैव के लिए हमारे लिए बंद कर देंगे । वे या तो बहाना बनाने लगेंगे या हमें टालने लगेंगे ।
एक प्रभु ही हैं जो 24 घंटे, 365 दिन हमारे जीवन के पूरे वर्ष एवं योनि दर योनि हमारे लिए सदैव उपलब्ध रहते हैं और और हमें मदद पहुँचाते रहते हैं । आज तक प्रभु के द्वार किसी के लिए, कभी भी बंद नहीं हुए हैं ।
इसलिए हमें जीवन में संसार को छोड़कर प्रभु का दामन थामना चाहिए क्योंकि संसार पराया है और केवल और केवल प्रभु ही अपने हैं । संसार स्वार्थी है और केवल प्रभु हमसे निस्वार्थ रिश्ता रखते हैं और निस्वार्थ प्रेम करते हैं ।