लेख सार : पूर्व के युगों में प्रभु को पाने का मार्ग कठिन था क्योंकि जीवन में सात्विकता और अनुकूलता थी । पर वर्तमान कलियुग में प्रभु को पाने का मार्ग बहुत सुगम है क्योंकि जीवन में सात्विकता का ह्रास हुआ है और जीवन प्रतिकूलताओं से भरा हुआ है । पूरा लेख नीचे पढ़ें -
आज के युग में यानी कलियुग में भक्ति करने वाला प्रभु को जल्दी पा लेता है । अन्य युगों में प्रभु को पाना कठिन था पर कलियुग में प्रभु को पाना सबसे सुलभ है । ऐसा इसलिए कि इस युग में गृहस्थ के जंजाल, व्यापार की परेशानियाँ, सामाजिक दुनियादारी, बीमारियों के आक्रमण के बीच प्रभु के लिए समय निकाल पाना कठिन होता है इसलिए प्रभु ने अपने को पाने का मार्ग इस युग में सुलभ बना दिया है ।
इसलिए जो इस वर्तमान युग में सच्ची भक्ति करके प्रभु के लिए समय निकाल लेता है वह बड़े वेग से प्रभु तक पहुँचता है । अन्य युगों में प्रभु प्राप्ति के मार्ग में बाधाएँ कम होती है इसलिए प्रभु प्राप्ति के साधन कठिन होते हैं । कलियुग में प्रभु प्राप्ति के मार्ग में बाधाएँ बहुत हैं इसलिए प्रभु प्राप्ति का साधन बहुत सुलभ है ।
कलियुग का जीव गृहस्थी के जंजाल में उलझा रहता है । महंगाई और प्रतिस्पर्धा के कारण परिवार और बच्चों का लालन-पालन उसके ऊपर एक बड़ा बोझ होता है जिसको वह जीवन पर्यंत उठाता फिरता है । ऐसे में प्रभु के लिए समय निकालना उसके लिए कठिन हो जाता है । आज वह मात्र सुबह-शाम दस मिनट की पूजा करके या मंदिर में दस मिनट जाकर पूजा करके अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेता है । पहले के युगों में लोग अपने दिन का काफी बड़ा समय प्रभु को अर्पण करते थे । उनका पूजा का क्रम बहुत बड़ा होता था और नित्य भजन सत्संग चलता ही रहता था । पर वर्तमान में आधुनिक बनने की होड़ में जीव का बहुत बड़ा समय व्यतीत हो जाता है और प्रभु की तरफ उसका ध्यान ही नहीं जाता ।
कलियुग में जीव को व्यापार एवं आजीविका की परेशानी ने घेरा हुआ होता है । वह व्यापार में आगे बढ़ने के लिए प्रतिस्पर्धा के युग में अनैतिक हथकंडे अपनाता है और अनैतिक कमाई घर में लाता है । इस कारण आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य में उसका पतन हो जाता है । उसका जीवन शुद्ध नहीं रहता, आचार विचार शुद्ध नहीं रहते । पहले के युग में लोग संतोषी हुआ करते थे और नैतिकता से कभी समझौता नहीं करते थे, इसलिए उनका उत्थान होता था ।
कलियुग में सामाजिक दुनियादारी ने जीव के समय के बहुत बड़े भाग का अपहरण कर लिया है । वह अपनी प्रतिष्ठा के लिए, नाम के लिए व्यर्थ की दुनियादारी में उलझा रहता है । विज्ञान ने जीव की पहुँच देश-विदेश तक बना दी है । इसलिए एक शादी में भाग लेने के लिए वह दस घंटे की हवाई यात्रा करके विदेश जाता है और इस प्रकार अपने आपको बेवजह व्यस्त बनाकर रखता है । दुनियादारी निभाते-निभाते वह दुनिया को तो याद रखता है और प्रभु को भूल जाता है ।
कलियुग में बीमारियों के आक्रमण के कारण जीव परेशान रहता है । गलत खान-पान, प्रदूषण, आधुनिक जीवनचर्या की मार के कारण उसका स्वास्थ्य बिगड़ जाता है । स्वस्थ रहने के लिए उसे बहुत परिश्रम करना पड़ता है । महंगे इलाज, दवाइयों के विस्र्द्ध क्रिया (रिएक्शन) में उसका जीवन उलझ जाता है । पुराने समय में शुद्ध आहार, सात्विक रहन-सहन के कारण जीव निरोगी रहता था और अपनी सेहत ठीक होने के कारण अपना तन और मन प्रभु सेवा में अर्पण करके रखता था ।
इसलिए इन सब झंझटों के बाद भी जो कलियुग में प्रभु के लिए समय निकालता है और सच्चे मन से प्रभु की भक्ति करता है वह कलियुग में प्रभु को बहुत जल्दी पा लेता है । कलियुग के अवरोधों को लांघता हुआ जो प्रभु की तरफ दौड़ता है उसे प्रभु स्वयं आगे आकर अपनी बाहों में भर लेते हैं ।