श्री गणेशाय नमः
Devotional Thoughts
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प्रभु प्रेरणा से लेखन द्वारा चन्द्रशेखर करवा

लेख सार : प्रेम करना हम सबको आता है और हम संसार में आकर किसी-न-किसी से प्रेम करते हैं । पर अगर इस प्रेम की दिशा को हम प्रभु की तरफ मोड़ दें और प्रभु से प्रेम करने लगे तो यह भक्ति कहलाती है । पूरा लेख नीचे पढ़ें -



भक्ति का सरल अर्थ है प्रभु से प्रेम करना । प्रेम करना हम सभी को आता है । एक माता अपनी संतान से प्रेम करती है । एक छोटा बच्चा अपनी माता से प्रेम करता है । पति अपनी पत्नी से प्रेम करता है । पत्नी अपने पति से प्रेम करती है और अपने पीहर से प्रेम करती है ।


भक्ति में केवल इतना करना है कि बस इस प्रेम की दिशा को मोड़कर प्रभु की तरफ कर देना है । जैसे ही हम अपने प्रेम की दिशा प्रभु की तरह मोड़ देते हैं तो वह भक्ति हो जाती है । वैसे भी सच्चा प्रेम उन्हीं से करना चाहिए जो हमारे सबसे समीप हैं । प्रभु ही हमारे सबसे समीप है क्योंकि हम प्रभु के अंश हैं और प्रभु हमारे मूल हैं । इसलिए प्रभु से ही हमारा शाश्वत और सदा रहने वाला संबंध है ।


जैसे रेगिस्तान में रेत के कण आपस में मिले होते हैं और फिर हवा चलती है तो वे कण एक दूसरे से अलग होकर दूसरी जगह पहुँच जाते हैं जहाँ दूसरे कण से वे मिल जाते हैं । पर वे कण जहाँ भी हो उनका धरती से संपर्क सदा कायम रहता है । इसी प्रकार हमारा एक जन्म में किसी के साथ संयोग होता है और मृत्यु पर हम उससे अलग हो जाते हैं । फिर अगले जन्म में नए जीव के साथ हमारा संयोग होता है । पर हमारा पिछले जन्म में भी प्रभु के साथ संबंध था, इस जन्म में भी है, अगले जन्म में भी होगा और सदा-सदा हर जन्म में रहने वाला है । जैसे रेत के कण का संबंध सदैव धरती के साथ रहता है ।


इसलिए जीवन में सबसे ज्यादा और सबसे सच्चा प्रेम प्रभु के साथ ही होना चाहिए जिनसे सदा-सदा के लिए हमारा शाश्वत संबंध है । यही भक्ति का सिद्धांत है ।


प्रभु के साथ एक बहुत छोटे बालक की भूमिका में हमें आना चाहिए और प्रभु की श्रीअंगुली पकड़ लेनी चाहिए । इससे हम जीवन काल में और जीवन के बाद भी पूर्णतया निर्भय और निश्चिंत हो जाएंगे ।


जैसे एक बालक जो अपनी माता के साथ अंगुली पकड़कर जाता है तो रास्ते में गड्ढा आने पर माता स्वतः ही उसे गोद में उठा लेती है वैसे ही हमारे प्रारब्ध के कारण मुसीबत आने पर अगर हमने प्रभु की श्रीअंगुली पकड़ी है तो प्रभु हमें गोद में उठा लेते हैं ।


एक कथा आपने सुनी होगी । एक भक्त को प्रभु की अनुभूति होती थी और सपने में प्रभु की श्रीअंगुली पकड़कर वह प्रभु के साथ रहता था । उसे चार पैरों के निशान सदा दिखते थे जिसमें दो उसके थे और दो प्रभु के श्रीकमलचरणों के थे । एक बार प्रारब्धवश विपत्ति आई और प्रतिकूल समय में सपने में उसे दो पैरों के निशान ही दिखे । उसने प्रभु से कहा कि आपने मुझे विपत्ति में अकेला छोड़ दिया । प्रभु ने कहा कि जो दो पैरों के निशान तुम्हें दिख रहे हैं वह मेरे हैं और मैंने तुम्हें विपत्ति और प्रतिकूलता की बेला में अपनी गोद में उठाए रखा है इसलिए तुम्हारे पैरों के दो निशान तुम्हें नहीं दिख रहे ।


इसलिए जीवन में प्रभु से ही सच्चा और सबसे ज्यादा प्रेम करना चाहिए और प्रभु की शरणागति लेकर प्रभु की श्रीअंगुली पकड़कर रखनी चाहिए । यही भक्ति मार्ग है ।