लेख सार : ज्यादातर लोग मानव जीवन का सही उपयोग करने से चूक जाते हैं । दुर्भाग्य की बात तो यह होती है कि उन्हें मानव जीवन का सही उपयोग करने का भान ही नहीं होता । पूरा लेख नीचे पढ़ें -
मानव जीवन का सही उपयोग क्या है और क्या हमारा ध्यान इस ओर कभी जाता है ? मानव जीवन का उद्देश्य क्या है और क्या कभी हमने एकांत में बैठकर इसका चिंतन किया है ? हम कभी ऐसा सोचने का प्रयास ही नहीं करते और एक-एक दिन करके हमारा मानव जीवन बीतता ही चला जाता है । बचपन खेल कूद और पढ़ाई में, जवानी कमाई और दुनियादारी में और बुढ़ापा बीमारी में बीत जाता है ।
मैं एक ऐसे परिवार को जानता हूँ जिसके मुखिया ने अपने परिवार के लिए सब कुछ किया । अपने परिवार और बच्चों की सुख सुविधा के लिए उन्होंने अपना पूरा जीवन ही दाँव पर लगा दिया । इस चक्कर में वे प्रभु से जुड़ना भूल गए । उनकी मृत्यु हुई । परिवार ने बारह दिनों का शोक मनाया । महीने भर उनकी चर्चा रही फिर सब कोई धीरे-धीरे उन्हें भूल गए । आज एक वर्ष बाद केवल श्राद्धपक्ष में उन्हें एक दिन के लिए याद किया जाता है । उनका पूरा परिवार यहाँ तक कि उनकी विधवा पत्नी भी सभी सांसारिक सुखों को बेहिचक भोग रही है । वे मुखिया आज किस योनि में है यह पता नहीं । पर एक बात तय है कि उन्हें चौरासी लाख योनियों के चक्कर काटने पड़ेंगे । ऐसा इसलिए होगा क्योंकि उन्होंने मानव जन्म पाकर अपने परिवार के लिए तो सब कुछ किया पर अपने मानव जीवन में प्रभु की प्राप्ति के लिए कुछ भी नहीं किया ।
उपरोक्त दृष्टांत यह बताता है कि हम व्यर्थ में कैसे अपना मानव जीवन बर्बाद कर लेते हैं । फिर प्रश्न उठता है कि मानव जीवन पाकर हमें क्या करना चाहिए । मानव जीवन पाकर जो उसकी मर्यादा है हमें उसको लांघना नहीं चाहिए । जीवन निर्वाह और दुनियादारी की जितनी आवश्यकता है उससे बाहर जाकर कुछ भी नहीं करना चाहिए । हम गलती यह कर बैठते हैं कि जीवन निर्वाह के लिए आवश्यकता से ज्यादा कमाई और व्यर्थ की बहुत सारी दुनियादारी में उलझ जाते हैं और इस तरह अपना बहुमूल्य समय प्रभु को देने से वंचित रह जाते हैं ।
युवा से जवानी और जवानी से बुढ़ापे में जैसे-जैसे भी हम प्रवेश करते जाए प्रभु के लिए नित्य निरंतर हमें समय बढ़ाते चले जाना चाहिए । जितना-जितना प्रभु के लिए हम अपने जीवन में समय बढ़ाएंगे उतने-उतने हम प्रभु के समीप पहुँचते चले जाएंगे ।
जीव को चाहिए कि वह प्रभु की भक्ति में रमे और अपना तन-मन-धन प्रभु सेवा में अर्पित करे । हम सिर्फ आरती में गाने के लिए प्रभु से कह देते हैं कि हमारा तन-मन-धन आपको अर्पण है पर सही मायने में हम ऐसा कर नहीं पाते । यह सिर्फ और सिर्फ भक्ति से ही संभव है । जब भक्ति तीव्र होती है तो जीव अपना सर्वस्व प्रभु को अर्पण कर देता है ।
हमें अपना अंत सुधारना है और जीवन भी सुधारना है तो प्रभु भक्ति करना नितांत आवश्यक है । तभी हम अंत में प्रभु को प्राप्त कर पाएंगे और चौरासी लाख योनियों से सदैव के लिए मुक्त हो पाएंगे । अगर हम ऐसा नहीं कर पाते तो हमारा चौरासी लाख योनियों में लगातार भटकते रहना तय है ।
इसलिए जीवन में अविलम्ब भक्ति का सहारा लेकर प्रभु तक पहुँचने का प्रयास करना चाहिए । हम प्रभु की तरफ एक कदम बढ़ाते हैं तो प्रभु दस कदम हमारी तरफ बढ़ाते हैं । इसलिए जीवन निर्वाह की आवश्यकता के लिए जो जरूरी है वह करते हुए एवं बहुत सीमित दुनियादारी रखते हुए बाकी सारा समय प्रभु की भक्ति करके प्रभु को अर्पण करना चाहिए । ऐसा करने वाला ही प्रभु तक पहुँच पाता है । ऐसा करने वाला ही अपना मानव जीवन सफल कर पाता है और ऐसा करने वाला ही अपने मानव जीवन का सही उपयोग कर पाता है ।