लेख सार : जीवन में अगर दुःख आता है तो कभी भी उसके लिए प्रभु से शिकायत नहीं करनी चाहिए अपितु उसे प्रभु का अनुग्रह ही मानना चाहिए क्योंकि दुःख हमें संसार से विमुख कर प्रभु की तरफ मोड़ देता है । पूरा लेख नीचे पढ़ें -
जीवन के दुःख और कष्ट प्रभु की तरफ अग्रसर होने का श्रेष्ठ मौका हमें प्रदान करते हैं । संत इसे प्रभु द्वारा भेजा अनुग्रह बताते हैं जो हमें प्रभु की तरफ ले जाता है । पर हम प्रभु को ही अपने दुःखों और कष्टों का दोष देकर इस मौके को बेकार और व्यर्थ गंवा देते हैं ।
जब जीवन में खुशियाँ ही खुशियाँ होती हैं तो हम संसार में और ज्यादा रम जाते हैं । सुख में प्रभु का सुमिरन और भजन प्रायः औपचारिकता मात्र का ही हो पाता है । इसलिए जीवन में प्रभु प्राप्ति के लिए सुख से भी बड़े सहायक दुःख होते हैं जो हमें प्रभु मार्ग पर ले जाते हैं । दुःखी व्यक्ति को प्रभु की याद बहुत जल्दी आती है क्योंकि उसे एकमात्र आसरा प्रभु का ही होता है । संत कबीरदासजी ने अपने दोहे में यही बात लिखी है कि "दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करै न कोय" । यह दुनिया की रीत है कि दुःख में ही हमें प्रभु की सबसे ज्यादा याद आती है ।
कलियुग में भी बहुत सारे ऐसे भक्त आपको मिलेंगे जिनको दुःख ने प्रभु की तरफ मोड़ दिया । वे सुखी होते तो संसार में रमते, अपने व्यापार-परिवार में रमते पर दुःख ने उनको घेरा और वे प्रभु की तरफ मुड़ गए ।
इसलिए संतों ने सुख की अपेक्षा दुःख को अधिक मूल्यवान माना है । दुःखी जीव का संसार पर से भरोसा उठ जाता है क्योंकि संसार के एक-एक करके सभी द्वार उसके लिए बंद हो जाते हैं । संसार के द्वार बंद होने के बाद उसे प्रभु की याद आती है । प्रभु का द्वार किसी के लिए भी, कभी भी बंद नहीं होता । वह सदैव सबके लिए सब समय खुला रहता है ।
दुःखी व्यक्ति का साथ संसार वाले छोड़ देते हैं, यहाँ तक कि उसके परिवार वाले और उसके पत्नी-पुत्र भी उसका साथ छोड़ देते हैं पर प्रभु किसी का साथ कभी भी नहीं छोड़ते । जहाँ से संसार हमारी अंगुली छोड़ता है वहीं से प्रभु हमारी अंगुली पकड़ लेते हैं ।
इसलिए दुःख को प्रभु मार्ग की ओर अग्रसर होने का सुनहरा मौका मानना चाहिए और दुःख से कभी भी घबराना नहीं चाहिए । दुःख की अवस्था में हमें प्रभु की भक्ति करके प्रभु की शरणागति ग्रहण करनी चाहिए । इससे हमारा दुःख भी मिटेगा और हमें प्रभु का सानिध्य भी मिलेगा । जो दुःख हमें जीवन में प्रभु तक पहुँचा दे उस दुःख का धन्यवाद करना चाहिए । दुःख हमें प्रभु तक पहुँचाता है इसलिए संत दुःख को भी वंदनीय मानते हैं । इसलिए जब दुःख जीवन में आए तो उस दुःख का जीवन में स्वीकार करना चाहिए और उसे प्रभु तक पहुँचने का एक बड़ा माध्यम बनाना चाहिए ।
सुख में हमें संसार प्रिय लगता है और दुःख में हमें प्रभु प्रिय लगते हैं । तो स्वयं ही निर्णय करें कि कौन श्रेष्ठ है । जिससे संसार प्रिय लगे वह श्रेष्ठ है या जिससे प्रभु प्रिय लगे वह श्रेष्ठ है । निश्चित रूप से जिससे प्रभु प्रिय लगे वही श्रेष्ठ होता है । इसलिए जीवन में दुःख से कभी भी दुःखी नहीं होना चाहिए ।
बड़े-बड़े संतों और भक्तों ने दुःख को माध्यम बनाकर प्रभु का सानिध्य पाया है । वे अगर जीवन में सुखी रहते तो वे प्रभु मार्ग में अग्रसर नहीं हो पाते और प्रभु का सानिध्य कभी भी प्राप्त नहीं कर पाते । उनको जीवन में दुःख ने घेरा और संसार से उनका मोह भंग हुआ और वे जीवन में प्रभु मार्ग पर अग्रसर हुए ।
संतों से हमें जीवन में सीखना चाहिए कि उन्होंने दुःख के लिए प्रभु से कभी भी शिकायत नहीं की अपितु दुःख के लिए प्रभु को सदा धन्यवाद ही दिया है क्योंकि वे दुःख के कारण ही प्रभु तक पहुँचने में कामयाब हो गए । दुःख हमें प्रभु की प्राप्ति कराने में सहायक बनता है इसलिए जीवन में अगर दुःख आए तो उस दुःख को स्वीकार करना चाहिए ।
इसलिए जीवन में दुःख आए तो प्रभु की कृपा प्रसादी मानकर उसे सहर्ष स्वीकार करना चाहिए और संसार से विमुख हो भक्ति के द्वारा प्रभु की ओर अग्रसर होना चाहिए ।