श्री गणेशाय नमः
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प्रभु प्रेरणा से लेखन द्वारा चन्द्रशेखर करवा

लेख सार : जीव की किसी भी परेशानी का हल संसार के पास नहीं है । उसका हल सदैव प्रभु के पास ही होता है । पर जीव यह गलती कर बैठता है कि अपनी परेशानी को संसार को बताकर उसका समाधान संसार से चाहता है जबकि उसे अपनी परेशानी प्रभु से निवेदन करनी चाहिए तो प्रभु तत्काल उसका समाधान कर देंगे । पूरा लेख नीचे पढ़ें -



अगर हम अपना कोई कष्ट या अपनी कोई परेशानी परमपिता प्रभु को निवेदन न करके अन्य किसी को बताते हैं तो इससे परमपिता प्रभु का अनादर होता है । ऐसा इसलिए है क्योंकि प्रभु हमारे कष्ट का निवारण करने के लिए और हमें परेशानी से उबारने के लिए सदैव उपलब्ध हैं ।


जैसे कोई बच्चा अपनी परेशानी को अपने लौकिक पिता को न बताकर बाहर वाले को बताए तो उसके लौकिक पिता दुःखी होंगे क्योंकि वे उपलब्ध थे उस परेशानी के निवारण के लिए और समर्थ भी थे उसके निवारण के लिए । तब यह उस बच्चे की गलती होगी कि उसने अपने पिता पर विश्वास न करके बाहर वाले पर विश्वास किया । अगर उस बच्चे के पिता समर्थ न हो या उपलब्ध न हो तो फिर वह बच्चा किसी अन्य को अपनी परेशानी बताए तो ठीक है अन्यथा गलत है ।


ठीक ऐसे ही हम गलती कर जाते हैं और अपनी परेशानी प्रभु को न बताकर और उसके निवारण के लिए प्रभु पर विश्वास न रखकर वह सबको बताते हैं और सबसे आस रखते हैं । श्री महाभारतजी का एक उदाहरण देखेंगे तो यह तथ्य समझ में आएगा । भगवती द्रौपदीजी के चीर हरण के प्रसंग में जब तक उन्होंने अपने पतियों पर विश्वास किया और उनसे आस रखी कि वे उन्हें बचा लेंगे तब तक प्रभु नहीं आए । भगवती द्रौपदीजी को पांचो पांडव, जो कि वहाँ सब कुछ हार चुके थे और उपस्थित थे, वे बचा नहीं पाए । फिर भी भगवती द्रौपदीजी ने भीष्म पितामह, गुरु द्रोणाचार्य, श्री कृपाचार्य, श्री विदुरजी से आशा रखी पर वे भी उन्हें बचा नहीं पाए । फिर भगवती द्रौपदीजी ने अपने ज्येष्ठ ससुर धृतराष्ट्र से आस रखी पर उन्हें वे भी बचा नहीं पाए । फिर भगवती द्रौपदीजी को अपने बल पर विश्वास था और उन्होंने पूरे जोर से अपनी साड़ी पकड़ रखी थी पर जब वे अपना बल भी हार गई और उन्हें लगा कि अब साड़ी छूटने वाली है तो उन्होंने प्रभु को पुकारा । प्रभु तो सर्वत्र हैं, वहाँ भी उपस्थित थे इसलिए क्षण मात्र में प्रकट हो गए और उन्हें वस्त्र दान दिया । भगवती द्रौपदीजी की लाज बच गई ।


उपरोक्त दृष्टांत हमें यह बताता है कि जब तक भगवती द्रौपदीजी ने सबसे आस रखी उन्हें उनकी परेशानी से मुक्ति नहीं मिली । जब उन्होंने सबको भूलकर केवल और केवल प्रभु से आशा रखी तो उनके कष्‍ट का तत्काल से निवारण हुआ ।


इससे इस तथ्य का प्रतिपादन होता है कि परमपिता प्रभु सदैव उपलब्ध होते हैं और पूर्ण रूप से सर्वसमर्थ होते हैं हमें हर परेशानी से निकालने के लिए । इसलिए अपनी कोई भी परेशानी का निवेदन सिर्फ और सिर्फ प्रभु से ही करना चाहिए । यही उत्तम मार्ग है ।


वैसे भी दुनिया तो निमित्त होती है क्योंकि परेशानी का हल करने वाले तो सदैव प्रभु ही होते हैं । जैसे लौकिक पिता जो घर का मुखिया है उसके रहते किसी अन्य को अपनी परेशानी बताने से लौकिक पिता को दुःख होगा वैसे ही प्रभु को दुःख होता है जब हम प्रभु को न बताकर संसार को अपनी परेशानी बताते हैं और संसार से उस परेशानी का समाधान चाहते हैं ।


जो जीव प्रभु की भक्ति करता है प्रभु सदैव उसके साथ होते हैं । वह जीव जैसे ही अपनी परेशानी का निवेदन प्रभु से करता है प्रभु तत्काल उसका निवारण करते हैं । सच्चा भक्त सदैव यह मानता है कि संसार को तो प्रभु निमित्त बनाते हैं पर पीछे अदृश्य रूप से प्रभु की कृपा ही उसके कष्ट निवारण का काम करती है । प्रभु की कृपा से ही उसके कष्‍ट मिटते हैं और उसकी परेशानी का हल होता है ।