श्री गणेशाय नमः
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प्रभु प्रेरणा से लेखन द्वारा चन्द्रशेखर करवा

लेख सार : चौरासी लाख योनियों में भटकना किसी भयंकर वेदना से कम नहीं है । इस भयंकर वेदना से हम मानव जीवन में किए प्रयासों से सदैव के लिए मुक्त हो सकते हैं । पर हमारा दुर्भाग्य है कि हम मानव जीवन के महत्व को समझ ही नहीं पाते और अपना मानव जीवन व्यर्थ गँवा देते हैं । पूरा लेख नीचे पढ़ें -



क्या हमने कभी मानव जीवन के महत्व को समझने का प्रयास किया है कि हमें यह जीवन क्यों मिला है और इस जीवन में हमें क्या करना चाहिए जिससे यह जीवन सफल हो सके ?


मानव जीवन का महत्व समझने के लिए आइए कुछ उदाहरणों पर गौर करें । क्या हम कभी अनुभव करते हैं कि कितना कष्ट पाकर एक मछली मछुआरे के जाल में उलझकर बिना पानी के तड़पकर प्राण त्‍यागती है । कितना भयंकर होता होगा जब एक शेर एक हिरण के पीछे दौड़कर उसका कंठ दबोचता है और वह हिरण प्राण त्यागता है । कितना भीषण होगा जब एक अजगर या सांप एक जिंदा चूहे को निगल जाता है और चूहा उसके मुँह के अंदर घुटकर प्राण त्यागता है । कितना दुःखमय दृश्य होगा जब एक बिल्ली चिड़िया के नवजात बच्चे को झपट्टा मारकर मार डालती है । कितना भयावह होगा जब एक चील या उल्लू एक मेंढक को अपने पंजे से पकड़कर उड़ जाता है और उसे जमीन पर पटक कर उसकी प्राण लीला खत्म कर देता है । कितना भीषण होता होगा जब एक मगरमच्छ एक छोटे जलचर को अपने दाँतों से जकड़कर मार देता है । कितना दुःखद होता होगा जब एक कसाई एक झटके से मुर्गी या बकरी को मारता है और उससे भी भीषण वहाँ पर मौजूद जिंदा मुर्गी या बकरी को यह दृश्य देखना होता है और डर से कांपते रहना होता है कि अगला नंबर उनका है । कितना दुःखद होता होगा जब मनुष्य का एक बड़ा सा पैर छोटे कीड़े या चींटी को हमेशा के लिए दबाकर मार देता है । एक कुल्हाड़ी द्वारा प्राप्त दर्द कोई पेड़ से पूछे जिसका प्रहार उसकी चेतना पर वार करता है और उस पेड़ के प्राणों का अंत हो जाता है ।


मनुष्य को भी चौरासी लाख जन्मों में मछली, हिरण, चूहा, चिड़िया, मेंढक, छोटे जलचर, मुर्गी, बकरी, कीड़े, चींटी, पेड़ इत्यादि बनना पड़ेगा और इन सभी वेदनाओं को झेलना पड़ेगा । मनुष्य इन सभी योनियों में भटककर और इन सभी वेदनाओं को सहकर फिर मानव तन पाता है और इस मानव तन से प्रभु का होकर और प्रभु की भक्ति कर आवागमन से सदैव के लिए मुक्ति पा सकता है ताकि दोबारा उसे इस वेदना चक्र से गुजरना ही नहीं पड़े ।


अन्य योनियों की तरह मनुष्य जन्म में जीव को ऐसी कोई वेदना भोगनी नहीं पड़ती जो उसके प्राणों का घात करे । अन्‍य जीवों की तरह मनुष्य के प्राण संकट में नहीं होते तभी यह जीवन प्रभु स्मरण और भजन के लिए अनुकूल है ।


पर जीवों की वेदना से भी बड़ी वेदना मानव जन्म में तब होती है जब हम प्रभु के बनने का सुअवसर चूक जाते हैं । ऐसा इसलिए होता है क्योंकि हम आदत अनुसार भोजन, निद्रा और मैथुन में अपने जीवन का बहुत बड़ा भाग नष्ट कर देते हैं । हम भोजन के लिए कमाने में, निद्रा लेने में और परिवार पालने में उलझकर अपने आवागमन से मुक्ति का साधन नहीं करते । प्रभु का आशीर्वाद प्राप्‍त किए बिना ही हम मनुष्य जीवन की आयु पूरी कर उसे व्यर्थ गँवा देते हैं और फिर विभिन्न योनियों में भटककर वेदना चक्र में दोबारा फँस जाते हैं ।


मानव जीवन इस वेदना चक्र को तोड़ने का सुनहरा मौका है । प्रभु की कृपा जीवन में भक्ति द्वारा अर्जित कर इस वेदना चक्र से हम सदैव के लिए मुक्ति पा सकते हैं और साथ ही सदैव के लिए प्रभु सानिध्य प्राप्त कर प्रभु के धाम में पहुँच कर परमानंद पा सकते हैं । हमें मानव जीवन का महत्व समझना चाहिए और मानव जीवन का प्रभु भक्ति करके सही उपयोग करना ही हमारे मानव जीवन का एकमात्र लक्ष्य होना चाहिए ।