लेख सार : प्रभु से ज्यादा हमारा हित जानने वाला कोई नहीं है । हम खुद भी अपना हित उतना नहीं जानते जितना प्रभु जानते हैं । इसलिए सदैव जीवन में प्रभु की इच्छा स्वीकार करनी चाहिए क्योंकि इसमें ही हमारा सर्वोपरि हित छिपा हुआ होता है । पूरा लेख नीचे पढ़ें -
जीवन में प्रभु की श्रीअंगुली पकड़कर रखनी चाहिए जैसे एक छोटा बालक अपनी माता की अंगुली पकड़कर रखता है । ऐसा करने पर जैसे वह बालक निश्चिंत रहता है क्योंकि उसका पूरा दायित्व उसकी माता पर आ जाता है वैसे ही हम भी जीवनभर और जीवन के बाद भी निश्चिंत रह सकते हैं क्योंकि हमारी पूरी जिम्मेदारी और दायित्व प्रभु ले लेते हैं ।
प्रभु की श्रीअंगुली पकड़े रहने का एक बड़ा फायदा यह होता है कि हमारी सात्विक इच्छा प्रभु पूरी करते हैं और जिस इच्छा की पूर्ति से भविष्य में हमारा नुकसान हो सकता है प्रभु उसकी पूर्ति नहीं करते । हम अपना वर्तमान देखकर भविष्य के लिए इच्छा करते हैं पर प्रभु हमारा भविष्य जानते हुए हमारे वर्तमान की व्यवस्था करते हैं ।
जब हमें जीवन में लगे कि प्रभु के होते हुए भी हमारी इच्छा की पूर्ति नहीं हुई तो उसमें भी हमें अपनी भलाई दिखनी चाहिए । प्रभु कभी भी हमारी वह इच्छा पूरी नहीं करेंगे जिसमें हमारा नुकसान है और हमारी भलाई नहीं है । जैसे एक माता अपने बालक के जिद करके मांगने पर भी उस बालक को लाल-लाल आकर्षक लगने वाला आग का अंगार नहीं देती क्योंकि उसे पता होता है कि बालक नादान है और समझ नहीं रहा कि यह अंगार उसका हाथ जला देगा । उसी प्रकार हमारी भरपूर इच्छा होने पर भी प्रभु कुछ चीजें हमें जीवन में प्रदान नहीं करते क्योंकि वे परमपिता हैं और जानते हैं कि वह चीज हमारा नुकसान करेगी ।
सभी संतों और भक्तों ने प्रभु की इच्छा को सर्वोपरि मान सच्चे मन से उसे जीवन में स्वीकार किया है । उन्होंने कभी यह बुद्धि नहीं लगाई कि प्रभु के होते हुए भी हमारी यह इच्छा पूरी क्यों नहीं हुई । उन्हें भक्ति के कारण पक्का विश्वास होता है कि जो हमारे हित में होगा वह प्रभु करेंगे और जो हमारे हित में नहीं होगा उसे प्रभु कभी होने नहीं देंगे ।
संतों और भक्तों के मुख से सदैव यह सुनने को मिलता है कि हरि इच्छा सर्वोपरि है । ऐसी मनःस्थिति तब होती है जब हमारी भक्ति प्रबल होती है । भक्ति के कारण जीव को प्रभु पर इतना अटूट विश्वास हो जाता है कि उसके जीवन में जो भी होता है उसे वह प्रभु इच्छा मान सहर्ष स्वीकार कर लेता है । प्रभु इच्छा में ही उसे अपनी भलाई छिपी हुई दिखती है ।
जीवन में जब हम प्रभु की श्रीअंगुली पकड़ लेते हैं और प्रभु की शरणागति स्वीकार कर लेते हैं तो हमारी चिंताएँ हमारी नहीं रहकर प्रभु की हो जाती हैं । संतों और भक्तों ने जीवन में प्रभु का चिंतन किया है और उनकी चिंता का वहन प्रभु ने किया है ।
इसलिए जीव को जीवन में प्रभु का चिंतन करना चाहिए और चिंतामुक्त होकर प्रभु की इच्छा को सहर्ष स्वीकार करना चाहिए क्योंकि प्रभु जो भी करेंगे वह हमारे श्रेष्ठतम हित का ही करेंगे ।