श्री गणेशाय नमः
Devotional Thoughts
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प्रभु प्रेरणा से लेखन द्वारा चन्द्रशेखर करवा

लेख सार : अगर हम प्रभु की भक्ति करते हैं तो प्रभु से कुछ मांग नहीं करने पर भी प्रभु अन्तर्यामी और सर्वसामर्थ्‍यवान होने के कारण हमारी हर जरूरत की स्वतः ही पूर्ति करते हैं । प्रभु से कुछ नहीं मांगकर हमें भक्ति में निष्काम बने रहना चाहिए । पूरा लेख नीचे पढ़ें -



प्रभु दें, यह मांग हो गई । प्रभु देंगे, यह विश्वास हो गया । हमें किसी भी चीज की प्रभु से मांग नहीं करनी चाहिए । हमें सदैव निष्काम होना चाहिए । मांग नहीं करने पर भी हमें वह चीज प्रभु से पाने का विश्वास होना चाहिए ।


भक्‍त को सदैव प्रभु पर विश्वास होता है कि प्रभु उसकी हर जरूरत की पूर्ति करेंगे और प्रभु स्वतः करते ही हैं । जैसे एक नवजात शिशु को क्या चाहिए, उसकी कोई मांग नहीं होती पर उसकी माँ स्वतः ही समय से पहले उसकी हर जरूरत की पूर्ति करती है । वैसे ही प्रभु अपने भक्तों की हर जरूरत की स्वतः ही पूर्ति करते हैं और वह भी बिना मांगे क्योंकि प्रभु से कुछ भी छिपा हुआ नहीं है और प्रभु सर्वसामर्थ्‍यवान हैं । उन्हें पता होता है कि किसे, कब, किस चीज की आवश्यकता है और प्रभु सबको सब कुछ देने में समर्थ हैं ।


प्रभु के एक भक्त श्री नरसीजी मेहता का उदाहरण हम देखेंगे तो यह तथ्य हमें समझ में आ जाएगा । श्री नरसीजी ने अपनी बेटी का विवाह बड़े चाव के साथ किया । फिर उनके ऊपर भक्ति का रंग चढ़ा और वे वन में जाकर कुटिया बनाकर रहने लगे और भजन करने लगे । उनकी बेटी की बेटी बड़ी हो गई और उसके विवाह का समय आया । रीति के अनुसार ननिहाल पक्ष से मायरा भरा जाता है । ससुराल वालों को पता था कि श्री नरसीजी के पास कुछ भी नहीं है । श्री नरसीजी का मजाक उड़ाने के लिए ससुराल वालों ने मायरे के सामान की एक लंबी सूची एक ब्राह्मण के साथ श्री नरसीजी के पास भेज दी । श्री नरसीजी ने उस पत्री को खोले बिना उसे प्रभु के श्रीकमलचरणों में निवेदन कर दिया । उन्होंने प्रभु से कुछ मांग नहीं की क्योंकि उन्हें विश्वास था कि प्रभु स्वतः ही उनकी जरूरत की पूर्ति करेंगे । अपने इस भक्‍त की लाज रखने के लिए प्रभु को स्वयं आना पड़ा और प्रभु उनकी बेटी के धर्म-भाई बनकर मायरा भरने आए । प्रभु ने ऐसा मायरा भरा कि लेने वाले थक गए । भेजी हुई मायरे की सूची से अनंत गुना ज्यादा प्रभु ने दिया । सब तरफ प्रभु की जय-जयकार हो गई और श्री नरसीजी का मान बढ़ गया ।


उपरोक्त दृष्टांत से इस बात की पुष्टि होती है कि अगर हम प्रभु से कुछ मांग नहीं करें और प्रभु पर विश्वास रखें तो प्रभु उचित समय जरूरत अनुसार स्वयं ही हमें देंगे । पर जीव प्रभु से मांग करके अपनी भक्ति को दूषित कर लेता है क्‍योंकि सर्वश्रेष्ठ भक्ति तो निष्काम भक्ति ही होती है ।


भक्ति में निष्काम होना भक्ति का बहुत बड़ा गौरव है । निष्काम भक्त प्रभु को सबसे अधिक प्रिय होते हैं । निष्काम भक्ति से ऊँ‍चा साधन कुछ भी नहीं है । इसलिए जीव को चाहिए कि प्रभु दें, यह मांग नहीं रखे बल्कि प्रभु देंगे, यह पक्का विश्वास रखे ।


प्रभु का श्रीमद् भगवद् गीताजी में भक्तों का दायित्व उठाने का व्रत लिया हुआ है और प्रभु सदैव ऐसे व्रत का पालन करते हैं । सभी भक्तों के चरित्रों में यह बात देखने को मिलती है ।


इसलिए जीव को चाहिए कि प्रभु पर अटूट विश्वास रखें और प्रभु की निष्काम भक्ति करके अपने मानव जीवन को सफल करे ।