लेख सार : प्रभु भक्ति की अदभुत शक्ति का दर्शन करवाता लेख । लेख हर परिस्थिति में सदैव दृढ़ प्रभु भक्ति का आह्वान करता है । पूरा लेख नीचे पढ़ें -
एक नन्हे दुधमुँहे बच्चे को अर्धनग्न अवस्था में भूखा-प्यासा तपती धूप में अपनी माँ की गोद में भीख मांगने हेतु दया का पात्र बनकर शहर के चौराहों पर भीख मांगते आपने अक्सर देखा होगा ।
वह नन्हा बच्चा इतना छोटा है, दुधमुँहा है कि इस जन्म में तो उसने कुछ भी गलत नहीं किया होगा क्योंकि अभी तक उसने जमीन पर स्वतः पैर तक नहीं रखे, उसके मुँह से वाणी निकलनी भी प्रारंभ नहीं हुई ।
जरा सोचें उसकी इस दुर्दशा का कारण । या तो पूर्व जन्मों में उसने बहुत पापकर्म किए होंगे या फिर निश्चित ही नगण्य प्रभु भक्ति की होगी । क्योंकि अगर प्रभु भक्ति करता तो भक्ति में इतनी प्रबल शक्ति होती है कि कई पूर्व जन्मों के संचित पाप भी क्षणभर में काट देती है । प्रभु की एक कृपा क्षणभर में उतने पाप काटती है जितने पाप हम जन्म-जन्मों में भी संचित नहीं कर सकते ।
प्रभु भक्ति की पहली शक्ति है कि वह जन्म-जन्मों के संचित पाप काटती है । प्रभु भक्ति की दूसरी शक्ति है (जो पहली से भी अहम है) कि जीव को उस जन्म में पापकर्म करने ही नहीं देती । क्योंकि सच्ची भक्ति हमारी बुद्धि और हृदय को इतना शुद्ध और निर्मल कर देती है कि हमारी अन्तरात्मा की आवाज हमें गलत कार्य करने के पहले रोक देती है । भक्ति करते-करते अन्तरात्मा की आवाज दृढ़ और साफ सुनाई देने लगती है । अन्तरात्मा की आवाज सुनने और मानने से वह और बुलंद होती चली जाती है । इससे ठीक विपरीत अभक्त को अन्तरात्मा की आवाज सुनाई पड़नी ही बंद हो जाती है ।
अन्तरात्मा की आवाज क्या है ? यह सत-वाणी है यानी भीतर विराजे प्रभु की वाणी है जो हमें पुण्यकर्म करने हेतु निरंतर प्रेरित करती है और पापकर्म से बचने के लिए सदा सचेत करती है ।
प्रभु भक्ति का बल देखें कि हमें अन्तरात्मा का दिशानिर्देश प्राप्त कराती रहती है जो अभक्त को कभी प्राप्त नहीं होता । भक्ति के कारण अन्तरात्मा की आवाज हमें उस जन्म में पापकर्म करने से रोकती है और भक्ति हमारे पूर्व जन्मों के संचित पापों को भी प्रभु कृपा दिलाकर भस्म करवा देती है ।
पाप कटते ही हमें मनुष्य देह मिलती है और एक अच्छे, गुणशाली और सर्वसम्पन्न कुल में जन्म मिलता है । ऐसे कुल में जन्म मिलने पर और ऐसे जन्म का रहस्य समझने पर हमें उस जन्म में भी भक्ति की डोर निरंतर पकड़े रखनी चाहिए । क्योंकि ऐसी अवस्था में जहाँ भक्ति ने हमारे संचित पापों को प्रभु कृपा दिलाकर क्षय करवाया हो, जिस कारण हमें मानव देह और उत्तम कुल मिला हो, अगर हम फिर से अपनी भक्ति को प्रबल करते हैं, तो उस जन्म में हमारे द्वारा होने वाले पापकर्म से भी भक्ति हमारी रक्षा करती है । भक्ति हमारी अन्तरात्मा की आवाज को प्रबल करती है जो हमें गलत कार्य करने से रोकती है । भक्ति मानव जीवन को परम ऊँचाई प्रदान कराती है और यहाँ तक की प्रभु-साक्षात्कार भी करवा देती है, जिससे आवागमन से सदैव के लिए मुक्ति मिल जाती है । मानव जीवन का एकमात्र लक्ष्य भी यही है ।
इसलिए अगर हमारा जन्म प्रतिकूलता में हुआ है (जैसे गरीब परिवार, अभाव इत्यादि) तो हमें उसे सुधारने हेतु, संचित पाप काटने हेतु और अन्तरात्मा की सही आवाज सुनकर अभाव के कारण पापकर्म से बचने हेतु प्रभु भक्ति करनी चाहिए । अगर हमारा जन्म अनुकूलता में हुआ है (जैसे सम्पन्न परिवार, वैभव इत्यादि) तो हमें प्रभु के प्रति कृतज्ञता ज्ञापन हेतु, इस जन्म में और ऊँचाईयां पाने हेतु (सिद्धांत और जीवन मूल्यों की ऊँचाई, पुण्य अर्जन से ऊँचाई, न की कोरी धन-संपन्नता की, ऐशो-आराम और शान-शौकत की दिखावटी ऊँचाई) और अन्तरात्मा की सही आवाज सुनकर धन-संपन्नता के मद में पापकर्म से बचने हेतु प्रभु भक्ति करनी चाहिए ।
इस जन्म की प्रतिकूलता में यह मानना चाहिए कि पूर्व जन्मों में प्रभु भक्ति के अभाव के कारण, प्रभु कृपा से वंचित होने के कारण ऐसा हुआ है । इसलिए तीव्र प्रभु भक्ति करके इस जन्म में इस प्रारब्ध को सुधारना चाहिए ।
इस जन्म की अनुकूलता में यह मानना चाहिए कि पूर्व जन्मों में प्रभु भक्ति के प्रभाव के कारण, प्रभु कृपा द्वारा सिंचित होने के कारण ऐसा हुआ है । इसलिए तीव्र प्रभु भक्ति से इस क्रम को बनाए रखना चाहिए ।
दोनों ही अवस्था में प्रभु भक्ति पथ पर चलते रहना ही मनुष्य जीवन को सफल और श्रेष्ठ बनाने के लिए एकमात्र और सबसे सरल साधन है ।