श्री गणेशाय नमः
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प्रभु प्रेरणा से लेखन द्वारा चन्द्रशेखर करवा

लेख सार : प्रभु जीवन में हैं तो ही अच्छाइयां जीवन में होगी और हमें अच्छाइयां अच्‍छी भी लगेंगी । इसके ठीक विपरीत अगर प्रभु का सानिध्य जीवन में नहीं है तो जीवन में बुराइयों का बोलबाला रहेगा और बुराइयों में ही हमारा मन रमेगा । पूरा लेख नीचे पढ़ें -



प्रभु की कृपा अगर जीवन में है तो हमें बुराइयां बुरी लगेंगी और अच्छाइयां अच्छी लगेंगी । जीवन में प्रभु कृपा को मापने का यही मापदंड है कि हमें बुराइयां अच्छी लगती है या अच्छाइयां अच्छी लगती है । अगर अच्छाइयां अच्छी लगती है और अच्छाइयां हमारे जीवन में है तो हम पर निश्चित प्रभु कृपा है । इसके विपरीत अगर बुराइयां अच्छी लगती है और बुराइयां हमारे जीवन में है तो हम प्रभु कृपा से वंचित हैं ।


अनीति, चोरी, झूठ, पाखंड, कामुकता इत्यादि बुराइयां हमारे जीवन में कितनी है यह हमें स्वतः ही जाँचना चाहिए । नीति, अहिंसा, समभाव, सच्चाई, ईमानदारी, ब्रह्मचर्य हमारे जीवन में कितना है यह भी हमें स्वतः ही जाँचना चाहिए । जैसे हम लेबोरेटरी में जाकर खून की जाँच करते हैं और हमें पता चलता है कि हमारे भीतर क्या विकार है वैसे ही हमें अपनी अच्छाइयों और बुराइयों की जाँच स्वतः करनी चाहिए ।


जैसे खून की जाँच के बाद डॉक्टर दवाई लिख कर देता है और हमारा रोग ठीक होने लगता है वैसे ही आत्म-निरीक्षण के बाद हमें सत्संग और प्रभु की भक्ति करनी चाहिए तभी हमारे भीतर से बुराइयां हटेगी और अच्छाइयों का वास हमारे भीतर होगा ।


जब हमें प्रभु सानिध्य में रहना, प्रभु सेवा करना, प्रभु का सत्संग अच्छा लगने लग जाए तो हमें यह मानना चाहिए कि जीवन में प्रभु कृपा हो गई । फिर भी हमें सदैव सचेत रहना चाहिए कि हम से कोई विपरीत कर्म न हो जिससे हम फिर प्रभु कृपा से वंचित हो जाएं क्योंकि जीवन से प्रभु कृपा गई तो तत्काल बुराइयां हमें प्रभावित करेंगी और अच्छाइयां हमें बोझ लगने लगेंगी ।


अच्छाइयां जब हमें बोझ लगने लगेंगी तो उन्हें त्यागने का साधन हमारे जीवन में स्वतः उपस्थित होता है । उदाहरण के तौर पर एक व्यक्ति ईमानदारी से अपना व्यापार करता है । फिर उसके जीवन में बहुत सारा धन बेईमानी से आने का मौका उपस्थित हुआ और उसने ईमानदारी का त्याग करके उस मौके को भुना लिया । ऐसा करने पर वह दुःख और ग्लानि की जगह सुख, समझदारी और गर्व का अनुभव करेगा ।


इसलिए प्रभु कृपा जीवन से चली न जाए इसका सदैव जीवन में ध्यान रखना चाहिए और सचेत एवं सावधान बने रहना चाहिए । प्रभु कृपा जीवन से जाए नहीं इसका सबसे बड़ा साधन प्रभु की भक्ति करना है । भक्ति करने वाले जीव पर निरंतर प्रभु की कृपा बरसती ही रहती है । भक्ति हमें प्रभु सानिध्य में ला देती है । प्रभु जीवन में आते हैं तो अच्छाइयां दौड़ी चली आती है क्योंकि अच्छाइयां प्रभु की परछाई हैं । प्रभु जहाँ-जहाँ जाएंगे अच्छाइयां पीछे-पीछे बिन बुलाए स्वतः ही वहाँ पहुँच ही जाएगी ।


इसके ठीक विपरीत जब प्रभु हमारे जीवन में नहीं होते तो बुराइयों का बोलबाला होता है । बुराइयां सिर उठाकर नाचती है और हमें नचाती है । बुराइयों के प्रकोप से बचने का एक ही उपाय है कि प्रभु को जीवन में लाया जाए । प्रभु के बिना बुराइयां जाएगी नहीं यह निश्चित सिद्धांत मानना चाहिए ।


इसलिए जीवन में अविलम्ब भक्ति के द्वारा प्रभु को लाना चाहिए । मानव जीवन की सफलता इसी में है । ऐसा करने पर ही अच्छाइयां जीवन में स्थिर रहेगी और बुराइयां हमारे जीवन को प्रभावित नहीं करेगी । प्रभु की कृपा जीवन में हो ऐसा भक्तिरूपी साधन करना चाहिए और इसके लिए सदैव सचेत और सावधान रहना चाहिए ।